तवस्सुल

wikishia से
यह लेख तवस्सुल की अवधारणा के बारे में है। मृतकों से तवस्सुल के बारे में जानने के लिये, मृतकों से अपील की प्रविष्टि देखें।

तवस्सुल, का अर्थ है ईश्वर से किसी व्यक्ति या वस्तु की मध्यस्थता करना उसके क़रीब आने के लिये और अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये। तवस्सुल मुसलमानों की आम मान्यताओं में से एक है, और इसकी वैधता के लिए, उन्होंने क़ुरआन की आयतों जैसे वसीला की आयत, साथ ही पैग़म्बर (स) की सुन्नत और मुसलमानों के तरीक़े (सीरत), अचूक इमामों (अ) की हदीसों और तर्कसंगत कारणों (अक़्ली दलीलों) का हवाला दिया है। तवस्सुल का शियों के बीच एक विशेष स्थान है, और वह पैग़म्बर (स) और अचूक इमामों (अ) के अलावा, वे इमामों (अ) के परिवार के लोगों जैसे कि उनकी पत्नियाँ और माँओं और औलाद से अपील करते हैं। जब शिया इमामों (अ) और इमामों की औलाद की क़ब्रों पर जाते हैं, तो वे ज़ियारतनामे (तीर्थपत्रों) पढ़ते हैं, जिसमें वे अलग-अलग तरीकों से उन तीर्थस्थलों के मालिकों से अपील करते हैं।

ऐसा कहा जाता है कि तवस्सुल में विश्वास 8वीं चंद्र शताब्दी तक सभी मुस्लिम संप्रदायों में आम था; इस सदी में, इसके कुछ प्रकारों, जैसे स्वंय पैग़म्बर (स) की ज़ात और नेक बंदों से, भगवान के साथ उनकी स्थिति और गरिमा के द्वारा अपील, और उनकी वफ़ात के बाद उनसे अपील, पर एक समूह, विशेषकर सलफ़ी विद्वान इब्न तैमिया द्वारा सवाल उठाये गये थे। कई शताब्दियों के बाद, वहाबियों द्वारा वहाबीवाद के प्रसार के साथ, तवस्सुल का विरोध किया जाने लगा।

इस बारे में सलफी और वहाबी विद्वानों द्वारा उद्धृत मुख्य दलील यह है कि पैग़म्बर के सहाबा के बीच ऐसी अपील की कोई रिपोर्ट नहीं पाई जाती है। तवस्सुल के बारे में सलफ़ीवाद और वहाबियत के विचारों की शिया और सुन्नी विद्वानों द्वारा आलोचना की गई है। उन्होंने कुछ ऐतिहासिक वर्णनों और रिपोर्टों का हवाला दिया है जिनके आधार पर पैग़म्बर के साथियों ने इस प्रकारें की अपीलें कीं हैं।

मुसलमानों के बीच तवस्सुल की स्थिति

तवस्सुल के सिद्धांत की वैधता पर मुस्लिम सर्वसम्मति

तवस्सुल मुसलमानों की आम मान्यताओं में से एक है।[१] इब्न तैमिया ने इसके सिद्धांत की वैधता पर मुसलमानों की सर्वसम्मति को स्वीकार किया है।[२] तक़ी अल-दीन सोबकी (मृत्यु: 756 हिजरी), मिस्र के शाफ़ेई धर्म के एक विद्वान। शिफ़ा अल-सेक़ाम पुस्तक में इस पर तर्क-वितर्क किया है और इसे धर्म की आवश्यक चीज़ों पर माना है।[३] शिया धर्मशास्त्री जाफ़र सुबहानी ने भी मानव जीवन में साधनों का सहारा लेने के सिद्धांत को स्वाभाविक माना है।[४]

वहाबियों द्वारा इसके कुछ प्रकारों की वैधता का विरोध

ऐसा कहा जाता है कि तवस्सुल इस्लामी संप्रदायों, विशेषकर इमामिया और कुछ हद तक सूफियों के बीच आम रहा है, और 8वीं शताब्दी हिजरी से, कुछ सलफी विद्वानों, विशेष रूप से इब्न तैमिया ने इसके कुछ प्रकारों की वैधता पर सवाल उठाया था। इस मुद्दे के कारण इस्लामी शरिया में तवस्सुल की वैधता को लेकर शिया और सुन्नियों का सलफियों के साथ विवाद हुआ और उनके विचारों का खंडन करने के लिए रचनाएँ लिखी गईं।[५] इन रचनाओं में तक़ीउद्दीन सुबकी द्वारा लिखित पुस्तक शिफ़ा अल-सेक़ाम भी शामिल थी, जिसने सलफी विद्वानों की राय का खंडन किया, और जो विशेष रूप से तवस्सुल के बारे में लिखी गई थी।[६]

आज (15वीं शताब्दी हिजरी) में, सलफ़िया के बाद उनकी पैरवी करते हुए, वहाबियों ने भी तवस्सुल के कुछ प्रकारो की वैधता पर सवाल उठाया है; इसलिए, तवस्सुल की चर्चा पर एक बार फिर शिया और सुन्नी विद्वानों का ध्यान गया और उन्होने वहाबी दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए कुछ लेखनिया लिखी हैं।[७]

तवस्सुल पर शियों का विशेष ध्यान

तवस्सुल का शियों के बीच एक विशेष स्थान है, और पैग़म्बर (स) और अचूक इमामों (अ) के अलावा, वे इमाम (अ) के परिवारों के लोगों से अपील करते हैं, जैसे कि उनकी पत्नियाँ और माँ और उनकी औलाद (इमामज़ादे)।[८] शिया इमामों (अ.स.) और इमामज़ादो की क़ब्रों पर जाते समय ज़ियारतनामे पढ़ते हैं जिसमें वे उन तीर्थस्थलों के मालिकों से अलग-अलग तरीकों से तवस्सुल करते हैं।[९]

