अलीयुन वलीयुल्लाह
अलीयुन वलीयुल्लाह (अरबीः علي ولي الله) अनुवाद: अली अल्लाह के वली (संरक्षक) है इमाम अली (अ) की इमामत और संरक्षकता (विलायत) में विश्वास के बारे में शियों का नारा है। शिया पैग़म्बर (स) की मृत्यु के बाद अली (अ) की ख़िलाफ़त को ईश्वर का आदेश मानते हैं।
अज़ान और अक़ामत में, शिया पैग़म्बर (स) की नबूवत की गवाही देने के साथ-साथ शहादतैन के बाद "अलीयुन वलीयुल्लाह" की गवाही भी देते हैं, हालांकि वे इसे अज़ान और अक़ामत का हिस्सा नहीं मानते हैं।
चंद्र कैलेंडर के 13वीं सदी के शिया विद्वान मिर्ज़ा ए कुमी ने "ला इलाहा इल लल्लाह, मुहम्मद रसूलुल्लाह" के बाद "अलीयुन वलीयुल्लाह" कहने को मुस्तहब माना है। इसके अलावा, सय्यद मुहम्मद हुसैन हुसैनी तेहरानी के अनुसार ये कुछ वाक्य अविभाज्य (लाज़िम वा मलज़ूम) हैं; इस तर्क के साथ कि पहले दिन जब पैग़म्बर (स) ने लोगों को इस्लाम में आमंत्रित किया, तो उन्होंने इमाम अली (अ) का अनुसरण करने का भी आदेश दिया।
आले बूयह, इस्माईली, फ़ातेमी और सफ़वी शिया सरकारो मे ढाले गए "अलीयुन वलीयुल्लाह" वाक्यांश वाले सिक्के आज भी मौजूद है, जिनमें से सबसे पुराने सिक्के चौथी चंद्र शताब्दी के मध्य के हैं। इस वाक्यांश का उपयोग शिया और फ़ातेमी काल की वास्तुकला में भी किया जाता है; 478 हिजरी (1094 ईस्वी) में काहिरा में इब्ने तुलून मस्जिद में शामिल की गई मेहराब पर मौजूद है।
परिभाषा और स्थान
"अलीयुन वलीयुल्लाह" इमाम अली (अ) की इमामत और विलायत में विश्वास के बारे में शियो के प्रमुख नारों में से एक है, जो आय ए विलायत और हदीसे जैसे हदीसे विलायत और ख़ुतबा ए ग़दीर से लिया गया है।[३] शिया लोग "अलीयुन वलीयुल्लाह" का प्रयोग "अली अल्लाह की ओर से वली[४] है" के अर्थ में करते हैं[५] और वे पैग़म्बर (स) के स्वर्गवास के बाद अली (अ) की खिलाफत को ईश्वर का आदेश मानते हैं।[६] इस नज़रए के वितरीत सुन्नी तीनो खलीफाओं की खिलाफत के बाद अली (स) की खिलाफ़त को मानते हैं।[७] और उनकी खिलाफत, अन्य खलीफाओं की खिलाफ़त की तरह अल्लाह की ओर से खिलाफत नहीं मानते है।[८]
"अलीयुन वलीयुल्लाह" के वाक्यांश का उल्लेख शियो की चार पुस्तकों (कुतुब ए अरबआ), अल-काफ़ी[९] और मन ला यहज़ोरोहु अल-फ़क़ीह[१०] में किया गया है। इसके अलावा, इन पुस्तकों में उल्लिखित ज़ियारतनामो मे इमाम अली (अ) को "वलीयुल्लाह" से संबोधित किया गया है।[११] शियो की कुछ रिवाई स्रोतो की कुछ रिवायतो मे "अलीयुन वीलयुल्लाह" के बाद "वसीयो रसूलिल्लाह" (अनुवाद: रसूले ख़ुदा के उत्तराधिकारी)[१२] और कुछ में, "खलीफ़तो बादे रसूलिल्लाह" (अनुवाद: रसूले खुदा के बाद खलीफ़ा) का उल्लेख किया गया है।[१३] कुछ सुन्नी सूफियों ने अपने कार्यों में "अलीयुन वीलयुल्लाह" वाक्यांश का भी उपयोग किया है।[१४]
