आय ए ख़ैर अल बरिय्या

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आय ख़ैर अल बरिय्या
आयत का नामआय ए ख़ैर अल बरिय्या
सूरह में उपस्थितसूर ए बय्यना
आयत की संख़्या7
पारा30
नुज़ूल का स्थानमदीना
विषयएतेक़ादी, इमाम अली (अ) और उनके शियों का उच्च स्थान

आय ए ख़ैर अल बरिय्या (अरबी: آية خير البرية) (बय्यना: 7) उन आयतों में से एक है जो इमाम अली (अ) के सम्मान में नाज़िल हुई थी। शिया और सुन्नी स्रोतों में पैग़म्बर (स) से उद्धृत की गई हदीसों के अनुसार, "ख़ैर अल-बरिय्या" शब्द का अर्थ सृष्टि के सर्वश्रेष्ठ (बेहतरीन मख़्लूक़), इमाम अली (अ) और उनके अनुयायियों से है।

कुछ टिप्पणीकारों ने इस आयत से यह निष्कर्ष निकाला है कि मोमिन और धर्मी (सालेह) लोग फ़रिश्तों से श्रेष्ठ हैं; क्योंकि "बरिय्या" शब्द में सभी प्राणी (मख़्लूक़) शामिल हैं।

आयत और अनुवाद

सूर ए बय्यना की आयत संख्या 7 को आय ए ख़ैर अल बरिय्या के नाम से जाना जाता है।[१]

अनुवाद:वास्तव में, जो लोग ईमान लाए और अच्छे कर्म (आमाले सालेह) किये, वे सर्वश्रेष्ठ रचना (बेहतरीन मख़्लूक़) हैं।

स्थिति एवं महत्व

आय ए ख़ैर अल बरिय्या इमाम अली (अ) के गुणों (फ़ज़ाएल) में से एक माना जाता है।[२] इब्ने अब्बास से वर्णित है कि यह आयत इमाम अली (अ) के बारे में नाज़िल हुई थी।[३] शिया विद्वानों के अनुसार, अपनी प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए, इमाम अली (अ) ने छह सदस्यीय परिषद में इस आयत को और इस आयत के नाज़िल होने का कारण (शाने नुज़ूल) स्वयं को बताया है।[४]

शिया टिप्पणीकारों में से एक, आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी (जन्म: 1305 शम्सी) ने पैग़म्बर (स) की उन हदीसों का जो इस आयत के रहस्योद्घाटन (शाने नुज़ूल) के संदर्भ में वर्णित हुई हैं, का हवाला देते हुए कहा है कि उन हदीसों में इमाम अली (अ) और उनके शियों का उल्लेख किया गया है,[५] और कहा है कि शिया शब्द पैग़म्बर (स) के समय से ही अस्तित्व में है। और इन हदीसों में शिया का अर्थ इमाम अली (अ) के विशेष अनुयायी हैं।[६]

जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी:

हम पैग़म्बर (स) के साथ थे और अली (अ) आ गए। पैग़म्बर (स) ने कहा: "उसकी सौगंध जिसके हाथ में मेरी जान है, यह और उसके शिया वह लोग हैं जो क़यामत के दिन बच जाएंगे।" और यह आयत नाज़िल हुई: «إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أُولَٰئِكَ هُمْ خَيْرُ الْبَرِيَّةِ» (अनुवाद: वास्तव में, जो लोग ईमान लाए और अच्छे कर्म (आमाले सालेह) किये, वे सर्वश्रेष्ठ रचनाकार (बेहतरीन मख़्लूक़) हैं।) और पैग़म्बर (स) के साथी जब भी अली को आते देखते थे तो कहते थे, ख़ैर अल बरिय्या (सर्वोत्तम सृष्टि) आ गया।"

इब्ने असाकर, तारीख़े दमिश्क़, 1415 हिजरी, खंड 42, पृष्ठ 371।

ख़ैर अल बरिय्या का अर्थ

शिया और सुन्नी हदीसी पुस्तकों में, पैग़म्बर (स) की उन हदीसों का वर्णन किया गया है जिसमें ख़ैर अल बरिय्या (बेहतरीन मख़्लूक़) की व्याख्या इमाम अली (अ) और उनके शियों के लिए की गई है।[७] हाकिम हस्कानी (मृत्यु: 490 हिजरी) एक सुन्नी विद्वान शवाहिद अल तंज़ील किताब में, उन्होंने विभिन्न दस्तावेज़ों के साथ इस संबंध में बीस से अधिक हदीसों का उल्लेख किया है।[८] उनमें से एक, इब्ने अब्बास से वर्णित है कि जब यह आयत नाज़िल हुई, तो पैग़म्बर (स) ने इमाम अली (अ) को संबोधित किया और कहा: "वह (ख़ैर अल बरिय्या) आप और आपके शिया हैं।" क़यामत के दिन, आप और आपके शिया ऐसी हालत में आएँगे कि आप अपने ईश्वर से प्रसन्न होगें और ईश्वर आप से प्रसन्न होगा।[९]

व्याख्या बिंदु

टिप्पणीकारों ने इस आयत से जो व्याख्या का बिंदु लिया है, उनमें से एक यह है कि विश्वास करने वाले (मोमिन) और धर्मी (सालेह) लोग स्वर्गदूतों (फ़रिश्तों) से श्रेष्ठ हैं; क्योंकि «خیرالبریه» "ख़ैर अल-बरिय्या" (सर्वोत्तम रचना अर्थात बेहतरीन मख्लूक़) वाक्यांश में "अल बरिय्या" शब्द में सभी प्राणी (मख़्लूक़) शामिल हैं।[१०]

