शुरैह क़ाज़ी का फ़तवा
शुरैह क़ाज़ी का फ़तवा (अरबीःفتوای شُرَیح قاضی) उस फ़तवे को कहा जाता है जिसका श्रय कर्बला की घटना के समय कूफ़ा के न्यायाधीश शुरैह बिन हारिस किंदी को दिया जाता है, जिसका विषय इमाम हुसैन (अ) की हत्या की अनुमति है। यह फ़तवा पुराने स्रोतों में नहीं मिलता और कुछ विद्वान और शोधकर्ता इसे निराधार और फर्जी मानते हैं।
महत्व एवं स्थिति
"نَّ حسین بنَ علی بن ابیطالب شَقَّ عَصا المسلمین و خالَفَ امیرَالمؤمنین و خَرَجَ عن الدّینِ، ثَبَتَ و حُقِّقَ عندی، قَضَیتُ و حَکَمتُ بِدَفعِہِ و قَتلِہِ حِفظاً لِشَریعۃِ سَیدِ المرسلین इन्नल हुसैन बिन अली बिन अबि तालिब शक्का असल मुस्लेमीना व ख़ालफ़ा अमीरुल मोमेनिना व खरजा अनिद दीने, सबता व हुक़्क़ेक़ा इंदि, क़ज़यतो व हकतो बेदफ्ऐही व कतलेहि हिफ्ज़न लेशरियते सय्यदिल मुरसलीना
अनुवादः हुसैन बिन अली बिन अबी तालिब ने मुसलमानों को विभाजित किया और अमीरुल मोमेनिन (यज़ीद) का विरोध किया और इस्लाम धर्म छोड़ दिया। यह बात मेरे लिए सिद्ध हो चुकी है। इसलिए मैंने इस्लाम के पैग़म्बर (स) की शरीयत को सुरक्षित रखने के लिए उनकी हत्या का फ़तवा दिया है।"[१]
सय्यद मुहम्मद अली क़ाज़ी तबातबाई के अनुसार, तहक़ीक़ दरबार ए अव्वल अरबईन सय्यद उश-शोहदा नामक पुस्तक मे बहुत से धार्मिक विद्वानों ने शुरैह क़ाज़ी को कर्बला की घटना के पीछे के कारकों में से एक के रूप में जिम्मेदार ठहराते हुए उसेस मंसूब एक फ़तवा बयान किया है[२] शुरैह क़ाज़ी के नाम से प्रसिद्धि रखने वाला शुरैह बिन हारिस किंदी उमर बिन ख़त्ताब के खिलाफ़त काल से वर्ष 78 हिजरी तक कूफा का काज़ी (न्यायधीश) रहा है।[३]
शुरैह से मंसूब पाठ
अल-अलफ़ैन किताब के अनुवाद में जोड़े गए अनुभाग में जो कहा गया है, उसके आधार पर, शुरैह क़ाज़ी इस फतवे के पाठ का जिम्मेदार है, फतवे का पाठ इस प्रकार है:
फ़तवे के सूत्र
शिया शोधकर्ता और विद्वान मुहम्मद सेहती सरदारूदी के अनुसार, 14वीं चंद्र शताब्दी में हसन अशरफ अल-वाऐज़ीन द्वारा लिखित जवाहिर उल-कलाम फी सवानेहिल-अय्याम और 15वीं चंद्र शताब्दी मे लिखित तरजुमा अल-अलफ़ैन किताब मे थोड़े अंतर के साथ बयान किया गया है।[५] क़ाज़ी तबातबाई ने इस फ़तवा को --Zahidain (वार्ता) १८:५८, २० सितम्बर २०२४ (+0330)समरात उल-अनवार और मज़ामीर अल-औलिया जो 14वीं चंद्र शताब्दी मे लिखी गई थी से उल्लेख किया है।[६] तारीख जामेअ सय्यद उश-शोहदा नामक किताब के अनुसार 14वीं चंद्र शताब्दी मे लिखी गई मुल्ला हबीबुल्लाह काशानी की किताब तज़केरा तुश-शोहदा मे भी क़ाज़ी शुरैह के फ़तवे का उल्लेख किया गया है।[७] इसी तरह इस घटना को अब्दुन नबी इराकी नजफ़ी (मृत्यु 1965 ई) द्वारा भी सुनाई गई है, जो 14वीं शताब्दी में जीवन व्यापन कर रहे थे।[८]
फ़तवा जारी करने से इनकार करने वाले
मुहम्मद सेहती सरदारूदी के अनुसार, अल्लामा हिल्ली द्वारा लिखित अल-अलफ़ैन के पाठ में ऐसी किसी बात का उल्लेख नहीं है, इस किताब के अनुवाद मे अनुवादक ने जो बात इस हवाले से ज़िक्र किया है उसका उल्लेख उससे पहले किसी किताब में नहीं किया गया है।[९] सेहती ने पिछली 31 किताबों का भी नाम दिया है जिनमे क़ाज़ी शुरैह के ऐसे किसी फ़तवे का उल्लेख नही हुआ है[१०] क़ाज़ी तबातबाई भी अपनी किताब तहक़ीक़ दरबार ए अरबईन मे इस फतवे के स्रोतों को पूरी तरह से निराधार मानते हैं।