कर्बला के क़ैदी

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कर्बला के क़ैदी (अरबी:سبايا كربلاء) कर्बला की घटना से बचे लोग जैसे इमाम सज्जाद (अ), शियों के चौथे इमाम और हज़रत ज़ैनब (अ) जिन्हें उमर बिन साद की सेना ने क़ैदी बना लिया था। उमर बिन साद के आदेश पर 11 मुहर्रम की रात को क़ैदियों को कर्बला में रखा गया और 11वीं तारीख़ की दोपहर में उन्हें उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद के पास कूफ़ा ले जाया गया। इब्ने ज़ियाद ने बंदियों को शिम्र और तारिक़ बिन मुहफ़्फ़िज़ सहित एक समूह के साथ, बिना पर्दे और आवरण के बिना वाहक (मेहमिलों) पर सीरिया में यज़ीद बिन मुआविया के दरबार में भेजा। उसने इमाम सज्जाद (अ) जैसे कुछ लोगों के हाथों और पैरों में बेड़ियाँ डाल दीं। इमाम सज्जाद (अ) और हज़रत ज़ैनब (अ) ने अपनी क़ैद के दौरान अपने शब्दों से कुछ लोगों का मन बदल दिया और उन्होंने पछतावा किया और एक रिवायत के अनुसार यज़ीद को अपने अपराधों और कार्यों पर पछतावा हुआ।

शेख़ मुफ़ीद, शेख़ तूसी और मुहद्दिस नूरी जैसे विद्वानों की राय है कि कर्बला के क़ैदी अपनी मुक्ति के बाद कर्बला नहीं बल्कि मदीना लौट आए। लेकिन लोहूफ़ में सय्यद इब्ने ताऊस के अनुसार, बंदियों का कारवां कर्बला लौट आया था।

क़ैद की शुरुआत

आशूरा घटना के बाद, उमर बिन साद की सेना के बचे लोगों ने मुहर्रम की 11वीं तारीख़ को अपने मृतकों को दफ़्नाया और इमाम हुसैन (अ) के अहले बैत और कर्बला के शहीदों के बचे लोगों को कूफ़ा ले गए।[१]

उमर बिन साद के अधिकारियों ने अहले बैत की महिलाओं को शहीदों के शवों के पास से गुज़ारा। इमाम हुसैन (अ) के परिवार की महिलाएं कराह रही थीं और अपने चेहरे पर हाथ मार रही थीं। जैसा कि क़ुर्रा बिन क़ैस द्वारा वर्णित है, हज़रत ज़ैनब (स) जब अपने भाई इमाम हुसैन (स) के शव के पास से गुज़र रही थीं, तो उन्होंने बड़े दुःख के शब्द कहे जिससे दोस्त और दुश्मन रोने लगे।[२]

कैदियों की संख्या एवं नाम

यह भी देखें: आशूरा की घटना (सांख्यिकी की दृष्टि से)

कर्बला के कैदियों और इमाम हुसैन (अ) के साथियों में से बचे लोगों की संख्या और नामों के बारे में इतिहासकारों की रिपोर्टें अलग-अलग हैं। पुरुष बंदियों की संख्या चार, पाँच, दस और बारह बतायी गयी है। महिला बंदियों की संख्या भी चार, छह और बीस बताई गई है।[३] कुछ ने बंदियों की संख्या 25 तक बताई है।[४] इसलिए कर्बला के बंदियों की संख्या के बारे में कोई निश्चित राय देना संभव नहीं है।[५]

इमाम हुसैन (स) के शव के पास से गुज़रते समय हज़रत ज़ैनब (स) के शब्द:

«یا محمداه، یا محمداه! صلی علیک ملائکة السماء، هذا الحسین بالعراء، مرمل بالدماء، مقطع الأعضاء، یا محمداه! و بناتک سبایا، و ذریتک مقتله، تسفی علیها الصبا قال: فابکت والله کل عدو و صدیق» या मोहम्मदाह, या मोहम्मदाह, सल्ला अलैका मलाएकतुस समा, हाज़ल हुसैन बिल अरा, मुरम्मलुन बिद्देमा, मुक़त्ता उल आज़ाए, या मोहम्मदाह, व बनातोका सबाया, व ज़ुर्रियतोका मक़तलातन, तस्फ़ी अलैहा अस्सबा: फ़अब्कत वल्लाहे कुल्ला अदूविन व सदीक़

