रज्अत
रज्अत (अरबीः الرجعة) का अर्थ है पुनरुत्थान (क़यामत) के दिन से पहले मृतकों के एक समूह का जीवित होना। प्रत्यावर्तन (रज्अत) इमामिया की विशिष्ट मान्यताओं में से एक है, और इसे साबित करने के लिए उन्होंने क़ुरआन और हदीसों का हवाला दिया है। उन्होंने इसे शिया संप्रदाय की अनिवार्यताओं में से एक माना और इसकी हक़्कानीयत (सच्चे होने) पर सर्वसम्मति (इज्माअ) का दावा किया है। अधिकांश इमामिया विद्वान रज्अत को हज़रत महदी (अ) के ज़हूर और आंदोलन का ही समय मानते हैं।
हालाँकि इमामिया ने मुतवातिर हदीसों का हवाला देकर रज्अत को स्वीकार किया है, लेकिन विवरण और इसके होने पर उनकी अलग-अलग राय है।
कुछ लोगों का मानना है कि जीवित होने वाले लोग उन्हीं शरीरों के साथ लौटेंगे जैसे वे इस दुनिया में थे। कुछ ने यह भी कहा है कि वे एक अनुकरणीय शरीर (मिसाली बदन) के साथ लौटेंगे। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि रज्अत पर सब सहमत है, लेकिन उसके विवरण का ज्ञान भगवान और उसके औलिया के पास है।
कुछ रिवायतों के अनुसार जीवित हो कर लौटने वाले पहले शख़्स इमाम हुसैन (अ) होगें। इसके अलावा, कुछ हदीसो के अनुसार, पैग़म्बर (स), इमाम अली (अ) और बाक़ी दूसरे इमाम (अ), विश्वासी और शहीद, असहाब कहफ़, यूशअ, मोमिने आले फिरौन और कुछ महिलाएं जैसे उम्मे अयमन, हबाबा वाल्बिया, सुमय्या और सयाना माशेता रज्अत करने वालो में से हैं। अहले-बैत (अ) के दुश्मन, नबियों के दुश्मन और मुनाफ़िक़ उन लोगों में से हैं जो कुछ रिवायतों के अनुसार रजअत करेंगे और उनसे प्रतिशोध लिया जाएगा।
रज्अत के बारे में पुस्तके लिखी गई हैं। इन कार्यों में हुर्रे आमोली द्वारा लिखित पुस्तक अल-ईक़ाज़ मिनल-हुज्अतिल बुरहाने अलर रज्अते और मुहम्मद रज़ा तब्सी नजफी द्वारा लिखित पुस्तक अल-शिया वल रज्आ शामिल हैं।
परिभाषा और स्थान
रज्अत का अर्थ है मृत्यु के बाद और पुनरुत्थान के दिन से पहले लोगों के एक समूह का जीवित होना।[१] शेख मुफीद का कहना है कि शियो के अनुसार हज़रत महदी (अ) की शहादत और धरती पर उनके शासन के बाद बिना किसी विरोध या संघर्ष के इमाम अली (अ) और अन्य शिया इमामों (अ) की दुनिया में वापसी मे विश्वास है।[२] शब्दकोष मे रज्अत का अर्थ वापसी[३] है और हदीसो मे इसका उपयोग "अल-कर्रा" (वापसी) के रूप में भी किया गया है।[४]
रज्अत ऐतेक़ादी मुद्दो में से एक है जो एक ओर इमामत और महदवियत (महदीवाद) से संबंधित है और दूसरी ओर पुनरुत्थान, इनाम और प्रतिफल (सवाब और अज़ाब) में विश्वास की नींव है, इसलिए इल्मे कलाम (इल्मे कलाम) में इसके बारे में चर्चा की गई है। इसमें विश्वास का प्रमाण, वैधता और सच्चाई।[५] साथ ही यह मुद्दा शियो और सुन्नी के बीच विवादित मुद्दों में से एक है।[६]
रज्अत में विश्वास के रूपों को यहूदी और ईसाई धर्म के लिए भी जिम्मेदार ठहराया गया है: उदाहरण के लिए, तौरात में बनी इस्राईल का जीवित होना और दाऊद पैग़म्बर का शासनकाल तथा आख़ेरुज़ ज़मान मे बहुत से मृतकों के जागरण का उल्लेख है। इंजील मे दूसरे पुनरुत्थान से पहले, पहले पुनरुत्थान में हजरत ईसा (अ) के अनुयायियों की वापसी और उनके शासनकाल के बारे में भी उल्लेख किया है।[७]