मक्का में आयत का रहस्योद्घाटन

कुछ हदीसों के अनुसार, आय ए ख़ैर अल बरिय्या तब प्रकट (नाज़िल) हुई थी जब इस्लाम के पैग़म्बर (स) मक्का में मस्जिद अल हराम में थे।[११] तफ़सीरे नमूना में आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी के अनुसार, यह मुद्दा सूरह के मदनी होने के साथ संघर्ष नहीं करता है; क्योंकि ऐसा संभव है कि यह सूरह मदनी हो और यह आयत इस्लाम के पैग़म्बर (स) की मदीना से मक्का की यात्रा के दौरान प्रकट (नाज़िल) हुई हो।[१२]

फ़ुटनोट

  1. अल्लामा हिल्ली, नहजुल हक़, 1402 हिजरी, पृष्ठ 189।
  2. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1374 शम्सी, खंड 27, पृष्ठ 213।
  3. देखें हस्कानी, शवाहिद अल तंज़ील, 1411-1410 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 473; शुश्त्री, अहक़ाक अल हक़, 1409 हिजरी, खंड 20, पृष्ठ 27।
  4. तबरी, अल मुस्तरशद, 1415 हिजरी, पृष्ठ 354; अस्तराबादी, तावील अल आयात अल ज़ाहिरा, 1409 हिजरी, पृष्ठ 803।
  5. स्यूति, अल दुर अल मंसूर, 1404 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 589; अमीनी, अल ग़दीर, 1416 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 57 और 58।
  6. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1374 शम्सी, खंड 27, पृष्ठ 213-214।
  7. स्यूती, अल दुर अल मंसूर, 1404 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 379; अस्तराबादी, तावील अल आयात अल-ज़ाहिरा, 1409 हिजरी, पृष्ठ 80-80; आलूसी, रूह अल मआनी, 1415 हिजरी, खंड 15, पृष्ठ 432।
  8. हस्कानी, शवाहिद अल तंज़ील, 1410-1410 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 459-473।
  9. हस्कानी, शवाहिद अल तंज़ील, 1410-1411 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 461।
  10. तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, खंड 20, पृष्ठ 340; मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1374 शम्सी, खंड 27, पृष्ठ 209।
  11. हस्कानी,शवाहिद अल तंज़ील, 1411-1410 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 467।
  12. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1374 शम्सी, खंड 27, पृष्ठ 212 देखें।

स्रोत

  • आलूसी, महमूद बिन अब्दुल्लाह, रूह अल मआनी फ़ी तफ़सीर अल कुरआन अल-अज़ीम व अल सबअ अल मसानी, अली अब्दुल बारी अत्तिया, बेरूत, दार अल किताब अल इल्मिया द्वारा अनुसंधान, मंशूराते मुहम्मद अली बिज़ौन, 1415 हिजरी।
  • इब्ने असाकर, तारीख़े दमिश्क, अम्र बिन ग़रामा अल अमरवी द्वारा शोध, बेरूत, दार अल फ़िक्र, 1415 हिजरी।
  • अस्तराबादी, सय्यद अली, तावील अल आयात अल ज़ाहिरा फ़ी फ़ज़ाएल अल इतरा अल ताहिरा, हुसैन उस्तादवली द्वारा शोध, क़ुम, नशर-ए-इस्लामी, 1409 हिजरी।
  • अमिनी, अब्दुल हुसैन, अल ग़दीर फ़ी अल किताब व अल सुन्नत व अल अदब, क़ुम, मरकज़े अल-ग़दीर लिल दरासात अल इस्लामिया, 1416 हिजरी।
  • हस्कानी, उबैदुल्लाह बिन अब्दुल्लाह, शवाहिद अल तंज़ील ले क़वाएद अल तफ़सील फ़ी आयात अल नाज़ेला फ़ी अहले बैत, मुहम्मद बाक़िर महमूदी द्वारा शोध, बेरूत, तेहरान, वेज़ारत अल सक़ाफ़ा व अल इरशाद अल इस्लामी, 1410-1411 हिजरी।
  • स्यूती, अब्दुर्रहमान इब्ने अबी बक्र, अल दुर अल मंसूर फ़ी तफ़सीर अल मासूर, क़ुम, मकतब मर्शी नजफ़ी , 1404 हिजरी।
  • शुश्त्री, क़ाज़ी नूरुल्लाह, अहक़ाक अल हक़ व इज़हाक़ अल बातिल, क़ुम, मकतब आयतुल्लाह अल मर्शी अल-नजफ़ी, 1409 हिजरी।
  • तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अल मीज़ान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, क़ुम, इंतेशाराते इस्लामी, 1417 हिजरी।
  • तबरी, मुहम्मद बिन जरीर, अल मुस्तरशद फ़ी इमामत अली बिन अबी तालिब (अ), अहमद महमूदी द्वारा संपादित, क़ुम, कूशानपुर, 1415 हिजरी।
  • अल्लामा हिल्ली, हसन बिन यूसुफ़, नहजुल हक़ व कशफ़ अल सिद्क़, बेरूत, दार अल किताब अल लेबनानी, 1402 हिजरी।
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफ़सीरे नमूना, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामिया, 1374 शम्सी।