इमाम हुसैन (अ) का आंदोलन

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इमाम हुसैन (अ) का आंदोलन
अन्य नामइमाम हुसैन (अ) का क़याम
कथा का वर्णनयजीद बिन मुआविया के खिलाफ़ इमाम हुसैन (अ) का विरोध आंदोलन
पक्षइमाम हुसैन (अ)/ यज़ीद बिन मुआविया
समयवर्ष 60-61 हिजरी
अवधिबनी उमय्या
स्थानमदीने से कर्बला तक
कारणइमाम हुसैन (अ) का यज़ीद के प्रति निष्ठा से इनकार
लक्ष्यइस्लामी समाज को सही मार्ग पर लौटाना और विचलन (इन्हेराफ़ात) से लड़ना
परिणामइमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों की शहादत और उनके परिवार को बंदी बनाना
नतीजेतव्वाबीन का आंदोलन, मुख़्तार का आंदोलन, ख़ाज़र का युद्ध, ज़ैद बिन अली का आंदोलन
सम्बंधितशोक अनुष्ठानों का प्रसार, कर्बला की घटना

इमाम हुसैन (अ) का आंदोलन, (अरबी: قیام الامام الحسين (ع)) इमाम हुसैन (अ) का यज़ीद बिन मुआविया की सरकार के खिलाफ़ विरोध आंदोलन था, जिसके कारण 10वीं मुहर्रम वर्ष 61 हिजरी को उनकी और उनके साथी की शहादत हुई और उनके परिवार को बंदी बनाया गया। यह आंदोलन इमाम हुसैन (अ) द्वारा यज़ीद के प्रतिनिधि के रूप में मदीना के शासक के प्रति निष्ठा की शपथ लेने से इनकार करने और रजब वर्ष 60 हिजरी में मदीना छोड़ने के साथ शुरू हुआ और बंदियों की मदीना वापसी के साथ समाप्त हुआ।

इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन ने उमय्या सरकार के खिलाफ़ विद्रोह का गठन किया और इसके पतन में भूमिका निभाई। हर साल, शिया इस घटना की सालगिरह पर विभिन्न समारोह आयोजित करते हैं। शोक अनुष्ठानों का प्रसार, आशूर साहित्य का निर्माण, धार्मिक भवनों और स्थानों का निर्माण, कला के कार्यों का निर्माण, और अत्याचार विरोधी भावना को मज़बूत करना शिया समाज और संस्कृति पर इस घटना के प्रभावों में से हैं।

इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन का मुख्य लक्ष्य, जैसा कि मुहम्मद बिन हनफ़िया से इमाम (अ) की वसीयत में कहा गया है, इस्लामी समाज को सही मार्ग पर लौटाना और विचलन के खिलाफ़ लड़ना था। हालाँकि, सरकार का गठन, शहादत, जीवन का संरक्षण और यज़ीद के प्रति निष्ठा से बचना उनके अन्य लक्ष्यों में से हैं।

शहीदे जावेद किताब लिखे जाने के बाद और इमाम हुसैन (अ) के मुख्य लक्ष्य के रूप में सरकार के गठन को बयान करने के बाद और शिया लेखकों द्वारा इसकी आलोचना करने के बाद, इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन के लक्ष्यों की चर्चा ने अध्ययन में प्रवेश किया। इस क्षेत्र में आशूरा अध्ययन और विभिन्न सिद्धांत उभर कर सामने आए, कि शहादत की मांग और सरकार का गठन उनमें से सबसे महत्वपूर्ण है।

आशूर की घटना

मुख्य लेख: कर्बला की घटना

कर्बला की घटना मुहर्रम वर्ष 61 हिजरी में इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों की कूफ़ा की सेना के साथ लड़ाई को संदर्भित करती है। यह घटना, जो इमाम हुसैन (अ) द्वारा यज़ीद बिन मुआविया के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा नहीं करने के बाद हुई, इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों की शहादत के साथ-साथ उनके अहले बैत (अ) के बंदी बनने का कारण बनी। रजब 60 हिजरी में, इमाम हुसैन (अ) ने मदीना के शासक के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा न करने के कारण मदीना को अपने परिवार और कई बनी हाशिम के साथ छोड़ दिया और मक्का[१] चले गए और लगभग चार महीने तक मक्का में रहे। इस दौरान, कूफ़ा के लोगों के निमंत्रण पत्र उनके पास पहुँचे।[२] इसलिए, वह 8 ज़िल हज्जा को कूफ़ा के लिए रवाना हुए।[३] कूफ़ा पहुँचने से पहले, उन्हे कूफ़ीयों के अनुबंध के उल्लंघन के बारे में सूचना मिली[४] और हुर बिन यज़ीद रियाही की सेना से सामना करने के बाद कर्बला की ओर गए और वहां उन्हें एक सेना का सामना करना पड़ा जिसे ओबैदुल्ला बिन ज़ियाद ने भेजा था।[५] 10वीं मुहर्रम को दोनों सेनाएँ आपस में लड़ीं। इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों के शहीद होने के बाद बचे लोगों को बंदी बना लिया गया।[६]

