ख़ुतबा मुत्तक़ीन

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ख़ुतबा मुत्तक़ीन या ख़ुतबा हम्माम, नैतिकता और पवित्रता के क्षेत्र में नहज अल-बलाग़ा के प्रसिद्ध उपदेशों में से एक है। इमाम अली (अ.स.) ने यह उपदेश हम्माम नामक अपने एक साथी के अनुरोध पर दिया था। यह उपदेश सुनकर हम्माम की हालत बदल गई और वह बेहोश हो गये और उसी क्षण उनकी आत्मा उनके शरीर से निकल गई। मुत्तक़़ीन के उपदेश में मुत्तक़ीन के व्यक्तिगत, सामाजिक और भक्तिपूर्ण व्यवहारों का वर्णन किया गया है। इन गुणों में हम विश्वसनीयता, क्रोध व ग़ुस्से को पी जाना, नम्रता और उपासना में ईश्वर के डर (ख़ुशूअ) का उल्लेख कर सकते हैं।

इस उपदेश का उल्लेख नहज अल-बलाग़ा के अलावा अन्य स्रोतों में भी किया गया है, जैसे अल-तमहीस, अमाली शेख़ सदूक़ और कंज़ुल फवायद; अत: कुछ शोधकर्ताओं ने इस उपदेश को अधिक बार उल्लेख होने वाला (मुतवातिर) माना है। दूसरों का मानना ​​है कि इस उपदेश का मूल स्वरूप छोटा था और समय के साथ इसमें कई वाक्य जुड़ते गये हैं।

नहज अल-बलाग़ा पर पूर्ण रूप से लिखे गए अनुवादों और टिप्पणियों के अलावा, इस उपदेश के लिये विशिष्ट विवरण और अनुवाद भी किये हैं, जिनमें अख़लाक़े इस्लामी दर, राह व रस्मे परहेज़गारान व अशअतुन मिन ख़ुतबतिल मुत्तक़ीन शामिल हैं।

कहा गया है कि इस उपदेश में प्रयुक्त साहित्यिक सरणियाँ अत्यंत सरस एवं फ़सीह व बलीग़ हैं तथा शब्दों के संगीत एवं लय पर विशेष ध्यान दिया गया है।

परिचय एवं स्थिति

मुत्तक़ीन उपदेश नहज अल-बलाग़ा के प्रसिद्ध उपदेशों में से एक है[१] और इसे इरफ़ान और प्रशिषण के बारे में इमाम अली (अ.स.) के महत्वपूर्ण उपदेशों में से एक माना जाता है।[२] शिया मरजए तक़लीद में से एक, आयतुल्लाह नासिर मकारिम शिराज़ी, इस उपदेश को नैतिकता और तक़वा के क्षेत्र में नहज अल-बलाग़ा का सबसे व्यापक उपदेश मानते है।[३] कुछ अध्ययनों में, इस उपदेश को नैतिकता को समझने और स्वयं को परिष्कृत (स्वयं सुधार) करने के लिए एक उपयुक्त स्रोत के रूप में पेश किया गया है।[४] क़ुरआन के टिप्पणीकारों में से एक, मोहम्मद तक़ी मिस्बाह यज़्दी के अनुसार, यह उपदेश इमाम बाक़िर (अ)[५] और इमाम सादिक़ (अ)[६] द्वारा भी सुनाया गया है, जो इसके महत्व को दर्शाता है।[७] हालाँकि सय्यद रज़ी ने नहज अल-बला़ग़ा में इस उपदेश के लिए किसी नाम का उल्लेख नहीं किया है, [८] लेकिन इस उपदेश में धर्मनिष्ठ लोगों का वर्णन होने के कारण इसे धर्मपरायण (मुत्तक़ीन) लोगों का उपदेश (ख़ुतबा मुत्तक़ीन) कहा गया। है।[९]

इमाम अली (अ.स.) ने यह उपदेश हम्माम नाम के अपने एक साथी के अनुरोध पर दिया था।[१०] यह उपदेश, जो नहज अल-बलाग़ा के अलावा अन्य स्रोत में भी ज़िक्र हुआ है, इसमें मुत्तक़ीन के गुणों मोमिनीन के गुणों[११] या मोमिनीन [१२] और शियों के गुणों का वर्णन किया गया है।[१३] कहा गया है कि इस उपदेश को सुनने के बाद हम्माम की हालत बदल गई और वह बेहोश हो गए और उसी क्षण उनका स्वर्गवास हो गया।[१४] इस उपदेश में, इमाम अली (अ) ने पवित्र लोगों का वर्णन किया और उनके लिए लगभग सौ विशेषताओं को सूचीबद्ध किया है।[१५] कुछ के अनुसार शोधकर्ताओं, इसमें प्रयुक्त साहित्य की सरणियाँ उत्कृष्ट हैं और शब्दों के संगीत और लय पर विशेष ध्यान दिया गया है।[१६]

उपदेश के संस्करण का नाम .... क्रमांक संख्या[१७]
  • अल-मोअजम अल-मुफ़हरिस ले अलफ़ाज़ नहज अल-बलाग़ा / सुबही सालेह .... 193
  • शरहे इब्न मीसम बहरानी / इब्न मीसम बहरानी .... 184
  • हबीबुल्लाह ख़ूई / मुल्ला सालेह कज़विनी ..... 192
  • इब्न अबी अल-हदीद / मुहम्मद अब्दोह ..... 186
  • मुल्ला फ़तुल्लाह काशानी .... 221
  • मोहम्मद जवाद मुग़नीया .... 191

सामग्री

ख़ुतबा मुत्तक़ीन में धर्मपरायण जीवन के विभिन्न पहलुओं (व्यक्तिगत और सामाजिक नैतिकता और ईश्वर के साथ उनका संबंध)[१८] को एक सौ से अधिक गुणों के रूप में व्यक्त किया गया है।[१९] इस उपदेश में सात भाग हैं: 1. उपदेश का प्रारम्भिक भाग एवं ईश्वर की स्तुति 2. परिचय 3. मुत्तक़ीन का समग्र स्वरूप 4. परेहज़गारों की रात्रि 5. पवित्र लोगों का दिन 6. मुत्तक़ीन के लक्षण 7. हम्माम की कहानी का अंत।[२०]

मुत्तक़ीन की सामाजिक विशेषताएं:

  • बुरे शब्दों से दूरी
  • विश्वसनीयता (अमानतदारी)
  • कज़्मे ग़ैज़ (ग़ुस्से को पी जाना)
  • ऐसे व्यक्ति को क्षमा करना जिसने उनके साथ अन्याय किया हो
  • लोगों का उनकी ओर से बुराई से सुरक्षित रहना
  • लोगों को उनकी ओर से अच्छे काम की उम्मीद होना

निजी खासियतें:

  • स्वय पर संदेह करना
  • दूसरों द्वारा प्रशंसा किये जाने से डरना
  • दूरदर्शिता के साथ-साथ सौम्यता
  • निश्चितता के साथ ईमान
  • हिल्म
  • कम खाना और सादगी से रहना

