इमाम हसन असकरी अलैहिस सलाम

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इमाम हसन असकरी अलैहिस सलाम
इमाम नक़ी (अ) और इमाम असकरी (अ) का रौज़ा
नामहसन बिन अली बिन मुहम्मद
उपाधिअबू मुहम्मद
चरित्रशियों के ग्यारहवें इमाम
जन्मदिन8 रबी उस सानी 232 हिजरी
इमामत की अवधि6 वर्ष, वर्ष 254 हिजरी से वर्ष 260 हिजरी तक
शहादत8 रबी अव्वल 260 हिजरी
दफ़्न स्थानसामर्रा इराक़ (हरमैन असकरयैन)
जीवन स्थानसामर्रा
उपनामइब्न अल रज़ा, हामित, हादी, रफ़ीक़, ज़की और नक़ी
पिताइमाम अली नक़ी (अ)
माताहदीसा या सलील
जीवन साथीनरजिस
संतानइमाम महदी (अ)
आयु28 वर्ष
शियों के इमाम
अमीरुल मोमिनीन (उपनाम) . इमाम हसन मुज्तबा . इमाम हुसैन (अ) . इमाम सज्जाद . इमाम बाक़िर . इमाम सादिक़ . इमाम काज़िम . इमाम रज़ा . इमाम जवाद . इमाम हादी . इमाम हसन अस्करी . इमाम महदी


हसन बिन अली बिन मुहम्मद (अ) (अरबी: الإمام الحسن العسكري عليه السلام) को इमाम हसन असकरी (अ) (232-260 हिजरी) के नाम से जाना जाता है, इमामिया शियों के ग्यारहवें इमाम हैं जिन्होंने छह साल तक इमामत का पद संभाला। वह इमाम अली नक़ी (अ) के बेटे और इमाम महदी (अ) के पिता हैं।

उनका सबसे प्रसिद्ध उपनाम असकरी है, जो समर्रा में उनके जबरन ठहरने को संदर्भित करता है। सामर्रा में, वह अब्बासी सरकार की निगरानी में थे और उन पर गतिविधियों के लिए प्रतिबंध लगा हुआ था। इमाम अस्करी (अ) अपने प्रतिनिधियों और पत्रचार के माध्यम से अपने शियों के साथ संवाद किया करते थे। इमाम ज़माना (अ) के पहले विशेष डिप्टी उस्मान बिन सईद को उनके भी विशेष प्रतिनिधियों में से एक माना जाता था।

इमाम हसन अस्करी (अ.स.) 28 साल की उम्र में रबी-उल-अव्वल की 8 तारीख़ 260 हिजरी को सामरा में शहीद हुए और उन्हें उनके पिता की क़ब्र के बग़ल में दफ़्न किया गया। उन दोनों के दफ़्न स्थान को रौज़ा असकरीयैन के रूप में जाना जाता है और इसे इराक़ में शिया तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है।

इमाम अस्करी (अ) की हदीसों को क़ुरआन की व्याख्या, नैतिकता, न्यायशास्त्र, धार्मिक मामलों, प्रार्थनाओं और तीर्थयात्रा के विषयों में वर्णित किया गया है।

जीवनी

  • वंश: इमाम हसन अस्करी (अ) का वंश आठ इमामों के माध्यम से शियों के पहले इमाम अली बिन अबी तालिब (अ) से मिलता है। [१] उनके पिता, इमाम अली नक़ी (अ), इमामिया शिया के दसवें इमाम हैं। शिया स्रोतों के अनुसार, उनकी मां एक कनीज़ थीं और उनका नाम हुदैस या "हदीसा" था। [२] कुछ स्रोतों में, उनका नाम "सौसन", [३] "अस्फ़ान" [४] और सलील [५] भी दर्ज हुआ है। इमाम अस्करी (अ) के जाफ़र नाम के एक भाई थे, जिन्हे जाफ़र कज़्ज़ाब के नाम से जाना जाता है। इमाम अस्करी (अ) की शहादत के बाद, उन्होंने इमामत का दावा किया और उनके लिए किसी बच्चे के जन्म का इनकार करके, उन्होंने इमाम की विरासत के लिये अपने एकमात्र उत्तराधिकारी के रूप में दावा किया। [६] सय्यद मुहम्मद और हुसैन उनके अन्य भाई थे। [७]
मुख्य लेख: इमाम हसन अस्करी (अ) के उपनामों और उपाधियों की सूची
  • उपनाम (लक़ब): उनके उपाधियों में हादी, नक़ी, ज़की, रफीक़ और सामित का उल्लेख किया गया है। कुछ इतिहासकारों ने "ख़ालिस" की उपाधि का भी उल्लेख किया है। [८] इब्न अल-रज़ा भी एक उपाधि है जिससे इमाम मुहम्मद तक़ी (अ), इमाम अली नक़ी (अ) और इमाम हसन अस्करी (अ) प्रसिद्ध हुए। [९] "अस्करी" की उपाधि इमाम हादी (अ) और इमाम हसन अस्करी (अ) के बीच सामान्य है, क्योंकि उन दोनों को सामर्रा शहर में जबरन निवास दिया गया था। "अस्कर" सामर्रा के लिए एक ग़ैर मशहूर शीर्षक था। [१०] इसके अलावा, उनके और इमाम हसन मुज्तबा (अ) के बीच "हसन" के सामान्य नाम के कारण, उन्हें "हसन अख़ीर" भी कहा गया है। [११]
  • उपनाम (कुन्नियत): उनकी कुन्नियत "अबू मुहम्मद" थी। [१२] कुछ स्रोतों में, अबू अल-हसन, [१३] अबू अल-हुज्जह, [१४] और अबू अल-क़ायम [१५] का उपयोग भी किया जाता है।
इमाम अस्करी (अ):

ईश्वर की किताब में हमारा अधिकार (हक़) है और हम ईश्वर के रसूल के क़रीबयों में से हैं और ईश्वर ने हमें पाक-पवित्र किया है। कोई और नहीं बल्कि झूठा इस स्थिति (मक़ाम) का दावा करता है।

