सामग्री पर जाएँ

आय ए महारिम

wikishia से
यह लेख क़ुरआन में आय ए महारिम के बारे में है। महरम की अवधारणा के बारे में अधिक जानकारी के लिए महारिम वाले लेख का अध्ययन करें।
आय ए महारिम
आयत का नामआय ए महारिम
सूरह में उपस्थितसूर ए नेसा
आयत की संख़्या23
पारा4
शाने नुज़ूलज़ैनब बिन्ते जहश के साथ पैगंबर (स) का विवाह
नुज़ूल का स्थानमदीना
विषयफ़िक़्ही
सम्बंधित आयातसूर ए नूर आयत न 31


आय ए महारिम (अरबीःآية المحارم) सूर ए नेसा की आयत न 23 है कि जिसमे महारिम (वो महिलाएं जिनसे विवाह करना वर्जित है) का उल्लेख है। इस आयत के अनुसार महिलाओं की सात श्रेणियों के साथ निस्बी महरमियत (वंशिज रिश्तेदारी) के आधार पर, दो श्रेणियो की महिलाओं के साथ रज़ाई महरमियत (दूध पीने से महरम होना) के आधार पर और चार श्रेणियों की महिलाओ के साथ सबबी महरमियत (विवाहिक महरमियत) के आधार पर विवाह निषिद्ध है।

सूर ए नूर की आयत न 31 -जिसे आय ए हिजाब (हिजाब वाली आयत) के नाम से जाना जाता है- मे भी कुछ महरमों का उल्लेख किया गया है।

पाठ और अनुवाद

सूर ए नेसा की आयत 23 उन लोगों का परिचय देती है जिनके साथ विवाह हराम है।

حُرِّ‌مَتْ عَلَيْكُمْ أُمَّهَاتُكُمْ وَبَنَاتُكُمْ وَأَخَوَاتُكُمْ وَعَمَّاتُكُمْ وَخَالَاتُكُمْ وَبَنَاتُ الْأَخِ وَبَنَاتُ الْأُخْتِ وَأُمَّهَاتُكُمُ اللَّاتِي أَرْ‌ضَعْنَكُمْ وَأَخَوَاتُكُم مِّنَ الرَّ‌ضَاعَةِ وَأُمَّهَاتُ نِسَائِكُمْ وَرَ‌بَائِبُكُمُ اللَّاتِي فِي حُجُورِ‌كُم مِّن نِّسَائِكُمُ اللَّاتِي دَخَلْتُم بِهِنَّ فَإِن لَّمْ تَكُونُوا دَخَلْتُم بِهِنَّ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ وَحَلَائِلُ أَبْنَائِكُمُ الَّذِينَ مِنْ أَصْلَابِكُمْ وَأَن تَجْمَعُوا بَيْنَ الْأُخْتَيْنِ إِلَّا مَا قَدْ سَلَفَ ۗ إِنَّ اللَّـهَ كَانَ غَفُورً‌ا رَّ‌حِيمًا
हुर्रेमत अलैकुम उम्माहातोकुम व बनातोकुम वा अख़ावातोकुम वा अम्मातोकुम वा ख़ालातोकुम वा बनातुल अख़े वा बनातुल उख़्ते वा उम्माहातोकुमुल लाती अरज़अनाकुम वा अख़ावातोकुम मिनर रज़ाअते वा उम्माहातो निसाएकुम वा रबाएबोकुमुल लाती फ़ी हुजूरेकुम मिनन निसाएकुमुल लाती दख़लतुम बेहिन्ना फ़इल्लम तकूनू दख़लतुम बेहिन्ना फ़ला जोनाहा अलैकुम वा हलाएलो अबनाएकुमुल लज़ीना मिन अस्लाबेकुम वा अनतज्मऊ बैनल उख़्तैने इल्ला मा क़द सलफ़ा इन्नल्लाहा काना ग़फ़ूरर रहीमा



