आय ए हर्स

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आय ए हर्स
आयत का नामआय ए हर्स
सूरह में उपस्थितसूर ए बक़रा
आयत की संख़्या223
पारा2
शाने नुज़ूलवैवाहिक संबंधों की सीमा के बारे में यहूदी मान्यताओं का खंडन करना
नुज़ूल का स्थानमदीना
विषयफ़िक़्ही, अख़लाक़ी

आय ए हर्स (अरबीः آية الحرث) सूर ए बक़रा की आयत न 223 का एक हिस्सा है, जिसमें पति पत्नि के बीच वैवाहिक संबंध और संतान बढ़ाने का जिक्र है। इस आयत में, अल्लाह ने महिलाओं की तुलना उस खेत से की है जिस प्रकार खेत मे बीज डाला जाता है उसी प्रकार इंसान अपनी पत्नि के माध्यम से अपनी प्रजाति को बढ़ाता है।

न्यायविदो ने अपने न्यायशास्त्र ग्रंथों में निकाह से संबंधित इस आयत से अहकाम हासिल किए है। अधिकांश मुजतहेदीन ने इस आयत मे मौजूद वाक्या «اَنّیٰ شِئْتُم؛ जिस तरह तुम चाहो» के आधार पर फ़तवा जारी किया है", गुदा के माध्यम से एक महिला के साथ संभोग भी स्वीकार्य है और इसकी पुष्ठि के लिए हदीसो का भी उल्लेख किया है। कुछ लोगों ने "اَنّیٰ अन्ना" की व्याख्या "किसी भी समय" के रूप में की है और उन रिवायतो का हवाला देते हुए जिन पर न्यायविदो ने अमल नही किया है, फतवा जारी किया है कि गुदा मे संबंध बनाना मकरूह है।

इस आयत के अंतिम भाग में, अल्लाह ने चेतावनी दी है कि उन्हें नेक कार्यों को प्राथमिकता देनी चाहिए, इलाही तक़वा का च्यन करे, और जान लें कि वे क़यामत के दिन अल्लाह से मिलेंगे और उनके सभी कर्मों का हिसाब लिया जाएगा।

नामकरण का कारण

सूर ए बक़रा की आयत न 223 को आय ए हर्स कहा गया है, जो पति पत्नि के बीच वैवाहिक संबंध और संतान बढ़ाने को संदर्भित करती है।[१] इस आयत में अल्लाह ने महिलाओं की तुलना खेत या कृषि योग्य भूमि से करते हुए पीढ़ी के उत्पादन और प्रजनन में महिलाओं की विशेष भूमिका के बारे में बात की है।[२] वैवाहिक मुद्दों के क्षेत्र में क़ुरआन ने किनाया और इस्तेआरा के माध्यम से बात पहुचाने की ओर क़ुरआन में नैतिकता, शिष्टाचार का पालन, शब्दो की शुद्धता और विनम्रता को दर्शाया है।[३] कुछ विद्वानो के अनुसार क़ुरआन ने अवधारणओ के बयान के संबंध मे महिला के लिए खेत या कृषि योग्य भूमि का शब्द प्रयोग करके बेहतरीन और उपयुक्त शब्द का प्रयोग किया है।[४] कुछ लोगो ने यह भी कहा है कि महिला की तुलना खेत से करने का कारण यह है कि जिस प्रकार खेत मे बीज डाला जाता है उसी प्रकार पुरूष का वीर्य औरत के गर्भ मे प्रवेश करके संतान बढ़ाने का सबस बनता है।[५] कुछ विद्वानो ने इस आयत मे महिला को खेत की तरह बताया है कुछ लोग इसे मजाज़ और कुछ लोग इसे इस्तेआरा बताते है।[६]

शान ए नुज़ूल

सूर ए बक़रा की आयत न 223 के शान ए नुज़ूल के संबंध में इमाम रज़ा (अ) से सुनाई गई रिवायतो के आधार पर, यह आयत महिलाओं के साथ संभोग के बारे में कुछ यहूदी मान्यताओं का खंडन करने के लिए नाज़िल हुई थी। वे महिलाओं के साथ संभोग को केवल आगे से ही मानते थे और उनका मानना था कि महिला की योनी में पीछे से संभोग करने से बच्चा भैंगा (एक चीज़ को दो देखने वाला) पैदा होता है। इसी कारण से, इस यह आयत नाज़िल हुई और इस काम को वैध बताया।[७] जबकि, इस आयत के लिए दूसरी शान ए नुज़ूल का भी उल्लेख किया गया है।[८]