अल्लामा मजलिसी, बिहार अल अनवार, 1363 शम्सी, खंड 75, पृ 372
  • जन्म: अधिकांश स्रोत उनका जन्म मदीना में मानते हैं [१६], हालांकि, उनके जन्म का उल्लेख सामर्रा में भी किया गया है। [१७] इमामिया के अधिकांश प्राचीन स्रोत रबी अल-सानी 232 हिजरी में उनका जन्म मानते हैं। [१८] इमाम हसन अस्करी (अ) द्वारा उद्धृत एक कथन में भी उसी तिथि का उल्लेख किया गया है। [१९] इमामिया और सुन्नियों के कुछ अन्य स्रोतों ने वर्ष 231 हिजरी में भी उनका जन्म लिखा है। [२०] शेख़ मुफ़ीद ने "मसार अल-शिया" में 10 रबी अल-सानी को इमाम के जन्म की तारीख़ उल्लेख की है। [२१] चंद्र कैलेंडर की 6 वीं शताब्दी में, यह कथन किनारे हो गया और उनका जन्म रबी अल-सानी की 8 तारीख़ को प्रसिद्ध हो गया, [२२] जो इमामिया के बीच एक प्रसिद्ध कथन भी है।
  • शहादत: इमाम अस्करी (अ) 28 साल की उम्र में मोतमिद अब्बासी शासन के दौरान रबी अल-अव्वल 260 चंद्र वर्ष [२३] की 8वीं तारीख़ को शहीद हुए। [२४] रबी अल-सानी व जमादी अल-अव्वल के महीनों में उनकी शहादत के बारे में भी खबरें हैं। [२५] शेख़ मुफ़ीद ने कहा है कि उनकी वफ़ात बीमारी के कारण हुई है। [२६] [नोट 1] लेकिन, आलाम अल-वरा में फ़ज़्ल बिन हसन तबरसी के अनुसार, बहुत से इमामिया विद्वानों का मानना ​​है कि इमाम अस्करी (अ) (साथ ही साथ उनके पिता और दादा और सभी इमाम) ज़हर के परिणामस्वरूप शहीद हुए हैं। [२७] [नोट 2] उनका दस्तावेज़ (सबूत) इमाम सादिक़ (अ) द्वारा सुनाई गई हदीस "वा अल्लाह मा मिन्ना इल्ला मक़तूल शहीद" का वर्णन है। [२८] एक रिवायत के अनुसार, मोअतज़ अब्बासी ने अपने डिप्टी को आदेश दिया कि वह इमाम को कूफ़ा के रास्ते में मार डाले, लेकिन लोगों को पता चल जाने के कारण वह सफल नहीं हुआ। [२९] एक अन्य हदीस के अनुसार, मोहतदी अब्बासी ने भी इमाम को जेल में शहीद करने का फैसला किया। लेकिन उसे सफ़लता नहीं मिली और उसका शासन काल समाप्त हो गया। [३०] इमाम अस्करी (अ) को सामर्रा में अपने घर में दफ़्न किया गया, जहां उनसे पहले इमाम हादी (अ) को भी दफ़नाया गया था। [३१] अब्बासी के विश्वस्त मंत्री अब्दुल्लाह बिन ख़ाक़ान [३२] के अनुसार इमाम अस्करी (अ) की शहादत के बाद, बाज़ार बंद हो गये और बनी हाशिम, बुजुर्ग, राजनीतिक हस्तियां और लोगों ने उनके अंतिम संस्कार में भाग लिया। [३३] ईरान के इस्लामी गणराज्य के आधिकारिक कैलेंडर में इस दिन इमामे ज़माना (अ) की इमामत की शुरुआत के दिन के तौर पर, आधिकारिक अवकाश होता है। [३४]
  • पत्नी: प्रसिद्ध कथन के अनुसार, इमाम अस्करी (अ) ने पत्नी नहीं रखी और उनका वंश केवल एक कनीज़ के माध्यम से जारी रहा, जो इमाम महदी (अ) की माँ है। [३५] इमाम महदी अलैहिस सलाम की माँ का नाम स्रोतों ने कई और अलग-अलग उल्लेख किया गया है। स्रोतों में कहा गया है कि इमाम हसन अस्करी (अ) के पास कई रोमन, सिसिली और तुर्की नौकर और कनीज़ें थीं। [३६] और शायद इमाम ज़माना (अ) की माँ के नाम में यह अंतर, एक ओर उन कनीज़ों की संख्या के कारण और दूसरी ओर, इमाम महदी (अ) के जन्म को गुप्त रखने के कारण हो। [३७]
  • औलाद: अधिकांश शिया स्रोतों के अनुसार, इमाम अस्करी (अ) की एकमात्र संतान इमाम ज़माना (अ) है, जिसका नाम "मुहम्मद" है। [३८] सुन्नी विद्वानों में, जैसे कि इब्न असीर, शबलंजी और इब्न सब्बाग़ मालिकी ने भी इमाम अस्करी के पुत्र के रूप में मुहम्मद के नाम का उल्लेख किया है। [३९]

इमाम (अ) के बच्चों के बारे में अन्य कथन भी हैं, और उनके तीन बेटे और तीन बेटियां बताये गये है। [४०] ख़सीबी ने इमाम महदी (अ) के अलावा फ़ातेमा और दलाला नाम की दो बेटियों का उल्लेख किया है। [४१] और इब्ने अबी अल-सल्ज ने इमाम महदी के अलावा ने एक बेटे का नाम मूसा और दो बेटियों का नाम फातिमा और आयशा (या उम्मे मूसा) सूचीबद्ध किया है है। [४२] लेकिन कुछ वंशावली पुस्तकों में जिन नामों का उल्लेख किया गया है, वे इमाम हसन अस्करी (अ) के भाई और बहन हैं [४३] और उनकी औलाद के नाम से भ्रमित हो गये हैं। दूसरी ओर, कुछ सुन्नी स्रोतों ने इमाम अस्करी के सिलसिले में किसी बच्चे के अस्तित्व से इनकार किया है [४४], जो शायद बारहवें इमाम के जन्म की गोपनीयता और उनके जन्म के बारे में ज्ञान की कमी के कारण है। [४५]

  • सामर्रा में स्थानांतरण: इमाम हसन अस्करी (अ) के बचपन के दौरान, उनके पिता इमाम हादी (अ) को जबरन इराक़ बुलाया गया था और उस समय अब्बासियों की राजधानी सामर्रा में उन्हे निगरानी में रखा गया था। इस यात्रा में इमाम अस्करी (अ) भी अपने पिता के साथ थे। मसऊदी ने कहा है कि इस यात्रा का समय 236 हिजरी [४६] था और नौबख्ती ने कहा कि यह 233 हिजरी [४७] थी। इमाम हसन अस्करी ने अपना अधिकांश जीवन सामर्रा में बिताया और यह ज्ञात है कि वह एकमात्र ऐसे इमाम हैं जो हज पर नहीं गए थे, लेकिन उयून अख़बार अल-रज़ा और कशफ़ अल-ग़ुम्मा में, एक हदीस है कि कथावाचक (रावी) ने इमाम से मक्का में सुना है। [४८]

