अर्श

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अर्श (अरबीः العرش) एक क़ुरआनिक शब्द है जिसका अर्थ सिंहासन है और अल्लाह से संबंधित है। क़ुरआन की आयतों में इस बात का उल्लेख है कि खुदा ने सिंहासन संभाला है, जिसकी व्याख्या में मुस्लिम विद्वानों में अत्यधिक मतभेद हैं। अशायरा और अहले हदीस जैसे सुन्नी संप्रदायो का कहना हैं कि किसी को इन आयतो के बारे में नहीं सोचना चाहिए और केवल उन पर विश्वास करना चाहिए अर्थात उन पर ईमान रखना चाहिए।

ज़ाहिर गरायान और हश्वीया की मान्यता के अनुसार, "अर्श" वही भौतिक सिंहासन है और खुदा के पास एक बड़ा सिंहासन है जिस पर बैठकर दुनिया पर शासन करता है। शिया और मोतज़ेला का मानना है कि ये आयतें अलंकारिक और सांकेतिक हैं। उनमें से कुछ ने अर्श (सिंहासन) की व्याख्या (तफसीर) अल्लाह के अनंत ज्ञान के रूप में की है।

अल्लामा तबताबाई ने अर्श को दुनिया के एक विकसित चरण और उस स्थान के रूप में माना जहां दिव्य आदेश जारी किए जाते हैं, और उन्होंने अल्लाह के अर्श (सिंहासन) पर बैठने की व्याख्या दुनिया की योजना और सभी मामलों के ज्ञान के संकेत के रूप में की है।

शब्दार्थ और क़ुरआन मे उसका इस्तेमाल

शब्दकोष मे अर्श का अर्थ "राजा का सिंहासन" या "ऐसा कुछ जिसकी छत हो" को कहा जाता है।[१] अर्श शब्द की क़ुरआन में 21 बार अल्लाह की ओर निसबत दी गई है।[२] सूर ए तौबा की आयत न 129 दिव्य सिंहासन की महानता (अर्शे इलाही की अज़मत) को संदर्भित करती है।[३] कुछ आयतो मे अर्श पर खुदा का भूमध्य रेखा का उल्लेख किया गया है।[४] दूसरी आयतो में उन स्वर्गदूतों (फ़रिश्तो) के बारे में उल्लेख किया गया है जो अर्श (सिंहासन) के चारों ओर तस्बीह करने में व्यस्त हैं[५] या वे हामेलाने अर्श हैं।[६] सूर ए हूद की आयत न 7 में यह भी कहा गया है कि अर्शे इलाही (ईश्वरीय सिंहासन) पानी पर स्थित है।[७]

हदीसों में अर्श की विशेषताएं

अर्श के बारे में विभिन्न रिवायते हैं; उनमें से एक यह है कि भगवान के करीब स्वर्गदूत सिंहासन को उठाए हुए हैं और सिंहासन पर दुनिया के सभी प्राणियों की छवियां (तमसील) मौजूद हैं[८] या यह कि "ला इलाहा इललल्लाह, मुहम्मदुर रसूलुल्लाह, अलीयुन अमीर अल मोमेनीन"[९] अर्श पर लिखा हुआ है।[१०] पैगंबर (स) की एक हदीस में उल्लेख है कि मेराज के सफर (स्वर्गारोहण की यात्रा) के दौरान, जब मैंने अर्श की ओर देखा, तो मैंने देखा कि सभी मासूमीन अर्श के दाहिनी ओर थे।[११] कुछ हदीसों में यह भी उल्लेख किया गया है कि अर्श ईश्वर का अनंत ज्ञान है।[१२]

