मवद्दते अहले बैत (अ)

wikishia से
सूर ए शोरा आयत 23

मवद्दते अहले बैत (अ) (अरबी: مودة أهل البيت) का अर्थ है पैग़म्बर (स) के अहले बैत (अ) से प्रेम करना, जो सूर ए शोरा की आयत संख्या 23 पर आधारित है, जो पैग़म्बर (स) की रेसालत का इनाम है। शियों और सुन्नियों ने पैग़म्बर (स) से जो हदीसें वर्णित की हैं, उसके अनुसार अहले बैत (अ) का प्रेम इस्लाम का आधार है। सय्यद मुहम्मद तिजानी के अनुसार, मुसलमान अहले बैत (अ) से मवद्दत के वुजूब पर सहमत हैं। इसलिए, इसे मुसलमानों की एकता के लिए एक उपयुक्त कारक के रूप में पेश किया गया है। कुछ विद्वानों का मानना है कि अहले बैत (अ) की मवद्दत को अनिवार्य बनाने का दर्शन (फ़लसफ़ा) उनका पालन करना है।

हदीसों में, अहले बैत (अ) से प्रेम के कई सांसारिक और अलौकिक आसार का उल्लेख किया गया है। अहले बैत (अ) की शेफ़ाअत प्राप्त करना, कर्मों की स्वीकृति, सेरात के पुल पर स्थिर क़दम, और मौत से पहले पश्चाताप, लोगों के धन के प्रति लालची न होना, और जीभ पर ज्ञान (हिकमत) का प्रवाह, इनसे प्रेम के सांसारिक प्रभावों में से हैं। कुछ हदीसों के अनुसार, अहले बैत (अ) से प्यार करना हलाल जन्म की निशानी है और इनके दुश्मनों से दोस्ती करना अहले बैत से सच्चा प्रेम न करने की निशानी है।

मुहम्मद मुहम्मदी रय शहरी ने अहले बैत (अ) से प्रेम दिखाने के तरीकों में से एक अहले बैत (अ) के लिए शोक समारोह (अज़ादारी) का आयोजन माना है; जैसे, इमामों (अ) की क़ब्रों पर ज़ियारत के लिए जाना, उनके सर्वर समारोह में खुश होना, और अहले बैत (अ) के नाम पर बच्चों का नामकरण, इनसे स्नेह दिखाने के अन्य तरीक़े माने गए हैं। कुछ शोधकर्ताओं ने अहले बैत (अ) के प्रेम को प्राप्त करने के तरीकों का उल्लेख किया है, जिसमें अहले बैत (अ) के गुणों (फ़ज़ाएल) और संस्कृति का बयान करना और धार्मिक प्रतिनिधिमंडलों का आयोजन करना शामिल है।

कुछ लोग कुछ हदीसों का हवाला देते हुए यह मानते हैं कि अहले बैत से मुहब्बत करना ही आख़िरत में सआदत हासिल करने के लिए काफ़ी है, और उनका मानना है कि इस तरह की मुहब्बत अगर होगी, तो गुनाह करने से आख़िरत में उनको कोई नुक़सान नहीं होगा। लेकिन शिया विद्वानों ने इस तरह की बातों की आलोचना की है और इन हदीसों के लिए एक और अर्थ व्यक्त किया है। उदाहरण के लिए, उन्होंने कहा है कि ये हदीस लापरवाही से किए गए पापों से संबंधित हैं और जानबूझकर किए गए पापों से इसका कोई लेना-देना नहीं है।

अहले बैत (अ) प्रेम के विषय पर विभिन्न पुस्तकें लिखी गई हैं, जिनमें से हम मुहम्मद तक़ी अल-सय्यद यूसुफ़ अल-हकीम द्वारा लिखित "हुब्बे अहले अल बैत फ़ी अल किताब व अल सुन्नत" और "क़ुरआन व मुहब्बते अहले बैत (अ)" अली रज़ा अज़ीमीफ़र द्वारा लिखित का उल्लेख कर सकते हैं।

महत्व और स्थिति

मवद्दते अहले बैत (अ) सूर ए शोरा की आयत 23 से लिया गया शब्द है, जिसका अर्थ पैग़म्बर (स) के अहले बैत (अ) से प्रेम करना है, इस आयत के आधार पर, मवद्दते अहले बैत (अ) को पैग़म्बर के रेसालत के लिए एक इनाम के रूप में पेश किया गया है।[१] कुछ शिया विद्वानों का मानना है कि अहले बैत से मवद्दत का वुजूब इस्लाम धर्म की ज़रूरियात में से एक है।[२] ज़ियारते जामेअ कबीरा में, अहले बैत (अ) से प्रेम करना ईश्वर से प्रेम करने के समान है[३] और हदीसों में जिन्हे शिया और सुन्नी विद्वानों ने पैग़म्बर (स) से वर्णित किया है, अहले बैत (अ) से प्रेम इस्लाम का आधार माना गया है।[४] इमाम बाक़िर (अ) की एक हदीस में, अहले बैत (अ) का प्रेम ईमान और इनसे शत्रुता कुफ़्र के समान माना गया है।[५]

14 वीं शताब्दी के विद्वानों में से एक, मुहम्मद तक़ी मिस्बाह यज़्दी के अनुसार, अहले बैत से प्रेम, पैग़म्बर (स) के साथ उनकी रिश्तेदारी के कारण आवश्यक नहीं है बल्कि उनका प्रेम इसलिए आवश्यक है क्योंकि वे परमेश्वर की बंदगी के शिखर पर हैं।[६]

चार सुन्नी न्यायविदों में से एक, शाफ़ेई द्वारा वर्णित है:

إنْ كانَ رَفْضاً حُبُّ آلِ مُحَمَّد इन काना रफ़्ज़न हुब्बो आले मुहम्मद

فَلْيَشْهَد الثَقلان أنّى رافِضی फ़ल यशहद अल सक़लान अन्नी राफ़ेज़ी

अनुवाद: अगर मुहम्मद के परिवार से प्रेम रफ़्ज़ है, तो जिन्न और इंसान गवाही दें कि मैं भी राफ़्ज़ी हूँ।[७]

मवद्दत को मोहब्बत[८] और तवल्ला[९] या मोहब्बत का एक उच्च स्तर[१०] और ईश्वर के लिए प्रेम की एक शाखा माना गया है।[११]

शआएर की ताज़ीम

शिया हदीस के एक विद्वान मुहम्मद मुहम्मदी रय शहरी ने, अहले बैत (अ) के लिए शोक समारोह के आयोजन को उनके प्रति प्रेम व्यक्त करने और शआएर की ताज़ीम के सबसे महत्वपूर्ण उदाहरणों में से एक माना है।[१२] इसी तरह इमामों (अ) की क़ब्रों की ज़ियारत[१३] उनके सर्वर समारोह में खुश होना[१४] अहले बैत (अ) के गुणों को बयान करना[१५] और अहले बैत (अ) के नाम पर अपने बच्चों का नामकरण, अहले बैत (अ) के प्रति प्रेम व्यक्त करने का तरीका माना जाता है।[१६]

अहले बैत (अ) की मवद्दत वाजिब होना

कुछ विद्वानों ने अहले बैत (अ) से मवद्दत को, मुसलमानों पर अहले बैत (अ) के अधिकारों में से एक[१७] और मुसलमानों की आम मान्यताओं (अक़ाएद)[१८] और मुसलमानों की एकता के लिए एक उपयुक्त कारक माना है।[१९] कुछ शिया विद्वान का मानना है कि सभी मुसलमान (नासेबी के अलावा) इस बात से सहमत हैं कि अहले बैत (अ) की मवद्दत वाजिब है।[२०] सुन्नी विद्वानों में से एक शम्सुद्दीन ज़हबी का मानना है कि अहले बैत (अ) की मवद्दत पर किसी भी तरह का संदेह खारिज है।[२१] अहले सुन्नत के टीकाकारों में से एक, फख़रे राज़ी, अहले बैत (अ) से प्रेम को इस तर्क के साथ अनिवार्य मानते हैं कि पैग़म्बर (स), अली (अ), फ़ातिमा (स), हसन (अ) और हुसैन (अ) से प्रेम करते थे और पैग़म्बर (स) का अनुसरण करना है सभी इस्लामी उम्मत के लिए अनिवार्य है।[२२]

शाफ़ेई से वर्णित हुआ है:

یا أهلَ بیتِ رسولِ الله حُبُّکُم या अहला बैते रसूलिल्लाह हुब्बोकुम

فَرضٌ مِنَ الله فِی القرآنِ أنزَلَهُ फ़राज़ुन मिनल्लाह फ़िल क़ुरआने अंज़लाहू[२३]

हे रसूले ख़ुदा के परिवार, तुम्हारा प्रेम ईश्वर की ओर से अनिवार्य है और क़ुरआन में नाज़िल हुआ है।

वुजूब का फ़लसफ़ा

तफ़सीर अल-मीज़ान के लेखक अल्लामा तबातबाई का मानना है कि अहले बैत (अ) की मवद्दत के वाजिब होने का फ़लसफ़ा उनकी इल्मी मरज़ेईयत रही है, ताकि मुसलमान, अहले बैत (अ) के प्रति अपने प्रेम के कारण वैज्ञानिक मामलों में उनकी तरफ़ मुराजेआ करें। इसी कारण, वह धर्म के अस्तित्व की गारंटी के रूप में अहले बैत (अ) की मवद्दत का परिचय देते हैं।[२४] शिया विद्वान और 14 वीं चंद्र शताब्दी के लेखक मुहम्मद रज़ा मुज़फ़्फ़र के अनुसार, इसमें कोई संदेह नहीं है कि अहले बैत (अ) का प्रेम और स्नेह ईश्वर के साथ उनकी निकटता और ईश्वर के साथ उनकी स्थिति और प्रतिष्ठा के कारण है। और क्योंकि वे बहुदेववाद (शिर्क) और पापों से और हर उस चीज़ से मुक्त हैं जो ईश्वर से दूर करती हैं, वे पाक और मुनज़्ज़ा हैं।[२५] इस्लामी गणराज्य ईरान के नेता आयतुल्लाह ख़ामेनेई इस मवद्दत को अहले बैत (अ) का पालन करने का आधार मानते हैं, उनका मानना है कि मवद्दत के माध्यम से लोगों का एतेक़ाद अहले बैत (अ) की विलायत पर सुरक्षित रहेगा।[२६] 14वीं शताब्दी के विद्वानों में से एक, मुहम्मद तक़ी मिस्बाह यज़्दी के अनुसार, अहले बैत (अ) का प्रेम इस कारण आवश्यक नहीं है क्योंकि उनकी पैग़म्बर (स) के साथ रिश्तेदारी है, बल्कि उनका प्रेम इसलिए वाजिब है क्योंकि वे ईश्वर की बंदगी में चरम पर हैं।[२७] इसके अलावा, हौज़ ए इल्मिया क़ुम में धर्मशास्त्र के प्रोफेसरों में से एक, अली रब्बानी गुलपायगानी का मानना है कि इस मवद्दत के वाजिब होने का फ़लसफ़ा अहले बैत का अनुसरण है, और सच्ची मवद्दत केवल उनका पालन करके प्राप्त की जा सकती है।[२८] क़ुम मदरसा के लेखकों में से एक, जवाद मुहद्दसी के अनुसार, जितना अधिक आपका प्रेम अहले बैत (अ) के प्रति होगा, उतना ही आप उनका अनुसरण करेगें।[२९]

