इमाम अली और हज़रत फ़ातिमा की शादी
![]() इमाम अली (अ) और हज़रत ज़हरा (स) की शादी के अवसर पर हसन रूहुल अमीन की पेंटिंग | |
| पक्ष | हज़रत अली (अ) और हज़रत फ़ातिमा (स) |
|---|---|
| समय | पहली हिजरी, दूसरी हिजरी या तीसरी हिजरी |
| अवधि | पहली शताब्दी हिजरी |
| स्थान | मदीना |
इमाम अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फ़ातिमा सलामुल्ला अलैहा की शादी (अरबी: زواج الإمام علي من فاطمة الزهراء) शिया इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओ मे से एक है जोकि हिजरत के दूसरे या तीसरे साल हुई। क्योकि शिया इमामो का सिलसिला इसी शादी का नतीजा और फल है। जबकि शादी की तारीख मे इतिहासकारो के बीच मतभेद है। शोधकर्ताओ के अनुसार निकाह हिजरी साल के बारहवे महीने की पहली तारीख़ और विदाई 6 तारीख़ को हुई। हज़रत अली (अ) से पहले हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) के साथ शादी का प्रस्ताव मुहाजेरीन और अंसार मे से कई व्यक्तियो ने दिया था लेकिन पैंगबर (स) ने उनके प्रस्ताव को यह कहते हुए नकार दिया कि फ़ातिमा की शादी अल्लाह के हाथ मे है।
हज़रत अली (अ) और हज़रत फ़ातिमा (स) के निकाह का ख़ुत्बा पैगंबर (स) ने स्वंय पढ़ा था। हज़रत फ़ातिमा (स) के मेहर के संबंध मे कई कथन है। मशूर कथन के अनुसार हज़रत फ़ातिमा (स) का मेहर 500 दिरहम अर्थात 1.5 किलो चांदी थी। जोकि शिया समुदाय के यहा मेहर ए फ़ातेमी के नाम से मशहूर है। हज़रत अली (अ) ने अपनी ज़िरह (कवच) को बेचकर हज़रत फ़ातिमा (स) का मेहर अदा किया। शादी के अवसर पर मदीने की जनता को खाना खिलाया गया।
ऐतिहासिक और हदीसी रिपोर्ट्स के अनुसार, हज़रत अली (अ) और हज़रत फ़ातिमा (स) का विवाह दूसरे या तीसरे हिजरी वर्ष में हुआ था, लेकिन इसके सही दिन और महीने के बारे में अलग-अलग राय हैं। "मनाकिबे आले अबी तालिब" (6वीं हिजरी सदी की किताब) के अनुसार: हज़रत फ़ातिमा (स) का निकाह 1 ज़िल हिज्जा को हुआ था। और उनकी विवाह (रुख़्सती) 6 ज़िल हिज्जा, दूसरे हिजरी साल में हुई थी। ईरान के इस्लामिक रिपब्लिक कैलेंडर में, 1 ज़िल-हिज्जा को "शादी का दिन" (रोज़-ए-इज़देवाज) के रूप में मनाया जाता है, जो हज़रत अली (अ) और हज़रत फ़ातिमा (स) के पवित्र विवाह की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में है।
शादी का प्रस्ताव
स्रोतो के अनुसार, हज़रत अली (अ) से पहले हज़रत फ़ातिमा (स) के साथ शादी का प्रस्ताव सहाबा जैसे अबू बक्र, उमर बिन ख़त्ताब ने दिया था। पैग़म्बर (स) ने उनके जवाब मे कहा मेरी बेटी के विवाह का मामला अल्लाह के हाथ मे है।[१] शेख़ तूसी की "अमाली" में हज़रत अली (अ) से एक रिवायत वर्णित हुई है कि जब हज़रत अली (अ) ने पैग़म्बर (स) से फ़ातिमा (स) का हाथ माँगा, तो पैग़म्बर (स) ने फ़ैसला फ़ातिमा की राय पर छोड़ दिया। फ़ातिमा (स) ने जवाब में ख़ामोशी बरती और पैग़म्बर (स) ने उनकी ख़ामोशी को उनकी राज़ी होने की दलील समझा।[२] इसके बाद जिब्राईल पैग़म्बर (स) पर प्रकट हुए और उन्हें फ़ातिमा (स) का विवाह हज़रत अली (अ) से करने का आदेश दिया, क्योंकि ईश्वर चाहता था कि फ़ातिमा (स) अली (अ) के लिए और अली (अ) फ़ातिमा (स) के लिए हों।[३] हज़रत अली (अ) और फ़ातिमा (स) के विवाह के बाद कुछ मुहाजेरीन जिन्होंने पहले फ़ातिमा (स) का हाथ माँगा था, पैग़म्बर (स) से शिकायत करने लगे। पैग़म्बर (स) ने उन्हें जवाब दिया कि यह विवाह ईश्वर के हुक्म से हुआ है।[४]