अपील व्यक्तिगत और समूह दोनों तरीकों से की जाती है। तवस्सुल की प्रार्थना शियों की प्रार्थनाओं में से एक है; जिसे विशेष रूप से ईरान में, हर हफ्ते एक समूह के रूप में पढ़ा जाता है, अक्सर बुधवार की रात को, घरेलू समारोहों में या मस्जिदों, इमामबाड़ों और तीर्थस्थलों में, और इसमें, चौदह मासूमों (अ) से तवस्सुल किया जाता है।[१०] कभी-कभी कुछ माँगों की पूर्ति के लिए प्रार्थना करने के लिए एक समारोह आयोजित किया जाता है, उदाहरण के लिए, ईरान में, कुछ लोग किसी मरीज़ को बीमारी से ठीक होने या अन्य ज़रूरतों को पूरा करने के लिए इमाम ज़ैन अल-आबेदीन (अ.स.) के नाम पर एक दस्तरख़ान लगाते हैं और खाना खिलाते हैं।[११] इसी तरह से, कुछ ईरानी लोगों के बीच शादी, बच्चे, वित्तीय जरूरतों और अन्य ज़रूरतों जैसी इच्छाएं मांगने के लिये हज़रत रुक़य्या का दस्तरख़ान लगा कर खाना खिलाना एक आम बात है।

बेशक, सुन्नियों के बीच तवस्सुल के मामले भी सामने आए हैं। उदाहरण के लिए, छठी हिजरी शताब्दी के इतिहासकार, मुहद्दिस और शाफ़ेई न्यायविद् समआनी, इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) की क़ब्र पर जाया करते थे और उनसे तवस्सुल किया करते थे।[१२] तीसरी हिजरी शताब्दी में अन्य सुन्नी विद्वानों में से एक, अबू अली ख़ल्लाल ने कहा है कि जब भी मुझे कोई समस्या होती, मैं मूसा बिन जाफ़र की क़ब्र पर जाता और उनकी ओर रुख़ करता और मेरी समस्या हल हो जाया करती थी।[१३] मुहम्मद बिन इदरीस शाफ़ेई, चार सुन्नी न्यायविदों में से एक से यह कथन वर्णित किया गया है कि वह मूसा बिन जाफ़र की कब्र को "उपचार औषधि" के रूप में उद्धृत किया करते है।[१४]

तवस्सुल की अवधारणा और इसकी वैधता

तवस्सुल का अर्थ है कि एक व्यक्ति, किसी मनुष्य या वस्तु जिसका ईश्वर के नज़दीक एक विशेष स्थान है, उसे वह अपनी प्रार्थनाओं का उत्तर देने के लिए एक मध्यस्थ या साधन के रुप में पेश करे।[१५] तवस्सुल शाब्दिक रूप से वसीला (साधन) शब्द से संबंधित है।[१६] "वसीला" वह चीज़ है जिसका उपयोग किसी और चीज़ के क़रीब जाने के लिए किया जाता है।[१७]

कुछ लोगों ने तवस्सुल और इस्तेग़ासा को पर्यायवाची माना है।[१८] कुछ ने उन्हें अलग भी माना है, इस अर्थ में कि प्रार्थना केवल गंभीरता और कठिनाई की स्थिति के लिए है, लेकिन तवस्सुल कठिनाई की स्थिति के लिए विशिष्ट नहीं है और इसमें आराम का ज़माना भी शामिल है।[१९]

तवस्सुल की वैधता के कारण

अपील की वैधता और उसके जाएज़ होने के लिए निम्नलिखित तर्क दिए गये हैं:

  • क़ुरआन: वसीला की आयत में ईश्वर ने मोमिनो को ईश्वर के क़रीब होने के लिये साधन खोजने का आदेश दिया है।[२०] इसके अलावा, सूरह निसा की आयत 64 में, पापियों को पैग़म्बर (स) के पास जाने और उनसे गुनाहों की माफ़ी के लिये ख़ुदा से दुआ करने का अनुरोध किया गया है।[२१] तवस्सुल की वैधता को इंगित करने वाली अन्य आयतों में एक, सूरह यूसुफ़ की आयत 97 है,[२२] जिसके अनुसार पैग़म्बर याक़ूब के बच्चों ने अपने पिता से उनके लिए माफ़ी मांगने को कहा है।[२३]
  • हदीसें: शिया और सुन्नी हदीस के स्रोतों में बहुत सी हदीसों का उल्लेख किया गया है[२४] जो इस्लामी कानून में सहारा लेने (तवस्सुल) की वैधता और स्वीकार्यता का संकेत देती हैं।[२५]
  • मुसलमानों की सीरत: इस्लाम के शुरुआती दिनों के मुसलमानों और पैग़म्बर के साथियों की जीवनियों से पता चलता है कि पैग़म्बर (स) से अपील करना स्वीकार्य और एक पसंदीदा कार्य था।[२६] उदाहरण के लिए, सहीह बुख़ारी पुस्तक में, "अल-इस्तिसक़ा अध्याय" के नाम से एक खंड संकलित किया गया है, और इसके तहत उल्लेख होने वाली हदीसों में, पैग़म्बर (स) से बारिश के लिए प्रार्थना करने की अपील करने वाले साथियों (सहाबा) के विभिन्न कथन सुनाए गए हैं।[२७]
  • तर्कसंगत कारण: तवस्सुल या साधन बनाना बंदों को भगवान के क़रीब लाता है, और भगवान के क़रीब जाना उनकी पूजा के कृत्यों में मनुष्यों का अंतिम उद्देश्य और इच्छा है। क्योंकि ईश्वर के निकट आये बिना मनुष्य को इस लोक और परलोक में सुख और मोक्ष नहीं मिल सकेगा; दूसरी ओर, यह मेल बिना साधन के प्राप्त नहीं किया जा सकता है, इसके अनुसार इस लोक और परलोक में सुख और मोक्ष साधन और सहारा (तवस्सुल) पर निर्भर है।[२८]

वहाबियों द्वारा पैग़म्बर (स) और धर्मी बंदो से अपील करने की वैधता का विरोध

पैग़म्बरों और धर्मी सेवकों से अपील इस प्रकार है: उदाहरण के लिए, अपील करने वाला कहता है: «اللهمَّ انّی أتوسلُ إلیک بنبیکَ محمد(ص) اَن تقضی حاجتی؛ "हे भगवान, आपके पैग़म्बर मुहम्मद (स) के माध्यम से, मैं आपसे मेरी ज़रूरत पूरी करने के लिए अनुरोध कर रहा हूँ।"[२९]

इसका सहारा लेने के बारे में मिस्र आधारित दार अल-इफ़्ता का फ़तवा:
"पैग़म्बरों, संतों और भगवान के धर्मी सेवकों से अपील करना और उनसे आशीर्वाद मांगना और उनसे मदद मांगना अनुमत और अनुशंसित (मुसतहब) है, और क़ुरआन, सुन्नत और पैग़म्बर के साथियों के कार्यों में इसकी वैधता और वांछनीयता के प्रमाण पाये जाते हैं। साथ ही, जिस तरह उनसे अपील करना वैध है, उसी तरह उनके पद और गरिमा के लिए अपील करना भी स्वीकार्य और वैध है, और इस मामले में एक छोटे समूह के विरोध की कोई वैधता नहीं है।"[३०]