अनुवाद:ऐ मुहम्मद, ऐ मुहम्मद, आसमान के फरिश्ते आप पर सलवात भेजते हैं, यह हुसैन अपने कटे हुए अंगों के खून से लथपथ मैदान में पडे हुए हैं! हे मुहम्मद, आपकी बेटियाँ बंदी हैं, आपके वंशज तब मारे जाते हैं जब उन पर हवा चलती है। वर्णनकर्ता कहता है, भगवान की क़सम, दोस्त और दुश्मन रो रहे थे।[६]

पुरालेख दिनांक

स्रोतों में उल्लिखित कुछ पुरुष बंदियों के नाम इस प्रकार हैं: इमाम सज्जाद (अ), इमाम बाक़िर (अ), मुहम्मद और उमर इमाम हुसैन (अ) के दो बेटे, इमाम हसन (अ) के पुत्र ज़ैद और पोते मुहम्मद हसन (अ)[७] हसन मुसन्ना, जो युद्ध में घायल होने के कारण बेहोश थे,[८] क़ासिम बिन अब्दुल्लाह बिन जाफ़र, क़ासिम बिन मुहम्मद बिन जाफ़र, मुहम्मद बिन अक़ील।[९] तारीख़े क़ियाम वा मक़तल जामेअ सय्यदुश शोहदा पुस्तक में, 17 लोगों के नामों का उल्लेख कर्बला के कैदियों और बचे लोगों के रूप में किया गया है।[१०]

कर्बला में महिला बंदियों के नाम भी इस प्रकार हैं: इमाम अली (अ) की बेटियों में से हज़रत ज़ैनब, फ़ातिमा और उम्मे कुलसूम[११] और रुकय्या,[१२] रबाब, इमाम हुसैन (अ) की पत्नी[१३] और फ़ातिमा इमाम हसन (अ) की बेटी[१४] इमाम हुसैन (अ) की चार बेटियों का जिनका नाम सकीना, फ़ातिमा, रुक़य्या और ज़ैनब है।[१५]

कर्बला में जीवित बचे ग़ैर-बनी हाशिम के नाम इस प्रकार हैं: मुरक़्का बिन सोमामा असदी, सव्वार बिन उमैर जाबरी, अम्र बिन अब्दुल्लाह जुंदोई, उक़्बा बिन समआन रबाब का ग़ुलाम, ज़ह्हाक़ बिन अब्दुल्लाह मशरिक़ी, मुस्लिम बिन रबाह और अब्दुर्रहमान बिन अब्दुर्रब्बेह अंसारी का ग़ुलाम।[१६] ग़ैर-बनी हाशिम बचे लोगों में, सव्वार बिन उमैर, उक़्बा, मुस्लिम बिन रब्बाह और अब्दुर्रहमान बिन अब्दुर्रब्बेह का ग़ुलाम कर्बला के कैदियों में से हैं।[१७]

बंदियों का मार्ग

कूफ़ा में प्रवेश

इब्ने अबी अल-हदीद ने नहजुल बलाग़ा के अपने विवरण में जो लिखा है, उसके अनुसार, कर्बला के बंदियों को बिना सुसज्जित रथों पर कूफ़ा ले जाया गया, और लोग उन्हें देखते रहे, जबकि कूफ़ा की महिलाएँ बंदियों को देखकर रो रही थीं।[१८]

ऐसा कहा गया है कि कूफ़ा में बंदियों के आगमन के समय के बारे में प्राचीन स्रोतों में कोई स्पष्ट रिपोर्ट नहीं है;[१९] लेकिन शेख़ मुफ़ीद के एक बयान के अनुसार,[२०] 12 मुहर्रम को, कर्बला के बंदियों के कूफ़ा में आगमन की तिथि माना जा सकता है।[२१]

उमर बिन साद के अधिकारी, बंदियों को कूफ़ा की सड़कों से गुज़ारने के बाद, उन्हें उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद के दरबार में ले आए। हज़रत ज़ैनब (स) और उबैदुल्लाह के बीच तीखी बातचीत की सूचना मिलती है।[२२]

प्रसिद्ध वाक्य “ما رَأیْتُ اِلّا جَمیلا; मैंने ख़ूबसूरती के अलावा कुछ नहीं देखा" हज़रत ज़ैनब (स) का कथन इसी सभा से संबंधित है। इसके अलावा, उबैदुल्लाह ने इमाम सज्जाद (अ) को मारने का आदेश दिया, लेकिन हज़रत ज़ैनब (अ) के विरोध और इमाम सज्जाद (अ) के कठोर शब्दों के बाद, इब्ने ज़ियाद ने उन्हें मारने से परहेज किया।[२३]