आय ए हर्स के अनुसार औरत से संभोग करने का शरई हुक्म

न्यायविदों ने इस आयत का उपयोग "वती अल-मरात दोबोरन" (पत्नि के साथ गुदा मे संभोग करना) के मुद्दे पर चर्चा की है और उसूली विद्वानो ने इस आयत पर "अल-अम्रो अकीब अल-हज्र" (निषेध के बाद आदेश) के मुद्दे पर चर्चा की है।[९]

शिया न्यायविदों ने आय ए हर्स का हवाला देते हुए महिला के साथ संभोग के विभिन्न तरीक़ो के शरई हुक्म के संबंध मे विभिन्न मत पेश किए है। उनमे से अधिकांश न्यायविदो ने आयत मे «اَنّیٰ» «अन्ना» शब्द «कही भी», «कही से» «किसी भी प्रकार» अथवा «किसी भी तरीक़े से» की व्याख्या की है और शरीयत के अनुसार महिला के साथ गुदा मे संभोग के वैध होने का इसी आयत का हवाला देते है।[१०] और कुछ हदीसों से इस अर्थ की पुष्टि करके उन्होंने इस अमल को जायज़ माना है।[११]

दूसरी ओर, कुछ न्यायविदों ने "अन्ना" की व्याख्या "किसी भी समय" के रूप में की है और दावा किया है कि आय ए हर्स महिला के साथ गुदा मे संभोग की अनुमति को व्यक्त नहीं करती है[१२] और विभिन्न हदीसों के कारण,[१३] हदीसों की बहुतायत जिन्होंने इस अमल को हराम किया है और इस संबंध में शोहरते फ़त्वाई के कारण न्यायविदो ने इस अमल मे कराहत शदीदा पाए जाने की बात कही है, और दूसरे न्यायविदो ने इसे मकरूह समझते हुए इसके जायज होने को महिला की सहमति की शर्त लगा दी है।[१४]

कुछ लोगों ने "क़द्देमू लेअनफ़ोसेकुम " (अपने लिए पहले से भेजो) वाक्यांश को एक दस्तावेज़ के रूप में रखा है कि गुदा संभोग हराम है। उनके अनुसार, आय ए हर्स केवल उस संभोग की अनुमति देती है जो प्रजनन कर सकता है; और चूंकि गुदा के माध्यम से संभोग के माध्यम से बच्चे को जन्म देना संभव नहीं है, तो संभोग का यह तरीका स्वीकार्य नहीं है।[१५] कुछ टिप्पणीकारों ने "क़द्देमू लेअनफ़ोसेकुम" संबोधन को "धर्मी बच्चे" का संकेत माना है।[१६] इस तर्क के साथ कि ऐसे बच्चे के अच्छे कर्म उसके माता-पिता के लिए भी माने जाते हैं [१७] तफ़सीर अल-मीज़ान के लेखक सय्यद मुहम्मद हुसैन तबातबाई ने आय ए हर्स मे उल्लेखित इलाही तक़वा को वैवाहिक मुद्दो मे अधिकारों का पालन करने से व्याख्या की है।[१८]

क्या आय ए हर्स में महिला का अपमान किया गया है?

कुछ लोगों ने आय ए हर्स मे प्रयोग होने वाले शब्द महिला तुम्हारे लिए खेत के समान है को महिला के पद का अपमान मानते हुए महिला के साथ एक प्राकर के दुराचार के वैध होने का कारण माना जाता है।[१९] इस कथन के समर्थन में कुछ लोग उनकी ओर से कुछ रिवायतो का हवाला भी दिया गया है;[२०] जैसे कि सूर ए बक़रा की आयत न 187 या सूर ए हुजरात की आयत न 13, जो पहचान और मानव स्थिति के संदर्भ में पुरुषों और महिलाओं की समानता का संकेत देती है। आय ए हर्स नसल बढ़ाने जैसे उद्देश्य को ध्यान मे रख कर पुरूषो और महिलाओं के शारीरिक अंतर का वर्णन कर रही है दूसरी बात यह कि यह शारीरिक और फ़ीज़ीकल अंतर न पुरूषो के पद और स्थान को बढ़ाता है और ना ही महिलाओ के लिए उनके पद और सम्मान को घटाने और उनके अपमान का सबब बनती है।[२१] यह भी कहा गया है कि समानता का अर्थ यह नही है कि दो चीज़ो को एक समझा जाए, बल्कि इन दोनो के बीच स्पष्ट समानता व्यक्त करना है।[२२]

