लैलातुल मबीत

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यह लेख लैला अल-मबीत की घटना के बारे में है। इसी नाम की आयत के बारे में जानने के लिए आयत ए लैला अल-मबीत की प्रविष्टि देखें।

लैला अल-मबीत, वह रात जब इमाम अली (अ) पैग़म्बरे इस्लाम (स) की जान बचाने के लिए उनके बिस्तर पर सोए थे। इस रात बहुदेववादियों ने सामूहिक रूप से पैगंबर के घर पर हमला करने और उन्हें मारने की योजना बनाई थी। भगवान के आदेश से और पैगंबर (स) के अनुरोध पर, इमाम अली (अ) पैगंबर के बिस्तर में सो गए, और परिणामस्वरूप, बहुदेववादियों को पैगंबर की अनुपस्थिति का ध्यान नहीं आया, और भगवान के दूत (स) उस रात मदीना प्रवास करने में सक्षम हुए। बहुत से टिप्पणीकार लैला अल-मबीत में शेरा की आयत या लैला अल-मबीत की आयत के रहस्योद्घाटन को इमाम अली (अ.स.) के इस बलिदान के कारण मानते हैं। इस घटना की तारीख़ पहले चंद्र वर्ष की रबीउल अव्वल की पहली रात है।

पद एवं महत्व

लैला अल-मबीत वह घटना है जिसमें इमाम अली (अ.स.) पैगंबर की जान बचाने के लिए उनके बिस्तर पर सो गए थे। इस घटना को इमाम अली (अ.स.) के गुणों में से एक माना जाता है और इमाम अली (अ.स.) ने अपनी सत्यता और हक़्क़ानियत को साबित करने के लिए छह लोगों की परिषद में इसको पेश किया था। [१] टिप्पणीकारों ने शेरा की आयत या आयत के रहस्योद्घाटन को इस घटना से संबंधित माना है और इस घटना को इमाम अली (अ.स.) की गरिमा के बारे में मानते हैं। [२]

सय्यद इब्न तावूस की रिपोर्ट के अनुसार, पैगंबर (स) ने ग़दीर के उपदेश में इस घटना का उल्लेख किया और इसे ईश्वर की ओर से इमाम अली (स) के लिए एक मिशन क़रार दिया। [३] इसी तरह से हदीसों के अनुसार जब इमाम अली (अ) ख़ुदा के रसूल (अ) के बिस्तर पर सो रहे थे, जिबरईल उनके सरहाने की ओर आये और मिकाईल उनके पैरों की ओर आये। जिबरईल ने कहा: "हे अबू तालिब के बेटे, तुम्हारे जैसे लोग धन्य हैं, कि ईश्वर स्वर्गदूतों (फ़रिश्तों) के सामने तुम पर गर्व कर रहा है।" [४]

इस्माइल के बलिदान पर अली के बलिदान की श्रेष्ठता

सैय्यद इब्न तावुस ने इस घटना में इमाम अली (अ) के पैगंबर (स) के बिस्तर पर सोने की तुलना हज़रत इब्राहीम (अ) के बेटे इस्माइल के क़ुरबानी के लिये सहमत हो जाने से की है। उनके विचार में, इमाम अली का बलिदान इस्माइल की क़ुर्बाना से श्रेष्ठ है; क्योंकि इस्माईल अपने पिता द्वारा ज़िब्ह किये जाने के लिए तैयार थे; लेकिन इमाम अली (अ) ने अपने दुश्मनों द्वारा मारे जाने के लिए खुद को तैयार कर लिया था। [५]

पैगंबर (स) के क़त्ल की योजना

ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार, कुरैश काफिरों का एक समूह पैगंबर (स) से निपटने के तरीक़े पर निर्णय लेने के लिए दार अल-नदवा में एकत्रित हुआ। इस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि प्रत्येक क़बीले से एक व्यक्ति का चयन किया जाए और रात में पैगंबर (स) पर हमला किया जाए और उन्हें उनके घर में सामूहिक रूप से मार दिया जाए। क्योंकि इस स्थिति में, उनका खून सभी जनजातियों की गर्दन पर जाएगा, और बनी हाशिम, जो पैगंबर (स) के क़बीले से थे और उनके खून का इंतेक़ाम लेने वाले थे, वह कुरैश से सभी क़बीलों से नहीं लड़ सकते थे और उन्हें दीयत लेने के लिए मजबूर होना पड़ता। [६]