ईदे ग़दीर पर आयोजित समारोह में शिया लोग "अलीयुन वलीयुल्लाह" वाक्यांश वाले बैनर और झंडे लगाते हैं।[१५] वे इसे अंगूठी पर भी उकेरते हैं।[१६] ईरान में कुछ शिया की संस्कृतियों में से इस वाक्यांश को गाड़ी के पीछे लिखवाना है।[१७]
शहादते सालेसा
- मुख्य लेख: शहादते सालेसा
शिया मुसलमान अज़ान और अक़ामत मे पैग़म्बर (स) की रिसालत की गवाही देने के बाद "अलीयुन वलीयुल्लाह" की गवाही देते हैं।[१८] शिया न्यायविद इसे अज़ान और अक़मात का हिस्सा नहीं मानते हैं;[१९] लेकिन कई उनमें से इसे सवाब के इरादे से कहना जायज मानते हैं।[२०] इसके अलावा इस्लाम में परिवर्तित होने के लिए, शिया एकेश्वरवाद और पैग़म्बर (स) की रिसालत की गवाही देने के बाद "अलीयुन वलीयुल्लाह" की गवाही देते हैं।[२१] हालांकि शिया न्यायविद इस्लाम मे पिरवर्तित होने के लिए इसे ज़रूरी नही सझते।[२२]
शिया हदीस स्रोतों में, "ला इलाहा इल लल्लाह, मुहम्मदुर रसूलुल्लाह" वाक्यांश के बाद, अलीयुन वलीयुल्लाह वाक्यांश का उल्लेख किया गया है[२३] और उसके बाद अलीयुन वलीयुल्लाह कहने से पापों की क्षमा होती है।[२४] 13वीं चंद्र शताब्दी के शिया न्यायविद् मिर्ज़ा ए क़ुमी ने रिवायतो के आधार पर "मुहम्मदुर रसूलुल्लाह " के बाद "अलीयुन वलीयुल्लाह" कहना मुस्तहब माना है।[२५] शिया विद्वान सय्यद मुहम्मद हुसैन हुसैनी तेहरानी (मृत्यु 1374 शम्सी) ने "ला इलाहा इल लल्लाह, मुहम्मदुर रसूलुल्लाह, अलीयुन वलीयुल्लाह" वाक्यांश को अविभाज्य माना हैं। उन्होंने हदीसे यौम अल-दार के साथ तर्क दिया है कि, इसके आधार पर, पहले दिन जब पैगंबर (स) ने अपने लोगों को इस्लाम मे आने और शहादतैन कहने के लिए आमंत्रित किया तो उन्होंने इमाम अली (अ) का अनुसरण करने का भी आदेश दिया।[२६]
कुछ हदीसो के अनुसार, पुनरुत्थान के दिन पैगबर (स)[२७] और इमाम अली (अ)[२८] के मुकुटो पर और "ला इलाहा इल लल्लाह, मुहम्मदुर रसूलुल्लाह, अलीयुन वलीयुल्लाह" वाक्यांश लिखा होगा। शिया स्रोतों के कुछ अन्य आख्यानों में भी ऐसे ही वर्णन मिलता हैं।[२९]
वाक्यांश "बिस्मिल्लाह अल रहमान अल रहीम, ला इलाहा इल लल्लाह, मुहम्मदुर रसूलुल्लाह, अलीयुन वलीयुल्लाह", उन वाक्यांशों में से है जो फ़ातेमी काल के कपड़ों पर लिखा जाता था।[३०]