इमामत की दलील और अवधि

इमाम अस्करी (अ) की इमामत की अवधि छह साल (254 से 260 हिजरी) थी। इमाम अली नक़ी (अ) की शहादत के बाद हसन बिन अली अस्करी (अ) की इमामत का सबसे महत्वपूर्ण कारण उनके उत्तराधिकार के बारे में इमाम (अ) की वसीयत और हदीसें है। [४९] शेख़ मुफ़ीद ने अल-इरशाद में इसके बारे में दस से अधिक हदीसें और पत्र का उल्लेख किया है। [५०] इमाम नक़ी (अ) के अधिकांश शियों और साथियों ने भी उनकी शहादत के बाद इमाम हसन अस्करी (अ) को इमाम के रूप में स्वीकार किया, [५१] लेकिन कुछ ने इमाम (अ) के दूसरे बेटे जाफ़र बिन अली, जिन्हें जाफ़र कज़्ज़ाब के नाम से जाना जाता है, उन्हें अपना इमाम मान लिया और कुछ ने सय्यद मुहम्मद की इमामत में विश्वास किया जिनका इमाम हादी (अ) के समय में निधन हो गया था। [५२] कुछ लोग जो जाफ़र कज़्ज़ाब की इमामत का समर्थन करते थे, वह इमाम असकरी (अ) की इमामत पर तरह तरह से आपत्ति जताते थे। ये लोग, जिनकी आम तौर पर कोई उचित इल्मी हैसियत भी नही थी, कभी-कभी दावा करते थे कि उन्होंने इमाम के ज्ञान को मापा है और इसे इमामों (अ) के लिए आवश्यक पूर्ण ज्ञान के स्तर पर नहीं पाते। [५३] कभी-कभी उन्होंने इमाम के पत्रों में व्याकरण की ग़लतियाँ पाए जाने का भी दावा किया। [५४] कभी-कभी उन्होंने उन कपड़ों के प्रकार पर आपत्ति जताई जो इमाम (अ) पहने हुए थे। [५५] और कभी-कभी वे इमामत के मामलों में हस्तक्षेप करते थे और इमाम के वकीलों के प्रदर्शन के कारण उनकी आलोचना करते थे। [५६] साथ ही, कभी-कभी वे इमाम और उनके दूत के आदेशों को स्वीकार नहीं करते थे। [५७] यही कारण है कि इमाम अस्करी (अ) ने कहा कि उनके किसी भी पिता दादा से शियों ने उतनी पूछताछ नहीं की है जितनी कि उनसे की है। [५८] इमाम इस तरह के व्यवहार को जारी रखने को उन कारकों में से एक मानते हैं जो ईश्वरीय आशीर्वाद से वंचित कर सकते हैं। [५९] मुदर्रेसी तबातबाई का मानना ​​है कि शायद इस अकृतज्ञता और आशीर्वाद की निन्दा के कारण शिया समुदाय मासूम इमाम की उपस्थिति के आशीर्वाद से वंचित हो गया। [६०]

राजनीतिक परिस्थितियाँ

इमाम अस्करी (अ) की इमामत की अवधि तीन अब्बासी ख़लीफाओं के साथ मेल खाती है: मोअतज़ अब्बासी (252-255 हिजरी), मोहतदी (255-256 हिजरी) और मोतमिद (256-279 हिजरी)।

शायद इमाम हसन अस्करी (अ) के जीवन में दर्ज पहली राजनीतिक स्थिति उस समय से संबंधित है जब इमाम लगभग बीस वर्ष के थे और उनके पिता भी अभी जीवित थे। उन्होने अब्दुल्लाह बिन अब्दुल्लाह बिन ताहिर को लिखे एक पत्र में, जो अब्बासी व्यवस्था के प्रभावशाली अमीरों में से एक थे, जिन्हें उस समय के ख़लीफ़ा मुस्तईन के दुश्मनों में से एक माना जाता था, ख़लीफ़ा को एक विद्रोही व्यक्ति कहा और भगवान से उसे उखाड़ फेंकने की इच्छा वयक्त की। [६१]

मुस्तईन की हत्या के बाद, मोअतज़ सत्ता में आया। उसके शासन की शुरुआत में, इमाम हादी (अ) और इमाम अस्करी (अ) के प्रति कोई शत्रुतापूर्ण व्यवहार नहीं बताया गया था। इमाम नक़ी (अ) की शहादत के बाद, इस बात के प्रमाण हैं कि इमाम अस्करी (अ) की गतिविधियों पर लागू प्रतिबंधों के बावजूद, इमाम ने सापेक्ष स्वतंत्रता का प्राप्त रही। अपनी इमामत की शुरुआत में शियों के साथ उन की कुछ मुलाकातें इस मुद्दे की पुष्टि करती हैं। लेकिन एक साल बीत जाने के बाद ख़लीफा इमाम की तरफ़ से बदगुमान हो गया और उसने उन्हे 255 हिजरी में कैद कर लिया। अगले ख़लीफा (मोहतदी) के एक वर्ष की अवधि के दौरान भी इमाम उसी तरह से जेल में रहे।

256 हिजरी में मोअतमिद की खिलाफ़त की शुरुआत के साथ, जिसे शिया विद्रोह का सामना करना पड़ा, इमाम को जेल से रिहा कर दिया गया और उन्होने खुद को इमामिया के सामाजिक और वित्तीय संगठन के लिए समर्पित कर दिया। इसलिए, सफ़र 260 हिजरी में, मोअतमिद के आदेश से इमाम को कैद कर लिया गया, और ख़लीफ़ा रोज़ाना इमाम के बारे में समाचार प्राप्त किया करता था। [६२] एक महीने बाद, इमाम को जेल से रिहा कर दिया गया था, लेकिन उन्हे वासित शहर के पास मामून के वज़ीर हसन बिन सहल के घर में स्थानांतरित कर दिया गया था। [६३]

इमाम अस्करी (अ) और शियों के लिए राजनीतिक स्थिति को और अधिक कठिन बनाने वाले कारकों में से एक बारहवें इमाम (अ) के आंदोलन की लोकप्रियता थी। शेख़ मुफ़ीद ने इमाम अस्करी (अ) की इमामत की अवधि को एक कठिन समय के रूप में वर्णित किया है। [६४] उनका मानना ​​है कि मुनतज़र इमाम का आना इमामिया धर्म में प्रसिद्ध था, और ख़लीफा, जो जानता था कि शिया उनके आगमन की प्रतीक्षा कर रहे है। वह इमाम अस्करी (अ) के बेटे की तलाश कर रहा था और उसने उन इमाम के बारे में पता लगाने के लिए बहुत प्रयास किए। यही कारण था कि इमाम अस्करी (अ) ने अपने बच्चे के जन्म को छुपाया। [६५] शेख़ तूसी का मानना ​​है कि इमाम अस्करी (अ) इन हालात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपनी वसीयत में अपनी माँ हदीस को अपने मौक़ूफ़ात और सदक़ात (दान) हस्तांतरित किये। [६६]

