उस्मान का हत्याकांड

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उस्मान का हत्याकांड (अरबी: حادثة مقتل عثمان) 35 हिजरी में मुस्लमानों के तीसरे ख़लीफ़ा उस्मान बिन अफ्फान के खिलाफ़ लोगों के विद्रोह को संदर्भित करता है, जिसके कारण उनकी हत्या हुई। मिस्र के शासन से अम्र बिन आस सहमी की बर्खास्तगी और उसके स्थान पर अब्दुल्लाह बिन अबी सराह की नियुक्ति के जवाब में मिस्र के लोगों द्वारा यह विद्रोह हुआ। उस्मान का शासन करने का तरीका अपने उमय्या रिश्तेदारों को महत्वपूर्ण सरकारी पदों के साथ-साथ बैतुल माल (राजकोष) से अधिक देना पैगंबर (स) के साथियों सहित लोगों में असंतोष और विरोध का कारण बना। मिस्र के प्रदर्शनकारी विरोध करने के लिए मदीना गए और इमाम अली (अ) की मध्यस्थता से चीजों को सुधारने की उस्मान की प्रतिबद्धता के साथ मिस्र लौट आए, लेकिन रास्ते में उन्हें मिस्र के गवर्नर को उस्मान का पत्र मिला, जिसमें उन्हें मारने और क़ैद करने के लिए आदेश दिया था। इसलिए वे मदीना लौट कर उन्होने उस्मान से इस्तीफ़े की मांग की, लेकिन उस्मान उनके अनुरोध पर सहमत नहीं हुए। उन्होंने उस्मान के घर के घेराबंदी की और चालीस दिनों की घेराबंदी के बाद मार डाला और मुस्लिम क़ब्रिस्तान में दफ़्न होने से रोक दिया गया।

उस्मान की हत्या के कारण मुसलमानों के बीच संघर्ष और गृह युद्ध शुरू हो गए। बनी हाशिम और बनी उमय्या के बीच संघर्ष फिर से भड़क गया और आयशा, तल्हा और जुबैर ने उस्मान के रक्तपात के बहाने जंगे जमल शुरू कर दी। इसलिए इस घटना को इस्लामिक जगत में देशद्रोह की शुरुआत माना गया है।

इमाम अली (अ) ने उस्मान को हालाकि ग़लत माना, लेकिन आप (अ) उसकी हत्या करने से सहमत नहीं थे, इसलिए आप (अ) ने इमाम हसन (अ) और अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर जैसे लोगों को उस्मान के घर की रक्षा करने का आदेश दिया।

इस्लाम के इतिहास में महत्व और स्थान

उस्मान की हत्या को इस्लाम के पैगंबर के बाद युग की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक माना जाता है। कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, उनकी हत्या के बाद, इस्लामी इतिहास ने एक नए चरण में प्रवेश किया।[१] साथ ही, उस्मान की हत्या के कई परिणाम हुए जोकि बाद की घटनाओं के गठन में प्रभावशाली थे। सुन्नी इतिहासकार इब्ने हजर अस्क़लानी (मृत्यु 852 हिजरी) ने उस्मान की हत्या को इस्लामी जगत में राजद्रोह की शुरुआत माना।[२]

घटना का वर्णन

सूत्रों के अनुसार, मिस्र की सरकार से अम्र बिन आस को हटाने और उसके स्थान पर अब्दुल्लाह बिन अबि सराह की नियुक्ति के बाद, लगभग छह सौ मिस्रवासी विरोध करने के लिए मदीना गए, और यह उस्मान के खिलाफ विरोध की शुरुआत थी।[३] कुछ अन्य लोगों ने बैतुल-माल (राजकोष) से खलीफा की बख़्शिश को उसके खिलाफ़ विद्रोह की शुरुआत का कारण माना है।[४] मदीना जाने के बाद, विद्रोहियो ने पत्र लिख कर दूसरों को मदीना बुलाया।[५]

