अहले क़िबला की तकफ़ीर

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अहले क़िबला की तकफ़ीर या मुसलमानो की तकफ़ीर (अरबीःتكفير أهل القبلة) का अर्थ है किसी मुसलमान की ओर से दूसरे किसी मुसलमान या समूह की ओर कुफ्र की निसबत देना जिसके परिणाम स्वरूप उनकी हत्या की जाती है अथवा उनकी संपत्ति को ज़ब्त कर लिया जाता है। वहाबीयो ने एकेश्वरवाद (तौहीद), तीर्थयात्रा (ज़ियारत) और तवस्सुल जैसी शिक्षाओं की अपनी विशेष तफ़सीर के कारण अपने विचारो का विरोध करने वाले मुसलमानो विशेष रूप से शियो की तकफ़ीर की है।

अधिकांश इस्लामी विद्वान ज़बान से शहादतैन जारी करने को इस्लाम और कुफ्र की सीमा मानते हैं। और इस्लामी धर्म के अनुयायियों की तकफ़ीर को जायज़ नहीं मानते हैं। हालाँकि, इस्लाम के पूरे इतिहास में कुछ मुसलमानों ने अपने विरोधी धर्मों के अनुयायियों की तकफीर की है। ख़वारिज द्वारा हकमीयत के मामले में इमाम अली (अ) की तकफ़ीर और पहले ख़लीफ़ा (अबू बक्र) के शासनकाल के दौरान अहले-रिद्दा की तकफ़ीर करना अहले क़िबला की तकफ़ीर के पहले उदाहरणों में से है। उसके बाद कमोबेश यही सोच इस्लामी धर्मावलंबियों में पनपी और इसके कारण कई लोग मारे गये। हालांकि तकफीर केवल धर्मों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि कभी-कभी कुछ न्यायविदों ने अपने समुदाय के दार्शनिकों (फलसफ़ीयो) और रहस्यवादियों (ओरफ़ा) की तकफ़ीर की है। इसके अलावा ख़ल्क़े क़ुरआन के फ़ितने में क़ुरआन के ख़लक़ और क़ुरआन के क़दीम होने के नज़रिये वालो ने एक दूसरे की तकफ़ीर की थी और यह दोनो ही सुन्नी थे।

वहाबीवाद के गठन के बाद अहले क़िबला की तकफ़ीर अधिक प्रचलित गई है। इसके अतिरिक्त वहाबी विचारों के प्रभाव में और उनके समर्थन से आईएसआईएस जैसे समूह बनाए गए हैं, जो मुसलमानों विशेषकर शियो की तकफ़ीर करते हैं।

तकफ़ीर के बारे में कई रचनाएँ हैं, जिनमें से अधिकांश इस विचार की आलोचना पर ध्यान केंद्रित करके लिखी गई हैं। इसके अलावा तकफ़ीर के जवाब और तकफ़ीरी समूहो की आलोचना पर सम्मेलन आयोजित किए गए हैं।

महत्व एवं स्थिति

तकफ़ीर एक न्यायशास्त्रीय और विश्वानी (कलामी) मुद्दा है जिसे इस्लाम के इतिहास में हमेशा एक व्यक्ति या मुसलमानों के समूह के प्राण और संपत्ति को जायज़ समझा गया है और उसके परिणाम स्वरूप बहुत से युद्ध हुए हैं और बहुत से लोग मारे गए और बहुत से बेघर हुए।[१] इसके अलावा कुछ इस्लामी धर्मों के अनुयायियों को तकफ़ीर के आरोप के परिणामस्वरूप, उनके कुछ पवित्र स्थानों और इमारतों को भी नष्ट कर दिया गया।[२] हाल की शताब्दियों में, तकफ़ीरी विचारों के प्रसार और इन विचारों के अनुयायियों द्वारा मुसलमानों की तकफ़ीर प्रचलित होने के कारण तकफ़ीर की बहसे अधिक समृद्ध हो गई है और इस संबंध मे बहुत सी रचनाएँ लिखी गई हैं[३] और सम्मेलन आयोजित किए गए हैं।