आंदोलन का कारक

इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन का मुख्य कारण कुछ शोधकर्ताओं ने इस्लाम के धार्मिक और नैतिक विश्वासों से इस्लामी समाज के विचलन को माना है।[७] क्योंकि उमय्या काल में जाहिली और क़बीलाई मूल्यों को सत्ता हासिल करने में[८] और साथ ही कबीलाई मतभेदों, खासकर बनी हाशिम और बनी उमय्या[९] के बीच मतभेदों को फिर से बल मिला था।

इसके अलावा, मुआविया द्वारा यज़ीद को ख़लीफ़ा के रूप में पेश करना और इमाम हुसैन (अ) से निष्ठा लेने पर यज़ीद की ज़िद इस आंदोलन के अन्य कारण और आधार थे। इमाम हुसैन (अ) यज़ीद को खिलाफ़त के क़ाबिल नहीं मानते थे और यज़ीद के ख़ालिफ़ा के रूप परिचय को इमाम हसन (अ) और मुआविया के बीच हुई शांति संधि (सुलह) के विपरीत मानते थे क्योंकि शांति संधि (सुलह) में यह तय हुआ था कि मुआविया को अपने लिए उत्तराधिकारी नियुक्त करने का अधिकार नहीं है।[१०]

आंदोलन का लक्ष्य और योजनाएँ

इमाम हुसैन अलैहिस सलाम:

إنّي لَم أخرُجْ أَشِراً و لا بَطِراً و لا مُفسِداً و لا ظالِماً و إنَّما خَرَجْتُ لِطَلَبِ الْإصلاحِ في اُمَّةِ جَدّي اُرِيدُ أن آمُرَ بِالْمَعرُوفِ و أنهي عَنِ الْمُنكَرِ و أسِيرَ بِسيرَةِ جَدّي وَ أبي عَليِّ بنِ أبي طالِبٍ عليه السّلام अनुवाद:और मैंने यह आंदोलन, भ्रष्टाचार और अत्याचार से आंदोलन नहीं किया, मैं केवल अपने पूर्वजों के राष्ट्र (उम्मत) को सुधारना चाहता हूँ। मैं भलाई का हुक्म देना चाहता हूँ और बुराई से रोकना चाहता हूँ और अपने दादा और अपने पिता अली बिन अबी तालिब (अ) की तरह व्यवहार करना चाहता हूँ।[११]

इतिहासकार मुहम्मद इस्फंदयारी (जन्म वर्ष 1338 शम्सी) के अनुसार "आशूरा शनासी" किताब में इमाम हुसैन (अ) के आशूरा आंदोलन का मुख्य लक्ष्य सच्चाई (अहक़ाक़ अल हक़) को बनाए रखना था, अम्र बे मारूफ़ व नही अज़ मुन्कर, परंपरा (सुन्नत) को पुनर्जीवित करना और विधर्म को ख़त्म करना था।[१२] आयतुल्लाह ख़ामेनई की भी मानना है कि इमाम हुसैन (अ) का लक्ष्य इस्लामी समाज को उसके सही मार्ग पर वापस लाना और बड़े विचलन के खिलाफ़ लड़ना था।[१३] उनकी मान्यता के अनुसार, लक्ष्य और परिणाम में भ्रमित हो गए हैं क्योंकि इस लक्ष्य का परिणाम सरकार का गठन या शहादत थी, जबकि कुछ इन दोनों को इमाम हुसैन (अ) का लक्ष्य मानते हैं।[१४]

इस्फंदयारी के अनुसार, इमाम हुसैन (अ) के उद्देश्य के बारे में चर्चा किताब शहीद जावेद के लेखन के साथ आम हो गई थी।[१५] उनका मानना है कि इमाम हुसैन (अ) का उद्देश्य और योजना भ्रमित हो गया है। इसलिए, उन्होंने दूसरे स्तर के लक्ष्यों के रूप में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए इमाम हुसैन (अ) की योजना का उल्लेख किया और इस संबंध में सात सिद्धांत एकत्र किए हैं:[१६]

निष्ठा से बचना और जीवन बचाना

इस मत के अनुसार, इमाम हुसैन (अ) का मदीना से मक्का और वहाँ से कूफ़ा तक आंदोलन विद्रोह के उद्देश्य से नहीं बल्कि रक्षा और विरोध के लिए था। क्योंकि उन्होंने यज़ीद के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा करने से इनकार कर दिया था, उसका जीवन ख़तरे में था और उन्होंने अपनी जान बचाने के लिए मदीना और फिर मक्का छोड़ दिया।[१७] अली पनाह इश्तेहारदी[१८] और मुहम्मद सेहती सर्दरूदी[१९] इस दृष्टिकोण के रक्षक हैं। महाकाव्य की हत्या (हमासा कुशी) और इमाम हुसैन (अ) के चरित्र और स्थिति को कम करने के इस दृष्टिकोण को स्वीकार करना आवश्यक माना गया है।[२०]