इस निर्णय के बाद, जिबरईल पैगंबर (स) के पास पहुंचे और उन्हें बहुदेववादियों की इस साज़िश के बारे में बताया। [७] इसलिए, पैगंबर (स) ने बहुदेववादियों के आने से पहले अपना घर छोड़ने और मदीना के लिए रवाना होने का फैसला किया। [८]

अली (अ) का पैग़म्बर (स) के बिस्तर पर सोना

मजलिसी के कथन के अनुसार, पैगंबर (स) ने अली (अ) से कहा: "बहुदेववादी आज रात मुझे मार डालना चाहते हैं, क्या तुम मेरे बिस्तर पर सोओगे?" इमाम अली (अ.स.) ने कहा: "ऐसा करने से, क्या आपकी जीवन बच जायेगा?" पैगंबर (स) ने कहा: "हाँ।" इमाम अली (अ.स.) मुस्कुराए, शुक्र का सजदा किया, और जब उन्होंने सजदे से अपना सिर उठाया, तो कहा: "आपको जो सौंपा गया है आप उसे अंजाम दें, मेरी आंखें, कान और दिल सब आप पर क़ुरबान।" [९] पैगंबर (स) ने उन्हें गले लगाया और वे दोनों रोए और एक दूसरे जुदा हो गए। [१०]

मुशरिकों ने रात की शुरुआत से ही पैगंबर (स) के घर को घेर लिया था। उन्हें आधी रात को हमला करना था; लेकिन अबू लहब ने कहा कि इस समय औरतें और बच्चे घर के अंदर हैं, और बाद में अरब हमारे बारे में कहेंगे कि उन्होंने अपने चाचा के बच्चों के सम्मान को भंग कर दिया है। [११] उन्होंने अली (अ.स.) को जो बिस्तर पर सो रहे थे, उन्होने यह सुनिश्चित करने के लिए कि बिस्तर पर कोई सो रहा है उन्हे एक पत्थर मारा। और उन्हें कोई संदेह नहीं था कि वह ईश्वर के दूत हैं। [१२] सुबह, जब उन्होने घर पर हमला किया, और अली (अ) को देखा जो ईश्वर के दूत (स) के बिस्तर पर थे, तो उन्होंने कहा, "मुहम्मद (स) कहां हैं?" अली (अ.स.) ने उत्तर दिया: "क्या तुमने उन्हे मुझे नहीं सौंपा था जो तुम मुझसे पूछ रहे हो?" तुमने कुछ ऐसा किया है जिससे उन्हे घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।” इसी वक़्त उन्होंने अली (अ.स.) पर हमला किया और उन्हें परेशान किया और फिर घर से खींच कर बाहर निकाला और उन्हे मारा। उन्होंने उन्हे कुछ घंटों के लिए मस्जिद अल-हराम में क़ैद रखा और फिर रिहा कर दिया। [१३]

एक अन्य रिवायत में आया है कि जब अली (अ.स.) ने उन्हें तलवारें खींचते और अपनी ओर आते देखा तो चालाकी से ख़ालिद बिन वलीद की, जो सब से आगे था, तलवार ले ली और उन्हें अपने से दूर कर दिया। उन्होंने कहा कि हमें आपसे कोई लेना-देना नहीं है; लेकिन हमें बताओ, मुहम्मद (स) कहाँ हैं? अली ने जवाब दिया, मैं उनके बारे में नहीं जानता। फिर उन्होने पैगंबर (स) की तलाश शुरू कर दी। [१४]

मिस्बाह अल-मुत्तहज्जिद में शेख़ तूसी ने पैगंबर (स) के प्रवास के पहले वर्ष में रबीउल अव्वल की पहली रात को इस घटना के समय की सूचना दी है। [१५]

अली (अ) के सम्मान में शिरा की आयत का रहस्योद्घाटन

मुख्य लेख: लैला अल-मबीत की आयत

शिया विद्वान [१६] और सुन्नी विद्वानों का एक समूह [१७] मानते हैं कि लैला अल-मबीत की आयत या शिरा की आयत (सूरह अल-बक़रह की आयत 207) लैला अल-मबीत का घटना में अली (अ) के सम्मान में नाज़िल हुई थी।।

