आलुल्लाह
आलुल्लाह (अरबी آلُ الله) या अल्लाह का वंश, हदीसों के अनुसार अहले-बैत (अ) की विशेषताओं में से है, जिसे शिया कवि और वक्ता भी अहले-बैत (अ) के लिए उपयोग करते हैं। यह प्रयोग अल्लाह की नज़रों में अहले-बैत (अ) की उच्च स्थिति के कारण है, न कि यह कि वे वास्तव में ईश्वर के परिवार और रिश्तेदारों से हैं। काबा के संरक्षक होने के कारण क़ुरैश को अल्लाह का परिवार कहा जाता था।
परिभाषा
आलुल्लाह उस परिवार को कहा जाता है जिसकी निस्बत अल्लाह की ओर दी जाती है।[१] "आल" शब्द अरबी के "अहल" से लिया गया है जिसका अर्थ परिवार, ख़ानदान, अनुयायी और संबंधी है।[२] यह शब्द क़ुरआन में इस्तेमाल हुआ है; जैसे आले इमरान[३] का अर्थ है इमरान का परिवार जिसमें मरियम (स) और ईसा (अ) शामिल हैं,[४] आले लूत[५] का अर्थ है लूत का परिवार[६] और आले फ़िरऔन[७] का अर्थ है फ़िरऔन के अनुयायी और सेना।[८] निस्संदेह, अल्लाह के साथ आल शब्द का जोड़ना एक औपचारिक जोड़ है, इसलिए यह ईश्वर के साथ उसके पारिवारिक संबंध को इंगित नही करता बल्कि यह उस चीज़ की महानता को इंगित करता है जिसे अल्लाह (ईश्वर) के साथ जोड़ा गया है।[९]
प्रतिमान
कुछ हदीसों के अनुसार इमामों (अ) के पास विशेष ज्ञान है क्योंकि वे "अहले सिर्रुल्लाह", "आलुल्लाह" और "नबीयों के उत्तराधिकारी" हैं।[१०] इसी आधार पर वक्ता (ख़तीब)[११] [नोट १] नीमे रजब (अर्थात 15 रजब को पढ़ी जाने) वाली इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत के पहले भाग में, "आलुल्लाह" शब्द आया है السَّلامُ عَلَیْکُمْ یَا آلَ اللهِ السَّلامُ عَلَیْکُمْ یَا صَفْوَةَ اللهِ अस्सलामो अलैकुम या आलल्लाहे अस्सलामो अलैकुम या सफ़्वतल्लाहे और दूसरी ज़ियारतो मे भी आलुल्लाह शब्द आया है।[१२] ज़ियारते अरबाईन (इमाम हुसैन अ के चेहलुम के दिन पढ़ी जाने वाली ज़ियारत) मे जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी[१३] और कवि अहले-बैत (अ) को संदर्भित करने के लिए "आलुल्लाह" शब्द का उपयोग करते हैं:
शिया संप्रदाय के अनुयायीयो का इमामो की अल्लाह से निसबत (संबंधित) होने के बारे मे कहना है कि उनकी महानता के कारण उन्हे आलुल्लाह कहा जाता है नाकि अल्लाह के साथ किसी प्रकार की रिश्तेदारी पर।[१४] क्योकि इमाम अल्लाह के साथ उच्चतम स्तर की निकटता रखते है इसलिए उनकी निसबत अल्लाह के साथ दी जाती है।[१५] जैसाकि क़ुरैश के गोत्र (क़बीले) को काबा के संरक्षक होने के कारण "जीरानुल्लाह" और "सकानुल्लाह" के अलावा उन्हे "आलुल्लाह" भी कहा जाता था।[१६] पांचवीं चन्द्र शताब्दी के शिया विद्वान मंसूर बिन हुसैन आबी के अनुसार अस्हाबे फ़ील की दास्तान (हाथियों के साथियों की घटना) ने क़ुरैश को महानता प्रदान की उसके कारण क़ुरैश "अहलुल्लाह" कहलाने लगे।[१७]
संबंधित लेख
नोट
- ↑ उदाहरण स्वरूप खुत्बे के आरम्भ मे इस वाक्य का इस्तेमाल किया हैः الحمدلله و الصلاة علی رسول الله و علی آله آل الله अल-हम्दो लिल्लाहे वस सलातो अला रसूलिल्लाहे वा अला आलुल्लाहे