रिवायतो की दृष्टि से सिंहासन (अर्श) की बहुत महानता है और सिंहासन के सामने सभी प्राणी मरुस्थल में एक वलय के समान हैं।[१३] अर्श के प्रत्येक खंभे के बीच की दूरी ऐसी है कि एक तेज़ उड़ने वाले पक्षी को एक खंभे से दूसरे खंभे तक जाने में एक हज़ार साल लगते हैं।[१४] सिंहासन (अर्श) आसन (कुर्सी) से बड़ा है।[१५] परमेश्वर ने सिंहासन की प्रकाश से रचना की है और कोई भी प्राणी इसे देख नहीं सकता।[१६]

अर्श से संबंधित राय

अर्श और कुर्सी से संबंधित आयात क़ुरान के मुताशाबेहात मे से हैं, मुस्लिम विद्वानों के उनके बारे में नाना प्रकार के अलग-अलग विचार हैं।[१७] उनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

अर्श के अर्थ का अज्ञात होना

अशायरा और अहले-हदीस जैसे कुछ सुन्नी संप्रदायो के दृष्टिकोण से अर्श और कुर्सी जैसी अवधारणाओं पर विश्वास करना चाहिए अर्थात इन अवधारणाओ पर ईमान लाना चाहिए और उनके बारे में सोचने से बचना चाहिए।[१८] इनका कहान हैं कि क़ुरआन के अनुसार खुदा अर्श पर बैठा है; लेकिन यह कैसे है हमारे लिए स्पष्ट नहीं है।[१९] जैसाकि अर्श पर बैठे खुदा के अर्थ के बारे में मालिक बिन अनस का कहाना हैं: "बैठने का अर्थ स्पष्ट है; लेकिन इसकी प्रकृति समझ में नहीं आती है, और इसके बारे में सवाल पूछना बिदअत और उस पर ईमान लाना अनिवार्य है।"[२०]

अर्श का भौतिक और स्थानीय होना

ज़ाहिर गिरायान और हश्वीया ने "अर्श" से इसका जाहरी अर्थ समझा है और इसे भौतिक सिंहासन (दुनयाई तख्त) माना है। उनका मानना है कि भगवान के पास एक बड़ा सिंहासन है जिस पर बैठ कर दुनिया पर शासन करता हैं।[२१]

मुल्ला हादी सब्ज़ावारी सहित कई मुस्लिम दार्शनिकों ने भी "टॉलेमिक कमीशन" का उल्लेख किया, और दिव्य सिंहासन को "फलक अल अफ़लाक अर्थात नक्षत्र" माना है, जो ग्रीक दार्शनिक प्रणाली में नौवां नक्षत्र था।[२२] कुछ जिस्म गिरायान (कारनालिस्ट) का मानना है कि अर्श और कुर्सी (सिंहासन और आसन) दो विशाल ब्रह्मांडीय पिंड हैं।[२३] कुछ ने यह भी कहा है कि अर्श और कुर्सी (सिंहासन और आसन) शनि और बृहस्पति ग्रह हैं।[२४]

अर्श का अलंकारिक अर्थ

मोतज़ेला और शिया टिप्पणीकारों के एक समूह का मानना है कि ब्रह्मांड मे अर्श जैसी कोई चीज़ नहीं है और यह कि अर्शे इलाही दूसरी चीज़ों के लिए एक संकेत है।[२५] लेकिन यह संकेत किस लिए है, इस पर अलग-अलग विचार हैं: कुछ का कहना है कि कुर्सी भौतिक दुनिया का संकेत और अर्श भौतिक दुनिया से आगे का संकेत है।[२६] शेख़ सदूक़ ने अर्श की व्याख्या ईश्वर के अनंत ज्ञान के रूप में की है।[२७] जबकि दूसरो ने इसे परमेश्वर के शासन, संप्रभुता और स्वामित्व कहा है।[२८]

अल्लामा तबताबाई ने अर्श को दुनिया के एक विकसित चरण और उस स्थान के रूप में माना जहां दिव्य आदेश जारी किए जाते हैं, और उन्होंने अल्लाह के अर्श (सिंहासन) पर बैठने की व्याख्या दुनिया की योजना और सभी मामलों के ज्ञान के संकेत के रूप में की है।[२९]