शाम का मार्ग

कर्बला के कैदियों के कारवां के मार्ग का मानचित्र

उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद ने कर्बला के कैदियों के साथ शिम्र और तारिक़ बिन मुहफ़्फ़िज़ सहित एक समूह को सीरिया भेजा।[२४] कुछ रिपोर्टों के अनुसार, ज़हर बिन क़ैस भी उनके साथ था।[२५] कूफ़ा से सीरिया तक कैदियों का सटीक मार्ग ज्ञात नहीं है। कुछ लोगों की राय है कि इमाम हुसैन (अ) से संबंधित स्थानों को ध्यान में रखते हुए, कर्बला के कैदियों के मार्ग को निर्धारित करना संभव है; उनमें से, दमिश्क़ में मक़ामे रास उल हुसैन और इमाम ज़ैन अल-आबेदीन,[२६] हिम्स का मक़ाम,[२७] हमा,[२८] बालाबक,[२९] हजर[३०] और तोरह का मक़ाम।[३१]

दानिशनामे इमाम हुसैन (अ) में कहा गया है कि उस समय कूफ़ा और शाम के बीच तीन मुख्य मार्ग थे (बादिया मार्ग, फ़ोरात के साथ वाला मार्ग और दजला के साथ वाला मार्ग), जिनमें से प्रत्येक में कई सहायक मार्ग थे।[३२] इस विश्वकोश (दानिशनामे) के लेखकों का मानना है कि स्पष्ट एवं निश्चित कारणों के अभाव के कारण इस बारे में कोई निश्चित राय बनाना संभव नहीं है; लेकिन संकेतों और साक्ष्यों की जांच से, यह सबसे अधिक संभावना है कि कूफ़ा से शाम तक बंदियों का मार्ग बादिया मार्ग से था।[३३]

कुछ रिपोर्टों के अनुसार, जैसे कि तारीख़े तबरी, शेख़ मुफ़ीद का और तारीख़े दमिश्क़ का, पहले इमाम हुसैन (अ) का सिर और शहीदों के सिर शाम भेजे गए, और फिर क़ैदियों को भेजा गया; लेकिन अन्य रिपोर्टों के अनुसार, शहीदों के सिर बंदियों के साथ शाम भेज दिए गए थे।[३४]

अधिकारियों का व्यवहार

इब्ने आसम और ख्वारज़मी के कथन के अनुसार, उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद के एजेंट कर्बला के कैदियों को कूफ़ा से शाम तक, बिना सुसज्जित सवारियों पर, एक शहर से दूसरे शहर और एक स्थान से दूसरे स्थान ले गए, ठीक उसी तरह जैसे (काफिर) तुर्क और दयालम को क़ैदी कर के ले जाते थे।[३५] शेख़ मुफ़ीद ने एक हदीस का उल्लेख किया है जिसके आधार पर इमाम सज्जाद (अ) को बंदियों के बीच बेड़ियों और ज़ंजीरों के साथ देखा गया था।[३६]

इमाम सज्जाद (अ) से मंसूब हदीसों में, इब्ने ज़ियाद के एजेंटों के व्यवहार को इस प्रकार वर्णित किया गया है: उन्होंने अली इब्ने हुसैन (अ) को एक पतले और लंगड़े ऊँट पर बिठाया, जिसका उपकरण लकड़ी का था और बिना गद्दे के था; जबकि इमाम हुसैन (अ) का सिर एक भाले पर था, महिलाएं उनके सिर के पीछे थीं और भाले उनके चारों ओर थे। यदि उनमें से किसी की आंख से आंसू गिर जाता, तो वे उस पर तब तक भाले से वार करते, जब तक कि उन्होंने शाम में प्रवेश नहीं कर लिया।[३७]

शाम में कैदियों की उपस्थिति

शाम में बंदियों के आगमन की घटनाओं, उनके साथ कैसा व्यवहार किया गया, कुछ बंदियों के निवास स्थान और उपदेशों के बारे में ऐतिहासिक स्रोतों में रिपोर्टें मिलती हैं। इन रिपोर्टों के अनुसार, शहीदों के सिर सफ़र महीने के पहले दिन शाम में आए थे।[३८] इस दिन, बंदियों को "तूमा" या "साआत" द्वार के माध्यम से शहर में लाया गया था, और सहल बिन साद के कथन के अनुसार, यज़ीद के आदेश से शहर को अनोखे ढंग से सजाया गया था।[३९] और पाँच लाख लोग नये कपड़े पहनकर और ढोल, नरसिंगे और नगाड़े बजाते हुए बन्धुओं को देखने आये थे।[४०] कुछ स्रोतों के अनुसार, उन्होंने शहर को बंद करने के और सजाने के लिए बंदियों को शहर के बाहर और द्वार के पीछे तीन दिनों तक रोके रखा था।[४१]