शिया टिप्पणीकार मकारिम शिराज़ी और अल्लामा तबातबाई का मानना है कि आय ए हर्स का उद्देश्य केवल मानव समाज में महिलाओं के अस्तित्व की आवश्यकता को व्यक्त करना है; उनके अनुसार, अकेले बीजों का कोई मूल्य नहीं है और यदि खेती नहीं होगी, तो बीज पूरी तरह से नष्ट हो जायेंगे और मानव जीवन और अस्तित्व खतरे में पड़ जायेगा; यदि महिलाएँ न हों तो यह वैसा ही है।[२३]

ईश्वर से मुलाक़ात

सूर ए बक़रा की आयत न 223 के अंतिम भाग में कहा गया है: وَ اتَّقُواْ اللَّهَ وَ اعْلَمُواْ أَنَّکُم مُّلَاقُوهُ وَ بَشِّرِ الْمُؤْمِنِین वत्तक़ुल्लाहा वअलमू अन्नकुम मुलाकूहू व बश्शेरिल मोमेनीना (अनुवादः और ख़ुदा से डरो और जान लो कि तुम उससे मिलोगे और ईमान वालों को खुशखबरी सुनाओगे)।[२४] इस आयत मे मुलाक़ूहो का शब्द इस्तेमाल हुआ है असका अर्थ है उससे मुलाक़ात करेगे, यह मुलाकात क्या होगी, दो कथन बयान हुए है:[२५]

  • पहला कथनः ईश्वर से मुलाकात होगी, और आयत अपने श्रोताओं को इलाही तक़वा का अभ्यास करने और यह जानने के लिए कहती है कि वे ईश्वर से मिलेंगे[२६] ईश्वर से मुलाकात क़यामत के दिन होगी[२७] यह स्पष्ट है कि मिलना आँखों से देखने के अर्थ से भिन्न है।[२८] आयत के इस भाग में अल्लाह ने चेतावनी दी है कि उन्हें धार्मिक कार्यों को प्राथमिकता देनी चाहिए, तकवा ए इलाही का च्यन करना चाहिए, और जानना चाहिए कि वे ईश्वर से मिलेंगे। पुनरुत्थान और उनके सभी कर्म गिने जायेंगे।[२९]
  • दूसरा कथनः मुलाक़ूहो मे ज़मीर का मरजा सवाब और जज़ा या आमाल की सज़ा है। कुछ टिप्पणीकारों ने आयत के इस भाग की व्याख्या में उल्लेख किया है कि वे अपने कार्यों का प्रतिफल और अज़ाब देखेंगे।[३०]