क़याम और विद्रोह

इमाम हसन अस्करी (अ) के समय में, विरोध आंदोलन किए गए, उनमें से कुछ शियों द्वारा और कुछ अलवियों के नाम का दुरुपयोग करके किए गए।

  • अली बिन ज़ैद और ईसा बिन जाफ़र का कयाम: ये दोनों, जो अलवी थे और इमाम हसन मुज्तबा (अ) के वंशज थे, ने 255 हिजरी में कूफ़ा में विद्रोह किया। मोअतज़ ने सईद बिन सालेह की कमान में एक सेना भेजी और इस विद्रोह को दबा दिया। [६७]
  • अली बिन ज़ैद बिन हुसैन का विद्रोह: वह इमाम हुसैन (अ) के वंशज थे और उन्होंने मोहतदी अब्बासी के समय में कूफा में विद्रोह किया। शाह बिन मिकाल एक सेना के साथ उनसे मुक़ाबले के लिये गया, लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा। जब मोतमिद अब्बासी सत्ता में आया, तो उसने किजुर तुर्की को उनसे मुक़ाबले के लिये भेजा। 257 हिजरी में लंबे समय तक पीछा करने के बाद अली बिन ज़ैद मारे गये। [६८]
  • अहमद बिन मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह का क़याम: वह मोतमिद अब्बासी के समय में मिस्र में बरक़ा और अलेक्जेंड्रिया के बीच उठ खड़ा हुआ और उसने बहुत से अनुयायियों के मिलने के बाद उसने खिलाफ़त का दावा किया। उस देश में ख़लीफ़ा के तुर्की गवर्नर अहमद बिन तुलून ने उसके पास एक सेना भेजी और उसके साथियों को उसके पास से तितर-बितर करके उसे मार डाला। [६९]
  • साहेब ज़ंज का क़याम: साहेब ज़ंज के नाम से जाने जाने वाले अली बिन मुहम्मद के नेतृत्व में ज़गियों ने 255 ईस्वी में अब्बासी ख़लीफा के खिलाफ़ विद्रोह किया। [७०] यह विद्रोह पंद्रह वर्षों तक चला और उन्होने बड़े क्षेत्रों पर क़ब्जा कर लिया। [७१] इमाम हसन अस्करी (अ) साहिब ज़ंज को अहले-बैत (अ) का सदस्य नहीं मानते थे। [७२]

इमाम और शियों के बीच संबंध

शियों पर अब्बासियों की सख़्तियों के कारण शिया समुदाय तक़य्या में रह रहा था। हालांकि, इमाम हसन अस्करी (अ) शियों के मामलों के प्रबंधन और शरई माल एकत्रित करने का ध्यान रखते थे, और विभिन्न देशों में वकीलों को भेजा करते थे। [७३]

इमाम से मुलाकात

ऐतिहासिक रिपोर्टों से ऐसा प्रतीत होता है कि इमाम अस्करी के जीवन के कुछ हिस्सों में इमाम के साथ शियों के सीधे संवाद पर प्रतिबंध लगा हुआ था। [७४]

इमाम अस्करी (अ):

"पूजा बहुत अधिक उपवास और प्रार्थना नहीं है, बल्कि पूजा ईश्वरीय मामलों के बारे में बहुत अधिक विचार करना है।"

इब्ने शोअबा हर्रानी, ​​तोहफ़ुल-उकूल, पेज 488

इसलिए, जब इमाम को दार अल-खिलाफा की ओर लेकर जाया जाता था, [नोट 3] शिया उनसे मिलने के लिये रास्ते में उपस्थित होते थे ता कि उनसे मुलाक़ात कर सकें। [७५] शेख़ तूसी ने एक हदीस का उल्लेख किया है जिस में इमाम के गुज़रते समय रास्ते में लोगों के जमावड़े और इमाम अस्करी (अ) के प्रति उनके सम्मान की ओर इशारा हुआ हैं। [७६] हालांकि, सरकार की निगरानी के कारण, कभी-कभी इमाम (अ) शियों को उनके साथ इस तरह के संबंध रखने से भी मना करते थे। अली बिन जाफ़र हलबी कहते हैं: एक दिन जब इमाम को दार अल-खिलाफा की ओर जाना था, हम उनकी यात्रा की प्रतीक्षा में इकट्ठे हुए। उसी समय आपकी ओर से हमारे पास एक पत्र (लेखन) आया जिस में लिखा था: "कोई मुझे सलाम न करे यहां तक कि मेरी ओर इशारा भी न करे; क्योंकि आप सुरक्षित नहीं हैं।" [७७]

इमाम के प्रतिनिधि

मुख्य लेख: वकालत संस्था

अपने से पहले के इमामों की तरह, इमाम अस्करी (अ) ने भी शियों के साथ संवाद करने के लिए प्रतिनिधियों का इस्तेमाल किया करते थे। इमामिया स्रोतों में, उस्मान बिन सईद को बाब [लोगों के साथ इमाम के प्रतिनिधि और संपर्क] के रूप में जाना जाता है। इमाम अस्करी (अ) की शहादत के बाद, वह मामूली अनुपस्थिति (ग़ैबते सुग़रा) में इमाम ज़माना (अ) के पहले विशेष सहायक (विशेष नायब) थे। [७८] इसी तरह से, अकीद, इमाम के विशेष सेवक, जिन्हें इमाम ने बचपन से पाला था, शियों को पहुचने वाले उनके बहुत से पत्रों के वाहक थे। [७९] उनके नौकर जिनका उपनाम (कुन्नियत) ग़रीब अबू अल अदयान था, ने भी कई पत्रों को पहुचाने की ज़िम्मेदारी निभाई है। [८०]

पत्र लिखना

पत्राचार शियों और इमाम अस्करी (अ) के बीच संचार के साधनों में से एक था। उदाहरण के लिए, हम अली बिन हुसैन बिन बाबवैह [८१] को लिखे उनके पत्रों और क़ुम और आबे (आवे) के लोगों को लिखे गए पत्रों [८२] का उल्लेख कर सकते हैं। किताब कमालुद्दीन में इस बात का जिक्र है कि शहादत से कुछ समय पहले ही उन्होने मदीना के लिये अपने हाथ से कई पत्र लिखे थे। [८३] शियों ने भी उन्हें विभिन्न मुद्दों और विषयों पर पत्र लिखे थे और उनके जवाब प्राप्त किए थे।