रज्अत में विश्वास शियो की पहचान
शेख हुर्रे आमोली के अनुसार, रज्अत में विश्वास करना शिया होने की विशेषताओं और संकेतों में से एक है।[८] शेख सदूक़ ने किताब अल-ऐतेक़ादात में कहा है कि शियो की मान्यता है कि रज्अत सत्य है[९] शेख मुफ़ीद[१०] सय्यद मुर्तज़ा[११] जैसे विद्वानों ने रज्अत में विश्वास के सही होने पर इज्माअ का दावा किया है।
कुछ ने इसे मुस्लिम मान्यताओं और शिया संप्रदाय की अनिवार्यताओं में से एक माना है, और अन्य ने, हालांकि इसे अनिवार्यताओं मे से नहीं माना है, लेकिन उन्होंने इसे नकारना भी जायज़ नहीं माना है।[१२] उदाहरण के लिए, अल्लामा मजलिसी ने हक़्क़ुल यक़ीन में कहा है कि रज्अत इज्माईयात बल्कि इसे शिया संप्रदाय के लिए आवश्यक माना जाता है[१३] और इसे नकारना शिया संप्रदाय से निष्काशन के बराबर है।[१४] सय्यद अब्दुल्ला शुब्बर ने भी इसमें विश्वास करना संप्रदाय की अनिवार्यताओं और इसे नकारना शिया संप्रदाय से निष्कासन माना है।[१५] शेख हुर्रे आमोली ने कहा कि अधिकांश इमामी विद्वान रज्अत में विश्वास को ज़रूरियात मे शुमार करते है, और प्रसिद्ध शिया विद्वानों में से किसी ने भी इसका इंकार करने पर कुछ कहा या लिखा हो।[१६] लुतफुल्लाह साफी गुलपाएगानी के अनुसार, शिया एक सामान्य अर्थ में, रज्अत में विश्वास करते है और इसे नकारना क़ुरआन और मुतावतिर हदीसो को खारिज करने का लाज़मा है जिसका वर्णन मुतावतिर स्रोतों में मौजूद हैं।[१७]
हालाकिं, सय्यद मोहसिन अमीन, मुहम्मद जवाद मुग़नीया और मुहम्मद रज़ा मुज़फ़्फ़र जैसे कुछ शिया विद्वान रज्अत में विश्वास को शिया संप्रदाय की अनिवार्यताओ मे से नहीं मानते, और उनकी राय है कि रज्अत शिया इमामो की रिवायतो के माध्यम से साबित होती है। और जो लोग इस रिवायतो की प्रामाणिकता में विश्वास करते हैं उनके लिए इस पर विश्वास करना आवश्यक है।[१८] इमाम खुमैनी का मानना है कि रज्अत आवश्यक है; लेकिन इसकी विशेषताएँ और ढंग आवश्यक नहीं हैं और इसपर कोई दलील भी नहीं है।[१९]
रज्अत से संबंधित मतभेद
शेख़ मुफीद के अनुसार, इमामिया रज्अत में विश्वास करने में एकमत हैं; लेकिन इसके अर्थ और तरीके पर मतभेद है।[२०] सय्यद अब्दुल्लाह शुब्बर ने कहा है कि रज्अत पर विश्वास अनिवार्य है; लेकिन हम इसके विवरण के बारे में नहीं जानते हैं यह कैसे होगी, और उसके विवरण का ज्ञान भगवान और उसके औलिया के पास है।[२१] कुछ विद्वानों और धर्मशास्त्रियों का मानना है कि पुनरुत्थान के समान, भगवान शवों को पुनर्जीवित करेगा।[२२] मुर्तजा मुताहरि ने रज्अत के तरीके के संबंध में फैज़ काशानी के दृष्टिकोण को व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी राय में, रज्अत का मतलब यह नहीं है कि मृत लोग उसी मौलिक शरीर के साथ इस दुनिया में लौटेंगे जैसे कि वे इस दुनिया में थे; बल्कि, एक पतले शरीर में उनकी आत्माओं की वापसी वैसी ही होगी जैसा ओरफ़ा लोग मुकाशफ़े का दावा करते हैं।[२३]
