सलफ़ीया

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(सलफ़िया से अनुप्रेषित)
सलफ़ीया
भौगोलिक दायरासऊदी अरब, इराक़, सीरिया, भारतीय उपमहाद्वीप, उत्तरी अफ्रीका, दक्षिण पूर्वी एशिया
महत्वपूर्ण घटनाएँ11 सितंबर की घटनाएँ
सरकारअफग़ानिस्तान में तालिबान का शासन, इराक़ और सीरिया में आईएसआईएस का शासन
जन्म के कारणइस्लामी दुनिया में संप्रदायवाद के ख़िलाफ़ लड़ना, पश्चिमी देशों के ख़िलाफ़ लड़ना
मान्यताएंपाठ-उन्मुख, व्याख्या से बचना, दर्शनशास्त्र (फ़लसफ़े) का विरोध करना, सहाबा की समझ को प्रमाणित करना, तक्फिरवाद, कथन पर जोर देना और तर्क की उपेक्षा करना, जिहाद पर जोर देना
दावेदारइब्ने तैमीया, इब्ने क़य्यिम जौज़ीये, मुहम्मद बिन अब्दुल-वहाब, मुहम्मद शुकानी और रशीद रज़ा सलफ़ीवाद


सलफ़ीया या सलफ़ीइज़्म (अरबीः السلفية) सुन्नियों के बीच एक सामाजिक और धार्मिक विचार है, जो कि मुसलमानों की समस्याओं का समाधान सलफ (पूर्ववर्ती मुसलमानों) के रास्ते पर चलने का मानते है। पैग़म्बर (स) की एक हदीस का हवाला देते हुए, सलफ़ीया इस्लाम की पहली तीन शताब्दियों को सर्वश्रेष्ठ इस्लामी शताब्दियां मानते हैं और इस अवधि में रहने वालों को बौद्धिक अधिकार देते हैं।

सलफ़ीयों के अनुसार, क़ुरआन और पैग़म्बर (स) की सुन्नत केवल सहाबी (साथियों), ताबेइन और तबए ताबेइन की व्याख्या के साथ मान्य हैं। वे अक़्ल (बुद्दी) को प्रमाण (हुज्जत) नहीं मानते हैं और धार्मिक शिक्षाओं को समझने के लिए केवल क़ुरआन की आयतों और हदीसों पर भरोसा करते हैं।

सलफ़ीया की समझ के अनुसार बहुत से मुसलमान बहुदेववादी (मुशरिक) हैं। इब्ने तैमीया, इब्ने क़य्यिम जौज़ीये, मुहम्मद बिन अब्दुल-वहाब, मुहम्मद शुकानी और रशीद रज़ा सलफ़ीवाद के सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांतकारो मे से हैं। वहाबीवाद, मुस्लिम ब्रदरहुड और देवबंदी सबसे प्रसिद्ध समकालीन सलाफ़ी धाराएँ हैं।

सलफ़ीयों की मान्यताओं के आधार पर तालिबान, अल-क़ायदा और आईएसआईएस जैसे जिहादी और चरमपंथी समूहों का गठन किया गया है, जो कई मुसलमानों को काफिर मानते हैं और उनके ख़िलाफ़ जिहाद करना अपना कर्तव्य मानते हैं, और बहुत से शिया और सुन्नी मुसलमानों का नरसंहार किया है।

परिभाषा

सलफ़ का अर्थ पूर्ववर्ती होता है।[१] सलफ़ी एक ऐसा समूह है जो "मुस्लिम पूर्ववर्तियों" का अनुसरण करने का दावा करता है। उनके बीच मतभेद हैं कि वे सलफ़ की श्रेणई मे किसको रख़ते हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश "सलफ़ ए सालेह" इस्लाम की पहली तीन शताब्दियों (पैगंबर (स), सहाबी, ताबेइन, तबए ताबेइन) के व्यक्तित्व मानते हैं। इस संबंध में, वे "पहले युग की हदीस" का उल्लेख करते हैं, जिसे वे पैगंबर (स) से बयान करते हैं: "सबसे अच्छे लोग मेरे समय के हैं, फिर जो उनका अनुसरण करते हैं, और फिर जो उनका अनुसरण करते हैं।"[२]

सलफ़ी हर उस चीज़ को बिदअत समझते है जो पैगंबर (स) के किसी भी सहाबी के भाषण का खंडन करती है।[३]

