क़िसास
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कुछ अमली व फ़िक़ही अहकाम |
फ़ुरू ए दीन |
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क़िसास अर्थात प्रतिशोध (अरबीःالقصاص) का अर्थ है जानबूझकर किए गए अपराधों के बदला लेने को प्रतिशोध कहते है। प्रतिशोध को प्राण-प्रतिशोध (क़िसास नफ्स) और अंग-प्रतिशोध (क़िसास उज़्व) दो प्रकारों में विभाजित किया गया है। प्रतिशोध के फैसले को इस्लाम धर्म के नियमों में से एक माना जाता है, जो क़ुरआन की आयतों, मुतावातिर रिवायतो और आम सहमति (इज्माअ) से प्रमाणित किया जाता है।
स्वतंत्र होने और गुलाम होने में समानता, धर्म का एक होना, बालिग होना और बुद़्धिमान होना प्रतिशोध की प्राप्ति की शर्तों में से हैं। अपराधी का कबूलनामा, दो आदिल लोगो की गवाही और क़िसामा हत्यारे पर प्रतिशोध साबित करने के तरीके हैं। दीयत, दंड और ताज़ीर के साथ प्रतिशोध, इस्लामी गणराज्य ईरान सहित कुछ इस्लामी देशो में इस्लामी दंड संहिता की चार मुख्य सज़ाओं में से एक है।
बिना किसी सीमा के प्रतिशोधपूर्ण व्यवहार को रोकना, आपराधिक न्याय प्रदान करना और सामाजिक सुरक्षा बनाए रखना प्रतिशोध का कानून बनाने की बुद्धिमत्ता और कारणों में से हैं। प्रतिशोध उस व्यक्ति के लिए अनिवार्य नहीं है जिसके पास प्रतिशोध का अधिकार है; बल्कि वह अपराधी को माफ कर सकता है या किसी चीज के बदले उसका अधिकार माफ कर सकता है।
जानबूझकर किए गए अपराधो के बदले प्रतिशोध
जानबूझ कर किए गए अपराधों का बदला क़िसास कहलाता है।[१] यदि कोई व्यक्ति किसी की हत्या करता है या किसी व्यक्ति को घायल करता है, तो हत्या करने वाले व्यक्ति को मारना जा उसको उसी तरह घायल करे, तो उसका प्रतिशोध अर्थात बदला होगा।[२] न्यायशास्त्र की पुस्तकों में, एक व्यक्ति जो हत्या करता है उसे जानी और जिसकी हत्या की गई है उसको मजनयुन अलैह कहते है।[३]
प्रतिशोध माफ करना
प्रतिशोध कोई अनिवार्य सज़ा नहीं है; अर्थात्, जिस व्यक्ति को प्रतिशोध का अधिकार है, वह अपना अधिकार माफ कर सकता है या उस व्यक्ति से समझौता कर सकता है, जिससे प्रतिशोध लिया जाना चाहिए।[४] अल्लामा तबातबाई के अनुसार, प्रतिशोध की आयत मे प्रतिशोध का हुक्म बताते समय, इसे माफ करने को, प्रोत्साहित किया जाता है।[५]
अमीर अल-मोमिनीन (अ) अपने ऊपर प्रहार होने के बाद अपनी वसीयत में कहा: "अगर मैं जीवित रहा, तो मैं अपने खून का संरक्षक (वली) हूं, और अगर मैं मर गया, तो मौत ही मेरी मंजिल और ठिकाना है।" और उन्होंने इब्न मुल्जम मुरादी के बारे में क्षमा को ईश्वर के करीब आने और अपने बच्चों के लिए अच्छे कर्मों का एक साधन माना। उन्होंने अपने श्रोताओं को "फाअफ़ू" वाक्य को माफ करने की भी सलाह दी और सूर ए नूर की आयत न 22 के एक वाक्यांश का उल्लेख किया। أَلَا تُحِبُّونَ أَنْ يَغْفِرَ اللهُ لَكُمْ अला तोहिब्बूना अन यग़फ़ेरल्लाहो लकुम (अनुवादः क्या तुम्हें यह अच्छा नहीं लगता कि ईश्वर तुम्हें क्षमा करे?)[६]
प्रतिशोध के तर्को की वैधता