फ़ुटनोट

  1. खुरासानी, आयात नामदार, पेज 381
  2. इब्राहीम व बसतान व दरुस्ती, दलालतहाए तशबीह ज़नान बे हर्स दर आयत 223 सूर ए बक़रा बा रुईकर्द तहलीलीः इंतेक़ादी आराए नौअंदीशान मआसिर दर बारेह आन, पेज 105
  3. इब्राहीम व बसतान व दरुस्ती, दलालतहाए तशबीह ज़नान बे हर्स दर आयत 223 सूर ए बक़रा बा रुईकर्द तहलीलीः इंतेक़ादी आराए नौअंदीशान मआसिर दर बारेह आन, पेज 106
  4. शैबानी, नहज अल बयान अन कश्फ मआनी अल क़ुरआन, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 295; सब्जवारी, अल जदीद, 1406 हिजरी, भाग 1, पेज 269
  5. फख्रुद्दीन राज़ी, मिफ्ताह अल ग़ैब, 1420 हिजरी, भाग 6, पेज 421
  6. इब्राहीम व बसतान व दरुस्ती, दलालतहाए तशबीह ज़नान बे हर्स दर आयत 223 सूर ए बक़रा बा रुईकर्द तहलीलीः इंतेक़ादी आराए नौअंदीशान मआसिर दर बारेह आन, पेज 115-117
  7. तूसी, अल इस्तिबसार, दार अल कुतुब अल इस्लामीया, भाग 3, पेज 244
  8. मौलवी व गुलामी व महरी, तहलील व नक़्द मअनाई वाज़ेह अन्ना दर तरजुमेहाए फ़ारसी क़ुरआन बा ताकीद बर नक़्श सयाक़ दर तरजुमा, पेज 211-23
  9. देखेः वुक़ुअ अम्र वकअ अक़ीब हज़र या दर मक़ामे तवहुम खतर, वेबगाह मदरसा फ़ुकाहत दरस खारिज हुसैन शौपानी, तमायुल बे हुक्म हिल्लियत हमराह बा कराहत दर मस्अले वती दर दुबुर, पाएगाह तख़स्सुसी फ़िक़्ह हुकूमती वसाइल दरस खारिज जवादी आमोली; इब्ने आशूर, अल तहरीर वल तनवीर, 1420 हिजरी, भाग 2, पेज 353
  10. मौलवी व गुलामी व महरी, तहलील व नक़्द मअनाई वाज़ेह अन्ना दर तरजुमेहाए फ़ारसी क़ुरआन बा ताकीद बर नक़्श सयाक़ दर तरजुमा, पेज 24
  11. देखेः तूसी, अल तिबयान, भाग 2, पेज 223-224; शहीद सानी, 1416 हिजरी, भाग 7, पेज 61; हुर्रे आमोली, वसाइल उश शिया, 1414 हिजरी, भाग 20, पेज 146-148
  12. मौलवी व गुलामी व महरी, तहलील व नक़्द मअनाई वाज़ेह अन्ना दर तरजुमेहाए फ़ारसी क़ुरआन बा ताकीद बर नक़्श सयाक़ दर तरजुमा, पेज 25
  13. मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 100, पेज 288
  14. तमायुल बे हुक्म हिल्लियत हमराह बा कराहत दर मस्अले वती दर दुबुर, पाएगाह तख़स्सुसी फ़िक़्ह हुकूमती वसाइल दरस खारिज जवादी आमोली
  15. देखेः मुग्निया, अल तफ़सीर अल कश्शाफ़, 1424 हिजरी, भाग 1, पेज 337; नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 29, पेज 106
  16. तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, भाग 2, पेज 213
  17. तबरेसी, मजमा अल बयान, 1408 हिजरी, भाग 27, पेज 564
  18. तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, भाग 2, पेज 214
  19. इब्राहीम व बसतान व दरुस्ती, दलालतहाए तशबीह ज़नान बे हर्स दर आयत 223 सूर ए बक़रा बा रुईकर्द तहलीलीः इंतेक़ादी आराए नौअंदीशान मआसिर दर बारेह आन, पेज 106
  20. इब्राहीम व बसतान व दरुस्ती, दलालतहाए तशबीह ज़नान बे हर्स दर आयत 223 सूर ए बक़रा बा रुईकर्द तहलीलीः इंतेक़ादी आराए नौअंदीशान मआसिर दर बारेह आन, पेज 106
  21. इब्राहीम व बसतान व दरुस्ती, दलालतहाए तशबीह ज़नान बे हर्स दर आयत 223 सूर ए बक़रा बा रुईकर्द तहलीलीः इंतेक़ादी आराए नौअंदीशान मआसिर दर बारेह आन, पेज 117
  22. इब्राहीम व बसतान व दरुस्ती, दलालतहाए तशबीह ज़नान बे हर्स दर आयत 223 सूर ए बक़रा बा रुईकर्द तहलीलीः इंतेक़ादी आराए नौअंदीशान मआसिर दर बारेह आन, पेज 118-119
  23. तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, भाग 2, पेज 319; मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफसीर नमूना, 1374 शम्सी, भाग 2, पेज 141
  24. सूर ए बक़रा, आयत न 223
  25. तय्यब, अतयब अल बयान, 1378 शम्सी, भाग 2, पेज 447
  26. क़र्शी, तफसीर अहसन अल हदीस, 1377 शम्सी, भाग 1, पोज 412
  27. तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, भाग 9, पेज 37
  28. सदर अल मुताअल्लेहीन, तफ़सीर अल क़ुरआन अल करीम, 1366 शम्सी, भाग 3, पेज 296
  29. फ़ज़्लुल्लाह, तफ़सीर मिन वही अल क़ुरआन, 1419 हिजरी, भाग 4, पेज 260
  30. तबरेसी, मजमा अल बयान, 1408 हिजरी, भाग 2, पेज 565