फ़ुटनोट
- ↑ चरा बे अहले-बैत अलैहेमुस्सलाम, आलुल्लाह मी गूयंद, पाएगाह इत्तेला रसानी हौज़ा
- ↑ राग़िब इस्फ़हानी, अल-मुफ़रेदात, 1412 हिजरी, पेज 98
- ↑ सूर ए आले इमरान, आयत न 33
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1374 शम्सी, भाग 2, पेज 518
- ↑ सूर ए नम्ल, आयत न 56 सूर ए हिज्र, आयत न 61
- ↑ अल्लामा तबातबाई, अल-मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 15, पेज 376
- ↑ सूर ए बक़रा, आयत न 50 सूर ए अंफ़ाल, आयत न 54
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1374 शम्सी, भाग 1, पेज 251 क़रशी, तफ़सीरे अहसन अल-हदीस, 1391 शम्सी, भाग 1, पेज 120
- ↑ चरा बे अहले-बैत अलैहेमुस्सलाम, आलुल्लाह मी गूयंद, पाएगाह इत्तेला रसानी हौज़ा
- ↑ देखेः अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 31, पेज 592, भाग 44, पेज 184
- ↑ पासुख आयतुल्लाहिल उज़्मा वहीद, चरा बे अहले-बैत पयाम्बर आलुल्लाह मी गूयंद, खबरगुज़ारी रस्मी हौज़ा
- ↑ मजलिसी, बिहार उल अनवार, भाग 99, पेज 202
- ↑ मजलिसी, बिहार उल अनवार, भाग 98, पेज 329
- ↑ चरा बे अहले-बैत अलैहेमुस्सलाम, आलुल्लाह मी गूयंद, पाएगाह इत्तेला रसानी हौज़ा
- ↑ पासुख आयतुल्लाहिल उज़्मा वहीद, चरा बे अहले-बैत पयाम्बर आलुल्लाह मी गूयंद, खबरगुज़ारी रस्मी हौज़ा
- ↑ इब्ने अब्दुर बेह, अल-अक़्दुल फ़रीद, दार उल कुतुब अल-इल्मीया, भाग 3, पेज 226 अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 15, पेज 258 शेख सुदूक़, अल-अमाली, 1417 हिजरी, पेज 317
- ↑ आबी, नस्र अल-दुर, 1424 हिजरी, पेज 273
स्रोत
- आबी, मंसूर बिन हुसैन, नस्र अल-दुर फ़ी अल-मुहाज़ेरात, शोध महफ़ूज़ ख़ालिद अब्दुल ग़नी, बैरूत, दार उल कुतुब अल-इल्मीया, 1424 हिजरी
- इब्ने अब्दुर बेह, अहमद बिन मुहम्मद, अल-अक़्दुल फ़रीद, शोध अब्दुल मजीद तरहीनी, बैरूत, दार उल कुतुब अल-इल्मीया
- पासुख आयतुल्लाहिल उज़्मा वहीद, चरा बे अहले-बैत पयाम्बर आलुल्लाह मी गूयंद, खबरगुज़ारी हौज़ा, दर्जे मतलब 30 मेहेर 1393 शम्सी, वीजीट 10 आज़र 1399 शम्सी
- चरा बे अहले-बैत अलैहेमुस्सलाम आलुल्लाह मी गूयंद, पाएगाह इत्तेला रसानी हौज़ा, दर्जे मतलब 8 इस्फ़ंद 1391 शम्सी, वीज़ीट 10 आज़र 1399 शम्सी
- राग़िब इस्फ़हानी, हुसैन बिन मुहम्मद, अल-मुफ़रेदात फ़ी ग़रीब अल-क़ुरआन, दार अल-क़लम, 1412 हिजरी
- शेख़ सुदूक़, मुहम्मद बिन अली, अल-अमाली, क़ुम, मोअस्सेसा अल-बेसत, 1417 हिजरी
- अल्लामा तबातबाई, मुहम्मद हुसैन, अल-मीज़ान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, दफ़्तरे इंतेशाराते इस्लामी, 1417 हिजरी
- अल्लामा मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार उल अनवार, बैरूत, इंतेशाराते मोअस्सेसा अल-वफ़ा, 1403 हिजरी
- क़रशी, अली अकबर, तफ़सीर अहसन अल-हदीस, दफ़तरे इंतेशाराते नवीद इस्लाम, 1391 शम्सी
- मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफ़सीरे नमूना, दार अल-कुतुब अल-इस्लामीया, तेहरान, 1374 शम्सी