ईश्वर के साथ संबंध:

  • क़ुरआन की तिलावत के साथ रात की नमाज़ पढ़ना
  • क़ुरआन में दवा खोजना
  • क़ुरआन से प्रभाव स्वीकार करना
  • पूजा में ख़ुशूअ[२१]

वैधता व ऐतेबार

शिया मराजेए तक़लीद में से एक, नासिर मकारिम शिराज़ी, ने मुत्तक़ीन उपदेश को, जिसे हदीस के कई स्रोतों में उद्धृत किया गया है, बहुत प्रामाणिक मानते हैं। [२२] मोहम्मद तक़ी मिस्बाह यज़्दी भी इस उपदेश के मुतवातिर होने और इसकी विश्वसनीयता में विश्वास करते हैं।[२३] यह उपदेश हदीस के विभिन्न स्रोतों में उल्लेख किया गया है।[२४] इन स्रोतों में, ये पुस्तकें शामिल हैं: शेख़ कुलैनी द्वारा लिखित अल-काफी,[२५] इब्न हम्माम एस्काफी द्वारा लिखित अल-तमहीस,[२६] इब्न शोअबा हर्रानी द्वारा लिखित तोहफ़ अल-उक़ूल,[२७] शेख़ सदूक़ द्वारा लिखित अमाली,[२८] मुहम्मद बिन अली करजकी द्वारा लिखित कंज़ुल फ़वायद[२९] और फ़त्ताल नैशापूरी द्वारा रौज़ा अल-वायेज़िन[३०] इस उपदेश का वर्णन करने वाले पहले स्रोतों के दस्तावेज़ में कथनों के शब्द और हदीस की मात्रा समान नहीं हैं।[३१] कुछ लेखकों ने इस उपदेश की प्रतियों में अंतर का हवाला देते हुए और कुछ साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए दावा किया है कि इमाम (अ.स.) का मूल उपदेश छोटा था[३२] और धीरे-धीरे इसमें कई वाक्य जोड़े गए हैं।[३३]

अनुवाद और विवरण

नहज अल बलाग़ा पर पूर्ण रूप से लिखे गए अनुवादों और स्पष्टीकरणों में मुत्तक़िन के उपदेश की व्याख्या और अनुवाद के अलावा, इस उपदेश पर फ़ारसी और अरबी में दर्जनों विशिष्ट स्पष्टीकरण और अनुवाद भी लिखे गए हैं[३४] कुछ इनमें से कार्यों में यह शामिल हैं:

  • अख़लाक़े इस्लामी दर नहज अल-बलाग़ा, नासिर मकारिम शिराज़ी की एक फ़ारसी टिप्पणी;
  • राह व रस्मे परहेज़गारान, नासिर मकारिम शिराज़ी का एक और किताब;
  • शरह खुतबा मुत्तक़िन (शरह हदीस हम्माम), मोहम्मद तक़ी मजलिसी द्वारा लिखित;
  • अज़ पारसायान बराम बेगो, जमालुद्दीन दीनपरवर द्वारा लिखित, फ़ारसी अनुवाद और व्याख्या;
  • अशअतुन मिन ख़ुतबा अल मुत्तक़ीन, हम्माम के उपदेश पर एक अरबी टिप्पणी, उम्म अली क़बान्ची द्वारा लिखित;
  • मुत्तक़ीन, सय्यद महदी शुजाई द्वारा मुत्तक़ीन के उपदेश का फ़ारसी विवरण;
  • औसाफ़े पारसायान: अब्दुल करीम सरोश द्वारा लिखित उपदेश का विवरण;
  • औसाफ़े मुत्तक़ीन, मोहम्मद तक़ी जाफ़री के परिचय के साथ कादिर फ़ाज़ली द्वारा लिखित, फ़ारसी अनुवाद, विवरण और टिप्पणी;
  • नग़मा इलाही, खुतबा मुत्तक़ीन का कविता में विवरण और फ़ारसी अनुवाद, मेहदी इलाही क़ोमशई द्वारा लिखित;
  • सेफ़ाते मुत्तक़ीन (ख़ुतबा हम्माम) मौलाए मुत्तक़ीयान अमीरुल मोमेनीन अली (अ), ग़ुलाम रज़ा यासीपुर द्वारा गद्य और पद्य में अनुवादित;
  • मसनवी पारसा नामा, अब्दुल महदी मारुफ़ज़ादे द्वारा ख़ुतबा मुत्तक़ीन, इमाम हसन (अ) को इमाम अली (अ) के पत्र का एक पद्य अनुवाद;
  • सेफ़ाते मुत्तक़ीन दर कलामे मौलाये मुत्तक़ीयान, मोहम्मद अली मोहम्मदी द्वारा रचित फ़ारसी में हम्माम के उपदेश पर एक पद्य टिप्पणी।