इब्न अबी अल-हदीद, नहज अल-बलाग़ा के अपने विवरण में, अपने गुरु अबू जाफ़र से वर्णन करते हैं कि तवातुर से यह बात सिद्ध हो चुकी है कि यह आयत इमाम अली (अ.स.) के बारे में प्रकट हुई थी, और जो कोई भी इससे इनकार करता है वह या तो पागल है या इसका मुसलमानों के साथ कोई संबंध नहीं है। [१८]

शिरा की आयत में, ईश्वर ने उन लोगों की प्रशंसा की है जो ईश्वर की स्वीकृति के बदले में अपने जीवन का बलिदान देने को तैयार हैं। [१९]

कलाकृति

कविता

लैला अल-मबीत के बारे में कविताएँ लिखी गई हैं। हसन बिन अली अल हबल, जिन्हें यमन के अमीर अल-शोअरा (कवियों के सरदार) के नाम से जाना जाता है, ने 1076 हिजरी में "नफ़सी फ़िदा अल-ग़री" शीर्षक से एक कविता लिखी थी, जिसे दीवान अल-हबल में उद्धृत किया गया है। उनकी कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं:

مَنْ نامَ فی مَرقدِ النبی دُجی وَ اَعیُنُ المشرکینَ لمْ تَنَمِ
فداه بالنفسَ لمْ یَخَفْ اَبدا ما دَبَّروا من عظیم کیدهم[۲۰]

अनुवाद, [अली] वह हैं जो पैगंबर के बिस्तर पर (आराम) से सोये; जबकि मुश्रिकों की आँखों में अत्यधिक भय के कारण नींद न थी। उन्होंने [अली] उनके लिए [पैगंबर] अपना जीवन बलिदान कर दिया और उन्होंने जो बड़ी साजिश रची थी उससे वे हरगिज़ नहीं डरे। [२०]

कुछ कविताओं का श्रेय हज़रत अली को भी दिया जाता है:

وَقَيْتُ بِنَفْسِي خَيْرَ مَنْ وَطِئَ اَلْحَصَى وَ مَنْ طَافَ بِالْبَيْتِ اَلْعَتِيقِ وَ بِالْحَجَرِ
رَسُولَ إِلَهِ اَلْخَلْقِ أَنْ مَكَرُوا بِهِ فَنَجَّاهُ ذُو اَلطَّوْلِ اَلْكَرِيمُ مِنَ اَلْمَكْرِ
وَ بِتُّ أُرَاعِيهِمْ وَ مَا يُثْبِتُونَنِي وَ قَدْ صَبَرَتْ نَفْسِي عَلَى اَلْقَتْلِ وَ اَلْأَسْرِ.[۲۱

अनुवाद, मैंने अपने जीवन से धरती पर बसने वाले सबसे अच्छे व्यक्ति की रक्षा की, जिसने काबा और हजरे असवद का तवाफ़ किया । वह सृष्टि के ईश्वर का दूत था जिसे धोखा दिया गया। सर्वशक्तिमान ईश्वर ने उसे इस चाल से बचाया। और मैं बिस्तर पर सोकर उनकी सुधि लेता था; लेकिन उन्होंने मुझे नहीं पहचाना और मैंने खुद को मरने और पकड़े जाने के लिए तैयार कर लिया था। [२१]

लैला अल-मबीत पर डॉक्यूमेंट्री

यह लैला अल-मबीत में अली (अ.स.) और उनके बलिदान की प्रशंसा में निर्मित एक वृत्तचित्र है। यह डॉक्यूमेंट्री, जो इमाम अली की प्रशंसा और बलिदान में शेख़ मोहम्मद तूखी के काम को दिखाती है, नवंबर 2016 में ईरानी टेलीविजन चैनलों पर प्रसारित की गई थी, जिसका निर्माण सैयद मोहम्मद क़ासेमियान ने किया था। इस डॉक्यूमेंट्री में सैय्यद हसन सआदत मुस्तफ़वी ने लैला अल-मबीत की घटना और उसमें अली की भूमिका के बारे में बताया है। [२२]

चित्रकारी

हसन रुहुल अमीन (जन्म 1364 शम्सी), एक ईरानी कलाकार, जिसने पेंटिंग नफ़्से रसूल में इमाम अली को पैगंबर (स) के बिस्तर पर सोते हुए चित्रित किया है। [२३]