विचारात्मक विशेषताएं

सलाफ़ीयों की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं:

क़ुरआन और हदीस पर बल तथा बुद्धि को कमजोर करना

सलफ़ी क़ुरआन की आयतो और हदीसो को बुद्धि पर प्राथमिकता देते है। सलाफ़ीयों के पेश्वा (नेता) इब्ने तैमीया के अनुसार, क़ुरआन और सुन्नत के अलावा धार्मिक शिक्षाओं -जिसमें विश्वास (अक़ाइद) और नियम (अहकाम) शामिल हैं- को जानने का कोई दूसरा तरीका नहीं है । उनका मानना है कि तर्कसंगत स्वतंत्र रूप से मान्य नहीं हैं और उनकी भूमिका केवल धार्मिक ग्रंथों की सामग्री की पुष्टि और स्वीकार करने और उन्हें मजबूत करने के लिए है।[४]

ज़ाहिर को मानने वाले

सलफिस्ट केवल क़ुरआन की आयतों की उपस्थिति का उल्लेख करते हैं और क़ुरआन की आयतों की किसी भी व्याख्या और तावील को सही नहीं मानते हैं। उदाहरण के लिए "الرحمن علی العرش استوی अल-रहमान अला अल-अर्श इस्तवा" आयत के आधार पर जिसका स्पष्ट अर्थ है कि भगवान सिंहासन पर बैठा है,[५] वे कहते हैं कि भगवान के पास वास्तव में एक सिंहासन है जिस पर वह बैठता है। इसी प्रकार क़ुरआन की ताबीर "यदुल्लाह" से वे समझते हैं कि ईश्वर के हाथ है।[६]

तकफ़ीर

फ़ेलासफ़र (दार्शनिक), बातिनिय्या, इस्माइलीया, शिया, क़दरीया और अशायरा उन संप्रदायो मे से हैं जिन्हें सलफ़ीया काफिर बताते है।[७]

इब्ने तैमीया के सिद्धांत अनुसा कुफ्र का कारण बनने वाली कुछ चीजे इस प्रकार है: स्वयं और ईश्वर के बीच मध्यस्थता करना, काफिरों की समान्ता इख्तियार करना, मुतावतिर हदीस और आम सहमति (इज्माअ) का विरोध करना।[८] तकफ़ीरी सलाफ़िज़्म के रूप में जाने जाने वाले कुछ नए सलाफ़िस्ट समूह, ईशनिंदा के अर्थ और उदाहरणों का बहुत विस्तार करते हैं और जिहादी संचालन के लिए तकफ़ीर को जायज समझते हैं।[९]

पृष्ठभूमि

सलफिज्म की पृष्ठभूमि में असहाबे हदीस हैं, हालांकि उन्हें इस तरह से नहीं जाना जाता था, सलफ़ शब्द उनके बीच लोकप्रिय हो गया।पाकितची, वा हूशंगी, बुनयाद गिराई व सलाफ़ीया, 1393 शम्सी, पेज 30 अहमद इब्ने हंबल (मृत्यु 241 हिजरी) ने अपने अनुयायियों का पालन करने के लिए नेतृत्व किया।[१०] या उन लोगों को आमंत्रित किया जो निर्देशित थे।[११]

निम्नलिखित शताब्दियों में इब्ने हंबल के अनुयायियों के बीच सलफीवाद कभी-कभी एक सामाजिक उथल-पुथल में बदल गया। चौथी चंद्र शताब्दी में हनबली उपदेशक अबू बकर बरबहारी ने बगदाद में कट्टरपंथी हंबलीयो के एक समूह को शियाओं के विरोध में और हुसैनी आशूरा समारोह का विरोध करने के नाम पर बिदअत का मुकाबला करने के लिए इकट्ठा किया और सुन्नियों के मुकाबिल मे सिफ़ाते खुदा पर किस प्रकार विश्वास रखा जाए।[१२]