इमाम खुमैनी का मानना है कि रज्अत करने वालो की आत्माएं एक वास्तविक शरीर (सांसारिक शरीर) बनाती हैं और उसी वास्तविक शरीर के साथ दुनिया में पलटेंगी[२४] मुहम्मद अली शाहबादी ने दुनिया में वापसी को एक अनुकरणीय शरीर या शुद्धिकरण माना है।[२५] शिया संशोधक मुहम्मद बाकिर बेहबूदी (1307-1393 शम्सी) का मानना है कि रज्अत हर किसी के लिए स्पष्ट नहीं है और कब्र से उठने पर आधारित इसकी छवि एक लोक धारणा है जो क़ुरआन के तर्क के साथ संगत नहीं है। उनका मानना है कि मनुष्य की वापसी विकास की इस मौजूदा प्रणाली पर आधारित है, कि मनुष्य, यानी मानव भ्रूण, अपने पिता के गर्भ से माताओं के गर्भ में प्रवेश करता हैं और जन्म के बाद अतीत की स्मृति को भूल जाता हैं।[२६]
कुछ विद्वानों ने रज्अत के बारे में जिन रिवायतो का उल्लेख किया गया है, उनकी व्याख्या भी की है और कहा है कि रज्अत का अर्थ शिया इमामों (अ) का उनके शरीर के साथ दुनिया में वापसी नहीं है; बल्कि इरादा यह है कि हज़रत महदी (अ) के ज़ोहूर के समय में, उनकी सरकारें, उनके कानून, आदेश और निषेध वापस आ जायेंगे।[२७] सय्यद मुर्तज़ा ने इस दृष्टिकोण को इमामिया की एक छोटी संख्या के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए खारिज कर दिया है।[२८]
रज्अत का समय
इमामिया के अधिकांश विद्वानों के अनुसार, रज्अत का संबंध हज़रत महदी (अ) के आंदोलन और ज़ोहूर से है, लेकिन इसकी घटना के समय के बारे में मतभेद पाया जाता हैं[२९] अधिकांश विद्वान रज्अत को आंदोलन और ज़ोहूर के समानांतर मानते हैं।[३०]
शेख मुफ़ीद ने अपनी पुस्तक अल-इरशाद में रज्अत को ज़ोहूर की निशानीयो मे से एक निशानी माना है[३१] हालांकि, कुछ विद्वानों ने उन रिवायतो से, जिनमें इमाम अली (अ) की कई रज्अत का उल्लेख किया करते हुए[३२] इस प्रकार समझा कि रज्अत इमाम महदी (अ) के ज़ोहूर के बाद होगी।[३३] एक रिवायत में हज़रत महदी (अ) के ज़ोहूर से पहले इमाम हुसैन (अ) की रज्अत का उल्लेख किया गया है।[३४] एक दूसरी रिवायत मे इमाम हुसैन (अ) की रज्अत का उल्लेख इमाम महदी (अ) की वफ़ात के बाद हुआ है।[३५]
तफ़सीर क़ुमी में, इमाम अली (अ) से एक रिवायत है कि जब पैग़म्बर (स) ने लोगों के साथ रज्अत की घटनाओं के बारे में चर्चा की, तो उन्होंने उनसे इसके समय के बारे में पूछा, और अल्लाह ने सूर ए जिन्न की आयत न 25 में कहा: "قُلْ إِنْ أَدْرِی أَ قَرِیبٌ ما تُوعَدُونَ أَمْ یَجْعَلُ لَهُ رَبِّی أَمَداً؛ क़ुल इन अदरि आ क़रीबुम मा तूअदूना अम यज्अलो लहू रब्बी अमदन, कह दो, मैं नहीं जानता कि जिस चीज़ का तुमसे वादा किया गया है वह निकट है या क्या मेरे रब ने इसके लिए कोई समय निर्धारित किया है?"[३६] कुछ लोग इस कथन का हवाला देते हुए मानते हैं कि रज्अत का समय किसी को नहीं पता और इसका ज्ञान ईश्वर को है।
रज्अत करने वाले लोग
हदीसों में, कई लोगों का उल्लेख किया गया है:[३७]
- शियो के इमाम: इमाम सादिक़ (अ) की हदीस के अनुसार रज्अत करने वाले पहले व्यक्ति इमाम हुसैन (अ) हैं और वह चालीस वर्षों तक पृथ्वी पर शासन करेंगे।[३८] और इसीतरह पैग़म्बर (स), इमाम अली (अ)[३९] तथा अन्य शिया इमामों[४०] की रज्अत के बारे मे वर्णन है।