बंदियों के शहर में प्रवेश करने के बाद, उन्हें मस्जिदे जामेअ उमवी के प्रवेश द्वार पर एक मंच पर रखा गया।[४२] आज इस मस्जिद में, मस्जिद के मेहराब और मिम्बर के सामने, पत्थर से बनी और लकड़ी की बाड़ से बनी एक जगह है, जिसे कर्बला के बंदियों को रोकने की जगह के रूप में जाना जाता है।[४३]

शाम की उमवी मस्जिद का वह स्थान जहां कर्बला के कैदियों को खड़ा किया गया था।

कुछ स्रोतों के अनुसार, शाम में इमाम हुसैन (अ) के अहले बैत की उपस्थिति दो दिनों तक रही,[४४] और एक छत रहित खंडहर में, जिसे शाम के खंडहर के रूप में जाना जाता है।[४५] शेख़ मुफ़ीद का मानना है कि वह स्थान जहां कैदियों को रखा गया था वह यज़ीद के महल के पास था।[४६] शाम में बंदियों के रहने की अवधि के बारे में प्रसिद्ध कहावत[४७] को तीन दिन के रूप में जाना जाता है, लेकिन सात दिन[४८] और एक महीने का भी उद्धरण दिया गया है।[४९] शाम में कर्बला के बंदियों के बारे में कुछ ऐतिहासिक रिपोर्ट इस प्रकार हैं:

बंदियों का यज़ीद के महल में प्रवेश: कर्बला के बंदियों के शाम पहुंचने के बाद, ज़हर बिन क़ैस या शिम्र बिन ज़िल जौशन[५०] ने कर्बला की घटना का विवरण यज़ीद को बताया।[५१] रिपोर्ट सुनने के बाद, यज़ीद ने महल को सजाने का आदेश दिया कि शाम के बुज़ुर्गों को आमंत्रित करें और बंदियों को महल में लाएं।[५२] रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि बंदियों को यज़ीद की सभा में ऐसी अवस्था में लाया गया था कि उन्के हाथ एक साथ रस्सी से बांधे गए थे।[५३] इस समय, इमाम हुसैन (अ) की बेटी फ़ातिमा ने कहा: हे यज़ीद! क्या ईश्वर के रसूल (स) की बेटियों को बंदी बनाना उचित है? इस वक्त वहां मौजूद लोग और यज़ीद के परिवार के लोग रो पड़े।[५४]

बंदियों की मौजूदगी में इमाम (अ) के पवित्र सिर के साथ यज़ीद का सलूक: बंदियों की मौजूदगी में यज़ीद ने इमाम हुसैन (अ) के सिर को एक सोने की थाली में रखा[५५] और उस पर छड़ी से वार कर रहा था।[५६] इब्ने असीर के अनुसार, जब इमाम हुसैन (अ) की बेटियों सकीना और फ़ातिमा ने यह देखा, तो उन्होंने इतना चिल्लाया कि यज़ीद की पत्नियां और मुआविया बिन अबू सुफियान की बेटियां रोने लगीं।[५७] शेख़ सदूक़ द्वारा वर्णित इमाम रज़ा (अ) की एक हदीस के अनुसार, यज़ीद ने इमाम हुसैन (अ) का सिर एक तशत (बर्तन) में रखा और उस पर भोजन की मेज़ रख दी। फिर उसने अपने दोस्तों के साथ मज़े से खाना खाया और उसके बाद उसने शतरंज की मेज़ को उस तशत (बर्तन) पर रख दिया जिसमें इमाम (अ) का पवित्र सिर था और अपने दोस्तों के साथ शतरंज खेलने लगा। ऐसा कहा जाता है कि जब वह खेल में जीत रहा होता था, तो वह एक कप जौ का पानी लेता था और उसे पी लेता था और बचा हुआ पानी उस बर्तन के बगल वाली ज़मीन पर डाल देता था जिसमें इमाम (अ) का कटा हुआ सिर रखा हुआ था।[५८]

सकीना (स) ने यज़ीद के बारे में कहाः खुदा की कसम! मैंने यज़ीद से अधिक कठोर हृदय वाला, अविश्वासी और दृढ़निश्चयी व्यक्ति कभी नहीं देखा, जिसने मेरे पिता के सिर को उसके द्वारा स्थापित सभा में देखा और कविता (शेर) पढ़ा।[५९]