निकाह का ख़ुत्बा
इब्ने शहर आशोब ने मनाक़िब ए आले अबी तालिब मे लिखा है अली (अ) और फ़ातिमा (स) की शादी के समय पैगंबर मिंम्बर पर जाकर खुत्बा पढ़ा उसके पश्चात लोगो को संबोधित करते हुए फ़रमायाः ईश्वर ने मुझे आदेश दिया है कि मै फ़ातिमा का विवाह अली के साथ कर दूं और इस आदेश को पूरा कर दिया।[५]
हज़रत अली (अ) के जीवनकाल में हज़रत फ़ातिमा (स) के साथ रहते हुए किसी अन्य पत्नी का उल्लेख नहीं मिलता है। शेख़ तूसी की किताब "अल-अमाली" में एक रिवायत के अनुसार, हज़रत फ़ातिमा (स) की ज़िंदगी के दौरान हज़रत अली (अ) का किसी अन्य महिला से विवाह करना हराम (वर्जित) था।[६]
विवाह और बिदाई के बीच का अंतर
कुछ किताबों में वर्णन है कि अली (अ) निकाह के बाद शर्म के मारे पैग़म्बर (स) से अपनी पत्नी को अपने घर ले जाने का अनुरोध नहीं कर पाए। वहीं, पैग़म्बर (स) के लिए भी यह उचित नहीं था कि अली (अ) के अनुरोध किए बिना वे खुद यह बात उठाते। इसी वजह से निकाह के बाद कुछ समय बीत गया और इस अंतराल को कुछ महीनों तक का बताया गया है।[७] आखिरकार अक़ील ने अपने भाई अली (अ) से इसका कारण पूछा और उनकी शर्म के बारे में जानकर, पैग़म्बर (स) से इस मामले को चर्चा करने के लिए तैयार हो गए। उम्मे ऐमन को इस बारे में पता चला और उन्होंने सुझाव दिया कि वे सीधे पैग़म्बर (स) के पास न जाएं बल्कि पहले उम्मे-सलमा से बात करें। उम्मे-सलमा ने जानकारी मिलने पर, पैग़म्बर (स) की अन्य पत्नियों के साथ मिलकर उनसे बात की। पैग़म्बर (स) ने अली (अ) के अनुरोध न करने का कारण जानकर, उन्हें अपने पास बुलाया और उन्हें विवाह का वादा दिया तथा फ़ातिमा (स) के लिए एक घर तैयार करने को कहा।[८]
कुछ विद्वानों ने अली (अ) द्वारा पैग़म्बर (स) से फातिमा (स) को अपने घर ले जाने के अनुरोध के संबंध में अन्य रिवायतें भी वर्णित की हैं।[९]
शादी की तारीख़

इमाम अली (अ) और हज़रत फ़ातिमा (स) की शादी की तारीख़ के संबंध मे मतभेद है:
- निकाह 1 ज़िल हिज्जा को और बिदाई 6 ज़िल हिज्जा को दूसरे हिजरी वर्ष में हुआ था।[१०] "अल-मिस्बाह अल-कफ़्अमी" (9वीं हिजरी शताब्दी में लिखी गई किताब) में भी 1 ज़िल हिज्जा को हज़रत अली (अ) और हज़रत फ़ातिमा (स) के निकाह का दिन बताया गया है।[११] ईरान की इस्लामिक रिपब्लिक के कैलेंडर में इस दिन को "विवाह दिवस (रोज़-ए-इज़्देवाज)" के रूप में नामित किया गया है।
- दूसरी हिजरी के सफ़र महीने के आखिर मे शादी हुई।[१२]
- निकाह रजब के महीने मे और जंगे बद्र से वापसी पर हज़रत अली (अ) ने शादी की।[१३]
- निकाह रमज़ान के महीने मे और बिदाई दूसरी हिजरी ज़िल हिज्जा के महीने मे हुई।[१४]
- बिदाई की तारीख़ हिजरी के तीसरे साल 21 मोहर्रम है।[१५]
