जेहाद ए ज़ब्बी का सिद्धांत

जेहाद ए ज़ब्बी या इस्लाम के अस्तित्व की रक्षा का सिद्धांत, जेहाद के संबंध में एक सिद्धांत है जिसका अर्थ है इस्लाम और धार्मिक मूल्यों के अस्तित्व की रक्षा करना।[१] इस सिद्धांत के अनुसार, जेहाद ए ज़ब्बी केवल इस्लाम के संरक्षण के लिए है। इसलिए, यदि दुनिया के किसी भी हिस्से में उत्पीड़कों द्वारा इस्लाम के विनाश का डर है, तो इस्लाम की रक्षा करना सभी मुसलमानों पर वाजिबे ऐनी है।[२]
जेहाद ए ज़ब्बी का सिद्धांत हौज़ा ए इल्मिया क़ुम मे फ़िक़्ह और उसूल के दरस ए ख़ारिज के प्रोफ़ेसर मुहम्मद जवाद फ़ाज़िल लंकरानी द्वारा प्रस्तावित किया गया था। फ़ाज़िल लंकरानी ने न्यायविदों के स्पष्ट शब्दों से जेहाद ए ज़ब्बी को निकाला[३] और इसे प्राथमिक जेहाद और रक्षात्मक जेहाद के विपरीत, जेहाद के प्रकारों में से एक के रूप में रखा।[४] प्राथमिक जेहाद और रक्षात्मक जेहाद के विपरीत, जेहाद ए ज़ब्बी सशर्त नहीं है, और विद्रोह की प्रभावशीलता के बारे में निश्चितता की आवश्यकता नहीं है; इसी तरह, जान, माल या इज़्ज़त (प्रतिष्ठा और सम्मान) का डर भी इसे वाजिब होने से नहीं रोकता, और अगर कोई इस तरह मारा जाता है, तो उसे शहीद माना जाता है और उस पर शहीद के अहकाम लागू होते हैं।[५]
फ़ाज़िल लंकरानी ने जेहाद ए ज़ब्बी को क़ुरआन,[नोट १] हदीसो,[६][नोट २] इज्माअ,[७] अक़ली दलील,[८] और हिस्बिया मामलों को छोड़ने पर शारेअ की अनिच्छा पर आधारित माना है।[९]
फ़ाज़िल लंकरानी के अनुसार, इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन का असली कारण इस्लाम की रक्षा करना था, न कि प्राथमिक जेहाद या रक्षात्मक जेहाद; क्योंकि इमाम ने अपनी मर्ज़ी से मक्का छोड़ा था।[१०] उनके विचार में, इमाम हुसैन (अ) का आंदोलन अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुंकर पर आधारित नहीं था; क्योंकि इस आंदोलन में अम्र बिल मारूफ़ और नही अनिल मुंकर की कोई भी शर्त, जैसे कि प्रभाव जानने की आवश्यकता और व्यक्तिगत व आर्थिक नुकसान का अभाव, मौजूद नहीं थी। इमाम के आंदोलन का लक्ष्य धर्म की रक्षा करना था; क्योंकि धर्म के दिफ़ाअ से बढ़कर कोई पुण्य नहीं है, और उसे नष्ट करने से बड़ा कोई पाप नहीं है।[११]
वह लेबनान में इज़राइल के विरुद्ध फ़िलिस्तीनी जनता और हिज़्बुल्लाह के संघर्ष और आईएसआईएस के विरुद्ध युद्ध को भी जेहाद ए ज़िब्बी के उदाहरण मानते हैं।[१२]
फ़ुटनोट
- ↑ फ़ाज़िल लंकरानी, जेहाद ए ज़िब्बी, 1401 हिजरी, पेज 7।
- ↑ फ़ाज़िल लंकरानी, जेहाद ए ज़िब्बी, 1401 हिजरी, पेज 32।
- ↑ फ़ाज़िल लंकरानी, जेहाद ए ज़िब्बी, 1401 हिजरी, पेज 30।
- ↑ फ़ाज़िल लंकरानी, जेहाद ए ज़िब्बी, 1401 हिजरी, पेज 52।
- ↑ फ़ाज़िल लंकरानी, जेहाद ए ज़िब्बी, 1401 हिजरी, पेज 15।
- ↑ हुमैरी क़ुमी, क़ुर्ब अल असनाद, 1413 हिजरी, पेज 345।
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 22, पेज 24-26।
- ↑ सब्जवारी, मोहज़्जब अल अहकाम, दार अल तफ़सीर, भाग 15, पेज 101
- ↑ फ़ाज़िल लंकरानी, जेहाद ए ज़िब्बी, 1401 हिजरी, पेज 25।
- ↑ फ़ाज़िल लंकरानी, जेहाद ए ज़िब्बी, 1401 हिजरी, पेज 12।
- ↑ फ़ाज़िल लंकरानी, जेहाद ए ज़िब्बी, 1401 हिजरी, पेज 13।
- ↑ फ़ाज़िल लंकरानी, जेहाद ए ज़िब्बी, 1401 हिजरी, पेज 51।
नोट
- ↑ सूर ए हज, आयत 39, 40 सूर ए तौबा, आयत 123 सूर ए बक़रा, आयत 193 सूर ए नेसा, आयत 75-76
- ↑ फ़क़ाला लहुर रेज़ा (अ) ... लाकिन योकातेलो अन बैज़तिल इस्लामे, फ़इन्ना फ़ी ज़हाजे बैज़तिल इस्लामे दोरूसा जिक़्रे मुहम्मदिन अलैहिस सलामो। (अनुवाद:इमाम रज़ा (अलैहिस्सलाम) ने उनसे कहा: "... बल्कि वह इस्लाम की रक्षा के लिए लड़ेगा, क्योंकि अगर इस्लाम का सार नष्ट हो गया तो पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) की याद भी मिट जाएगी।"
स्रोत
- हुमैरी क़ुमी, अब्दुल्लाह बिन जाफ़र, क़ुर्ब अल असनाद, बैरूत, मोअस्सेसा आले अल बैत (अ), पहला संस्करण 1413 हिजरी।
- सब्ज़ावारी, सय्यद अब्दुल आला, मोहज़्ज़ब अल अहकाम फ़ी बयान हलाल वल हराम, क़ुम, दार अल तफ़सीर, बिना तारीख़।
- फ़ाज़िल लंकरानी, मुहम्मद जवाद, जेहाद ए ज़िब्बी, (जोहुद व दिफ़ाअ अज़ कियाने इस्लाम), क़ुम, मरकज़े फ़िक़्ही आइम्मा ए अत्हार (अ), 1401 हिजरी।
- नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल कलाम फ़ी शरह शराए अल इस्लाम, संशोधनः अब्बास कूचानी व अली आख़ूंदी, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, सातवां संस्करण, 1404 हिजरी।