उपस्थित लोगों का विरोध: उपस्थित लोगों में से कुछ ने सभा में यज़ीद के व्यवहार का विरोध किया। इनमें मरवान बिन हेकम का भाई यह्या बिन हेकम भी शामिल था, जिसके सीने पर यज़ीद ने मुक्का मारा था।[६०] अबू बरज़ा असलमी ने भी विरोध किया और यज़ीद के आदेश से उसे सभा से निकाल दिया गया।[६१]

बंदियों का उपदेश

कर्बला के कैदियों के कूफ़ा पहुंचने के बाद, इमाम सज्जाद (अ)[६२] और हज़रत ज़ैनब (अ) ने लोगों से बात की और ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, उन्होंने आशूरा की घटना में इमाम हुसैन (अ) की सहायता करने में विफल रहने के लिए कूफ़ियों को दोषी ठहराया।[६३] सय्यद जाफ़र शहीदी, एक समकालीन इतिहासकार, ने सरकारी अधिकारियों की सख्ती और उनसे कूफ़ियों के डर के आधार पर, कूफ़ा में ऐसे शब्दों और उपदेशों को स्वीकार करना मुश्किल माना है।[६४] कुछ उपदेशों का श्रेय इमाम हुसैन (अ) की बेटी फ़ातिमा सुग़रा[६५] और इमाम अली (अ) की बेटी उम्मे कुलसूम को भी दिया गया है।[६६]

इमाम सज्जाद (अ) और हज़रत ज़ैनब (स) ने शाम में भी उपदेश दिया था। इन उपदेशों की सामग्री यज़ीद द्वारा इमाम हुसैन (अ) के अहले बैत के उत्पीड़न और उन्हें शहरों शहरों में फिराना है,[६७] और इसी तरह पैग़म्बर (स) के अहले बैत (अ) और इमाम अली (अ) के गुणों का भी उल्लेख किया गया है।[६८] और यह शाम में इमाम सज्जाद (अ) के उपदेश और हज़रत ज़ैनब के उपदेश नाम से प्रसिद्ध है।[६९]

शाम से वापसी

अधिक जानकारी के लिए, यह भी देखें: अरबईने हुसैनी

शाम से मदीना या कर्बला की ओर कर्बला के बंदियों की वापसी और कर्बला में उनकी वापसी के सटीक समय (चाहे वह पहली अरबईन थी या दूसरी अरबईन या कोई अन्य समय) की धारणा पर मतभेद है।[७०] शेख़ मुफ़ीद,[७१] शेख़ तूसी,[७२] और कफ़अमी[७३] ने निर्दिष्ट किया है कि अहले बैत (अ) का कारवां शाम से लौटने के बाद कर्बला नहीं, बल्कि मदीना गया था। मुहद्दिस नूरी,[७४] शेख़ अब्बास क़ुमी[७५] और मुर्तज़ा मुतह्हरी[७६] ने भी पहले अरबईन में बंदियों की कर्बला में वापसी का विरोध किया है।

क़ुम शहर में कर्बला कैदियों के कारवां के प्रतीकात्मक आंदोलन का चित्र

सय्यद इब्ने ताऊस ने अपनी पुस्तक अल-इक़बाल में, अरबईन के दिन कर्बला और मदीना में बंदियों की वापसी को असंभव माना है; क्योंकि कर्बला या मदीना लौटने में उन्हें चालीस दिन से अधिक का समय लग गया है। उनकी राय में, हालाँकि बंदी कर्बला गए होंगे, लेकिन वह अरबईन का दिन नहीं था।[७७] हालाँकि, सय्यद इब्ने ताऊस ने लोहूफ़ में वर्णन किया है कि जब कर्बला के बंदी शाम से लौटते हुए इराक़ पहुंचे, तो उन्होंने मार्गदर्शकों से कहा, "हमें कर्बला के रास्ते से ले चलो" इसलिए, जब वे हत्या स्थल पर पहुंचे, तो उन्होंने जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी और बनी हाशिम के कुछ लोगों को देखा, और आँसू और दुख के साथ उन्होंने एक शोक सभा की और कुछ दिनों के बाद मदीना लौट आए।[७८] सय्यद बिन ताऊस ने कर्बला में उनके आगमन की तारीख़ का उल्लेख नहीं किया है। सय्यद मोहम्मद अली क़ाज़ी तबातबाई (1293-1358 शम्सी) ने भी किताब तहक़ीक़ दरबारे अव्वलीन अरबईने हज़रत सय्यदुश शोहदा (अ) में कर्बला में बंदियों की वापसी को साबित किया है[७९] किताब हमास ए हुसैनी में मुतह्हरी के अनुसार, कर्बला में बंदियों की वापसी का उल्लेख केवल सय्यद इब्ने ताऊस के लोहूफ़ में किया गया है, किसी अन्य पुस्तक में इसका उल्लेख नहीं है।[८०]