मदीना में विद्रोहियो का आगमन और उस्मान का पश्चाताप

जब विरोधी मदीना के आसपास पहुंचे, तो उस्मान ने उन्हें मिस्र वापस करने के लिए इमाम अली (अ) का सहारा लिया।[६] सूत्रों के अनुसार, उस्मान ने विद्रोहियो से वादा किया कि निर्वासित लोगों को वापस बुलाया जाएगा, राजकोष के वितरण में न्याय का ध्यान रखा जाएगा और मामलों में अमानतदार और मज़बूत लोगों को नियुक्त किया जाएगा।[७] उस्मान ने मिम्बर पर जाकर अपने किए हुए कामो से पश्चाताप (तौबा) की और अपने किए हुए वादे पर लोगो को गवाह बनाया[८] उसके बाद प्रदर्शनकारी अपने शहरों को लौट गए।[९]

विद्रोहियो का मदीना वापस पलटना

विद्रोहियो ने मदीना से वापसी पर उन्होंने ख़लीफ़ा के ग़ुलाम को एक पत्र छिपाते हुए पाया।[१०] पत्र खलीफा द्वारा सील किया गया था उस पत्र मे विद्रोहियों को मारने और कैद करने का आदेश दिया गया था। विद्रोही पत्र प्राप्त करने के बाद मदीना लौट आए।[११] सूचित होने के बाद कुफी भी मदीना लौट आए।[१२] विद्रोही इमाम अली (अ) के पास गए और उनके साथ उस्मान के पास गए। उस्मान ने क़सम खाई कि न तो उसने कोई पत्र लिखा हौ और न ही इसके बारे में जानता है।[१३] लेकिन विद्रोहियों को विश्वास नहीं हुआ और उन्होंने कहा कि उस्मान को खिलाफ़त से इस्तीफा दे देना चाहिए[१४] उस्मान ने उनकी बातों को स्वीकार नहीं किया, हालाँकि वह पश्चाताप करने के लिए तैयार है। विद्रोहीयो ने पिछले पश्चाताप करने और उसे तोड़ने का ज़िक्र करते हुए कहा कि वे खिलाफ़त से उस्मान के इस्तीफे से ही संतुष्ट होंगे, अन्यथा इस राह मे या तो मर जाएंगे या उस्मान को मार देंगे।[१५]

उस्मान के घर की घेराबंदी

विद्रोहीयो ने उस्मान के घर को घेर लिया और खाना-पानी घर में प्रवेश करने से रोक दिया।[१६] घेराबंदी करने वालों में मिस्र, बसरा, कूफ़ा और मदीना के कुछ लोग शामिल थे।[१७] उस्मान के घर की घेराबंदी चालीस दिनों तक चली[१८] इस अवधि के दौरान, उस्मान ने मुआविया और इब्ने आमिर को एक पत्र लिखा और उनसे मदद मांगी।[१९] इमाम अली (अ) के आदेश से इमाम हसन (अ) ने अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर और मरवान बिन हकम जैसे लोगों के साथ उस्मान के घर की रक्षा की।[२०]

उस्मान ने इमाम अली (अ), तल्हा, जुबैर और पैगंबर की पत्नियों से उनके लिए पानी लाने का आग्रह किया।[२१] इमाम अली (अ) और पैगंबर की पत्नी उम्मे हबीबा उस्मान के लिए पानी लाने की कोशिश करने वाले पहले लोग थे, लेकिन विद्रोहियों ने उन्हें रोक दिया।[२२] खाना-पानी के प्रवेश को रोकने के बाद, इमाम अली (अ) ने विद्रोहियों की निंदा की और उनके कार्यों को मोमिनीन या यहां तक कि काफ़िरो के कार्यों के समान नहीं माना और कहा कि आप उनकी नज़रबंदी और हत्या को किस तर्क के आधार पर जायज़ मानते हो?[२३] हालांकि कुछ समूह ने गुप्त रूप से खलीफ़ा तक पानी पहुंचाया।[२४]

उस्मान की हत्या और दफ़्न

उस्मान की हत्या के बारे में विभिन्न प्रकार के कथन पाए जाते हैं।[२५] कुछ कथनो के अनुसार, एक समूह ने घर पर हमला किया और घर के लोगों ने उन्हें बाहर निकाल दिया। उन्होंने फिर से हमला किया, इस हमले में उस्मान की हत्या हो गई[२६] और उनकी पत्नी नाएला की उंगलियां कट गईं।[२७]