आसार

शोधकर्ताओं ने अहले बैत (अ) की मवद्दत को पूर्णता (कमाल)[३०] की ओर बढ़ने के लिए एक कारक और अहले बैत (अ) के प्रेमियों के दिलों को एक दूसरे से जोड़ने का कारक[३१] और धर्म को व्यवस्था और अखंडता का स्रोत माना है।[३२] इमाम अली (अ) की एक हदीस के आधार पर अबू नईम इस्फ़ाहानी और उबैदुल्लाह हस्कानी (5वीं शताब्दी हिजरी के एक सुन्नी विद्वान) ने उल्लेख किया है कि केवल मोमेनीन ही अहले बैत (अ) की मवद्दत का पालन करते हैं।[३३]

आख़िरत के आसार

पैग़म्बर (स) की एक हदीस के अनुसार, उनसे और अहले बैत (अ) से मवद्दत करने का लाभ सात स्थानों पर ज़ाहिर होता है: 1. मृत्यु के समय 2. क़ब्र में 3. क़यामत के समय 4. नाम ए आमाल प्राप्त करते समय 5. आमाल की गणना करने के समय 6. मीज़ान के किनारे 7. पुले सेरात को पार करते समय[३४] सुन्नियों द्वारा वर्णित एक अन्य रिवायत के अनुसार, एक व्यक्ति जो अहले बैत (अ) की मवद्दत के साथ मर जाता है वह शहीद की तरह है, क्षमा प्राप्त किये और ईमाने कामिल के साथ मरता है, और मृत्यु के समय, उसे स्वर्ग की खुशख़बरी दी गई है, उसकी क़ब्र में स्वर्ग के दो द्वार खोल दिए जाएगें और ईश्वर फ़रिश्तों को उसकी क़ब्र के ज़ाएरों (तीर्थयात्रियों) के रूप में नियुक्त करेगा।[३५] अहले बैत (अ) से मवद्दत के अन्य आसार का भी उल्लेख किया गया है, जो इस प्रकार हैं:

  • शेफ़ाअत हासिल करना; पैग़म्बर (स) की हदीस में वर्णित हुआ है जो भी अहले बैत (अ) से मवद्दत करता होगा वह उनकी शेफ़ाअत के साथ स्वर्ग में प्रवेश करेगा।[३६]
  • अहले बैत (अ) के साथ महशूर होना; पैग़म्बर (स) की एक हदीस के अनुसार, अहले बैत (अ) के प्रेमी क़यामत के दिन उनके साथ महशूर होंगे।[३७]
  • आमाल का स्वीकार होना; इमाम अली (अ) से अबू हमज़ा सोमाली द्वारा सुनाई गई एक रिवायत में, क़यामत के दिन, अगर लोगों को अहले बैत (अ) से प्रेम होगा, तो उनके अन्य आमाल स्वीकार किए जाएंगे, लेकिन अगर उनके पास यह प्रेम नहीं है, तो उनके अन्य आमाल को स्वीकार नहीं किया जाएगा।[३८]
  • बाक़ियात सालेहात; इमाम सादिक़ (अ) की एक हदीस में, अहले बैत (अ) की मवद्दत को बाक़ियात सालेहात में से एक के रूप में पेश किया गया है।[३९]
  • पुले सेरात पर स्थिर क़दम; जाफ़रयात किताब की एक हदीस के अनुसार, जो भी व्यक्ति अहले बैत (अ) से अधिक प्रेम करता होगा, वह पुले सेरात पर अधिक स्थिर क़दम होगा।[४०]
  • पापों की क्षमा; पैग़म्बर (स) की एक हदीस के अनुसार, अहले बैत (अ) के प्रेम द्वारा पाप क्षमा कर दिए जाते हैं।[४१] 10 वीं शताब्दी में सुन्नी विद्वानों में से एक, इब्ने हजर हैतमी, बाब उल-हित्ता की हदीस का हवाला देते हुए मानते हैं कि जिस तरह ईश्वर ने बनी इस्राईल के बाब उल-हित्ता से प्रवेश को पापों की क्षमा का कारण बनाया है, उसी तरह इस्लामिक उम्मत में भी अहले बैत (अ) की मवद्दत को उनकी क्षमा का कारण बनाया।[४२]

सांसारिक आसार

पैग़म्बर (स) की एक हदीस में, निम्नलिखित चीजों को अहले बैत (अ) से प्रेम के, सांसारिक आसार के रूप में पेश किया गया है: ज़ोहद, कार्य करने की उत्सुकता, धर्म में पवित्रता, इबादत के लिए जुनून, मृत्यु से पहले पश्चाताप (तौबा), रातों में जागकर इबादत करने में खुशी, लोगों के धन का लोभ न होना, क्षमा, ईश्वर के आदेशों और निषेधों पर ध्यान देना और दुनिया से प्यार नहीं करना।[४३] इमाम बाक़िर (अ) की एक हदीस के अनुसार, ईश्वर उन लोगों के दिलों को पाक करता है जो अहले बैत (अ) से प्रेम करते हैं।[४४] इमाम सादिक़ (अ) की एक हदीस में कहा गया है कि जो अहले बैत के प्रेम को अपने दिल में रखता है। तो वह ज्ञान की ही बातें करता है।[४५]