सरकार का गठन

इस दृष्टिकोण के आधार पर, इमाम हुसैन (अ) ने सरकार के गठन के लिए आंदोलन किया। नेमतुल्लाह सालेही नजफ़ाबादी (1302-1385 शम्सी) ने अपनी पुस्तक शहीद जावेद में इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन का पहला लक्ष्य, सरकार का गठन माना है।[२१] उनका मानना है कि शिया धर्मशास्त्रियों में से एक सय्यद मुर्तज़ा का भी यही विचार था। सय्यद मुर्तज़ा के अनुसार, इमाम हुसैन (अ) ने कूफ़ा के लोगों के आग्रह और उनकी क्षमता और कूफ़ा सरकार की कमज़ोरी को देखते हुए उनके निमंत्रण को स्वीकार कर लिया।[२२] उनका मानना है कि इमाम हुसैन (अ) के विजय के कारण उपलब्ध थे; लेकिन अगली घटनाओं ने कहानी को उम्मीद के विपरीत बना दिया। जब कूफियों की शपथ भंग का खुलासा हुआ, तो इमाम हुसैन (अ) ने लौटने का फैसला किया और इमाम हसन (अ) की तरह संघर्ष को समाप्त कर दिया। लेकिन युद्धविराम को उनसे स्वीकार नहीं किया गया।[२३] यह कहा गया है कि यह दृष्टिकोण इमाम के मनोगत ज्ञान (इल्मे ग़ैब) के अनुकूल नहीं है क्योंकि इसके लिए आवश्यक है कि इमाम हुसैन (अ) को यह नहीं पता था कि वह विजयी नहीं हो पाएंगे। उत्तर में कहा गया कि इमाम हुसैन (अ) को उनकी शहादत और जीत की कमी के बारे में पता था, लेकिन उन्हें सामान्य ज्ञान के आधार पर कार्य करने का काम सौंपा गया था।[२४]

शहादत

कुछ का मानना है कि इस आंदोलन में इमाम हुसैन (अ) का लक्ष्य शहादत था, हालांकि शहादत की विभिन्न व्याख्याएँ की गई हैं:

  • राजनीतिक शहादत: इस मत के अनुसार, इमाम हुसैन (अ) का अपनी शहादत के माध्यम से यज़ीद के शासन को अवैध बनाना और इस्लाम को उमय्या के हाथों से बचाना था।[२५] और इस कार्रवाई से उन्होंने लोगों को सरकार के खिलाफ़ कर दिया।[२६] मुहम्मद इस्फंदयारी के अनुसार यह सबसे प्रसिद्ध मत है और इसके कई अनुयायी हैं।[२७] अली शरीअती, मिर्जा ख़लील कुमरेई, मुर्तज़ा मुतह्हरी, सय्यद रज़ा सद्र, जलालुद्दीन फारसी, सय्यद मोहसिन अमीन, हाशिम मारूफ़ अल-हसनी, आयतुल्ला साफ़ी गुलपायेगानी और मुहम्मद जवाद मुग़नियाह, इस मत को मानने वालों में शामिल हैं।[२८]
  • मोचन शहादत: कुछ लोगों का मानना है कि इमाम हुसैन (अ) पापियों के लिए सिफ़ारिश करने और उन्हें आध्यात्मिक स्तर पर लाने के लिए शहीद हुए थे।[२९] ईसाई धर्म की तरह, ईसा (अ) की हत्या के बारे में कुछ लोगों का ऐसा ही मत है।[३०] शरीफ़ तबातबाई, मुल्ला महदी नराक़ी, मुल्ला अब्दुल रहीम इस्फ़ाहानी इस मत को मानने वालों में से हैं।[३१] इसके अलावा, कुछ लोगों के अनुसार, इमाम हुसैन (अ) इसलिए शहीद हुए ताकि लोग उनके लिए रोएं और इस तरह सही रास्ते पर निर्देशित हो सकें।[३२]
  • रहस्यमय शहादत: इस दृष्टिकोण के आधार पर, इमाम हुसैन (अ) ने इस लिए आंदोलन किया ताकि शहादत जैसी नेअमत प्राप्त कर सकें।[३३] और दूसरे (इमाम (अ) के साथी) भी इस नेअमत को प्राप्त कर सकें।[३४] इस व्याख्या में, संघर्ष की कोई बात नहीं है, बल्कि आंदोलन की एक अराजनीतिक व्याख्या है।[३५] सय्यद इब्ने ताऊस, फ़ाज़िल दरबंदी, सफ़ी अली शाह, ओमान सामानी और नय्यर तबरेज़ी ने इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन की एक रहस्यमय व्याख्या प्रस्तुत की है।[३६]
  • अनिवार्य शहादत: कुछ लोग इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन को एक रहस्य के रूप में पेश करते हैं, जिसे ईश्वर ने शहीद होने का आदेश दिया था, लेकिन इसका उद्देश्य मानव जाति के लिए स्पष्ट नहीं है, और केवल ईश्वर ही इसका उद्देश्य जानता है।[३७]

शहादत के मत की आलोचना में यह कहा गया है कि यह मत उन ऐतिहासिक रिपोर्टों के अनुकूल नहीं है कि इमाम हुसैन (अ) ने अपने जीवन का बचाव किया और खुद की हत्या नहीं चाहते थे।[३८]

सरकार और शहादत

कुछ का मानना है कि आंदोलन में इमाम हुसैन (अ) का लक्ष्य शासन और शहादत का संयोजन था। इस समूह के अनुसार, इमाम हुसैन (अ) ने सरकार बनाने के उद्देश्य से आंदोलन किया था। लेकिन दोस्तों और मददगारों की कमी से निराश होने पर उन्होंने अपने लक्ष्य को शहादत में बदल दिया।[३९]