उस्मान की हत्या 18 ज़िल हिज्जा 35 हिजरी बताई गई है।[२८] उस्मान का मृत्यु दिन "यौम उद-दार की घटना" के नाम से मशहूर है।[२९] तबरी की रिपोर्ट के अनुसार उस्मान का शव तीन दिनो तक पड़ा रहा। उसके बाद कुछ लोगो उसके जनाज़े को बक़ीअ् लेकर गए, लेकिन कुछ लोगों ने उसे बक़ीअ में दफ़्नाने से रोक दिया, इसलिए यहूदी कब्रिस्तान हुश्शे कोकब में दफनाया गया, और बाद में मुआविया ने इस जगह को बक़ीअ में शामिल कर दिया।[३०]

असंतोष और विद्रोह के क्षेत्र

कुछ लोगो का मानना है कि उस्मान के खिलाफ़ असंतोष और विद्रोह अचानक और एक बार का नहीं था, बल्कि विभिन्न कारक समय के साथ विरोध का कारण बने।[३१] ये कारक ज्यादातर खलीफा के प्रदर्शन से संबंधित थे।[३२] जैसे:

बनी उमय्या को जिम्मेदारियां सौंपना

इतिहासकार रसूल जाफ़रयान (जन्म 1343 शम्सी) के अनुसार, उस्मान ने उमय्या को महत्वपूर्ण सरकारी पद सौंपे और व्यावहारिक रूप से सारी शक्ति उनके हाथों में आ गई।[३३] कहा गया है कि बनी उमय्या को ज़िम्मेदारियों को सौंपने में उस्मान के प्रदर्शन को एक तरह से "उमय्या सरकार बनाने" में संदर्भित किया जा सकता है।[३४] ऐतिहासिक स्रोत मे उस्मान के कुछ कबीलों की ज़िम्मेदारियाँ इस प्रकार सूचीबद्ध की गई हैं:

नाम वंश और उस्मान के साथ संबंध ज़िम्मेदारी
वलीद बिन अक़्बा उस्मान का सौतेला भाई कूफ़ा का गर्वनर[३५]
अब्दुल्लाह बिन आमिर उस्मान का ममेरा भाई बसरा का गर्वनर[३६]
अब्दुल्लाह बिन अबी सराह उस्मान का रज़ाई भाई मिस्र का गर्वनर[३७]
मुआविया बिन अबी सुफ़यान बनी उमय्या शाम का गर्वनर[३८]
मरवान बिन हकम चचेरा भाई और दामाद कातिब[३९]
सईद बिन आस बनी उमय्या क़ूफा का गर्वनर[४०]

महत्वपूर्ण पदों पर उस्मान के रिश्तेदारों की नियुक्ति और उनकी शासन नीति के कारण भी बहुत से मुसलमानों ने विरोध किया।[४१] क्योंकि अब्दुल्लाह बिन आमिर का धर्मत्याग (मुरतद होने) का इतिहास था।[४२] वलीद बिन अक़्बा को कुरान में फ़ासिक़ कहकर संबोधित किया गया।[४३] मरवान बिन हकम को उसके पिता के साथ पैगंबर (स) द्वारा मदीना से निष्कासित कर दिया गया था, लेकिन उस्मान ने उन्हें वापस मदीना बुला लिया।[४४]

बैतुल-माल से दान

"तीसरा (उस्मान) सत्ता में आया.. और उसका पैतृक वंश (बनी उमय्या) उसके साथ उठा और बैतुल मल को एक ऊंट जो ताज़े वसंत के पौधे को उत्सुकता से खा जाता है की तरह लूटना शुरू कर दिया, और उसके कार्यों ने उसका काम समाप्त कर दिया।