8वीं चंद्र शताब्दी के बाद से सलफीवाद का शीर्षक इस्तेमाल होने लगा था, जब दमिश्क के हंबली विद्वान इब्ने तैमीया (मृत्यु 728 हिजरी) ने कई कार्यों के साथ सलाफिस्ट विचारों को सिद्धांतित किया।[१३] अहमद पाकित्ची के अनुसार, उन्होंने इमामीया की रद्द मे मिनहाज अल सुन्ना, अशायरा की रद्द मे अल रिसाला अल हमवीया, तथा सूफ़ीयो के रद्द मे लिखा। अम्र बिल मारूफ वा नही अज़ मुंकर इज्तेहाद का द्वार खोलने तथा तक़लदी का बहिष्कार और राजनीतिक एंवम सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय उपस्थिति उनकी कुछ शिक्षाएं थीं जिन पर उन्होंने जोर दिया।[१४]

इब्ने तैमीया के बाद, उनके छात्र इब्ने क़य्यिम जौज़ीये (मृत्यु 751 हिजरी) उनके विचारों के मुख्य प्रवर्तक थे। उसके बाद इब्ने रजब हंबली (मृत्यु 795 हिजरी) ने इसी मार्ग का प्रोत्साहन जारी रखा।[१५] बाद की पीढ़ियों के हनबली विद्वानों में सलफी प्रवृत्ति आम थी, नज्द मे उस्मान बिन काइद (मृत्यु 1097 हिजरी) और सीरिया मे मुहम्मद बिन अहमद सफ़ारीनी सलाफ़ीयाह से थे।[१६]

महत्वपूर्ण सलफ़ी विचार धाराएं

वहाबिज्म, मुस्लिम ब्रदरहुड संगठन और देवबंदीया स्कूल सलाफिज्म की सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक और सामाजिक धाराओं में से हैं:

वहाबिज्म

मुख्य लेख: वहाबिज्म

बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में सऊदी अरब में मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब, मुहम्मद बिन सऊद के समर्थन से अरब प्रायद्वीप के विभिन्न हिस्सों में दावा निमंत्रण फैलाने में सक्षम था। [स्रोत की आवशयकता] उनके सिद्धांत इब्ने तैमीया के बौद्धिक सिद्धांतो की नींव पर आधारित थे। [स्रोत की आवश्यकता] उनको इब्ने तैमीया से अधिक चरमपंथी माना जाता है। मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब ने अंधविश्वास विरोधी के नाम पर धार्मिक शिक्षाओं को बहुत कम कर दिया और जिहाद के शीर्षक के तहत एक बड़े समूह को जुटाया, और आले-सऊद सरकार की स्थापना की जिससे उस्मानी सरकार को नुकसान हुआ।[१७]

वहाबी शिक्षाओं के अनुसार, कब्रों की ज़ियारत और कब्रों पर मक़बरे और गुंबद बनाना हराम है और खुदा के अलावा किसी से तवस्सुल करना बिदअत, कुफ्र और शिर्क का कारण है।[१८] सऊदी अरब पर विजय प्राप्त करने के बाद, वहाबियों ने प्रारंभिक इस्लाम के अवशेषों को नष्ट कर दिया। 1221 हिजरी में बक़ीअ का विध्वंस किया तथा इमाम हुसैन (अ) के हरम से ज़रीह और मूल्यवान चीज़ो की चोरी के अलावा (तीर्थयात्रीओ) का नरसंहार किया। और 1216 हिजरी मे कर्बला की महिलाओ को गिरफ्तार करना उनके घिनौने कृतज्ञ है।[१९]

मुस्लिम ब्रदरहुड

मुस्लिम ब्रदरहुड मिस्र में हसन अल-बन्ना द्वारा स्थापित एक सलाफी संगठन है। हसन अल-बन्ना उनसे पहले के सुधारक रशीद रज़ा के अनुयायी था, जो एक ओर, इब्ने तैमीया और मुहम्मद अब्दुह के विचारों से प्रभावित सलाफ़ी सोच रखते था,[२०] और दूसरी ओर सय्यद जमालुद्दीन असदाबादी द्वारा प्रभावित होकर उन्होंने मुसलमानों की एकता के लिए काम किया।[२१]

1928 में हसन अल-बन्ना ने मिस्र में अपने छह युवा अनुयायियों के साथ मुस्लिम ब्रदरहुड के केंद्र की स्थापनी की। जल्द ही इस संगठन के मिस्र, फिलिस्तीन, सूडान, इराक और सीरिया के विभिन्न शहरों में कई शाखाएँ स्थापित हुई और अपने अनुयायियों के बीच मुरशिद आम की उपाधि से प्रसिद्ध हुए।[२२]

