अंगूठी
अंगूठी या ख़ातम रत्नों से सजी एक धातु की अंगूठी है, जो हदीसों के अनुसार पैग़म्बर (स) की सुन्नतों में से एक है। न्यायशास्त्र में, अंगूठी के अहकाम का उल्लेख किया गया है। इमाम हसन अस्करी (अ) द्वारा वर्णित एक हदीस के अनुसार, दाहिने हाथ में अंगूठी पहनना मोमिन के पांच निशानियों में से एक है। शिया हदीसों में अंगूठी के प्रकार और उस पर बने पैटर्न तथा अहजारे करीमा (क़ीमती पत्थरों) के उपयोग के बारे में सिफारिशें की गई हैं।
वर्णित हुआ है कि शिया इमामों की अंगूठियों पर "अल-मुल्क लिल्लाह" और "हस्बी अल्लाह" जैसे शब्द लिखे होते थे। शिया लोग अपनी अंगूठियों पर "ला एलाहा इल्लल्लाह", "मुहम्मद नबी अल्लाह" और "अली वली अल्लाह" जैसे वाक्यांश भी उकेरते हैं।
अंगूठी का उपयोग पत्रों पर मुद्रांकन के लिए भी किया जाता था। पैग़म्बर (स) और शिया विद्वानों ने भी इस पद्धति का उपयोग किया है।
स्थिति एवं महत्व
किताब फ़र्हंगे फ़िक़हे इस्लामी में, अंगूठी को एक छल्ले के रूप में परिभाषित किया गया है, जो आमतौर पर धातु होती है और इसमें रत्नजड़ित और गैर-रत्नजड़ित किस्में शामिल होती हैं, और यह उंगली के लिए विशिष्ट होती है।[१] कुछ हदीसों में, अंगूठी पहनना पैग़म्बर (स) की सुन्नतों में से एक,[२] शियों की निशानियों में से एक[३] और मोमिन की निशानियों में से एक,[४] पेश किया गया है। ऐसा कहा जाता है कि दाहिने हाथ में अंगूठी पहनना उन संकेतों में से एक है जिनसे शियों को पहचाना जाता है।[५] न्यायशास्त्र के विभिन्न अध्यायों में, जैसे नमाज़,[६] हज[७] और जिहाद,[८] अंगूठी के बारे में उल्लेख किया गया है।
इमामों द्वारा पहनी जाने वाली अंगूठियों के उदाहरण
शिया[९] और सुन्नी[१०] स्रोतों में वर्णित हदीसों के अनुसार, इमाम अली (अ) ने नमाज़ में रुकूअ के समय एक फ़क़ीर आदमी को अपनी अंगूठी दी थी।[११] इस घटना को ख़ातमबख़्शी के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा, किताब लोहूफ़ इब्ने ताऊस (मृत्यु 664 हिजरी) में जो उल्लेख किया गया है, उसके अनुसार, जब इमाम हुसैन (अ) शहीद हुए थे, तब उनके हाथ में एक अंगूठी थी, और उमर बिन साद की सेना से बजदल बिन सुलैम कलबी ने इमाम की अंगूठी चुराने के लिए इमाम की उंगली काट दी थी।[१२]
एक हदीस में, इमाम काज़िम (अ) से इमाम अली (अ) के दाहिने हाथ में अंगूठी पहनने का कारण पूछा गया, इमाम (अ) ने उत्तर दिया: क्योंकि इमाम अली (अ) पैग़म्बर (स) के बाद धर्मी साथियों (असहाबे यमीन) के पेशवा थे।[१३]
पत्र पर मुद्रांकन
पत्रों का अंगूठी द्वारा मुद्रांकन, इस्लामी परंपराओं में से एक माना जाता है।[१४] ऐसा कहा जाता है कि पैग़म्बर (स) ने महान राजा को लिखे पत्रों पर मुहर लगाने के लिए वर्ष 6 हिजरी के अंत में एक अंगूठी बनाने का आदेश दिया था।[१५] पत्रों को अंगूठी द्वारा मुहर करने की परंपरा का पालन शिया विद्वानों द्वारा भी किया गया है।[१६] इसलिए अंगूठी को ख़ातम भी कहा जाता है।[१७]
प्रकार और पैटर्न
शिया हदीसों में अंगूठी के प्रकार, रत्न के प्रकार और उसके प्रकार तथा पैटर्न (नक़्श) के बारे में उल्लेख किया गया है।[१८]
- प्रतिदिन की नमाज़ें और हर दिन की रात और दिन की नाफ़ेला नमाज़ें पढ़ना)
- ज़ियारते अरबईन
- दाहिने हाथ में अंगूठी पहनना
- सजदे में ज़मीन पर पेशानी रखना
- ज़ोर से "बिस्मिल्लाह अल रहमान अल रहीम" कहना