नहजुल बलाग़ा, सुबही सालेही, नामा 28

ख़लीफ़ा बनने के बाद उस्मान बहुत अमीर हो गया था।[४५] उस्मान की सबसे महत्वपूर्ण मुशकिल बैतुल-माल से दान देना है।[४६] उसने उमय्या को बहुत सारी संपत्ति दी।[४७] उदाहरण के लिए अफ़्रीका से जो ख़ुम्स आया था मरवान बिन हकम[४८] और दूसरे समय में उसने इसे अब्दुल्लाह बिन अबी सराह को दे दिया।[४९] और इसी तरह हारिस बिन हकम,[५०] हकम बिन अबिल आस,[५१] अब्दुल्लाह बिन खालिद बिन असीद और ... को बहुत सारी संपत्ति दे दी।[५२]

बैतुल-माल (राजकोष) से दान करना जो उस्मान से पहले खलीफाओं के कार्यों के खिलाफ था,[५३] ने समाज पर नकारात्मक प्रभाव डाला और कई लोगों को बदगुमान बना दिया।[५४]

अब्दुल्लाह बिन सबा

कुछ सुन्नी इतिहासकारों का मानना है कि अब्दुल्लाह बिन सबा ने उस्मान के खिलाफ प्रचार और विद्रोह पैदा करने में एक भूमिका निभाई।[५५] दूसरी ओर, शिया[५६] और सुन्नी विद्वानों के एक समूह[५७] ने अब्दुल्लाह बिन सबा नाम के व्यक्ति के अस्तित्व पर संदेह किया है। इसके अलावा, रसूल जाफ़रयान के अनुसार, इस्लामी समाज इतना कमजोर नहीं था कि मुस्लिम खलीफ़ा के खिलाफ़ एक नए मुस्लिम यहूदी द्वारा विद्रोह किया जाए।[५८]

सहाबीयो का प्रदर्शन

सुन्नी शोधकर्ता ताहा हुसैन (मृत्यु 1973) का मानना है कि उस्मान की हत्या में सहाबा मुहाजिर और अंसार में से कोई भी शामिल नहीं था; उनमें से कुछ उस्मान के रवय्ये के खिलाफ थे, लेकिन उन्हें चुप रहने के लिए मजबूर किया गया, और कुछ दूसरों ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया, और कुछ मदीना छोड़ गए।[५९] वे यह भी मानते हैं कि घेराबंदी और उस्मान की हत्या के संबंध में सहाबीयो की भूमिका के बारे में सूत्रों में जो कहा गया है वह ज़ईफ़ है।[६०] इस तरह के विश्लेषण को इस प्रकार कह सकते है क्योंकि सुन्नी सहाबीयो की अदालत में विश्वास करते हैं और उस्मान की हत्या में उनकी भूमिका इस विश्वास के खिलाफ़ है।[६१] हालांकि, विभिन्न स्रोतों के अनुसार, कुछ सहाबा उस्मान के खिलाफ विद्रोह में शामिल थे। उदाहरण के लिए, हाशिम बिन अत्बा ने उस्मान के हत्यारों को मुहम्मद (स) के सहाबा, उनके बच्चों आदि के रूप में पेश किया।[६२] उस्मान की हत्या पश्चात उस्मान की पत्नि ने मुआविया को पत्र लिखा जिसमें वह मदीना के लोगों को उन लोगों के रूप में मानती हैं जिन्होंने उस्मान को उनके घर में घेर लिया था।[६३]

इमाम अली (अ)

इमाम अली (अ) ने एक ओर उस्मान को " حَمَّالُ الْخَطَایا हम्मालुल ख़ताया अर्थात बहुत अधिक पाप करने वाला व्यक्ति " कहा[६४] और इस बात पर एतेकाद नही रखते कि उस्मान मज़लूम मारा गया।[६५] दूसरी ओर, इमाम (अ) उस्मान की हत्या के खिलाफ़ थे और खुद को सबसे निर्दोष लोगों के रूप में परिचित कराते थे।[६६] इसके अलावा, इमाम अली (अ) ने विद्रोहियों को सलाह दी और उनकी गलतियों को इंगित किया।[६७]

उस्मान के घर की घेराबंदी के दौरान, कुछ लोगों ने इमाम अली (अ) को मदीना छोड़ने का सुझाव दिया ताकि अगर उस्मान को मार दिया जाए, तो वो (इमाम अली) शहर में न हो। लेकिन इमाम अली (अ) ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया।[६८]

