आय ए सैफ़
आय ए सैफ़ | |
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आयत का नाम | आय ए सैफ़ |
सूरह में उपस्थित | सूर ए तौबा |
आयत की संख़्या | 5 |
पारा | 10 |
नुज़ूल का स्थान | मदीना |
विषय | एतेक़ादी |
अन्य | बहुदेववादियो के साथ व्यवहार |
सम्बंधित आयात | सूर ए हज आयत न 5, सूर ए तौबा आयत न 29, सूर ए बक़रा आयत न 90, 91 और 93 |
आय ए सैफ़ या आय ए क़ेताल (अरबीःآية السّيف أو آية القِتال ) सूर ए तौबा आयत न 5 मुसलमानों को चार महीने की समय सीमा देने के पश्चात बहुदेववादियों को मारने या उन्हें पकड़ने और घेरने का आदेश देती है; जब तक वे इस्लाम में परिवर्तित नहीं हो जाते। शिया और सुन्नी टिप्पणीकारों के अनुसार, इस आयत में बहुदेववादियों का अर्थ उन बहुदेववादियों से है जिन्होंने पैग़म्बर (स) के समय वाचा को तोड़ दिया था। हालाँकि, सलफ़ी-जिहादी समूह प्राथमिक जिहाद के लिए इसी आयत का हवाला देते हैं।
कुछ लोगों ने इस आय ए सैफ़ को शांति, जिज़्या और फ़िदया के विषय पर कुछ आयतों का हनन (नासिख़) माना है; दूसरी ओर, कुछ का मानना है कि यह आयत किसी आयत की हनन (नासिख) नहीं है; बल्कि अगली आयत द्वारा आवंटित (तख़सीस) किया गया है जिसमें परम परमात्मा पैग़म्बर (स) को निर्देश देता हैं कि "यदि बहुदेववादियों में से कोई आपसे परमात्मा का वचन सुनने के लिए शरण मांगता है, तो उसे अनुमति दें और फिर उसे एक सुरक्षित स्थान पर ले जाएं।"
सूर ए तौबा की आयत न 29 और सूर ए हज की आयत न 39 को भी आय ए सैफ़ और क़ेताल कहा जाता है।
आयत का परिचय
आय ए सैफ़ या क़ेताल सूर ए तौबा की पाँचवीं आयत है। इस आयत के अनुसार, कहा गया है कि वर्ष 9 हिजरी मे मुसलमानों को चार महीने की समय सीमा के बाद बहुदेववादियों के साथ कठोरता से निपटने, जैसे उन्हें मारने, पकड़ने और घेरने का आदेश दिया गया था।[१]
इस आयत के अनुसार, यदि बहुदेववादी निर्दिष्ट अवधि समाप्त होने से पहले इस्लाम में परिवर्तित हो जाते हैं और इस्लामी अनुष्ठानों का पालन करते हैं, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण नमाज़ और ज़कात हैं, तो वे सुरक्षित रहेंगे और बिना किसी अंतर के उन सभी सुविधाओ का आनंद लेंगे जिन सुविधाओ का मुसलमान आनंद लेते हैं।[२] नमाज़ कायम करना और ज़कात देना का आयत मे उल्लेख पश्चाताप और विश्वास का संकेत माना है।[३] क़ुरआन के टिप्पणीकार मकारिम शिराज़ी ने कहा कि आयत मे उल्लेखित चार विषय "मार्गो को बंद करना, घेराबंदी करना, पकड़ना और मारना" वैकल्पिक नहीं हैं; बल्कि, समय, स्थान और लोगों की स्थितियों को ध्यान में रखते हुए, इनमें से प्रत्येक उपयुक्त चीज़ को लागू किया जाना चाहिए।[४]