अलीयुन वलीयुल्लाह वाक्यांश के वाले सिक्के
शिया सरकारों में कुछ शासकों[३२] जैसे इस्माइली[३३] और फातेमी[३४] ने अलीयुन वलीयुल्लाह वाक्यांश वाले सिक्के चलवाये। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- चौथी चंद्र शताब्दी के मध्य में तबरिस्तान में बावंडियन[३५]
- गीलान में दैल्मियान[३६]
- बसासिरी के शासन में आने के बाद आले-बूयेह (मृत्यु 451 हिजरी)[३७]
- ओल्जैतो, 8वें इलखानी सुल्तान, जिन्होंने अपना धर्म बदलकर शिया हो गए थे[३८]
- सरबदारान (शासनकाल 736-788 हिजरी)[३९]
- अलमूत के इस्माइलिस (शासनकाल 483-654)[४०]
- सफ़वीयान (शासनकाल 907-1135 हिजरी)[४१]
सिक्के पर "अलीयुन वलीयुल्लाह" को शामिल करने की रिपोर्ट गैर-शिया शासकों जैसे चौथे इलखानी शासक अर्ग़ून (शासनकाल 683-690 हिजरी),[४२] और अक क्यूयुनलुहा (शासनकाल 872-908 हिजरी) द्वारा भी की गई है।[४३] कुछ इतिहास शोधकर्ताओं ने इसका कारण शासकों का शिया धर्म के प्रति धार्मिक रुझान[४४] या शियाओं का समर्थन हासिल करना[४५] माना है।
ऐतिहासिक और धार्मिक इमारतो मे
"अलीयुन वलीयुल्लाह" वाक्यांश का उपयोग शिया वास्तुकला में[४७] और फातेमी काल में होता था।[४८] उदाहरण के लिए, 478 हिजरी (1094 ई) में काहिरा में इब्ने तुलून मस्जिद में जिस मेहराब को जोड़ा गया, इसमे "ला इलाहा इल लल्लाह, मुहम्मदुर रसूलुल्लाह, अलीयुन वलीयुल्लाह" वाक्यांश लिखा है।[४९] इस मेहराब का निर्माण इस्माइलिया के 18वें शासक मआज़ मुस्तंसिर (शासनकाल 427-487 हिजरी) के फातेमी काल के दौरान किया गया था।[५०]
ज़ंजान के पास सुल्तानीया शहर में स्थित सुल्तानीया के गुंबद पर "अलीयुन वलीयुल्लाह" का शिलालेख उत्कीर्ण है, जो वर्ष 710 हिजरी का है। सुल्तानीया गुंबद का निर्माण 8वें इलखानी राजा उलजैतो के शिया बनने के बाद और उनके आदेश पर किया गया था।[५१] इसके अलावा, "अलीयुन वलीयुल्लाह" वाक्यांश तबरेज़ की मस्जिद ए कबूद की दीवारों पर खुदा हुआ हैं, जिसका निर्माण 870 हिजरी में क़राक़ोयुनलू के राजाओं में से एक जहानशाह के समय मे हुआ था।[५२] वर्ष 770 हिजरी में काशान में इमामज़ादेह हबीब बिन मूसा की मेहराब पर "मुहम्मद अल्लाह के रसूल, अली अल्लाह के वली है""ला इलाहा इल लल्लाह, मुहम्मदुर रसूलुल्लाह, अलीयुन वलीयुल्लाह" लिखा हुआ है।[५३]
"अलीयुन वलीयुल्लाह" वाक्यांश का प्रयोग कुछ इमामों और इमामज़ादो की दरगाहों में इस्तेमाल किया जाता है; जिसमें इमाम अली (अ) की ज़रीह,[५४] इमाम रज़ा (अ.) की ज़रीह[५५] और हज़रत अब्बास (अ) के हरम की मीनार शामिल हैं।[५६]