- इमामों के साथी: कुछ रिवायतो के अनुसार, मासूम इमामों (अ) और उनके शियो के साथियों का एक समूह भी रज्अत करेगा[४१] कुछ रिवायतो में, सलमान, मिक़्दाद, अबू दुजाना अंसारी और मलिक अश्तर भी रज्अत करने वालों में से हैं।[४२] इसी तरह एक रिवायत में इस बात का भी वर्णन हुआ है कि इमाम हुसैन (अ) के साथियों में से 70 लोग इमाम (अ) के साथ रज्अत करेंगे।[४३]
- पैग़म्बरो की जनजातियाँ: कुछ परंपराओं के अनुसार, रज्अत करने वालो में पैग़म्बर हज़रत मूसा की क़ौम, असहाबे कहफ़, यूशाअ और मोमिने आले फिरौन रज्अत करने वालो मे शामिल है।[४४]
- शोहदा और मोमेनीन: कुछ हदीसों में, शहीदों और विश्वासियों को भी रज्अत करने वालो मे शामिल किया हैं।[४५]
- मोमिन महिलाएँ: एक कथन में 13 महिलाएँ उम्मे अयमन, हबाबा वालबिया, अम्मार यासर की मां सुमय्या, जुबैदा, उम्म सईद हनफिया और सियानते माशेता रज्अत करने वाली महिलाएं है।[४६]
- अहले-बैत (अ) और पैगम्बरों के दुश्मन और पाखंडी, उन लोगों में से हैं जो हदीसों के अनुसार रज्अत करेंगे और उनसे प्रतिशोध लिया जाएगा।[४७]
प्रमाण
रज्अत में विश्वास की वैधता को साबित करने के लिए निम्नलिखित तर्क बयान किए गए हैं:
क़ुरआनी दस्तावेज़
रज्अत के सिद्धांत की वैधता को साबित करने के लिए इमामिया ने जिन आयतो का तर्क दिया है उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- आयत “وَ يَوْمَ نَحْشُرُ مِنْ كُلِّ أُمَّةٍ فَوْجًا مِمَّنْ يُكَذِّبُ بِآيَاتِنَا वयौमा नहशोरो मिन कुल्ले उम्मतिन फ़ौजन मिम्मा योकज़्ज़ेबो बेआयातेना (सारी जाति के विनाश के दिन, हमारी आयतों के बारे में झूठ बोलने वालों की एक बड़ी संख्या); जिस दिन हम हर क़ौम से एक समूह खड़ा करेंगे जो हमारी आयतों को झुठलाएगा।"[४८] आयत का तर्क यह है कि आयत के अनुसार, ईश्वर सभी लोगों को नहीं, बल्कि लोगों के एक समूह को इकट्ठा करेगा, और यह पुनरुत्थान के दिन सभा नहीं हो सकती; क्योंकि आयत के अनुसार, "وَحَشَرْنَاهُمْ فَلَمْ نُغَادِرْ مِنْهُمْ أَحَدًا वहशरनाहुम फ़लम नोग़ादिर मिन्हुम अहदन (और उन्होंने हम को मार डाला, हम ने उन में से किसी को न छोड़ा)।"[४९] भगवान न्याय के दिन सभी लोगों को इकट्ठा करेंगा, इसलिए यह समझा जाता है कि सूर ए नमल की आयत न 83 में इकट्ठा होने का अर्थ मृतकों को क़यामत के दिन जीवन में वापस लाना नहीं है; बल्कि, यह दुनिया में है, और यही रज्अत है।[५०] तफसीर क़ुमी में, इमाम सादिक़ (अ) का एक कथन इस आयत के अंतर्गत बयान किया गया है और यह स्पष्ट किया गया है कि इसका अर्थ रज्अत है।[५१]
- वो आयते जो अतीत के राष्ट्रों में पुनरुत्थान से पहले मृतकों के पुनरुत्थान का संकेत देते हैं। जैसे सूर ए बक़रा की आयतें 73, 243 और 259[५२] तौरात में लोगों की रज्अत के उदाहरण भी हैं: जैसे अलयशाअ[५३] और बनी इस्राईल के पैगम्बरो मे से एक एलिय्याह के हाथ से एक लड़के, का जीवित होना।[५४]