उपदेश का पाठ और अनुवाद

ख़ुतबा मुत्तक़ीन का पाठ
हिंदी उच्चारण अनुवाद अरबी उच्चारण
रोविया अन्ना साहिबन ले अमीरल मोमिनीन अलैहिस सलाम युक़ालो लहू हम्मामुन काना रजोलन आबेदन फ़क़ाला लहु या अमीरल मोमिनीन, सिफ़ ली अल मुत्तक़ीन हत्ता अनज़ुरो इलैहिम फ़तसक़ला (अलैहिस सलाम) अन जवाबेहि सुम्मा क़ाला: या हम्माम, इत्तक़िल्लाह व अहसिन: फ़ (इन्नल्लाह मअ अल लज़ीनत तक़व वल लज़ीना हुम मोहसेनून) फ़लम यक़नओ हम्माम बे हाज़ल क़ौल हत्ता अज़म अलैहे, फ़ हमिदल्लाह व असनी अलैहे व सल्ला अलन नबी (सल्लल्लाहो अलैबे व आलिहि) सुम्मा क़ाला (अलैहिस सलाम) [35] अमीर अल-मोमिनन अली (अ) के साथियों में से एक जिनका नाम "हम्माम" था, जो एक आबिद और धर्मनिष्ठ व्यक्ति थे, ने उनसे कहा: हे अमीर अल-मोमिनीन! मेरे लिये धर्मियों (मुत्तक़ीन) का वर्णन इस प्रकार करें कि मानो मैं उन्हें अपनी आँखों से देख रहा हूँ। इमाम (अ) उन्हें जवाब देने में थोड़ा रुके और फिर कहा: हे हम्माम, ईश्वरीय धर्मपरायणता का अभ्यास करो और अच्छा करो, क्योंकि ईश्वर उन लोगों के साथ है जो धर्मपरायणता का अभ्यास करते हैं और जो अच्छे काम करते हैं। लेकिन हम्माम इस कम जवाब से संतुष्ट नहीं हुए (और अधिक स्पष्टीकरण के लिए कहा और आग्रह किया और उन्हे क़सम दी) यहाँ तक कि इमाम (अ) ने उन्हें पवित्र लोगों के गुणों को विस्तृत तरीके से समझाने का फैसला किया, इसलिए उन्होंने ईश्वर की प्रशंसा और ईश्वर की तारीफ़ की और उसके पैग़म्बर (स) को सलाम भेजा, और फिर उन्होंने कहा। [36] رُوی أنّ صاحِباً لأَمیرالمُؤمنِینَ(علیه السلام) یُقالَ لَهُ هَمّامُ کانَ رَجُلاً عابِداً، فَقالَ لَهُ: یا أَمیرالمُؤمنینَ، صِفْ لِی الْمُتَّقینَ حَتّى کَأَنى أَنظُرُ إِلَیْهِمْ. فَتَثاقَلَ(علیه السلام) عَنْ جَوابِهِ ثُمَّ قالَ: یا همَّام ! اِتَّقِ اللهَ وَ أَحْسِنْ: فَـ (ـإِنَّ اللهَ مَعَ الَّذِینَ اتَّقَوْا وَّ الَّذینَ هُمْ مُّحْسِنُونَ). فَلَمْ یَقْنَعْ هَمّامُ بِهذَا الْقَولُ حَتّى عَزَمَ عَلَیْه، فَحَمِداللهَ و أَثنى عَلَیهِ، وَ صلّى عَلَى النَّبِىِّ(صلى الله علیه وآله) ثُمَّ قالَ(علیه السلام):[३५] अलवी, नहज अल-बलाग़ा में पवित्र उपदेश पर टिप्पणी, 1371, पृष्ठ 21।
अम्मा बाद, फ़ इन्नलाहा तबारक व तआला, ख़लक़ल ख़ल्क़ा हीना ख़लकहुम ग़नीयन अन ताअतेहिम, आमेनन मिन मअसीयतेहिम ले अन्नहु ला तज़ुर्रोहु ताअतो मन अताअहु, फ़क़समा बैनहुम मआयेशाहुम, व वज़अहुम मिनद दुनिया मवाज़ेआहुम परन्तु फिर (ईश्वर की स्तुति और हम्द के बाद), पाक व पवित्र ईश्वर ने लोगों को जब बनाया तो वह उनकी आज्ञाकारिता से बेनियाज़ और उनके पापों से सुरक्षित था, क्योंकि न तो पापियों की अवज्ञा उसे नुकसान पहुँचाती है (और उसके महान होने पर कोई प्रभाव नही डालती है) न ही इताअत करने वालों की आज्ञाकारिता से उसे लाभ होता है। उन्हें पैदा करने के बाद, उसने उनके जीविका और आजीविका को (बुद्धिमत्तापूर्ण तरीके से) उनके बीच बांट दिया और प्रत्येक को उसकी सांसारिक स्थिति में रख दिया। أَمَّا بَعْدُ، فَإِنَّ اللّهَ ـ سُبْحَانَهُ وَ تَعَالَى ـ خَلَقَ الْخَلْقَ حِینَ خَلَقَهُمْ غَنِیًّا عَنْ طَاعَتِهِمْ، آمِناً مِنْ مَعْصِیَتِهِمْ، لاَِنَّهُ لاَ تَضُرُّهُ مَعْصِیَةُ مَنْ عَصَاهُ، وَ لاَ تَنْفَعُهُ طَاعَةُ مَنْ أَطَاعَهُ. فَقَسَمَ بَیْنَهُمْ مَعَایِشَهُمْ، وَ وَضَعَهُمْ مِنَ الدُّنْیَا مَوَاضِعَهُمْ.
फ़लमुत्तक़ूना फ़ीहा हुम अहलिल फ़ज़ायल: मंतेक़ोहुम अल सवाब, व मलबसोहुम अल इक़्तेसाद, व मशयहुम अल तवाज़ोअ, ग़ज़्ज़ू अबसारहुम अम्मा हर्रमल्लाहो अलैहिम, व वक़फ़व असमाअहुम अला अल इ्ल्म अल नाफ़ेअ लहुम, नुज़्जिलत अनफ़ोसोहुम फ़िल बलाये कल्लती नुज़्ज़ेलत फ़ी अल रख़ाये। (लेकिन) इस दुनिया में पवित्र लोगों में कुछ गुण होते हैं: उनकी वाणी सच्ची होती है, उनकी पोशाक मुनासिब होती है, और उनकी चाल विनम्र और तवाज़ो के साथ होती है। जिस चीज़ से ख़ुदा ने उन्हें मना किया है उससे उन्होंने अपनी आँखें मूँद ली हैं और उन्होने अपने कान उस ज्ञान को सुनने में लगा दिए हैं जो उनके लिए फ़ायदेमंद है। विपत्ति में उनकी स्थिति वही होती है जो सुख-समृद्धि में होती है। فَالْمُتَّقُونَ فِیهَا هُمْ أَهْلُ الْفَضَائِلِ: مَنْطِقُهُمُ الصَّوَابُ، وَ مَلْبَسُهُمُ الاِقْتِصَادُ، وَ مَشْیُهُمُ التَّوَاضُعُ. غَضُّوا أَبْصَارَهُمْ عَمَّا حَرَّمَ اللّهُ عَلَیْهِمْ، وَ وَقَفَوا أَسْمَاعَهُمْ عَلَى الْعِلْمِ النَّافِعِ لَهُمْ. نُزِّلَتْ أَنْفُسُهُمْ مِنْهُمْ فِی الْبَلاَءِ کَالَّتِی نُزِّلَتْ فِی الرَّخَاءِ.