अनुवादः तुम्हारे ऊपर तुम्हारी माताएं, और तुम्हारी बेटियां, और तुम्हारी बहनें, और तुम्हारी बुआएँ, और तुम्हारी मौसीयां, और तुम्हारी भतीजीयां, और तुम्हारी भांजीयां, और तुम्हारी माताएं जिन्होंने तुम्हें दूध पिलाया है, और तुम्हारी रज़ाई (धूद मे शरीक) बहनें, और तुम्हारी सास माताएं, और तुम्हारी पत्नियों की बेटियां जो तुम्हारी गोद में पली है और वो महिलाए जिनसे तुमने संभोग किया हा अगर संभोग नही किया है तो कोई हरज नही है और तुम्हारे बेटों की पत्नियाँ जो तुम्हारे वंशज हैं, और दो बहनो से एक समय मे विवाह करना हराम कर दिया गया है। सिवाय इसके जो कुछ अतीत में हो चुका है कि ईश्वर क्षमाशील और दयालु है।

शाने नुज़ूल

तफ़सीर अल-तिबयान में शेख़ तूसी के अनुसार, सूर ए नेसा की आयत न 23 का कुछ भाग ("وَ حَلائِلُ أَبْنائِکُمُ الَّذِینَ مِنْ أَصْلابِکُمْ؛ व हलाएलो अबनाएकुमुल लज़ीना मिन अस्लाबेकुम; और तुम्हारे बेटों की पत्नियाँ जो तुम्हारी ही पीढ़ी से हैं") तब नाज़िल हुआ जब पैगंबर (स) ने मौता के युद्द मे शहीद होने वाले अपने मुंह बोले पुत्र ज़ैद बिन हारेसा की पत्नि ज़ैनब बिन्त जहश के साथ विवाह किया, और बहुदेववादियों (मुशरेकीन) ने कानाफूसी करना शुरू कर दिया।[]

जैसा कि तफ़सीर नमूना मे उल्लेख किया गया है कि पैगंबर (स) का ज़ैनब के साथ विवाह करना जाहिली काल के रीति-रिवाजो मे से एक रिवाज को ख़त्म करने के लिए था, जिसमे वो वास्तविक बच्चो से संबंधित सभी नियमों (अहकाम) को मुहं बोले बच्चो पर लागू करते थे, और उसकी मृत्यु या तलाक़ के बाद उसकी पत्नि के साथ विवाह को घृणित माना जाता था।[]

महारिम

मुख्य लेख: महारिम और रिज़ाई महारिम

इस्लामी शिक्षा मे कुछ महिलाए और पुरूष एक दूसरे के महरम कहलाते है जिनका एक दूसरे को देखना और एक दूसरे के लिए श्रृंगार दिखाना जायज़ परंतु उनका एक दूसरे से विवाह करना हराम है।[] आए ए महारिम मे उन महिलाओं की ओर इशारा है जिनके साथ वंशी, रिज़ाई, और सबबी (वैवाहिक) रिश्तेदारी के आधार पर विवाह हराम है:[]

