शहादत ए सालेसा
![](http://commons.wikishia.net/w/images/thumb/3/37/%D9%82%D8%B7%D8%B9%D9%87_%D8%AE%D9%88%D8%B4%D9%86%D9%88%DB%8C%D8%B3%DB%8C_%D8%B4%D9%87%D8%A7%D8%AF%D8%AA_%D8%AB%D8%A7%D9%84%D8%AB%D9%87.jpg/300px-%D9%82%D8%B7%D8%B9%D9%87_%D8%AE%D9%88%D8%B4%D9%86%D9%88%DB%8C%D8%B3%DB%8C_%D8%B4%D9%87%D8%A7%D8%AF%D8%AA_%D8%AB%D8%A7%D9%84%D8%AB%D9%87.jpg)
शहादत ए सालेसा (अरबीःالشهادة الثالثة) शहादतैन के बाद हज़रत अली (अ) की विलायत की गवाही देना है, जिसमें "أشهَدُ أَنّ عَلیاً ولیُّ الله अशहदो अन्ना अलीयन वलीयुल्लाह" या "أشهَدُ أَنّ عَلیاً حُجَّةُ الله अशहदो अन्ना अलीयन हुज्जतुल्लाह" वाक्यांश शामिल है। इमामिय्या न्यायविदों के प्रसिद्ध दृष्टिकोण के अनुसार, शहादत ए सालेसा अज़ान और अक़ामत का हिस्सा नहीं है; इस कारण से, कुछ शिया विद्वान इसे अज़ान और अक़ामत में कहना बिदअत मानते है और इसे अज़ान और अक़ामत का शरई हिस्सा मानना हराम मानते है। शेख़ सदूक़ ने इस संबंध में वर्णित रिवायतो को नकली माना तथा शेख़ तूसी ने उन्हें दुर्लभ माना है। अधिकांश इमामी न्यायविदों की वर्तमान राय यह है कि यह वाक्यांश अज़ान और अक़ामत का हिस्सा नहीं है; हालाँकि, इसे अज़ान और अक़ामत में इसका हिस्सा माने बिना कहना मुस्तहब है।
मरजा ए तक़लीद सय्यद मोहसिन हकीम के अनुसार, चूँकि शहादत ए सालेसा आस्था की निशानी और शिया धर्म का प्रतीक है, इसलिए अज़ान और अक़ामत के समय इसे पढ़ना धार्मिक प्राथमिकता है, और कभी-कभी, शहादत ए सालेसा को हिस्सा माने बिना कहना वाजिब हो जाता है।
परिभाषा और महत्व
शहादत ए सालेसा शहादतैन अर्थात तौहीद और नबूवत के बाद इमाम अली (अ) की विलायत की गवाही है।[२] जिसमें "أشهَدُ أَنّ عَلیاً ولیُّ الله अशहदो अन्ना अलीयन वलीयुल्लाह" या "أشهَدُ أَنّ عَلیاً حُجَّةُ الله अशहदो अन्ना अलीयन हुज्जतुल्लाह" और "أشهَدُ أَنّ عَلیاً اَمیرالمؤمنین حقاً अशहदो अन्ना अलीयन अमीरल मोमेनीना हक्क़ा" वाक्यांश शामिल है।[३]
सय्यद मोहसिन हकीम और सय्यद तक़ी तबातबाई क़ुमी ने इसे शिया धर्म का नारा और प्रतीक माना है।[४] शिया स्रोतों में कुछ रिवायतो में इसकी सामग्री मे इमाम अली (अ) की विलायत की स्वीकारोक्ति पर जोर दिया गया है।[५] उदाहरण के लिए: तबरसी ने अपनी पुस्तक अल-एहतेजाज में इमाम सादिक़ (अ) से एक रिवायत बयान की है जिसके अनुसार जब भी तुममें से कोई कहता है: "ला इलाहा इल लल्लाह" और "मुहम्मदुन रसूल अल्लाह", उसे तुरंत “علیٌ اَمیرُالمؤمنین अलीयुन अमीरुल मोमेनीना” कहना चाहिए।[६]
क्या शहादत ए सालेसा अज़ान और अक़ामत का हिस्सा है?