कुछ का मानना है कि राजनीतिक लक्ष्य चार चरणों वाली योजना थी। पहला चरण मदीना से मक्का जाने के समय से है, जिसकी विशेषता यज़ीद के शासन का विरोध करने से है। दूसरा चरण कूफ़ा जाने के निर्णय के समय से लेकर हुर की सेना के साथ मुठभेड़ तक है, जो कूफ़ा और इराक़ पर कब्ज़ा करने का इरादा रखता था। तीसरा चरण हूर की सेना से मुठभेड़ के समय से लेकर कूफ़ा की सेना के साथ मुठभेड़ तक है, जब वह इब्ने ज़ियाद के हाथों से बचने के बारे में सोचते हैं, और चौथा चरण तब होता है जब वह कूफ़ा की सेना का सामना करते हैं, और शहादत को चुनते हैं।[४०]

प्रभाव और परिणाम

इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन के कारण कुछ प्रभाव हुए, उनमें से कुछ हैं:

महात्मा गांधी; भारतीय स्वतंत्रता नेता:

"मैंने इस्लाम के महान शहीद इमाम हुसैन (अ) के जीवन को ध्यान से पढ़ा है, और मैंने कर्बला के पन्नों पर पर्याप्त ध्यान दिया है, और मेरे लिए यह स्पष्ट है कि यदि भारत एक विजयी देश बनना चाहता है, तो इमाम हुसैन (अ) के उदाहरणों का अनुसरण करें।"

तारीख़े बाएगानी, हाशमी निज़ाद,दर्सी के हुसैन (अ) बे इंसानहा आमुख़्त, 1382 शम्सी, पृष्ठ 279

इस्लाम धर्म और पैग़म्बर की सुन्नत का पुनरुद्धार

कुछ लेखकों ने इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन और उनकी शहादत का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव इस्लामी धर्म के पुनरुत्थान को माना है।[४१] इमाम खुमैनी के अनुसार, यदि कर्बला की घटना नहीं हुई होती, तो यज़ीद बिन मुआविया ने इस्लाम धर्म और पैग़म्बर (स) की सुन्नत को उल्टा कर दिया होता।[४२]

बनी उमय्या शासन के विरुद्ध विरोध आंदोलनों का गठन

इमाम हुसैन (अ) की शहादत के बाद, बनी उमय्या शासन के विरुद्ध, विरोध आंदोलनों का गठन किया गया। तारीख़े तबरी के अनुसार, बनी उमय्या के विरुद्ध विद्रोह की शुरुआत वर्ष 61 हिजरी से संबंधित है, जब इमाम हुसैन (अ) की शहादत के बाद, लोगों के एक समूह ने उनका बदला लेने के लिए हमेशा क़दम उठाए।[४३] पहला विरोध था इब्ने ज़ियाद के साथ अब्दुल्ला बिन अफ़ीफ़ इज़दी का टकराव। कूफ़ा मस्जिद में, उन्होंने इब्ने ज़ियाद के भाषण पर आपत्ति जताई, जिसने इमाम हुसैन (अ) को झूठा कहा और इब्ने ज़ियाद और उसके पिता को झूठा कहा।[४४] इसके अलावा, तारीख़े सिस्तान में एक रिपोर्ट के अनुसार, सिस्तान के लोगों को जब इमाम हुसैन (अ) की शहादत की सूचना मिली तो उन्होंने सिस्तान के शासक के विरुद्ध विद्रोह किया, जो उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद का भाई था।[४५] मदीना के लोगों ने भी वर्ष 63 हिजरी में अब्दुल्लाह बिन हंज़ला बिन अबी आमिर के नेतृत्व में यज़ीद बिन मुआविया की सरकार के विरुद्ध विद्रोह किया।[४६] चौथी शताब्दी के इतिहासकार अली बिन हुसैन मसऊदी, इमाम हुसैन (अ) की हत्या को, मदीना के लोगों के विद्रोह के कारणों में से एक मानते हैं।[४७]

तव्वाबीन का आंदोलन

मुख्य लेख: तव्वाबीन का आंदोलन

आशूरा की घटना के बाद, इमाम हुसैन (अ) और कर्बला के शहीदों के खून के इंतेक़ाम के उद्देश्य से, सुलेमान बिन सर्द ख़ोज़ाई के नेतृत्व में तव्वाबीन का आंदोलन वर्ष 65 हिजरी में हुआ।[४८] जब तव्वाबीन की सेना कर्बला पहुंची, तो वे अपने घोड़ों से उतरे और रोते बिलकते इमाम (अ) के क़ब्र पर पहुंचें और एक उत्साही सभा का गठन किया।[४९] सुलेमान ने उनके बीच कहा: हे भगवान, तुझे गवाह बनाते हैं कि हम हुसैन (अ) के धर्म और मार्ग और उनके हत्यारों के विरुद्ध हैं।[५०]

मुख़्तार का आंदोलन

मुख्य लेख: मुख़्तार का आंदोलन

66 हिजरी में, मुख़्तार सक़फ़ी ने इमाम हुसैन (अ) के ख़ून के इंतेक़ाम के लिए आंदोलन किया और कूफ़ा के शिया उनके साथ हो गए।[५१] अपने आंदोलन में, उन्होंने दो नारों का इस्तेमाल किया: "या लसारातिल हुसैन" और "या मंसूर आमित"।[५२] इस आंदोलन में, ओबैदुल्लाह बिन ज़ियाद, उमर बिन साद, शिम्र बिन ज़िल जौशान और ख़ूली सहित कर्बला की घटना के कई अपराधी मारे गए।[५३]