दूसरे धर्मों में अर्श

अर्शे इलाही का उल्लेख अन्य धर्मों में भी मिलता है। जैसा कि किताबे मुक़द्दस (बाइबिल) में लिखा है, आकाश की कसम मत खाओ; क्योंकि आकाश परमेश्वर का सिंहासन है।[३०] इसे एक पहिए वाला सिंहासन के रूप में भी वर्णित किया गया है जिसपर खुदा बैठा हुआ है[३१] और उसका सिंहासन और पहिए आग से प्रज्वलित हैं।[३२] इस पुस्तक के एक अन्य स्थान पर स्वर्गदूतों का उल्लेख किया गया है। जो दिव्य सिंहासन पर बैठे हैं।[३३] इसी तरह, यह भी कहा गया है कि भगवान के सिंहासन के चारों ओर सर्राफ़ीन स्वर्गदूत उसकी तस्बीह (महिमा) करने में व्यस्त हैं।[३४]

संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. दहख़ुदा, लुग़तनामा दहख़ुदा, 1377 शम्सी, भाग 10, अर्श शब्द के अंतर्गत
  2. जमई अज़ मोहक़्क़ेक़ान, आयात अर्श वा कुर्सी, पेज 91
  3. होवा रब्बुल अर्शिल अज़ीम, ऊ परवरदीगारे अर्शे बुज़ुर्ग अस्त
  4. सूर ए आराफ़, आयत न 54 सूर ए ताहा, आयन न 5 सूर ए यूनुस, आयत न 3
  5. सूर ए ज़ुमर, आयत न 57
  6. सूर ए हाक़्क़ा, आयत न 17
  7. काना अर्शोहू अलल माअ, अर्श ऊ बर आब क़रार दारद
  8. तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 8, पेज 170
  9. खुदाई जुज़ खुदाई यगाने नीस्त, मुहम्मद (अ) फ़िरिस्तादे ख़ुदा अस्त वा अली (अ) अमीरे मोमेनान अस्त
  10. मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 27, पेज 1
  11. मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 36, पेज 217
  12. बयात मुख्तारी, अर्शे ख़ुदा वा तफ़ावुत आन बा कुर्सी, पेज 58
  13. रुस्तमी वा आले बूयह, सैरी दर असरार फ़रिश्तेगान, 1393 शम्सी, पेज 198
  14. रुस्तमी वा आले बूयह, सैरी दर असरार फ़रिश्तेगान, 1393 शम्सी, पेज 198
  15. बयात मुख्तारी, अर्शे ख़ुदा वा तफ़ावुत आन बा कुर्सी, पेज 59
  16. जाफ़री, मआरिफ़े क़ुरआनी दीदगाहा दर बार ए अर्शे ख़ुदा, पेज 41
  17. बयात मुख्तारी, अर्शे ख़ुदा वा तफ़ावुत आन बा कुर्सी, पेज 71
  18. बयात मुख्तारी, अर्शे ख़ुदा वा तफ़ावुत आन बा कुर्सी, पेज 53
  19. ख़ुर्रमशाही, अर्श, पेज 1446
  20. अहमदी व दिगरान, अंदीशे कलामी सनाई दर बार ए अर्श, पेज 7
  21. बयात मुख्तारी, अर्शे ख़ुदा वा तफ़ावुत आन बा कुर्सी, पेज 68
  22. बयात मुख्तारी, अर्शे ख़ुदा वा तफ़ावुत आन बा कुर्सी, पेज 69
  23. बयात मुख्तारी, अर्शे ख़ुदा वा तफ़ावुत आन बा कुर्सी, पेज 71
  24. बयात मुख्तारी, अर्शे ख़ुदा वा तफ़ावुत आन बा कुर्सी, पेज 69-70
  25. जमई अज़ मोहक़्क़ेक़ान, आयात ए अर्श वा कुर्सी, पेज 92
  26. मकारिम शिराज़ी, तफसीर नमूना, 1396 शम्सी, भाग 20, पेज 38
  27. सदूक़, मआनी अल अखबार, 1377 शम्सी, पेज 67
  28. मारफ़त, अल तमहीद फ़ी उलूम अल क़ुरआन, 1416 हिजरी, भाग 3, पेज 125
  29. तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 17, पेज 298
  30. किताब मुक़द्दस, किताब मत्ता, बाब 5, आयत न 35
  31. किताब मुक़द्दस किताब हिजक़ियाल, बाब 1, आयत न 26
  32. किताब मुक़द्दस, किताब दानीयाल, बाब 7, आयत न 9
  33. किताब मुक़द्दस, किताब अव्वल पादशाहान, बाब 22, आयत न 22
  34. किताब मुक़द्दस, किताब अशएयाए नबी, बाब 6, आयत न 3