मुस्लिम ब्रदरहुड के सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य इस्लामी सरकार की स्थापना, सामाजिक सुधार और उपनिवेशवाद का विरोध हैं।[२३] बाद में मुस्लिम ब्रदरहुड में मतभेद उत्पन्न हुआ, और ब्रदरहुड के युवा इस्लामवादियों का एक समूह सैय्यद कुतुब के विचारों से प्रेरित होकर जिहादी संगठनो का गठन किया।[२४]

देवबंदिया

मुख्य लेख: देवबंदिया

सलफी स्कूल को भारतीय उपमहाद्वीप में शाह वलीउल्लाह देहलवी (1114-1176 हिजरी) द्वारा संस्थागत किया गया था।[२५] उन्होने इब्ने तैमीया की रक्षा (दिफ़ा) में एक पुस्तक भी लिखी है,[२६] उनके कार्यों में कब्रों की ज़ियारत, तवस्सुल, इस्तेग़ासा, नज़्र और क़सम जैसे कार्यो को कुफ़्र और शिर्क माना जाता है।[२७]

शाह वलीउल्लाह देहलवी के बाद उनके कुछ शिष्यों ने उनके माध्यम से देवबंद स्कूल की स्थापना की और उनके विचारों का प्रसार किया। यह स्कूल जल्द ही समृद्ध हुआ और पूरे भारत और अन्य देशों के छात्रों को आकर्षित करके, यह भारत में सबसे बड़ा मदरसा बन गया।[२८]

ईरान की इस्लामी क्रांति के बाद, देवबंदिया, जो अतीत में शियों के साथ संघर्ष में था, ने पाकिस्तान के सुन्नियों को शिया बनने से रोकने के उद्देश्य से सिपाह सहाबा एसोसिएशन का गठन किया।[२९]

जिहादी सलफ़ी

समकालीन सलफी धाराओं की मान्यताओं के आधार पर, जिहादी समूहों का गठन किया गया था, जिन्हें कुछ नया सलफीवाद कहते हैं।[३०] ऐतिहासिक रूप से, अब्दुल वहाब सलफी साहित्य में "बहुदेववाद" की अवधारणा को पेश करने में महत्वपूर्ण भूमिक रखते हैं; लेकिन व्यावहारिक रूप से, सभी लोगों को एकेश्वरवादियों और बहुदेववादियों में विभाजित करने के कारण नए सलाफियों को तकफिरी सलफियों के रूप में जाना जाता है।[३१]

तकफ़ीरी समूह मुसलमानों के एक बड़े हिस्से को काफिर मानते हैं और उनकी हत्या करना वाजिब समझते हैं और इस काम को "जिहाद" कहते हैं।[३२]

तालिबान

मुख्य लेख: तालिबान

देवबंदी संप्रदाय और पश्तो जातीयता पर आधारित जिहादी सल्फी समूह एक समय में अफगानिस्तान में सत्ता हासिल करने में सफल हुआ।[३३] तालिबान की मेन बाड़ी सोवियत संघ के विरुध लड़ने वाले मुजाहिदीन की है।[३४] तालिबान का नेता मुल्ला मुहम्मद उमर था। जिसे तालिबान द्वारा काबुल पर कब्जा करने के बाद अमीर अल-मोमिनिन की उपाधि मिली। तालिबान मुल्ला उमर को ख़लीफ़ा मानते थे जबकि उनके विरोधी उन्हें खलीफा के विरुद्ध बग़ावत और महदूर अल दम समझते थे।[३५]

तालिबान किसी भी प्रकार की आधुनिकतावाद के खिलाफ हैं। उदाहरण के लिए, सबसे पहले उन्होंने टेलीविजन के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके अलावा, उन्होंने लड़कियों को स्कूल नहीं जाने दिया।[३६] उन्होंने मूर्तिपूजा से लड़ने के नारे के साथ तीर्थस्थलों और सांस्कृतिक विरासत को नष्ट कर दिया।[३७]

अल क़ायदा

अफ़गानिस्तान पर सोवियत संघ के हमले के बाद, दुनिया के विभिन्न हिस्सों से कट्टरपंथी अरब मुसलमानों का एक समूह जिहाद के मक़सद से इस क्षेत्र में आया। ये लोग, जो अरब अफगान के नाम प्रसिद्ध थे, जिनके विचार मुस्लिम ब्रदरहुड जिहादियों के थे अब्दुल्लाह एज़ाम के नेतृत्व में संगठित हुए, और उन्होंने सोवियत संघ को अफगानिस्तान से बाहर निकालने में एक प्रभावी भूमिका निभाई है।[३८]