सय्यद इब्ने ताऊस की रिवायत के अनुसार, जब अहले बैत (अ) का कारवां मदीना के पास पहुंचा और उन्होंने शहर के बाहर अपने तंबू गाड़े, तो बशीर बिन जज़लम इमाम सज्जाद (अ) के आदेश से मदीना चले गए और मस्जिद ए नबवी के पास रूक कर उन्होंने आंसुओं के साथ कुछ अशआर पढ़ें और लोगों को इमाम हुसैन (अ) की शहादत के बारे में बताया और मदीना में इमाम सज्जाद (अ) और इमाम हुसैन (अ) के परिवार के आगमन की घोषणा की।[८१] सय्यद इब्ने ताऊस ने उस दिन को पैग़म्बर (स) की मृत्यु के बाद मुसलमानों के लिए सबसे कड़वा दिन माना और बताया कि मदीना की सभी महिलाएं अपने घरों से बाहर निकल गईं और चिल्लाने लगीं, और पुरुषों और महिलाओं को उस दिन की तरह रोते हुए कभी नहीं देखा गया था।[८२]

दानिशनामे इमाम हुसैन (अ) के लेखकों के अनुसार, इमाम हुसैन (अ) के परिवार का आंदोलन मदीना से शुरू हुआ और मदीना में समाप्त हुआ, और इस दौरान उन्होंने जो न्यूनतम दूरी तय की (यह मानते हुए कि उन्होंने सबसे छोटा रास्ता अपनाया और कर्बला नहीं लौटे) लगभग 4100 किमी थी: मदीना से मक्का तक 431 किमी, मक्का से कर्बला तक 1447 किमी, कर्बला से कूफ़ा तक 70 किमी, 932 कूफ़ा से दमिश्क तक किमी और दमिश्क से मदीना तक 1229 किलोमीटर।[८३]

मोनोग्राफ़ी

  • असीरान व जानबाज़ाने कर्बला, मोहम्मद मुज़फ़्फ़री और सईद जमशेदी द्वारा लिखित, क़ुम, फ़राज़ अंदिशेह प्रकाशन, 1383 शम्सी।