निशानी

इमाम बाक़िर (अ) की एक हदीस है कि अहले बैत (अ) से प्रेम और उनके दुश्मनों से प्रेम, दोनो एक साथ जमा नहीं हो सकता और अगर कोई शख़्स अहले बैत (अ) के दुश्मन से प्रेम करे तो यह अहले बैत (अ) से सच्चे प्रेम न होने की निशानी है।[४६] इसके अलावा, इमाम अली (अ) की एक हदीस के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति अहले बैत (अ) के प्रेमियों से प्रेम नहीं करता है, तो उसे अहले बैत (अ) का सच्चा प्रेमी नहीं माना जाता है।[४७] एक अन्य हदीस के अनुसार, बेग़ैरत पुरुष, ज़ेना द्वारा जिसका जन्म हुआ हो, जो लोग महिला जैसा दिखावा करते हैं (महिलाओं जैसा कपड़ा पहनते है या जो चीज़े महिलाओं से विशिष्ट हैं उनका उपयोग करते हैं), और जिन लोगों की मां मासिक धर्म के दौरान गर्भवती हो जाती हैं, वे अहले-बैत (अ) से प्रेम नहीं करते हैं।[४८] एक हदीस में, अहले बैत (अ) से प्रेम करना जन्म की पवित्रता का संकेत माना गया है।[४९] अहले बैत के लिए व्यावहारिक आज्ञाकारिता को महत्वपूर्ण उदाहरणों में से एक माना गया है और अहले बैत के लिए अपने प्यार को व्यक्त करने में एक व्यक्ति की सच्चाई का संकेत माना जाता है।[५०]

अहले बैत (अ) का प्रेम हर पाप को मिटा देता है?

धार्मिक लोगों के एक समूह का मानना है कि अहले बैत (अ) के प्रेम से हर पाप मिट जाता है, और जो लोग अहले बैत से प्रेम करते हैं उनके पाप करने से आख़िरत की सआदत पर कोई असर नहीं होगा।[५१] अली नसीरी मदरसा के विद्वानों में से एक के अनुसार, जो यह कहते हैं कि अहले बैत के प्रेम से हर पाप मिट जाता है उनमें से अधिकांश के पास गहरा वैज्ञानिक समर्थन नहीं है और इन जैसी हदीसों पर भरोसा करते हैं[५२] "अली का प्रेम ऐसी नेकी (हसना) है जिसे कोई पाप प्रभावित नहीं करता है, और अली की नफ़रत एक ऐसा पाप है जिससे किसी भी अच्छे व्यक्ति को लाभ नहीं पहुंचेगा"[५३]" मोहक़्क़िक़ बहरानी (1075-1121 हिजरी) ने इस हदीस को मुस्तज़ीफ़ा माना है।[५४] लेकिन कुछ शिया विद्वानों ने इस हदीस के लिए एक और अर्थ का उल्लेख किया है जो एबाहेगरी (अहले बैत (अ) के प्रेम से हर पाप मिट जाता है) की सोच के अनुरूप नहीं है;[५५] उदाहरण के लिए, शिया धर्मशास्त्रियों में से एक, शेख़ मुफ़ीद के अनुसार, एक संभावना है वह पापी लोग जो केवल अहले बैत (अ) की मारेफ़त रखते हैं, उन्हें सिर्फ़ बरज़ख़ में पीड़ा दी जाएगी, ताकि क़यामत के दिन वे अपने पापों से मुक्त हो जाऐं और नर्क की आग से बच जाऐं।[५६] कुछ विद्वानों के अनुसार, अहले बैत (अ) के प्रेम से केवल लापरवाही से किए गए पापों को क्षमा किया जाएगा, जानबूझकर किए गए पापों को नहीं।[५७]

मुहम्मद तक़ी अल-सय्यद यूसुफ़ अल-हकीम द्वारा लिखित "मवद्दतो अहले बैत व फ़ज़ाएलोहुम फ़िल किताबे वल सुन्ना"

अली नसीरी के अनुसार, इस तरह की सोच का अन्य धर्मों के साथ-साथ इस्लाम में भी एक इतिहास है, और अहले सुन्नत और ग़ाली शिया से मुरजेआ और कर्रामिया जैसे कुछ संप्रदायों की भी ऐसी ही मान्यता है।[५८] उनका मानना है कि कुछ लोगों के बीच एबाहेगरी की मान्यता इसलिए बनी है क्योंकि वे धार्मिक विद्वानों के विचारों और फतवों पर ध्यान नहीं देते हैं।[५९] जवाद मोहद्दिसी अहले बैत से प्रेम करने के साथ-साथ पापपूर्ण कार्यों को करने के दावे को एक तरह का विरोधाभास मानते हैं, उनका मानना है कि यह एक सच्चा प्रेम है जो उनकी आज्ञा मानने की ओर ले जाता है।[६०] फ़िक़हे अल रज़ा में (वह किताब जिसकी निसबत इमाम रज़ा (अ) की ओर दी जाती है) नेक काम और अहले बैत के प्यार के बीच के रिश्ते को दोतरफा रिश्ता माना जाता है, इस तरह, उनमें से कोई भी दूसरे के बिना स्वीकार नहीं किया जाता है।[६१] इमाम बाक़िर (अ) की एक हदीस के अनुसार, जो कोई भी ईश्वर का पालन करता है वह अहले बैत का मित्र है, और जो ईश्वर के आदेशों की अवहेलना करता है, वह अहले बैत का दुश्मन है।[६२]

मोनोग्राफ़ी

अहले बैत (अ) से प्रेम के विषय पर लिखी गई कुछ किताबें इस प्रकार हैं:

  • मुहम्मद तक़ी अल-सय्यद यूसुफ़ अल-हकीम द्वारा लिखित;"मवद्दतो अहले बैत व फ़ज़ाएलोहुम फ़ी किताबे वल सुन्ना" और "हुब्बो अहल्लबैत फ़िल किताबे वल सुन्ना"; इन दो पुस्तकों के विषयों को पाँच मुख्य अध्यायों में व्यवस्थित किया गया है। पहली किताब 1419 हिजरी में 140 पन्नों में रेसाला पब्लिशिंग हाउस[६३] और दूसरी किताब 1424 हिजरी में 278 पन्नों में अल-फिक्र अल-इस्लामी पब्लिशिंग हाउस[६४] द्वारा प्रकाशित हुई थी।
  • अली रज़ा अज़ीमीफ़र द्वारा लिखित "क़ुरआन व महब्बते अहलेबैत (अ)"; इस पुस्तक में, लेखक ने क़ुरआन में अहले बैत के प्रेम की जांच की है, और इसके अंतिम भाग में, मवद्दत की आयत में सुन्नियों की शंकाओं का उत्तर दिया है।[६५] इस पुस्तक को दानिशकदेह उसूले दीन ने 360 पृष्ठों में वर्ष 1394 शम्सी में प्रकाशित किया गया था।[६६]
  • असग़र ताहिरज़ादेह द्वारा लिखित; "मबानी नज़री व इल्मी हुब्बे अहले बैत (अ)", यह पुस्तक, जो वास्तव में लेखक के व्याख्यानों का अनुवादित पाठ है, वर्ष 1388 में लब अल मीज़ान पब्लिशिंग हाउस द्वारा 333 पृष्ठों में प्रकाशित की गई थी।[६७]
  • अब्दुल रज़ा जमाली द्वारा लिखित; "महब्बत नेजात बख़्श"; इस किताब में, लेखक ने दुनिया, बरज़ख़ और क़यामत में अहले बैत (अ) के प्रेम की जांच की है,[६८] यह पुस्तक 1393 शम्सी में ज़मज़म हेदायत पब्लिशिंग हाउस के प्रयासों से प्रकाशित हुई थी।[६९]