[११] सारल्लाह किताब के लेखक ने भी शुरैह के फतवे को अफवाह बताया है। उनके अनुसार मक़ातिल में शुरैह का नाम केवल दो मामलों में उल्लिखित है, जिनमें से दोनों हानी बिन उरवा की गिरफ्तारी से संबंधित हैं।[१२] इसके अलावा, "मशहूराते बी ऐतेबार" (1398 शम्सी में लिखी गई) पुस्तक में मुख्तार सक़फ़ी द्वारा क़ाज़ी शुरैह को क़ाज़ी के पद पर नियुक्त करने को इस फ़तवे के निराधार होने पर तर्क दिया गया है। लेखक के अनुसार, यह नियुक्ति कर्बला की घटना के अपराधियों से बदला लेने के मुख्तार के तरीके के अनुरूप फतवा जारी करने की धारणा के अनुकूल नहीं है।[१३]
दहखुदा शब्दकोश में भी शुरैह शब्द के शीर्षक के तहत, यह कहा गया है कि यह कहानी विश्वसनीय स्रोतों में नहीं पाई जाती है।[१४] तारीख जामेअ सय्यद अल-शोहदा नामक किताब के लेखको ने भी उपरोक्त फ़तवे का विश्वसनीय सनद से खाली बताते हुए लिखा है कि इस घटना का उल्लेख केवल 14वीं चन्द्र शताब्दी के स्रोतो मे हुआ है।[१५]
फ़ुटनोट
- ↑ विजदानी, तरजुमा अल अलफ़ैन, 1409 हिजरी, पेज 1004
- ↑ क़ाज़ी तबातबाई, तहक़ीक़ दर अव्वल अरबईन सय्यद उश शोहदा, 1368 शम्सी, पेज 61
- ↑ ख़ुदाई, शुरैह काज़ी जिंदगीनामा व अमलकर्द, पेज 99-124
- ↑ विजदानी, तरजुमा अल अलफ़ैन, 1409 हिजरी, पेज 1004
- ↑ सेहती सरदरूदी, तहरीफ़ शनासी आशूरा व तारीख इमाम हुसैन, 1394 शम्सी, पेज 202
- ↑ क़ाज़ी तबातबाई, तहक़ीक़ दर अव्वल अरबईन सय्यद उश शोहदा, 1368 शम्सी, पेज 62-63 फ़ुटनोट
- ↑ गिरोही अज़ तारीख पुजूहान, तारीख कयाम व मक़तल जामेअ सय्यद उश शोहाद, 1392 शम्सी, भाग 1, पेज 530 फुटनोट
- ↑ गिरोही अज़ तारीख पुजूहान, तारीख कयाम व मक़तल जामेअ सय्यद उश शोहाद, 1392 शम्सी, भाग 1, पेज 530 फुटनोट
- ↑ सेहती सरदरूदी, तहरीफ़ शनासी आशूरा व तारीख इमाम हुसैन, 1394 शम्सी, पेज 201
- ↑ सेहती सरदरूदी, तहरीफ़ शनासी आशूरा व तारीख इमाम हुसैन, 1394 शम्सी, पेज 201
- ↑ क़ाज़ी तबातबाई, तहक़ीक़ दर अव्वल अरबईन सय्यद उश शोहदा, 1368 शम्सी, पेज 201
- ↑ अन्दलीब, सारल्लाह, 1376 शम्सी, पेज 126
- ↑ सुलैमानी, मशहूरात बी ऐतेबार, 1398 शम्सी, पेज 225
- ↑ दहख़ुदा, लुगत नामा , 1373 शम्सी, भाग 26, पेज 349
- ↑ गिरोही अज़ तारीख पुजूहान, तारीख कयाम व मक़तल जामेअ सय्यद उश शोहाद, 1392 शम्सी, भाग 1, पेज 530 फुटनोट
स्रोत
- खुदाई, सय्यद अली अकबर, शुरैह क़ाज़ी जिंदगीनामा व अमलकर्द, फसलनामा तारीख इस्लामम, क्रमांक 7, पाईज़ 1380
- दहखुदा, अली अकबर, लुगत नामा, तेहरान, दानिशगाह तेहरान, पहला संस्करण 1373 शम्सी
- सुलैमानी, महदी, मशहूरात बी ऐतेबार दर तारीख व हदीस, क़ुम, किताब ताहा, पहला संस्करण 1398 शम्सी
- सेहती सरदरूदी, मुहम्मद, तहरीफ शनासी आशूरा व तारीख इमाम हुसैन, तेहरान, मरकज़ चाप व नशर बैनुल मिलल, 1394 शम्सी
- अंदलीब, हुसैन, सारल्लाह, क़ुम, इंतेशारात दर राहे हक, 1376 शम्सी
- क़ाज़ी तबातबाई, सय्यद मुहम्मद अली, तहक़ीक दर अव्वल अरबईन सय्यद उश शोहदा, क़ुम, नशर बुनयाद इल्मी व फ़रहंगी शहीद आयतुल्लाह क़ाज़ी तबातबाई, तीसरा संस्करण, 1368 शम्सी
- गिरोही अज़ तारीख पुजूहान, तारीख क़याम व मकतल जामेअ सय्यद उश शोहदा, क़ुम, मोअस्सेसा आमूजिशी व पुजूहिशी इमाम खुमैनी, आठवा संस्करण, 1392 शम्सी
- विजदानी, जाफ़र, तरजुमा अल अल-फ़ैन, क़ुम, इंतेशारात हिजरत, दूसरा संस्करण 1409 हिजरी