- सूर ए नमल की आयत न 82, क़ेसस की आयत न 85, आले-इमरान की आयत न 157, सूर ए सजदा की आयत न 21, गफ़िर की आयत न 11, माएदा की आयत न 20, नेसा की आयत न 159 और अम्बिया की आयत न 95 हदीसो की मदद से रज्अत का संकेत देती हैं।[५५]
रज्अत के बारे में मुतवातिर हदीसे
ऐसा कहा जाता है कि रज्अत के अध्याय में जिन हदीसों को शामिल किया गया है वे मुतवातिर मानवी हैं।[५६] अल्लामा मजलिसी ने हक उल-यक़ीन किताब में कहा है कि उन्होंने 40 से अधिक इमामिया विद्वानों से 200 से अधिक हदीसें निकाली हैं, जिन्हें बिहार उल-अनवार[५७] किताब में "बाबुल रज्अत" नामक खंड में 50 प्रामाणिक वर्णन स्रोतों में बयान किया गया है।[५८] उन्होंने कहा कि यदि रज्अत की हदीसें मुतवातिर नहीं होती, तो किसी भी चीज़ के मुतवातिर होने का दावा करना संभव नहीं है।[५९] इमामम अली (अ) और इमाम हुसैन (अ) की रज्अत की हदीसो को मुतवातिर मानवी माना जाता है और अन्य मासूम इमामों (अ) की रज्अत के बारे में बताई गई हदीसें मुतवातिर हदीसो के नजदीक माना जाता है।[६०] दुआ ए अहद, दुआ ए दहवुल अर्ज़, ज़ियारत जामेअ कबीरा, जियारत मुतलका इमाम हुसैन, ज़ियारते आले यासीन और ज़ियारते इमाम ज़मान मे भी ऐसी सामग्रियां है जो रज्अत की ओर संकेत करती है।[६१]
रज्अत पर तर्कसंगत की संभावना
इमामिया के अनुसार रज्अत संभव है और हुई भी है।[६२] उनका मानना है कि ईश्वर के लिए ऐसा करना असंभव नहीं है और वह अपने कुछ बंदो को मृत्यु के बाद और पुनरुत्थान से पहले पुनर्जीवित करने और उन्हें दुनिया मे वापस लाने में सक्षम है और इस प्रकार की रिपोर्ट क़ुरआन के अनुसार[६३], ऐसा अतीत के कुछ राष्ट्रो में भी हुआ है।[६४] हालांकि, कुछ ने रज्अत की संभावना और घटना दोनों को स्वीकार नहीं किया है[६५] और कुछ लोगों ने इसके घटित होने पर केवल संदेह किया है।[६६]
रज्अत का फ़लसफ़ा
रिवायतो और विद्वानों के कथन अनुसार रज्अत के फ़लसफ़ा के रूप में व्यक्त किये गये कुछ मामले इस प्रकार हैं:
- अत्याचारियों से बदला और विश्वासियों के तश्फ़्फ़ी: ऐसा कहा जाता है कि रज्अत करने वालो के दो समूह हैं: एक समूह जिसका विश्वास उच्च कोटि का हैं और परमात्मा उन्हें दुनिया में वापस लाएंगा ताकि हक़ सरकार उन्हे दिखाए और उन्हें प्रिय बनाए, और दूसरा समूह अत्याचारीयो का है जिनसे उत्पीड़ितों का बदला लेकर उनके क्रोध को दबा देगा।[६७]
- नेक लोगों को इनाम और दोषियों को सज़ा: कुछ रिवायतो के अनुसार, पाखंडियों और उत्पीड़कों के एक समूह को, न्याय के दिन में उनकी विशेष सज़ा के अलावा, इस दुनिया में सज़ाएँ भी देखनी होंगी, जो विद्रोही जनजातियों के समान हैं। फ़िरऔन, आद, समूद और लूत की क़ौम ने देखा, और इसका एकमात्र मार्ग रज्अत है।[६८]
- ईश्वरीय सहायता: उन रिवायतो के आधार पर जो आयत के अंतर्गत हैं "إِنَّا لَنَنْصُرُ رُسُلَنَا وَالَّذِینَ آمَنُوا فِی الْحَیَاةِ الدُّنْیَا وَیَوْمَ یَقُومُ الْأَشْهَادُ इन्ना लेननसोरो रोसोलना वल्लज़ीना आमनू फ़िल हयातिद दुनिया व यौमा यक़ूमुल अशहादो; हम अपने रसूलो और ईमान वालों की मदद इस दुनिया में और क़यामत के दिन दोनों में करेंगे जब गवाह गवाही देने के लिए खड़े होंगे।[६९] बताया जाता है कि अल्लाह ने क़यामत के दिन से पहले और दुनिया मे हज़रत महदी (अ) के आंदोलन के दौरान पैग़म्बरो, इमामो और मोमेनीन के समर्थन के संबंध मे अपना वादा पूरा करेगा।[७०]