अवधारणा और प्रकार

तकफ़ीर का अर्थ है किसी मुसलमान को काफ़िर कहना[४] या अहले किबला की ओर कुफ्र के लिए जिम्मेदार ठहराना।[५] हालांकि कुफ्र को फ़िक्ही कुफ्र और एतेक़ादी कुफ्र में विभाजित किया गया है, और उनमें से प्रत्येक को मुस्लिम कहने के कुछ निश्चित परिणाम होते हैं:

  • फ़िक़्ही कुफ्र या स्पष्ट अविश्वास का अर्थ है इस्लाम धर्म को छोड़ना। इसलिए जो मुसलमान फ़िक़्ही काफ़िर हो जाता है उसके साथ काफ़िर वाला व्यवहार किया जाता है।
  • एतेक़ादी कुफ्र या आंतरिक अविश्वास का अर्थ आस्था से विमुख होना है, इस्लाम से नहीं, इसलिए जो सलमान एतेक़ादी काफिर हो जाता है उसके साथ मुसलमानो की भांति व्यवहार किया जाता है, ना कि काफ़िर की तरह। जैसे पाखंडी जो देखने मे तो मुसलमान है लेकिन ईमान नहीं रखता है।[६] इमाम खुमैनी के अनुसार, शिया स्रोतो में जो रिवायते विरोधियों के कुफ्र के संबंध मे पाई जाती है यदि उनको स्वीकार कर भी लिया जाए तो वो एतेक़ादी कुफ्र से संबंधित है।[७]

अहले क़िबला की तकफ़ीर पर रोक

इस्लामी स्कूलों के न्यायविदों के फतवे के अनुसार, अहले क़िबाल की तकफीर करना जायज़ नहीं है, बल्कि बिना कारण किसी मुसलमान पर कुफ़्र का आरोप लगाना भी सज़ा देने का आदेश है।[८] न्यायविदों के अनुसार काफ़िर और मुसलमान का अंतर ज़बान पर शहादतैन जारी करना और पुनरूत्थान मे विश्वास है।[९] इसलिए कुछ मामलों में न्यायविदों ने कुछ संप्रदायों की मान्यताओं के गलत होने के बावजूद उनकी तकफ़ीर करने से परहेज किया है।[१०]

तकफ़ीर की पृष्ठभूमि

मुसलमानों के बीच अहले क़िबला की तकफ़ीर करना पहली चंद्र शताब्दी मे पैगंबर (स) के स्वर्गवास के बाद ही शुरू हो गई थी। अबू बक्र की खिलाफत के दौरान, मुसलमानों का एक समूह खिलाफत के विरोधियों को काफिर और धर्मत्यागी कहता था और उनसे युद्ध करते थे। इन युद्धों को रिद्दा के युद्धों के रूप में जाना जाता है।[११] इस्लामी इतिहास के शोधकर्ता रसूल जाफ़रयान (जन्म 1343 शम्सी) के अनुसार अहले रिद्दा मे मालिक बिन नुवैरा जैसे लोग मुसलमान थे और नमाज़ पढ़ते थे, लेकिन अबू बक्र की ख़िलाफ़त को स्वीकार नहीं करते थे और पैगंबर (स) के अहले-बैत का शासन चाहते थे।[१२] इसी कारण उन्होंने तत्कालीन ख़लीफ़ा को ज़कात देने से इनकार कर दिया और इस कारण से उन्हें धर्मत्यागी और काफिर कहा गया और मार दिया गया।[१३]