तल्हा

मिस्र के इतिहासकार ताहा हुसैन (मृत्यु 1973) तल्हा को उन लोगों में से मानते हैं जिन्होंने विद्रोहियों के लिए अपनी इच्छा को नहीं छुपाया, बल्कि उनमें से एक समूह को संपत्ति दे दी।[६९] इसके अलावा, कुछ स्रोतों के अनुसार, तल्हा के सुझाव पर उस्मान के घर पानी और खाना ले जाने से रोका गया।[७०]

मुआविया

किसने उसे मारने का रास्ता प्रदान किया; अली ने तो उस्मान की सहायता की ताकि वह अपने स्थान पर बना रहे। या मुआविया जिससे उस्मान ने सहायता मांगी परन्तु उसने सहायता करने में देरी की, और सेना उस पर टूट पड़ी।

नहजुल बलाग़ा, सुबही सालेही, खुत्बा 3

जब उस्मान की घेराबंदी की जा रही थी, तो उसने मुआविया को एक पत्र लिखा और उससे मदद मांगी। मुआविया ने बारह हजार लोगों की सेना भी भेजी। लेकिन उसने उन्हें अगला आदेश जारी होने तक सीरिया की सीमाओं में रहने का आदेश दिया।[७१] इस सेना ने मदीना पहुंचने और ख़लीफ़ा की मदद करने में लापरवाही की, और जब सीरिया के दूत उस्मान के पास उसे सूचित करने गए, तो उस्मान ने उससे कहा कि तुम प्रतीक्षा कर रहे हैं। तुम अपने आप को मेरे खून का संरक्षक बनाने के लिए मेरी हत्या कर रहे हो।[७२]

इमाम अली (अ) ने उस्मान की हत्या के लिए मुआविया को दोषी ठहराया और जब मुआविया ने इमाम अली (अ) पर उस्मान की हत्या करने का आरोप लगाया, तो उन्होंने घेराबंदी के दौरान उस्मान की मदद करने में मुआविया की विफलता और उसके खिलाफ़ अपने स्वयं के बचाव का उल्लेख किया।[७३]

कुछ दूसरे सहाबीयो ने भी मुआविया को संबोधित किया और उन्हें उस्मान की हत्या के दोषियों में से एक माना, कि वह उनका समर्थन करने में विफल रहे और उस्मान की हत्या की प्रतीक्षा कर रहे थे।[७४]

आयशा

मुहम्मद बिन जुरैर तबरी के अनुसार, आयशा ने उस्मान के बारे में कहा, " اُقْتُلُوا نَعْثَلا فَقَدْ کفَر उक्तोलु नाअसला[नोट १] फ़क़्द कफर; उस्मान को मार डालो, वह एक नास्तिक है"।[७५]

जब विद्रोही मदीना में थे, मरवान बिन हकम ने आयशा को ख़लीफ़ा और विद्रोहियों के बीच मध्यस्थता करने के लिए कहा। आयशा ने हज यात्रा को एक बहाना बताया और कहा कि वह उस्मान को टुकड़ों में काटकर समुद्र में फेंकना चाहती है।[७६] उस्मान की मृत्यु के बाद, आयशा ने अपना स्थान बदल दिया और दावा किया कि वह उसका ख़ून बहा चाहती है।[७७] साद बिन अबी वक़ास द्वारा इब्ने आस को लिखे गए पत्र में कहा गया है: उस्मान को उस तलवार से मारा गया था। जिसे आयशा ने खींचा और तल्हा ने उसके धार तेज की थी।[७८] हालांकि, उस्मान की हत्या और अली (अ) की बैअत के बाद, आयशा वापस मक्का चली गई और लोगों को संबोधित किया और इमाम अली (अ) को उस्मान की हत्या का जिम्मेदार ठहराया।[७९] आयशा के दृष्टिकोण मे इस बदलाव को देखते हुए पैगंबर (स) की पत्नी उम्मे सलमा ने निंदा की कि आप लोगों को उस्मान को मारने के लिए उकसा रहे थे और अब आप आज ऐसा कह रही हैं।[८०] आयशा ने जवाब दिया: मैं जो कह रहा हूं वह उस समय की तुलना में बेहतर है।[८१]