इमामियाह न्यायविदों के बीच प्रसिद्ध दृष्टिकोण यह है कि शहादत ए सालेसा अज़ान और अक़ामत का हिस्सा नहीं है।[७] साहिब अल-मदारिक (946-1009 हिजरी) और सय्यद मोहसिन अल-हकीम (1306-1390 हिजरी), इस मुद्दे पर बहस करने वाले न्यायविदों के बीच कोई असहमति नहीं है। शहादत ए सालेसा अज़ान और अक़ामत का हिस्सा नहीं है।[८] साहिब जवाहर ने यह भी कहा कि शिया न्यायविद इस बात पर एकमत हैं कि यह अज़ान और अक़ामत का हिस्सा नहीं है।[९]
शेख़ सदूक़ (305-381 हिजरी) और शहीद सानी (911-955 या 965 हिजरी) जैसे विद्वानों का कहना है कि अज़ान और अक़ामत मे शहादत ए सालेसा का जोड़ना बिदअत पर आधारित अमल है और इन दोनो विद्वानो ने इस संबंध में वर्णित रिवायतो को "मनगढ़ंत" माना है।[१०] शहीद सानी ने भी कहा है कि शहादत ए सालेसा को अज़ान और अक़ामत का हिस्सा मानते हुए जोड़ना एक पापपूर्ण कार्य है, हालाँकि यह नमाज़ को बातिल नहीं करता है।[११]
शेख़ तूसी (385-460 हिजरी) ने भी अज़ान में शहादत ए सालेसा से संबंधित रिवायतो को दुर्लभ बताया और लिखा कि जिसने भी अज़ान में शहादत ए सालेसा कही उसने पाप किया है;[१२] इसके अलाव उन्होने कहा कि अज़ान में शहादत ए सालेसा के जोड़ने से अज़ान मे किसी प्रकार की कोई फ़ज़ीलत पैदा नहीं होती और ना ही इसे कहने से अज़ान के अंश और भाग पूरे होते है।[१३] एक और शिया न्यायविद फ़ैज़ काशानी (1007-1091 हिजरी) ने शहादत ए सालेसा को अज़ान और अक़ामत मे पढ़ना मकरूह समझा है। और कहा कि अज़ान और अक़ामत का हिस्सा क़रार देना हराम है।[१४]
अल्लामा मजलिसी (1037-1110 हिजरी) का मानना है कि, इस मुद्दे में शामिल किए गए आख्यानों के कारण, यह असंभव नहीं है कि शहादत ए सालेसा अज़ान और अक़ामत का एक मुस्तहब हिस्सा हो।[१५] आगा रज़ा हमदानी (1250-1322 हिजरी) जैसे न्यायविद ने भी कहा कि उन्होंने इसे अज़ान और अक़ामत का हिस्सा माने बिना कहना जायज़ है।[१६] सय्यद अब्दुल आला सब्ज़वारी और सय्यद तक़ी तबातबाई क़ुमी जैसे न्यायविदो का कहना है कि कि अज़ान और अक़ामत का हिस्सा माने बिना कहना बेहतर है।[१७]
सय्यद अब्द अल-हादी शिराज़ी (1305-1382 हिजरी),[१८] सय्यद अबुल-क़ासिम ख़ूई (1278-1371 हिजरी),[१९] सय्यद अली हुसैनी अल-सिस्तानी (जन्म 1309 हिजरी/1349 हिजरी)[२०] और हुसैन वहीद खुरासानी (जन्म 1339 हिजरी)[२१] जैसे बाद के न्यायविदो का मत है कि शहादत ए सालेसा अज़ान और अक़ामत का हिस्सा नहीं है; हालाँकि, इसे अज़ान और इक़ामत के दौरान कहना मुस्तहब है।