इमाम अली (अ) के शासनकाल के दौरान ख़वारिज हकमयत स्वीकार करने के कारण इमाम अली (अ) की तकफ़ीर करते थे।[१४] इसी आधार पर मुआविया बिन अबी सुफ़यान से युद्ध जारी रखने मे आप का साथ नही दिया।[१५] और आपके विरूद्ध नहरवान की लड़ाई लड़ी।[१६]

इसी तरह शिया मरज़ा ए तक़लीद जाफ़र सुब्हानी (जन्म 1308 शम्सी) ने अपनी पुस्तक, "बहूस फ़िल मेलल वन नेहल" में वर्णन किया है कि ख़ल्क़े क़ुरआन के फ़ितने मे भी ख़ल्क़े क़ुरआन को स्वीकारने वाले और क़ुरआन को कदीम स्वीकारने वालो ने एक दूसरे की तकफ़ीर की। जबकि दोनो समूह सुन्नी संप्रदाय से संबंध रखते थे।[१७] इसके बाद से हमेशा मुसलमानों के कुछ समूहो द्वारा कुछ व्यक्ति या समूह की तकफ़ीर होती रही है। हाल की कुछ शताब्दीयो मे सलफ़ी और वहाबी विचार के प्रसार के कारण उनके अनुयायीयो की ओर से दूसरे मुसलमानो विशेषकर शियो की तकफ़ीर हुई है।

उद्देश्य

मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब के गुरु शेख मुहम्मद बिन सुलेमान कुर्दी:

“ हे अब्दुल वहाब के बेटे! भगवान के लिए, ईश्वर के लिए मैं तुमको मुसलमानों के बारे में बात करने से परहेज करने की सलाह देता हूं... और तुम सार्वजिनक रूप से मुसलमानों की तकफ़ीर करने का अधिकार नहीं रखते; क्योंकि तुम इस उम्मत के एक अंश हो। और मुस्लिम समुदाय को छोड़ने वाले व्यक्ति पर कुफ़्र निस्बत वास्तविकता के करीब है; क्योंकि वह ईमान वालों के मार्ग को छोड़ कर दूसरे मार्ग पर चल पड़ा है।”

तारीख बाएगानी, ज़ैनी दहलान, फ़ित्नातुल वहाबीया, पेज 5 और 6।

मुसलमानों की तकफ़ीर निम्नलिखत विभिन्न उद्देश्यो से की गई है:

  • धार्मिक सिद्धांतों की ग़लत फ़हमी और सिद्धांतहीन समझ: ख़वारिज ने आय ए “لَا حُكْمَ إِلَّا لِله (ला हुक्मा इल्ला लिल्लाह)”(अल्लाह के अतिरिक्त किसी और के लिए हुक्म नही है) से अपनी विशेष समझ को ध्यान मे रखते हुए सिफ़्फ़ीन की लड़ाई में हकमियत की घटना पर आपत्ति जताई और इमाम अली (अ) की तकफ़ीर की।[१८] इसी प्रकार वहाबीयो ने तौहीद (एकेश्वरवाद), शिर्क (बहुदेववाद), ज़ियारत (तीर्थयात्रा), तबर्रुक (प्रसाद) और तवस्सुल के संबंध मे इस्लामी शिक्षाओं की अपनी विशेष समझ के साथ बहुत से मुसलमानों, विशेषकर शियो की तकफ़ीर करते हैं।[१९] वहाबीवाद के संस्थापक मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब (मृत्यु 1206 हिजरी) दूसरे मुसलमानो विशेषकर शियो की संपत्ति को हलाल और उनकी हत्या को जायज़ समझते है क्योंकि वह ईश्वर तक पहुंचने के लिए वसीले (साधन) की तलाश करते है और अंबिया वा सालेहीन को शफ़ीअ क़रार देते है।[२०]
  • अक़ाइद (मान्यताएँ): ख़वारिज उन मुसलमानो की तकफ़ीर करते थे जो बड़े पापो मे लिप्त हो।[२१] वो बड़े पाप मे लिप्त व्यक्ति की तकफ़ीर के लिए "وَمَن لَّمْ يَحْكُم بِمَا أَنزَلَ اللَّـهُ فَأُولَـٰئِكَ هُمُ الْكَافِرُونَ वमल लम याहकुम बेमा अन्ज़लल लाहो फ़ऊलाएका होमुल काफ़ेरून"[२२] से इस्तिदलाल करते थे।[२३] लेकिन मुसलमानों की दृष्टि मे बड़ा पाप करना आस्था (ईमान) से विमुख (खारिज) होना है, इस्लाम से खारिज होना नहीं है, परिणामस्वरूप वह फ़ासिक (पाखंडी) है नाकि काफ़िर।[२४] इसी प्रकार ख़ल्क़े कुरआन के फितना में अबुल हसन अश्अरी[२५] और अहमद इब्ने हंबल[२६] ने ख़ल्क़े क़ुरआन के स्वीकार करने वालो को और मोतज़ेला तथा क़ुरआन के मखलूक़ ना होने (क़दीम) वाले उनकी तकफ़ीर करते थे।[२७] शिया हदीसों मे ग़ुलात (जो लोग मासूम इमामों (अ) के संबंध मे गुलुव या बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते है) को और तफ़वीज़ स्वीकारने वालो (मुफ़व्वेज़ा) को काफ़िर कहा गया है।[२८]
  • मज़हबी तअस्सुब (धार्मिक पूर्वाग्रह): ऐतिहासिक रिपोर्टों के अनुसार इस्लामी धर्मों के कुछ अनुयायी एक-दूसरे की तकफीर करते थे। उदाहरण के लिए, चंद्र कैलेंडर की 8वीं शताब्दी में, सुन्नी धर्मों के अनुयायी इब्ने तैमीया के व्यवहार के कारण हंबलीयो की तकफ़ीर करते थे, और दूसरी ओर इब्ने हातिम हंबली ने हंबलीयो के अलावा सभी मुसलमानों की तकफ़ीर करते थे।[२९] इसी प्रकार यह तकफ़ीर सुन्नीयो की ओर से शियो के लिए और शियो की ओर से सुन्नी के लिए भी की जाती थी। वहाबी मुफ़्ती इब्ने जिबरीन शियो को तहरीफ़े क़ुरआन, अधिकांश सहाबा को काफ़िर मानने, सुन्नीयो को नजिस और काफ़िर मानने तथा अली (अ) और अली की संतान के बारे मे ग़ुलुव करने के कारण काफ़िर सझते थे।[३०] हालांकि शिया इस तरह की मान्यता (अक़ीदा) नहीं रखते हैं। और अधिकांश शिया और सुन्नी न्यायविदों का मानना है कि अन्य धर्मों के अनुयायी काफिर नहीं हैं[३१] और यदि कुछ किताबो मे ऐसी बात आई है तो उसकी व्याख्या कुफ्रे एतेक़ादी से होगी।[३२]
  • इरफ़ानी और फ़लसफ़ी (रहस्यमय और दार्शनिक) विषय: कुछ मुस्लिम विद्वानों ने दार्शनिकों और रहस्यवादियों की तखफीर की है। जैसे कि ग़ज़ाली ने अपनी पुस्तक तहाफ़्त अल-फ़लासेफ़ा मे दार्शनिकों की तकफ़ीर की है।[३३] इसके अलावा, सय्यद मुहम्मद बाक़िर ख़ुनसारी (मृत्यु 1313 हिजरी) के अनुसार न्यायविदों के एक समूह ने मुल्ला सदरा के कुछ मतालिब जोकि जाहिरी तौर पर शरीयत के अनुकूल नही थे, के कारण उनकी तकफ़ीर कर दी थी।[३४]

इसी तरह अपने अस्तित्व के लिए सरकारों का देशद्रोह और इस्लाम के दुश्मनों की साजिशे तकफ़ीर के विचार के प्रसार के अन्य कारण माना गया है।[३५]