- निकाह माहे सफ़र के आख़िर मे और बिदाई हिजरी के दूसरे साल ज़िल हिज्जा मे हुई।[१६]
- निकाह और बिदाई हिजरी के दूसरे साल रबीअ अल अव्वल मे हुई।[१७]
मुहम्मद हादी यूसुफ़ी ग़रवी (1948 ईस्वी), एक इतिहास शोधकर्ता, के अनुसार हज़रत फ़ातिमा (स) और हज़रत अली (अ) के निकाह और बिदाई के बीच लगभग दस महीने का अंतर था। उनका मानना है कि पैग़म्बर (स) ने निकाह की रस्म को जल्दी इसलिए पूरा किया ताकि फ़ातिमा के पहले अन्य विवाह प्रस्तावकों को स्पष्ट जवाब मिल सके। वहीं, विवाह (बिदाई) समारोह में देरी का कारण यह था कि फ़ातिमा (स) शारीरिक रूप से पूरी तरह विकसित हो जाएँ और अन्य महिलाओं के समान स्थिति तक पहुँच जाएँ।[१८]
शादी के समय हज़रत अली (अ) और हज़रत फ़ातिमा (स) की आयु

फ़ातिमा की शादी के समय उनकी उम्र के बारे में मतभेद हैं। सय्यद मोहसिन अमीन (मृत्यु 1371 हिजरी), एक शिया जीवनी लेखक के अनुसार, यह मतभेद उनके जन्म की तारीख और शादी की तारीख को लेकर है। प्रसिद्ध मान्यता के अनुसार, फ़ातिमा का जन्म बेअसत के पांचवें साल में हुआ था, और उनकी शादी हिजरी के पहले, दूसरे या तीसरे साल में हुई थी, इसलिए शादी के समय उनकी उम्र नौ, दस या ग्यारह साल बताई गई है।[१९] हालांकि, कुछ स्रोतों में फ़ातिमा की शादी के समय उम्र 18 साल[२०] और कुछ में पंद्रह साल पांच महीने बताई गई है।[२१]
इसके अलावा, पांचवीं हिजरी शताब्दी की सहाबा-संबंधी किताब अल इस्तिआब में, इमाम अली (अ) की शादी के समय उम्र 21 साल बताई गई है।[२२]
हक़ मेहर और दहेज
- मुख्य लेख:हज़रत फ़ातिमा (स) का दहेज
रिवायतों में हज़रत फ़ातिमा (स) का हक़ मेहर साढ़े बारह औंस,[२३] 500 दिरहम, 480 दिरहम और 400 मिसक़ाल चांदी[२४] का उल्लेख है। शिया मोहद्दिस शहर इब्ने आशोब के अनुसार हक़ मेहर 500 दिरहम है।[२५] जो मेहर शिया समुदाय मे मशहूर है उसको मेहर उस सुन्ना कहते है जोकि 500 दिरहम[२६] निर्धारित हुआ था। जोकि लगभग 1.5 किलोग्राम शुद्ध चांदी के बराबर होता है।[२७]
शेख़ तूसी की किताब अमाली के अनुसार इमाम अली (अ) ने अपने कवच को बेच कर हज़रत फ़ातिमा का हक़ मेहर अदा किया।[२८] पैंगबर (स.) ने उसमे से कुछ दिरहम बिलाल हब्शी को देकर कहा इससे मेरी बेटी फ़ातिमा के लिए अच्छी खुशबु अर्थात इत्र खरीद कर लाओ।[२९] बाक़ी बची हुई रक़म अम्मार यासिर और कुछ सहाबा को देकर फ़रमाया इससे घरेलू चीज़े अर्थात दहेज तैयार करो जिन की मेरी बेटी को आवश्यकता होगी।
हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स) के दहेज के संबंध मे शेख तूसी ने निम्नलिखित चीज़ो का वर्णन अपनी किताब आमाली मे किया है। • कमीज़ जिसका मूल्य 7 दिरहम था • हिजाब जिसका मूल्य 4 दिरहम था • खैबर का बना हुआ अबाया • खजूर के पत्तो से बनी हुई खाट • दो गद्दे, एक खजूर की छाल से और दूसरा भेड़ की ऊन से भरा हुआ • ताइफ़ के बने हुए चमड़े के 4 तकिया • यमन की बनी हुई चटाई • हाथ की चक्की • कपड़े धोने के लिए तांबे का परात • चमड़े की एक मश्क • दूध दुहने के लिए एक बड़ा बर्तन • पानी पीने के लिए बर्तन • लोटा या सुराही जिसे वुज़ू के लिए प्रयोग किया जाता है गोंद चढ़ाया गया था • एक ऊन का पर्दा • हरे रंग का एक बड़ा बर्तन जिसमे तेल, आटा या दूसरी चीज़े रखी जाती है • मिट्टी के दो छोटे छोटे बर्तन[३०] शादी के पश्चात एक जरूरत मंद महिला ने जब हज़रत फ़ातिमा (स) से कुछ मांगा तो आपने अपना शादी का जोड़ा उसे दे दिया।[३१]
