कूफ़ा मे हज़रत ज़ैनब (स) का उपदेश
- शाम (सीरिया) मे हज़रत ज़ैनब (स) वाले उपदेश से भ्रमित न हों।
कूफ़ा में हज़रत ज़ैनब का उपदेश (अरबीःخطبة السيدة زينب (ع) في الكوفة) उस उपदेश को संदर्भित करता है जो ज़ैनब (स) ने कर्बला की घटना के बाद कूफ़ा में दिया था। इस उपदेश में, हज़रत ज़ैनब (स) ने कर्बला की घटना में इमाम हुसैन (अ) की मदद करने में विफल रहने के लिए कूफ़ा के लोगों को फटकार लगाई। इस उपदेश को पैग़म्बर (स) के परिवार के उत्पीड़न की व्याख्या करने और दुश्मनों के चेहरे को उजागर करने में सबसे मूल्यवान ऐतिहासिक दस्तावेजों में से एक माना गया है।
इस उपदेश को देने के बाद, इमाम सज्जाद (अ) ने अपनी फ़ूफी (बुआ) 'आलेमा ग़ैरे मुअल्लेमा (विद्वान) उपाधि से बुलाया, जिसे कुछ लोगों ने हज़रत ज़ैनब (स) के इल्मे लदुन्नी के संकेत के रूप में लिया है। यह उपदेश अपनी प्रभावोत्पादकता, वाक्पटुता और वाक्पटुता के कारण हमेशा शोधकर्ताओं के ध्यान को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।
बताया जाता है कि उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद ने इस उपदेश का विरोध करने के लिए हज़रत ज़ैनब (स) से मनाज़रा (बहस) किया। लेकिन हज़रत ज़ैनब (स) ने तार्किक और मंतिक़ी बयान से उसे रुसवा कर दिया। इस उपदेश में हज़रत ज़ैनब (स) ने कूफियों की लापरवाही को दूर करने के लिए क़ुरआन की विभिन्न आयतों का सहारा लिया। इतिहासकारों की नजर में कूफ़ा के लोगों के सोये हुए ज़मीर को जगाना, इब्ने ज़ियाद द्वारा कर्बला की घटना को तोड़-मरोड़कर पेश करने से रोकना और इमाम हुसैन (अ) के हत्यारों से बदला लेने की तैयारी सबसे अहम हैं इस उपदेश की उपलब्धियाँ विभिन्न कवियों ने इस उपदेश को काव्य रूप में लिखा है; चूँकि विभिन्न लेखकों ने इस उपदेश के बारे में पुस्तकें लिखी हैं; जिसमें हैदर क़ुली सरदार काबुली द्वारा लिखित किताब शरहो खुत्बा ए ज़ैनब (स) फ़िल कूफ़ा शामिल है।
इस्लाम के इतिहास में उपदेश और उसके स्थान का परिचय
कूफ़ा में हज़रत ज़ैनब का उपदेश, ज़ैनब (स) के उपदेशों में से एक है जो कर्बला की घटना के बाद कूफ़ा के लोगों को उनकी गलतियों से अवगत कराने के उद्देश्य से दिया गया था।[१] इस उपदेश को फ़साहत और बलाग़त के उच्च स्तर पर माना गया है।[२] ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह ख़ामेनई का मानना है कि कूफ़ा और शाम के शहरों में हज़रत ज़ैनब (स) का उपदेश इतना कलात्मक रूप से व्यक्त किया गया था कि दुश्मन भी इसे अनदेखा नहीं कर सके।[३]
फ़रहंग आशूरा पुस्तक के लेखक जवाद मुहद्दिसी इस उपदेश को पैग़म्बर (स) के परिवार के उत्पीड़न को समझाने और आशूरा में इमाम हुसैन (अ) के जीवन को दिखाने और दुश्मनो के चेहरे को उजागर करने में सबसे मूल्यवान ऐतिहासिक दस्तावेजों में से एक मानते हैं।[४] उनका मानना है कि यह उपदेश इमाम हुसैन (अ) के परिवार के गहरे ज्ञान को दर्शाता है।[५]
शेख़ मुफ़ीद के अनुसार इस ख़ुत्बे (उपदेश) को पढ़कर यह अंदाज़ा हुआ कि इमाम अली (अ) अपना कोई शानदार उपदेश दे रहे थे।[६] तबरेसी का मानना है कि इस उपदेश को पढ़कर सांसे सीने मे रुक गई और ऊँटों के गलो मे पड़ी घंटीयो की आवाज़ बंद हो गई।[७] शेख़ तूसी के अनुसार, धर्मोपदेश के बाद लोग सदमे में रो पड़े और अपने दाँतो तले उगंलीया दबा ली।[८]
लेखकों को शोक संतप्त महिला द्वारा, जिसने हाल ही में अपने भाइयों, बच्चों और कई रिश्तेदारों को खो दिया है, इतना प्रभावशाली उपदेश देना आश्चर्यजनक लगा है।[९] इमाम सज्जाद (अ) ने इस उपदेश को देने के बाद अपनी फूफी (बुआ) का आलेमा ग़ैरे मोअल्लेमा से संबोधित करते हुए उपदेश जारी न रखने का अनुरोध किया और ज़ैनब (स) ख़ामोश हो गई।[१०] अपनी फूफी (बुआ) के बारे इमाम सज्जाद (अ) की इस व्याख्या को कुछ शोधकर्ताओ ने ज़ैनब (स) के ज्ञान को इल्मे लदुन्नी का प्रमाण माना है[११] कूफ़ा में हज़रत जैनब (स) का उपदेश फ़साहत और बलाग़त के कारण लगातार शोधकर्ताओं का ध्यान आकर्षित करता रहा है।[१२]