सय्यद मोहसिन अल हकीम के अनुसार, शहादत ए सालेसा विशेष रूप से वर्तमान युग (14वीं और 15वीं शताब्दी हिजरी) में, ईमान का संकेत और शियावाद का प्रतीक है, और इस कारण से इसे धार्मिक प्राथमिकता दी जाती है, और कभी-कभी इसे इसमें शामिल भी किया जाता है। कभी कभी अज़ान और अक़ामत का हिस्सा माने बिना भी इसका कहना वाजिब हो जाता है।[२२] सय्यद हुसैन तबातबाई क़ुमी (1282-1366 हिजरी) जैसे विद्वानों ने भी तबर्रुक और तयममुन इसे कहना जायज़ माना है।[२३]
पांचवीं शताब्दी के इमामी न्यायविद सल्लार दैयलमी ने भी नमाज़ के तशाहुद शहादत ए सालेसा को पढ़ना जायज़ माना है।[२४]
अज़ान और अक़ामत में शहादत ए सालेसा शामिल करने की पृष्ठभूमि
शेख़ सदूक़ ने अज़ान और अक़ामत के हिस्सो मे शहादत ए सालेसा को जोड़ने का श्रेय ग़ालियानों को दिया और कहा कि उन्होंने इस संबंध में रिवयते गढ़ी हैं।[२५] कुछ इतिहासकारों के अनुसार, अज़ान और अक़ामत में इसका कहना पाँच शताब्दियों तक त्याग दिया गया था ; इस प्रकार, छठी शताब्दी हिजरी में एक शिया विद्वान अब्दुल जलील कज़्विनी राज़ी ने अपनी पुस्तक अल-नक़्ज़ में कहा है कि यदि कोई व्यक्ति शहादतैन के बाद अज़ान के हिस्सों में से शहादत ए सालेसा पढ़ता है, तो उसकी नमाज़ बातिल है और उसने पाप किया है।[२६] कहा जाता है कि कई शताब्दियों के बाद, 907 हिजरी में, शाह इस्माइल सफ़वी के आदेश से, इसे फिर से अज़ान मे कहा जाने लगा और लोगों के बीच इतना लोकप्रिय हो गया कि अगर कोई अज़ान मे शहादत ए सालेसा नही कहता था तो उस पर सुन्नी होने का आरोप लगाया जाता था।[२७] यह भी बताया गया है कि इस अवधि के दौरान कुछ न्यायविदों ने इसे अज़ान और अक़ामत का हिस्सा नहीं माना ; लेकिन सुन्नी होने का आरोप लगने के डर से, अपने अक़ीदे को तक़य्या करते हुए छुपाते थे।[२८]
ऐसा कहा जाता है कि एक शताब्दी बाद अर्थात 12वीं शताब्दी के मध्य में, शियो ने फिर से अज़ान में कहना दोबारा छोड़ दिया।[२९] मिर्ज़ा मुहम्मद अख़बारी ने "शहादत अलल-विलायत" नामक एक लेख में बताया कि शेख़ जाफर काशिफ अल-ग़ेता ने फतह अली शाह काजार को एक पत्र में लिखा था, उन्होंने अनुरोध किया था कि वह देश में आज़ान में शहादत ए सालेसा पर प्रतिबंध लगाने का आदेश दें।[३०] हालाँकि, रजा उस्तादी ने एक लेख में कहा कि मिर्ज़ा मुहम्मद अख़बारी ने काशिफ़ अल-ग़ेता की सही बात बयान नही की और काशिफ़ अल-ग़ेता अज़ान मे शहादत ए सालेसा का विरोध नहीं कर रहे थे; बल्कि, उन्होंने शहादत ए सालेसा के अज़ान और अक़ामत का हिस्सा होने से इंकार किया है।[३१] एक विद्वान के अनुसार, रिसाला ए काशिफ अल-ग़ेता में कहा गया है कि " اَشہد آن علیاً ولی اللہ अशहदो अन्ना अलीयन वलीयुल्लाह" के बजाय बरकत की नियत से यह वक्ता " اشہد أن علیاً امیرالمؤمنین अशहदो अन्ना अलीयन अमीरल मोमेनीना" कहे।[३२]
मोनोग्राफ़ी
शहादत ए सालेसा के बारे में लिखी गई कुछ पुस्तकें इस प्रकार हैं:
- किताब मौसूअतुल अज़ाने बैनल असालते वत तहरीफ़, सय्यद अली शाहरिस्तानी द्वारा तीन खंडों में और अरबी में लिखित है। इसके तीसरे खंड में, लेखक ने "अशहदो अन्ना अलीयन वलीयुल्लाह, बैनश शरीयते वल इब्तेदाअ" शीर्षक से अज़ान मे शहादत ए सालेसा को चर्चा का विषय बनाकर पूरी बहस को तीन खंडो मे बयान किया है।[३३] इस किताब के इन तीनो खंडो को सय्यद हादी हुसैनी नामक लेखक ने एक अलग पुस्तक अज़ान और अक़ात मे अशहदो अन्ना अलीयन वलीयुल्लाह का स्थान के नाम से फ़ारसी भाषा मे अनुवादित किया गया है।”
- किताब अश शहादतो बिल विलायते फ़िल अज़ान, सय्यद अली हुसैनी मिलानी द्वारा लिखित इस पुस्तक में, अज़ान में शहादत ए सालेसा को पढ़ने की अनुमति के प्रमाण को समझाया और जांचा गया है।[३४]
- किताब अश शहादतुस सालेसा, मुहम्मद सनद द्वारा लिखित: इस पुस्तक में, लेखक तकय्या के समय इमामिया न्यायविदो की रिवायतो और विचारो पर शोध करते हुए अज़ान और अक़ामत, नमाज़ के तशहुद और सलाम मे शहादत ए सालेसा से संबंधित अहकाम की जांच की है।[३५]
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
- ↑ अशहदो अन्ना अलीयन वलीयुल्लाह, सफ़हा अल खत्तात मुहम्मद अल मुशरेफ़ावी दर बीनतरस
- ↑ हुसैनी मीलानी, अल शहादत बिल विलायत फ़िल अज़ान, 1421 हिजरी, पेज 12
- ↑ शेख़ सदूक़, मन ला यहज़ुर अल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 290
- ↑ हकीम, मुस्तमसिक अल उरवा अल वुस्क़ा, 1389 हिजरी, भाग 5, पेज 545; मोअस्सेसा सिब्तैन, अल उरवा अल वुस्क़ा वत तअलीक़ात अलैहा, 1430 हिजरी, भाग 6, पेज 468, फ़ुटनोट 4
- ↑ तबरेसी, अल एहतेजाज, 1403 हिजरी, भाग 1, पेज 58; बहरानी, अल हदाइक अल नाज़ेरा, मोअस्सेसा अल नशर अल इस्लामी, भाग 7, पेज 404
- ↑ तबरेसी, अल एहतेजाज, 1403 हिजरी, भाग 1, पेज 58
- ↑ हुब्बुल्लाह, अत तअलीक़तो अला मिन्हाज अल सालेहीन (अल अज़ान वल अक़ामा), अल मौक़ा अल रसमी लेहैदर हुब्बुल्लाह
- ↑ मूसवी आमोली, मदारिक अल अहकाम, मोअस्सेसा आले अल-बैत (अ), भाग 3, पेज 279; हकीम, मुस्तमसिक अल उरवा अल वुस्क़ा, 1389 हिजरी, भाग 5, पेज 544
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1363 शम्सी, भाग 9, पेज 87
- ↑ शेख़ सदूक़, मन ला याहज़ुर अल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 290; शहीद सानी, रौज़ुल जेनान, 1422 हिजरी, भाग 2, पेज 186
- ↑ शहीद सानी, अल रौज़ा अल बहया फ़ी शरह अल लुम्आ अल दमिश्क़ीया, 1410 हिजरी, भाग 1, पेज 240
- ↑ शेख़ तूसी, अल नेहाया, 1400 हिजरी, पेज 69
- ↑ शेख़ तूसी, अल मबसूत, 1387 हिजरी, भाग 1, पेज 99
- ↑ फ़ैज़ काशानी, मफ़ातीह अल शराए, 1401 हिजरी, भाग 1, पेज 118
- ↑ अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 81, पेज 111
