यह लेख तवस्सुल की अवधारणा के बारे में है। मृतकों से तवस्सुल के बारे में जानने के लिये, मृतकों से अपील की प्रविष्टि देखें।
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तवस्सुल, का अर्थ है ईश्वर से किसी व्यक्ति या वस्तु की मध्यस्थता करना उसके क़रीब आने के लिये और अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये। तवस्सुल मुसलमानों की आम मान्यताओं में से एक है, और इसकी वैधता के लिए, उन्होंने क़ुरआन की आयतों जैसे वसीला की आयत, साथ ही पैग़म्बर (स) की सुन्नत और मुसलमानों के तरीक़े (सीरत), अचूक इमामों (अ) की हदीसों और तर्कसंगत कारणों (अक़्ली दलीलों) का हवाला दिया है। तवस्सुल का शियों के बीच एक विशेष स्थान है, और वह पैग़म्बर (स) और अचूक इमामों (अ) के अलावा, वे इमामों (अ) के परिवार के लोगों जैसे कि उनकी पत्नियाँ और माँओं और औलाद से अपील करते हैं। जब शिया इमामों (अ) और इमामों की औलाद की क़ब्रों पर जाते हैं, तो वे ज़ियारतनामे (तीर्थपत्रों) पढ़ते हैं, जिसमें वे अलग-अलग तरीकों से उन तीर्थस्थलों के मालिकों से अपील करते हैं।

ऐसा कहा जाता है कि तवस्सुल में विश्वास 8वीं चंद्र शताब्दी तक सभी मुस्लिम संप्रदायों में आम था; इस सदी में, इसके कुछ प्रकारों, जैसे स्वंय पैग़म्बर (स) की ज़ात और नेक बंदों से, भगवान के साथ उनकी स्थिति और गरिमा के द्वारा अपील, और उनकी वफ़ात के बाद उनसे अपील, पर एक समूह, विशेषकर सलफ़ी विद्वान इब्न तैमिया द्वारा सवाल उठाये गये थे। कई शताब्दियों के बाद, वहाबियों द्वारा वहाबीवाद के प्रसार के साथ, तवस्सुल का विरोध किया जाने लगा।

इस बारे में सलफी और वहाबी विद्वानों द्वारा उद्धृत मुख्य दलील यह है कि पैग़म्बर के सहाबा के बीच ऐसी अपील की कोई रिपोर्ट नहीं पाई जाती है। तवस्सुल के बारे में सलफ़ीवाद और वहाबियत के विचारों की शिया और सुन्नी विद्वानों द्वारा आलोचना की गई है। उन्होंने कुछ ऐतिहासिक वर्णनों और रिपोर्टों का हवाला दिया है जिनके आधार पर पैग़म्बर के साथियों ने इस प्रकारें की अपीलें कीं हैं।