संयुक्त अरब अमीरात के एक मालिकी विद्वान ईसा बिन अब्दुल्लाह हमीरी के अनुसार, इस प्रकार की अपील का 7वीं शताब्दी हिजरी के सलफ़ी विद्वानों के एक समूह ने विरोध किया था, और उसी समय में मुस्लिम विद्वानों के स्पष्ट रुख अपनाने और इस प्रकार की अपील से इनकार करने वालों की प्रतिक्रिया में एक निर्णायक निर्णय लेने के साथ ही यह विवाद समाप्त हो गया था। लेकिन बाद में यह विवाद वहाबियों द्वारा फिर से उठाया गया और इस प्रकार की अपील को अमान्य मान लिया गया।[३१] उदाहरण के लिए, सीरिया के वहाबियों में से एक, मुहम्मद नसीब रिफाई (मृत्यु: 1412 हिजरी) ने पैग़म्बरों और दिव्य संतों (ईश्वर द्वारा पैदा होने वालों) के माध्यम से ईश्वर तक पहुंचने के दृष्टिकोण को अमान्य घोषित कर दिया है और इस कृत्य को कुफ़्र और विधर्म (बिदअत) माना है।[३२] इस प्रकार की अपील के विधर्म को साबित करने के लिए, रिफाई ने कहा है कि क़ुरआन और पैग़म्बर की सुन्नत में इसकी वैधता के बारे में कोई सबूत नहीं पाया जाता है।[३३]

मुस्लिम विद्वानों द्वारा वहाबी विचारों की आलोचना

चंद्र कैलेंडर की 8वीं शताब्दी में शाफ़ेई धर्म के विद्वान तक़ी अल-दीन सुबकी ने "शिफ़ा अल सेक़ाम" पुस्तक में कहा है कि मुतवातिर और ढेरों हदीसें पैग़म्बर (स) और नेक लोगों से तवस्सुल और इस्तेग़ासा करने की वैधता का संकेत देती हैं।[३४] मिस्र के शाफ़ेई धर्म के विद्वान अली इब्न अब्दुल्लाह सम्हूदी (निधन: 911 हिजरी) ने अपनी पुस्तक "वफ़ा अल-वफ़ा" में पैग़म्बर (स) और धर्मी लोगों से अपील करने की वैधता के बारे में इजमाअ (सर्वसम्मति) का दावा किया है।[३५] उन्होंने प्रामाणिक सुन्नी हदीस के ग्रंथों में पाए गए कुछ कथनों का हवाला दिया है।[३६] उनमें से एक, सहीह अल-बुख़ारी में वर्णित वर्णन के आधार पर, उमर बिन ख़त्ताब ने अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब (पैग़म्बर के चाचा) से बारिश के लिए अपील की है।[३७]

पैग़म्बर और दिव्य संतों से अपील करने की वैधता के संबंध में शिया इमामों से बहुत सी हदीसों का उल्लेख किया गया हैं। इनमें से कुछ कथनों में, अहले-बैत (अ.स.) को ईश्वर के क़रीब जाने के साधन के रूप में पेश किया गया है।[३८] उदाहरण के लिए, तवस्सुल प्रार्थना उन प्रार्थनाओं में से एक है जिसमें व्यक्ति भगवान से अपनी मन्नत मांगने के लिये चौदह मासूम के ज़रिये से अपील करता है।[३९]

इब्न तैमिया और वहाबियों द्वारा मृतकों से अपील को विधर्म कहना

मुख्य लेख: मृतकों से अपील

इब्न तैमिया के अनुसार, उनकी वफ़ात के बाद दिव्य पैग़म्बरों और संतों का सहारा लेना एक नाजायज कार्य और विधर्म है। उनके अनुसार, सहाबा और पिछले न्यायविदों में से किसी ने भी ऐसा कार्य नहीं किया है और इसकी वैधता और स्वीकार्यता का कोई सबूत नहीं है।[४०] इसी तरह से, वहाबी संप्रदाय के संस्थापक मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब[४१] और उनके अनुयायी वहाबी विद्वानों ने पैग़म्बरों और दिव्य संतों से, उनकी मृत्यु के बाद, तवस्सुल करने को बहुदेववादी और विधर्मी (बिदअत) माना है।[४२]

मुस्लिम विद्वानों के दृष्टिकोण से मृतकों की अपील की वैधता

वहाबियों के दृष्टिकोण की शिया और सुन्नी विद्वानों की ओर से आलोचना की गई है। मुहम्मद बिन अली शुकानी (मृत्यु: 1250 हिजरी), एक ज़ैदी न्यायविद् ने, पैग़म्बर (स) के जीवनकाल के दौरान और उनकी वफ़ात के बाद उनसे तवस्सुल करने की वैधता के लिए सहाबा की सर्वसम्मति का हवाला दिया है और कहा है कि पैग़म्बर के किसी भी साथी ने इस प्रकार के आह्वान की वैधता से इनकार नहीं किया है।[४३] इसके अलावा, मिस्र के शाफ़ेई संप्रदाय के इतिहासकार और मुहद्दिस अहमद बिन मुहम्मद क़स्तलानी (मृत्यु: 923 हिजरी) ने कहा है कि पैग़म्बर (स) से उनकी वफ़ात के बाद उल्लेख की जाने वाली ख़बरों और प्रभावों की गिनती नहीं की जा सकती है।[४४] सम्हूदी के अनुसार, अपील में पैग़म्बर (स) के लिए यह मायने नहीं रखता है कि यह उनके जीवनकाल के दौरान है या उसके बाद।[४५] उन्होंने सुन्नी हदीस के स्रोतों से हदीसों का उल्लेख किया है पैग़म्बर (स) की वफ़ात के बाद सहाबा ने विभिन्न मामलों के लिए उनसे तवस्सुल किया है।[४६]