ज़ैद बिन अली का आंदोलन

मुख्य लेख: ज़ैद बिन अली का आंदोलन

बनी उम्मया शासन के विरुद्ध, ज़ैद बिन अली बिन हुसैन के आंदोलन का गठन किया गया था। वर्ष 122 हिजरी में क़ूफा के पंद्रह हज़ार लोगों की निष्ठा पर भरोसा करते हुए, ज़ैद ने उम्वी शासक हेशाम बिन अब्दुल मलिक के खिलाफ़ आंदोलन किया। शिया विद्वानों में से एक, शेख़ मुफ़ीद ने बनी उम्मया शासन के विरूद्ध आंदोलन के लिए ज़ैद बिन अली का मुख्य उद्देश्य इमाम हुसैन (अ) के ख़ून का इंतेक़ाम माना है।[५४]

उम्वियों के पतन पर कर्बला के आंदोलन का प्रभाव

कर्बला के आंदोलन का उम्वियों के पतन पर प्रभाव पड़ा। क्योंकि लोग उम्वियों को कर्बला की घटना का कारण मानते थे। इमाम हुसैन (अ) ने अपने आंदोलन को यज़ीद के शासन के खिलाफ़ भी कहा था उन्होंने उसके शासन और उम्वियों के शासन पर "व अलल -इस्लाम अस-सलाम" जैसे भावों के साथ सवाल उठाया और यज़ीद के, कुत्तों के साथ खेलने और शराब पीने का उल्लेख किया है।[५५]

अब्बासियों ने यह भी कहा कि उम्वियों के विरुद्ध आंदोलन के मुख्य कारणों में से एक इमाम हुसैन (अ) के ख़ून का इंतेक़ाम था।[५६]

शिया समुदाय पर कर्बला के आंदोलन का प्रभाव

इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन का शिया समुदाय[५७] पर प्रभाव पड़ा है, जिसमें शामिल हैं:

शोक संस्कारों का प्रचलन

मुख्य लेख: मुहर्रम का शोक

इमाम हुसैन (अ) और कर्बला के शहीदों के लिए शोक शिया समाज को पहचान और आकार देने वाले तत्वों में से एक है।[५८] ऐतिहासिक रिपोर्टों के अनुसार, कर्बला की घटना के तुरंत बाद और शिया इमामों के ज़ोर के साथ शियों के बीच शोक आम हो गया लेकिन इसका व्यक्तिगत और सीमित अभ्यास से एक सामाजिक और सार्वजनिक अनुष्ठान में परिवर्तन आले बुयेह के शासन का परिणाम है।[५९] इब्ने कसीर के अनुसार, वर्ष 359 हिजरी में, आशूरा के दिन, शियों ने बाज़ार का अवकाश कर दिया और शोक शुरू कर दिया।[६०] इमाम हुसैन (अ) के लिए विशेष रूप से मुहर्रम में दस दिनों का शोक, भोजन और प्रसाद के साथ विभिन्न देशों में शियों के बीच आम है।[६१]

आशूरा साहित्य का गठन

मुख्य लेख: आशूरा साहित्य

आशूरा की घटना ने अरब साहित्य के एक हिस्से को आशूरा कविता और शोकगीतों (मरसिया ख़्वानी) के लिए समर्पित कर दिया। आशूरा की घटना के बारे में कविता लिखने वाले अरबी भाषा के पहले कवि उक़बा बिन अम्र सहमी हैं।[६२] अब्दुल जलील राज़ी ने इमाम हुसैन (अ) के लिए हनफ़ी और शाफ़ेई के कवियों की कविताओं को बेशुमार बताया है।[६३] अशुराई कविता विश्वकोश के अनुसार, इमाम हुसैन (अ) के शोक में फ़ारसी कविता लिखना और कर्बला की घटना चौथी शताब्दी हिजरी में शुरू हुई, और पहला शोकगीत (मरसिया) कसाई मरुज़ी (मृत्यु 390 हिजरी) द्वारा लिखा गया था।[६४] ईरान में सफ़वी काल के दौरान, फ़ारसी कविता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अशूरा की घटना के लिए समर्पित है।[६५] दानिश नामे शेअरे आशूराई पुस्तक के लेखक ने इमाम हुसैन (अ) के लिए उनकी कविताओं के कुछ छंदों के साथ 345 कवियों के नाम एकत्र किए हैं।[६६]

मक़तल निगारी का प्रसार

मुख्य लेख: मक़तल निगारी

मक़तल निगारी एक प्रकार का इतिहास लेखन है जो महत्वपूर्ण पात्रों की हत्या या शहादत से संबंधित है। मक़तल की किताबें, जिनमें इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों की शहादत का वर्णन है, जिसे शियों की साहित्यिक और ऐतिहासिक विरासत में माना जाता है, और इसके लेखन का विस्तार आशूरा की घटना के बाद हुआ। शियों के बीच मक़तल निगारी का उपयोग मासूम इमामों (अ) और प्रमुख शिया हस्तियों की शहादत का वर्णन करने के लिए किया जाता था; हालाँकि, कर्बला की घटना के बारे में मक़तल निगारी के प्रसार के कारण, इस शब्द का उपयोग इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों की शहादत से संबंधित घटनाओं के वर्णन के लिए आरक्षित किया गया है।