स्रोत

  • अहमदी, जमाल वा दिगरान, अनदीशे कलामी सनाई दर बार ए अर्श, दर नशरिये दानिशकदेह बा हुनर किरमान, क्रमांक 22, ज़मिस्तान 1386 शम्सी
  • बयात मुख्तारी, महदी, अर्शे खुदा व तफ़ावुत आन बा कुर्सी, दर मजल्ले तहक़ीक़ात उलूम क़ुरआन व हदीस, दानिशगाह अल ज़हरा, क्रमांक 2, 1390 शम्सी
  • जाफ़री, याक़ूब, मआरिफ क़ुरआनी दीदगाहा दर बारा ए अर्शे ख़ुदा, दर मजल्ले दरस हाए अज़ मकतबे इस्लाम, मुरदाद 1391, क्रमांक 615
  • जमई अज़ मोहक़्क़ेक़ान, आयात अर्श व कुर्सी, दर फ़रहंग नामे उलूम क़ुरआनी, क़ुम, पुजूहिशगाह उलूम वा फ़रहंग इस्लामी, वाबस्ते बे दफ़तर तबलीग़ात इस्लामी हौज़ा ए इल्मीया क़ुम, पहला संस्करण 1394 शम्सी
  • ख़ुर्रमशाही, बहाउद्दीन, अर्श, दर दानिशनामे क़ुरआन वा क़ुरआन पुजूही, तेहरान, नशर दोस्तान-नाहीद, पहला संस्करण, 1377 शम्सी
  • दहख़ुदा, अली अकबर, लुग़तनामा दहख़ुदा, तेहरान, मोअस्सेसा लुग़तनामा दहख़ुदा, 1341 शम्सी
  • रुस्तमी, मुहम्मद ज़मान वा ताहेरा आले बूयह, सैरी दर असरारे फ़रिश्तेगान बा रूइकर्दी क़ुरआनी वा इरफ़ानी, क़ुम, पुजूहिशगाह उलूम वा फ़रहंग इस्लामी, 1393 शम्सी
  • सदूक़, मुहम्ममद बिन अली, मआनी अल अखबार, अनुवादः अब्दुल अली मुहम्मदी शाहरूदी, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामीया, 1377 शम्सी
  • तबातबाई, मुहम्मद हुसैन, अल मीज़ान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, क़ुम, इंतेशारात जामे मुदर्रेसीन, 1417 हिजरी
  • मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार उल अनवार लेदुरर अखबार अल आइम्मातिल अत्हार, बैरूत, मोअस्सेसा अल वफ़ा, 1403 हिजरी
  • मारफ़त, मुहम्मद हादी, अल तमहीद फ़ी उलूम अल क़ुरआन, भाग 3, क़ुम, मोअस्सेसा नशर इस्लामी, 1416 हिजरी
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफसीर नमूना, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लमीया, 1369 शम्सी