- प्रकार: कुछ हदीसों में वर्णित हुआ कि पैग़म्बर (स) की अंगूठी चांदी से बनी हुई थी।[१९] हदीसों में, कुछ अहजारे करीमा (क़ीमती पत्थरों), जैसे अक़ीक़,[२०] फ़िरोज़ा,[२१] रूबी (याक़ूत),[२२] और पन्ना (ज़मुर्रद)[२३] से बनी अंगूठी के उपयोग की सिफ़ारिश की गई है। इसके अलावा, वसाएल अल शिया में हदीसें वर्णित हुई हैं जिनमें पैग़म्बर की अंगूठी के पत्थर के गोल और काले होने का उल्लेख किया गया है।[२४]
- पैटर्न (नक़्श): अंगूठी पर जो पैटर्न उकेरे जाते हैं, उसके बारे में इमामों की हदीसें वर्णित हुई हैं।[२५] इमाम सादिक़ (अ) की एक हदीस में, यह कहा गया है कि पैग़म्बर (स) की अंगूठी पर "मोहम्मद रसूल अल्लाह" इमाम अली (अ) की अंगूठी पर "अल मुल्क लिल्लाह" और इमाम बाक़िर (अ) की अंगूठी पर "अल इज़्ज़त अल्लाह" लिखा हुआ था।[२६] इमाम काज़िम (अ) की अंगूठी पर भी "हस्बी अल्लाह हाफ़ेज़ी" (केवल ईश्वर ही मेरी सुरक्षा के लिए काफ़ी है)[२७] और "अल मुल्क लिल्लाह वहदहू" (मुक्ल और शासकत्व केवल और केवल ईश्वर का है)[२८] लिखे होने का उल्लेख किया गया है। "मोहम्मद नबी अल्लाह" और "अली वलीयुल्लाह" शब्द उन शब्दों में से हैं जिन्हें अंगूठी पर उकेरने की सिफ़ारिश की गई है।[२९] शियों के बीच इन उत्कीर्णन वाली अंगूठियां पाई जाती हैं।
अहकाम
विभिन्न न्यायिक अध्यायों में, अंगूठियों के लिए अहकाम बताए गए हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- तहारत: कुछ न्यायविदों का कहना है कि इस्तिनजा (मूत्र और मल के स्थान को साफ़ करना)[३०] के दौरान ईश्वर के नाम या कुरआन से कुछ लिखी हुई अंगूठी का पहनना मकरूह है।[३१] मोहम्मद हसन नजफ़ी किताब जवाहिर अल कलाम के लेखक के अनुसार इमामों (अ) और हज़रत फ़ातिमा (स) के लिखे हुए नाम की अंगूठी पहनने का भी यही ही हुक्म है।[३२]
- वुज़ू: वुज़ू के दौरान पानी अंगूठी के नीचे हाथ की त्वचा तक पहुंचना चाहिए। इसलिए, वुज़ू करते समय अंगूठी को हिलाना मुस्तहब है ताकि पानी इसके नीचे पहुंच जाए, और यदि पानी इसके नीचे नहीं पहुंचता है, तो इसे उतार दिया जाना चाहिए।[३३]
- नमाज़: न्यायविदों के फ़तवे के अनुसार, नमाज़ के दौरान हाथ में अक़ीक़ पत्थर से बनी हुई अंगूठी का पहनना मुस्तहब है।[३४] हालांकि, मर्द का सोने से बनी अंगूठी पहन कर नमाज़ पढ़ना हराम और बातिल है।[३५] इसके अलावा, महिलाओं और पुरुषों के लिए नमाज़ और अन्य में लोहे की अंगूठी का उपयोग मकरूह है।[३६] कुछ न्यायविदों के अनुसार, ग़स्बी अंगूठी पहन कर नमाज़ पढ़ना बातिल है।[३७]
- हज: कुछ न्यायविदों ने हज की तैयारियों की चर्चा में यात्रा के लिए पीले अक़ीक़ की अंगूठी पहनने को मुस्तहब बताया है।[३८] मराजे ए तक़लीद में से एक सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई के अनुसार, मोहरिम के लिए अंगूठी पहनना हराम है अगर यह सजावट के लिए हो अन्यथा जाएज़ है।[३९] इसके अलावा, इमाम खुमैनी एहतियाते वाजिब के आधार पर नजिस अंगूठी के साथ हज को बातिल मानते हैं।[४०]
- जिहाद: अंगूठी को सलब का हिस्सा माना जाता है।[४१] सलब जिहाद में क़त्ल होने वाले की संपत्ति है जिसे हत्यारे के पास रखने का अधिकार है और इसे लूट के माल की तरह विभाजित नहीं किया जाता है।[४२]
- विवाह: मोहद्दिस बहरानी के अनुसार, ऐसी अंगूठी पहन कर संभोग करना जिस पर ईश्वर का नाम या कुरआन का एक वाक्यांश लिखा हो, मकरूह है।[४३]