फ़ुटनोट

  1. सदूक़, अल-ख़ेसाल, 1362, खंड 2, पृष्ठ 560।
  2. इब्न अबी अल-हदीद, नहज अल-बलाग़ा पर टिप्पणी, 1404 हिजरी, खंड 13, पृष्ठ 262।
  3. सैय्यद बिन तावुस, अल-यक़ीन, बी टा, पृष्ठ 350।
  4. तूसी, अल-अमाली, 1414 हिजरी, पृष्ठ 469; हस्कानी, शवाहिद अल-तंज़िल, 1411 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 123।
  5. सैय्यद इब्न तावुस, इक़बाल अल-आमाल, 1409 हिजरी, खंड 2, पृ. 595-596।
  6. तबरसी, आलाम अल वरा, 1417 हिजरी, पृष्ठ 145।
  7. इब्न असीर, अल-कामिल, 1417 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 694।
  8. हलबी, अल-सिरह अल-हलबिया, दार अल-मारेफा, खंड 2, पृष्ठ 32।
  9. मजलेसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 19, पृष्ठ 60।
  10. तूसी, अल-आमाली, 1414 हिजरी, पृष्ठ 466।
  11. हलबी, अल-सिरह अल-हलबिया, दार अल-मारेफा, खंड 2, पृष्ठ 32।
  12. तूसी, अल-अमाली, 1414 हिजरी, पेज 466-467।
  13. मजलेसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 19, पृष्ठ 92।
  14. तूसी, अल-अमाली, 1414 हिजरी, पृष्ठ 467।
  15. तूसी, अल-मिस्बाह अल-मुतहज्जिद, 1411 हिजरी, पृष्ठ 791।
  16. उदाहरण के लिए, अयाशी, तफ़सीर अल-अयाशी, स्कूल ऑफ़ इस्लामिक स्टडीज़, खंड 1, पृष्ठ 101 देखें; तूसी, अल-तिबयान, दार इहया अल-तुरास अल-अरबी, खंड 2, पृष्ठ 183; तबताबाई, अल-मिज़ान, 1973, खंड 2, पृ. 100-99।
  17. उदाहरण के लिए, हकीम नैशापूरी, अल-मुस्तद्रक अली अल-साहिहेन, दार अल-कुतुब अल-इल्मिया, खंड 3, पृष्ठ 5 को देखें; हस्कानी, शवाहिद अल-तंज़िल, 1411 हिजरी, खंड 1, पृ. 123-131; ज़रकशी, अल-बुरहान, 1957, खंड 1, पृष्ठ 206; फ़ख़र राज़ी, अल-तफ़सीर अल-कबीर, 1420 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 350।
  18. इब्न अबी अल-हदीद, नहज अल-बलाग़ा पर टिप्पणी, 1404 हिजरी, खंड 13, पृष्ठ 262।
  19. सूरह अल-बक़रह, आयत 207 को देखें।
  20. हबल, दीवान अल-हबल, 1407 हिजरी, पृष्ठ 122।
  21. कराजकी, अल-तअज्जुब मिन अग़लात अल-आम्मा फ़ी मसायल अल-इमामा, 1421 हिजरी, पृष्ठ 123।
  22. "पहली बार टीवी पर डॉक्यूमेंट्री "लैला अल-मबित" का प्रसारण", सदा वा सिमा समाचार एजेंसी।
  23. शिया कला का केंद्र "नफ़्स रसूल"।

स्रोत

  • पवित्र क़ुरआन।
  • इब्न अबी अल-हदीद, अब्दुल हामिद बिन हिबतुल्लाह, नहज अल-बलाग़ा पर टिप्पणी, इब्राहिम मुहम्मद अबुल फज़्ल द्वारा तसहीह, क़ुम, मकतबा आयतुल्लाह अल-मरअशी अल-नजफ़ी, 1404 हिजरी।
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  • कराजकी, मुहम्मद बिन अली, अल-तअज्जुब मिन अग़लात अल-आम्मा फी मसायल अल-इमामा, करीम फारिस हस्सून द्वारा सही किया गया, क़ुम, दार अल-ग़दीर, प्रथम संस्करण, 1421 एएच।
  • मजलेसी, मोहम्मद बाक़िर, बिहार अल-अनवार, बेरूत, दार अल-वफ़ा, 1403 हिजरी।
  • हबल, हसन बिन अली, दीवान अल-हबल, अहमद बिन मुहम्मद शमी द्वारा शोध, अल-दार अल-अलीमिना, दूसरा संस्करण, 1407 हिजरी/1987 ई.
  • "नफ़्स रसूल", शिया कला केंद्र, 28 सितंबर 1402 को देखा गया।