सम्बंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. तबरी, तारीख़ अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 455-456।
  2. मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 114; तबरी, तारीख़ अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 456।
  3. मोहम्मदी रय शहरी, दानिशनामे इमाम हुसैन (अ), 1388 शम्सी, खंड 8, पृष्ठ 204।
  4. मुहद्दिस, फ़रहंग आशूरा, 1417 हिजरी, पृष्ठ 49।
  5. मोहम्मदी रय शहरी, दानिशनामे इमाम हुसैन (अ), 1388 शम्सी, खंड 8, पृष्ठ 204।
  6. अबू मख़्नफ़, वक़आ अल-तफ़, 1417 हिजरी, पृष्ठ 259; तबरी, तारीख़ अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 456।
  7. क़ाज़ी नोमान, शरह अल-अख़बार, नश्र अल-इस्लामी इंस्टीट्यूट, खंड 3, पृष्ठ 198-199; अबुल फ़रज इस्फ़हानी, मक़ातिल अल-तालेबीन, 1385 हिजरी, पृष्ठ 79; इब्ने साद, तरजुमा अल-हुसैन व मक्तलोहू, 1408 हिजरी, पृष्ठ 187।
  8. मोहम्मदी रय शहरी, दानिशनामे इमाम हुसैन (अ), 1388 शम्सी, खंड 8, पृष्ठ 205।
  9. मोहम्मदी रय शहरी, दानिशनामे इमाम हुसैन (अ), 1388 शम्सी, खंड 8, पृष्ठ 206।
  10. देखें: इतिहासकारों का एक समूह, तारीख़े कयाम व मक़तल जामेअ सय्यद अल-शोहदा, 1391 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 497 और 498।
  11. बिज़ून, मौसूआ कर्बला, बैरूत, खंड 1, पृष्ठ 528।
  12. महल्लाती, रियाहैन अल-शरिया, 1373 शम्सी, खंड 4, पृष्ठ 255।
  13. मोहम्मदी रय शहरी, दानिशनामे इमाम हुसैन (अ), 1388 शम्सी, खंड 8, पृष्ठ 283।
  14. इब्ने असकर, तारीख़े मदीना दमिश्क, 1415 हिजरी, खंड 70, पृष्ठ 261।
  15. इब्ने शद्दाद, अल-आलाक़ अल-ख़तीरा, 2006 ई, पृष्ठ 48-50।
  16. मोहम्मदी रय शहरी, दानिशनामे इमाम हुसैन (अ), 1388 शम्सी, खंड 8, पृष्ठ 214-217।
  17. इतिहासकारों का एक समूह, तारीख़े कयाम व मक़तल जामेअ सय्यद अल-शोहदा, 1391 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 498; मोहम्मदी रय शहरी, दानिशनामे इमाम हुसैन (अ), 1388 शम्सी, खंड 8, पृष्ठ 214-217।
  18. इब्ने अबी अल-हदीद, शरहे नहजुल बलाग़ा, 1404 हिजरी, खंड 15, पृष्ठ 236।
  19. इतिहासकारों का एक समूह, तारीख़े कयाम व मक़तल जामेअ सय्यद अल-शोहदा, 1391 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 39।
  20. शेख़ मुफ़ीद, इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 114।
  21. इतिहासकारों का एक समूह, तारीख़े कयाम व मक़तल जामेअ सय्यद अल-शोहदा, 1391 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 39।
  22. देखें: मुफ़ीद, इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृ. 115-116; तबरी, तारीख़, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 457।
  23. इब्ने आसम कूफी, अल-फुतूह, 1411 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 123, ख्वारज़मी, मक़तल अल-हुसैन, 1367 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 43।
  24. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1417 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 416।
  25. दीनवरी, अख़बार अल-तेवाल, 1421 हिजरी, पृष्ठ 384-385।
  26. इब्ने असाकर, तारीख़े मदीना दमिश्क, 1421 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 304; नईमी, अल-दरासा फ़ी तारीख़ मदारिस, 1367 हिजरी, स्थानों की सूची।
  27. इब्ने शहर आशोब, मनाकिब, 1379 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 82।
  28. इब्ने शहर आशोब, मनाकिब, 1379 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 82।
  29. मुहाजिर, कारवाने ग़म, 1390 शम्सी, पृष्ठ 36-38।
  30. इब्ने शद्दाद, अल-आलाक़ अल-ख़तिरा, 2006 ई, पृष्ठ 178।
  31. मुहाजिर, कारवाने ग़म, 1390 शम्सी, पृष्ठ 30।
  32. मोहम्मदी रय शहरी, दानिशनामे इमाम हुसैन (अ), 1388 शम्सी, खंड 8, पृष्ठ 226-228।
  33. मोहम्मदी रय शहरी, दानिशनामे इमाम हुसैन (अ), 1388 शम्सी, खंड 8, पृष्ठ 234।
  34. मोहम्मदी रय शहरी, दानिशनामे इमाम हुसैन (अ), 1388 शम्सी, खंड 8, पृष्ठ 225।
  35. इब्ने आसम, किताब अल-फुतूह, 1411 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 127; ख्वारज़मी, मक़तल अल-हुसैन, 1367 हिजरी, खंड 2, पृ. 55-56।
  36. शेख़ मुफ़ीद, अमाली, 1403 हिजरी, पृष्ठ 321।
  37. सय्यद बिन ताऊस, अल-इक़बाल, 1376 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 89।