परिणाम

अहले-क़िबला की तकफ़ीर के कुछ निम्नलिखित परिणामों का उल्लेख किया गया है:

  • मुसलमानों की हत्या: इस्लाम के इतिहास में, तकफ़ीर के अपराध में हमेशा बहुत से मुसलमानों को मार डाला गया।
  • ऐतिहासिक स्मारकों और धार्मिक इमारतों का विनाश: वहाबीयो ने मुसलमानो के पवित्र और ऐतिहासिक स्थलो जैसे इमामो के हरम को शिर्क का बहाना देकर नष्ट कर दिया।
  • दुनिया में इस्लाम का हिंसक चेहरा दिखाना: इस्लाम के नाम पर तकफ़ीरी समूहों के प्रदर्शन ने इस्लाम के विरोधियों को इस धर्म को हिंसक धर्म कहने पर मजबूर कर दिया।[३६]

इसके अलावा, इस्लामी सरकारों के ख़िलाफ़ सशस्त्र विद्रोह और उन्हें कमज़ोर करना और तकफ़ीरीयो की कैद मे आने वाली मुसलमान महिलाओ को हलाल समझना तकफ़ीर के अन्य परिणामो मे से एक है।[३७]

तकफ़ीरी समूहों का गठन

पिछली शताब्दी मे वहाबीवाद और आईएसआईएस जैसे दूसरे समूह जो वहाबीवाद के समर्थन और उससे प्रभावित होकर बने थे उन्होने मुसलमानों की तकफ़ीर की है और उनके नरसंहार के अलावा उनकी संपत्ति को ज़ब्त करने का कदम उठाया है।[३८] यह लोग उन आयतो को मुसलमानो पर लागू करते है जो वास्त मे बहुदेववादियों और काफिरों के बारे में उतरी है।[३९] जबकि मुस्लिम विद्वानों ने इस कार्य का विरोध करते है और कहते है केवल धर्म का आवश्यक खंडन अर्थात तौहीद और नबूवत का खंडन करना ही किसी मुस्लमान के कुफ्र का कारण बनता है।[४०] वो भी ऐसा खंडन तोकि जानबूझ कर किया जाए और जिसकी कोई तावील ना हो सकती हो।[४१]

अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन

2014 में (इस्लामी विद्वानो की दृष्टि से चरमपंथियों और तकफ़ीरी धाराओ की अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन) के शीषर्क अंतर्गत मरजा ए तक़लीद आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी के नेतृत्व में क़ुम में एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन में 80 देशों के शिया और सुन्नी विद्वान उपस्थित थे।[४२] इस सम्मेलन में भेजे गए 830 लेख "कुंगर ए जहानी जिरयानहाए इफ़राती वा तकफ़ीरी" शीर्षक के तहत 10 खंडों में प्रकाशित किए गए हैं। साथ ही इसका स्थायी सचिवालय ने विभिन्न भाषाओं में 40 पुस्तकें प्रकाशित की हैं और फ़ारसी और अरबी भाषाओं में इस्लामिक उम्माह पत्रिका लॉन्च की है।[४३]

मोनोग्राफ़ी

तकफ़ीर के संबंध मे इसके जवाब के रूप मे बहुत सी पुस्तके लिखी गई है। किताब (किताब शनासी तकफीर) मे अरबी और फ़ारसी के 528 रचनाओ को परिचित कराया गया है उनमे से 235 किताबे है और 240 लेख तथा 49 थीसिस है और उनमे से चार किताबे विशेष अंक के रूप मे है।[४४]