वलीमा (भोज) और निवास स्थान
अमाली की रिवायत के अनुसार, पैगंबर (स) और अली (अ) ने दावत ए वलीमा का एहतेमाम किया। पैगंबर (स) ने गोश्त और रोटी, अली (अ) ने तेल और खजूर का प्रबंध किया। पैगंबर ने दावत ए वलीमा के बाद फ़ातिमा (स) का हाथ अली (अ) के हाथो मे देकर दोनो को विदा किया।[३२]
दावत ए वलीमा से संबंधित एक और रिवायत है जिसमे पैगबंर (स) ने बिलाल हब्शी को बुलाकर फ़रमायाः मेरी बेटी की शादी मेरे चचा के बेटे के साथ हो रही है, मै चाहता हूं कि मेरी उम्मत के लिए शादी के दिन खाना (भोज) देना एक सुन्नत हो। इसलिए जाओ एक भेड़, पांच मुद जौ का प्रबंध करो ताकि मुहाजेरीन और अंसार को दावत दूं। बिलाल ने सब तैयार करके रसूल अल्लाह के पास ले लाए। हज़ूर (स) ने खाना अपने सामने रखा। लोग पैगंबर के आदेश से समूह समूह होकर मस्जिद मे दाख़िल हुए और सबने खाना खाया। जब सबने खाना खा लिया तो जो बच गया था उसे आपने मुताबर्रिक किया और बिलाल से फ़रमायाः इस खाने को महिलाओ के पास ले जाओ और कहोः यह खाना खुद भी खाएं और कोई भी अगर उनके पास आए उसे भी इस खाने से दे।[३३]
शादी के कुछ दिन बीतने के पश्चात पैगंबर (स) के लिए फ़ातिमा (स) से दूरी मुश्किल हो गई इसलिए सोचा बेटी और दामाद को अपने ही घर मे जगह दी जाए। हारिस बिन नोमान जोकि आपके सहाबी थे जब वह इस ख़बर से अवगत हुए तो पैगंबर (स) के पास आकर कहने लगे, मेरे सभी घर आपके नज़दीक है। मेरे पास जो कुछ भी है सब आप ही का है। खुदा सौगंध मै चाहता हूं मेरा माल आप ले लें यह इस से अच्छा है कि मेरे पास हो। पैगंबर (स.) ने उसके जवाब मे फ़रमायाः अल्लाह तुम्हे इसका अज्र दे। इस प्रकार हज़रत अली (अ) और फ़ातिमा (स) पैगंबर के पड़ोसी बन गए।[३४]
- यह भी देखें: हज़रत फ़ातिमा (स) का घर
फ़ुटनोट
- ↑ इब्ने सअद, अल तबक़ात उल कुब्रा, 1410 हिजरी, भाग 8, पेज 16; शेख तूसी, अल अमाली, 1414 हिजरी, पेज 40; तबरसी, आलाम उल वरा, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 160-161
- ↑ तूसी, अल अमाली, 1414 हिजरी, पृष्ठ 40।
- ↑ तूसी, अल अमाली, 1414 हिजरी, पृष्ठ 40।
- ↑ याक़ूबी, तारीख़ उल याक़ूबी, दार ए सादिर, भाग 2, पेज 41
- ↑ इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब, 1379 हिजरी, भाग 3, पेज 350
- ↑ शेख़ तूसी, अल अमाली, 1414 हिजरी, पेज 43
- ↑ क़ज़वीनी, फ़ातिमा अल ज़हरा (अ) मिनल महद एला अल लहद, खंड 1, पृष्ठ 137।
- ↑ क़ज़वीनी, फ़ातिमा अल ज़हरा (अ) मिनल महद एला अल लहद, खंड 1, पृष्ठ 137।
- ↑ मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, खंड 43, पृष्ठ 114।
- ↑ इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब, 1379 हिजरी, भाग 3, पेज 357