अत्याचार विरोधी भावना को मज़बूत करना

इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन ने विभिन्न युगों में अत्याचार विरोधी भावना और दमनकारी सरकारों के खिलाफ़ शियों की लड़ाई के गठन में भूमिका निभाई है। कुछ लेखक, सुधार आंदोलनों और लोकप्रिय क्रांतियों जैसे ईरान की इस्लामी क्रांति, को इस आंदोलन से प्रेरित मानते हैं।[६७]

इमाम खुमैनी का मानना था कि “कुल्लो यौमिन आशूरा” वाक्य उत्पीड़न के खिलाफ़ निरंतर संघर्ष की आवश्यकता को व्यक्त करता है।[६८]

विशेष स्थानों का निर्माण

शिया इमाम हुसैन (अ) का शोक मनाने के लिए हुसैनिया, इमाम बारगाह और इमामबाड़ा जैसी विशेष इमारतों का निर्माण करते हैं। इन जगहों पर शोक सभा आयोजित की जाती है। इसके अलावा, भारत के कुछ क्षेत्रों में, शोहदा ए कर्बला की कब्रों और इमाम हुसैन (अ) या हज़रत अब्बास (अ) की क़ब्र के प्रतीक के रूप में रौज़े बनाए गए हैं।[६९]

कलाकृति

इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन ने शियों की धार्मिक कला को प्रभावित किया है और आशूरा की घटना के बारे में पेंटिंग्स, आइकनोग्राफी, सुलेख, फिल्मों आदि सहित कई कार्यों का निर्माण किया गया है।[७०]

अहले सुन्नत का दृष्टिकोण

इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन के प्रति सुन्नी लेखकों का एक भी दृष्टिकोण नहीं है। कुछ, जैसे अबू बक्र इब्ने अरबी, ने इसे एक वैध सरकार के खिलाफ़ एक नाजायज़ क़दम माना है।[७१] इब्ने तैमिया इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन के बारे में मानते हैं, हालांकि इमाम को सताया गया और शहीद किया गया; लेकिन इमाम के कार्य में सांसारिक और इसके बाद की उपयोगिता का अभाव है और वह मुस्लिम उम्मत में और इस्लाम के पैग़म्बर (स) के मार्ग के विरुद्ध कई राजद्रोह के कारण के रूप में आशूरा विद्रोह का परिचय देता है।[७२] हमीद इनायत के अनुसार, पिछले सौ वर्षों में और विशेष रूप से सय्यद जमालुद्दीन असदाबादी के युग के बाद, आशूरा की घटना पर सुन्नी लेखकों का दृष्टिकोण बदल गया है और उनके कई लेखकों ने इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन का अनुमोदन किया है।[७३] अब्दुल जलील राज़ी के अनुसार, किताबे नक़ज़ में, मुहम्मद इब्ने इदरीस शाफ़ेई जैसे कुछ सुन्नी विद्वानों ने इमाम हुसैन (अ) और कर्बला के शहीदों के बारे में एक मरसिया लिखा है।[७४] उनमें शाफ़ेई का एक शोकगीत (मरसिया) है, जो निम्नलिखित छंद से शुरू होता है:

अबका अल-हुसैन व अरसा होजाहा
मिन अहले बैते रसूलिल्लाह मसबाहा[७५]

मोनोग्राफ़ी

इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन के बारे में विभिन्न रचनाएँ लिखी गई हैं। इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन के कारणों और लक्ष्यों का विश्लेषण करने के दृष्टिकोण में लिखी गई कुछ रचनाएँ इस प्रकार हैं:

  • किताब "आशूरा शनासी (इमाम हुसैन (अ) के उद्देश्य पर शोध)" में तीन अध्याय शामिल हैं: "हदफ़ शनासी क़याम (आंदोलन का उद्देश्य)", "कूफ़ा, इंतेख़ाबे दुरुस्त इमाम (कूफ़ा, इमाम की सही पसंद)" और "दीदगाहे गुज़्शतेगान (अतीत का दृष्टिकोण)"। दूसरे भाग में किताब में, लेखक ने इमाम हुसैन के उद्देश्य के बारे में सात मतों को सामने रखा है।[७६] उनका मानना है कि इमाम हुसैन (अ) सरकार बनाने के इरादे से उठे थे, इसलिए, तीसरा भाग शिया विद्वानों की राय के बारे में समर्पित है। इमाम हुसैन (अ) का लक्ष्य, जो लेखक की राय से सहमत है।
  • पस अज़ पंजाह साल पज़ौहिशी ताज़े पीरामून क़यामे हुसैन (अ), लेखक सय्यद जाफ़र शहीदी (1297-1386 शम्सी), जो एक विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण से लिखा गया है। इस किताब में शहीदी ने इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन के गठन में सामाजिक, राजनीतिक, जातिय और धार्मिक संदर्भों की जांच की है। यह पुस्तक वर्ष 1358 हिजरी में प्रकाशित हुई थी।
  • ताअम्मुली दर नहज़ते आशूरा, लखक रसूल जाफ़रयान, इस पुस्तक में कर्बला की घटना से संबंधित कुछ सूत्रों का परिचय दिया गया है, और आंदोलन की पृष्ठभूमि, घटना का वर्णन, इमाम हुसैन (अ) की शहादत, आंदोलन के प्रभाव, इसके अलंकारिक और औपचारिक पहलू, आंदोलन की विकृतियाँ कर्बला की घटना, और इमाम हुसैन (अ) के सुन्नी शोक के इतिहास पर चर्चा की गई है।[७७]
  • क़यामे आशूरा दर कलाम व पयामे इमाम ख़ुमैनी, इस पुस्तक के पहले भाग में मुहर्रम और आशूरा के बारे में तीन व्याख्यान हैं। दूसरे भाग में आशूरा आंदोलन के कारण और कारक, शोक और प्रार्थना का दर्शन, और निष्कर्ष में, मुहर्रम और कर्बला आंदोलन के बारे में उनके शब्दों का चयन प्रस्तुत किया गया है।[७८]