- आत्माओं का विकास: तफ़सीर नमूना के अनुसार, खालिस मोमेनीन का एक समूह, जिन्होंने आध्यात्मिक विकास के मार्ग पर अपने जीवन में बाधाओं का सामना किया है और उनका विकास अधूरा रह गया है, दिव्य ज्ञान के लिए उन्हें फिर से इस दुनिया में लौटकर अपना विकास जारी रखने की अनुमति मिलेगी।[७१]
- इंतज़ार कर रहे लोगों की आशा और तैयारी को मजबूत करना: रज्अत लोगों को आशा देती है कि भले ही वे मर जाएं, वे इमाम महदी (अ) की सरकार में पुनर्जीवित होंगे और आगमन के समय को समझेंगे। यह आशा लोगों को खालिस मोमेनीन के बीच रहने का प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित करती है।[७२]
मोनोग्राफ़ी
- मुख्य लेख: रज्अत से संबंधित पुस्तकों की सूची
इमामिया विद्वानों द्वारा रज्अत के विषय पर कई रचनाएँ लिखी गई हैं। "मंबअ शनासी मौजूई रज्अत" शीर्षक वाले एक लेख में, इन कार्यों में से 127 का उल्लेख किया गया है[७३] "रज्अत" के बारे में लिखी गई कुछ किताबें इस प्रकार हैं:
- किताब अल-ईकाज़ मिनल हुज्अते बिल बुरहान अलर रज्अते: शेख हुर्रे आमोली द्वारा लिखित। इस किताब में हुर्रे आमोली ने आयतो और रिवायतो का हवाला देकर रज्अत की हक़ीक़त को साबित करने के इमामिया के नजरिए बयान किया है। लेखक ने इस पुस्तक को लिखने के उद्देश्य को शियो की तीन श्रेणियों की प्रतिक्रिया के रूप में पेश किया है: वे जिन्होंने रज्अत में विश्वास करना बंद कर दिया है, वे जो रज्अत से इनकार करते हैं, और वे जिन्होंने इस मामले में शामिल हदीसों की व्याख्या की है।[७४]
- किताब रज्अत: अल्लामा मजलिसी द्वारा लिखित। यह किताब फ़ारसी भाषा में लिखी गई है। इस किताब में अल्लामा मजलिसी ने इमाम महदी (अ) की ज़ोहूर और रज्अत के विषय में चौदह हदीस प्रस्तुत की हैं।[७५]
- किताब "अल-शिया वल रज्अत": मुहम्मद रज़ा तब्सी नजफ़ी की रचना है। इस पुस्तक में लेखक ने क़ुरआन में रज्अत के स्थान, दुआओ, ज़ियारतो, न्यायविदों की सहमति और विद्वानों के कथनो का वर्णन किया है।
- किताब "अल-रज्अत औ अल-औदा इलल हयातिद दुन्या बादल मौत": अली मूसा कअबी द्वारा लिखित इस पुस्तक में, लेखक ने रज्अत को रिवायतो और क़ुरआन के प्रमाण से इसकी घटना की संभावना को समझाया है।[७६]
- किताब "बाज़गश्त बे दुनिया दर पायान तारीख (तहलील व बररसी मस्अले रज्अत)": खुदा मुराररद सुलैमियान द्वारा लिखित इस पुस्तक में दस अध्यायों में ये विषय शामिल हैं: रज्अत की शाब्दिक बररसी, इस्लामी धर्मों के दृष्टिकोण से रज्अत, रज्अत का समय, रज्अत की संभावना, रज्अत दर आख़ेरुज जमान, रूप और आलोचनाएं और उनका विश्लेषण, रज्अत करने वाले लोग, रज्अत के समय कर्तव्य, रज्अत मे सज़ा और सवाब।[७७]
फ़ुटनोट
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- ↑ शेख मुफ़ीद, अवाइल अल मक़ालात, 1414 हिजरी, पेज 324
- ↑ इब्ने मंज़ूर, लेसान उल अरब, रजआ श्ब्द के अंतर्गत
- ↑ देखेः तबरि, दलाइल अल इमामत, 1413 हिजरी, पेज 542