न्यायविद प्रतिशोध को इस्लामी न्यायशास्त्र के कुछ नियमों में से एक मानते हैं, जिसकी पुष्टि कई आयतो और मुतावातिर रिवायतो से होती है, और इस पर आम सहमति (इज्माअ) है।[७] मुहम्मद हसन नजफ़ी द्वारा लिखी गई पुस्तक जवाहिर अल कलाम से प्रतिशोध के कुछ क़ुरआनिक तर्क निम्मलिखित हैं:[८]
- وَ لَكُمْ فِي الْقِصاصِ حَياةٌ يا أُولِي الْأَلْبابِ व लकुम फ़िल क़िसासे हयातुन या उलिल अलबाब[९] (और हे बुद्धिमान पुरुषों, तुम जीवन का प्रतिशोध ले रहे हो)।[१०]
- كُتِبَ عَلَيْكُمُ الْقِصاصُ فِي الْقَتْلى الْحُرُّ بِالْحُرِّ وَ الْعَبْدُ بِالْعَبْدِ وَ الْأُنْثى بِالْأُنْثى कूतिबा अलैकुम अल क़िसासो फ़िल कत्लिल हुर्रे बलि हुर्रे वल अब्दो बिल अब्दे वल उन्सा बलि उन्से[११] (मरने वालो के संबंध मे क़िसास का हुक्म तुम्हारे ऊपर लिख दिया गया है, स्वतंत्र का स्वतंत्र और दास का दास और महिला का महिला से प्रतिशोध होगा)।[१२]
- وَ كَتَبْنا عَلَيْهِمْ فيها أَنَّ النَّفْسَ بِالنَّفْسِ وَ الْعَيْنَ بِالْعَيْنِ وَ الْأَنْفَ بِالْأَنْفِ وَ الْأُذُنَ بِالْأُذُنِ وَ السِّنَّ بِالسِّنِّ وَ الْجُرُوحَ قِصاصٌ فَمَنْ تَصَدَّقَ بِهِ فَهُوَ كَفَّارَةٌ لَهُ व कतबना अलैहिम फ़ीहा अन्नन नफ़सा बिन नफ़्से वल ऐना बिल ऐने वल अन्फ़ा बिल अन्फ़े वल उज़्ना बिल उज़्ने वल सिन्ना बिल सिन्ने वल जुरूहा क़िसासुन फ़मन तसद्दक़ा बेहि फ़होवा कफ़्फारतुन लहू[१३] (और तौरात मे उनपर (बनी इस्राईल) पर लिख दिया कि प्राण के बदले प्राण, और आँख के बदले आँख, और नाक के बदले नाक, और कान के बदले कान, और दांत के बदले दांत निर्धारित कर दिया, और घावों का बदला लिया जाएगा, और जो कोई इस [प्रतिशोध] से होकर गुजरेगा तो यह उसके पापो का प्रायश्चित होगा)।[१४]
- والْحُرُماتُ قِصاصٌ فَمَنِ اعْتَدى عَلَيْكُمْ فَاعْتَدُوا عَلَيْهِ بِمِثْلِ مَا اعْتَدى عَلَيْكُمْ वल होरोमातो क़िसासुन फ़मने तदी अलैकुम फ़ातदू आलैहे बिम्स्ले मातदा अलैकुम[१५] और मानहानि का प्रतिशोध है, अतः जो कोई तुम पर अत्याचार करे, तो उस से उसी प्रकार बदला लो जिस प्रकार उसने अपराध किया है।[१६]
प्राण का प्रतिशोध और अंग का प्रतिशोध
प्रतिशोध को दो प्रकारों आत्म-प्रतिशोध (क़िसासे नफ्स) और अंग-प्रतिशोध (क़िसासे उज़्व) अथवा (आंशिक-प्रतिशोध) में विभाजित किया गया है: आत्म-प्रतिशोध का अर्थ है किसी ऐसे व्यक्ति की हत्या करना जिसने जानबूझकर किसी दूसरे की हत्या की हो।[१७] अंग-प्रतिशोध अथवा आंशिक-प्रतिशोध जानबूझकर घायल करना (हत्या को छोड़कर) जैसे अंगच्छेदन के मामले में प्रतिशोध सामने आता है।[१८]
प्रतिशोध के हुक्म की शर्तें
प्रतिशोध की सजा की साबित होने के लिए निम्नलिखित शर्तों के अस्तित्व पर आधारित है:
- स्वतंत्र होने और गुलाम होने मे समानता;[१९] अर्थात, यदि कोई स्वतंत्र व्यक्ति किसी गुलाम के खिलाफ अपराध करता है, तो उससे बदला नहीं लिया जाएगा;[२०] बल्कि वह दियत (जुर्माना) देगा।[२१]
- धर्म की एकता; इसका मतलब यह है कि यदि कोई मुस्लिम किसी गैर-मुस्लिम के खिलाफ अपराध करता है, तो उसकी सजा प्रतिशोध नहीं होगी[२२] बल्कि उस पर दंड लगाया जाएगा और जुर्माना देगा।[२३]