दिए गए चार महीनों में कौन से महीने शामिल हैं, इस बारे में टिप्पणीकारों की अलग-अलग राय है। कुछ लोगों ने इन महीनों को निषिद्ध (हराम महीने) माना है।[५] दूसरी ओर, अधिकांश टिप्पणीकारों ने समय सीमा के चार महीनों को अन्य महीने माना, जिनमें वर्ष 9 हिजरी में ज़िल-हिज्जा से लेकर वर्ष 10 हिजरी के 10 रबीअ अल-सानी तक शामिल हैं।[६]
कुछ न्यायशास्त्रियों ने आय ए सैफ़ का हवाला देते हुए तारिक अल-सलात (नमाज़ छोड़ने वाले) को धर्मत्यागी और उसे मार डालना वाजिब माना है; क्योंकि इस आयत में, नमाज़ शर्तों में से एक है जो एक बहुदेववादी की हत्या को रोकती है।[७] कुछ टिप्पणीकार, सूर ए तौबा की आयत न 29[८] [नोट १] और सूर ए हज की आयत न 39 [नोट २] को भी आय ए सैफ़ और क़ेताल मानते है।[९]
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— क़ुर्आन: सूर ए तौबा, आयत न 5 |
संधि तोड़ने वाले बहुदेववादियों के साथ युद्ध
टिप्पणीकार समझते हैं कि इस आयत में बहुदेववादी वे बहुदेववादी हैं जिन्होंने पैग़म्बर (स) के समय में संधि को तोड़ दिया था, जिन्होंने पैग़म्बर (स) और मुसलमानों के साथ एक संधि बनाई थी, लेकिन संधि को तोड़ दिया था[१०] कुछ ने कहा है कि बहुदेववादी षड़यंत्रकारी बहुदेववादी और काफ़िर हरबी थे।[११]
ऐसा कहा गया है कि सुन्नी टिप्पणीकार रशीद रज़ा (मृत्यु: 1935 ई.) ने इस आयत और क़ेताल से संबंधित अन्य आयतो की व्याख्या में, बहुदेववादियों को मक्का के बहुदेववादी माना है, क्योंकि परमेश्वर क़ेताल की आयतो मे उनके बार-बार संधि (अनुबंध) तोड़ने पर जोर दिया था।[१२] क़ुरआन के टिप्पणीकार मुहम्मद इज़्ज़त दरूज़ा (मृत्यु: 1984 ई.) का मानना है कि सूर ए तौबा की शुरुआती आयतों मे विषय वो बहुदेववादी हैं जिन्होंने संधि को तोड़ा और जिस समय पैग़म्बर (स) तबूक अभियान मे व्यस्थ थे उस समय उन लोगो ने मुसलमानो के खिलाफ साजिश की।[१३] उनके विश्वास के अनुसार, सभी बहुदेववादियों के बारे में इन आयतो की व्यापकता को थोपना है जो आयतो के संदर्भ और अर्थ को प्रतिबिंबित नहीं करती है।[१४]
कुछ शोधकर्ताओं ने कहा है कि सूर ए तौबा की आयत न 5 को सलफ़ी जिहादी समूहों द्वारा प्राथमिक जिहाद के लिए हवाला दिया गया है[१५] वे इस आयत को शांति और क्षमा की सभी आयतों का हनन मानते हैं, और उन्होंने इस आयत में सामान्य बहुदेववादियों, चाहे मुहारिब और गैर-मुहारिब दोनों माना है।[१६] दूसरी ओर, इस आयत से धर्म थोपने की गलत व्याख्या और धारणा को इस्लाम की छवि को विकृत करने का कारण माना गया है। जिसने मुसलमानों की आस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाला है।[१७]
आयत का नासिख़ या मंसूख़ होना