सम्बंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. बशवी, हुक़ूक़े अहले बैत (अ) दर तफ़ासीर अहले सुन्नत, 1434 हिजरी, पृष्ठ 103।
  2. मुज़फ्फ़र, अक़ाएद अल-इमामिया, 1387 शम्सी, पृष्ठ 72; मूसवी ज़ंजानी,अक़ाएद अल-इमामिया अल-इसना अल-अशरिया, 1413 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 181।
  3. शेख़ सदूक़, मन ला यहज़राहुल फ़कीह, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 613।
  4. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 46; शेख़ सदूक़, मन ला यहज़राहुल फकीह, 1413 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 364; इब्ने असाकर, तारीख़े दमिश्क़, 1415 हिजरी, खंड 43, पृष्ठ 241।
  5. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 188।
  6. अल्लामा हिल्ली, मिन्हाज अल-करामा, 1379 शम्सी, पृष्ठ 122।
  7. शाफ़ेई, दीवाने अल-इमाम अल-शाफ़ेई, क़ाहिरा, पृष्ठ 89।
  8. फ़खलाई, आशनाई बा पीशीने, मबानी व दीदगाहाए मज़हबे शिया, 1387 शम्सी, पृष्ठ 118।
  9. फ़खलाई, आशनाई बा पीशीने, मबानी व दीदगाहाए मज़हबे शिया, 1387 शम्सी, पृष्ठ 123।
  10. तबातबाई, अल-मीज़ान, 1417 हिजरी, खंड 16, पृष्ठ 166; जवादी आमोली, तस्नीम, 1389 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 51-50।
  11. अमिनी और अन्य, "हम सन्जी अरज़िश इख़्लाक़ी इत्तेहाद व उलफ़त बा मवद्दत ज़िल क़ुरबा व तासीरे आन दर रुशदे मानवी इंसान अज़ दीदगाहे क़ुरआन व हदीस", पृष्ठ 11।
  12. मुहम्मदी रयशहरी, फ़हंग नामे मरसिया सराई व अज़ादारी सय्यद उश शोहदा, 1387 शम्सी, पृष्ठ 11-12।
  13. अकबरयान, "महब्बते अहले बैत (अ) दर क़ुरआन", पृष्ठ 42।
  14. अकबरयान, "महब्बते अहले बैत (अ) दर क़ुरआन", पृष्ठ 44।
  15. खादमी, "महब्बत बे पयाम्बर व अहले बैत अज़ दीदगाहे क़ुरआन व रवायात", पृष्ठ 25।
  16. खादमी, "महब्बत बे पयाम्बर व अहले बैत अज़ दीदगाहे क़ुरआन व रवायात" पृष्ठ 26।
  17. बशवी, हुक़ूक़े अहले बैत (अ) दर तफ़ासीर अहले सुन्नत, 1434 हिजरी, पृष्ठ 103।
  18. फ़खलाई, आशनाई बा पीशीने, मबानी व दीदगाहाए मज़हबे शिया, 1387 शम्सी, पृष्ठ 119।
  19. तस्ख़ीरी, वहदते इस्लामी बर पायए मरजईयत इल्मी अहले बैत (अ), 1388 शम्सी, पृष्ठ 92।
  20. मुज़फ्फ़र, अक़ाएद अल-इमामिया, 1387 शम्सी, पृष्ठ 72; मूसवी ज़ंजानी, अक़ाएद अल-इमामिया अल-इसना अल-अशरिया, 1413 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 181; तिजानी, फ़सअलू अहलज़ ज़िक्र, 1427 हिजरी, पृष्ठ 237।
  21. ज़हबी, अल-मुंतकी मिन मिन्हाज अल-इतेदाल, 1413 हिजरी, पृष्ठ 451-452।
  22. फ़ख़्रे राज़ी, अल-तफ़सीर अल-कबीर, 1420 हिजरी, खंड 27, पृष्ठ 595।
  23. शाफ़ेई, दीवान अल-इमाम अल-शाफ़ेई, क़ाहिरा, पृष्ठ 121।
  24. तबातबाई, अल-मीज़ान, 1417 हिजरी, खंड 18, पृष्ठ 46-47।
  25. मुज़फ्फ़र, अक़ाएद अल-इमामिया, 1387 शम्सी, पृष्ठ 73।
  26. ख़ामेनेई,"छात्रों और मौलवियों के एक समूह के साथ एक बैठक में बयान", ग्रैंड आयतुल्लाह ख़ामेनेई के कार्यों के संरक्षण और प्रकाशन के लिए कार्यालय की साइट पर।
  27. मिस्बाह यज़दी, पंदहा ए इमाम सादिक़ बे रह जोयान सादिक़, 1391 शम्सी, पृष्ठ 309।
  28. रब्बानी गोलपायगानी, "दरसे इमामत" मदरसा फक़ाहत की साइट पर।
  29. मोहद्दसी, "राहाए इजादे महब्बते अहले बैत दर नौजवानान व जवानान", पृष्ठ 11।
  30. हाशमी और अन्य, "कारकिर्दहाए तरबीयती मवद्दते अहले बैत (अ)", पृष्ठ 22।
  31. हाशमी और अन्य, "कारकिर्दहाए तरबीयती मवद्दते अहले बैत (अ)", पृष्ठ 23।
  32. अमीनी और अन्य, "हम संजी अरज़िशे अख़्लाक़ी इत्तेहाद व उल्फ़त बा मवद्दत ज़िल क़ुर्बा व तासीरे आन दर रुशदे मानवी ए इंसान अज़ दीदगाहे क़ुरआन व सुन्नत", पृष्ठ 200।
  33. असबहानी, तारीख़े असबहान, 1410 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 134; हस्कानी, शवाहिद अल-तंजील, 1411 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 205।
  34. शेख़ सदूक़, खेसाल, 1362 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 360।
  35. सालबी, अल-कशफ़ व अल-बयान, 1422 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 314।
  36. बरक़ी, अल-महासिन, 1371 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 61।
  37. ख़ज़्ज़ाज़ राज़ी, केफ़ैया अल-असर, 1401 हिजरी, पृष्ठ 300।
  38. सफ़्फ़ार, बसाएर अल-दराजात, 1404 हिजरी, पृष्ठ 364।
  39. शेख़ मुफ़ीद, अल-इख़्तेसास, 1413 हिजरी, पृष्ठ 86।
  40. इब्ने अशअस, इशइस्यात, मकतबा अल नैनवा, पृष्ठ 182।
  41. शेख़ तूसी, अमाली, 1414 हिजरी, पृष्ठ 164।
  42. हैसमी, अल-सवाईक़ अल-मुहर्रक़ा, 1417 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 447।
  43. शेख़ सदूक़, खेसाल, 1362 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 515।
  44. क़ुमी, तफ़सीरे क़ुमी, 1404 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 372।
  45. बरक़ी, महासिन, 1371 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 61।
  46. क़ुमी, तफ़सीरे क़ुमी, 1404 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 172।
  47. शेख़ मुफीद, अमाली, 1413 हिजरी, पृष्ठ 334।
  48. कुतुबुद्दीन रावंदी, अल-खराएज व अल-जराएह, 1409 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 178।
  49. बरक़ी, महासिन, 1371 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 138।
  50. ख़ादमी, "महब्बत बे पयाम्बर व अहले बैत अज़ दीदगाहे क़ुरआन व रवायात", पृष्ठ 24।
  51. नसीरी, "एबाहेगरी, आफ़ते दीनदारी", पृष्ठ 12।
  52. नसीरी, "एबाहेगरी, आफ़ते दीनदारी", पृष्ठ 12।
  53. शेख़ मुफ़ीद, अवाएल अल-मक़ालात, 1413 हिजरी, पृष्ठ 335; इब्ने शहर आशूब, अल-मनक़ीब, 1379 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 197।
  54. मोहक़्क़िक बहरानी, अल-अरबाऊन, 1417 हिजरी, पृष्ठ 105।
  55. नसीरी, "एबाहेगरी, आफ़ते दीनदारी", पृष्ठ 12।
  56. शेख़ मुफीद, अवाएल अल-मक़ालात, 1413 हिजरी, पृष्ठ 75-76।
  57. तरकाशवंद, "महब्बते अहले बैत व रस्तगारी", पृष्ठ 24।
  58. नसीरी, "एबाहेगरी, आफ़ते दीनदारी", पृष्ठ 8-10।
  59. नसीरी, "एबाहेगरी, आफ़ते दीनदारी", पृष्ठ 14।
  60. मोहद्दसी, "राहाए इजादे महब्बते अहले बैत दर नौजवानान व जवानान", पृष्ठ 15।
  61. इमाम रज़ा (अ) से मंसूब, फ़िक़ह अल-रज़ा, 1406 हिजरी, पृष्ठ 339।
  62. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 75।
  63. अल-हकीम, मवद्दतो अहल अल बैत व फ़ज़ाएलोहुम फ़िल किताबे वल सुन्ना, 1419 हिजरी।
  64. अल-हकीम, हुब्बो अहल अल बैत फ़िल किताब वल सुन्ना, 1424 हिजरी।
  65. अज़ीमीफ़र, क़ुरआन व महब्बते अहले बैत, 1394 शम्सी।
  66. अज़ीमीफ़र, क़ुरआन व महब्बते अहले बैत, 1394 शम्सी।
  67. ताहिरज़ादेह, मबानी नज़री व इल्मी हुब्बे अहले बैत (अ), 1390 शम्सी, पृष्ठ 4।
  68. जमाली, महब्बत नेजातबख्श, 1393 शम्सी।
  69. जमाली, महब्बत नेजातबख्श, 1393 शम्सी।