साहित्य मे
आठवीं चंद्र शताब्दी के सूफ़ी कवि सय्यद अली इमामुद्दीन नसीमी ने अलीयुन वलीयुल्लाह के वाक्यांश को अपनी फ़ारसी कविता मे प्रयोग किया है। हर वस्फ़ के दर शाने कलामुल्लाह अस्त ख़ासीयते ऊ तमामे बिस्मिल्लाह अस्त आन नुक़्ते के आन दर बेये बिस्मिल्लाह अस्त आन ख़ाले रुख़ अलीयुन वलीयुल्लाह अस्त[५७]
9वीं चंद्र शताब्दी के सूफी असीरी लाहिजी नूरबख्शी ने "अलीयुन वलीयुल्लाह" रदीफ मे एक गज़ल कही है।[५८]
10वीं चंद्र हिजरी के कवि उरफ़ी शिराज़ी[५९] 11वीं चंद्र हिजरी के कवि मुहम्मद क़ुली सलीम तेहरानी[६०] और क़ाजार काल के कवि मुहम्मद काजिम आशिफ़्ते शिराज़ी[६१] ने भी "अलीयुन वलीयुल्लाह" वाक्यांश का प्रयोग अपनी कविताओं में किया है।
"अलीयुन वलीयुल्लाह" वाक्यांश अरबी कविता में भी परिलक्षित हुआ है; बनी हाशिम कवियों में से एक फ़ज़्ल बिन अब्बास लहबी ने वलीद बिन उकबा बिन अबी मोईत द्वारा लिखी गई एक कविता के जवाब मे बनी हाशिम के खिलाफ एक कविता लिखी जिसमें "अलीयुन वलीयुल्लाह" वाक्यांश का इस्तेमाल किया।[६२]
इसी तरह 6वीं चंद्र शताब्दी के शिया विद्वान इब्ने शहर आशोब[६३] और मालिके अशतर के पोत्र जमालुद्दीन मुहम्मद नजफी मालेकी (1086 हिजरी के बाद मृत्यु हो गई) ने भी अपनी एक अरबी कविता मे अलीयुन वलीयुल्लाह वाक्यांश का प्रयोग किया है।[६४]
फ़ोटो गैलरी
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इमाम अली (अ) की ज़रीह के ऊपरी शिलालेखों में से एक शिलालेख।[६५]
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इमाम अली (अ) के हरम मे लिखा हुआ अलीयुन वलीयुल्लाह वाक्यांश।[६६]
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इमाम रज़ा (अ) की ज़रीह पर अलीयुन वलीयुल्लाह।[६७]
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हज़रत अब्बास (अ) के हरम की मीनार पर कूफ़ी लिपि में लिखा हुआ अलीयुन वलीयुल्लाह।[६८]
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1439 हिजरी मे मुहम्मद अल-मुशरफ़ावी द्वारा सुल्स लिपि में अलीयुन वलीयुल्लाह का सुलेखन अंश।[६९]
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शाह इस्माइल प्रथम के युग का एक सिक्का, जिस पर ला इलाहा इल लल्लाह, मुहम्मद रसूलुल्लाह, अलीयुन वलीयुल्लाह वाक्यांश उत्कीर्ण है। (शिराज़ 929 हिजरी)[७०]
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इल्खानी राजा ऊलताइजू के युग का एक सिक्का, जिस पर अलीयुन वलीयुल्लाह शब्द खुदे हुए हैं। (703 और 716 हिजरी के बीच)[७१]