- विरासत: अंगूठी को एक हब्वा (वह विशिष्ट सम्पत्ति जो पिता से प्राप्त होती है) माना जाता है जो विरासत को विभाजित करने से पहले सबसे बड़े बेटे को दी जाती है।[४४]
- सोने की अंगूठी: शिया न्यायविद पुरुषों के लिए सोने से बनी अंगूठी पहनना हराम मानते हैं।[४५]
सुलैमान की अंगूठी
- मुख्य लेख: सुलैमान की अंगूठी
हदीसों में हज़रत सुलैमान की एक अंगूठी का उल्लेख हुआ है, जो उनकी शक्ति का प्रतीक थी।[४६] यह अंगूठी इमामों के हाथों में थी[४७] और हज़रत महदी (अ) के हाथ में यह होगी जब वह ज़ुहूर करेंगे।[४८]
फ़ुटनोट
- ↑ मोअस्सास ए दाएर अल मआरिफ़ फ़िक़हे इस्लामी, फ़र्हंगे फ़िक़हे फ़ारसी, 1385 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 746।
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 468।
- ↑ हुर्रे आमोली, हिदायत अल-उम्मा, 1412 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 137।
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, किताब अल-मज़ार, 1413 हिजरी, पृष्ठ 53।
- ↑ ज़ारेई, "अंगुश्तरी दर इस्लाम", पृष्ठ 15।
- ↑ आमोली, मिफ्ताह अल-करमा, 1419 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 444।
- ↑ ख़ूई, मौसूआ अल-इमाम खूई, 1418 हिजरी, खंड 28, पृष्ठ 452।
- ↑ तूसी, अल-मबसूत, 1387 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 67।
- ↑ शेख़ मुफ़ीद, मसार अल-शिया, 1414 हिजरी, पृष्ठ 41।
- ↑ हाकिम हस्कानी, शवाहिद अल-तंज़िल, 1411 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 209-239।
- ↑ हाकिम हस्कानी, शवाहिद अल-तंज़िल, 1411 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 212।
- ↑ इब्ने ताऊस, अल लोहूफ़, 1348 शम्सी, पृष्ठ 130।
- ↑ हुर्रे आमोली, हिदायत अल-उम्मा, 1412 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 137।
- ↑ ज़ारेई, "अंगुश्तरी दर इस्लाम", पृष्ठ 15।
- ↑ ज़ारेई, "अंगुश्तरी दर इस्लाम", पृष्ठ 15।
- ↑ ज़ारेई, "अंगुश्तरी दर इस्लाम", पृष्ठ 15।
- ↑ "अंगूठी" शब्द के अंतर्गत देहखोदा, लोग़त नामे देखें।
- ↑ उदाहरण के लिए, देखें: हुर्रे आमोली, वसाएल अल-शिया, 1409 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 79, 94, 93 और खंड 1, पृष्ठ 331।
- ↑ तबरसी, मकारिम अल-अख़्लाक़, 1412 हिजरी, पृष्ठ 85।
- ↑ हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, 1409 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 88।
- ↑ हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, 1409 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 94।
- ↑ हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, 1409 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 92।
- ↑ हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, 1409 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 93।
- ↑ हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, 1409 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 79।
- ↑ हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, 1409 हिजरी, खंड 5, पृ. 103-97 और खंड 1, पृ. 331 और खंड 5, पृ. 78 और खंड 5, पृ. 79 और खंड 5 देखें। पृ. 91 और खंड 5, पृ. 94.