इस उपदेश के बाद, इमाम सज्जाद (अ) ने अपनी फूफी ज़ैनब (स) को संबोधित किया और कहा: «يَا عَمَّةِ اسْكُتِي فَفِي الْبَاقِي مِنَ الْمَاضِي اعْتِبَارٌ وَ أَنْتِ بِحَمْدِ اللَّهِ عَالِمَةٌ غَيْرُ مُعَلَّمَةٍ فَهِمَةٌ غَيْرُ مُفَهَّمَةٍ إِنَّ الْبُكَاءَ وَ الْحَنِينَ لَا يَرُدَّانِ مَنْ قَدْ أَبَادَهُ الدَّهْر». या अम्मते उस्कोति फ़फ़िल बाक़ी मिनल माज़ी ऐतेबारुन व अन्ते बेहम्दिल्लाहे आलेमतुन ग़ैरो मोअल्लेमतिन फ़हेमतुन ग़ैरो मुफ़ह्हमतिन इन्नल बुकाआ वल हनीना ला यरुद्दाने मन क़द अबादहुद दहर[१३] हे फूफी, ख़ामोश हो जाए, बाक़ी बचे हुए लोगों को अतीत से सीखना चाहिए और अल्हमदो लिल्लाह आप आलेमा ग़ैरे मोअल्लेमा हैं। रोने-कराहने से दिवंगत व्यक्ति वापस नहीं आता।
इस उपदेश का उल्लेख विभिन्न स्रोतों में किया गया है: शिया स्रोतों मे आमाली शेख़ मुफ़ीद,[१४] आमाली शेख़ तूसी,[१५] मनाक़िब इब्न शहर आशोब,[१६] ऐहतेजाज तबरेसी,[१७] मुसीर अल- अहज़ान,[१८] और लोहूफ़ सय्यद इब्न ताऊस,[१९] की पुस्तकों का उल्लेख कर सकते है। और सुन्नियों की किताबों में, बलाग़ात अल-नेसा,[२०] अल-बुलदान,[२१] अल-तज़केरातुल हमदूनीया,[२२] नसरुल दुर्रे फ़िल मुहाज़ेरात[२३] और मक़तल अल-हुसैन ख्वारज़मी,[२४] का उल्लेख कर सकते है। कुछ सुन्नी स्रोतों में, इस उपदेश का श्रेय हज़रत ज़ैनब के बजाय उनकी बहन उम्मे कुलसूम (स) को दिया गया है।[२५]
इब्न ज़ियाद द्वारा उपदेश का विरोध
इस उपदेश का विरोध करने के लिए उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद ने कर्बला के कै़दीयों को दहशत ज़दा करने और खुद को विजयी और इमाम हुसैन (अ) को पराजित दिखाने के लिए दिखाने के लिए एक मनाज़रा आयोजित किया[२६] लेकिन हज़रत ज़ैनब (स) ने तार्किक और मंतिक़ी बयान से इब्न ज़ियाद की बातो अमान्य करत हुए उसे रुसवा कर दिया।[२७] कहा जाता है कि हज़रत जैनब (स) का उपदेश सरकार के ख़िलाफ़ था, लेकिन उनका भाषण नहीं रोका गया; चूँकि अरबों के लिए धर्मोपदेश सुनना आनंददायक तो था ही, यह पहली बार था कि किसी महिला ने कूफ़ा में धर्मोपदेश दिया; और वह भी एक बंदी महिला जिसका उपदेश असाधारण था।[२८]
कंटेंट
«يَا أَهْلَ الْكُوفَةِ أَ تَدْرُونَ أَيَّ كَبِدٍ لِرَسُولِ اللَّهِ فَرَيْتُمْ وَ أَيَّ كَرِيمَةٍ لَهُ أَبْرَزْتُمْ وَ أَيَّ دَمٍ لَهُ سَفَكْتُمْ وَ أَيَّ حُرْمَةٍ لَهُ انْتَهَكْتُمْ وَ لَقَدْ جِئْتُمْ بِهَا صَلْعَاءَ عَنْقَاءَ سَوْآءَ فَقْمَاءَ وَ فِي بَعْضِهَا خَرْقَاءَ شَوْهَاءَ كَطِلَاعِ الْأَرْضِ أَوْ مِلْءِ السَّمَاءِ أَ فَعَجِبْتُمْ أَنْ مَطَرَتِ السَّمَاءُ دَماً 《وَ لَعَذابُ الْآخِرَةِ أَخْزى》 या अहलल कूफ़ते आ तदरूना अय्या कबेदिन लेरसूलिल्लाहे फ़ा रअयतुम व अय्या करीमतिन लहू अबरज़्तुम व अय्या दमिन लहू सफ़कतुम व अय्या हुरमतिन लहुनतहकतुम व लक़द जेतुम बेहा सलआआ अंक़ाआ सौआआ फ़क़माआ व फ़ी बअज़ेहा ख़रक़ाआ शौहाआ कतेलाइल अर्ज़े औ मिलइस समाए आ फ़अजिबतुम अन मतरतिस समाओ दमन《वलअज़ाबुल आख़ेरते अख़ज़ा》
अनुवाद: हे कुफा के लोगों, क्या तुम जानते हो कि तुमने अल्लाह के रसूल के किस जिगर को पारा पार किया है? तुमने उनके परिवार की किन महिलाओ को बे पर्दा किया?! और तुमने उनसे कौन सा सम्मान छीना?! तुमने ज़मीन पर उनका कौनसा खून बहाया?! क्या तुम हैरान हो कि आसमान से खून की बारिश हुई?》जबकि आख़िरत का अज़ाब इससे कहीं ज़्यादा सख्त और अपमानजनक है》《सूर ए फ़ुस्सेलत आयत न 16》
कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, हज़रत ज़ैनब (स) ने सीरिया में अपने तर्कपूर्ण और तार्किक उपदेश के विपरीत, कूफ़ा में कूफ़ियों के विवेक को जगाने के लिए भावनात्मक सामग्री के बारे में अधिक बात की।[२९] इस उपदेश की एक विशेषता क़ुरआन की आयतों के कई रूपांतर (इक़्तेबास) और उपमाएँ (तमसील) हैं।[३०] इस उपदेश में, हज़रत ज़ैनब (स) ने कूफियों के विवेक को जगाने के लिए निम्नलिखित आयतो का सहारा लिया:[३१]
- सूर ए नहल की आयत न 92: इस आयत का हवाला देते हुए, इमाम हुसैन (अ) को पत्र भेजने और फिर उनकी वाचा को तोड़ने से संबंधित कूफ़ा के लोगों के विरोधाभासी व्यवहार की निंदा की गई।[३२]