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(तबरिस्तान 365 हिजरी) मे रुस्तम बिन शेरविन के काल का एक सिक्का जिस पर अलीयुन वलीयुल्लाह वाक्यांश उत्कीर्ण है।[७२]
फ़ुटनोट
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- अंदामी, परीसा वा सईद सुलेमानी, बरकी अज सिक्के शनासी (रवंद तशय्यो दर ईरान), दर मजल्ला किताब माहे हुनर, क्रमांक 31 -32 फ़रवरदीनन वा उर्दीबहिश्त 1380 शम्सी
- अंगुश्तर अक़ीक़ खत्ती अलीयुन वलीयुल्लाह, जवाहेरात परचमी, तारीख विजीट 13 मेहेर 1401 शम्सी
- ईजी, अल मुआफ़िक़ फ़ी इल्म अल कलाम, बैरूत, आलम अल कुतुब
- तुस्तरी, क़ाज़ी नुरुल्लाह, अहक़ाक अल हक वा इज़्हाक़ अल बातिल, क़ुम, मकतब आयतुल्लाह अल मरअशी अल नजफी, 1409 हिजरी
- तक़ीयुद्दीन काशी, मुहम्मद बिन अली, खुलासा अल अशआर वा ज़ुब्दा अल अफकार, तेहरान, मरकज पुज़ूहिशी मीरास मकतूब, 1392 शम्सी
- जान मासून, इस्मीयत, खुरूज व उरूज सरबदारान, अनुवादः याक़ूब आज़ंद, तेहरान, दानिश गाह तेहरान, 1361 शम्सी
- जाफ़रयान, रसूल, तारीख तशय्यो दर ईरान, तेहरान, नशर इल्म, 1387 शम्सी
- हुसैनी तेहरानी, सय्यद मुहम्मद हुसैन, इमाम शनासी, मशहद, मोअस्सेसा तरजुमा वा नश्र दौरा ए लूम वा मआरिफ़ इस्लाम, 1422 हिजीर
- हुसैन मिलानी, अली, जवाहिर अल कलाम फ़ी मारफ़ते इमामते वल इमाम, क़ुम, मरकज़ हकाइक़ इस्लाम, 1389 शम्सी
- हुजूरे मिलयूनी मरदुम तेहरान दर मेहमानी 10 किलोमीटरी ग़दीर, खबरगुज़ारी ताबनाक, तारीखे दर्ज मतलब 27 तीर 1401 शम्सी, तारीखे वीजिट 9 मेहेर 1401 श्मसी
- रावंदी, कुतुबुद्दीन सईद बिन हैबतुल्लाह, अल दावात (सिलवातुल हज़ीन) कुम, इंतेशारात मदरसा इमाम महदी (अ) 1407 हिजरी
- रहीम रज़ा, मुहम्मद कुली सलीम तेहरानी, दर मजल्ला दानिशकदे अदबयात वा उलूम इंसानी दानिशगाहे तेहरान, तेहरान, बहमन 1346 शमसी
- ज़की मुहम्मद हसन, अल मंसूजात अल इस्लामीया अल मिस्रीया वा माअरज़ जूबलान बेबारीस, दर मजल्ला अल रेसाला, क्रमांक 102, 17 जनवरी 1935 ई
- सुब्हानी, जाफ़र वा जमई अज़ मोहक़्क़ेक़ान, शिया शनाख्त (तारीख, अकाइद, अहकाम, आदाब वा उलूम) क़ुम, इमाम अली इब्ने अबी तालिब (अ), 1397 शम्सी
- सर अफ़राज़ी, शआइर शीई बर सिक्केहाए इस्लामी ता शकलगीरी हुकूमत सफ़वीयान, दर मजल्ले शिया शनासी, क्रमांक 51 पाईज़ 1394 शम्सी
- सरावी, अब्दुल मोहसिन, अल क़ुतूफ अल दानीया फि अल मसाइल अल समानीया, मुकद्दमा अब्दुल्लाह अदनान मुंतफ़की, दार अल मवद्दत, 1997 ई