- अपराधी हत्या होने वाले का पिता न हो; अर्थात यदि कोई (हत्यारा) व्यक्ति अपने बच्चे के विरुद्ध अपराध करता है तो कोई प्रतिशोध नहीं मिलता। दादा-परदादा और पितृ-पूर्वजों की शृंखला का एक ही नियम है।[२४] और इस मामले में, उसकी सज़ा कफ़्फ़ारा, दीयत और ताज़ीर है।[२५]
- परिपक्वता (बालिग हो) और बुद्धि; एक व्यक्ति जो युवावस्था की उम्र तक नहीं पहुंचा है या पागल है, उसके खिलाफ प्रतिशोध नहीं लिया जाता है।[२६] इसी प्रकार एक बालिग और बुद्धिमान व्यक्ति जिसने किसी पागल व्यक्ति के खिलाफ अपराध किया है, उसके खिलाफ प्रतिशोध नहीं लिया जाता है; बल्कि उसे दियत देना होगी।[२७]
- मरने वाला व्यक्ति महदुर अल-दम न हो; अर्थात्, यदि कोई किसी ऐसे व्यक्ति की हत्या करता है जिसका रक्त धर्मत्याग जैसे कारणों से स्वीकार्य है, तो उसके खिलाफ प्रतिशोध नहीं लिया जाएगा।[२८]
अंग-प्रतिशोध के विशिष्ट नियम
आत्म-प्रतिशोध की शर्तों के अलावा, अंग-प्रतिशोध की अन्य शर्तें भी शामिल हैं:
- स्वास्थ्य में समानता या एकरूपता; अर्थात्, उदाहरण के लिए, यदि अपराधी किसी का ख़राब हाथ काट देता है, तो इस शर्त के साथ बदला लिया जाएगा कि अपराधी का हाथ भी खराब हो; अन्यथा अपराधी को दियत देना होगी।[२९]
- अंग में समानता या एकरूपता; इसका मतलब यह है कि अगर अपराधी ने किसी का दाहिना हाथ काटा, तो अपराधी का भी दाहिना हाथ काटा जाना चाहिए; अगर अपराधी दाहिना हाथ न हो, उस स्थिति में, मशहूर राय के अनुसार, उसके बाएं हाथ को काटा जाएगा।[३०]
- अपराधी को कोई हानि न हो; इसका मतलब यह है कि बदले के कारण अपराधी की मृत्यु या उसके अन्य अंग को चोट नहीं पहुंचनी चाहिए। इस शर्त के अनुसार, क़िसास अगर खतरनाक है, तो क़िसास नही होगा बल्कि दियत या अर्श [नोट १] द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा।[३१]
साबित होने की शर्तें
न्यायशास्त्रीय सूत्रों के अनुसार, किसी अपराध को साबित करने और फिर उसे दंडित करने के तीन तरीके हैं: पहला, जिसने अपराध किया है उसे अपराध स्वीकार करना चाहिए।[३२] इस मामले में, व्यक्ति का बुद्धिमान और बालिग़ होना आवश्यक है, और स्वेच्छा से कबूल करे – विवश न हो। दूसरा, कि दो आदिल व्यक्ति उसके अपराध की गवाही दे।[३३] और तीसरा, कि अपराधी के विरुद्ध क़िसामा हो; इसका मतलब है कि खून के वारिसो मे से पचास लगो खसम खाए कि जिस व्यक्ति पर अपराध करने का आरोप है, उसने अपराध किया है।[३४] किसी के खिलाफ किसामा केवल तभी ली जा सकती है जब इस बात का अनिर्णायक सबूत हो कि उसने अपराध किया है।[३५]
ईरान के कानूनों में प्रतिशोध: इस्लामी दंड संहिता
इस्लामी गणतंत्र ईरान के इस्लामी दंड संहिता में, प्रतिशोध दीयत, हद और ताज़ीर के साथ चार मुख्य दंडों में से एक है।[३६] इस कानून के अनुच्छेद 16 के अनुसार, जानबूझकर प्रतिशोध मुख्य दंड है प्राण, अंगो और हितों के खिलाफ अपराध है।[३७] इस्लामी दंड संहिता तीसरी पुस्तक में अनुच्छेद 289 से 447 तक प्रतिशोध के कानूनों का विवरण दिया गया है।[३८]
प्रतिशोध का दर्शन