- सूर ए माएदा की आयत न 80: इस आयत के संदर्भ में, कूफियों का गुमराह होना और उनका यजीद की सेना में शामिल होना उनकी दोस्ती और बातिल का अनुसरण करने का परिणाम माना जाता है।[३३]
- सूर ए तौबा की आयत न 82: ज़ैनब (स) ने इस आयत को बयान करके कूफ़ा के लोगों के कड़वे भविष्य और लगातार रोने को उनके कार्यों का परिणाम बताया है।[३४]
- सूर ए अनाम की आयत न 31: इस आयत के कथन के साथ, कूफ़ा के लोगों की वाचा को तोड़ना पुनरुत्थान के दिन में उनके अविश्वास का परिणाम माना जाता है।[३५]
- सूर ए बक़रा की आयत न 61: इस आयत का उल्लेख करते हुए, हज़रत ज़ैनब (स) ने कूफ़ा के लोगों का तुलना बनी इस्रालईल से अल्लाह के लिए खड़े न होने, ईश्वरीय सहायता की आशा न करने और अल्लाह की हुज्जत का समर्थन न करने के लिए की, और उन दोनों को सजा और अपमान के योग्य माना।[३६]
- सूर ए मरयम की 89 और 90 न की आयतें: इन आयतों का उल्लेख करके कूफ़ा के लोगों के व्यवहार की तुलना काफ़िरों के व्यवहार से की गई है।[३७]
उपदेश के परिणाम
कूफ़ा में हज़रत ज़ैनब के उपदेश के निम्नलिखित परिणाम हैं:
- कूफ़ा के लोगों की सोई हुई अंतरात्मा की जागृति;[३८]
- इब्न ज़ियाद द्वारा कर्बला की घटना को विकृत करने से रोकना[३९]
- कर्बला के कैदियों को खारजी[४०] बुलाने की दुश्मनों की योजना को नष्ट करना;[४१]
- उमय्या काल के दौरान इस्लामी समाज के पतन का खुलासा करना[४२]
- इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों के हत्यारों के ख़िलाफ़ बदला लेने के लिए मंच तैयार करना[४३]
- कूफ़ा के लोगों की भावनाओं और विचारों पर कब्ज़ा करना[४४]
मोनोग्राफ़ी
कूफ़ा में हज़रत ज़ैनब (स) के उपदेश के बारे में विभिन्न किताबें लिखी गई हैं। इनमें से कुछ पुस्तकें निम्लिखित हैं:
- शरहो खुत्बते ज़ैनब (स) फ़िल कूफ़ा, हैदर कुली सरदार काबुली द्वारा अरबी मे लिखी गई शरह है: यह पुस्तक को रज़ा उस्तादी ने शोध करके 2017 ई मे उलूमे हदीस के विशेष पुस्तकालय द्वारा प्रकाशित की गई।[४५]
- तकरार हेमासे अली (अ) दर खुत्बा हज़रत ज़ैनब (स), अली करीमी जहरमी द्वारा लिखित है, इस किताब को 1997 ई मे हज़रत मासूमा (स) प्रकाशन गृह द्वारा क़ुम मे प्राकाशित की गई थी।[४६]
- कूफ़ा के बाज़ार में हज़रत ज़ैनब (स) का खतबा, सय्यद तौक़ीर अब्बास काज़मी द्वारा उर्दू भाषा में खुत्बे का अनुवाद और विवरण है। जिसे 2020 ई मे अल मुस्तफा इंटरनेशनल ट्रांसलेशन एंड पब्लिशिंग सेंटर द्वारा प्रकाशित किया गया था।[४७]
कूफ़ा में हज़रत ज़ैनब (स) के उपदेश का पाठ और अनुवाद
बिहार उल-अनवार पुस्तक के अनुसार, कूफ़ा में हज़रत ज़ैनब के उपदेश का पाठ इस प्रकार है:
उपदेश का हिंदी उच्चारण | अनुवाद | उपदेश का अरबी उच्चारण |
---|---|---|
सुम्मा क़ालत बादा हम्दिल्लाहे तआला वस्सलाते अला रसूलेहि (स)[४८] | सभी प्रशंसाएं अल्लाह तआला के लिए हैं और दुरूद व सलाम हो मेरे नाना मुहम्मद (स) पर और उनकी तय्यब व ताहिर अर्थात पवित्र संतान पर। | ثُمَّ قَالَتْ بَعْدَ حَمْدِ اللَّهِ تَعَالَى وَالصَّلَاةِ عَلَى رَسُولِهِ (ص): |
अम्मा बादः
या अहलल कूफ़ते या अहलल ख़त्ले वल अज़्रे वल ख़ज़्ले अला फ़ला रक़ाआतिल अबरतो वला हदाआतिज़ ज़फ़रतो इन्नमा मसलोकुम कमसले अल्लती नक़ज़त ग़ज़लहा मिन बादे क़ुव्वतिन अनकासन तत्तख़ेज़ूना अयमानकुम दखलन बयनैकुम हल फ़ीकुम इल्ला अस सलफ़ो वल उजबो वश शनफ़ो वल कज़ेबो व मलक़ुल इमाए व ग़मज़ुल आदाए ओ कमरऐय अला दिमनतिन औ कफ़िज़्ज़तिन अला मलहूदतिन अला बेएसा मा कद़्दमत लकुम अंफ़ोसोकुम अन सख़ेतल्लाहो अलैकुम व फ़िल अज़ाबे अनतुम खालेदूना |
उसके बाद:
हे कूफ़ा के लोगों, हे धूर्त और विश्वासघाती लोगों! क्या आप रो रहे हो? तुम्हारे आँसू सूखने ना पाए और तुम्हारी कराहे रुकने न पाए। तुम्हारा काम उस स्त्री के समान है जिसने बड़ी महनत करके मजबूत डोरी बांधी और फ़िर स्वयं ही एक एक करके खोल दिया और अपनी मेहनत पर पानी फ़ेर दिया, वैसे ही तुम ने आपस में जो शपथ खाई है उसे भी छल और कपट का साधन बना लिया है। क्या तुम जानते भी हो कि तुम्हारे बीच बदतमीजी और लांछन, नफ़रत से भरे हुए सीने, चापलूसी और खुशामश, दासियो के समान व्यर्थ बकने वाले, शेखी बघारने वाले और दुश्मनों के सामने अपमान के अलावा और कुछ है? या उस हरियाली के समान हो जिसकी जड़ें जानवरों के मल में होती हैं या उन दफनाए हुए शवो के समान हो जिनकी कब्रे चांदी से सजी हुई है? (इसका स्वरूप किसी अविश्वासी की कब्र जैसा है, और इसका भीतरी भाग ईश्वर का क्रोध है) तूने परलोक में कैसा बुरा बोझ भेजा है; यह बोझ ईश्वर का क्रोध और प्रकोप है और तू अनन्त पीड़ा में रहेंगे। |
أما بعد :
يَا أَهْلَ الْكُوفَةِ يَا أَهْلَ الْخَتْلِ وَالْغَدْرِ وَالْخَذْلِ أَلَا فَلَا رَقَأَتِ الْعَبْرَةُ وَلَا هَدَأَتِ الزَّفْرَةُ إِنَّمَا مَثَلُكُمْ كَمَثَلِ الَّتِي نَقَضَتْ غَزْلَها مِنْ بَعْدِ قُوَّةٍ أَنْكاثاً تَتَّخِذُونَ أَيْمانَكُمْ دَخَلًا بَيْنَكُمْ هَلْ فِيكُمْ إِلَّا الصَّلَفُ وَالْعُجْبُ وَالشَّنَفُ وَالْكَذِبُ وَمَلَقُ الْإِمَاءِ وَغَمْزُ الْأَعْدَاءِ أَوْ كَمَرْعًى عَلَى دِمْنَةٍ أَوْ كَفِضَّةٍ عَلَى مَلْحُودَةٍ أَلَا بِئْسَ مَا قَدَّمَتْ لَكُمْ أَنْفُسُكُمْ أَنْ سَخِطَ اللَّهُ عَلَيْكُمْ وَفِي الْعَذَابِ أَنْتُمْ خَالِدُونَ |
अ तबकूना अख़ी?! आ जल, वल्लाहे फ़बकू फ़इन्नकुम अहरा बिल बुकाए फ़बकू कसीरन वज़्हकू क़लीलन फ़क़द अबलैयतुम बेआरेहा व मनैयतुम बेशनारेहा वलन तरहज़ूहा अबदन
व अन्नी तरहज़ूना क़ोतेला सलीलो खातेमिन नबूव्वते व मअदेनुर रेसालते व सय्यदो शबाबे अहलिल जन्नते व मलादो हरबेकुम व मआदो हिज़्बेकुम व मक़र्रो सिलमेकुम व आसी कलमेकु व मफ़ज़ओ नाजत़लतेकुम वल मरजेओ इलैहे इन्दा मुक़ातलतेकुम- व मदरतो होजजेकुम व मनारो मोहज्जतेकुम अला साआ मा कद़्दमत लकुम अंफ़ोसोकुम व साआ मा तज़रूना लेयौमे बअसेकुम फ़तअसन तअसन व नकसन नकसन लक़द ख़ाबस सअयो व तब्बतिल ऐदी व ख़सेरतिस सक़फ़तो व वूतुन बेग़ज़बिन मिनल्लाहे* व ज़ोरेबत अलैकुम अज़्ज़िल्लतो वल मसकनतो |
रो रहे हो? आह व फ़ुग़ा कर रहे हो? हां अल्लाह की क़सम, तुम्हे रोना ही है, खूब रोओ और कम हंसो। क्योकिं तूने अपराध की लज्जा से अपनी गोद को गंदा कर लिया है, जिसे तू सदैव अपनी गोद से धो नही सकता।
और तू अल्लाह के रसूल (स) ख़ातेमुल अम्बिया के बेटे, मअदेनुर रेसालत, और जन्नत के जवानो के सरदार की हत्या के अपमान को कैसे दूर कर सकता हैं? जो तुम्हारे ईमानवालों का आश्रय, तुम्हारी विपत्तियों में रोनेवाला, सत्य और हक़ीक़त पर तुम्हारे तर्क की मशअल और अकाल तथा सूखे के समय तुम्हारा सहायक था। तूने अपने कंधों पर कितना भारी और बुरा बोझ लाद रखा है, इसलिए ईश्वर की दया तुझसे कोसों दूर है। कि तेरे प्रयास व्यर्थ हैं, तेरे हाथ काट दिए गए हैं, तेरा लेन-देन घाटे का हो गया है, तूने स्वयं को ईश्वर के क्रोध में फंसा लिया है और इस प्रकार अपमान और असहायता तेरे लिए आवश्यक हो गई है। |
أتَبْكُونَ أَخِي؟! أَجَلْ، وَاللَّهِ فَابْكُوا فَإِنَّكُمْ أَحْرَى بِالْبُكَاءِ فَابْكُوا كَثِيراً وَاضْحَكُوا قَلِيلًا فَقَدْ أَبْلَيْتُمْ بِعَارِهَا وَمَنَيْتُمْ بِشَنَارِهَا وَلَنْ تَرْحَضُوهَا أَبَداً
وَأَنَّى تَرْحَضُونَ قُتِلَ سَلِيلُ خَاتَمِ النُّبُوَّةِ وَمَعْدِنِ الرِّسَالَةِ وَسَيِّدُ شَبَابِ أَهْلِ الْجَنَّةِ وَمَلَاذُ حَرْبِكُمْ وَمَعَاذُ حِزْبِكُمْ وَمَقَرُّ سِلْمِكُمْ وَآسِي كَلْمِكُمْ وَمَفْزَعُ نَازِلَتِكُمْ وَالْمَرْجِعُ إِلَيْهِ عِنْدَ مُقَاتَلَتِكُمْ- وَمَدَرَةُ حُجَجِكُمْ وَمَنَارُ مَحَجَّتِكُمْ أَلَا سَاءَ مَا قَدَّمَتْ لَكُمْ أَنْفُسُكُمْ وَسَاءَ مَا تَزِرُونَ لِيَوْمِ بَعْثِكُمُ فَتَعْساً تَعْساً وَنَكْساً نَكْساً لَقَدْ خَابَ السَّعْيُ وَتَبَّتِ الْأَيْدِي وَخَسِرَتِ الصَّفْقَةُ وَبُؤْتُمْ بِغَضَبٍ مِنَ اللَّهِ* وَضُرِبَتْ عَلَيْكُمُ الذِّلَّةُ وَالْمَسْكَنَةُ |
आ तदरूना वैलकुम अय्या कबदिन लेमुहम्दिन (स) फ़रस्तुम व अय्या अहदिन नकसतुम व अय्या करीमतिन लहू अबरज़तुम व अय्या हुरमतिन लहू हतकतुम व अय्या दमिन लहू सफकतुम
