शहादतैन
यह लेख एक न्यायशास्त्रीय अवधारणा से संबंधित एक वर्णनात्मक लेख है और धार्मिक आमाल के लिए मानदंड नहीं हो सकता। धार्मिक आमाल के लिए अन्य स्रोतों को देखें। |
कुछ अमली व फ़िक़ही अहकाम |
फ़ुरू ए दीन |
---|
शहादतैन (अरबीः شھادتین) का अर्थ है दो गवाही देना है। जिसमे एक अल्लाह के एक होने और दूसरी पैग़म्बरे इस्लाम (स) की रिसालत की गवाही है। और एकेश्वरवाद तथा पैंगबर (स) की नबूवत को स्वीकार करना इस्लाम के सिद्धांतों मे से है। शहादतैन को इस्लाम और कुफ़्र के बीच की सीमा माना जाता है। जो व्यक्ति अपनी जबान से शहादतैन कहे वह मुसलमान है और उस पर इस्लाम के सभी क़ानून लागू होते है। मुसल्मान प्रत्येक नमाज़, अज़ान, तशाहुद और अक़ामत मे शहादतैन पढ़ते है।
शिया धर्मशास्त्रियो (शिया फ़ुक़्हा) ने धर्मशास्त्र (फ़िक्ही किताबो) के विभिन्न अध्यायों में शहादत के संबंध में चर्चा की है। उनके फ़तवे के अनुसार, नमाज़े मय्यत (नमाज़े जनाज़ा) की पहली तकबीर के बाद शहादतैन का कहना वाजिब है। इसी प्रकार हालते एहतेज़ार (प्राण त्यागने का समय) और कफ़न पर शहादतैन का लिखना मुस्तहब है।
परिभाषा
शहादतैन अल्लाह के एक होने और मुहम्मद (स) की रिसालत की गवाही देना है।[१] धर्मशास्त्रियो की दृष्टि मे इन दो वाक्यो के कहने या इन वाक्यो के प्रमाण रखने वाले वाक्यो के कहने से शहादतैन साबित होती है।[२]
“ | ” |
शेख़ सदूक़ का कहना है कि शहादतैन इस्लाम धर्म के सिद्धांतो मे से दो सिद्धांत अर्थात एकेश्वरवाद (तोैहीद) और नबूवत का स्वीकार करना है।[३]
फ़िक़्ही और क़ानूनी हैसियत
मुसलमान एकेश्वरवाद और रिसालत के स्वीकार करने को इस्लाम और कुफ़्र के बीच सीमा मानते है। अर्थात जो व्यक्ति अपनी ज़बान से शहादतैन कहता है उसपर इस्लाम के अहकाम लागू होते है।[४] उसका शरीर पाक है, और उसकी जान, माल और नामूस सम्मानित (मोहतरम) है।[५] अली बिन हुसैन ज़ैन उल-आबेदीन (अ) ने दुआ ए अबू हम्ज़ा सुमाली मे शहादतैन की मौखिक गवाही के प्रभाव का जिक्र करते हुए, इसे वक्ता के जीवन की सुरक्षा का कारण माना है (भले ही वह अपने दिल से इस पर विश्वास न करे, जैसे एक पाखंडी द्वारा शहादतैन कहना)[६] [नोट-1]
शेख़ सदूक़ के अनुसार कुछ रिवायतो मे ईमान (आस्था) से मुराद शहादतैन लिया है।[७] अल्लामा तबातबाई के अनुसार ईमान के कुछ मरातिब (अंश) है जिसमे पहला मरतबा शहादतैन के प्रमाण पर दिल की गहराई से अक़ीदा (विश्वास) रखना है जिससे इस्लाम के फ़रई अहकाम (उप-आज्ञाओ) के पालन की ओर ले जाता है।[८]
धर्मशास्त्रो मे शहादतैन के संबंध तहारत के अध्याय मे मय्यत के अहकाम[९], बाबे तिजारत[१०], नमाज़[११] और जेहाद[१२] मे चर्चा हुई है।
रीति-रिवाज और अहकाम
- अधिकांश शिया धर्मशास्त्रियो के अनुसार नमाज़े मय्यत मे पहली तकबीर के पश्चात शहादतैन पढ़ना वाजिब है। कुछ धर्मशास्त्रि इसे पढ़ना मुस्तहब समझते है।[१३]
- मोहतज़र उस व्यक्ति को कहते है जो प्राण त्याग रहा होता है को शहादतैन और आइम्मा (अ) की इमामत की तलक़ीन देना मुस्तहब है।[१४]
- मृतक के कफ़न पर लिखना मुस्तहब है कि वह शहादतैन को स्वीकार करता है।[१५]
- अधिकांश धर्मशास्त्रियो के अनुसार जुमे की नमाज़ के उपदेश मे शहादतैन पढ़ना जुमे की नमाज़ पढ़ाने वाले के लिए मुस्तहब है।[१६]
- साहिबे जवाहिर के कथनानुसार व्यापार के आदाब मे से यह है कि व्यापार के स्थान पर उपस्थित होकर जबान पर शहादतैन जारी करे।[१७]
इस्लामी संस्कृति मे शहादतैन का इस्तेमाल
इस्लामी दुआओ और अनुष्ठानो मे शहादतैन का उपयोग बहुत अधिक है।[१८] उदाहरण स्वरूप मुस्लमान नमाज़ के प्रत्येक तशाहुद[१९], अज़ान, अक़ामत[२०] मे शहादतैन पढ़ते है। इस्लामी वास्तुकला, सुलेख और सिक्को पर शहादतैन लिखने का रिवाज है।
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर उल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 41, पेज 630
- ↑ देखेः नजफ़ी, जवाहिर उल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 41, पेज 630
- ↑ देखेः शेख़ सुदूक़, मन ला याहजेरो हुल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 299