अफ़गानिस्तान में युद्ध और अब्दुल्लाह एज़ाम की मृत्यु के बाद, ओसामा बिन लादेन ने इस समूह का नेतृत्व संभाला और अल-कायदा की स्थापना करके मुजाहिद अफगान अरबों के बिखरने को रोका। उन्होंने यहूदियों और जेहादियों के खिलाफ ग्लोबल जिहाद फ्रंट की स्थापना की।[३९] बाद के वर्षों में, इस समूह ने दुनिया के विभिन्न देशो मे विभिन्न आतंकवादी गतिविधिया अंजाम दी और 11 सितम्बर 2011 को संयुक्त राज्य अमेरिका मे वर्लड ट्रेड सेंटर पर होने वाला हमला भी इसी श्रृंखला की एक कड़ी समझी जाती है।[४०]

आईएसआईएस

मुख्य लेख: आईएसआईएस

आईएसआईएस इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया का संक्षिप्त रूप है, जो एक तकफीरी और अल क़ायदा से अलग हो गया है। इस समूह की स्थापना 2006 में अबू मुस्अब जरक़ावी के नेतृत्व में "जमाआ अल-तौहीद वाल जिहाद" के नाम से इराक मे हुई थी[४१] और इसे इराक की अल-कायदा के नाम से जाना जाता था। इस संगठन ने कुछ ही समय मे इराक और सीरिया के बड़े हिस्सों पर कब्जा कर लिया और 2014 को "इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया" के नाम से अपना एक राज्य बनाकर अबू बक्र अल बग़दादी को खलीफा के रूप में पेश किया।[४२]

आईएसआईएस ने कई अपराध किए और बहुत से नागरिकों का नरसंहार किया।[४३] आईएसआईएस की चरम हत्या ने अल-कायदा के नेता अयमन अल-जवाहिरी को भी इसका विरोध करने के लिए प्रेरित किया; यहाँ तक उसने अंततः घोषणा की कि आईएसआईएस का अल-क़ायदा से कोई लेना-देना नहीं है।[४४]

शियो के प्रति सलफीवाद का दृष्टिकोण

कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, ऐतिहासिक रूप से, सलफ़ीवाद ने सुन्नियों के भीतर अपने दुश्मन को परिभाषित किया था; लेकिन वहाबी सलफियों ने शुरू से ही शियो के खिलाफ काम किया, जिसका उदाहरण मुहम्मद बिन अब्द अल-वहाब के युग में अत्बात का नरसंहार था। हालांकि मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे गैर-वहाबी सलफियों के शियो के साथ अच्छे संबंध थे; उन्होंने कुछ मामलों में इस्राईल के विरुद्ध सहयोग भी किया; लेकिन नए सलफ़ी शियो को पथभ्रष्ट मानते हैं। शियो को ख़तरा समझ कर शियो के ख़िलाफ़ सभी सुन्नियों को अपने साथ लाने की कोशिश करते हैं।[४५]

मोनोग्राफ़ी

इब्ने तैमीया के समय से आज तक शिया और सुन्नी विद्वानों ने सल्फ़इज़्म की आलोचना करते हुए बहुत सी किताबें लिखी हैं। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