जाफ़र सुबहानी ने भी कहा है: मुसलमानों का सीरत (व्यवहार) इस तथ्य पर आधारित था कि जैसे वह हज़रत के जीवनकाल के दौरान उनका सहारा लिया करते थे, वैसे ही उनकी वफ़ात के बाद वह उनसे तवस्सुल किया करते थे।[४७] तुर्की के हनफ़ी धर्म के विद्वान मुहम्मद बिन जाहिद कौसरी (मृत्यु: 1371 हिजरी) ने कहा है कि वह पैग़म्बरों और धर्मी लोगों से उनकी वफ़ात के बाद अपील करने में विश्वास नहीं करने वाले, मृत्यु के बाद आत्माओं के विनाश में विश्वास करते हैं और वह क़यामत और उसके बाद के जीवन में विश्वास नहीं रखते हैं।[४८] वह उन लोगों के जीवनकाल में तवस्सुल की वैधता की हदीसों की विशिष्टता को इन हदीसों की विकृति और बिना कारण के उनकी व्याख्या (तावील) मानते हैं।[४९]

पैग़म्बर और दिव्य संतों की स्थिति और गरिमा से तवस्सुल को बहुदेववाद मानना

तक़ीउद्दीन सुबकी:
"पैग़म्बर (स) से अपील करना एक अनुमेय और अच्छा कार्य है, और इसकी अनुमेयता और अच्छाई हर धर्मी के लिए स्पष्ट है, और यह अल्लाह के पैग़म्बरों के कार्य और कर्म थे और धर्मी पूर्ववर्तियों, विद्वानों और आम मुसलमानो का मार्ग था और किसी भी समय और किसी भी धर्म ने इसका खंडन नहीं किया यहाँ तक कि इब्न तैमिया आये और उन्होंने अपने शब्दों से इस मुद्दे को कमज़ोर लोगों के लिये संदेह पूर्वक बना दिया। [नोट 1] और एक ऐसे विधर्म की स्थापना की जिसकी किसी भी युग में कोई मिसाल नहीं मिलती है।[५०]

पैग़म्बर (स) की स्थिति और गरिमा के लिए अपील करने वाला इस तरह से अपील कर सकता है: «اللهمَّ إنّی أتوسل إلیک بجاه محمدٍ(ص) و حُرمته أن تقضی حاجتی؛ "हे अल्लाह, मैं मुहम्मद (स) को तेरे नज़दीक उनकी स्थिति और गरिमा के कारण उन्हे ज़रिया बना कर तुझ से अपील करता हूं कि आप मेरी जरूरतों को पूरा करें।[५१] वहाबियों में से एक, मुहम्मद नसीब रोफ़ाई की राय यह है कि पैग़म्बर (स) और दिव्य अभिभावकों की स्थिति और सम्मान के माध्यम से भगवान तक पहुंचने की वैधता का कोई प्रमाण मौजूद नहीं है, और पैग़म्बर के किसी भी साथी ने ऐसा कोई तवस्सुल नहीं किया है।[५२] अब्दुल अजीज़ बिन बाज़ (मृत्यु: 1420 हिजरी), अरब के वहाबी मुफ़्ती ने भी इस प्रकार के तवस्सुल को नवीनता (बिदअत) और बहुदेववाद माना है और इसके खिलाफ़ फ़तवा जारी किया है।[५३]

मुस्लिम विद्वानों द्वारा वहाबी विचारों की आलोचना

इस दृष्टिकोण (तवस्सुल को शिर्क मानना) की शिया और सुन्नी विद्वानों ने आलोचना की है। सम्हूदी के अनुसार, पैग़म्बर (स) की स्थिति, अल्लाह के नज़दीक उनके रुबते और उनके वुजूद के आशीर्वाद होने के लिये उनसे अपील करना, पैग़म्बरों और धर्मी पूर्ववर्तियों का तरीक़ा (सीरत) रहा है; और हर ज़माने के लिये है, चाहे वह सृजन से पहले का समय हो या उनके जीवन के दौरान का या उनकी वफ़ात के बाद का।[५४] शाफ़ेई धर्म के टिप्पणीकार शहाब अल-दीन आलूसी (मृत्यु: 1270 हिजरी) ने भी पैग़म्बर (स) और इसी तरह से ऐसे धर्मी लोग जिन्हें ईश्वर की दृष्टि में गरिमा प्राप्त है, की स्थिति और उनकी गरिमा के कारण, उनसे अपील करने को वैध मानते हैं।[५५]

शिया विद्वानों में से एक, जाफ़र सुबहानी कहते हैं: पैग़म्बरों और धर्मी सेवकों के अधिकार और सम्मान के कारण अपील करने का मतलब यह नहीं है कि वह ईश्वर पर अंतर्निहित आवश्यक अधिकार रखते है इस लिये उसे शिर्क माना जा सकता हो; बल्कि, सभी अधिकार केवल ईश्वर के लिये हैं, और उसने अपनी कृपा और गरिमा से और उनका सम्मान करने के लिए कुछ सेवकों को यह दर्जा और सम्मान दिया है।[५६]

दार अल-इफ्ता, मिस्र ने पैग़म्बर (स) की स्थिति और गरिमा के कारण उनसे अपील करने के प्रश्नन के उत्तर में सूरह मायदा की आयत 35 और सूरह इसरा की आयत 57 और कुछ हदीसों का हवाला देते हुए यह फ़तवा जारी किया है कि पैग़म्बर (स) की गरिमा के कारण उनसे अपील करने और स्वंय उनसे अपील करने के बीच कोई अंतर नही है, और पैग़म्बर (स) और अन्य पैग़म्बरों की स्थिति और गरिमा के कारण उनसे तवस्सुल करना वैध चीजों में से एक है जिसकी वैधता क़ुरआन और पैग़म्बर की सुन्नत से सिद्ध है।[५७]

क़ुरआन और ईश्वरीय नामों से तवस्सुल की वैधता पर मुसलमानों की सहमति

दिव्य नामों और गुणों के ज़रिये से अपील करना

भगवान के नामों और गुणों से तवस्सुल इस तरह से किया जाता है कि, उदाहरण के लिए, आह्वान करने वाला कहे: «اللّهُمَّ إِنِّی أَسْأَلُک بِاسْمِک یا اللّهُ، یا رَحْمنُ، یا رَحِیمُ ... خَلِّصْنا مِنَ النَّارِ یا رَبِّ؛ हे भगवान, मैं आपसे आपके नाम पर प्रार्थना (तवस्सुल) करता हूं, हे अल्लाह, हे रहमान, हे रहीम ... हमें आग से बचाएं, हे मेरे भगवान।[५८] ऐसा कहा जाता है कि इस प्रकार की प्रार्थना की वैधता में मुसलमानों के बीच कोई अंतर नहीं है।[५९] सूरह आराफ़ की आयत 80 में, भगवान ने आदेश दिया कि उसे अच्छे नामों (असमाए हुसना) के साथ पुकारा जाना चाहिए।[६०] इसी तरह से यह भी कहा गया है कि पैग़म्बर (स) और मासूम इमामों (अ)[६१] की बहुत सी हदीसें इस प्रकार की अपील की वैधता का संकेत देती हैं।[६२] जोशन कबीर प्रार्थना में एक सौ श्लोक हैं और इसमें ईश्वर के 1001 नामों और गुणों से तवस्सुल किया गया है।[६३] इसी प्रकार इस प्रार्थना को क़द्र की रातों में पढ़ने की भी सिफारिश की जाती है।[६४]