- ↑ हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, 1409 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 99।
- ↑ तबरसी, मकारिम अल-अख़्लाक़, 1412 हिजरी, पृष्ठ 91।
- ↑ मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 48, पृष्ठ 11।
- ↑ हुर्रे आमोली, वसाएल अल शिया, 1409 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 92।
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 12।
- ↑ बहरानी, अल-हदाएक़ अल-नाज़ेरा, 1405 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 76।
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 72।
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 287।
- ↑ तबातबाई यज़्दी, अल-उर्वा अल-वुस्क़ा, 1419 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 361।
- ↑ आमोली, मिफ्ताह अल-करामा, 1419 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 444।
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, 1404 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 264।
- ↑ अल्लामा हिल्ली, तहरीर अल-अहकाम, 1420 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 196।
- ↑ तबातबाई यज़्दी, अल-उर्वा अल-वुस्क़ा, 1419 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 331।
- ↑ ख़ूई, मौसूआ अल-इमाम ख़ूई, 1418 हिजरी, खंड 28, पृष्ठ 452।
- ↑ खुमैनी, तहरीर अल-वसीला, दार अल इल्म पब्लिशिंग हाउस, खंड 1, पृष्ठ 429-430।
- ↑ तूसी, अल-मबसूत, 1387 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 67।
- ↑ तुसी, अल-मबसूत, 1387 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 67।
- ↑ बहरानी, अल-हदाएक़ अल-नाज़ेरा, 1405 हिजरी, खंड 23, पृष्ठ 138।
- ↑ सय्यद मुर्तज़ा, अल-इंतेसार, 1415 हिजरी, पृष्ठ 582।
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, खंड 41, पृष्ठ 54 देखें।
- ↑ मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 14, पृष्ठ 99।
- ↑ उदाहरण के लिए, सफ़्फ़ार, बसाएर अल-दरजात, 1404 हिजरी, पृष्ठ 208 और 198 को देखें।
- ↑ मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 26, पृष्ठ 222।
स्रोत
- इब्ने ताऊस, अली इब्ने मूसा, अल लोहूफ़, जहान प्रकाशन, तेहरान, 1348 शम्सी।
- बहरानी, यूसुफ़ बिन अहमद, अल-हदाएक़ अल-नाज़ेरा फ़ी अहकाम अल-इतरा अल-ताहिरा, मोहम्मद तक़ी इरवानी-सय्यद अब्दुल रज्ज़ाक़ मुकर्रम द्वारा शोध, क़ुम, दफ़्तरे इन्तेशाराते इस्लामी जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ ए इल्मिया क़ुम से सम्बंधित, पहला संस्करण , 1405 हिजरी।
- हाकिम हस्कानी, उबैदुल्लाह, शवाहिद अल तंज़िल ले क़वाएद अल तफ़सील, मोहम्मद बाक़िर महमूदी द्वारा शोध, दूसरा संस्करण, क़ुम, मरकज़े एहया अल सक़ाफ़ा अल इस्लामिया, 1411 हिजरी।
- हुर्रे आमोली, मुहम्मद बिन हसन, तफ़सील वसाएल अल शिया एला तहसील मसाएल अल शरिया, आले-अल-बैत (अ) के शोध समूह का शोध, क़ुम, मोअस्सास ए आले अल बैत (अ), पहला संस्करण, 1409 हिजरी।
- हुर्रे आमोली, मुहम्मद बिन हसन, हिदायत अल उम्मा एला अहकाम अल आइम्मा- चयनित मसाएल, हदीस दर जामेअ पज़ोहिशहाए इस्लामी का शोध, मशहद, मजमा अल बोहूस अल इस्लामिया, पहला संस्करण, 1412 हिजरी।