आ फ़अजिबतुम अन तुमतेरस समाओ दमन व लअज़ाबुल आख़ेरते अख़ज़ा व हुम ला युंसलून – फ़ला यस्तखेफ़न्नकोमुल महलो फ़इन्नहू अज़्ज़ा व जल्ला ला यहफ़ेज़ोहुल बेदारो वला युख्शा अलैहे फ़ौतुन्नारे कल्ला इन्ना रब्बका लना व लहुम लबिलमिरसादे |
तुम कूफ़े वालों पर धिक्कार है! क्या तुम जानते हो कि तुमने अल्लाह के रसूल के किस जिगर को पारा पार किया है? तुमने उनके परिवार की किन महिलाओ को बे पर्दा किया?! और तुमने उनसे कौन सा सम्मान छीना?! तुमने ज़मीन पर उनका कौनसा खून बहाया?! क्या तुम हैरान हो कि आसमान से खून की बारिश हुई? जबकि आख़िरत का अज़ाब इससे कहीं ज़्यादा सख्त और अपमानजनक है और उस दिन कोई तुम्हारी मदद को नहीं आएगा। इसलिए, अल्लाह तआला तुमको जो समय सीमा देता है, उससे तुम्हे खुशी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि ईश्वर अपने बंदो को दंडित करने की जल्दी में नहीं है, क्योंकि वह खून के छींटे पड़ने और बदला लेने का समय खोने से नहीं डरता है, और वास्तव में वह हमारा और उनका इंतजार कर रहा है। | أَ تَدْرُونَ وَيْلَكُمْ أَيَّ كَبِدٍ لِمُحَمَّدٍ ص فَرَثْتُمْ وَأَيَّ عَهْدٍ نَكَثْتُمْ وَأَيَّ كَرِيمَةٍ لَهُ أَبْرَزْتُمْ وَأَيَّ حُرْمَةٍ لَهُ هَتَكْتُمْ وَأَيَّ دَمٍ لَهُ سَفَكْتُمْ
أَ فَعَجِبْتُمْ أَنْ تُمْطِرَ السَّمَاءُ دَماً وَلَعَذابُ الْآخِرَةِ أَخْزى وَهُمْ لا يُنْصَرُونَ- فَلَا يَسْتَخِفَّنَّكُمُ الْمَهَلُ فَإِنَّهُ عَزَّ وَجَلَّ لَا يَحْفِزُهُ الْبِدَارُ وَلَا يُخْشَى عَلَيْهِ فَوْتُ النَّارِ كَلَّا إِنَّ رَبَّكَ لَنَا وَلَهُمْ لَبِالْمِرْصادِ |
सुम्मा अनशअत तक़ूलो (अ)
माज़ा तक़ूलूना इज़ क़ालन्नबीयो लकुम *** माज़ा सनअतुम व अंतुम आख़ेरुल उममे बेअहले बैती व औलादी व तकरेमती *** मिनहुम उसारा व मिनहुम ज़ुर्रजू बेदमिन |
उस समय हज़रत ज़ैनब (स) ने यह अशआर पढ़ेः
अनुवादः यदि पैग़म्बर (स) तुमसे पूछें कि यह कौन सा काम था जो तुमने किया, भले ही तुम आखेरुज़ जमान [पैग़म्बर] की उम्मत थे [और अन्य उम्मतों पर तुम सम्मान रखते थे], तो आप क्या उत्तर दोगे? तुमने मेरे परिवार, मेरे बच्चों और प्रियजनों के साथ क्या किया?! तूने एक समूह को बंदी बनाया और एक समूह के खून से हाथो को रंग लिया। |
ثُمَّ أَنْشَأَتْ تَقُولُ (ع):
مَا ذَا صَنَعْتُمْ وَأَنْتُمْ آخِرُ الْأُمَمِ
مِنْهُمْ أُسَارَى وَمِنْهُمْ ضُرِّجُوا بِدَمٍ |
मा काना ज़ालेका जज़ाई इज़ नसहतो लकुम अन तखलोफूनी बेसूए फ़ी ज़वी रहेमी
इन्ननी लअखशा अलैकुम अन .हुल्ला बेकुम मिस्लुल अज़ाबिल लज़ी औदा अला इरमिन |
यह मेरा प्रतिफल नहीं था (इसके बा वजूद कि मैं तुम्हारा शुभचिंतक था) कि तुम मेरे सम्बन्धियों के लिये मुझ पर इस प्रकार अत्याचार करो। मुझे डर है कि जिस सज़ा ने ऐरम (आद लोगों की एक जनजाति) के लोगों को नष्ट कर दिया वही सज़ा तुम पर भी पड़ेगी। | مَا كَانَ ذَاكَ جَزَائِي إِذْ نَصَحْتُ لَكُمْ أَنْ تَخْلُفُونِي بِسُوءٍ فِي ذَوِي رَحِمِي***
إِنِّي لَأَخْشَى عَلَيْكُمْ أَنْ يَحُلَّ بِكُمْ مِثْلُ الْعَذَابِ الَّذِي أَوْدَى عَلَى إِرَم |
सुम्मा वल्लत अन्हुम – क़ाला हिज़यमुन फ़रअयतुन्नासा हयारा क़द रद्दू ऐयदेयहुम फ़ी अफ़वाहेहिम फ़लतफ़ता एलय्या शैखुन फ़ी जानेबी यबका व कदिख ज़ल्लत लेहयतोहू बिल बुकाए वयदहू मरफ़ूअतुन एलस समाऐ व होवा यक़ूलो बेअबि व उम्मी कोहूलोहुम खैरो कोहूलिन व नेसावोहुम खैरो नेसाइन व शबाबोहुम खैरो शबाबिन व नस्लोहुम नसलुन करीमुन व फ़ज़्लोहुम फ़ज्लुन अज़ीमुन | इस जोशीले भाषण के बाद ज़ैनब कुबरा (स) ने उनसे मुँह मोड़ लिया। इस बीच, मैंने ऐसे लोगों को देखा जो स्तब्ध थे और दुःख और पछतावे से अपने दाँत पीस रहे थे। हिज़्यम कहते हैं: मैंने अपनी तरफ देखा, कि एक बूढ़ा आदमी जो आँसू बहा रहा था और उसकी दाढ़ी उसके आँसुओं से भीग गई थी। इसी हालत मे उसने आसमान की तरफ हाथ उठाकर कहाः मेरे माता-पिता आप पर कुर्बान हो जाएं! आपके बुजुर्ग सबसे अच्छे बुजुर्ग हैं, आपकी स्त्रियाँ सबसे अच्छी महिलाएँ हैं और आपके युवा सबसे अच्छे युवा हैं। आपका वंश महान और बुजुर्ग है, और आपकी कृपा और गरिमा महान और बड़ी है। | ثُمَّ وَلَّتْ عَنْهُمْ- قَالَ حِذْيَمٌ فَرَأَيْتُ النَّاسَ حَيَارَى قَدْ رَدُّوا أَيْدِيَهُمْ فِي أَفْوَاهِهِمْ فَالْتَفَتَ إِلَيَّ شَيْخٌ فِي جَانِبِي يَبْكِي وَقَدِ اخْضَلَّتْ لِحْيَتُهُ بِالْبُكَاءِ وَيَدُهُ مَرْفُوعَةٌ إِلَى السَّمَاءِ وَهُوَ يَقُولُ بِأَبِي وَأُمِّي كُهُولُهُمْ خَيْرُ كُهُولٍ وَنِسَاؤُهُمْ خَيْرُ نِسَاءٍ وَشَبَابُهُمْ خَيْرُ شَبَابٍ وَنَسْلُهُمْ نَسْلٌ كَرِيمٌ وَفَضْلُهُمْ فَضْلٌ عَظِيمٌ |
