इमाम अली रज़ा अलैहिस सलाम
शियों के आठवें इमाम | |
नाम | अली बिन मूसा |
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उपाधि | अबुल हसन (सानी) |
जन्मदिन | 11 ज़िल क़ादा, वर्ष 148 हिजरी |
इमामत की अवधि | 20 वर्ष, वर्ष 183 हिजरी से वर्ष 203 हिजरी तक |
शहादत | सफ़र के अंत में, वर्ष 203 हिजरी |
दफ़्न स्थान | मशहद |
जीवन स्थान | मदीना, मर्व |
उपनाम | रज़ा, आलिमे आले मोहम्मद |
पिता | इमाम मूसा काज़िम (अ) |
माता | नजमा ख़ातून |
जीवन साथी | सबीका |
संतान | इमाम जवाद (अ) |
आयु | 55 वर्ष |
शियों के इमाम | |
अमीरुल मोमिनीन (उपनाम) . इमाम हसन मुज्तबा . इमाम हुसैन (अ) . इमाम सज्जाद . इमाम बाक़िर . इमाम सादिक़ . इमाम काज़िम . इमाम रज़ा . इमाम जवाद . इमाम हादी . इमाम हसन अस्करी . इमाम महदी |
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अली बिन मूसा बिन जाफ़र (अ.स.) (फ़ारसी: امام رضا علیه السلام) जिन्हें इमाम रज़ा (148-203 हिजरी) के नाम से जाना जाता है, शिया इसना अशरी के आठवें इमाम हैं। उनका सबसे प्रसिद्ध उपनाम रज़ा है। इमाम मुहम्मद तक़ी (अ.स.) की एक हदीस में कहा गया है कि रज़ा की उपाधि उन्हें ईश्वर ने दी थी। आप आलिमे आले-मुहम्मद और इमाम ए रऊफ़ के नाम से भी प्रसिद्ध है।
इमाम रज़ा (अ) ने 183 हिजरी में इमामत संभाली और 20 साल तक इमाम रहे। इमाम रज़ा की इमामत की अवधि हारून अब्बासी (10 वर्ष), मुहम्मद अमीन (लगभग 5 वर्ष) और मामून अब्बासी (5 वर्ष) की खिलाफ़त के साथ मेल खाती थी।
8वें इमाम खुरासान की यात्रा से पहले मदीना में रहते थे। वर्ष 200 या 201 हिजरी में वह मामून के आदेश पर मर्व गए और धमकी के कारण अनिच्छा से उसके उत्तराधिकारी के पद को स्वीकार किया।
प्रसिद्ध हदीस सिलसिला अल ज़हब (सोने की चेन) इमाम रज़ा (अ.स.) से ख़ुरासान की यात्रा के दौरान नैशापूर में सुनी गई थी। यह हदीस एकेश्वरवाद (तौहीद) और उसकी शर्तों के बारे में है। ख़ुरासान में इमाम रज़ा (अ.स.) के आगमन के बाद, उनकी स्थिति और ज्ञान पर सवाल उठाने के लिए, मामून ने उनके और धर्मों और संप्रदायों के बुजुर्गों के बीच बहसों का आयोजन किया, जिससे मामून की इच्छा के विरुद्ध, इमाम रज़ा की श्रेष्ठता साबित हो गई और उनके ज्ञान को स्वीकृति मिल गई। इन बहसों के कुछ हिस्से तबरसी द्वारा लिखित अल-इहतेजाज पुस्तक में वर्णित है।
प्रसिद्ध कथन के अनुसार, इमाम रज़ा (अ.स.) सफ़र महीने के अंत में 203 हिजरी में, 55 वर्ष की आयु में, तूस में मामून के हाथों शहीद हुए और उन्हें सनाबाद गाँव में हारुन के मक़बरे में दफ़्न किया गया। आज, इमाम रज़ा (अ) का रौज़ा मशहद में मुसलमानों के लिए तीर्थस्थल है।
इमाम रज़ा (अ.स.) के बारे में, कविताओं, उपन्यासों, फिल्मों आदि सहित कला के कई कार्यों का निर्माण और प्रकाशन किया गया है। "फ़ारसी कविता में रज़वी की प्रशंसा" पुस्तक में इमाम रज़ा (अ) की प्रशंसा में 72 फ़ारसी कवियों के क़सीदे एकत्रित किए गए हैं। मेहदी फ़ख़ीम ज़ादे द्वारा निर्देशित टेलीविजन श्रृंखला "प्रोविंस ऑफ लव" (विलायते इश्क़) इमाम रज़ा (अ) के बारे में सबसे महत्वपूर्ण फिल्मों में से एक है, जो 1376 शम्सी में बनाई गई थी। महमूद फ़र्शचियान की पेंटिंग "या ज़ामिने आहू" में एक हिरण के लिए इमाम रज़ा के गारंटी लेने की कहानी को भी दर्शाया गया है।
इमाम रज़ा (अ) के बारे में बहुत सी किताबें फ़ारसी, अरबी और अंग्रेजी जैसी विभिन्न भाषाओं में लिखी और प्रकाशित की गई हैं। सलमान हबीबी की पुस्तक "किताब शेनासी इमाम रज़ा (अ.स.)" में एक हज़ार से अधिक पुस्तकों का परिचय दिया गया है। सय्यद जाफ़र मुर्तज़ा आमेली द्वारा लिखित किताब अल हयात अल सियासिया लिल इमाम अल-रज़ा (अ.स.), बाक़िर शरीफ़ क़रशी द्वारा लिखित किताब हयात अल इमाम अली बिन मूसा अल-रज़ा (अ.स.): देरासा व तहलील और इमाम रज़ा (अ.स.) का विश्वकोश इन किताबों में शामिल हैं।