- सिक्का बावंदीयान, रुस्तम बिन शरवीन, साइट अल बयान (मोअस्सेसा अल बयान लित तवासुल वत तअस्सुल), तारीख दर्ज मतलब 24 आज़र 1399 शम्सी, तारीख वीजीट 11 तीर 1401 शम्सी
- सिक्के सुल्तान मुहम्मद खुदावंदे (अल जाएतू) इलखानी, किताब खाना वा मूज़ा मिल्ली मलिक, तारीख वीजीट 6 तीर 1401 शम्सी
- शाबलून पुश्तनवीसी माशीन तरह अलीयुन वलीयुल्लाह, खिदमतगुजारान, तारीख वीजीट 13 मेहेर 1401 शम्सी
- शहीद सानी, जैनुद्दीन बिन अली, मसालिक अल इफहाम इला तंक़ीह शरा ए अल इस्लाम, क़ुम, मोअस्सेसा अल मआरिफ़ अल इस्लामीया, 1413 हिजरी
- शेख सदूक़, मुहम्मद बिन अली, अल अमाली, तेहरान, किताबची, 1376 शम्सी
- शेख सदूक़, मुहम्मद बिन अली, अल ख़ेसाल, तहक़ीक व तस्हीह अली अकबर ग़फ़्फ़ारी, क़ुम, जामे मुदर्रेसीन, 1362 शम्सी
- शेख सदूक़, मुहम्मद बिन अली, मन ला याहज़ेरो अल फ़क़ीह, तहक़ीक वा तस्हीह, अली अकबर गफ़्फ़ारी, क़ुम, दफ्तर इंतेशारात इस्लामी वा बस्ते बे जामे अल मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मीया, क़ुम, 1413 हिजरी
- अल ज़रीह अल मुकद्दस, शबका अल इमाम अली (अ), मीडिया, तारीखे वीजीट 16 ख़ुरदाद, 1401 शम्सी
- तबातबाई मुहम्मद हुसैन, वा हादी खुसरो शाही, बररसीहाए इस्लामी, क़ुम, बूस्ताने किताब क़ुम (इंतेशारात दफ्तर तबलीग़ात इस्लामी हौज़ा ए इल्मीया क़ुम) 1388 शम्सी
- तबरी आमोली सगीर, मुहम्मद बिन जुरैर, दलाइल अल इमामा, तहक़ीक वा तस्हीह क़िस्म अल देरासात अल इस्लामीया, मोअस्सेसा अल बेसत, क़ुम, बेसत, 1413 हिजरी
- अब्दुर रहमान बिन दिरहम, अब्दुर रहमान बिन अब्दुल्लाह, नुजहत अल अब्सार बेतराइफ अल अख़्बार अल अश्आर, बैरूत, दार अल एबाद
- अब्दुल्लाह बिन अहमद बिन हंबल, शैबानी बगदादी, अल सुन्ना, दार इब्ने अल क़य्यम, 1408 हिजरी
- ऊदी, सत्तार, काउशी नवीन दर तारीख फातेमयात मिस्र, दर मजल्ला किताबे माह, बेहमन व इस्फ़ंद 1382 शम्सी
- ग़ज़ी, अब्दुल हलीम, अल शहादत अल सालेसा अल मुकद्देसा मादन अल इस्लाम अल कामिल वा जोहर अल इमान अल हक़, बैरूत, दार अल कारी, 1423 हिजरी
- फ़ोआद सय्यद, अल क़ाहेरा, दर दानिशनामे मजिज़ दाएरातुल मआरिफ़ अल इस्लामी, मरकज अल शारेक़ा लिल बदाअ अल फ़िक्री, 1418 हिजरी
- क़ुमी, अली बिन इब्राहीम, तफसीर अल क़ुमी, बे तहकीक व तस्हीह तय्यब मूसवी जज़ाएरी, क़ुम, दार अल किताब, 1404 हिजरी
- क़ंदूज़ी, सुलैमान बे इब्राहीम, यनीबी अल मवद्दत लेज़वी अल क़ुर्बा, क़ुम, दार अल उस्वा, 1422 हिजरी
- क़ैरवानी, इब्ने अबी ज़ैद, अक़ीदा अल सल्फ़ (मुकद्दमा अबी जैद अल क़ैरवानी लेकिताबे अल रेसाले) दार अल आसेमा