  • दार अल-तक़रीब इराक़ के संस्थापक शेख फ़ुआद काज़िम मिक़दादी की पुस्तक "आरा ए उलमा ए मुस्लेमीन वा फ़तावाहुम फ़ी तहरीमे तकफ़ीरे इत्तेबाइल मतज़ाहिब अल इस्लामीया" है। इस पुस्तक में इस्लामी धर्मों के अनुयायीयो की तकफ़ीर के निषेध को लेकर शिया और सुन्नी विद्वानों के फतवे बयान किए गए है। तेहरान के मजमा अल-सक़लैन अल-इल्मी ने इस पुस्तक को 1428 हिजरी में प्रकाशित किया।[४५]
  • हुसैन अहमद अल-खशिन द्वारा "अल-इस्लाम वल उनुफ़ क़राअते फ़िज़ ज़ाहिरतित तकफ़ीर" इस किताब मे इस्लाम के दृष्टिकोण से तकफीर और हिंसा के मुद्दे का विश्लेषण किया है और तकफ़ीर के सिद्धांतों और मानदंडों, इसकी उत्पत्ति और प्रकारों के साथ-साथ तकफ़ीरीयो की विशेषताओ को बयान किया गया है। इस किताब का 244 पर आधारित "इस्लाम व ख़ुशूनतः निगाही नो बे पदीदे ए तकफीर" शीर्षक से 2011 में फारसी भाषा मे अनुवाद हुआ है।[४६]
  • बिंदु सूची का आयटम

संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. आक़ा सालेही वा दिगरान, तकफ़ीर वा बररसी पयामदहाए आन दर जवामे इस्लामी, पेज 95
  2. आक़ा सालेही वा दिगरान, तकफ़ीर वा बररसी पयामदहाए आन दर जवामे इस्लामी, पेज 105
  3. नसर इस्फ़हानी, किताब शनासी तकफ़ीर, पेज 258
  4. फ़यूमी, ज़ेल ए तकफ़ीर
  5. अब्दुल मुनइम, मोजम अल मुस्तलेहात वल अलफ़ाज़ अल फ़िक़्हीया, दार अल फ़ज़ीला, भाग 1, पेज 487
  6. देखेः इमाम ख़ुमैनी, किताब अल तहारत, 1427 हिजरी, भाग 3, पेज 437-438
  7. देखेः इमाम ख़ुमैनी, किताब अल तहारत, 1427 हिजरी, भाग 3, पेज 443
  8. देखेः शहीद सानी, अल रौज़ातुल बहईया, 1403 हिजरी, भाग 9, पेज 175; जज़ीरी, किताब अल फ़िक्ह अला अलमजाहिब अल अरबआ, 1410 हिजरी, भाग 5, पेज 194-195
  9. देखेः इमाम ख़ुमैनी, किताब अल तहारत, 1427 हिजरी, भाग 3, पेज 437-438
  10. देखेः अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 54, पेज 246-247
  11. मुकद्देसी, अल बदा वल तारीख, मकतबा अल सक़ाफ़ा अल दीनीया, भाग 5, पेज 152
  12. जाफ़रयान, तारीख ख़ुलफ़ा, 1380 शम्सी, भाग 2, पेज 32
  13. वाक़ेदी, अल रद्दा, 1410 हिजरी, पेज 106-107
  14. सुब्हानी, बुहूस फ़िल मेलल वन नेहल, 1427-1428 हिजरी, भाग 5, पेज 97
  15. दैनूरी, अल अखबार अल तुवल, 1368 शम्सी, पेज 206
  16. याक़ूबी, तारीख अल याक़ूबी, बैरूत, भाग 2, पेज 192-193
  17. सुब्हानी, बुहूस फ़िल मेलल वन नेहल, 1427-1428 हिजरी, भाग 2, पेज 336
  18. दैनूरी, अल अखबार अल तुवल, 1368 शम्सी, पेज 206
  19. देखेः मुग़नीया, हाज़ेही हेयल वहाबीया, 1408 हिजरी, पेज 74-76
  20. मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब, कश्फ अल शुबहात, 1418 हिजरी, पेज 7
  21. शहरिस्तानी, अल मेलल वन नेहल, 1387 हिजरी, भाग 1, पेज 122, 128, 135
  22. सूर ए माएदा, आयत न 44
  23. जुर्जानी, शरह अल मुवाफ़िक़, 1325 हिजरी, भाग 8, पेज 334-338
  24. सुब्हानी, मुहाज़ेरात फ़िल इलाहीयात, 1428 हिजरी, पेज 462
  25. अबुल हसन अश्अरी, अल इबाना, 1397 हिजरी, पेज 89
  26. इब्ने हंबल, अल सुन्ना, 1349 हिजरी, पेज 15
  27. सुब्हानी, बुहूस फ़िल मेलल वन नेहल, 1427-1428 हिजरी, भाग 2, पेज 336
  28. हुर्रे आमोली, वसाइल अल शिया, 1409 हिजरी, भाग 28, पेज 348
  29. हैदर, इल इमाम अल सादिक़ वल मज़ाहिब अल अरबआ, दार अल तारूफ, भाग 1, पेज 200-202
  30. इब्ने जबरीन, अल लूलू अल मकीन मिन फ़ताविश शेख इब्ने जबरीन, पेज 25
  31. जज़ीरी, किताब अल फ़िक्ह अला अल मज़ाहिब अल अरबआ, 1410 हिजरी, भाग 5, पेज 194-195
  32. देखेः इमाम ख़ुमैनी, किताब अल तहारत, 1427 हिजरी, भाग 3, पेज 432
  33. देखेः ग़ज़ाली, तहाफुत अल फ़लासेफ़ा, 1382, पेज 94-295
  34. ख़ानसारी, रौज़ात अल जन्नात, 1390 शम्सी, भाग 4, पेज 121
  35. हसनलू, ज़मीनेहा वा अवामिल पैदाइशे तकफ़ीर दर मियाने मुसलमानान वा पयामदहाए आन दर जहाने इस्लाम, पेज 54
  36. कुंगरे जहानी जिरयानहाए इफराती व तकफ़ीरी अज़ दीदगाहे उलमा ए इस्लाम
  37. आक़ा सालेही वा दिगरान, तकफ़ीर वा बररसी पयामदहाए आन दर जवामे इस्लामी, पेज 100-110
  38. देखेः बख़्शे शेख अहमद वा बहारी, बर रसी ऐडयालोजी गुरूहे तकफीरी-वहाबी दौलते इस्लामी इराक़ वा शाम (अदाइश), पेज 141-144
  39. आक़ा सालेही वा दिगरान, तकफ़ीर वा बररसी पयामदहाए आन दर जवामे इस्लामी, पेज 97
  40. देखेः रशीद रज़ा, मजल्ला अल मीनार, भाग 35, पेज 573
  41. देखेः रशीद रज़ा, मजल्ला अल मीनार, भाग 35, पेज 573
  42. कुंगरे जहानी जिरयानहाए इफराती व तकफ़ीरी अज़ दीदगाहे उलमा ए इस्लाम
  43. 40 उनवान किताब कुंगरे ज़िद्दे तकफ़ीर बे पंज जबान जिंदा दुनिया चाप शुदे अस्त, खबरगुज़ारी रस्मी हौज़ा
  44. नस्र अंसारी, किताब शनासी तकफ़ीर, 1393 शम्सी, पेज 21
  45. नस्र अंसारी, किताब शनासी तकफ़ीर, 1393 शम्सी, पेज 25
  46. नस्र अंसारी, किताब शनासी तकफ़ीर, 1393 शम्सी, पेज 29