- ↑ देखेः नजफ़ी, जवाहिर उल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 41, पेज 630; तबातबाई, अल-मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 301-303
- ↑ देखेः नजफ़ी, जवाहिर उल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 21, पेज 143
- ↑ मफ़ातीह उल-जिनान, दुआ ए अबू हम्ज़ा सुमाली
- ↑ शेख़ सुदूक़, मन ला याहजेरो हुल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 299-300
- ↑ तबातबाई, अल-मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 301-303
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर उल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 12, पेज 40; यज़्दी तबातबाई, अल-उरवातुल वुस्क़ा, 1409 हिजरी, भाग 1, पेज 417
- ↑ देखेः नजफ़ी, जवाहिर उल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 22, पेज 452
- ↑ देखेः नजफ़ी, जवाहिर उल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 11, पेज 245-246 और 264
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर उल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 41, पेज 630
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर उल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 12, पेज 40
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर उल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 4, पेज 14
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर उल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 9, पेज 224
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर उल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 11, पेज 216; नजफी, कश्फ़ उल-ग़िता, 1422 हिजरी, भाग 3, पेज 255
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर उल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 22, पेज 452
- ↑ देखेः शेख़ तूसी, मिस्बाह उल-मुताहज्जिद, 1411 हिजरी, भाग 1, पेज 15-16 और 49
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर उल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 10, पेज 245-246
- ↑ शेख़ तूसी, मिस्बाह उल-मुताहज्जिद, 1411 हिजरी, भाग 1, पेज 29; नजफ़ी, जवाहिर उल-कलाम, 1404 हिजरी, भाग 9, पेज 81-82
स्रोत
- शेख़ सुदूक़, मुहम्मद बिन अली, मन ला याहजेरो हुल फ़क़ीह, क़ुम, दफ़्तरे इंतेशाराते इस्लामी वाबस्ता जामे उल-मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मिया क़ुम, 1413 हिजरी
- शेख़ तूसी, मुहम्मद बिन हसन, मिस्बाह उल-मुताहज्जिद वा सेलाहिल मुताअब्बिद, बैरूत, मोअस्सेसा फ़िक़्ह उश-शिया, 1411 हिजरी
- तबातबाई, मुहम्मद हुसैन, अल-मीज़ान फ़ी तफ़सीरिल क़ुरान, क़ुम, दफ़्तरे इंतेशाराते इस्लामी वाबस्ता जामे उल-मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मिया क़ुम, 1417 हिजरी
- नजफ़ी, जाफ़र बिन ख़िज़्र, कश्फ़ उल-ग़िता अन मुबहेमात इश-शरिया तिल ग़र्रा, क़ुम, दफ़्तरे तबलीग़ाते इस्लामी हौज़ा ए इल्मिया क़ुम, 1422 हिजरी
- नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर उल-कलाम फ़ी शरह शरा इल-इस्लाम, बैरूत, दार ए एहयाइत तुरास अल-अरबी, 1404 हिजरी
- यज़्दी तबातबाई, सय्यद मुहम्मद काज़िम, अल-उरवा तुल वुस्क़ा फ़ीमा ताअम्मम बेहिल बलवा, बैरूत, मोअस्सेसा तुल आ-लमी लिल मतबूआत, 1409 हिजरी
नोट 1. فَإِنَّ قَوْماً آمَنُوا بِأَلْسِنَتِهِمْ لِيَحْقِنُوا بِهِ دِماءَهُمْ فَأَدْرَكُوا مَا أَمَّلُوا، وَ إِنَّا آمَنَّا بِكَ بِأَلْسِنَتِنا وَقُلُوبِنا لِتَعْفُوَ عَنَّا فَأَدْرِكْنا مَا أَمَّلْنا फ़ाइन्ना क़ौमन आमनू बेअलसे नतेहिम लेयाहक़ेनू बेहि देमाअहुम फ़अदरकू मा अम्मलू, वा इन्ना आमन्ना बेका बेअलसे नतेना वा क़ोलूबेना लेताअफ़ोवा अन्ना फ़अदरकना मा अम्मलना, अनुवादः लोग अपने जीवन को बचाने के लिए मौखिक ईमान ले आए, और उन्होंने वह हासिल किया जो वे चाहते थे, और हम जबान और दिल से आप पर ईमान लाए ताकि आप हमें वह मिल जो हम चाहते है दें, अतः हमें वह प्रदान करें जो हम चाहते है।