आपराधिक न्याय प्रदान करने, सामाजिक सुरक्षा बनाए रखने और व्यक्तिगत प्रतिशोध को रोकने जैसे मामलों को इस्लाम में प्रतिशोध की अनुमति के कारणों के रूप में उद्धृत किया गया है।[३९] कुछ के अनुसार, प्रतिशोध का कानून अपराध और सजा के बीच संतुलन बनाकर आपराधिक न्याय का एहसास कराता है।[४०] इसके अलावा, इस तरह की सजा का अस्तित्व उन लोगों को रोकता है जो अपराध करने का इरादा रखते हैं, और इस प्रकार सामाजिक सुरक्षा पैदा करते हैं। वह उन्हें प्रतिशोधी व्यवहार से रोकता है।[४१] इसका तीसरा लाभ यह है कि यह अपराध करने वाले व्यक्ति या उसके परिवार को प्रतिशोध का अधिकार देकर उनके प्रतिशोधपूर्ण व्यवहार को रोकता है।[४२]
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
- ↑ मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ फ़िक़्ह इस्लामी, फ़रहंग फ़िक्ह, 1395 शम्सी, भाग 6, पेज 597
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 42, पेज 7
- ↑ देखेः मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ फ़िक़्ह इस्लामी, फ़रहंग फ़िक्ह, 1395 शम्सी, भाग 6, पेज 601
- ↑ ख़ुसरोशाही, फ़लसफ़ा क़िसास अज़ दीदगाह इस्लाम, 1380
- ↑ देखेः तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 432-433
- ↑ मकारिम शिराज़ी, नहज अल बलागा बा तरजुमा फ़ारसी रवान, 1384 शम्सी, भाग 1, पेज 591
- ↑ देखेः नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 42, पेज 7
- ↑ नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1404 हिजरी, भाग 42, पेज 7-9
- ↑ सूर ए बक़रा, आयत न 179
- ↑ तरजुमा, फ़ौलादवंद
- ↑ सूर ए बक़रा, आयत न 178
- ↑ तरजुमा, फ़ौलादवंद
- ↑ सूर ए मायदा, आयत न 45
- ↑ तरजुमा, फ़ौलादवंद
- ↑ सूर ए बक़रा, आयत न 194
- ↑ तरजुमा, फ़ौलादवंद
- ↑ मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ फ़िक़्ह इस्लामी, फ़रहंग फ़िक्ह, 1395 शम्सी, भाग 6, पेज 605
- ↑ मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ फ़िक़्ह इस्लामी, फ़रहंग फ़िक्ह, 1395 शम्सी, भाग 6, पेज 599
- ↑ मिश्कीनी, मुस्तलेहात अल फ़िक़्ह व इस्तलेहात अल उसूल, 1431 हिजरी, पेज 428 मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 4, पेज 189
- ↑ मिश्कीनी, मुस्तलेहात अल फ़िक़्ह व इस्तलेहात अल उसूल, 1431 हिजरी, पेज 428 मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 4, पेज 190
- ↑ मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 4, पेज 190
- ↑ मिश्कीनी, मुस्तलेहात अल फ़िक़्ह व इस्तलेहात अल उसूल, 1431 हिजरी, पेज 428 मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 4, पेज 196
- ↑ मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 4, पेज 196
- ↑ मिश्कीनी, मुस्तलेहात अल फ़िक़्ह व इस्तलेहात अल उसूल, 1431 हिजरी, पेज 428 मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 4, पेज 199
- ↑ मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 4, पेज 199
- ↑ मिश्कीनी, मुस्तलेहात अल फ़िक़्ह व इस्तलेहात अल उसूल, 1431 हिजरी, पेज 428 मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 4, पेज 200