स्रोत

  • तमायुल बे हुक्म हिल्लियत हमराह बा कराहत दर मस्अले वती दर दुबुर, पाएगाह तख़स्सुसी फ़िक़्ह हुकूमती वसाइल दरस खारिज जवादी आमोली, प्रविष्ट की तारीख 24 बहमन 1394 शम्सी, वीजिट की तारीख 21 आबान, 1402 शम्सी
  • वक़ूअ अम्र वकअ अक़ीब हज़र या दर मकामे तवह्हुम हज़र, वेबगाह मदरसा फ़काहत दरस खारिज हुसैन शैपानी, प्रविष्ठ की तारीख 16 आज़र 1401 शम्सी, वीजिट की तारीख 16 आबान 1402 शम्सी
  • इब्न मंज़ूर, मुहम्मद बिन मुकर्रम, लेसान अल अरब, क़ुम, नशर अदब अल हौज़ा, 1405 हिजरी
  • इब्न आशूर, मुहम्मद ताहिर, अल तहरीर वल तनवीर, बैरुत, मोअस्सेसा अल तारीख़ अल अरबी, 1420 हिजरी
  • जोहरी, अबू नस्र इस्माईल बिन हम्माद, अल सेहाह (अल ताज अल लुगत व सेहाह अल अरबीया) मिस्र, दार अल कुतुब अल अरबी
  • ख़ुरासानी, अली, आयात नामदार, दाएरातुल मआरिफ़ क़ुरआन करीम, क़ुम, बूस्तान किताब, 1382 शम्सी
  • सब्ज़वारी, मुहम्मद, अल जदीद फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, बैरुत, दार अल तआरुफ़ लिल मतबूआत, 1406 हिजरी
  • शैबानी, मुहम्मद बिन हसन, नहज अल बयान अन कश्फ मआनी अल क़ुरआन, क़ुम, नशर अल हादी, 1413 हिजरी
  • सद्र अल मुताअल्लेहीन, मुहम्मद बिन इब्राहीम, तफ़सीर अल क़ुरआन अल करीम, शोधः ख़ाजूई, मुहम्मद, क़ुम, इंतेशारात बेदार, दूसरा संस्करण, 1366 शम्सी
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  • तुरैही, फ़ख्रुद्दीन, मजमा अल बहरैन, तेहरान, मकतब अल नशर अल सकाफ़ीया अल इस्लामीया
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  • फख़्रुद्दीन राज़ी, अबु अब्दिल्लाह मुहम्मद बिन उमर, मफासीह अल गैब , बैरुत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, 1420 हिजरी
  • फ़ज़लुल्लाह, सय्यद मुहम्मद हुसैन, तफ़सीर मिन वही अल क़ुरआ, बैरुत, दार अल मेलाक लित तबाअते वन नशर, दूसरा संस्करण 1419 हिजरी
  • कर्शी, सय्यद अली अकबर, तफ़सीर अहसन अल हदीस, तेहरान, बुनयाद बेअसत, तीसरा संस्करण 1377 शम्सी
  • लैला, इब्राहीमी व हुसैन, बोस्तान व महदी, दुरुस्ती, दलालतहाए तशबीह ज़नान बे हर्स दर आय ए 223 सूर ए बक़ार बा रुईकर्द तहलील, इंतेक़ादी आराए नौअंदीशान मआसिर दरबारेह आन, दर फ़सलनामा इल्मी तरवीजी मुतालेआत उलूम क़ुरआन, क्रमांक 12, 1401 हिजरी
  • मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर बिन मुहम्मद तक़ी, बिहार उल अनवार, बैरुत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, 1403 हिजरी
  • मुग़्निया, मुहम्मद जवाद, अल तफ़सीर अल कश्शाफ़, क़ुम, दार अल कुतुब अल इस्लामी, 1424 हिजरी
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफ़सीर नमूना, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामीया, 1374 शम्सी
  • मौलवी, मुहम्मद व ग़ुलामी, अब्दुल्लाह व मरज़ीया महरी साबित (तहलील व नक्द मअनाए वाज़ेह अन्ना) दर तरजुमेहाए फ़ारसी क़ुरआन बा ताकीद बर नक़्श सयाक़ दर तरजुमा, दर फ़सलनामा इल्मी पुजूहिशी (पुजूहिश हाए ज़बान शनाखती क़ुरआन) क्रमांक 8, 1392 शम्सी
  • नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल कलाम फ़ी शरह शरा ए अल इस्लाम, बैरुत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, सातंवा संस्करण, 1362 शम्सी