स्रोत

  • इब्ने अशअस, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अशअसयात, तेहरान, अल-नैनवा स्कूल, बी ता।
  • इब्ने शहर आशोब, मुहम्मद बिन अली, अल-मनाक़िब, क़ुम, अल्लामा, 1379 हिजरी।
  • इब्ने असाकर, अली इब्ने अल-हसन, तारीख़े दमिश्क़, बी जा, दार अल-फ़िक्र, 1415 हिजरी।
  • असबहानी, अबू नईम, तारीख़े असबहान, बैरूत, दार अल-कुतुब अल-इल्मिया, 1410 हिजरी।
  • अकबरयान, सय्यद मुहम्मद, "महब्बते अहले बैत दर क़ुरआन", राहे तोशेह पत्रिका में, नंबर 115, वसंत और ग्रीष्म 1398 शम्सी।
  • अल-हकीम, मुहम्मद तक़ी अल-सय्यद यूसुफ, हुब्ब अहल अल-बैत फ़िल किताब व सुन्ना, हॉलैंड, अल-फ़िक्र अल-इस्लामी फाउंडेशन, 1424 हिजरी।
  • अल-हकीम, मुहम्मद तक़ी अल-सय्यद यूसुफ़, मवद्दतो अहल अल-बैत व फ़ज़ाएलोहुम फ़िल किताब व सुन्ना, क़ुम, रेसाला, 1419 हिजरी।
  • अमिनी, सिद्दीका, और अन्य, "हम संजी अरज़िशे अख़्लाक़ी इत्तेहाद व उल्फ़त बा मवद्दत ज़िल क़ुर्बा व तासीपे आन दर रुशदे मानवी ए इंसान अज़ दीदगाहे क़ुरआन व हदीस," सांस्कृतिक पत्रिका में और क्षेत्र के सामाजिक अध्ययन, संख्या 11, वसंत और 1401 शम्सी की गर्मी।
  • बरक़ी, अहमद बिन मुहम्मद, अल-महासिन, क़ुम, दार अल-किताब अल-इस्लामिया, 1371 शम्सी।
  • बशवी, मुहम्मद याक़ूब, हुक़ूक़े अहल अल-बैत (अ) दर तफ़्सीरे अहले सुन्नत, क़ुम, अल-मुस्तफा इंटरनेशनल ट्रांसलेशन एंड पब्लिशिंग सेंटर, 1434 हिजरी।
  • तर्काशवंद, हसन, "मोहब्बते अहले बैत व रस्तेगारी", फ़रहंग ज़ियारत पत्रिका में, संख्या 26, फ़रवरदीन 1395 शम्सी।
  • तस्ख़ीरी, मुहम्मद अली, वहदते इस्लामी बर पाय ए मरजइयत इल्मी ए अहले बैत (अ), जलाल मीर आग़ाई द्वारा अनुवादित, तेहरान, इस्लामिक धर्मों के सन्निकटन की विश्व सभा, 1388 शम्सी।
  • तिजानी, मुहम्मद, फ़सअलू अहल्ज़ ज़िक्र, क़ुम, अलह-अल-बैत संस्थान, 1427 हिजरी।
  • सालबी, अहमद इब्ने इब्राहीम, अल-कशफ़ व अल-बयान अन तफ़सीर अल-कुरान, बेरुत, दार अहया अल-तोरास अल-अरबी, 1422 हिजरी।
  • जमाली, अब्दुल रज़ा, मोहब्बते नेजातबख्श, क़ुम, ज़मज़म हिदायत, 1389 शम्सी।
  • जवादी आमोली, अब्दुल्ला, तसनीम, क़ुम, इसरा, 1389 हिजरी।
  • हस्कानी, उबैदुल्ला बिन अहमद, शवाहिद अल-तंजील, तेहरान, साज़माने चाप व इंतेशारात वेज़ारते इरशादे इस्लामी, 1411 हिजरी।
  • ख़ादमी, ऐनुल्लाह, "मोहब्बत बे पयाम्बर व अहले बैत अज़ दीदगाहे क़ुरआन व रवायात", कुरान शिक्षा के विकास के जर्नल में, नंबर 5, 1383 शम्सी।
  • खामेनेई, सय्यद अली, "बयानात दर दीदार बा जमई अज़ तुल्लाब व रूहानियून", ग्रैंड आयतुल्लाह खामेनेई के कार्यों के संरक्षण और प्रकाशन के कार्यालय की साइट पर, प्रवेश की तिथि: 22 आज़र 1388 शम्सी, बाज़दीद की तारीख: 6 इस्फ़ंद 1401 शम्सी।
  • ख़ज़्ज़ाज़ राज़ी, अली बिन मुहम्मद, केफ़ायतुल असर फ़िल नस अला अल-आइम्मा अल-इसना अशर, क़ुम, बीदार, 1401 हिजरी।
  • ज़हबी, शम्सुद्दीन, अल-मुंतकी मिन मिन्हाज अल-एतेदाल, रेयाज़, अल रेयासात अल आम्मा ले एदारात अल बोहूस अल इल्मिया व इफ़्ताए वल दावत व इरशाद, 1413 हिजरी।
  • रब्बानी गोलपायगानी, अली, "दरसे इमामत", फकाहत स्कूल की वेबसाइट पर, सम्मिलन की तिथि: 2 उर्दबहिश्त 1395 शम्सी, बाज़दीद की तिथि: 6 उर्दबहिश्त 1401 शम्सी।