स्रोत

  • कुंगरे जहानी जिरयानहाए इफराती व तकफ़ीरी अज़ दीदगाहे उलमा ए इस्लाम, दबीर खाना कुंगरे जहानी मुक़ाबला बा जिरयानहाए इफराती वा तकफ़ीरी, प्रकाशन 13 ख़ुरदाद 1395 शम्सी, वीजीट 10 उर्दीबहिश्त 1401 शम्सी
  • 40 उनवान किताब कुंगरे ज़िद्दे तकफ़ीर बे पंज ज़बान जिंदा दुनिया चाप शुदे अस्त, खबरगुज़ारी रस्मी हौज़ा, प्रकाशन 8 बहमन 1394 शम्सी, वीजीट 10 उर्दीबहिश्त 1401 शम्सी
  • आक़ा सालेही, अली, ख़ुस्रो मोमीनी वा मुज्तबा जाफ़री वा अली रज़ा साबिरयान, तकफ़ीर वा बर रसी पयामदहाए आन दर जवामे इस्लामी, मुतालेआत फ़िक्ह वा उसूल, दौरा ए दोव्वुम क्रमांक 2, पाईज़ वा ज़मिस्तान 1398 शम्सी
  • अबुल हसन अश्अरी, अली बिन इस्माईल, अल इबाना अन उसूल अल दयाना, शोधः फ़ोक़ीया हुसैन महमूद, क़ाहिरा, दार अल अंसार, 1397 शम्सी
  • इब्ने जबरीन, अल लूलू अल मकीन मिन फ़तावी अल शेख इब्ने जबरीन, आअदाद, अब्दुल्लाह बिन युसूफ़ अल इजलान, तंसीक़ः सलमान बिन अबदुल क़ादिर अबू ज़ैद
  • इब्ने हंबल, अहमद, अल सुन्ना, संशोधनः अब्दुल्लाह बिन हसन आले अल शेख, मक्का, अल मत्बआ अल सलफ़ीया वा मकतबेतहा, 1349 हिजरी
  • इमाम ख़ुमैनी, सय्यद रूहुल्लाह, किताब अल तहारत, तेहरान, मोअस्सेसा तंज़ीम व नशर आसारे इमाम ख़ुमैनी, 1427 हिजरी
  • बख्शी शेख अहमद, महदी व बहनाम बहारी वा पैमान वहाबपूर, बर रसी ऐडयालोजी गुरूहे तकफ़ीरी-वहादी दौलते इस्लामी इराक़ वा शाम (दाइश), फ़सल नामा इल्मी वा पुज़ूहिशी उलूम सियासी दानिशगाह बाक़िर अल उलूम, दौरा 16, क्रमांक 46, ज़मिस्तान 1392 शम्सी
  • जुर्जानी, अली बिन मुहम्मद, शरह अल मुवाफ़िक़, शोधः मुहम्मद बदरुद्दीन नअसानी हलबी, मिस्र, 1325 हिजरी (उफसुत क़ुम, 1370 शम्सी)
  • जज़ीरी, अब्दुर रहमान, किताब अल फ़िक़्ह अला मज़ाहिब अल अरबआ, बैरूत, 1410 हिजरी
  • जाफ़रयान, रसूल, तारीख ख़ुलफ़ा, क़ुम, दलील , 1380
  • ख़ानसारी, सय्यद मुहम्मद बाक़िर, रौज़ात अल जन्नात फ़ी अहवाल अल उलामा वस सादात, क़ुम, इस्माईलीयान, पहला संस्करण, 1390 शम्सी
  • हुर्रे आमोली, मुहम्मद बिन युसूफ़, वसाइल अल शिया एला तहसील मसाइल अल शरीया, मोअस्सेसा आले अल बैत, क़ुम, 1409 हिजरी
  • हसन लू, अमीर अली, ज़मीनेहा वा अमाविल पैदाईश तकफ़ीर दर मियान मुसलमानान वा पयामदहाए आन दर जहाने इस्लाम, जिरयान शनासी दीनी मारफ़ती दर अरसे बैनुल मिलल, क्रमांक 16, 1396 शम्सी
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  • रशीद रज़ा वा दिगरान, मजल्ला अल मीनार
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