- ↑ कफ़अमी, अल मिस्बाह, 1405 हिजरी, पेज 514
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- ↑ इब्ने सअद, अल तबक़ात उल कुब्रा, 1410 हिजरी, भाग 8, पेज 18; तबरि, तारीख़ उल उमम वल मुलूक, 1387 हिजरी, भाग 11, पेज 598
- ↑ अरबेली, कश्फ़ उल ग़ुम्मा, 1381 हिजरी, भाग 1, पेज 364
- ↑ इब्ने ताऊस, इक़बाल उल आमाल, 1409 हिजरी, भाग 2, पेज 584
- ↑ मजलिसी, बेहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 19, पेज 192-193
- ↑ मजलिसी, बेहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 19, पेज 193
- ↑ युसूफ़ी ग़रवी, तारीख़ ए तहक़ीक़ी इस्लाम, भाग 2, पेज 250
- ↑ अमीन, आयान उश शिया, 1403 हिजरी, भाग 1, पेज 313
- ↑ तबरी, तारीख अल उमम व अल मुलूक, 1387 शम्सी, खंड 11, पृष्ठ 598।
- ↑ इब्ने अब्दुल बर, अल इस्तीआब फ़िल मारेफात इल असहाब, 1412 हिजरी, भाग 4, पेज 1893
- ↑ इब्ने अब्दुल बर, अल इस्तीआब फ़िल मारेफ़त इल असहाब, 1412 हिजरी, भाग 4, पेज 1893
- ↑ तबरसी, आलाम उल वरा, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 160-161
- ↑ इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब, 1379 हिजरी, भाग 3, पेज 351
- ↑ इब्ने शहर आशोब, मनाक़िब ए आले अबी तालिब, 1379 हिजरी, भाग 3, पेज 351
- ↑ मजलिसी, बिहार उल अनवार, भाग 93, पेज 170
- ↑ मसऊदी, “(पुज़ुहिशी दर बारा ए मेहर उस सुन्ना (मेहर ए मुहम्मदी)”, पेज 114
- ↑ शेख़ तूसी, अल अमाली, 1414 हिजरी, पेज 40
- ↑ शेख़ तूसी, अल अमाली, 1414 हिजरी, पेज 41
- ↑ शेख़ तूसी, अल अमाली, 1414 हिजरी, पेज 41
- ↑ शुस्तरी, शरह ए अहक़ाक़ उल हक़, 1409 हिजरी, भाग 10, पेज 401
- ↑ शेख़ तूसी, अल अमाली, 1414 हिजरी, पेज 42-43
- ↑ युसूफ़ी ग़रवी, मोसूआ तुत तारीख उल इस्लाम, भाग 2, पेज 214
- ↑ शहीदी, जिंदागानी ए फ़ातिमा ज़हरा, पेज 72-73; इब्ने साअद, तबक़ात, भाग 8, पेज 22-23
स्रोत
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- शुस्तरी, नूरुल्लाह बिन शरीफ़ुद्दीन, अहक़ाक़ उल हक़ व इज़हाक़ उल बातिल, क़ुम, किताब खाना ए उमीमी आयतुल्लाह मरअशी नजफ़ी, 1409 हिजरी
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- तबरी, मुहम्मद बिन जुरैर, तारीख उल उमम वल मुलूक, तहक़ीक़ मुहम्मद अबुल फ़ज़्ल इब्राहीम, बैरूत, दार उत तुरास, दूसरा प्रकाशन, 1387 हिजरी /1967
- कफ़अमी, इब्राहीम बिन अली, अल मिस्बाह, क़ुम, दार उल रज़ी, दूसरा प्रकाशन, 1405 हिजरी
- मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार उल अनवार, बैरूत, दार ए एहया ए तुरास उल अरबी, दूसरा प्रकाशन, 1403 हिजरी
- मसऊदी, अब्दुल हादी, “(पुज़ुहिशी दर बारा ए मेहर उस सुन्ना (मेहर ए मुहम्मदी)”, दर मज्मूआ ए तहकीम ए ख़ान्वादे अज़ निगाहे क़ुरआन ओ हदीस, क़ुम, दार उल हदीस, दूसरा प्रकाशन, 1389 शम्सी
- याक़ूबी, तारीख उल याक़ूबी, बैरूत, दार ए सादिर
- युसूफ़ी ग़रवी, मुहम्मद हादी, तारीख ए तहक़ीक़ ए इस्लाम, मोसूआ तुत तारीख उल इस्लाम, तरजुमा हुसैन अली अरबी, क़ुम, इंतेशारात ए मोअस्सेसा ए इमाम ख़ुमैनी, 1383 शम्सी