  • नसब (वंश): अर्थात ख़ूनी रिश्तेदारी जो नस्ल बढ़ाने के माध्यम से होती है।[] इस आयत का हवाला देते हुए न्यायविदों ने सात श्रेणियों के रिश्तेदारो का एक दूसरे के साथ विवाह को हराम माना है।[]
  1. माँ, नानी और दादी[]
  2. पुत्री, पोत्री और नाती[]
  3. बहन[]
  4. भतीजी, उनके बच्चे और बच्चो के बच्चे जितना भी निचले स्तर पर चले जाए।[१०]
  5. भानजी, उनके बच्चो, और बच्चो के बच्चे जितना भी निचले स्तर पर चेल जाए।[११]
  6. फूफी (बुआ) और माता-पिता की बुआए[१२]
  7. ख़ाला (मौसी) माता-पिता की मौसीया[१३]
  • रिज़ाअ (स्तनपान): रिज़ाई महरमयत अर्थात वह रिश्तेदारी जो एक बच्चे को उसकी माँ के अलावा किसी अन्य महिला द्वारा स्तनपान कराने के परिणामस्वरूप बनती है।[१४] इस आयत मे केवल पालक माँ और बहन (रिज़ाई मां और बहन) के साथ विवाह हराम होने का उल्लेख किया गया है।[१५] जबकि न्यायविदों ने पैगंबर (स) के एक कथन, "जो कुछ वंश द्वारा निषिद्ध है, वह रिज़ाअ से भी निषिद्ध हो जाती है",[१६] का हवाला देते हुए कहा है कि सभी महिलाएं जिनके साथ वंश के कारण विवाह करना वर्जित है उनके साथ रेज़ाअ के कारण भी विवाह करना हराम है।[१७]
  • सबब (कारण): विवाह अनुबंध (सीगा ए अक़्द) पढ़ने के साथ पति और पत्नी के अलावा, पुरुष और महिला के कुछ रिश्तेदार एक दूसरे के लिए महरम बन जाते हैं, और उन्हें सबबी महरम कहा जाता है।[१८] आय ए महारिम ने चार मामलो मे महिलाओ की ओर इशारा किया हैः : पत्नी की मां (सास), रबीबा (पत्नि की बेटी (दूसरे पति से) जिसके साथ अक़्द के बाद संभोग किया हो), बेटे की पत्नी (दुल्हन) और एक ही समय में दो बहनों से शादी करना[१९]
  • तफ़सीरी नोट्स

    कुछ टिप्पणीकारों की राय के अनुसार, वाक्यांश " وَأَن تَجْمَعُوا بَینَ الْأُخْتَینِ إِلَّا مَا قَدْ سَلَفَ؛ (वा अन तजमऊ बैनल उख़्तैने इल्ला मा क़द सलाफ़ा), जो अतीत मे हो चुका उसे छोड़कर एक ही समय मे दो बहनों के साथ शादी करना हराम है" इस तथ्य को संदर्भित करता है कि एक ही समय में दो बहनों से विवाह करना अज्ञानता के युग में प्रथागत था, और जब यह आयत नाज़िल हुई तो जो लोग पहले से इस तरह का विवाह किए हुए थे उन्हे किसी प्रकार के दंड का सामना नहीं करना पड़ा, लेकिन उन्हें दो बहनों में से एक को चुनना और दूसरी को छोड़ना पड़ा।[२०] तफ़सीर अल-मीज़ान में अल्लामा तबातबाई के अनुसार, यह बात संभव है कि यह इस्तिसना जो किया गया है वह न सिर्फ यह कि दो बहनों के साथ एक समय मे विवाह करने से इस्तिसना हो बल्कि यह इस्तिसना आयत में उल्लिखित सभी वाक्याश के लिए है। क्योंकि अतीत में गैर-अरबों के बीच, ऐसे राष्ट्र भी थे जो आय ए महारिम मे मौजूद कुछ महिलाओ के साथ निकाह करते थे, इस्लाम ने इस अपवाद (इस्तिसना) के साथ उन विवाहों को वैध माना और उनके परिणामस्वरूप होने वाले बच्चों के हलाल जन्म का आदेश दिया।[२१] हालांकि अल्लामा तबातबाई परिणाम के रूप मे इस बात को मानते है कि पहली संभावना (इस्लाम मे एक समय मे दो बहनों से विवाह करना हराम है लेकिन अतीत मे ऐसा नही था) को अधिक स्पष्ट माना है।[२२]

    शिया मरजा ए तक़लीद आयतुल्लाह नासिर मकारिम शिराज़ी के अनुसार आयत का अंतिम भाग " इन्नल्लाहा काना ग़फ़ूरर रहीमा" «إِنَّ اللَّهَ کانَ غَفُوراً رَحِیماً» दूसरी संभावना के साथ अधिक फिट बैठता है।[२३] तफसीर नमूना मे यह संभव है कि इस आयत में दो बहनों से शादी के हराम होने का फलसफा यह हो कि इन दोनो के बीच से भावनात्मकता को दूर किया जा सके, क्योंकि दोनो बहने खूनी रिश्तेदारी के कारण, एक-दूसरे में गहरी रुचि होती है, लेकिन जब वे एक दूसरे की प्रतिद्वंद्वी हो जाएंगी, तो वे उस रुचि को बरकरार नहीं रख पाएगी और उन दोनो के बीच प्रतिस्पर्धा उनके अस्तित्व में लगातार विरोधाभासी का शिकार रहेगा।[२४]