  38. अबू रेहान बिरूनी, आसार अल-बाकिया, 1386 शम्सी, पृष्ठ 527।
  39. शेख़ सदूक़, अमाली, 1417 हिजरी, मजलिस 31, पृष्ठ 230।
  40. शाअरानी, दमअ अल-सजूम, 1374 हिजरी, पृष्ठ 242।
  41. क़ुमी, नफ़्स अल-महमूम, अल-मकतब अल-हैदरिया, पृष्ठ 394।
  42. इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 129-130।
  43. "उमवी मस्जिद में कर्बला के कैदी की उपस्थिति" अंतर्राष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी।
  44. सफ़्फ़ार, बसाएर अल-दराजात, 1404 हिजरी, पृष्ठ 339।
  45. शेख़ सदूक़, अमाली, 1417 हिजरी, मजलिस 31, पृष्ठ 231, हदीस 4।
  46. शेख़ मुफ़ीद, इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 122।
  47. तबरी, तारीख़ अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 462; ख़्वारज़मी, मक़तल, 1367 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 74। इब्ने कसीर, अल-बेदाया व अल-नेहाया, 1398 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 195; इब्ने साद, तरजुमा अल-हुसैन व मक्तलोहू, 1416 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 83।
  48. तबरी, कामिल बहाई, 1334 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 302।
  49. सय्यद इब्ने ताऊस, अल-इक़बाल, 1376 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 101।
  50. क़ुमी, नफ़्स अल-महमूम, अल-मकतब अल-हैदरिया, पृष्ठ 396।
  51. तबरी, तारीख़ अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 460।
  52. तबरी, तारीख़ अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 461।
  53. इब्ने ताऊस, अल-मलहूफ़, 1417 हिजरी, पृष्ठ 213।
  54. इब्ने नमा, मुसीर अल-अहज़ान, 1406 हिजरी, पृष्ठ 99।
  55. ख़्वारज़मी, मक़तल, 1367 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 64।
  56. याकूबी, तारीख़, दार सादिर, खंड 2, पृष्ठ 64।
  57. इब्ने असीर, अल-कामिल, 1405 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 577।
  58. सदूक़, उयून अख़बार अल-रज़ा, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 25, पृष्ठ 50।
  59. क़ुमी, नफ़्स अल-महमूम अल-मकतबा अल-हैदरिया, पृष्ठ 396।
  60. तबरी, तारीख़ अल-उम्म व अल-मुलूक, 1387 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 465।
  61. बलाज़री, अंसाब अल-अशराफ़, 1417 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 416।
  62. इब्ने नमा, मुसीर अल-अहज़ान, 1406 हिजरी, पृष्ठ 89-90।
  63. इब्ने तैफूर, बलाग़ात अल-निसा, 1378 शम्सी, पृष्ठ 26।
  64. शहीदी, ज़िन्देगानी अली इब्ने अल हुसैन (अ), 1385 शम्सी, पृष्ठ 57।
  65. तबरसी, एहतेजाज, 1416 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 108-140।
  66. इब्ने ताऊस, अल-मलहूफ़, 1417 हिजरी, पृष्ठ 198।
  67. इब्ने ताऊस, अल-मलहूफ़, 1417 हिजरी, पृष्ठ 213-218।
  68. रब्बानी गुलपायेगानी, "इफ़शागरी इमाम सज्जाद दर क़यामे कर्बला", पृष्ठ 119।
  69. इब्ने नमा, मुसीर अल-अहज़ान, 1406 हिजरी, पृष्ठ 89-90; इब्ने ताइफूर, बलाग़ात अल-निसा, 1378 शम्सी, पृष्ठ 26।
  70. देखें मोहम्मदी रय शहरी, दानिशनामे इमाम होसैन (अ), 1388 शम्सी, खंड 8, पृष्ठ 393।
  71. शेख़ मुफ़ीद, मसार अल-शिया, 1413 हिजरी, पृष्ठ 46।
  72. तूसी, मिस्बाह अल-मुतहज्जद, 1411 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 787।
  73. कफ़अमी, अल-मिसबाह लिलकफ़अमी, 1405 हिजरी, पृष्ठ 510।
  74. मुहद्दिस नूरी, लूलू व मरजान, 1420 हिजरी, पृष्ठ 208-209।
  75. क़ुमी, मुन्तहा अल-आमाल, 1372 शम्सी, पृष्ठ 524-525।
  76. मुतह्हरी, हमास ए हुसैनी, सद्रा, खंड 1, पृष्ठ 71।
  77. सय्यद इब्ने ताऊस, अल-इक़बाल, 1376 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 100 और 101।
  78. सय्यद इब्ने ताऊस, लोहूफ़, 1415 हिजरी, पृष्ठ 225 और 226।
  79. क़ाज़ी तबातबाई, तहक़ीक़ दरबारे अव्वल अरबईन, 1383 शम्सी, पृष्ठ 608।
  80. मुतह्हरी, हमास ए हुसैनी, सद्रा, खंड 1, पृष्ठ 71।
  81. सय्यद इब्ने ताऊस, लोहूफ, 1417 हिजरी, पृष्ठ 226-227।
  82. सय्यद इब्ने ताऊस, लोहूफ़, 1415 हिजरी, पृष्ठ 227।
  83. मोहम्मदी रय शहरी, दानिशनामे इमाम हुसैन (अ), 1388 शम्सी, खंड 8, पृष्ठ 235।

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