क़ुरआन से तवस्सुल

क़ुरआन से तवस्सुल इस तरह है कि, उदाहरण के लिए, प्रार्थना करने वाला कहता है: «اللّٰهُمَّ إِنِّی أَسْأَلُکَ بِکِتابِکَ الْمُنْزَلِ وَمَا فِیهِ وَفِیهِ اسْمُکَ الْأَکْبَرُ وَأَسْماؤُکَ الْحُسْنیٰ...أَنْ تَجْعَلَنِی مِنْ عُتَقائِکَ مِنَ النّارِ؛ "हे अल्लाह, मैं तुझसे तेरी आसमानी किताब (क़ुरआन) के वसीले से मांगता हूं, और जो कुछ उसमें आया है, और उसमें तेरे महान नाम, और हसीन नाम हैं।" ... मुझे उन लोगों में से एक बना जो नरक की आग से मुक्त हो गए हैं"।[६५] कुछ हदीसें जो सुन्नियों और शियों में स्रोतो में उल्लेखित है,[६६] उनमें ईश्वर के क़रीब होने या उससे कुछ मांगने के लिए क़ुरआन का सहारा लेना वैध माना गया है।[६७] इसके अलावा, मासूम इमामों (अ) की हदीसों में, क़ुरआन के माध्यम से क़द्र की रात को क़ुरआन को सर पर रखने के अवसर पर तवस्सुल करने की सिफारिश की गई है।[६८]

नेक कामों के द्वारा तवस्सुल को तवस्सुल के एक अन्य प्रकारों में एक माना गया है।[६९] इमाम अली (अ.स.) द्वारा उद्धृत एक हदीस में, ईश्वर और पैग़म्बर (स) पर ईमान रखना, ईश्वर के रास्ते में जेहाद करना, नमाज़ स्थापित करना और ज़कात देना, रोज़ा रखना, हज करना, सिलए रहम और दान (सदक़ा) देना जैसे कार्य, ईश्वर तक पहुँचने के सर्वोत्तम तरीकों में से बयान हुए हैं।[७०] किसी ऐसे व्यक्ति से प्रार्थना का अनुरोध करना, जिसके अस्तित्व की बरकत से, दुआ स्वीकार किये जाने की उम्मीद हो, अन्य प्रकार के तवस्सुल में से एक है, जिस पर मुस्लिम विद्वानों ने क़ुरआन की कुछ आयतों और हदीसों के अनुसार इसकी वैधता पर दलील पेश की है।[७१]

मोनोग्राफ़

तवस्सुल के मुद्दे पर मुस्लिम विद्वानों द्वारा बहुत सी रचनाएँ लिखी गई हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

  • अल-तवस्सुल मफ़हुमोहु व अक़सामोहु व हुकमोहु फ़ी अल शरीया अल इस्लामियता अल-ग़र्रा: जाफ़र सुबहानी द्वारा लिखित, इस पुस्तक में, लेखक ने प्रत्येक प्रकार की अपील की वैधता के संबंध में क़ुरआन और हदीसों के प्रमाणों का उल्लेख किया है और विरोधियों के विचारों की आलोचना और जांच की है।[७२]
  • अल ताम्मुल फ़ी हक़ीक़ा अल-तवस्सुल: ईसा बिन अब्दुल्लाह हिमयरी द्वारा लिखित। इस पुस्तक में दो अध्याय हैं। इस पुस्तक में, लेखक ने तवस्सुल के विरोधियों के तर्कों की जांच और आलोचना की है और क़ुरआन और सुन्नी हदीस ग्रंथों के कथनों के साथ-साथ विद्वानों के विचारों के अनुसार इसकी वैधता व्यक्त की है।[७३] इस पुस्तक का फ़ारसी में अनुवाद सैयद मुर्तेज़ा हुसैनी फ़ाज़िल द्वारा किया गया था और मशअर पब्लिशिंग हाउस द्वारा "दरंगी दर हक़ीक़ते तवस्सुल" शीर्षक के तहत प्रकाशित किया गया है।[७४]
  • मोहिक़ अल-तक़व्वुल फ़ी मसअला अल तवस्सुल: मुहम्मद ज़ाहिद कौसरी (मृत्यु: 1371 हिजरी), एक हनफ़ी विद्वान और इब्न तैमिया और सलफ़ी विचारों के आलोचकों और विरोधियों में से एक द्वारा लिखित। इस पुस्तक में, 22 पृष्ठों में, लेखक ने क़ुरआन और पैग़म्बर (स) की सुन्नत और सहाबा का हवाला देकर तवस्सुल और इसतेग़ाज़ा की वैधता को साबित किया है।[७५]