- खुमैनी, सय्यद रूहुल्लाह, तहरीर अल-वसीला, क़ुम, दार अल-आलम प्रेस इंस्टीट्यूट, पहला संस्करण, बी ता।
- ख़ूई, सय्यद अबुल-कासिम, मौसूआ अल इमाम खूई, आयतुल्लाह अल उज़मा खूई के कार्यों के पुनरुद्धार संस्थान, क़ुम, इमाम अल-खूई के कार्यों के पुनरुद्धार संस्थान के शोधकर्ताओं द्वारा अनुसंधान, पहला संस्करण, 1418 हिजरी।
- ज़ारेई, मोहम्मद, "अंगुश्तरी दर इस्लाम", फ़र्हंग कौसर पत्रिका में, संख्या 32, 1378 शम्सी।
- सय्यद मुर्तज़ा, अली बिन हुसैन, अल-इंतिसार फ़ी इंफेरादात अल-इमामिया, दफ़तरे इन्तेशाराते इस्लामी पज़ोहिश समूह, क़ुम, दफ़्तरे इन्तेशाराते इस्लामी जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ ए इल्मिया क़ुम से सम्बंधित, पहला संस्करण, 1415 हिजरी।
- शेख़ मुफ़ीद, मुहम्मद बिन मुहम्मद, किताब अल-मज़ार, सय्यद मोहम्मद बाक़िर अब्तही द्वारा शोध, क़ुम, शेख़ मुफ़ीद हजारा वर्ल्ड कांग्रेस, प्रथम संस्करण, 1413 हिजरी।
- शेख़ मुफ़ीद, मुहम्मद बिन मुहम्मद, मसार अल-शिया, बेरूत, दार अल-मुफीद, 1414 हिजरी/1993 ई।
- सफ़्फ़ार, मुहम्मद बिन हसन, बसाएर अल-दरजात अल-कुबरा, मिर्ज़ा मोहसिन कुचेबाग़ी का तालिक़ा और परिचय, मंशूराते अल आलमी लिल मतबूआत, 1362/1404 हिजरी।
- तबातबाई यज़्दी, सय्यद मोहम्मद काज़िम, अल-उर्वा अल-वुस्क़ा फ़ी मा तउम बेही अल-बलवा (मोहशा), अहमद मोहसेनी सब्ज़वेरी द्वारा शोध, क़ुम, दफ़्तरे इन्तेशाराते इस्लामी जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ ए इल्मिया क़ुम से सम्बंधित, पहला संस्करण, 1419 हिजरी ।
- तबरसी, हसन बिन फ़ज़ल, मकारिम अल-अख़्लाक़, क़ुम, अल-शरीफ अल-मुर्तज़ा, 1412 हिजरी।
- तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल-मबसूत फ़ी फ़िक़्ह अल-इमामिया, सय्यद मोहम्मद तक़ी कश्फ़ी द्वारा शोध, तेहरान, अल-मकतबा अल-मुर्तज़विया ले एहिया अल-आसार अल-जाफ़रया, तीसरा संस्करण, 1387 हिजरी।
- आमोली, सय्यद जवाद बिन मुहम्मद, मिफ्ताह अल-करामा फ़ी शरहे क़वाएद अल-अल्लामा, मोहम्मद बाक़िर खालसी द्वारा शोध, क़ुम, दफ़्तरे इन्तेशाराते इस्लामी जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ ए इल्मिया क़ुम से सम्बंधित, पहला संस्करण, 1419 हिजरी।
- अल्लामा हिल्ली, हसन बिन यूसुफ़, तहरीर अल-अहकाम अल-शरिया अला मज़हब अल-इमामिया, इब्राहीम बहादुरी द्वारा शोध, क़ुम, इमाम सादिक़ (अ) इंस्टीट्यूट, प्रथम संस्करण, 1420 हिजरी।
- अल्लामा मजलिसी, मोहम्मद बाक़िर, बिहार अल-अनवार, अल-वफ़ा फाउंडेशन, 1403 हिजरी।
- कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल-काफ़ी, अली अकबर ग़फ़्फ़ारी द्वारा अनुसंधान और सुधार, तेहरान, दार अल-कुतुब अल-इस्लामिया, चौथा संस्करण, 1407 हिजरी।
- मोअस्सास ए दाएर अल मआरिफ़ फ़िक़हे इस्लामी, फ़र्हंगे फ़िक़ह मज़हबे अहले बैत (अ) के मुताबिक़, क़ुम, मोअस्सास ए दाएर अल मआरिफ़ फ़िक़हे इस्लामी, दूसरा संस्करण, 1385 शम्सी।
- नजफ़ी, मोहम्मद हसन, जवाहिर अल-कलाम फ़ी शरहे शराए अल-इस्लाम, अब्बास कूचानी और अली आखुंदी द्वारा शोध, बेरूत, दार एह्या अल-तोरास अल-अरबी, 7वां संस्करण, 1404 हिजरी।