- ↑ रिज़वानी, मौऊद शनासी व पासुख़ बे शुबहात, 1388 शम्सी, पेज 661
- ↑ मुज़फ़्फ़र, बिदायतुल मआरिफ़ अल इलाहीया, 1417 हिजरी, भाग 2, पेज 169
- ↑ कयानी फ़रीद, रज्अत, पेज 593
- ↑ हुर्रे आमोली, अल ईक़ाज़ मिनल हुज्अते, 1386 शम्सी, पेज 101
- ↑ शेख सदूक़, अल ऐतेक़ादात, 1414 हिजरी, पेज 60
- ↑ शेख मुफ़ीद, अवाऐ लुल-मक़ालात, 1414 हिजरी, पेज 48
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- ↑ अल्लामा मजलिसी, हक़ उल-यक़ीन, इंतेशारात इस्लामीया, भाग 2, पेज 354
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- ↑ अमीन, नक़ज अल वशीआ, 1403 हिजरी, पेज 376; मुगनीया, अल-जमाए वल फ़वारिक़, 1414 हिजरी, पेज 300-302; मुज़फ़्फ़र, अक़ाइद अल-शिया, 1429 हिजरी, पेज 84
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- ↑ मुहम्मदी, फ़लसफा रज्अत अज़ मंज़रे आयतुल्लाह शाहबादी, पेज 85
- ↑ रज्अत दर क़ुरआन व अंदीशे शीयाआन, वेबगाह आसार उस्ताद मुहम्मद बाकिर बहबूदी
- ↑ सय्यद मुर्तज़ा, रसाइल अल शरीफ़ अल मुर्तज़ा, 1405 हिजरी, भाग 1, पेज 125; हुर्रे आमोली, अल ईक़ाज़ मिनल हुज्अते, 1386 शम्सी, पेज 94
- ↑ सय्यद मुर्तज़ा, रसाइल अल शरीफ़ अल मुर्तज़ा, 1405 हिजरी, भाग 1, पेज 125
- ↑ मुहम्मदी रय शहरी, दानिशनामा इमाम महदी (अ) बर असास क़ुरआन, हदीस व तारीख, 1393 शम्सी, भाग 8, पेज 77
- ↑ देखेः शेख मुफ़ीद, अवाऐ लुल-मक़ालात, 1414 हिजरी, पेज 77; सय्यद मुर्तज़ा, रसाइल अल शरीफ़ अल मुर्तज़ा, 1405 हिजरी, भाग 1, पेज 125; तबरेसी, मजमा अल-बयान, 1414 हिजरी, भाग 7, पेज 367; हुर्रे आमोली, अल ईक़ाज़ मिनल हुज्अते, 1386 शम्सी, पेज 38
- ↑ शेख मुफ़ीद, अल-इरशाद, 1413 हिजरी, पेज 369-370
- ↑ देखेः हिल्ली, मुख्तसर उल-बसाइर, 1421 हिजरी, पेज 120-122
- ↑ देखेः कअबी, अल-रज्अत वल औदह, 1426 हिजरी, पेज 55
- ↑ अय्याशी, तफसीर अल-अय्याशी, 1380 हिजरी, भाग 2, पेज 281
- ↑ शेख मुफ़ीद, अल-इख्तेसास, 1413 हिजरी, पेज 257-258; अय्याशी, तफसीर अल-अय्याशी, 1380 हिजरी, भाग 2, पेज 326
- ↑ क़ुमी, तफ़सीर अल-क़ुमी, 1404 हिजरी, भाग 2, पेज 391
- ↑ कअबी, अल-रज्अत वल औदह, 1426 हिजरी, पेज 53-54
- ↑ हिल्ली आमोली, मुख्तसर उल-बसाइर, 1421 हिजरी, पेज 91; अल्लामा मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 53, पेज 64
- ↑ देखेः क़ुमी, तफ़सीर अल-क़ुमी, 1404 हिजरी, भाग 2, पेज 147
- ↑ क़ुमी, तफ़सीर अल-क़ुमी, 1404 हिजरी, भाग 1, पेज 25; हुर्रे आमोली, अल ईक़ाज़ मिनल हुज्अते, 1386 शम्सी, पेज 345; अल्लामा मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 53, पेज 108-109
- ↑ देखेः कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 8, पेज 50-51
- ↑ देखेः अय्याशी, तफसीर अल-अय्याशी, 1380 हिजरी, भाग 2, पेज 32; अल्लामा मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 53, पेज 68
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- ↑ अय्याशी, तफसीर अल-अय्याशी, 1380 हिजरी, भाग 2, पेज 32