फ़ुटनोट

  1. तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलूक, 1967, खंड 5, पृष्ठ 341; मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1399 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 34।
  2. तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलूक, 1967, खंड 5, पृष्ठ 352; मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1399 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 38।
  3. तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलूक, 1967, खंड 5, पृष्ठ 381; इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 81।
  4. तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलूक, 1967, खंड 5, पृष्ठ 398।
  5. दीनवरी, अख़बार अल-तेवाल, 1368 शम्सी, पृष्ठ 253; तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलूक, 1967, खंड 5, पृष्ठ 409।
  6. तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलूक, 1967, खंड 5, पृष्ठ 456।
  7. देखें शहीदी, पस अज़ पंजाह साल, 1380 शम्सी, पृष्ठ 112-123।
  8. ज़मीनेहाए क़यामे इमाम हुसैन (अ), 1383 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 18।
  9. शहीदी, पस अज़ पंजाह साल, 1380 शम्सी, पृष्ठ 69-78।
  10. इब्ने आसम, अल-फुतूह, 1411 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 290-291।
  11. कर्शी, हयात अल-इमाम अल-हुसैन, 1975 ई, खंड 2, पृष्ठ 264।
  12. इस्फंदयारी, आशूरा शनासी, 1387 शम्सी, पृष्ठ 33।
  13. ख़ामेनाई, इंसान 250 साले, 1394 शम्सी, पृष्ठ 179।
  14. ख़ामेनाई, इंसान 250 साले, 1394 शम्सी, पृष्ठ 172।
  15. इस्फंदयारी, आशूरा शनासी, 1387 शम्सी, पृष्ठ 25।
  16. इस्फंदयारी, आशूरा शनासी, 1387 शम्सी, पृष्ठ 59।
  17. इस्फंदयारी, आशूरा शनासी, 1387 शम्सी, पृष्ठ 60।
  18. इश्तेहारदी, हफ़्त साले चेरा सदा दर आवुर्द?, पृष्ठ 154।
  19. सेहती सर्दरूदी, आशूरा पज़ोहिशी, 1384 शम्सी, पृष्ठ 441।
  20. इस्फंदयारी, आशूरा शनासी, 1387 शम्सी, पृष्ठ 68।
  21. सालेही नजफाबादी, शहीदे जावेद, पृष्ठ 159।
  22. सय्यद मुर्तज़ा, तन्ज़िह अल-अम्बिया, पृष्ठ 176।
  23. सय्यद मुर्तज़ा, तन्ज़िह अल-अम्बिया, पृष्ठ 176-178।
  24. इस्फंदयारी, आशूरा शनासी, 1387 शम्सी, पृष्ठ 21।
  25. इस्फंदयारी, आशूरा शनासी, 1387 शम्सी, पृष्ठ 156-157।
  26. जाफ़रयान, ताअम्मोली दर नहज़ते आशूरा, 1386 शम्सी, पृष्ठ 243।
  27. इस्फंदयारी, आशूरा शनासी, 1387 शम्सी, पृष्ठ 157।
  28. इस्फंदयारी, आशूरा शनासी, 1387 शम्सी, पृष्ठ 93।
  29. मेहरिज़ी, "तहलीली दरबारे अहदाफ़े क़यामे इमाम हुसैन (अ)", पृष्ठ 13।
  30. मेहरिज़ी, "तहलीली दरबारे अहदाफ़े क़यामे इमाम हुसैन (अ)", पृष्ठ 13।
  31. इस्फंदयारी, आशूरा शनासी, 1387 शम्सी, पृष्ठ 84।
  32. सेहती सर्दरूदी, आशूरा पज़ोहिशी, 1387 शम्सी, पृष्ठ 338।
  33. सय्यद इब्ने ताऊस, अल लोहूफ़, अल आलम, पृष्ठ 3 व 28।
  34. फ़ाज़िल दरबंदी, अक्सीर अल इबादात, अल-आलम, खंड 1, पृष्ठ 56।
  35. इस्फंदयारी, आशूरा शनासी, 1387 शम्सी, पृष्ठ 70।
  36. इस्फंदयारी, आशूरा शनासी, 1387 शम्सी, पृष्ठ 70-74।
  37. इस्फंदयारी, आशूरा शनासी, 1387 शम्सी, पृष्ठ 77-78।
  38. इस्फंदयारी, आशूरा शनासी, 1387 शम्सी, पृष्ठ 157।
  39. इस्फंदयारी, आशूरा शनासी, 1387 शम्सी, पृष्ठ 68-69।
  40. जाफ़रयान, ताअम्मोली दर नहज़ते आशूरा, 1386 शम्सी, पृष्ठ 242।
  41. कदीवर, "नक़्शे नहज़ते आशूरा दर शक्लगिरी व तदावुम इंक़ेलाबे इस्लामी ईरान", पृष्ठ 12।