सुम्मा अनशदाः | फ़िर यह दो पक्तियां पढ़ीः | ثُمَّ أَنْشَدَ: |
कोहूलोकुम खैरुल कोहूले व नस्लोकुम *** इज़ा उद्दा नस्लुन ला यबूरो वला यख़्ज़ा | आपके बुजुर्ग सबसे अच्छे बुजुर्ग हैं और आपका वंश भी सबसे अच्छा है और सभी वंशों और पीढ़ियों में आपका वंश कभी नष्ट या बदनाम नहीं होगा। | كُهُولُكُمْ خَيْرُ الْكُهُولِ وَنَسْلُكُمْ ***إِذَا عُدَّ نَسْلٌ لَا يَبُورُ وَلَا يَخْزَى |
फ़क़ाला अली इब्न अल हुसैन या अम्मतिस कोति फ़फ़िल बाक़ी मिनल माज़ी ऐतेबारुन व अन्ते बेहम्दिल्लाहे आलेमतुन ग़ैरो मोअल्लमतिन फ़हेमतुन ग़ैरो मुफ़ह्हेमतिन इन्नल बुकाआ वल हनीना ला यरुद्दाने मन क़द अबादोहुद दहरो फ़सकतत- सुम्मा नज़ला (अ) व ज़रबा फ़ुस्तातहू व अंज़ला नेसाआहू व दख़लल फुस्ताता- | इमाम ज़ैनुल-आबेदीन (अ) अपनी फूफी (बुआ) की ओर मुड़े और कहा: "फ़ूफी, आराम से रहो, अतीत का इतिहास उन लोगों के लिए एक सबक है जो पीछे रह गए हैं।" अल्लाह का शुक्र है कि आप आलेमा ग़ैरे मोअल्लेमा और फ़हीमा ग़ैर मुफ़ह्हेमा हैं। रोने और विलाप करने से वे लोग जो चले गए वापस नहीं आएंगे।” चौथे इमाम (अ) के इन शब्दों से ज़ैनब (स) शांत हो गईं और एक शब्द भी नहीं बोलीं। | فَقَالَ عَلِيُّ بْنُ الْحُسَيْنِ يَا عَمَّةِ اسْكُتِي فَفِي الْبَاقِي مِنَ الْمَاضِي اعْتِبَارٌ وَأَنْتِ بِحَمْدِ اللَّهِ عَالِمَةٌ غَيْرُ مُعَلَّمَةٍ فَهِمَةٌ غَيْرُ مُفَهَّمَةٍ إِنَّ الْبُكَاءَ وَالْحَنِينَ لَا يَرُدَّانِ مَنْ قَدْ أَبَادَهُ الدَّهْرُ فَسَكَتَتْ- ثُمَّ نَزَلَ (ع) وَضَرَبَ فُسْطَاطَهُ وَأَنْزَلَ نِسَاءَهُ وَدَخَلَ الْفُسْطَاطَ.۔ |
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फ़ुटनोट
- ↑ हुसैनी दहआबादी, नगरिशी कोताह बे क़याम इमाम हुसैन (अ), पेज 423
- ↑ क़ज़्वीनी, ज़ैनब अल कुबरा (स), मिनल महदे ऐलल लहद, 1427 हिजरी, पेज 188
- ↑ हुसैनी, ख़ामेनई, बयानात दर दीदार जमई अज़ पीशकुसूतान जेहाद व शहादत व ख़ातेरेगौयान दफ्तर अदबयात व हुनर मुक़ावेमत
- ↑ मुहद्दिसी, फ़रहंग आशूरा, 1376 शम्सी, पेज 163
- ↑ मुहद्दिसी, फ़रहंग आशूरा, 1376 शम्सी, पेज 163
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, अलआमाली, 1413 हिजरी, पेज 321
- ↑ तबरेसी, अल ऐहतेजाज, 1403 हिजरी, भाग 2, पेज 304
- ↑ शेख तूसी, अल आमाली, 1414 हिजरी, पेज 93
- ↑ दाऊदी, व महदी रुस्तम निज़ाद, आशूरा, रीशेहा, अंग़ीज़ेहा, रुईदादहा, पयामदहा, 1386 शम्सी, पेज 554
- ↑ तबरेसी, अल ऐहतेजाज, 1403 हिजरी, भाग 2, पेज 305
- ↑ शफ़ीई माज़ंदरानी, आशूरा हमासे जावेदान, 1381 शम्सी, पेज 215
- ↑ रज़ाई, व मुहद्देसा दलाराम नेज़ाद, तहलील फ़रान्क़श अंदीशगानी खुत्बा हज़रत ज़ैनब (स) बर असास दस्तूर नक़्श गेराई हुलैदी, पेज 46; देखेः मक़ालेहायः यारे अहमदी, व ज़हरा खैरुल्लाही, मआरिफ़ दर ख़ुत्बे हज़रत ज़ैनब (स) ख़िरसंदी, व दिगरान, तहलील बलाग़ी ख़ुत्बा हज़रत ज़ैनब (स) रौशनफ़िक्र व दानिश मुहम्मदी, तहलील गुफ्तेमान अदबी खुत्बेहाए हज़रत जैनब (स) हुसैनी अजदाद, तजरेबा व तहलील अदबी खुतब, हज़रत ज़ैनब (स) दर कूफ़ा ईशानी, व मासूमा नेअमती क़ज्वीनी, तहलील खुत्बे हज़रत ज़ैनब दर क़ूफ़ा बर असास नज़रए कुनिश गुफ्तार सरल सुलैमानी जलवेहाए बलाग़त दर कलाम पयामआवर आशूरा
- ↑ तबरेसी, अल एहतेजाज, 1403 हिजरी, भाग 2, पेज 305
- ↑ शेख मुफ़ीद, अल आमाली, 1413 हिजरी, पेज 321-323
- ↑ शेख़ तूसी, अल आमाली, 1414 हिजरी, पेज 92-93