- ↑ अय्याशी, तफसीर अल-अय्याशी, 1380 हिजरी, भाग 2, पेज 112-113; अल्लामा मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 53, पेज 24
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- ↑ क़ुमी, तफसीर अल-क़ुमी, 1404 हिजरी, भाग 1, पेज 385; अल्लामा मजलिसी, बिहार उल-अनवार, भाग 53, पेज 24
- ↑ सूर ए नमल, आयत न 83
- ↑ सूर ए कहफ़, आयत न 47
- ↑ देखेः शेख मुफ़ीद, अवाएलुल मक़ालात, 1414 हिजरी, पेज 325; तबरेसी, मजमा उल बयान, 1415 हिजरी, भाग 7, पेज 405-406; शुब्बर, हक़ उल यक़ीन, 1418 हिजरी, भाग 2, पेज 298-299; मुग़निया, अल जवामेअ व फ़वारिक़, 1414 हिजरी, पेज 300-301
- ↑ क़ुमी, तफ़सीर अल-क़ुमी, 1404 हिजरी, भाग 1, पेज 24
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- ↑ अहदे अतीक़, किताबे दोव्वुम पादशाहान, बंद 32-38
- ↑ अहदे अतीक़, किताबे दोव्वुम पादशाहान, बंद 32-38
- ↑ देखेः शुब्बर, हक़ उल यक़ीन, 1418 हिजरी, भाग 2, पेज 299-304
- ↑ हुर्रे आमोली, अल ईक़ाज़ मिनल हुजअते, 1386 शम्सी, पेज 73-74; शुब्बर, हक़ उल यक़ीन, 1418 हिजरी, भाग 2, पेज 305
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- ↑ शुब्बर, हक़ उल यक़ीन, 1418 हिजरी, भाग 2, पेज 123
- ↑ देखेः तबरेसी, अल एहतेजाज, 1403 हिजरी, भाग 2, पेज 494; क़ुमी, कुल्लीयात मफ़ातिह अल-जिनान, इंतेशारात उस्वा, पेज 249, 325, 524, 540, 548
- ↑ देखेः तबरेसी, मज्मा उल बयान, 1415 हिजरी, भाग 7, पेज 405
- ↑ देखेः सूर ए बक़रा, आयत न 56, 73, 259
- ↑ तबरेसी, मज्मा उल बयान, 1415 हिजरी, भाग 7, पेज 405
- ↑ सुलैमियान, बाज़गश्त बे दुनिया दर पायान तारीख, 1387 शम्सी, पेज 59
- ↑ देखेः आलूसी, तफसीर रूह अल मआनी, 1415 हिजरी, भाग 10, पेज 237
- ↑ शेख मुफ़ीद, अवाएलुल मक़ालात, 1414 हिजरी, पेज 78; शेख मुफ़ीद, अल फुसूल अल मुखतारोह, 1413 हिजरी, पेज 153; अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 53, पेज 39 व 126
- ↑ शेख मुफ़ीद, अल फुसूल अल मुखतारोह, 1413 हिजरी, पेज 155; अल्लामा मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 53, पेज 126-127; मकारिम शिराज़ी, तफसीर नमूना, 1374 शम्सी, भाग 15, पेज 559
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स्रोत
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- मुताहरी, मुर्तज़ा, मज्मूआ आसार, क़ुम, इंतेशारात सदरा, 1390 शम्सी
- मुज़फ़्फ़र, मुहम्मद रज़ा, बिदायतुल मआरिफ़ अल इलाहीया फ़ी शरह अकाऐदिल इमामिया, तालीका सय्यद मोहसिन ख़राज़ी, क़ुम, मोअस्सेसा अल नशर अल इस्लामी, 1417 हिजरी
- मुज़फ़्फ़र, मुहम्मद रज़ा, अकाऐदुश शिया, क़ुम, अंसारियान, 1429 हिजरी
- मुगनिया, मुहम्मद जवाद, अल जवामेअ वल फ़वारिक़, बैरूत, मोअस्सेसा इज्ज़ुद्दीन, 1414 हिजरी
- मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफसीर नमूना, तेहरान, दार उल कुतुब उल इस्लामीया, 1374 शम्सी
- मूसवी अर्दबेली, अब्दुल ग़नी, तक़रीरात फ़लसफ़ा (तक़रीरात दरस फलसफ़ा इमाम खुमैनी), तेहरान, मोअस्सेसा तंज़ीम व नशर आसार इमाम ख़ुमैनी, 1381 शम्सी