- ↑ हमदानी, मिस्बाह अल फ़क़ीह, 1424 हिजरी, भाग 11, पेज 313-314
- ↑ सब्ज़वारी, मोहज़्ज़ब अल अहकाम, दार अल तफ़सीर, भाग 6, पेज 21-22; तबातबाई क़ुमी, मबानी मिन्हाज अल सालेहीन, मंशूरात क़लम अल शरक़, भाग 4, पेज 353
- ↑ मोअस्सेसा सिब्तैन, अल उरवा अल वुस्क़ा वत तअलीक़ात अलैहा, 1430 हिजरी, भाग 6, पेज 468, फ़ुटनोट 5
- ↑ ख़ूई, मिन्हाज अल सालेहीन, मोअस्सेसा अल ख़ूई अल इस्लामीया, भाग 1, पेज 150
- ↑ सिस्तानी, मिन्हाज अल सालेहीन, 1414 हिजरी, भाग 1, पेज 191
- ↑ वहीद ख़ुरासानी, मिन्हाज अल सालेहीन, मदरसा इमाम बाक़िर (अ), भाग 2, पेज 168
- ↑ हकीम, मुस्तमसिक अल उरवा, 1389 हिजरी, बाग 5, पेज 545
- ↑ मोअस्सेसा सिब्तैन, अल उरवा अल वुस्क़ा वत तअलीक़ात अलैहा, 1430 हिजरी, भाग 6, पेज 468, फ़ुटनोट 5
- ↑ सल्लार दैयलमी, अल मरासिम, 1414 हिजरी, पेज 72-73
- ↑ शेख़ सदूक़, मन ला यहज़ुर अल फ़क़ीह, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 290
- ↑ क़ज्वीनि, अल नक़्ज़, 1385 शम्सी, पेज 97
- ↑ मजलिसी, लवामेअ साहिब करानी, 1414 हिजरी, भाग 3, पेज 566
- ↑ मजलिसी, लवामेअ साहिब करानी, 1414 हिजरी, भाग 3, पेज 566
- ↑ मुदर्रेसी तबातबाई, मकतब दर फ़रआयंद तकामुल, 1398 शम्सी, पेज 99
- ↑ मुदर्रेसी तबातबाई, मकतब दर फ़रआयंद तकामुल, 1398 शम्सी, पेज 99
- ↑ उस्तादी, काशिफ़ अल ग़ेता व शहादत बर विलायत दर अज़ान व अक़ामत, पेज 178
- ↑ उस्तादी, काशिफ़ अल ग़ेता व शहादत बर विलायत दर अज़ान व अक़ामत, पेज 178
- ↑ शहरिस्तानी, मौसूआ अल अज़ान बैनल असालते वत तहरीफ़, भाग 3, पेज 1
- ↑ हुसैनी मीलानी, अश शहादतो बिल विलायते फ़िल अज़ान, पेज 49, फ़हरिस्त किताब
- ↑ सनद, अश शहादत अल सालेसा, 1385 शम्सी, पेज 446 फहरिस्त किताब
स्रोत
- उस्तादी, रज़ा, काशिफ़ अल ग़ेता व शहादत बर विलायत दर अज़ान व अक़ामत, किताब शिया, क्रमांक 13 और 14, ज़मिस्तान व बहार, 1395 शम्सी
- अशहदो अन्ना अलीयन वलीयुल्लाह, सहीफ़ा अल खत्तात मुहम्मद अल मुशरेफ़ावी दर पीनतरस, वीजिट की तारीख 14 खुरदाद, 1401 शम्सी
- बहरानी, युसुफ़, अल हदाइक अल नाज़ेरा, क़ुम, मोअस्सेसा अल नशर अल इस्लामी
- हुब्बुल्लाह, हैदर, अल तअलीक़ा अला मिन्हाज अल सालेहीन (अज़ान व अक़ामत), अल मौक़अ अल रसमी लेहैदर हुब्बुल्लाह, वीजिट की तारीख 25 आबान, 1403
- हुसैनी मीलानी, सय्यद अली, अल शहादत बिल विलाया फ़ी अज़ान, क़ुम, मरकज अल अबहास अल अक़ाइद, 1421 हिजरी
- हकीम, सय्यद मोहसिन तबातबाई, मुस्तमसिक अल उरवा उल वुस्क़ा, क़ुम, मोअस्सेसा दार अल तफ़सीर, 1416 हिजरी
- ख़ूई, सय्यद अबुल क़ासिम, मिनहाज अल सालेहीन, क़ुम, मोअस्सेसा अल ख़ूई अल इस्लामीया
- सब्ज़वारी, सय्यद अब्दुल आला, मोहज़्ज़ब अल अहकाम, क़ुम, दार अल तफसीर