कुछ टिप्पणीकारों के दृष्टिकोण से यह आय ए सैफ़, क़ुरआन मे मौजूद बहुदेववादियो को क्षमा, शांति और उनसे फ़िदया लेने के संबंधित 124 आयतो के लिए नासिख़ है।[१८] कुछ ने क्षमा और शांति की आयतो के माध्यम से इस आयत को मंसूख़ माना है।[१९] जबकि कुछ दूसरो का कहना है कि आय ए सैफ़ और सूर ए मुहम्मद की आयत न 4 मे बहुदेववादियो से जिज़्या लेने की ओर इशारा हुआ है, और एक दूसरे के लिए नासिख़ नही बल्कि दोनो मोहकम आयते हैं; क्योंकि पैग़म्बर (स) ने बहुदेववादियों के खिलाफ युद्ध का आदेश दिया है और क्षमा और जिज़्या का भी आदेश दिया है।[२०]
कुछ टीकाकारों ने इस आयत को अगली आयत से संबंधित माना है।[२१] अगली आयत में ईश्वर पैग़म्बर (स) को निर्देश देता हैं कि यदि बहुदेववादियों में से कोई आपसे परमात्मा के वचन सुनने के लिए शरण मांगे, तो उसे अनुमति दें और फिर उसे एक सुरक्षित स्थान पर ले जाएं।[२२] [नोट ३] सुन्नी टिप्पणीकार रशीद रज़ा (मृत्यु: 1935 ई.) का मानना है कि यह आयत, आय ए सैफ़ को दर्शाती है, और ऐसा इसलिए है क्योंकि कुछ बहुदेववादियों ने परमेश्वर का कलाम नही सुना और उन तक परमेश्वर का निमंत्रण नहीं पहुंचा है। इस कारण से परमात्मा ने उनके लिए सच्चाई तक पहुंचने का रास्ता खुला रखा है और आय ए सैफ़ के हुक्म को विशेष दर्जा (तख़सीस) दिया है।[२३]
कुछ लोगों ने कहा है कि आय ए सैफ़ नासिख़ नही है; क्योंकि सूर ए तौबा की आयत न 29, जो आय ए सैफ़ के बाद आती है, जिसमे जिज़्या देने की स्थिति में अहले-किताब को स्वतंत्रता दी है।[२४]
फ़ुटनोट
- ↑ तबातबाई, अल-मीज़ान, 1390 हिजरी, भाग 9, पेज 152
- ↑ मुग़नीया, तफसीर अल काशिफ़, 1424 हिजरी, भाग 4, पेज 12
- ↑ बैज़ावी, अनवार अल तनज़ील व असरार अल तावील, 1418 हिजरी, भाग 3, पेज 71
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफसीर नमूना, 1371 शम्सी, भाग 7, पेज 292
- ↑ हाशमी रफ़संजानी, राहनुमा, 1386 शम्सी, भाग 7, पेज 16 नजफ़ी जवाहेरी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 2, पेज 33
- ↑ तबरेसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 5, पेज 12; तबातबाई, अल-मीज़ान, 1390 हिजरी, भाग 9, पेज 151
- ↑ उस्तुराबादी, आयात अल अहकाम, मकतब अल मेराजी, भाग 1, पेज 249
- ↑ ख़ूई, अल बयान, 1430 हिजरी, पेज 286
- ↑ मरकज़ इत्तेलात व मदारिक इस्लामी, फरहंग नामे लूम क़ुरआनी, 1394 शम्सी, भाग 1, पेज 415
- ↑ काशेफ़ी, तफसीर हुसैनी (मुवाहिब अलैह), किताब फ़रोशी नूर, पेज 398; फ़ैज़ काशानी, तफसीर अल साफी, 1415 हिजरी, भाग 2, पेज 322; अशकवरी, तफसीर शरीफ़ लाहिजी, 1373 शम्सी, भाग 2, पेज 227; बैयज़ावी, अनवार अल तंज़ील व असरार अल तावी, 1418 हिजरी, भाग 3, पेज 71
- ↑ क़रशी बनाई, तफसीर अहसन अल हदीस, 1375 शम्सी, भाग 4, पेज 188
- ↑ आरमीन, जिरयान हाए तफसीरी मआसिर, 1396 शम्सी, पेज 140
- ↑ आरमीन, जिरयान हाए तफसीरी मआसिर, 1396 शम्सी, पेज 395
- ↑ आरमीन, जिरयान हाए तफसीरी मआसिर, 1396 शम्सी, पेज 395
- ↑ लुत्फ़ी, नक़द दीदगाह सल्फ़ीया जेहादी दार बारए जेहाद इब्तेदाई बा तकये बर आय ए 5 सूर ए तौबा, पेज 35