  • अल-मुवाहिब अल-लदुनिया फ़ील मन्हे अल मोहम्मदीया, क़स्तलानी (851 से 923 हिजरी तक) द्वारा लिखित
  • अल सवाएक अल इलाहीया फ़ीर रद्दे अलल वहाबीया, सुलेमान इब्ने अब्दुल-वहाब (मुहम्मद बिन अब्दुल-वहाब के भाई) द्वारा लिखित ।
  • मंहज अल-रेशाद लेमन अरादा अल-सदाद, शेख़ जाफ़र काशिफ अल-ग़ेता की रचना।
  • अस सलफ़ीयतो मरहलते ज़िमनीयते मुबारेकत, ला मज़हबे इस्लामी, मुहम्मद सईद रमज़ान अल बूती की रचना
  • कश्फ़ अल इरतियाब फ़ी इत्तेबा मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब, सय्यद मोहसिन अमीन की रचना
  • आईने वहाबीयत, जाफ़र सुब्हानी द्वारा लिखित
  • अल वहाबीयतिल मुत्तर्रेफ़तेः मोसूअते नक़दीया (मोसूअ नक़्दे वहाबीयत), इस किताब के पांच भाग प्रकाशित हो चुके है। किताब मे सुन्नी लेखको द्वारा वहाबीयत को खारिज किया गया है।
  • फितना ए वहाबीयत, अहमद सैय्यद ज़ैनी दोहलान द्वारा लिखित
  • अल सलफ़ीयतुल वहाबीयाः अफकाराहा अल असासीया वा जज़ूरोहा अल तारीखीया, हसन बिन अली बिन हाशिम सक़्क़ाख़ की रचना
  • वहाबीयत, मबानीए फ़िक्री वा कारनामे अमली, जाफ़र सुब्हानी द्वारा लिखित
  • क़राअतो फ़िल अदलते अल सलफ़ीया, मरवान खलीफ़ात की रचना
  • अत तोहफ़तुल मदनीयते फ़ी अक़ीदतिस सलफ़ीया, अब्दुस सलाम आले अब्दुल करीम की रचान।