  • शेख़ सदूक़, मुहम्मद बिन अली, अल-खेसाल, क़ुम, इस्लामी प्रकाशन कार्यालय, 1362 शम्सी।
  • शेख़ सदूक़, मुहम्मद बिन अली, मन ला यहज़रोहुल फक़ीह, क़ुम, इस्लामी प्रकाशन कार्यालय, 1413 हिजरी।
  • शेख़ तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल-अमाली, क़ुम, दार अल-सक़ाफ़ा, 1414 हिजरी।
  • शेख़ मुफ़ीद, मुहम्मद बिन नोमान, अल-अमाली, क़ुम, शेख़ मुफ़ीद की विश्व हज़ारा कांग्रेस, 1413 हिजरी।
  • शेख़ मुफ़ीद, मुहम्मद बिन नोमान, अल-इख़्तेसास, क़ुम, शेख़ मुफ़ीद हज़ारा वर्ल्ड कांग्रेस, 1413 हिजरी।
  • शेख़ मुफ़ीद, मुहम्मद बिन नोमान, अवाएल अल मक़ालात फ़िल मज़ाहिब व अल मुख़्तारात, बैरूत, दार अल-मुफ़ीद, 1413 हिजरी।
  • शाफ़ेई, मोहम्मद बिन इदरीस, दीवान अल इमाम अल शाफ़ेई, क़ाहेरा, मकतब इब्ने सीना, बी ता।
  • सफ़्फ़ार, मुहम्मद बिन हसन, बसाएर अल-दराजात फ़ी फ़ज़ाएल आले-मुहम्मद (अ), क़ुम, आयतुल्लाह मर्शी नजफ़ी लाइब्रेरी, 1404 हिजरी।
  • ताहिरज़ादेह, अली असग़र, मबानी ए नज़री व इल्मी हुब्बे अहले बैत (अ), इस्फ़ाहान, लुब अल मीज़ान, 1390 शम्सी।
  • तबातबाई, मुहम्मद हुसैन, अल-मीज़ान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरान, क़ुम, इस्लामी प्रकाशन कार्यालय, 1417 हिजरी।
  • अज़ीमीफ़र, अली रज़ा, क़ुरआन व मोहब्बते अहले बैत (अ), क़ुम, दानिश कदेह उसूलेदीन, 1394 शम्सी।
  • अल्लामा हिल्ली, हसन बिन यूसुफ़, मिन्हाज अल-करामा, मशहद, तासुआ, 1379 शम्सी।
  • फ़ख़्रे राज़ी, मुहम्मद इब्ने उमर, अल-तफ़सीर अल-कबीर, बैरूत, दार अहया अल-तोरास अल-अरबी, 1420 हिजरी।
  • फख़लाई, मोहम्मद तक़ी, आशनाई बा पीशीनेह, मबानी व दीदगाहा ए मज़हबे शिया, तेहरान, मशअर पब्लिशिंग हाउस, 1387 शम्सी।
  • कुतबुद्दीन रावंदी, सईद बिन हेबतुल्लाह, अल-खराएज व अल-जराएह, क़ुम, इमाम महदी संस्थान (अ.ज), 1409 हिजरी।
  • क़ुमी, अली इब्ने इब्राहीम, तफ़सीरे अल-क़ुमी, क़ुम, दार अल-कुतुब, 1404 हिजरी।
  • कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल-काफ़ी, तेहरान, दार अल-कुतुब अल-इस्लामिया, 1407 हिजरी।
  • मोहद्दसी, जवाद, "राहाए इजाद मोहब्बते अहले बैत दर नौजवानान व जवानान", फ़रहंग कौसर पत्रिका में, संख्या 29, मुरदाद 1378 शम्सी।
  • मोहक़्क़िक़ बहरानी, सुलेमान अल माहूज़ी, अल अरबाऊन हदीसन फ़ी इस्बाते इमामते अमीर अल-मोमेनीन, क़ुम, अल-मोहक़्क़िक़, 1417 हिजरी।
  • मोहम्मदी रयशहरी, मोहम्मद, फ़रहंग नामे मरसिया सराए व अज़ादारी सय्यद अल-शोहदा, तेहरान, मशअर, 1387 शम्सी।
  • मिस्बाह यज़दी, मोहम्मद तक़ी, पंदहाए इमाम सादिक़ (अ) बे रहजोयाने सादिक़, क़ुम, इमाम खुमैनी शैक्षिक और अनुसंधान संस्थान, 1391 शम्सी।
  • मंसूब बे इमाम रज़ा, अली बिन मूसा (अ), फ़िक़ह अल-रज़ा (अ), मशहद, आल-अल-बैत (अ) संस्थान, 1406 हिजरी।
  • नसीरी, "एबाहेगरी, आफ़ते दीनदारी", बुक क्रिटिसिज़्म मैगज़ीन में, संख्या 40, 1385 शम्सी।
  • हाशमी फ़ातिमा, और अन्य, "कारकिर्दहाए तरबीयती मवद्दते अहले बैत (अ)", संख्या 37, शरद ऋतु 1400 शम्सी।
  • हैतमी, इब्ने हजर, अल-सवाईक़ अल-मुहर्रक़ा अला अहले अल-रफ़ज़ व अल-ज़लाल वा अल-जिंदिक़ा, बैरूत, अल-रेसालाह संस्थान, 1417 हिजरी।