- ↑ लुत्फ़ी, नक़द दीदगाह सल्फ़ीया जेहादी दार बारए जेहाद इब्तेदाई बा तकये बर आय ए 5 सूर ए तौबा, पेज 35
- ↑ शाइक़, हल तआरुज़ ज़ाहेरी बैन आयात सैफ़ व नफ़ी इकराह व तासीर आन दर मस्अले आज़ादी दर इंतेखाब दीन, पेज 82
- ↑ सीवती, अल इत़्क़ान, 1415 हिजरी, भाग 2, पेज 51 जज़ाएरी, उक़ूद अल मरजान, 1388 शम्सी, भाग 2, पेज 288
- ↑ अलनोहास, अल नासिख वल मंसूख, 1408 हिजरी, पेज 493
- ↑ शाह अब्दुल अज़ीमी, तफसीर इस्ना अशरी, 1363 शम्सी, भाग 5, पेज 22
- ↑ रशीद रज़ा, तफ़सीर अल मनार, 1990 इस्वी, भाग 10, पेज 159
- ↑ सूर ए तौबा, आयत न 6
- ↑ रशीद रज़ा, तफ़सीर अल मनार, 1990 इस्वी, भाग 10, पेज 159
- ↑ शाइक़, हल तआरुज़ ज़ाहेरी बैन आयात सैफ़ व नफ़ी इकराह व तासीर आन दर मस्अले आज़ादी दर इंतेखाब दीन, पेज 81
नोट
- ↑ قَاتِلُوا الَّذِینَ لَا یُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَلَا بِالْیَوْمِ الْآخِرِ وَلَا یُحَرِّمُونَ مَا حَرَّمَ اللَّهُ وَرَسُولُهُ وَلَا یَدِینُونَ دِینَ الْحَقِّ مِنَ الَّذِینَ أُوتُوا الْکِتَابَ حَتَّیٰ یُعْطُوا الْجِزْیَةَ عَنْ یَدٍ وَهُمْ صَاغِرُونَ؛ क़ातेलुल लज़ीना ला यूमेनूना बिल्लाहे वला बिलयौमिल आख़ेरे वला योहर्रेमूना मा हर्रमल्लाहो व रसूलोहू वला यदीनूना दीनल हक़्क़े मेनल लज़ीना ऊतुल किताबा हत्ता यूअतुल जिज़्यता अन यदिन वहुम साग़ेरूना, (अनुवादः हे मुसलमानो! अहले-किताब मे से जो लोग अल्लाह और रोज़े आख़िरत पर विश्वास नही रखते और परमेश्वर तथा रसूल की हराम की हुई चीज़ो को हराम नही जानते और दीने हक़ (इस्लाम) का च्यन नही करते उनसे युद्ध करो यहा तक कि वो झूठे बनकर (अपमानित होकर) हाथ से जिज़्या दे।)
- ↑ أُذِنَ لِلَّذِینَ یُقَاتَلُونَ بِأَنَّهُمْ ظُلِمُوا ۚ وَإِنَّ اللَّهَ عَلَیٰ نَصْرِهِمْ لَقَدِیرٌ؛ ओज़ेना लिल लज़ीना योक़ातलूना बेअन्नहुम ज़ोलेमू व इन्नल्लाहा अला नसरेहिम लक़दीर (अनुवादः उन उत्पीड़ितो को (दिफाई जिहाद की) अनुमति दी जाती है जिनसे युद्ध किया जा रहा है इस आधार पर कि उन पर अत्याचार किया गया है। और निसंदेह परमात्मा उनकी सहायता करने पर सक्षम है।)
- ↑ وَإِنْ أَحَدٌ مِنَ الْمُشْرِکِینَ اسْتَجَارَکَ فَأَجِرْهُ حَتَّیٰ یَسْمَعَ کَلَامَ اللَّهِ ثُمَّ أَبْلِغْهُ مَأْمَنَهُ ۚ ذٰلِکَ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌ لَا یَعْلَمُونَ؛ वइन अहदुम मिनल मुशरेकीनस तजारका फ़आजेरतन हत्ता यस्मआ कलामल्लाहे सुम्मा अबलेग़ोहू मअमनहू ज़ालेका बेअन्नहुम क़ौमुन ला यअलमूना (अनुवादः और हे रसूल अगर बहुदेववादीयो मे से कोई आप से शरण मांगे तो उसे शरण दे दो ताकि वह परमात्मा के शब्दो को सुने और फ़िर उसे सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दो। यह हुक्म इसलिए है कि यह लोग (हक़ का निमंत्रण) ज्ञान नही रखते।)