फ़ुटनोट

  1. सबकी, शेफ़ा अल-सेक़ाम, 1419 हिजरी, पृष्ठ 293।
  2. इब्न तैमिया, क़ायदा अल-जलीला फ़ी अल-तवस्सुल वा अल-वसीला में, 1422 एएच, पृष्ठ 16।
  3. सबकी, शेफ़ा अल-सेक़ाम, 1419 एएच, पृष्ठ 318।
  4. सुबहानी, अल-तवस्सुल फ़ि अल-किताब वा अल-सुन्नह, 1374, पृष्ठ 18।
  5. हिमयरी, अल-ताम्मुल फ़ी हक़ीक़ा अल-तवस्सुल, 1428 एएच, पृष्ठ 48; पाकेतची, "तवल्सुल", पेज 362।
  6. सबकी, शेफ़ा अल-सेक़ाम, 1419 एएच, पीपी 59-61।
  7. मामूरी, "नक़दे तवस्सुल अज़ सूये सलफिया", पीपी. 367-368।
  8. अली ज़ादेह, "तवस्सुल दर तहक़्क़ुक़े तारीख़ी", पृष्ठ 368।
  9. अली ज़ादेह, "तवस्सुल दर तहक़्क़ुक़े तारीख़ी", पृष्ठ 369।
  10. अली ज़ादेह, "तवस्सुल दर तहक़्क़ुक़े तारीख़ी", पृष्ठ 369।
  11. अली ज़ादेह, "तवस्सुल दर तहक़्क़ुक़े तारीख़ी", पृष्ठ 369।
  12. समआनी, अल-अंसाब, 1382 एएच, खंड 12, पृष्ठ 479।
  13. बग़दादी, बग़दाद का इतिहास, 1417 एएच, खंड 1, पृष्ठ 133।
  14. कअबी, अल-इमाम मूसा बिन अल-काज़िम, (अ), जीवनी और इतिहास, 1430 एएच, पृष्ठ 216।
  15. हिमयरी, अल-ताम्मुल फ़ी हक़ीक़ा अल-तवस्सुल, 1428 एएच, पृष्ठ 16।
  16. जौहरी, सेहाह ताज अल-लुग़ा और सेहाह अल-अरबिया, शब्द "व स ल" के अंतर्गत।
  17. जौहरी, सेहाह ताज अल-लुग़ा और सेहाह अल-अरबिया, शब्द "व स ल" के अंतर्गत।
  18. सबकी, शेफ़ा अल-सेक़ाम, 1419 एएच, पृष्ठ 314।
  19. अब्दुर रहमान अब्द अल-मुनईम, मोअजम अल मुसतलहात व अल-अल्फ़ाज़ फ़िक़हिया, दार अल-फ़ज़ीला, पेज 150।
  20. तबातबाई, अल-मिज़ान, 1363, खंड 5, पृष्ठ 328; फ़ख़र राज़ी, अल-तफ़सीर अल-कबीर, 1420 एएच, खंड 11, पृष्ठ 349।
  21. सुबहानी, मंशूर जावेद, 1390, खंड 7, पृष्ठ 412; सूरह निसा, आयत 64.
  22. मकारिम शिराज़ी, आयात अल-विलाया फ़ि अल-कुरआन, 1425 एएच, पृष्ठ 201।
  23. सूरह यूसुफ़, आयत 97
  24. उदाहरण के लिए, देखें सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा बे अख़बार दार अल-मुस्तफ़ा, 1419 एएच, खंड 4, पृष्ठ 196; तिरमिज़ी, सोनन तिरमिज़ी, 1395 एएच, खंड 5, पृ. 539, शेख़ तूसी, मिस्बाह अल-मुतहज्जिद, 1411 एएच, पृष्ठ 416; सैय्यद बिन तावुस, अल-इक़बाल, 1376, पृ. 177 अल्लामा मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 एएच, खंड 36, पृष्ठ 15-21।
  25. मकारिम शिराज़ी, आयात अल-विलाया फ़ि अल-कुरआन, 1425 एएच, पृष्ठ 203।
  26. सुबहानी, अल-तवस्सुल, पी. 107.
  27. बुख़ारी, सहीह बुख़ारी, 1422 एएच, खंड 2, पृ. 26-32।
  28. हिमयरी, अल-ताम्मुल फ़ी हकीक़ा अल-तवस्सुल, 1428 एएच, पृष्ठ 76।
  29. सुबहानी, अल-तवस्सुल, पी. 69.
  30. "हुक्म अल-तवस्सुल बिल अंबिया वल औलिया वल सालेहीन व तलबुल मददे मिनहुम", दार अल-इफ्ता अल-मिसरिया वेबसाइट।
  31. हिमयरी, अल-ताम्मुल फ़ी हकीक़ा अल-तवस्सुल, 1428 एएच, पृष्ठ 48।
  32. रुफ़ाई, अल-तवस्सुल इला अल-हकीक़क़ अल-तवस्सुल, 1399 एएच, पृष्ठ 185।
  33. रुफ़ाई, अल-तवस्सुल इला अल-हकीक़क़ अल-तवस्सुल, 1399 एएच, पृष्ठ 186।
  34. सबकी, शेफ़ा अल-सेक़ाम, 1419 एएच, पृष्ठ 305।
  35. समहुदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 1419 एएच, खंड 4, पृष्ठ 196।
  36. सोबकी, शेफ़ा अल-सेक़ाम, पृष्ठ 305; समहुदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 1419 एएच, खंड 4, पृष्ठ 196।
  37. बुखारी, सहिह बुखारी, 1422 एएच, खंड 2, पृष्ठ 27।
  38. उदाहरण के लिए, कोमी, तफ़सीर कोमी, 1404 एएच, खंड 1, पृष्ठ 168 देखें। बहरानी, ​​अल-बुरहान फ़ी तफ़सीर अल-कुरआन, 1415 एएच, खंड 2, पृष्ठ 292।
  39. अल्लामा मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 एएच, खंड 102, पृष्ठ 247-249।