व लौला अल अजल अल लज़ी कतबल्लाहो अलैहिम लम तसतक़िर्रो अरवाहोहुम फ़ी अजसादेहिम तरफ़त ऐन, शौक़न इलस सवाल व ख़ौफ़न मिन एक़ाब, अज़ोमल ख़ालिक़ो फ़ी अनफ़ुसेहिम फ़सग़ुरा मा दूनहु फ़ी आयोनेहिम, फ़हुम वल जन्नता कमन क़द रआहा, फ़हुम फ़ीहा मुनअ्अमून, व हुम वन्नारो कमन क़द रआहा, फ़हुम फ़ीहा मुअज़्ज़बून। और यदि वह निश्चित समय (निश्चित मृत्यु) जो ईश्वर ने उनके लिए (जीवन) निर्धारित किया था, नही होता तो पलक झपकते ही, तो ईश्वरीय पुरस्कार की इच्छा और उसकी सज़ा के डर से उनकी आत्माएं उनके शरीरों में नहीं ठरहती। रचनाकार का जलवा उनकी जान और आत्मा में महान है, इसलिए उसके अलावा अन्य लोग उनकी नजर में छोटे हैं। वे उन लोगों के समान हैं जिन्होंने स्वर्ग को अपनी आँखों से देखा है और उसमें संतुष्ट हैं, और वे उन लोगों के समान हैं जिन्होंने नरक की आग देखी है और उसमें पीड़ा झेल रहे हैं! وَ لَوْلاَ الاَْجَلُ الَّذِی کَتَبَ اللّهُ عَلَیْهِمْ لَمْ تَسْتَقِرَّ أَرْوَاحُهُمْ فِی أَجْسَادِهِمْ طَرْفَةَ عَیْن، شَوْقاً إِلَى الثَّوَابِ، وَ خَوْفاً مِنَ الْعِقَابِ. عَظُمَ الْخَالِقُ فِی أَنْفُسِهِمْ فَصَغُرَ مَادُونَهُ فِی أَعْیُنِهِمْ، فَهُمْ وَ الْجَنَّةُ کَمَنْ قَدْ رَآهَا، فَهُمْ فِیهَا مُنَعَّمُونَ، وَ هُمْ وَ النَّارُ کَمَنْ قَدْ رَآهَا، فَهُمْ فِیهَا مُعَذَّبُونَ.
क़ुलुबुहुम महज़ूनतुन, व शुरुरोहुम मामूनतुन, व अजसादुहुम नहीफ़तुन, व हाजतोहुम ख़फ़ीफ़तुन, व अनफ़ुसुहुम अफ़ीफ़तुन, सबरू अय्यामन क़सीरतन, आक़बतहुम राहतुन तवीलतुन, तिजारतुन मुरबेहतुन यसर्रहा लहुम रब्बोहुम, अरादतहुमुद दुनिया फ़लम युरीदुहो व असरतहुम फ़फ़दव अनफ़ुसहुम मिनहा उनके हृदय दुःखी हैं और लोग उनके डर के सुरक्षि्त हैं। उनके शरीर पतले हैं, उनकी ज़रूरतें कम हैं, और उनकी आत्मा पाक और पवित्र है। उन्होंने इस दुनिया में थोड़े समय तक सब्र किया और उसके बाद उन्हें बहुत लंबं समय तक आराम मिला। यह एक लाभदायक व्यवसाय है जो उनके भगवान ने उनके लिए प्रदान किया है। दुनिया (अपने जलवों के साथ) उनके पास आई; परन्तु वे उससे धोखा नहीं खाये और उन्होंने उसको ठुकरा दिया। दुनिया उन्हें अपना बंदी बनाना चाहती थी, परन्तु उन्होंने अपने प्राणों की कीमत पर स्वयं को उसकी कैद से मुक्त करा लिया! قُلُوبُهُمْ مَحْزُونَةٌ، وَ شُرُورُهُمْ مَأْمُونَةٌ، وَ أَجْسَادُهُمْ نَحِیفَةٌ، وَ حَاجَاتُهُمْ خَفِیفَةٌ، وَ أَنْفُسُهُمْ عَفِیفَةٌ. صَبَرُوا أَیَّاماً قَصِیرَةً أَعْقَبَتْهُمْ رَاحَةً طَوِیلَةً. تِجَارَةٌ مُرْبِحَةٌ یَسَّرَهَا لَهُمْ رَبُّهُمْ. أَرَادَتْهُمُ الدُّنْیَا فَلَمْ یُرِیدُوهَا، وَ أَسَرَتْهُمْ فَفَدَوْا أَنْفُسَهُمْ مِنْهَا.
अम्मा अल लैलो फ़साफ़्फ़ूना अक़दामहुम, तालीना ले अजज़ाइल क़ुरआने युरत्तेलूनहा तरतीलन, युहज़्ज़ेनूना बेहि अनफ़ुसहुम व यसतसीरुना बेहि दवाआ दाइहिम। फ़ इज़ा मर्रु बे आयतिन फ़ीहा तशवीक़ुन रकनू इलैहा तमअन, व ततल्लअत नुफ़ुसुहुम इलैहा शौक़न व ज़न्नू अन्नहा नुसबा आयोनेहिम लेकिन रात में, वे (प्रार्थना करने के लिए) अपने पैरों पर खड़े होते हैं और क़ुरआन की आयतों का तिलावत करते हैं ठहर ठहर कर, उन्हें सोच-समझकर और तरतील के साथ पढ़ते हैं। इसके द्वारा वे अपने आपको दुःखी बनाते हैं और उससे अपने दर्द की दवा माँगते हैं जब वे उन आयतों तक पहुंचते हैं जिनमें प्रोत्साहन (ईमान और नेक कामों के लिए महान ईश्वरीय पुरस्कार के लिए प्रोत्साहन) होता है, तो वे बड़े उत्साह के साथ उस पर भरोसा करते हैं, और उनकी आत्माओं की आंखें इसे बड़े दिलचस्पी से देखती हैं, और ऐसा लगता है मानो उन्होंने अपनी आंखों के सामने खुशखबरी देखी हो। أَمَّا اللَّیْلُ فَصَافُّونَ أَقْدَامَهُمْ، تَالِینَ لاَِجْزَاءِ الْقُرْآنِ یُرَتِّلُونَهَا تَرْتِیلاً. یُحَزِّنُونَ بِهِ أَنْفُسَهُمْ وَ یَسْتَثِیرُونَ بِهِ دَوَاءَ دَائِهِمْ. فَإِذَا مَرُّوا بِآیَة فِیهَا تَشْوِیقٌ رَکَنُوا إِلَیْهَا طَمَعاً، وَ تَطَلَّعَتْ نُفُوسُهُمْ إِلَیْهَا شَوْقاً، وَ ظَنُّوا أَنَّها نُصْبَ أَعْیُنِهِمْ.
