अहले क़िबला

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अहले क़िबला उन सभी मुसलमानों को संदर्भित करता हैं जो काबा को अपना क़िबला मानते हैं। इस शब्द का प्रयोग मुसलमानों की तकफ़ीर को रोकने के लिए किया जाता है।

अहले क़िबला (अरबी: أهل القبلة) का जीवन, संपत्ति और प्रतिष्ठा को अधिकांश शिया और सुन्नी विद्वानों द्वारा सम्मानित माना जाता है, इस आधार पर मुसलमानों की तकफ़ीर और उनके बंदियों की हत्या करना अवैध है, और उनके मृतकों के पार्थिव शरीर पर नमाज़े जनाज़ा पढ़ना अनिवार्य है।

परिभाषा

अहले क़िबला वो लोग है जो इस्लाम धर्म से संबंधित हैं।[१] इस आधार पर मुस्लमानो के सभी संप्रदाय काबा को अपना क़िबला मानते है अतः सभी मुसलमान अहले क़िबला है।[२] शिया टीकाकार (मुफ़स्सिर) जवाद मुग़निया अहले क़िबला और अहले क़ुरआन को एक मानते है। और इससे उन लोगो को समझा जाता है जो अल्लाह, पैगंबर, और उनकी सुन्नत पर ईमान रखते है और (क़िबला) काबा की ओर नमाज़ पढ़ते है।[३] इसी प्रकार सुन्नी समुदाय के हनफ़ी संप्रदाय से संबंध रखने वाले मुल्ला अली क़ारी के अनुसार अहले क़िबला उसको कहते है जो धर्म की किसी भी ज़रूरीयात से इंकार ना करे। इसीलिए उनके अनुसार सुन्नी विद्वानो के दृष्टिकोण से जो मनुष्य धर्म की ज़रूरीयात मे से किसी एक का इंकार करे जैसे ब्रह्माण का पुराना होना, हश्र का इंकार करे तो उसकी गणना अहले किबला मे नही होगी चाहे वह अपने पूरे जीवन इबादत मे व्यस्त रहा हो।[४]

फ़िक़्ही अहकाम

अधिकांश शिया और सुन्नी विद्वान अहले क़िबला के जीवन, संपत्ति और प्रतिष्ठा को मोहतरम मानते है।[५] इसी प्रकार किसी मुस्लमान की तकफ़ीर[६] करना और उसे काफ़िर बताना तथा उनके बंदियो की हत्या करना वैध नही है।[७] और उनके मृतको के पार्थिव शरीर पर नमाज़े जनाज़ा पढ़ना वाजिब है।[८] मुल्ला अली क़ारी के कथन अनुसार अबू हनीफ़ा और मुहम्मद बिन इदरीस शाफ़ेई अहले क़िबला की तकफ़ीर नही करते थे।[९] और उनका यह भी कहना है कि अधिकांश सुन्नी धर्मशास्त्री (फ़ुक़्हा) और मुफ़्ती अहले क़िबला की तकफ़ीर नही करते है।[१०]

इसके बावजूद इस्लाम के कुछ संप्रदाय दूसरे संप्रदाय के अनुयायीयो की तकफ़ीर और उनकी हत्या करने को वैध समझते है।[११] वहाबीवाद के संस्थापक मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब और उस व्यक्ति की हत्या को वाजिब समझता है जो पैगंबरो, फ़रिश्तों और औलिया ए इलाही को अपनी शफीअ (शिफ़ाअत करने वाला) और अल्लाह से निकट होने के लिए वसीला बनाते है। चाहे वह तौहीद ए रबूबियत का इक़रार कर चुके हो।[१२]

नासेबी, ख़वारिज और वो मुस्लमान जो धर्म की अनिवार्यता का इंकार करते है चाहे काबा को अपना क़िबला समझते हो इसके बावजूद उन पर कुफ्र[१३] और निजासत (अपवित्रता)[१४] का हुक्म लगाया गया है।

धर्मशास्त्र मे अहले किबला का शब्द

धर्मशास्त्र मे अहले किबला का शब्द का वर्णन मय्यत के अहकाम[१५] और जेहाद के अहकाम[१६] मे हुआ है। और यह बात कही गई है कि जंगे जमल से पहले अहले क़िबला से युद्ध करने के नियम नही जानते थे और इस युद्ध मे उन्होने इमाम अली (अ) से सीखा।[१७]