- ↑ इब्न शहर आशोब, अल मनाक़िब, 1379 हिजरी, भाग 4, पेज 115
- ↑ तबरेसी, अल ऐहतेजाज, 1403 हिजरी, भाग 2, पेज 304-305
- ↑ इब्न नेमा हिल्ली, मुसीर अल अहज़ान, 1406 हिजरी, पेज 86
- ↑ सय्यद इब्न ताऊस, अल लोहूफ़, 1348 हिजरी, पेज 146-149
- ↑ इब्न तैफ़ूर, बलाग़ात अल नेसा, अल शरीफ़ अल रज़ी, पेज 37-39
- ↑ इब्न फ़क़ीह, अल बुलदान, 1416 हिजरी, पेज 224
- ↑ इब्न हमदून, अल तज़केरा अल हमदूनीया, 1417 हिजरी, भाग 6, पेज 264-265
- ↑ इब्न साद अलअब्बी, नस्र अल दुर्र फ़िल महाज़ेरात, 1424 हिजरी, भाग 2, पेज 19-20
- ↑ ख़्वारज़मी, मक़तल अल हुसैन (अ), 1381 शम्सी, भाग 2, पेज 45-47
- ↑ इब्ने तैफ़ूर, बलाग़ात अल नेसा, अल शरीफ़ अल रज़ी, पेज 37-39; इब्ने हमदून, अल तज़केरा अल हमदूनीया, 1417 हिजरी, भाग 6, पेज 264-265; इब्न साद अलअब्बी, नस्र अल दुर्र फ़िल महाज़ेरात, 1424 हिजरी, भाग 2, पेज 19-20
- ↑ मंसूरी लारेजानी, ज़ैनब अल कुबरा (स) पयामआवर आशूरा, 1395 शम्सी, पेज 110-111
- ↑ मंसूरी लारेजानी, ज़ैनब अल कुबरा (स) पयामआवर आशूरा, 1395 शम्सी, पेज 112
- ↑ फ़रीशलर, इमाम हुसैन व ईरान, 1366 शम्सी, पेज 473-474
- ↑ रोशन फ़िक्र, व दानिश मुहम्मदी, तहलील गुफ़्तमान अदबी खुत्ब हाए हज़रत ज़ैनब (स), पेज 134, पेज 140
- ↑ हुसैनी अजदाद, तज्ज़ीया व तहलील अदबी खुत्बा हज़रत ज़ैनब (स) दर कूफ़ा, पेज 124
- ↑ ख़ानी मुक़द्दम, चराई तजल्ली क़ुरआन दर खुत्बा हाए हज़रत ज़ैनब (स) अहदाफ़ व नताइज, पेज 72-77
- ↑ ख़ानी मुक़द्दम, चराई तजल्ली क़ुरआन दर खुत्बा हाए हज़रत ज़ैनब (स) अहदाफ़ व नताइज, पेज 72-73
- ↑ ख़ानी मुक़द्दम, चराई तजल्ली क़ुरआन दर खुत्बा हाए हज़रत ज़ैनब (स) अहदाफ़ व नताइज, पेज 73-74
- ↑ ख़ानी मुक़द्दम, चराई तजल्ली क़ुरआन दर खुत्बा हाए हज़रत ज़ैनब (स) अहदाफ़ व नताइज, पेज 74
- ↑ ख़ानी मुक़द्दम, चराई तजल्ली क़ुरआन दर खुत्बा हाए हज़रत ज़ैनब (स) अहदाफ़ व नताइज, पेज 74-75
- ↑ ख़ानी मुक़द्दम, चराई तजल्ली क़ुरआन दर खुत्बा हाए हज़रत ज़ैनब (स) अहदाफ़ व नताइज, पेज 75-76
- ↑ ख़ानी मुक़द्दम, चराई तजल्ली क़ुरआन दर खुत्बा हाए हज़रत ज़ैनब (स) अहदाफ़ व नताइज, पेज 76
- ↑ नूरी हमदानी, जायगाह बानवान दर इस्लाम, 1383 शम्सी, पेज 282; हाशिमी नेजाद, दरसी के हुसैन बे इंसानहा आमूख्त, 1382 शम्सी, पेज 204
- ↑ हाशिमी नेजाद, दरसी के हुसैन बे इंसानहा आमूख्त, 1382 शम्सी, पेज 205
- ↑ मंसूरी लारेजानी, ज़ैनब कुबरा (स) पयाम आवर आशूरा, 1395 शम्सी, पेज 98
- ↑ नूरी हमदानी, जायगाह बानवान दर इस्लाम, 1383 शम्सी, पेज 282
- ↑ साफ़ी गुलपाएगानी, हुसैन (अ) शहीद आगाह, 1366 शम्सी, पेज 204
- ↑ हाशिमी नेजाद, दरसी के हुसैन बे इंसानहा आमूख्त, 1382 शम्सी, पेज 204
- ↑ मंसूरी लारेजानी, ज़ैनब कुबरा (स) पयाम आवर आशूरा, 1395 शम्सी, पेज 103
- ↑ सरदार काबुली, शरह खुत्बा ज़ैनब (स) फ़िल कूफ़ा, 1396 शम्सी, सफहा शनासनामा किताब
- ↑ करीम जहरमि, तकरार हेमासे अली (अ) दर खुत्बा हज़रत ज़ैनब (स), 1375 शम्सी, सफहा शनासनामा किताब
- ↑ अब्बास काज़मी, बाज़ार कूफ़ा मे हज़रत जैनब का खुत्बा 1398 शम्सी, सफहा शनासनामा किताब
- ↑ मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 45, पेज 163
स्रोत
- इब्न हमदून, मुहम्मद बिन हसन, अल तजकेरातुल हमदूनिया, बैरूत, दार सादिर, 1417
- इब्न साद अल आबाई, मंसूर बिन अल हुसैन, नस्रुद दुर्रे फ़ील मुहाज़ेरात, बैरूत, दार अल कुतुब अल इल्मी., 1424 हिजरी
- इब्न शहर आशोब, मुहम्मद बिन अली, मनाक़िब आले अबि तालिब (अ), क़ुम, अल्लामा, 1379 हिजरी
- इब्न तौफ़ूर, अहमद बिन अबि ताहिर, बलाग़ात अल नेसा, क़ुम, अल शरीफ़ अल रज़ी
- इब्न फ़क़ीह, अहमद बिन मुहम्मद अल बुलदान, बैरूत, आलम अल कुतुब, 1416 हिजरी
- इब्न नेमा हिल्ली, जाफ़र बिन मुहम्मद, मुसीर अल अहज़ान, क़ुम, मदरसा इमाम महदी (अ), 1406 हिजरी
- ईशानी, ताहेरा, व मासूमा नेअमती कज़्वीनी, तहलील खुत्बा हज़रत जैनब दर कूफ़ा बर असास नज़रा कुनिश गुफ्तार सरल, दर मजल्ला मुतालेआत क़ुरआन व हदीस, क्रमांक 45, जमिस्तान, 1393 शम्सी