व इज़ा मर्रू बे आयतिन तख़वीफ़ुन फ़ीहा असग़ौ इलैहा मसामेआ क़ुलुबेहिम, व ज़न्नू अन्ना ज़फ़ीरा जहन्नमा व शहीक़हा फ़ी उसूले आज़ानेहिम, फ़हुम हानूना अला औसातिहिम, मुफ़तरेशूना ले जेबाबेहिम व अकफ़्फ़ेहिम व रुकबेहिम, व अतराफ़े अक़दामेहिम, यतलोबूना इलल्लाहे तआला फ़ी फ़काके रकाबेहिम और जब वे किसी ऐसी आयत तक पहुंचते हैं जिसमें डर और चेतावनी (पापों के खिलाफ चेतावनी) होती है, तो वे इसे सुनने के लिए अपने दिलों के कान खोलते हैं, और ऐसा लगता है जैसे नर्क की आग की लपटें, चीखें और कराहें उनके कानों में गूंज रही हैं! वे भगवान के सामने अपने आप झुकाते हैं (वे रुकूअ करते हैं) और अपने माथे, हथेलियों, घुटनों और पैर की उंगलियों को ज़मीन पर रखते हैं (साष्टांग प्रणाम (सजदे) के दौरान) और सर्वशक्तिमान ईश्वर से अपनी मुक्ति मांगते हैं। وَ إِذَا مَرُّوا بِآیَة فِیهَا تَخْوِیفٌ أَصْغَوْا إِلَیْهَا مَسَامِعَ قُلُوبِهِمْ، وَ ظَنُّوا أَنَّ زَفِیرَ جَهَنَّمَ وَ شَهِیقَهَا فِی أُصُولِ آذَانِهِمْ، فَهُمْ حَانُونَ عَلَى أَوْسَاطِهِمْ، مُفْتَرِشُونَ لِجِبَاهِهِمْ وَ أَکُفِّهِمْ وَ رُکَبِهِمْ، وَ أَطْرَافِ أَقْدَامِهِمْ، یَطْلُبُونَ إِلَى اللّهِ تَعَالَى فِی فَکَاکِ رِقَابِهِمْ.
व अम्मा अल नहार फ़हुलमाओ उलमा, अबरारुन अतक़ीया, क़द बराहुम अल ख़ौफ़ो बरतल क़ेदाह, यनज़ोरो इलैहिम अल नाज़िर फ़यहसबोहुम मरज़ा, वमा बिलक़ौम बिल मरज़ा, व यक़ूलो लक़द ख़ूलेतू। वला क़द ख़ालतहुम अमरुन अज़ीम, ला यरज़ौना मिल आमालेहिम अल क़लील, वला यकतसेरूनल कसीर, फ़हुम ले अनफ़ोसिहिम मुत्तहेमून, व मिन आमालेहिम मुशफ़ेक़ून, इज़ा ज़ुक्किया अहदुन मिनहुम ख़ाफ़ा मिम्मा युक़ालो लहु, फ़यक़ूलो: अना आलमो बेनफ़सी मिन ग़ैरी, व रब्बी आलमो बी मिन्नी नफ़सी, अल्लाहुम्मा ला तुवाख़िज़नी बेमा यक़ूलून, वजअलनी अफ़ज़ला मिम्मा यज़ुन्नून, वग़फ़िर ली मा ला यअलमून दिन में मुत्तक़ीन लोग सहनशील विद्वान और धर्मात्मा परोपकारी होते हैं, डर और भय (दैवी ज़िम्मेदारियों के बारे में) ने उनके शरीर को तीर के तीर के समान पतला और दुबला कर दिया है, जिससे देखने वाले (अज्ञानी) उन्हें बीमार समझते हैं, जबकि उनमें कोई बीमारी नहीं होती है और कहने वाले (ग़ाफ़िल और बेख़बर) कहते हैं: उनके विचार भ्रमित हैं और उनके दिल बीमार हैं, जबकि उनके विचारों में एक महान विचार मिला हुआ है। वे थोड़े नेक कामों से संतुष्ट नहीं होते और अपने बहुत सारे कामों को भी कम मानते हैं, बल्कि वे लगातार अपने ऊपर (कमी और लापरवाही का) आरोप लगाते रहते हैं, और अपने आमाल से डरते हैं, जब भी उनमें से कोई एक उनकी प्रशंसा या तारीफ़ करते हैं, तो वे अपने कामों के बारे में चिंतित होते हैं। वह अपने बारे में कही गई बातों से डरते है और कहते हैं: मैं दूसरों की तुलना में अपने बारे में अधिक जानता हूं और मेरा भगवान मेरे कार्यों के बारे में मुझसे अधिक जानता है। मेरे ख़ुदा! मुझे उन अच्छी चीज़ों के लिए सज़ा न देना जिनका श्रेय लोगों मुझे दिया गया है! और जो कुछ वे समझते हैं, उस से मुझे श्रेष्ठ ठहरा, और जो पाप मुझ से हुए हैं, और वे नहीं जानते, उन्हें क्षमा कर दे! وَ أَمَّا النَّهَارَ فَحُلَمَاءُ عُلَمَاءُ، أَبْرَارٌ أَتْقِیَاءُ. قَدْ بَرَاهُمُ الْخَوْفُ بَرْیَ الْقِدَاحِ یَنْظُرُ إِلَیْهِمُ النَّاظِرُ فَیَحْسَبُهُمْ مَرْضَى، وَ مَا بِالْقَوْمِ مِنْ مَرَض; وَ یَقُولُ: لَقَدْ خُولِطُوا!.