    सम्बंधित आयत

    मुख्य लेख: आय ए हिजाब

    सूर ए नूर की आयत न 31 जिसे आय ए हिजाब (हिजाब की आयत) के नाम से भी जाना जाता है वह भी महिलाओं के कुछ क़ानूनो के ज़िक्र के साथ उनके कुछ महरमो की ओर इशारा करती है:

    وَقُل لِّلْمُؤْمِنَاتِ۔۔۔ وَلَا يُبْدِينَ زِينَتَہنَّ إِلَّا لِبُعُولَتِہنَّ أَوْ آبَائِہنَّ أَوْ آبَاءِ بُعُولَتِہنَّ أَوْ أَبْنَائِہنَّ أَوْ أَبْنَاءِ بُعُولَتِہنَّ أَوْ إِخْوَانِہنَّ أَوْ بَنِي إِخْوَانِہنَّ أَوْ بَنِي أَخَوَاتِہنَّ أَوْ نِسَائہنَّ أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُہنَّ أَوِ التَّابِعِينَ غَيرِْ أُوْلىِ الْارْبَۃ مِنَ الرِّجَالِ أَوِ الطِّفْلِ الَّذِينَ لَمْ يَظْہرُواْ عَلىَ‏ عَوْرَاتِ النِّسَاء
    वा क़ुल लिल मोमेनाते --- वला युबदीना ज़ीनाताहुन्ना इल्ला लेबोऊलतेहिन्ना औ आबाएहिन्ना औ आबाए बोऊलतेहिन्ना औ अबनाएहिन्ना औ अबनाए बोऊलतेहिन्ना औ इख़्वानेहिन्ना औ बनी इख़्वानेहिन्ना औ बनी अख़ावातेहिन्ना औ निसाएहिन्ना औ मा मलकत अयमानोहुन्ना अवित ताबेईनी ग़ैरे ऊलिल अरबते मिनर रेजाले अवित तिफ़लिल लज़ीना लम यज़हरू अला औरातिन निसाए



    अनुवादःऔर ईमान वाली महिलाओं से कहो: अपने आभूषणों को अपने बाप, दादा, पतियों, पति के पिता (ससुर) और दादा (ददिया ससुर) और अपनी संतान और अपने पति की संतान, अपने भाई और भाईयो की संतान और बहनो की संतान और अपनी औरतो और अपने दास और दासीयो और ऐसे ताबेअ लोग जिनमे स्त्री को ओर से कोई वासना नही रह गई है और वो बच्चे जो महिलाओ के पर्दे की बात से कोई काम नही रखते है इन सबके अलावा किसी पर जाहिर ना करें।