अनुपस्थिति के दौर के लिए शियों को तैयार करना

कुछ स्रोत जिन्होंने इमाम अस्करी (अ) के समय की ऐतिहासिक घटनाओं का विश्लेषण किया है, उनका मानना ​​​​है कि उन्होंने शियों को गुप्त युग (ग़ैबत का ज़माना) में प्रवेश करने के लिए तैयार करने के लिए कदम उठाए: इमाम अस्करी (अ) का पर्दे के पीछे से अपने साथियों से बात करना और यह है कि इमाम से संबंधित अधिकांश गतिविधियां उनके वकीलों द्वारा की जाती थीं, इन कार्यों में से एक के रूप में माना जाता है। [८४] मुदर्रेसी तबातबाई का मानना ​​है कि इमाम अस्करी, वैज्ञानिक समस्याओं को हल करने के तरीके सिखाने के लिए, कभी-कभी न्यायशास्त्र संबंधी प्रश्नों के पूर्ण उत्तर नहीं देते थे [८५] और कभी-कभी उन्होंने एक सामान्य नियम दिया ताकि न्यायविद इसकी मदद से जवाब तक पहुंचे सकें। [८६] कभी-कभी इमाम न्यायशास्त्र संबंधी सवालों के जवाब देने के लिए शिया हदीस की किताबों को देखने का सुझाव देते थे। [८७] इस तरह के उपायों से, शिया समुदाय को वर्तमान इमाम को संदर्भित किए बिना अपनी धार्मिक और वैचारिक समस्याओं और मुद्दों को हल करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा था। [८८]

धार्मिक शिक्षाओं की व्याख्या

शिया शिक्षाएँ

उस युग में इमाम की नियुक्ति से संबंधित जटिलताओं और अस्पष्टताओं को ध्यान में रखते हुए, इमाम हसन अस्करी (अ) के शब्दों और पत्रों में, हमें यह शिक्षा मिलती है कि पृथ्वी अल्लाह की हुज्जत के बिना नहीं रहती है [८९] और यह कि यदि इमामत को रुकावट (अंत) का सामना करना पड़ता है और इसका संबंध विकृत हो जाता है भगवान के मामले बाधित हो जाएंगे। [९०] और पृथ्वी पर भगवान की हुज्जत एक आशीर्वाद है जो भगवान ने विश्वासियों (ईमान वालों) को दिया है और उन्हें इस मार्गदर्शन से सम्मानित किया है। [९१]

इमाम अस्करी (अ):

मोमिन के लक्षण (निशानियाँ) पांच चीजें हैं:

  • 51 रकअत नमाज़ पढ़ना, (17 रकअत (वाजिब नमाज़े) और 34 रकअत मुस्तहब प्रतिदिन की नाफ़ेला नमाज़े)।
  • अरबाईन की ज़ियारत पढ़ना।
  • दाहिने हाथ में अंगूठी पहनना।
  • सज्दे में माथा ज़मीन पर रखना।
  • ज़ोर (बुलन्द आवाज़) से "बिस्मिल्लाहिर रहमान अल रहीम" कहना।
तूसी, तहज़ीब अल अहकाम, 1407 हिजरी, खंड 6, पृ 52

एक और शिक्षा जो उस युग में शियों पर दबाव के कारण परम पावन इमाम के शब्दों में बार-बार देखी जाती है, वह है धैर्य की दावत और राहत में विश्वास और उसके लिए प्रतीक्षा करना है। [९२] और इसी तरह से इमाम की हदीसों में शिया समाज के अंदरूनी संबंधों को व्यस्थित करने और धार्मिक भाइयों के साथ मेलजोल करने पर विशेष ज़ोर के रूप में देखा जाता है। [९३]

क़ुरआन की तफ़सीर

मुख्य लेख: इमाम हसन अस्करी (अ) की तफ़सीर

क़ुरआन की तफ़सीर उन क्षेत्रों में से एक है जिन पर इमाम हसन अस्करी (अ) ने विशेष ध्यान दिया। क़ुरआन की तफ़सीर या क़ुरआन की व्याख्या की किताब, जिसका शुमार इमामिया तफ़सीर की सबसे पुरानी तफ़सीरी मीरास व कृतियों में से होता है, का श्रेय उन्हीं को दिया जाता है।

कलाम और अक़ायद

इमाम हसन अस्करी (अ) एक ऐसी स्थिति में इमामत के पद पर पहुंचे जहां इमामिया के बीच ऐतेेक़ादी मतभेद पैदा हो चुके थे, और उनकी इमामत की इसी अवधि के दौरान भी कुछ मतभेद भी पैदा हुए थे। उदाहरण के लिए, इन मुद्दों में से एक "ईश्वर के शरीर को नकारने" की चर्चा थी, जिस पर वर्षों से चर्चा हुई थी। इमाम हसन अस्करी (अ) के समय में यह मतभेद इस हद तक बढ़ गया कि सहल बिन ज़ियाद आदमी ने इमाम को एक पत्र लिखा और उनसे इस मामले में मार्गदर्शन मांगा। जवाब में, इमाम ने ईश्वर की ज़ात के मुद्दों पर विचार करने से परहेज़ करने का कहा और फिर क़ुरआन की आयतों का जिक्र करते हुए कहा:

ईश्वर एक और अद्वितीय है; न कोई उसका पुत्र है और न कोई उसका पिता, न ही वह किसी के समान है। वह रचयिता है, रचित नहीं। वह शरीर और अन्य चीजों से जो कुछ भी चाहता है बनाता है, और यह स्वयं शरीर नहीं है ... उसके जैसा कुछ भी नहीं है, और वह सुनने और देखने वाला है। [९४]

न्यायशास्त्र

हदीस विज्ञान में, इमाम हसन अस्करी (अ) के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले शीर्षकों में से एक "न्यायवादी" (फ़क़ीह) का शीर्षक है। [९५] इससे पता चलता है कि इमाम विशेष रूप से अपने साथियों द्वारा इस तरह से जाने जाते थे। उनकी कुछ हदीसें न्यायशास्त्र और उसके विभिन्न अध्यायों के क्षेत्र से संबंधित हैं। चूँकि इमामिया न्यायशास्त्र का संकलन पहले इमाम सादिक़ (अ) द्वारा किया गया था और फिर इमाम काज़िम (अ) और इमाम रज़ा (अ) के समय में पूर्णता के चरणों से गुज़रा, इमाम हसन अस्करी (अ) ने अधिकांश उन फ़रई मसायल पर बहस की जो उनके समय में जन्म ले रहे थे, या जो किसी भी कारण से उनके युग के दौरान चुनौतीपूर्ण था, जैसे कि रमज़ान की शुरुआत का मुद्दा और ख़ुम्स की चर्चा। [९६]