स्रोत
- उस्तराबादी, मीर्ज़ा मुहम्मद बिन अली, आयात अल-अहकाम, तेहरान, मकतब अल मेराजी
- आरमीन, मोहसिन, जिरयानहाए तफसीर मआसिर, तेहरान, 1396 शम्सी
- अशकवरी, मुहम्मद बिन अली, तफसीर शरीफ़ लाहीजी, तेहरान, दफ्तर नश्र दादत 1373 शम्सी
- बैयज़ावी, अब्दुल्लाह बिन उमर, अनवार अल तंज़ील व असरार अल तावील, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, 1418 हिजरी
- जज़ाएरी, सय्यद नेमातुल्लाह, उक़ूद अल मरजान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, क़ुम, नूर वही, 1388 शम्सी
- ख़ूई, सय्यद अबुल क़ासिम, अब-बयान फ़ी तफसीर अल कुरआन, क़ुम, मोअस्सेसा एहया आसार इमाम ख़ूई, 1430 हिजरी
- रशीद रज़ा, मुहम्मद, तफसीर अल मनार, मिस्र, अल हैयत अल मिस्रीया अल आम्मा लिल कुतुब, 1990 ईस्वी
- सीवती, जलालुद्दीन, अल इत्क़ान फ़ी उलूम अल क़ुरआन, क़ाहिरा, अल हैयत अल मिस्रीया अल आम्मा लिल कुतुब, 1415 हिजरी
- शाह अब्दुल अज़ीमी, हुसैन, तफसीर इस्ना अशरी, तेहरान, मीक़ात, 1363 शम्सी
- शाइक़, मुहम्मद रज़ा, हल्ले तआरुज़ जाहेरी बैना आयात सैफ़ व नफ़ी इकराह व तासीर आन दर मस्अले आज़ादी दर इंतेखाब दीन, पुजूहिश नामे तफसीर कलामी क़ुरआन, क्रमांक 9, बहार 1395 शम्सी
- तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अल मीज़ान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, बैरूत, मोअस्सेसा अल आलमी लिल मतबूआत, 1390 हिजरी
- तबरेसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमा अल बयान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, नासिर खुस्रू, 1372 शम्सी
- फ़ैज़ काशानी, मुहम्मद बिन शाह मुरतज़ा, तफसीर अल साफ़ी, तेहरान, मकतब अल सद्र, 1415 हिजरी
- क़रशी बनाई, अली अकबर, तफसीर अहसन अल हदीस, तेहरान, बुनयाद बेअसत, 1375 शम्सी
- काशेफ़ी, हुसैन बिन अली, तफसीर हुसैनी (मवाहीब अलैह), सरावान, किताब फरोशी नूर
- लुत्फ़ी, अली अकबर, नक़द दीदगाह सल्फ़ी जेहादी दर बारा ए जेहाद इब्तेदाई बा तक. बर यत 5 सूर ए तौबा, सिराज मुनीर, क्रमांक 27, पाईज़ 1396 शम्सी
- मरकज इत्तेलात व मदारिक इस्लामी, फ़रहंग नामा उलूम क़ुरआन, क़ुम, पुज़ूहिशगाह फ़रहंग इस्लामी, 1394 शम्सी
- मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफसीर नमूना, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामीया, 1371 शम्सी
- मुग़नीया, मुहम्मद जवाद, तफसीर अल काशिफ़, क़ुम, दार अल किताब अल इस्लामी, 1424 हिजरी
- नह्हास, अबू जाफ़र अहमद बिन मुहम्मद, अल नासिख व अल मंसूख, कुवैत, अल फलाह, 1408 हिजरी
- नजफ़ी जवाहेरी, जवाहिर अल कलाम, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, 1362 शम्सी
- हाशमी रफ़संजानी, अकबर, तफसीर राहनुमा, क़ुम, बूस्तान किताब, 1386 शम्सी