    संबंधित लेख

    फ़ुटनोट

    1. शेख तूसी, अल तिबयान, दार एहया अल तुरास अल अरबी, भाग 3, पेज 159
    2. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1374 शम्सी, भाग 3, पेज 330
    3. मिशकीनी, मुस्तलेहात अल फ़िक़्ह, 1381 शम्सी, पेज 272
    4. मुकद्देसी अरदबेली, ज़ुब्दातुल बयान, अल मकतब अल मुर्तज़वीया, पेज 523-524
    5. मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 2, पेज 225
    6. मुकद्देसी अरदबेली, ज़ुब्दातुल बयान, अल मकतब अल मुर्तज़वीया, पेज 523-524 नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 29, पेज 238
    7. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 29, पेज 238
    8. इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल वसीला, 1434 हिजरी, भाग 2, पेज 282
    9. इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल वसीला, 1434 हिजरी, भाग 2, पेज 283
    10. इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल वसीला, 1434 हिजरी, भाग 2, पेज 283
    11. इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल वसीला, 1434 हिजरी, भाग 2, पेज 283
    12. इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल वसीला, 1434 हिजरी, भाग 2, पेज 283
    13. इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल वसीला, 1434 हिजरी, भाग 2, पेज 283
    14. नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 29, पेज 264
    15. फ़ाज़िल मिक़्दाद, कंज़ुल इरफ़ान, मंशूरात अल मकतब अल मुर्तज़वीया, भाग 2, पेज 182
    16. मग़रिबी, दआइम अल इस्लाम, 1385 हिजरी, भाग 2, पेज 240
    17. फ़ाज़िल मिक़्दाद, कंज़ुल इरफ़ान, मंशूरात अल मकतब अल मुर्तज़वीया, भाग 2, पेज 182; मुकद्देसी अरदबेली, ज़ुब्दातुल बयान, अल मकतब अल मुर्तज़वीया, पेज 524
    18. शहीद सानी, मसालिक अल इफ़हाम, 1413 हिजरी, भाग 7, पेज 281
    19. फ़ाज़िल मिक़्दाद, कंज़ुल इरफ़ान, मंशूरात अल मकतब अल मुर्तज़वीया, भाग 2, पेज 184
    20. तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 4, पेज 265; मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1374 शम्सी, भाग 3, पेज 331
    21. तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 4, पेज 266
    22. तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 4, पेज 266
    23. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1374 शम्सी, भाग 3, पेज 331
    24. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1374 शम्सी, भाग 3, पेज 331

    स्रोत

    • इमाम ख़ुमैनी, सय्यद रूहुल्लाह, तहरीर अल वसीला, क़ुम, मोअस्सेसा तंज़ीम वा नश्र आसार इमाम अल ख़ुमैनी, पहला संस्करण, 1434 हिजरी
    • शहीद सानी, जैनुद्दीन बिन अली, मसालिक अल इफ़हाम, क़ुम, मोअस्सेसा अल मआरिफ अल इस्लामीया, 1413 हिजरी
    • शेख तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल तिबयान फ़ी तफ़सीर अल क़ुरआन, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी
    • तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अल मीज़ान फ़ी तफ़सीर अल क़ुरआन, दफ्तर इंतेशारात इस्लामी, जामे मुदर्रेसीन हौज़ा इल्मीया कुम, पांचवा संस्करण, 1417 हिजरी
    • फ़ाज़िल मिक़्दाद, अब्दुल्लाह, कंज़ुल इरफ़ान फ़ी फ़िक्ह अल क़ुरआन, क़ुम, मंशूरात अल मकतब अल मुर्तज़वीया लिल एहया अल आसार अल जाफ़रीया
    • मोहक़्क़िक़ हिल्ली, जाफ़र बिन हसन, शरा ए अल इस्लाम, क़ुम, मोअस्सेसा इस्माईलीयान, दूसरा संस्करण, 1408 हिजरी
    • मिशकीनी, अली अकबर, मुस्तलेहात अल फ़िक़्ह, क़ुम, नशरे अल हादी, तीसरा संस्करण, 1381 शम्सी
    • मगरिबी, क़ाज़ी नौमान, दआइम अल इस्लाम, क़ुम, मोअस्सेसा आले अल-बैत (अ), दूसरा संस्करण, 1385 हिजरी
    • मुकद्द्स अरदबेली, अहमद बिन मुहम्मद, जुब्दातुल बयान फ़ी आयातिल अहकाम, तेहरान, अल मकतब अल मुर्तज़वीया लेएहया अल आसार अल जाफ़रीया
    • मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफ़सीर नमूना, तेहरान, दार उल कुतुब उल इस्लामीया, पहला संस्करण, 1374 शम्सी
    • नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल कलाम फ़ी शरह शरा ए अल इस्लाम, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, 1404 हिजरी