फ़ुटनोट

  1. इब्ने मंज़ूर, लेसान अल अरब, 1414 हिजरी, भाग 9, पेज 158
  2. अली ज़ादे मूसवी, सलाफ़ी गिरी वा वहाबीयत, 1393 शम्सी, पेज 32
  3. इब्ने क़य्इम जोज़ीया, आलाम अल मुवक़्क़ेईन, 1411 हिजरी, भाग 4, पेज 115
  4. अबू जहरा, तारीख अल मज़ाहिब अल इस्लामीया, दार अल फ़िक्र अल अरबी, पेज 529
  5. सूर ए ताहा, आयत न 5, तरजुमा मिश्कीनी
  6. अली ज़ादे मूसवी, सलाफ़ी गिरी वा वहाबीयत, 1393 शम्सी, पेज 61-62
  7. अल मश्अबी, मनहज इब्ने तैमीया फ़ी मस्अलते अल तकफ़ीर, 1418 हिजरी, पेज 351-463 आस्मी नज्दी, अल दुर अल सुन्नीया फ़ी अल अजवबते अल नज्दीया, 1416 हिजरी, भाग 3, पेज 211
  8. रिज़वानी, वहाबीयान ए तकफीरी, 1390 शम्सी, पेज 114-122
  9. अलूपूर वा शाबानी किया, सलाफ़ीगिरी अज़ माना ता बरदाश्तहाए ना दुरूस्त मबानी, पेज 165
  10. जबरीन, शरह उसूल अल सुन्ना ले इमाम अहमद इब्ने हंबल, 1420 हिजरी, भाग 1, पेज 36
  11. इब्ने बदरान दमिश्क़ी, अल मदख़ल एला मज़हब अल इमाम अहमद इब्ने हंबल, 1401 हिजरी-1981ई , पेज 53-54
  12. पाकितची, वा हूशंगी, बुनयाद गिराई व सलाफ़ीया, 1393 शम्सी, पेज 71-72
  13. पाकितची, वा हूशंगी, बुनयाद गिराई व सलाफ़ीया, 1393 शम्सी, पेज 77
  14. पाकितची, वा हूशंगी, बुनयाद गिराई व सलाफ़ीया, 1393 शम्सी, पेज 78
  15. पाकितची, वा हूशंगी, बुनयाद गिराई व सलाफ़ीया, 1393 शम्सी, पेज 79
  16. पाकितची, वा हूशंगी, बुनयाद गिराई व सलाफ़ीया, 1393 शम्सी, पेज 79-80
  17. पाकितची, वा हूशंगी, बुनयाद गिराई व सलाफ़ीया, 1393 शम्सी, पेज33
  18. मुग़नीया, हाज़ेही हेयल वहाबीया, मुंज़ेमातुल आलाम अल इस्लामी, पेज 74-76
  19. अमीनी, कश्फ़ अल इरतियाब, दार अल कुतुब अल इस्लामी, पेज 15-33
  20. फ़रमानीयान, जिरयान शनासी फ़िक्री फ़रहंगी सलाफी गिरी मआसिर, 1352 शम्सी, पेज 108-110
  21. फ़रमानीयान, सलाफ़ीया वा तक़रीब, पेज 143-144
  22. आसाइश तलब, अल बेना
  23. यूसुफ़ी अश्कवरी, इख़्वान अल मुस्लेमीन, पेज 273-274
  24. यूसुफ़ी अश्कवरी, इख़्वान अल मुस्लेमीन, पेज 272-273
  25. फ़रमानीयान, जिरयान शनासी फ़िक्री फ़रहंगी सलाफी गिरी मआसिर, 1396 शम्सी, पेज 76- 78
  26. फ़रमानीयान, जिरयान शनासी फ़िक्री फ़रहंगी सलाफी गिरी मआसिर, 1396 शम्सी, पेज 78
  27. मुल्ला मूसवी मैबदी, बर रसी वा नक़्द दीदगाहे शाह वलीयुल्लाह देहलवी दर मस्अला शिर्क, पेज 155
  28. फ़रमानीयान, जिरयान शनासी फ़िक्री फ़रहंगी सलाफी गिरी मआसिर, 1396 शम्सी, पेज 83
  29. फ़रमानीयान, जिरयान शनासी फ़िक्री फ़रहंगी सलाफी गिरी मआसिर, 1396 शम्सी, पेज 100
  30. पूर हसन वा सैफ़ी, तक़ाबुले न्यू सलाफ़ीहा वा शीयान व पयामदहाए आन बर इत्तेहाद जहान इस्लाम, पेज 14
  31. पूर हसन वा सैफ़ी, तक़ाबुले न्यू सलाफ़ीहा वा शीयान व पयामदहाए आन बर इत्तेहाद जहान इस्लाम, पेज 17
  32. देखेः पूर हसन वा सैफ़ी, तक़ाबुले न्यू सलाफ़ीहा वा शीयान व पयामदहाए आन बर इत्तेहाद जहान इस्लाम, पेज 18
  33. नहलेहाए फ़िक्री तालिबान, अज़ देवबंदीया ता वहाबीयत, खबरगुजारी रसा, 15 मेहेर 1395
  34. फ़रमानीयान, तारीख तफक्कुर सलफ़ीगिरी, 1394 शम्सी, पेज 103
  35. फ़रमानीयान, जिरयान शनासी फ़िक्री फ़रहंगी सलाफी गिरी मआसिर, 1396 शम्सी, पेज 103
  36. फ़रमानीयान, जिरयान शनासी फ़िक्री फ़रहंगी सलाफी गिरी मआसिर, 1396 शम्सी, पेज 103
  37. करीमी हाजी ख़ादमी, माज़यार, तबार शनासी जिरयानहाए तकफ़ीरी, बर रसी मोरिदी जुम्बिशे तालिबान दर अफ़ग़ानिस्तान, पेज 19
  38. देखेः फ़रमानीयान, जिरयान शनासी फ़िक्री फ़रहंगी सलाफी गिरी मआसिर, 1396 शम्सी, पेज 158-162
  39. देखेः फ़रमानीयान, जिरयान शनासी फ़िक्री फ़रहंगी सलाफी गिरी मआसिर, 1396 शम्सी, पेज 162-172
  40. फ़रमानीयान, जिरयान शनासी फ़िक्री फ़रहंगी सलाफी गिरी मआसिर, 1396 शम्सी, पेज 172-174
  41. करमी, सलाफ़ीगिरी वा ख़ावरमियाने अरबी, 1393 शम्सी, पेज 26-29
  42. दाइश एलाम ख़िलाफ़त करद, बोल्टन न्यूज़, 9 तीर 1393
  43. जिनायाते दाइशः रोज़ शुमार 83 जिनायात दाइश दर सरासरे जहान, पाएगाह इत्तेला रसानी प्याम आफ़ताब, 15 तीर 1396
  44. फ़ीरोज़ाबादी, तकफ़ीर हाए दाइश रा बेहतर बेशनासीम, 1393 शम्सी, पेज 55
  45. पूर हुसैन व सैफ़ी, तक़ाबुले न्यू सलाफ़ीहा बा शिआयान वा पयामदहाए आन बर इत्तेहाद जहान इस्लाम, पेज 18-20

स्रोत

  • इब्ने बदरान दमिश्की, अब्दुल क़ादिर बिन अहमद, अल मदखल एला मज़हब अल इमाम अहमद इब्ने हंबल, शोधः अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मोहसिन तुर्की, बैरूत, मोअस्सेसा अल रिसाला, दूसरा संस्करण, 1401 हिजरी – 1981 ई
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