- सल्लार दैयलमी, हमज़ा बिन अब्दुल अज़ीज़, अल मरासिम अल अल्वीया फ़ी अल नबवीया, क़ुम, अल मुआवेनीयते अल सक़ाफ़ीया लिल जमअ अल आलमी लेअहले अलबैत अलैहेमुस सलाम, 1414 हिजरी
- सन्द, मुहम्मद, अल शहादते अल सालेसा, तेहरान, मोअस्सेसा इमाम सादिक़ (अ), पहला संस्करण 1385 शम्सी
- सीस्तानी, सय्यद अली, मिन्हाज अल सालेहीन, क़ुम, इंतेशारात मेहेर, 1414 हिजरी
- शहरिस्तानी, सय्यद अली, मौसूआ अल अज़ान बैनल असालते वल इबतेदअ, क़ुम, नशर अल इज्तेहाद, 1430 हिजरी
- शहीद सानी, जैनुद्दीन बिन अली, अल रौज़ा अल बहीया फ़ी शरह अल लुमआ अल दमिश्क़ीया, तअलीक़ा सय्यद मुहम्मद कलांतर, क़ुम, इंतेशारात दावरी, 1410 हिजरी
- शहीद सानी, ज़ैनुद्दीन बिन अली, रौज़ अल जिनान, क़ुम, मरकज़ अल नशर अल ताबेअ लेमकतब अल आलाम अल इस्लामी, 1422 हिजरी
- शेख़ तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल मबसूत फ़ी फ़िक्ह अल इमामीया, बे तस्हीह सय्यद मुहम्मद तक़ी कश्फ़ी, तेहरान, अल मकतब अल मुर्तज़वीया ले एहया अल आसार अल जाफरीया, 1387 हिजरी
- शेख़ तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल निहाया फ़ी मुजर्रेदे अल फ़िक़्ह वल फ़तावा, बैरूत, दार अल किताब अल अरबी, 1400 हिजरी
- तबातबाई, क़ुमी, सय्यद तक़ी, मबानी मिनहाज अल सालेहीन, क़ुम, मंशूरात क़लम अल शरक
- तबरेसी, अबू मंसूर, अल एहतेजाज अला अहल अल लुजाज, तस्हीह व तअलीका मुहम्मद बाक़िर खिरसान, मशहद, नशर मुर्तज़ा, पहला संस्करण 1403 हिजरी
- अल्लामा मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार उल अनवार अल जामेअ लेदुरर अखबार अल आइम्मा अल अत्हार, बैरुत, दार एहया अल तुरास अल अरबी
- फ़ैज़ काशानी, मुहम्मद बिन मुर्तज़ा, मफ़ातीह अल शराए, क़ुम, मज्मा अल ज़ख़ाइर अल इस्लामीया, 1401 हिजरी
- क़ज्वीनी राज़ी, अब्दुल जलील, अल नक़्ज़ तेहरान, अंजुमन आसार मिल्ली, 1385 शम्सी
- मोअस्सेसा सिब्तैन, अल उरवा अल वुस्क़ा वत तअलीक़ात अलैहा, क़ुम, मोअस्सेसा अल सिब्तैन अलैहेमस सलाम अल आलमीया, 1430 हिजरी
- मजलिसी, मुहम्मद तक़ी, लवामेअ साहिब क़रानी, क़ुम, मोअस्सेसा इस्माईलीयान, 1414 हिजरी
- मुदर्रेसी तबातबाई, सय्यद हसन, मकतब दर फ़रआयंद तकामुल, तरजुमा हाशिम ईज्दपनाह, तेहरान, इंतेशारात कवीर, 1398 शम्सी
- नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल कलाम फ़ी शरह शराए अल इस्लाम, बे तहक़ीक व तस्हीह अब्बास कूचानी व अली आख़ूंदी, बैरुत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, सांतवा संस्करण 1404 हिजरी
- वहीद ख़ुरासानी, हुसैन, मिनहाज अल सालेहीन, क़ुम, मदरसा इमाम बाक़िर (अ)
- हमदानी, आक़ा रज़ा, मिस्बाह अल फ़क़ीह, क़ुम, अल मोअस्सेसा अल जाफ़रीया लेएहया अल तुरास, 1430 हिजरी