  40. इब्न तैमिया, मजमूआ अल-रसायल व अल-मसायल, अल-तुरास अल-अरबी समिति, खंड 1, पृष्ठ 22-23।
  41. अब्दुल वहाब, कश्फ़ अल-शुबहात, 1418 एएच, पीपी 51-52।
  42. उदाहरण के लिए, इब्न बाज़, अल-तवस्सुल अल-मशरूअ व अल तवसल अल-ममनूअ, 1428 एएच, पृ. 35-36 को देखें।
  43. शौकानी, अल-दार अल-नज़िद, दार इब्न हुज़ैमा, पृष्ठ 20।
  44. क़स्तलानी, अल-मवाहिब अल-लदुन्निया, 1425 एएच, खंड 3, पृष्ठ 606।
  45. सम्हौदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 1419 एएच, खंड 4, पृष्ठ 195।
  46. समहुदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 1419 एएच, खंड 4, पृ. 195-196।
  47. सबुहानी, अल-तवस्सुल ..., 1374, पृ. 52
  48. कौसरी, महक़ अल-तक़व्वुल फ़ी मसाला अल-तवस्सुल, अल-मकतबा अल-अज़हरी लिल तुरास, पृष्ठ 4।
  49. कौसरी, महक़ अल-तक़व्वुल फ़ी मसाला अल-तवस्सुल, अल-मकतबा अल-अज़हरी लिल तुरास, पृष्ठ 5।
  50. सोबकी, शेफ़ा अल-सेक़ाम, पी. 293.
  51. सुबहानी, आईने वहाबियत, 1375, पृ. 146
  52. रिफाई, अल-तवस्सुल इला-हकीक़े अल-तवस्सुल, 1399 एएच, पीपी 188-189।
  53. इब्न बाज़, इब्न बाज़ के फ़तवों का संग्रह, 1420 एएच, खंड 5, पृष्ठ 322।
  54. सम्हूदी, वफ़ा अल-वफ़ा, 1419 एएच, खंड 4, पृष्ठ 193।
  55. आलूसी, तफ़सीर रूह अल-मआनी, 1415 एएच, खंड 6, पृष्ठ 128।
  56. सुबहानी, अल-तवस्सुल, मफ़हुमोहु व अक़सामोहु व हुकमोहु फ़ी अल शरीयतिल इस्लामिया अल-ग़र्रा, 1374 शम्सी, पृष्ठ 82।
  57. "हुक्म अल तवस्सुल बिल अंबिया वल औसिया वल सालेहीन व तलबुल मददे मिनहुम", दार अल-इफ्ता अल-मिसरिया वेबसाइट।
  58. कफ़अमी, अल-मिसबाह, 1409 एएच, पृष्ठ 247; हिमयरी, अल-ताम्मुल फ़ी हक़ीक़ा अल-तवस्सुल, 1428 एएच, पृष्ठ 44।
  59. सुबहानी, अल-तवस्सुल..., 1374 शम्सी, पृ.24 हमीरी, अल-तफ़्लम फ़ी हक़ीक़ा अल-तस्ल, 1428 एएच, पृष्ठ 44।
  60. सुबहानी, अल-तवस्सुल..., 1374 शम्सी, पृ.22 अल-अल्बानी, अल-तवस्सुल, अनवाओहु व अक़सामोहु, 1421 एएच, पृष्ठ 30।
  61. उदाहरण के लिए, तिरमिज़ी, सोनन तिरमिज़ी, 1395 एएच, खंड 5, पृष्ठ 539 को देखें; शेख़ तूसी, मिस्बाह अल-मुतहज्जिद, 1411 एएच, पृष्ठ 416; सैय्यद बिन तावुस, अल-इक़बाल, 1376, पृ.177
  62. सुबहानी, अल-तवस्सुल..., 1374 शम्सी, पृ.22, हिमयरी, अल-ताम्मुल फ़ी हक़ीक़ा अल-तवस्सुल, 1428 एएच, पृष्ठ 44।
  63. कफ़अमी, अल-मिसबाह, 1409 एएच, पृष्ठ 247।
  64. उदाहरण के लिए, अल्लामा मजलिसी, ज़ाद अल-मआद, 1423 एएच, पृष्ठ 27 देखें।
  65. सैय्यद बिन तावुस, अल-इक़बाल, 1376, खंड 1, पृष्ठ 346।
  66. उदाहरण के लिए, इब्न हनबल, मुसनद अहमद, 1421 एएच, खंड 33, पृष्ठ 146 देखें। सैय्यद बिन तावुस, अल-इक़बाल, 1376, खंड 1, पृष्ठ 346।
  67. सुबहानी, अल-तवस्सुल..., 1374 शम्सी, पृ. 25-26।
  68. उदाहरण के लिए, शेख़ मोफिद, अल-मुक़नेआ, 1413 एएच, पृष्ठ 190 देखें।
  69. उदाहरण के लिए, सुबहानी, अल-तवस्सुल..., 1374 हिजरी, पृ. 27-32 और 39 देखें; हिमयरी, अल-ताम्मुल फ़ी हक़ीक़ा अल-तवस्सुल, 1428 एएच, पीपी 45-48।
  70. उदाहरण के लिए, नहज अल-बलाग़ा, सहीह सोबही सालेह, 1374, खुतबा 110, पृष्ठ 163 देखें।
  71. उदाहरण के लिए, सुबहानी, अल-तवस्सुल..., 1374, पृ. 27-32 और 39 देखें; हिमयरी, अल-ताम्मुल फ़ी हक़ीक़ा अल-तवस्सुल, 1428 एएच, पीपी 45-48।
  72. सुबहानी, अल-तवस्सुल..., 1374 शम्सी, पृ.117
  73. हिमयरी, अल-ताम्मुल फ़ी हक़ीक़ा अल-तवस्सुल, 1428 एएच, पृष्ठ 11-8।
  74. हमीरी, दरंगी दर हक़ीकते तवस्सुल, 1392, पृ.13
  75. कौसरी, महक़ अल-तक़व्वुल फ़ी मसाला अल-तवस्सुल, अल-मकतबा अल-अज़हरिया लिलतुरास, पीपी. 11-4।