रौज़ा या हरम

मुख्य लेख: रौज़ा असकरीयैन

इमाम अस्करी (अ) को उनकी शहादत के बाद, उनके पिता इमाम अली नक़ी (अ) के बग़ल में दफ़्न किया गया। [९७] बाद में, इस स्थान पर एक रौज़ा बनाया गया, जिसे रौज़ा असकरीयैन के नाम से जाना जाता है।

मुख्य लेख: रौज़ा असकरीयैन पर हमला

1384 [९८] और 1386 शम्सी में तकफ़ीरी आतंकवादियों द्वारा इमामैन असकरीयैन ​​की दरगाह को नष्ट कर दिया गया था, [९९] रौज़ा असकरीयैन पर हमला इन घटनाओं को संदर्भित करता है। इस रौज़ा का पुनर्निर्माण 2009 [१००] में शुरू हुआ और 2014 ईसवी में समाप्त हुआ। [१०१]

इमाम के बारे में किताबें

11वें इमाम के बारे में विभिन्न भाषाओं जैसे फारसी, अरबी, अंग्रेजी, उर्दू और स्पेनिश में कई किताबें लिखी और प्रकाशित की गई हैं। [१०२] कुछ साइटों में, 250 से अधिक किताबें, लेख और शोध प्रबंध (थीसेज़) सूचीबद्ध और संकलित किए गए हैं। [१०३] कुछ इन पुस्तकों में शामिल हैं:

  • मौसूआ अल इमाम अल-अस्करी (अ), मोअस्सेसा तहक़ीक़ाती इमाम अस्र (अ) के वैज्ञानिक समूह द्वारा। कहा गया है कि छह खंडों वाले इस विश्वकोश में इमाम हसन अस्करी (अ) से संबंधित सभी सामग्री एकत्रित की गई है और इस पुस्तक में इमाम के सभी शब्द और इमाम के व्यक्तित्व के बारे में दूसरों से सुनी गई बातें शामिल हैं। [१०४] इस किताब को 11वें इमाम के बारे में सबसे व्यापक किताब माना जाता है। [१०५]
  • मआसिर अल कुबरा फ़ी तारीख़े सामर्रा, लेखक ज़बीहुल्लाह महलती।
  • मौसूआ कलेमातिल इमाम अल-हसन अल-अस्करी (अ), पजोहिश कदा बाकिर अल-उलूम (अ) के लेखकों के एक समूह का काम है, जिसने इमाम के शब्दों को चार अध्यायों में अक़ायद, अहकाम, नैतिकता (अख़लाक़), प्रार्थना (दुआ), और तीर्थयात्रा (ज़ियारत) के संदर्भ में एकत्रित किया है। इस पुस्तक का फारसी में जवाद मोहद्देसी द्वारा अनुवाद किया गया है जिसका शीर्षक फंरहंगे जामेअ सुख़नाने इमाम हसन अस्करी (अ) है। [१०६]
  • शुकूहे सामर्रा, लेखकों के एक समूह द्वारा लिखे गए इमाम हादी (अ) और इमाम अस्करी (अ) के बारे में लेखों का एक संग्रह है। यह 2013 ई में इमाम सादिक़ (अ) विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित किया गया था। [१०७]

शब्दों के अंश

  • चेहरे की सुंदरता स्पष्ट और ज़ाहिरी सुंदरता है, और सुंदर विचार छिपी हुई और आंतरिक सुंदरता है। [१०८] [नोट 4]
  • जिसकी धर्मपरायणता (पवित्रता) उसके स्वभाव का अंग हो, उदारता उसके तबीयत का अंग हो, सहनशीलता उसकी मित्र हो, उसके मित्र भी और उसकी प्रशंसा व तारीफ़ भी ज़्यादा होगी और इन तारीफ़ों से अपने शत्रुओं से बदला लेगा। [१०९]
  • क्रोध सभी बुराईयों और कुरूपताओं की कुंजी है। [११०] [नोट 5]
  • ख़ुदा की नज़र में सबसे अच्छा इंसान वह है जो अपने भाइयों के हक़ से ज़्यादा वाक़िफ़ हो और उन हक़ों को पूरा करने में ज़्यादा प्रयत्न करता हो और जो दुनिया में अपने भाइयों के लिए विनम्र हो, वह ख़ुदा के नज़दीक सिद्दीक़ीन और इमाम अली बिन अबी तालिब (अ) के सच्चे शियों में से होगा। [१११]
  • दो मुंह और दो ज़बान वाला आदमी बुरा बंदा है, वह अपने भाई के सामने उसकी प्रशंसा करता है और उसके पीछे उसका मांस खाता है (ग़ीबत करके), [नोट 6] अगर उसे आशीर्वाद (कोई नेमत) दिया जाता है, तो वह ईर्ष्या (हसद) करता है, और अगर वह पकड़ा जाता है, तो वह उससे धोखा करता है। [११२] [नोट 7]

संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. समआनी, अल-अंसाब, 1382 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 300।
  2. कुलैनी, अल-काफी, 1407 हिरी, खंड 1, पृष्ठ 503; शेख़ मोफिद, अल-इरशाद, 1414 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 313
  3. इब्न तलहा, मतालिब अल-सऊल, 1371 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 78; सिब्ते इब्ने जौज़ी, तज़किरा अल-ख़वास, 1383 हिजरी, पृष्ठ 362
  4. नौबख्ती, फ़ेरक़ अल-शिया, 1355 हिजरी, पृष्ठ 96।
  5. हुसैन बिन अब्द अल-वहाब, उयून अल-मोजेज़ात, 1369 हिजरी, पृष्ठ 123।
  6. तबसी, हयात अल-इमाम अल-अस्करी, 1382 हिजरी, पेज 320-324।
  7. मोफिद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, भाग 2, पेज 311-312।
  8. इब्न रुस्तम अल-तबरी, दलाई अल-इमामह, 1413 हिजरी, पृष्ठ 425।
  9. इब्न शहर आशोब, मनाकिब अल अबी तालिब, 1376 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 523।
  10. इब्न ख़लक़ान, वफ़यात अल-आयान, 1971-1972 ई., खंड 2, पृ.95।
  11. इब्ने शहराशोब, मनाकिब आले अबी तालिब, 1376 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 526।
  12. इब्न रुस्तम तबरी, दलाई अल-इममह, 1413 हिजरी, पृष्ठ 424।
  13. इब्न रोस्तम अल-तबरी, दलाई अल-इमामह, 1413 हिजरी, पृष्ठ 424
  14. खज़ अली, मौसूआ इमाम अल-अस्करी (अ.स.), 1426 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 32।
  15. खज़ अली, मौसूआ इमाम अल-अस्करी (अ.स.), 1426 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 32।
  16. शेख मुफीद, अल-इरशाद, 1414 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 313; शेख़ तूसी, तहज़ीब अल-अहकाम, 1407 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 92।
  17. इब्न हातिम, अल-दुर अल-नज़ीम, अल-नशर अल-इस्लामी संस्थान, पृष्ठ 737।
  18. देखें नौबख्ती, फ़ेरक़ अल-शिया, 1355 हिजरी, पृष्ठ 95; कुलैनी, अल-काफी, 1407 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 503; शेख़ मोफिद, अल-इरशाद, 1414 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 313
  19. इब्न रुस्तम तबरी, दलाई अल-इमामह, 1413 हिजरी, पृष्ठ 423।
  20. देखें इब्न अबी अल-सलज, "तारीख अल-आइम्मा", मजमूआ नफीसा, 1396 हिजरी, पृष्ठ 14; मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1409 हिजरी, पृष्ठ 258।
  21. शेख मुफीद, मसार अल-शिया, 1414 हिजरी, पृष्ठ 52; देखें: इब्न ताऊस, अल-इक़बाल, खंड 3, पृष्ठ 149; शेख़ तुसी, मिस्बाह अल-मुतहज्जिद, 1339 हिजरी, पृष्ठ 792।
  22. देखें इब्न शहर आशोब, मनाकिब आले अबी तालिब, 1376 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 523; तबरसी, ताज अल-मवालिद, 1396 हिजरी, पृष्ठ 57।
  23. कुलैनी, अल-काफी, 1407 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 503; शेख़ मुफीद, अल-इरशाद, 1414 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 314।
  24. तबरसी, आलाम अल वरा, 1417 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 131।
  25. देखें: मुक़द्देसी, बाद पिजोही तारीख़े विलादत व शहादत मासूमीन, 1391, पेज 530-533।
  26. शेख मुफीद, अल-इरशाद, 1414 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 336।
  27. तबरसी, आलाम अल वरा, 1417 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 131।
  28. तबरसी, आलाम अलवरा, 1417 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 132।
  29. शेख तूसी, अल-ग़ैबह, 1398 हिजरी, पृ.208; अत्तारदी, मुसनद अल-इमाम अल-अस्करी (अ.स.), 1413 हिजरी, पृष्ठ 92।
  30. मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1409 हिजरी, पृष्ठ 268; कुलैनी, काफ़ी, 1391 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 329।
  31. शेख़ मोफिद, अल-इरशाद, 1414 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 313।
  32. अमीन, आयान अल-शिया, 1403 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 103।
  33. नौबख्ती, फ़ेरक़ अल-शिया, 1355 हिजरी, पृष्ठ 96; कुलैनी, अल-काफी, 1391 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 505, द्वारा उद्धृत: पाक्तची, "हसन अस्करी (अ.स.), इमाम", पृष्ठ 619।
  34. https://www.magiran.com/article/3352636
  35. पाक्तची, "हसन अस्करी, इमाम", पृष्ठ 618
  36. मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1409 हिजरी, पी. 266, द्वारा उद्धृत: पाक्तची, "हसन अस्करी (अ. स.), इमाम", पेज 618।
  37. मोहम्मदी रय शहरी, दानिश नामा इमाम महदी, 2013, खंड 2, पृष्ठ 194।
  38. इब्न शहर आशोब, मनाकिब आले अबी तालिब, 1376 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 523; तबरसी, नफीसा संग्रह में "ताज अल-मवालिद", 1396 हिजरी, पी.59।
  39. इब्न असीर, अल-कामिल फ़ी अल-तारीख़, खंड 7, पृष्ठ 274; इब्न सब्बाग़, अल-फुसूल अल-मुहिम्मह, पृष्ठ 278; शबलनजी, नूर अल-अबसार, पृष्ठ 183, द्वारा उद्धृत: पाक्तची, "हसन अस्करी (अ. स.), इमाम", पृष्ठ 618।
  40. ज़रंदी, मआरिज अल-वुसूल इला मारेफ़ते फज़ल अल-रसूल (स), पृष्ठ 176, पाक्तची द्वारा उद्धृत, "हसन अस्करी (अ), इमाम", पृष्ठ 618-619।
  41. ख़सीबी, अल-हिदाया अल-कुबरा, 1419 हिजरी, पृष्ठ 328।
  42. इब्न अबी अल-सलज, "तारीख़ अल आइम्मा", मजमूआ नफीसा, 1396 हिजरी, पेज 21-22।
  43. उदाहरण के लिए, देखें: फ़ख़रुद्दीन राज़ी, अल-शजरा अल-मुबारका, पृष्ठ 78, पाक्तची द्वारा उद्धृत, "हसन अस्करी (अ.स.), इमाम", पृष्ठ 619।
  44. देखें इब्न हज़्म, जमहरतुल अंसाब अल-अरब, 1982, पृष्ठ 61; ज़हबी, "सेयर आलाम अल नोबला", खंड 13, पृष्ठ 122, द्वारा उद्धृत: पाक्तची, "हसन अस्करी (अ. स.), इमाम", पृष्ठ 6।
  45. सालिमियान, दर्स नामा महदावित, 2009, पृष्ठ 184।
  46. मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1409 हिजरी, पृष्ठ 259।
  47. नौबख्ती, फ़ेरक़ अल-शिया, 1355 हिजरी, पृष्ठ 92।
  48. शेख़ सदूक़, अखबार अल-रजा (अ), 1378 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ.135; एरबली, कशफ़ अल-ग़ुम्मा, 1405 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 198।