- हुसैनी अजदाद, सय्यद इस्माईल, तज्ज़ीया व तहलील अदबी खुतब, हज़रत ज़ैनब (स) दर कूफ़ा, दर मजल्ले सफ़ीना, क्रमांक 22, बहार 1388 शम्सी
- हुसैनी खामेनई, सय्यद अली, बयानात दर दीदार जम्ई अज़ पीशकुसूतान जेहाद व शहादत व खातेरगौयान दफ्तर अदबयात व हुनर मक़ावेमत, दर पाएगाह इंटरनेटी दफ्तर हिफ़्ज़ व नश्र आसार हज़रत आयतुल्लाह सय्यद अली ख़ामेनई, प्रविष्ट की तारीख 31 शहरीवर 1384 शम्सी, वीजिट की तारीख 16 मेहेर 1403 शम्सी
- हुसैनी दहआबादी, ताहेरा, निगरिश कुताह बे क़यामे इमाम हुसैन (अ), दर जिल्द 1 मजमूआ मक़ालात हिमायश इमाम हुसैन (अ), तेहरान, मजमा जहानी अहले-बैत (अ), 1381 शम्सी
- ख़ानी मुक़द्दम, महयार, चराई तजल्ली क़ुरआन दर खुत्बाहाए हज़रत ज़ैनब (स) अहदाफ़ व नताइज, दर मजल्ले मिशकात, ज़मिस्तान, 1394 शम्सी
- ख़िरसंदी, महमूद, व दिगरान, तहलील बलाग़ी खुत्बा हज़रत ज़ैनब (स), दर मजल्ले मुतालेआत अदबी मुतून इस्लामी, क्रमांक 2, पाईजड 1391 शम्सी
- ख्वारज़मी, मुवफ़्फ़क़ बिन अहमद, मकतल अल हुसैन (अ), क़ुम, अनवार अल हुदा, 1381 शम्सी
- दाऊदी, सईद, व महदी रुस्तम निजाद, आशूरा रीशेहा, अंगीज़ेहा, रुईदादहा, पयामदहा, क़ुम, इमाम अली बिन अबि तालिब अलैहिस सलाम, जेरे नज़र आयतुल्लाहिल उज़्मा नासिर मकारिम शिराज़ी, 1388 हिजरी, क्रमांक 596
- रज़ाई, रज़ा, व मुहद्देसा देलाराम नेजाद, तहलील फ़रानकुश अंदेशगानी खुत्बा हज़रत ज़ैनब (स) बर असास दस्तूर नक़श गराई हुलैदी, दर फसल नामा लेसान मुबीन, क्रमांक 48, ताबिस्तान, 1401 शम्सी
- रोशनफिक्र, कुबरा, व दानिश मुहम्मदी, तहलील गुफ़्तेमान अदबी खुत्बा हाए हज़रत ज़ैनब (स) दर मजल्ले मुतालेआत क़ुरआन व हदीस सफ़ीना, क्रमांक 22, बहार 1388 शम्सी
- सरदार काबुली, हैदर क़ुली, शरह खुत्बा ज़ैनब (स) फ़िल कूफा, क़ुम, किताब खाना तखस्सुसी उलूम हदीस, 1396 शम्सी
- सुलैमानी, ज़हरा, जलवेहाए बलाग़त दर कमलाम पयाम आवर आशूरा, दर मजल्ला सफीना, क्रमांक 22, बहार 1388 शम्सी
- सय्यद इब्न ताऊस, अली बिन मूसा, अल लोहूफ अला कतलत तुफ़ूफ़, तरजुमाः अहमदी फहरी जनजानी, तेहरान, जहान, 1348 शम्सी
- शेअरानी, अबुल हसन, दमउस सुजूम फ़ी तरजुमा नफसुल महमूम, तेहरान, इंतेशारात इल्मीया इस्लामीया, 1374 हिजरी
- शफीई माज़ंदरानी, मुहम्मद, आशूरा हेमासे जावेदान, तेहरान, मशअर, 1381 शम्सी
- शेख तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल आमाली, क़ुम, दार अल सख़ाफ़ा, 1414 हिजरी
- शेख मुफ़ीद, मुहम्मद बिन नौमान, अल आमाली, क़ुम, कुंगरे शेख मुफ़ीद, 1413 हिजरी
- साफ़ी गुलपाएगानी, लुत्फ़ुल्लाह, हुसैन (अ) शहीद आगाह व रहबर नेजात बख्श इस्लाम, मशहद, मोअस्सेसा नशर व तबलीग़, 1366
- तबरेसी, अहमद बिन अली, अल ऐहतेजाज अला अहले अल लुजाज, मशहद, नशर मुर्तज़ा, 1403 हिजरी
- अब्बास काजमी, सय्यद तौक़ीर, बाज़ार कूफ़ा मे हज़रत ज़ैनब (स) का खुत्बा, क़ुम, मरकज़ बैनुल मिल्ली तरजुमा व नशर अल मुस्तफ़ा (स) 1398 शम्सी
- फ़रीशलिर, कूरत, इमाम हुसैन व ईरान, अनुवादः ज़बीहुल्लाह मंसूरी, तेहरान, जावेदान, तीसरा संस्करण, 1366 शम्सी
- क़ज्वीनी, मुहम्मद काज़िम, ज़ैनब अल कुबरा (स) मिनल महदे एलल लहद, बैरूत, मोअस्सेसा अल आलमी लिल मतबूआत, 1427 हिजरी
- करीमी जहरमी, अली, तकरार हेमासे अली (अ) दर खुत्बा हज़रत ज़ैनब (स), क़ुम, इंतेशारात हज़रत मासूमा (स) 1375 शम्सी
- मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार उल अनवार लेदुरर अख़बार अल आइम्मातिल अत्हार (अ), बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, 1403 हिजरी
- मुहद्देसी, जवाद, फ़रहंग आशूरा, क़ुम, नशर मअरूफ़, 1376 शम्सी
- मंसूरी लारेजानी, इस्माईल, ज़ैनब कुबरा (स) पयाम आवर आशूरा, तेहारन, शिरकत चाप व नशर बैनुल मिलल, 1395 शम्सी
- नूरी हमदानी, हुसैन, जाइगाह बानवान दर इस्लाम, क़ुम, महदी मौऊद (अज), 1383 शम्सी
- यारे अहमदी, आजर व ज़हरा खैरुल्लाही, मआरिफ़ क़ुरआनी दर ख़ुत्बा हज़रत ज़ैनब (स), दर मजल्ले बय्येनात, क्रमांक 105 व 106 बहार व ताबिस्तान, 1399 शम्सी