وَ لَقَدْ خَالَطَهُمْ أَمْرٌ عَظِیمٌ! لاَ یَرْضَوْنَ مِنْ أَعْمَالِهِمُ الْقَلِیلَ، وَ لاَ یَسْتَکْثِرُونَ الْکَثِیرَ. فَهُمْ لاَِنْفُسِهِمْ مُتَّهِمُونَ، وَ مِنْ أَعْمَالِهِمْ مُشْفِقُونَ إِذَا زُکِّیَ أَحَدٌ مِنْهُمْ خَافَ مِمَّا یُقَالُ لَهُ، فَیَقُولُ: أَنَا أَعْلَمُ بِنَفْسِی مِنْ غَیْرِی، وَ رَبِّی أَعْلَمُ بِی مِنِّی بِنَفْسِی! اللَّهُمَّ لاَ تُؤَاخِذْنِی بِما یَقُولُونَ، وَ اجْعَلْنِی أَفْضَلَ مِمَّا یَظُنُّونَ، وَاغْفِرْ لی مَا لاَ یَعْلَمُونَ!

फ़मिन अलामते अहदिन अन्नका तरा लहु क़ुव्वतुन फ़ी दीन, व हज़मन मिन लीन, व ईमानन फ़ी यक़ीन, व हिरसन फ़ी इल्म, व इल्मन फ़ी हिल्म, व क़सदन फ़ी ग़ना, व ख़ुशूअन फ़ी इबादा, व तजम्मोलन फ़ी फ़ाक़ा, व सबरन फ़ी शिद्दत, व तलबन फ़ी हलाल, व निशातन फ़ी हुदा, व तहर्रोजन फ़ी तमअ उनमें से प्रत्येक का एक लक्षण यह है कि आप उन्हे अपने धर्म में मज़बूत और साथ ही दृढ़, मृदुभाषी, निश्चितता से भरा विश्वास, और ज्ञान प्राप्त करने में लालची, और सहनशील होने के साथ-साथ जागरूक, और धन व दौलत के साथ संयम में पाते हैं, और पूजा में विनम्रता, और ग़रीबी होने के बाद भी ख़ुद संवारते हैं, और कठिनाइयों में धैर्य रखते हैं, हलाल जीविका की तलाश में रहते हैं, और मार्गदर्शन के रास्ते में प्रसन्न और लालच से बचते हैं। فَمِنْ عَلاَمَةِ أَحَدِهِمْ أَنَّکَ تَرَى لَهُ قُوَّةً فِی دِین، وَ حَزْماً فِی لِین، وَ إِیماناً فِی یَقِین، وَ حِرْصاً فِی عِلْم، وَ عِلْماً فِی حِلْم، وَ قَصْداً فی غِنىً، وَ خُشُوعاً فِی عِبَادَة، وَ تَجَمُّلاً فِی فَاقَة، وَ صَبْراً فِی شِدَّة، وَ طَلَباً فِی حَلاَل، وَ نَشَاطاً فِی هُدًى، وَ تَحَرُّجاً عَنْ طَمَع.
यअमलो अल आमाल अल सालेहा व हुवा अला वजल, युमसी व हम्महु अल शुक्र, व युसबेहु व हम्महु अल ज़िक्र वह लगातार नेक काम करता है और फिर भी वह डरता है (कि कहीं उससे वह स्वीकार नहीं किया जाये)। वे दिन समाप्त करते हैं जबकि उसका दुःख और दर्द (ईश्वर का) आभार और धन्यवाद करना होता है, और वह सुबह उठता है जबकि उसका सब कुछ ईश्वर याद को करना होता है। یَعْمَلُ الاَْعْمَالَ الصَّالِحَةَ وَ هُوَ عَلَى وَجَل. یُمْسِی وَ هَمُّهُ الشُّکْرُ، وَ یُصْبِحُ وَهَمُّهُ الذِّکْرُ.
यबीतो हज़ेरन व युसबेहो फ़रहन, हज़ेरन लम्मा हुज़्ज़ेरा मिनल ग़फ़लते, व फ़रेहन बेमा असाबा मिनल फ़ज़्ले वल रहमत, इनिसतसअबत अलैहे नफ़सुहु फ़ीमा तकरहो लम योअतेहा सोअलहा फ़ीमा तुहिब्बो, कुर्रतो ऐनिहि फ़ीमा ला यज़ूलो, व ज़हादतोहु फ़ीमा ला यबक़ा, यमज़ोजुल हिल्मा बिल इल्मे, वल क़ौला बिल अमले वह डरते हुए रात बिताता है, और सुबह में प्रसन्न होकर उठता है; वह उस लापरवाही से डरता है जिसके खिलाफ़ उसे चेतावनी दी गई है और वह उस अनुग्रह और दया के लिए खुश है जो उस तक पहुंची है (क्योंकि एक और दिन भगवान ने उसे जीवन दिया है और उसके लिए प्रयास और कोशिश के दरवाजे खोल दिए हैं)। जब भी उसकी आत्मा उन कर्तव्यों को निभाने में विद्रोही होती है जिनसे वह नाखुश है, तो वह अपनी आत्मा को उस चीज़ से भी वंचित कर देता है जिससे वह प्यार करता है। उनकी स्पष्ट दृष्टि उस चीज़ पर है जिसका पतन नहीं होता, और उनकी तपस्या और उदासीनता उस पर है जिसका कोई अस्तित्व और स्थायित्व नहीं है। यह ज्ञान को हिल्म के साथ और वाणी को क्रिया के साथ जोड़ता है! یَبِیتُ حَذِراً وَ یُصْبِحُ فَرِحاً; حَذِراً لَمَّا حُذِّرَ مِنَ الْغَفْلَةِ، وَ فَرِحاً بِمَا أَصَابَ مِنَ الْفَضْلِ وَ الرَّحْمَةِ. إِنِ اسْتَصْعَبَتْ عَلَیْهِ نَفْسُهُ فِیما تَکْرَهُ لَمْ یُعْطِهَا سُؤْلَهَا فِیمَا تُحِبُّ. قُرَّةُ عَیْنِهِ فِیمَا لاَ یَزُولُ، وَ زَهَادَتُهُ فِیمَا لاَ یَبْقَى، یَمْزُجُ الْحِلْمَ بِالْعِلْمِ، وَ الْقَوْلَ بِالْعَمَلِ.
तराहो क़रीबन अमलोहु, क़लीलन ज़ललुहु, ख़ाशेअन क़लबुहु, क़ानेअतन नफ़सुहु, मंज़ूरन अकलुहु, सहलन अमरुहु, हरीज़न दीनुहु, मयततन शहवतुहु, मकज़ूमन ग़ैज़ुहु, अल ख़ैरो मिनहु मामूल, वश शर्रो मिनहु मामून, इन काना फ़िल ग़ाफ़ेलीना कुतुबा फ़िज़ ज़ाकेरीन, व इन काना फ़िज़ ज़ाकेरीन लम यकतुब मिनल ग़ाफ़ेलीन आप उसे (पवित्र इंसान) देखेंगें उसकी इच्छा निकट है, उसके पाप कम है, उसका हृदय विनम्र है, उसकी आत्मा संतुष्ट है, उसका भोजन कम है, उसके मामले आसान हैं, उसका धर्म सुरक्षित है, उसकी विद्रोही वासना मर चुकी है और उसका क्रोध वश में है। (लोग) उससे भलाई की आशा करते हैं और उसकी बुराई से सुरक्षित रहते हैं। अगर वह ग़ाफिलों में है तो वह ज़िक्र करने वालों में गिना जाता है और अगर वह ज़िक्र करने वालों में है तो वह ग़ाफिलों में नहीं लिखा जाता है। تَرَاهُ قَرِیباً أَمَلُهُ، قَلِیلاً زَلَلَـهُ، خَاشِعاً قَلْبُهُ، قَانِعَةً نَفْسُهُ، مَنْزُوراً أَکْلُهُ، سَهْلاً أَمْرُهُ، حَرِیزاً دِینُهُ، مَیِّتَةً شَهْوَتُهُ، مَکْظُوماً غَیْظُهُ. اَلْخَیرُ مِنْهُ مَأْمُولٌ، وَ الشَّرُّ مِنْهُ مَأْمُونٌ، إِنْ کَانَ فِی الْغَافِلِینَ کُتِبَ فِی الذَّاکِرِینَ، وَ إِنْ کانَ فی الذَّاکِرِینَ لَمْ یُکْتَبْ مِنَ الْغَافِلِینَ.