  49. शेख़ तूसी, अल-ग़ैबह, 1398 हिजरी, पेज 122-120; एरबली, कशफ़ अल-ग़ुम्मा, 1381 हिजरी, खंड 2, पेज 404-407।
  50. मोफिद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पेज 314-320।
  51. जाफेरियान, हयाते फ़िकरी व सियासी इमामाने शिया, 2001, पृष्ठ 537।
  52. अशअरी, मक़लात वा अल-फ़ेरक़, 1360, 101।
  53. शहरिस्तानी, अल-मेलल वल-नहल, 1364, खंड 1, पृष्ठ 200।
  54. मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 2004, पृष्ठ 252।
  55. शेख़ तूसी, अल-ग़ैबह, 1411 हिजरी, पेज 246-247।
  56. शेख़ तूसी, अल-ग़ैबह, 1411 हिजरी, पृष्ठ 218।
  57. अनुरोध: शेख़ तूसी, अख्तेयार मारिफ़ अल-रिजाल, 1409 हिजरी, पृष्ठ 541।
  58. शेख़ सदूक़, कमाल अल-दीन, 1395 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 222।
  59. अनुरोध: शेख़ तुसी, अख्तेयार मारिफ़त अल-रिजाल, 1409 हिजरी, पृष्ठ 541।
  60. मुद्रासी तबताबाई, मकतब दर फ़रायंदे तकामुल, 1374, पृ.93।
  61. इब्न असीर, अल-कामिल फ़ी अल-तारीख़, खंड 7, पृष्ठ 151।
  62. मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1409 हिजरी, पृष्ठ 268।
  63. मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1409 हिजरी, पृष्ठ 269।
  64. मोफिद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 336।
  65. मोफिद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 336।
  66. तूसी, अल-ग़ैबह, 1411 हिजरी, पृष्ठ 108।
  67. मसऊदी, मुरुज अल-ज़हब, 1363 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 94
  68. इब्न असीर, अल-कामिल फ़ी अल-तारीख़, खंड 7, पेज 239-240.
  69. मसऊदी, मुरुज अल-ज़हब, 1363 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 108।
  70. अबू अल-फिदा, अल-मुख्तसर फ़ी अखबार अल-बशर, मिस्र, खंड 2, पृष्ठ 46।
  71. इब्न अल-अमरानी, ​​अल-इनबा फ़ी तारीख अल-खलीफ़ा, 2001, खंड 1, पृष्ठ 138।
  72. इब्न शाहराशोब, मनाकिब आले अबी तालिब, 1376 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 529
  73. मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1409 हिजरी, पृष्ठ 270; कश्शी, रिजाल कश्शी, 1348, पृष्ठ 560
  74. पाक्तची, "हसन अस्करी (अ), इमाम", पृष्ठ 626।
  75. एरबली, कश्फ़ अल-ग़ुम्मा, 1421 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 930।
  76. तूसी, अल-ग़ैबह, 1411 हिजरी, पेज 215-216।
  77. रावंदी, अल-ख़रायज वल-जरायेह, खंड 1, पृष्ठ 439।
  78. पाक्तची, "हसन अस्करी (अ), इमाम", पृष्ठ 626।
  79. शेख़ तूसी, अल-ग़ैबह, 1411 हिजरी, पृष्ठ 272, द्वारा उद्धृत: पाक्तची, "हसन अस्करी (अ. स.), इमाम", पृष्ठ 626।
  80. शेख़ सदूक़, कमाल अल-दीन, 1390 हिजरी, पृष्ठ 475
  81. इब्न शाहराशोब, मनाकिब आले अबी तालिब, 1376 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 527; ख़ुनसारी, रौाज़त अल-जेनान, 1390 हिजरी, खंड 4, पेज 273-274
  82. इब्न शाहराशोब, मनाकिब आले अबी तालिब, 1376 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 526
  83. सदूक़, कमालुद्दीन, 1390 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 474।
  84. पूर सय्यद आग़ाई और अन्य, तारीख़े अस्रे ग़ैबत, 1379, पेज 169-168।
  85. देखें: कुलैनी, अल-काफी, 1407 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 35।
  86. उदाहरण के लिए, देखें: कुलैनी, अल-काफी, 1407 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 45।
  87. मुद्रसी तबताबाई, मकतब दर फ़रायंद तकामुल, 1374, पृष्ठ 99।
  88. मुद्रसी तबताबाई, मकतब दर फ़रायंद तकामुल, 1374, पेज 100-98।
  89. उदाहरण के लिए: मसऊदी, इसबातुल वसीयत, 1409 हिजरी, पृष्ठ 271
  90. उदाहरण के लिए: शेख़ सदूक़, कमालुद्दीन, 1390 हिजरी, पृष्ठ 222
  91. उदाहरण के लिए: कश्शी, रेजाल कश्शी, 1348, पृष्ठ 541
  92. उदाहरण के लिए: इब्न शहराशोब, मनाकिब अल अबी तालिब, 1376 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 527
  93. इब्न शहराशोब, मनाकिब अल अबी तालिब, 1376 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 526
  94. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 103
  95. उदाहरण के लिए: तुरैही, जामे अल-मक़ाल, 1355, पृष्ठ 185
  96. पाक्तची, "हसन अस्करी (अ), इमाम", पृष्ठ 630
  97. शेख मोफिद, अल-इरशाद, 1414 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 313।
  98. ख़ामेयार, तख़रीबे ज़ियारत गाहाए इस्लामी दर किशवर हाय अरबी, पेज 29 और 30
  99. ख़ामेयार, तख़रीबे ज़ियारत गाहाए इस्लामी दर किशवर हाय अरबी, पेज 30
  100. अबना समाचार एजेंसी: आख़रीन वज़ईयते साख़्ते ज़रीहे हरमैन असकरीयैन ​​(अ)।
  101. ख़बर गुज़ारी ऐलना, अमलियाते बाज़साज़ी गुंबंद पायान याफ़्त
  102. उदाहरण के लिए, देखें " किताब शेनासी इमाम हसन अस्करी (अ)" देखें, पायगाहे इत्तेला रसानी हदीसे शिया; "किताब शेनासी इमाम हसन अस्करी (अ), दफ़तरे तबलीग़ाते इस्लामी की वेबसाइट; "किताब शेनासी इमाम हसन अस्करी (अ.स.)", बुनियादे फंरहंगी इमामत की वेबसाइट।।
  103. देखें, किताब शेनासी इमाम हसन असकरी (अ), वेब साइत दफ़तरे तबलीग़ाते इस्लामी
  104. सालेही, शेनाख़्त व जायगाह मौसूआ इमाम असकरी (अ) पेज 99, 100।
  105. फ़ातेमी, नक़दे मौसूआ इमाम असकरी (अ), पेज 84
  106. "फंरहंगे जामे सुख़नाने इमाम हसन असकरी (अ)", पृष्ठ 84।
  107. शिकोहे सामर्रा: मजमूआ मक़ालात दर बारए इमाम हादी और इमाम असकरी (अ) पातूके किताब फ़रदा।
  108. अल्लामा मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 17, पृष्ठ 95।
  109. शहीदे अव्वल, अल-दुर्र अल-बाहेरा मिन अल-असदाफ अल-ताहिरा, 1379, खंड 2, पृष्ठ 47।
  110. हर्रानी, ​​इब्न शोबा, तोहफ़ अल-उक़ूल, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 488।
  111. अल्लामा मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 75, पृष्ठ 117।
  112. अल्लामा मजलेसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 78, पृष्ठ 373।

स्रोत

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