  42. इमाम खुमैनी, सहीफ़ ए इमाम, 1389 शम्सी, खंड 17, पृष्ठ 52।
  43. तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलूक, 1967 शम्सी, खंड 5, पृष्ठ 558।
  44. तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलुक, 1967 शम्सी, खंड 5, पृष्ठ 459।
  45. तारीख़े सिस्तान, 1366 शम्सी, पृष्ठ 100।
  46. इब्ने क़ुतैबा, अल-इमामा वा अल-सियासा, 1410 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 230।
  47. मसऊदी, मोरुज अल-ज़हब, 1409 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 68-69।
  48. इब्ने कसीर, अल-बेदाया व अल-नेहाया, 1407 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 251।
  49. इब्ने असीर, अल-कामिल फ़ी अल-तारीख़, 1417 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 264।
  50. तबरी, तारीखे अल-उम्म व अल-मुलूक, 1967 शम्सी, खंड 5, पृष्ठ 589।
  51. इब्ने असीर, असद उल ग़ाबा, 1409 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 347।
  52. तबरी, तारीख अल-उम्म व अल-मुलूक, 1967 शम्सी, खंड 6, पृष्ठ 20।
  53. इब्ने असीर, असद उल ग़ाबा, 1409 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 347।
  54. शेख़ मुफ़ीद, अल इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 171-172।
  55. जाफ़रयान, ताअम्मोली दर नहज़ते आशूरा, 1386 शम्सी, पृष्ठ 245।
  56. रफीई, "नक़्शे आशूरा व अज़ादारीहाए अस्रे आइम्मा (अ) दर सुकूते उम्वियान व पीरोज़ी अब्बासयान", पृष्ठ 72।
  57. जाफ़रयान, ताअम्मोली दर नहज़ते आशूरा, 1386 शम्सी, पृष्ठ 251।
  58. रहमानी, आईन व असतूरे दर ईराने शीई, पृष्ठ 10।
  59. रहमानी, आईन व असतूरे दर ईराने शीई, पृष्ठ 58।
  60. इब्ने कसीर, अल-बेदाया व अल-नेहाया, 1407 हिजरी, खंड 11, पृष्ठ 267।
  61. देखें: मोअस्ससे शिया शनासी, सुन्नते अज़ादारी व मंक़बत ख़्वानी, 1386 शम्सी, पृष्ठ 156।
  62. मेहमानदर, "इमाम हुसैन दर आईन ए शेर व अदब", पृष्ठ 53।
  63. राज़ी क़ज़वीनी, नक़्ज़, अंजुमन आसारे मिल्ली, पृष्ठ 371।
  64. मुहम्मदज़ादे, दानिशनामे शेरे आशूराई, 1386 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 717।
  65. मुहम्मदज़ादे, दानिशनामे शेरे आशूराई, 1386 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 719।
  66. मुहम्मदज़ादे, दानिशनामे शेरे आशूराई, 1386 शम्सी, खंड 2।
  67. गुलिज़वारेह क़ुमशई, "हेमास ए हुसैनी व इंक़ेलाबे इस्लामी", पृष्ठ 105-106।
  68. इमाम खुमैनी, सहीफ़ ए इमाम, 1389 शम्सी, खंड 9, पृष्ठ 445।
  69. शिया अध्ययन संस्थान,सुन्नते अज़ादारी व मंक़बत ख़्वानी, 1386 शम्सी, पृष्ठ 158।
  70. इम्ना समाचार एजेंसी
  71. खेज़ अली, "क़यामे इमाम हुसैन अज़ दीदगाहे अल्मा ए अहले सुन्नत", पृष्ठ 58-59।
  72. इब्ने तैमिया, मिन्हाज अल-सुन्नह, 1406 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 530।
  73. इनायत, अंदिशा ए सेयासी दर इस्लामे मआसिर, 1365 शम्सी, पृष्ठ 314।
  74. राज़ी, नक़्ज़, अंजुमन आसारे मिल्ली, पृष्ठ 370-371।
  75. राज़ी, नक़्ज़, अंजुमन आसारे मिल्ली, पृष्ठ 370।
  76. इस्फंदयारी, आशूरा शनासी, 1387 शम्सी, पृष्ठ 59।
  77. जाफ़रयान, तअम्मोली दर नहज़ते आशूरा, 1386 शम्सी, पृष्ठ 12।
  78. "इमाम खुमैनी के भाषण और संदेश में आशूरा का पुनरुत्थान", इमाम खुमैनी का पोर्टल।

स्रोत

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  • हाशमीनिज़ाद, अब्दुल करीम, दरसी के इमाम हुसैन (अ) बे इंसानहा आमूख़्त, मशहद, अस्ताने क़ुद्स रज़वी, 1382 शम्सी।