यअफ़ू अम्मन ज़लमहु, व योअती मन हरमहु, व यसिलो मन क़तअहु, बऊदन फ़ोहशुहु, लय्येनन क़ौलुहु, ग़ायेबन मुनकेरुहु, हाज़ेरन मारुफ़ुहु, मुक़बेलन ख़ैरुहु, मुदबेरन शर्रुहु, फ़िज़ ज़लाज़िले नाक़ूर, व फ़िल मकारेहि सबूर, व फ़िल रख़ाए शकूर, ला यहीफ़ों अला मन युबग़िज़ो, व ला यासमों फ़ी मन युहिब्बो, यअतरोफ़ो बिल हक़्क़े क़बला अन युशहेदा अलैह, ला युज़ीओ मसतोहफ़िज़, वला यनसा मा ज़ुक्किरा, वला युनाबेज़ो बिल अलक़ाब, व ला युज़ार्रो बिल जार, व ला यशमतो बिल मसायब, वला यदख़ोलो बिल बातिल, वला यख़रोजो मिल हक़ वह उस व्यक्ति को क्षमा कर देता है जिसने उसके साथ अन्याय किया है (और उसे खेद है), और जिसने उसे वंचित किया है उसे प्रदान करता है, और जिसने उससे नाता तोड़ लिया है उसे अपने साथ मिलाता है। (सिलए रहम करता है जिसने क़तए रहम किया है) कुरूप और हिंसक शब्द उससे दूर हैं, उसकी वाणी मुलायम और नम्र है, बुरे कर्म उसमें अनुपस्थित हैं, और नेक और अच्छे कार्य उसमें मौजूद हैं। अच्छाई उसकी ओर आ गई है और बुराई उससे दूर हो गई। वह कठिन घटनाओं के सामने दृढ़ रहता है, दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं में धैर्यवान रहता है, और आशीर्वाद बढ़ने पर आभारी रहता है। जो उससे शत्रुता रखता है उस पर अत्याचार नहीं करता, और किसी से मित्रता के कारण पाप नहीं करता, और अपने विरुद्ध गवाही देने से पहले ही सत्य को स्वीकार कर लेता है। जिस चीज़ को संरक्षित करने के लिये उसे सौंपा गया है, उसे वह नष्ट नहीं करता है और जो उसे याद दहानी कराता है (तज़क्कुर देता है) उसे वह याद रखता है। वह लोगों को भद्दे नामों और उपनामों से नहीं बुलाता है और अपने पड़ोसियों को नुक़सान नहीं पहुँचाता। वह पीड़ितों को बुरा भला नहीं कहता। वह झूठे मामलों में नहीं पड़ता और सत्य के दायरे से बाहर नहीं जाता है। یَعْفُو عَمَّنْ ظَلَمَهُ، وَ یُعْطِی مَنْ حَرَمَهُ، وَ یَصِلُ مَنْ قَطَعَهُ، بَعِیداً فُحْشُهُ، لَیِّناً قَوْلُهُ، غَائِباً مُنْکَرُهُ، حَاضِراً مَعْرُوفُهُ، مُقْبِلاً خَیْرُهُ، مُدْبِراً شَرُّهُ. فِی الزَّلاَزِلِ وَ قُورٌ، وَ فِی الْمَکَارِهِ صَبُورٌ، وَ فِی الرَّخَاءِ شَکُورٌ. لاَ یَحِیفُ عَلَى مَنْ یُبْغِضُ، وَ لاَ یَأْثَمُ فِیمَنْ یُحِبُّ. یَعْتَرِفُ بِالْحَقِّ قَبْلَ أَنْ یُشْهَدَ عَلَیْهِ، لاَ یُضِیعُ مَا اسْتُحْفِظَ، وَ لاَ یَنْسَى مَا ذُکِّرَ، وَ لاَ یُنَابِزُ بِالاَْلْقَابِ، وَ لاَ یُضَارُّ بِالْجَارِ، وَ لاَ یَشْمَتُ بِالْمَصَائِبِ، وَ لاَ یَدْخُلُ فِی الْبَاطِلِ، وَ لاَ یَخْرُجُ مِنَ الْحَقِّ.
इन समत यम यग़ुम्महु समतुहु, व इन ज़हिक़ा लम यअलू सौतुहु, व इन बुग़िया अलैहे सबर हत्ता यकूनल्लाहो हुवा यनतक़िमो लहु, नफ़सुहु मिन्हो फ़ी ग़ेनाइन, वन नासो फ़ीहे मिन राहतिन, अतअबा नफ़ुसहु ले आख़ेरतिहि, व आराहन नासा मिन नफ़सिहि, बोअदुहु अम्मन तबाअदा अनहु ज़ोहदुन व नज़ाहा, व दुनुवुहु मिम्मन दना मिन्हो लीनुन व रहमतुन, लैसा तबाउदुहु बिल किब्र व अज़मा, व ला दुनुवुहु बेमकरिन व ख़दीआ जब भी वह चुप होता है, तो उसकी चुप्पी उसे दुखी नहीं करती है, और जब वह हंसता है, तो उसके हसने में क़हक़हा बुलंद नहीं होता, और जब भी उसके साथ अन्याय होता है, तो वह सब्र करता है (जब तक संभव हो) ताकि ईश्वर उसका बदला ले। वह अपने आप को ज़हमत में डालता है; लेकिन लोग उनके साथ सहज हैं। वह आख़िरत के लिए ख़ुद को थकान में डालते हैं और लोगों को आराम का एहसास कराते हैं। जिन लोगों से वह बचता है उनसे उसकी दूरी तपस्या (ज़ोह्द) और पवित्रता बनाए रखने के कारण होती है, और जिनसे वह संपर्क करता है उससे उसकी निकटता मेहरबानी और दयालुता के कारण होती है। ऐसा नहीं है कि उसकी दूरी अहंकार और दंभ के कारण है और उसकी निकटता छल और कपट (और भौतिक शोषण) के लिए है। إِنْ صَمَتَ لَمْ یَغُمَّهُ صَمْتُهُ، وَ إِنْ ضَحِکَ لَمْ یَعْلُ صَوْتُهُ، وَ إِنْ بُغِیَ عَلَیْهِ صَبَرَ حَتَّى یَکُونَ اللّهُ هُوَ الَّذِی یَنْتَقِمُ لَهُ. نَفْسُهُ مِنْهُ فِی عَنَاء. وَ النَّاسُ مِنْهُ فِی رَاحَة. أَتْعَبَ نَفْسَهُ لاِخِرَتِهِ، وَ أَرَاحَ النَّاسَ مِنْ نَفْسِهِ. بُعْدُهُ عَمَّنْ تَبَاعَدَ عَنْهُ زُهْدٌ وَ نَزَاهَةٌ، وَ دُنُوُّهُ مِمَّنْ دَنَا مِنْهُ لِینٌ وَ رَحْمَةٌ. لَیْسَ تَبَاعُدُهُ بِکِبْر وَ عَظَمَة، وَلاَ دُنُوُّهُ بِمَکْر وَ خَدِیعَة.
क़ाला: फ़सईक़ा हम्माम सअक़तन कानत नफ़सुहु फ़ीहा इस उपदेश के अंत में नहज अल-बलाग़ा में कहा गया है: जब अमीरल मोमिनान के शब्द यहां तक पहुंचे, तो हम्माम ने फ़रियाद बंलद की और उनका दम निकल गया। قَالَ: فَصَعِقَ هَمَّامٌ صَعْقَةً كَانَتْ نَفْسُهُ فِيهَا.
फ़क़ाला अमीरल मोमिनीन (अ): अमा वल्लाहे लक़द कुन्तो अख़ाफ़ोहा अलैहे, सुम्मा क़ाला: हा कज़ा तसनउल मवाएज़ अल बालेग़तो बे अहलेहा इस समय, अमीरुल मोमिनीन (अ) ने कहा, मैं भगवान की क़सम खाता हूं, मुझे डर था कि उसके साथ ऐसा होगा। फिर उन्होंने कहा: ऐसे वाक्पटु निर्देशों का प्रभाव उन लोगों पर पड़ेगा जो उपदेशक (नसीहत को सुनने वाले) हैं। فَقَالَ أَمِیرُالْمُؤْمِنِینَ(ع): أَمَا وَ اللّهِ لَقَدْ کُنْتُ أَخَافُهَا عَلَیْهِ. ثُمَّ قَالَ: هکَذَا تَصْنَعُ الْمَوَاعِظُ الْبَالِغَةُ بِأَهْلِهَا.
वैहका, ले कुल्ले अजलिन वक़तन ला यअदूहो, व सबबन ला यतजवज़ुहु, फ़महलन, ला तउद ले मिसलेहा, फ़इन्मा नफ़ल अल शैतानो अला लेसानिका तुम पर धिक्कार है, प्रत्येक नियति और अंजाम का एक विशिष्ट समय होता है जो बीतता नहीं है और एक विशिष्ट कारण होता है जो उससे आगे नहीं बढ़ता है"; फिर उन्होंने कहा: "शांत हो जाओ, अब ऐसे शब्द मत कहो!" यह वह शब्द था जो शैतान ने तुम्हारी ज़बान पर जारी किया था। وَیْحَکَ، إِنَّ لِکُلِّ أَجَلٍ وَقْتاً لاَیَعْدُوهُ، وَ سَبَباً لاَ یَتَجَاوَزُهُ. فَمَهْلاً ! لاَ تَعُدْ لِمِثْلِهَا، فَإِنَّمَا نَفَثَ الشَّیْطَانُ عَلَى لِسَانِکَ!