- कश्फी तिरमिज़ी, मुहम्मद सालेह बिन अब्दुल्लाह, मनाक़िब मुर्तज़वी, तेहरान, रूज़नेह, 1380 शम्सी
- कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल काफ़ी, तहक़ीक वा तस्हीह दार अल हदीस, क़ुम, दार अल हदीस, 1429 हिजरी
- गुंबद हरम अलवी तमीज़ शुद / नस्ब परचम अलीयुन वलीयुल्लाह, पाएगाह खबरी तहलीली 361 दरजा ईरान, 21 बहमन 1400 शम्सी, तारीख वीजीट 24 खुरदाद 1401 शम्सी
- मोहद्देसी, जवाद, फ़रहंग गदीर, क़ुम, नशर मारूफ़, 1386 शम्सी
- मस्ऊदी, अली बिन हुसैन, मुरूज अल ज़हब, तहक़ीक असअद दागर, क़ुम, दार अल हिजरा, 1409 हिजरी
- मज़हरी, मुहम्मद सना उल्लाह, अल तफसीर अल मज़हरी, बे तहक़ीक ग़ुलाम नबी अलतूनसी, पाकिस्तान, मकतब अल रशीदया, 1412 हिजरी
- मक़रीज़ी, तकीयुद्दीन अहमद बिन अली, अलमोईज़ व अल ऐतेबार बेज़िकरे अलखतत वल आसार, बैरूत, दार अल कुतुब अल इल्मीया, 1418 हिजरी
- मकारिम शिराज़ी, नासिर, तरजुमा कुरआन, क़ुम, दफतर मुतालेआत तारीख वा मआरिफ इस्लामी, 1373 शम्सी
- मआलिम उमरानीया, शब्का अल इमाम अली (अ) मीडिया, तारीख वीजीट 16 खुरदाद 1401 शम्सी
- मवद्दत, लैदा, तहलीली बर रवंद जरब इबारत अलीयुन वलीयुल्लाह बर सिक्केहाए बांवदीयान क्यूसीया, दर मजल्ले तारीख नामा ईरान बाद अज़ इस्लाम, क्रमांक 25, ज़मिस्तान, 1399 शम्सी
- मिर्ज़ा ए क़ुमी, अबुल क़ासिम बिन मुहम्मद हसन, गनाइम अल अय्याम फ़ी मसाइल अल हलाल वल हराम, क़ुम, मकतब अल आलाम अल इस्लामीया, 1375 शम्सी
- नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल कलाम, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, 1362 शम्सी
- नसीमी, सय्यद अली एमादुद्दीन, जिंदगी वा अश्आर एमादुद्दीन नसीमी, बे कोशिश यदुल्लाह जलाली पंदरी, तेहरान, नशर नै, 1372 शम्सी
- वर्राम बिन अबी फारस, मसऊद बिन ईसा, मजमूआ वर्राम, क़ुम, मकतबा फ़क़ीह, 1401 हिजरी
- यज़्दी, मुहम्मद काज़िम, अल उर्रवा अल वुस्क़ा मा हाशिया सय्यद सादिक़ अल हुसैनी अल शिराज़ी, क़ुम, दार अल अंसार, 1429 हिजरी
- Mirror image of 'Ali wali Allah»، Library of Congress، तारीख वीजीट 13 ख़ुरदाद 1401 हिजरी
- FATIMID, AL-MUSTANSIR»، NumisBids، तारीख दर्ज मतलब 2 मई 2019 ई, तारीख वीजीट 1 मेहेर 1401 शम्सी
- Molana Imam Mustansirbillah»، The Bohras، तारीख वीजीट 4 तीर 1401 शम्सी
- Safavid Shah Ismail I 907-930AH AV»، NumisBids، तारीख दर्ज मतलब 4 दिसंबर 2020 ई, तारीख वीजीट 5 तीर 1401 शम्सी
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