- ↑ मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 4, पेज 200-201
- ↑ मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 4, पेज 201
- ↑ मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ फ़िक़्ह इस्लामी, फ़रहंग फ़िक्ह, 1395 शम्सी, भाग 6, पेज 599
- ↑ मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ फ़िक़्ह इस्लामी, फ़रहंग फ़िक्ह, 1395 शम्सी, भाग 6, पेज 600
- ↑ मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ फ़िक़्ह इस्लामी, फ़रहंग फ़िक्ह, 1395 शम्सी, भाग 6, पेज 600
- ↑ मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 4, पेज 203
- ↑ मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 4, पेज 203
- ↑ मिश्कीनी, मुस्तलेहात अल फ़िक़्ह व इस्तलेहात अल उसूल, 1431 हिजरी, पेज 423
- ↑ मोहक़्क़िक़ हिल्ली, शराए अल इस्लाम, 1408 हिजरी, भाग 4, पेज 207
- ↑ देखेः वेबगाह मरकज़ पुजूहिशहाए मजलिस शूरा ए इस्लामी, क़ानून मजाज़ात इस्लामी
- ↑ देखेः वेबगाह मरकज़ पुजूहिशहाए मजलिस शूरा ए इस्लामी, क़ानून मजाज़ात इस्लामी
- ↑ देखेः वेबगाह मरकज़ पुजूहिशहाए मजलिस शूरा ए इस्लामी, क़ानून मजाज़ात इस्लामी
- ↑ देखेः खुसरोशाही, फ़लसफ़ा क़िसास, 1380
- ↑ देखेः खुसरोशाही, फ़लसफ़ा क़िसास, 1380
- ↑ देखेः खुसरोशाही, फ़लसफ़ा क़िसास, 1380
- ↑ देखेः खुसरोशाही, फ़लसफ़ा क़िसास, 1380
नोट
- ↑ अर्श वह धन राशि है जो नुकसान पहुंचाने वाले व्यक्ति से वित्तीय या शारीरिक क्षति के मुआवजे के रूप में प्राप्त की जाती है, जिसके लिए शरीयत में कोई निर्दिष्ट राशि नहीं है, और इसकी चर्चा व्यापार और दियत के अध्यायो मे की गई है। (दाएरातुल मआरिफ अल फ़िक़्ह अल इस्लामी, फ़रहंग फ़िक़्ह फ़ारसी, 1382 शम्सी, भाग 1, पेज 381)।
स्रोत
- क़ुरआन करीम, तरजुमा मुहम्मद महदी फौलादवंद
- खुसरोशाही, कुदरतुल्लाह, फ़लसफ़ा क़िसास अज़ दीदगाह इस्लाम, क़ुम, बूस्ताने किताब, 1380 शम्सी, दर वेबगाह पुजूहिशकदे अमर बे मारूफ व नही अज़ मुंकर, वीजीट की तारीख 13 दी 1399 शम्सी
- तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अल मीज़ान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, क़ुम, दफतरे इंतेशारत इस्लामी, पांचवा स्सकरण, 1417 हिजरी
- मोहक़्क़िक़ हिल्ली, जाफर बिन हसन, शरा ए अल इस्लाम फ़ी मसाइल अल हलाले वल हराम, शोध व संशोधनः अब्दुल हुसैन मुहम्मद अली बक्काल, क़ुम, इस्माईलीयान, दूसरा संस्करण, 1408 हिजरी
- मिश्कीनी, मुस्तलेहात अल फिक्ह वल इस्तलेहात अल उसूल, बैरूत, मंशूरात अल रज़ा, पहला संस्करण, 1431 हिजरी
- मोअस्सेसा दाएरातुल मआरिफ फ़िक्ह इस्लामी, फ़रहंग फ़िक़्ह मुताबिक बा मज़हब अहले बैत (अ), पहाल संस्करण, 1392 हिजरी
- नजफ़ी, मुहम्मद हुसैन, जवाहिर अल कलाम फ़ी शरह शराए अल इस्लाम, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, सांतवां संस्करण, 1404 हिजरी
- वेबगाह मरकज़ पुजूहिशहाए मजलिस शूरा ए इस्लामी, क़ानून मजाज़ात इस्लामी