फ़ुटनोट

  1. मकारिम शिराज़ी, पयामें इमाम (अ.स.), 2006, खंड 7, पृष्ठ 527।
  2. होशियार, और जलील तजलील, "मुत्तक़िन नहज अल-बालाग़ा के उपदेश और अज़ीज़ुद्दीन नस्फ़ी के कार्यों में कामिल इंसान का तुलनात्मक अध्ययन", पृष्ठ 20।
  3. मकारिम शिराज़ी, अख़लाक़े इस्लामी दर नहज अल-बलाग़ा, 2005, खंड 1, पृष्ठ 8।
  4. शफ़ीई, इमाम शेनासी, 1397, पृ. 145
  5. शेख़ सदूक़, अमाली, 1376, पृ. 574-570।
  6. कुलैनी, काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, 226-230।
  7. मिस्बाह यज़्दी, "अमीरुल मोमिनीन (अ) के पवित्र उपदेश में पवित्र लोगों की छवि", पृष्ठ 6।
  8. नहज अल-बलाग़ा, सुबही सालेह द्वारा संपादित, उपदेश 193, पृष्ठ 303।
  9. सुलेमानी रहीमी, "नहज अल-बलाग़ा के उपदेशों का नामकरण; एक सुझाव", पृ.206.
  10. नहज अल-बलाग़ा, सुबही सालेह द्वारा संपादित, 1414 एएच, उपदेश 193, पृष्ठ 303।
  11. देखें: इब्न शोअबा हर्रानी, ​​तोहफ़ अल-उक़ूल, 1404 एएच, पृष्ठ 159; नहज अल-बलाग़ा, सुबही सालेह द्वारा संपादित, 1414 एएच, उपदेश 193, पृष्ठ 303।
  12. देखें: कुलैनी, काफ़ी, 1407 एएच, खंड 2, 226।
  13. देखें: कुलैनी, काफ़ी, 1407 एएच, खंड 2, 226।
  14. देखें: कुलैनी, काफ़ी, 1407 एएच, खंड 2, 226।
  15. नहज अल-बलाग़ा, सुबही सालेह द्वारा संपादित, 1414 एएच, उपदेश 193, पृष्ठ 306।
  16. इक़बाली, और महविश हसनपुर, "पवित्र धर्मोपदेश पर एक शैलीगत नज़र", पीपी 125-126।
  17. मोहम्मदी, दश्ती, अल-मोअजम अल-मुफ़हरिस ले अलफ़ाज़ नहज अल-बलाग़ा, पुस्तक के अंत में पांडुलिपियों में अंतर की तालिका, 1369, पृष्ठ 235।
  18. मकारिम शिराज़ी, पयामे इमाम (अ.स.), 2006, खंड 7, पृ. 528-529; शफ़ीई, इमाम शेनासी, 1397, पृ.144
  19. देखें: नहज अल-बलाग़ा, सहीह सुबही सालेह, 1414 एएच, खुतबा 193, पृ. 303-306।
  20. उस्तादी, "पुराने स्रोतों में मुताक़ीन के उपदेश (हम्माम) के पाठ का तुलनात्मक अध्ययन", पृष्ठ 117।
  21. शफ़ीई, इमाम शेनासी, 1397, पृ.145
  22. मकारिम शिराज़ी, इमाम का संदेश (अ), 2006, खंड 7, पृष्ठ 527।
  23. मिस्बाह यज़्दी, "अमीरुल मोमिनीन (अ) के पवित्र उपदेश में पवित्र लोगों की छवि", पृष्ठ 6।
  24. इस उपदेश के स्रोतों को देखने के लिए, देखें: दशती, दस्तावेज़ और नहज अल-बलाग़ा के दस्तावेज़, 1378, पृष्ठ 251-253; उस्तादी, "धर्मपरायण लोगों को ज्ञात उपदेश के उपदेशक की पहचान", पृष्ठ 118-120।
  25. कुलैनी, काफ़ी, 1407 एएच, खंड 2, 226-230।
  26. इब्न हम्माम अस्काफ़ी, अल-तमहीस, 1404 एएच, पीपी 70-73।
  27. इब्न शोअबा हर्रानी, ​​तोहफ़ अल-उक़ूल, 1404 एएच, पीपी 159-162।
  28. शेख़ सदूक़, अमाली, 1376, पृ. 574-570।
  29. करजकी, कन्ज़ अल-फ़वायद, 1410 एएच, खंड 1, पीपी. 89-92।
  30. फ़त्ताल नैशापूरी, रौज़ा अल-वायेज़ीन, 1375 शम्सी, खंड 2, पीपी 438-439।
  31. उस्तादी, "उन्नत स्रोतों में मुताक़ीन के उपदेश (हम्माम) के पाठ का तुलनात्मक अध्ययन", पृष्ठ 140।
  32. उस्तादी, "उन्नत स्रोतों में मुताक़ीन के उपदेश (हम्माम) के पाठ का तुलनात्मक अध्ययन", पृष्ठ 140।
  33. उस्तादी, "पुराने स्रोतों में मुताक़ीन के उपदेश (हम्माम) के पाठ का तुलनात्मक अध्ययन", पृष्ठ 141।
  34. उस्तादी, "धर्मपरायण लोगों को ज्ञात उपदेश के उपदेशक की पहचान", पृष्ठ 44-48।
  35. [۳۵]

स्रोत

  • इब्न शोअबा हर्रानी, ​​हसन बिन अली, तोहफ़ अल-उक़ूल अन आल-रसूल (स), क़ुम, इस्लामिक प्रकाशन कार्यालय, 1404 हिजरी।
  • इब्न हम्माम इस्काफ़ी, मुहम्मद, अल-तमहीस, क़ुम, इमाम महदी (अ) का स्कूल, 1404 एएच।
  • उस्तादी, काज़िम, "उन्नत स्रोतों में मुत्तक़ीन (हम्माम) के उपदेश के पाठ का तुलनात्मक अध्ययन", अहले-बैत (अ) की मआरिफ़ पत्रिका में, संख्या 2, ग्रीष्म 1401 एएच।
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