फ़ुटनोट

  1. नराक़ी, रसाइल वा मसाइल, भाग 2, पेज 335
  2. दहख़ुदा, लुग़त नामे,
  3. मुग़्निया, तफ़सीर उल-काशिफ़, भाग 1, पेज 231
  4. क़ारी, शरह किताब ए फ़िक्ह उल-अकबर, पेज 258
  5. रुस्तमी, ममनूईयत ए तकफ़ीर ए अहले क़िबला अज़ निगाहे फ़क़ीहान वा मुताकल्लेमान ए तशय्यो वा तासन्नुन, पेज 71
  6. नमूने के लिए देख, क़ारी, शरह किताब ए फ़िक्ह उल-अकबर, पेज 258; तफ़ताज़ानी, शरह उल-मक़ासिद, भाग 5, पेज 228
  7. मुंतज़ेरि, दिरासात फ़ी विलायत अल-फ़क़ीह वा फ़िक़्हिद दुवालत अल-इस्लामिया, भाग 3, पेज 296
  8. तूशी, तहज़ीब अल-इस्लाम, भाग 3, पेज 328
  9. क़ारी, शरह किताब ए फ़िक्ह उल-अकबर, पेज 257
  10. क़ारी, शरह किताब ए फ़िक्ह उल-अकबर, पेज 258
  11. रुस्तमी, ममनूईयत ए तकफ़ीर ए अहले क़िबला अज़ निगाहे फ़क़ीहान वा मुताकल्लेमान ए तशय्यो वा तासन्नुन, पेज 71
  12. मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब, कश्फ उश शुब्हात, पेज 7
  13. नराक़ी, रसाइल वा मसाइल, भाग 2, पेज 336
  14. मुहक़्क़िक़ करकी, जामे उल-मक़ासिद, भाग 1, पेज 164
  15. तूसी, अल-इस्तिबसार, भाग 1, पेज 468
  16. मुस्तदरक ए वसाइल उश-शिया, भाग 11, पेज 55
  17. जमी अज़ मोहक़्क़ेकान, जिहाद दर आईना ए रिवायात, भाग 1, पेज 188

स्रोत

  • तफ़ताज़ानी, सादुद्दीन, शरह उल-मक़ासिद, तहक़ीक अब्दुर्रहमान अमीरा, क़ुम, अल शरीफ़ अल-रज़ी, 1409 हिजरी
  • जमी अज़ मोहक़्क़ेक़ान दर पज़ूहिशगाहे तहक़ीक़ाते इस्लामी, जिहाद दर आईना ए रिवायात, क़ुम, इंतेशारात ए ज़मज़म ए हिदायत, 1428 हिजरी
  • रुस्तमी, अब्बास अली, ममनूईयत ए तकफ़ीर ए अहले क़िबला अज़ निगाहे फ़क़ीहान वा मुताकल्लेमान ए तशय्यो वा तासन्नुन, पज़ूहिश हाए एतेक़ादी कलामी, क्रमांक 30, ताबिस्तान 1397 शम्सी
  • क़ारी, मुल्ला अली बिन सुलतान, शरह किताब ए फ़िक्ह उल-अकबर, अली मुहम्मद दंदल, बैरूत, दार उल-कुतुब उल-इल्मिया मंशूरात ए मुहम्मद अली बैज़ून, 1428 हिजरी, 2007
  • तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल-इस्तिब्सार फ़ी मा इख़्तलाफ़ा मिनल अख़बार, तेहरान, दार उल-कुतुब उल-इस्लामिया, 1390 हिजरी
  • तूसी, मुहम्मद बिन हसन, तहज़ीब उल-अहकाम, तेहरान, दार उल-कुतुब उल-इस्लामिया, 1407 हिजरी
  • करकी, अली बिन हुसैन, जामे उल-मक़ासिद फ़ी शरह उल-क़वाइद, क़ुम, मोअस्सेसा आले अल-बैत (अ.स.), 1414 हिजरी
  • मुहम्मद बिन अब्दुल वहाब, कशफ उश-शुबहात, सऊदी अरब, विज़ारत अल-शऊन उल- इस्लामिया वल औक़ाफ़ वल दावत वल इरशाद अल मलाकत उल-अरबीया अल-सऊदीया, 1418 हिजरी
  • मुग़्निया, मुहम्मद जवाद, तफ़सीर उल-काशिफ़, तेहरान, दार उल-कुतुब उल-इस्लामिया, 1424 हिजरी
  • मुंतज़ेरि, हुसैन अली, दिरासात फ़ी विलायत अल-फ़क़ीह वा फ़िक़्हिद दुवालत अल-इस्लामिया, क़ुम, नश्र ए तफक्कुर, 1409 हिजरी
  • नराक़ी, अहमद बिन मुहम्मद, रसाइल वा मसाइल, कुम, कुंगरे नराक़ीऐन मुल्ला महदी वा मुल्ला अहमद, 1422 हिजरी