स्रोत

  • आलूसी, महमूद बिन अब्दुल्लाह, तफ़सीर रूह अल-मआनी, बेरूत, दार अल-कुतुब अल-इल्मिया, 1415 हिजरी।
  • इब्न बाज़, अब्दुल अजीज़, अल-तवस्सुल अल-मशरूअ व तवस्सुल अल-मममूअ, रियाज़, बी ना, 1428 एएच।
  • इब्न बाज़, अब्द अल-अज़ीज़, इब्न बाज़ के फ़तावा का संग्रह, रियाज़, दार अल-क़ासिम पब्लिशिंग हाउस, 1420 एएच।
  • इब्न तैमिया, तक़ी अल-दीन अबू अल-अब्बास, क़ायदा अल-जलीला फ़ि अल-तवस्सुल वा अल-वसीला, बी जा, मकतबा अल-फुरकान, पहला संस्करण, 1422 एएच।
  • इब्न तैमिया, तकी अल-दीन अबू अल-अब्बास, मजमूआ अल-रसायल व अल-मसायल समूह, बी जा, अल-तुरास अल-अरबी समिति, बी ता।
  • अल-अल्बानी, मुहम्मद नासिर अल-दीन, अल-तवस्सुल, अनवाओहु व अहकामोहु, रियाद, अल-मआरिफ़ स्कूल, 1421 एएच।
  • बहरानी, ​​हाशिम बिन सुलेमान, अल-बुरहान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, क़ुम, बास फाउंडेशन, 1415 एएच।
  • बुख़ारी, मुहम्मद बिन इस्माइल, सहिह बुख़ारी, दमिश्क़, दार तौक़ अल-नजाह, 1422 एएच।
  • इब्न हनबल, अहमद इब्न मुहम्मद, मुसनद अहमद, काहिरा, दार अल हदीस, 1421 एएच।
  • पाकेतची, अहमद, "तवस्सुल", बिग इस्लामिक इनसाइक्लोपीडिया।
  • तिरमिज़ी, मुहम्मद बिन ईसा, सोनन तिरमिज़ी, मिस्र, मुस्तफा अल-बाबी अल-हलबी स्कूल और प्रेस कंपनी, 1395 एएच।
  • तकी अल-दीन सबकी, अली बिन अब्दुल काफ़ी, शेफ़ा अल-सेक़ाम फ़ी ज़ियारत खैर अल-अनाम, सैय्यद मोहम्मद रज़ा जलाली द्वारा शोध किया गया, क़ुम, मशअर पब्लिशिंग हाउस, चौथा संस्करण, 1419 एएच।
  • जौहरी, अबू नस्र इस्माइल बिन हम्माद, अल सेहाह ताज अल-लुग़ा और सेहाह अल-अरबिया, बेरूत, दार अल-इल्म लिलमलायिन, चौथा संस्करण, 1407 एएच।
  • हिमयरी, ईसा बिन अब्दुल्लाह, अल-ताम्मुल फ़ी अल हक़ीक़ा अल-तवस्सुल, बी जा, बी ना, 1428 एएच।
  • "पैग़म्बरों, संतों, धर्मी लोगों से अल-तवस्सुल का आदेश और उनसे मदद मांगना", दार अल-इफ्ता अल-मिसरिया वेबसाइट, पोस्टिंग की तारीख: 13 मार्च, 2018, देखी गई तारीख: 25 फ़रवरदीन, 1403 शम्सी।
  • रुफ़ाई, मोहम्मद नसीब, अल-तवस्सुल इला-हकीका अल-तवस्सुल, बेरूत, मुद्रण और प्रकाशन के लिए दार लेबनान, तीसरा संस्करण, 1399 एएच।
  • सुबहानी, जाफ़र, आईने वहाबियत, तेहरान, मशअर पब्लिशिंग हाउस, 1375।
  • सुबहानी, जाफ़र, अल-तवस्सुल, मफ़हुमोहु व अक़सामोहु व हुकमोहु फ़ी अल शरीया अल इस्लामिया अल-ग़र्रा, क़ुम, मशअर पब्लिशिंग हाउस, 1374।
  • सुबहानी, जाफ़र, अल-तवस्सुल, बेरूत, अल-दार अल-इस्लामिया, बी ता।
  • सुबहानी, जाफ़र, मंशूरे जावेद, क़ुम, इमाम सादिक़ (अ) इंस्टीट्यूट, 1390 शम्सी।
  • सम्हूदी, अली बिन अब्दुल्लाह, वफ़ा अल-वफ़ा बे अख़बार दार अल-मुस्तफ़ा, बेरूत, दार अल-कुतुब अल-इल्मिया, 1419 एएच।
  • सैय्यद बिन तावुस, अली बिन मूसा, अल-इक़बाल बिल आमाल अल-हसना, क़ुम, इस्लामी प्रचार कार्यालय, पहला संस्करण, 1376 शम्सी।
  • शौकानी, मुहम्मद बिन अली, अल-दुर अल-नज़ीद फ़ी इख़लास कलमा अल-तौहीद, बी जा, दार इब्न हुज़ैमा, बी ता।
  • शेख़ तूसी, मुहम्मद बिन हसन, मिस्बाह अल-मुतहज्जिद, बेरूत, शिया फ़िक़्ह फाउंडेशन, 1411 एएच।
  • शेख़ मोफिद, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अल-मुक़नेआ, क़ुम, शेख़ मोफिद की विश्व हज़ारा कांग्रेस, 1413 एएच।
  • तबताबाई, मोहम्मद हुसैन, अल-मिज़ान फ़ी तफ़सीर अल-कुरआन, क़ुम, इस्माइलियान पब्लिशिंग हाउस, 1363 शम्सी।
  • अब्दुल मुनईम, महमूद अब्दुर रहमान, मोअजम अल मुसतलाहात वा अल-अल्फ़ाज़ अल-फ़िकहिया, काहिरा, दार अल-फ़ज़ीला, बी ता।
  • अब्दुल वहाब, मुहम्मद, कश्फ़ अल-शुबहात, सऊदी अरब, इस्लामी मामलों का मंत्रालय, औक़ाफ़, दावा और मार्गदर्शन, पहला संस्करण, 1418 एएच।
  • अल्लामा मजलिसी, मोहम्मद बाक़िर, बिहार अल-अनवार, बेरूत, अल-वफ़ा फाउंडेशन, 1403 एएच।
  • अल्लामा मजलिसी, मोहम्मद बाक़िर, ज़ाद अल-मआद, बेरूत, अल-आलमी इंस्टीट्यूट फॉर प्रेस, 1423 एएच।
  • फ़ख़र राज़ी, मुहम्मद बिन उमर, अल-तफ़सीर अल-कबीर, बेरूत, दार इह्या अल-तुरास अल-अरबी, 1420 एएच।
  • क़स्तलानी, अहमद बिन मुहम्मद, अल-मवाहिब अल-लदुन्निया बिल मन्ह अल-मुहम्मदिया, बेरूत, अल-मकतब अल-इस्लामी, 1425 एएच।
  • क़ोमी, अली इब्न इब्राहिम, तफ़सीर क़ोमी, क़ुम, दार अल-किताब, तीसरा संस्करण, 1404 एएच।
  • कफ़अमी, इब्राहिम बिन अली, अल-मिस्बाह, जुन्ना अल-अमान अल-वाक़िया व जुन्ना अल-ईमान अल-बाक़िया, क़ुम, दार अल-रज़ी, 1405 एएच।
  • कौसरी, मोहम्मद ज़ाहिद, मोहक़ अल-तक़व्वुल फी मसाला अल-तवस्सुल, काहिरा, अल-मकतब अल-अज़हरिया लिलतुरास, बी.ता।
  • मामूरी, "नक़दे तवस्सुल अज़ सूये सलफिया", बिग इस्लामिक इनसाइक्लोपीडिया।
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, आयात अल-विलाया फ़ि अल-कुरआन, क़ुम, इमाम अली इब्न अबी तालिब (अ.स.) स्कूल, 1425 एएच।
  • नहज अल-बलाग़ा, सुबही सालेह द्वारा संशोधित, क़ुम, इस्लामिक रिसर्च सेंटर, 1374 शम्सी।