परिणाम

उस्मान की हत्या के कुछ परिणाम निम्नलिखित हैं:

  • इमाम अली (अ) के खिलाफ़त के दौरान युद्धों के गठन की नींव; इतिहासकारों के अनुसार, जमल की लड़ाई आयशा, तल्हा और ज़ुबैर द्वारा उस्मान का खून बहा चाहने के बहाने शुरू की गई थी।[८२] बेशक, इमाम अली (अ) ने उन्हें एक पत्र में उस्मान की हत्या में अपनी भूमिका न होने के बारे में और उस्मान का खून बहा चाहने में उनके औचित्य की कमी के संबंध मे बताया।[८३] इमाम अली (अ) ने तल्हा और ज़ुबैर के बारे में भी कहा कि वे उस अधिकार की मांग कर रहे हैं जिसे उन्होंने छोड़ दिया और वे उस्मान के खून का बदला लेने को बहाने के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं जबकि उन्होने स्वयं इसे बहाया हैं।[८४]
  • उमय्या और हाशमियों के बीच विवाद का भड़कना: उमय्या ने अरबों के बीच अपने वर्चस्व और शक्ति को बहाल करने के लिए उस्मान की हत्या को एक साधन के रूप में इस्तेमाल किया।[८५] उन्होंने खुद को उस्मान के खून का खूनबहा और अली (अ) को अपराधी के रूप परिचित कराया। रसूल जाफ़रयान के अनुसार उस्मान की हत्या[८६] मुआविया के लिए सबसे अधिक फायदेमंद थी।[८७] उस्मान की हत्या के बाद, वह मिंबर पर गया और खुद को उस्मान के खून का ख़ून बहा बताया।[८८] और नाएली की कटी हुई उंगलीयां और उस्मान की कमीज़ सीरिया के लोगों को भड़काने का बहाना बन गईं।[८९]
  • नासेबिगरी का गठनः ऐसा कहा जाता है कि नासेबिगरी उस्मान की हत्या के साथ शुरू हुई और उमय्या सरकार में इसे औपचारिक रूप दिया गया।[९०]

संबंधित लेख

नोट

  1. नअसल एक लंबी दाढ़ी वाले यहूदी का नाम था उस्मान की तुलना उससे की थी, और यह अभिव्यक्ति उस्मान के लिए एक उपनाम बन गई। (इब्ने क़तीबा, अल-इमामा वस सियासा, 1410 हिजरी, भाग 1, पेज 62)

फ़ुटनोट

  1. अल-ग़बान, फ़ितनतो मक़्तले उस्मान बिन अफ़्फ़ान, 1419 हिजरी, भाग 1, पेज 238
  2. इब्ने हजर, अल-असाबा, 1415 हिजरी, भाग 4, पेज 379
  3. इब्ने कसीर, अल-बिदाया वन-निहाया, 1407 हिजरी, भाग 7, पेज 170
  4. इब्ने असीर, अलकामिल, 1385 हिजरी, भाग 3, पेज 167
  5. इब्ने ख़लदून, तारीखे इब्ने खलदून, 1408 हिजरी, भाग 2, पेज 594
  6. इब्ने कसीर, अल-बिदाया वन-निहाया, 1407 हिजरी, भाग 7, पेज 170-171
  7. शेख तूसी, अलअमाली, 1414 हिजरी, पेज 713 ज़हबी, तारीखे इस्लाम, 1409 हिजरी, भाग 3, पेज 443; ख़लीफ़ा, तारीख़े ख़लीफ़ा, 1415 हिजरी, पेज 99
  8. इब्ने कसीर, अल-बिदाया वन-निहाया, 1407 हिजरी, भाग 7, पेज 171-172
  9. इब्ने कसीर, अल-बिदाया वन-निहाया, 1407 हिजरी, भाग 7, पेज 170-171
  10. इब्ने असीर, अलकामिल, 1385 हिजरी, भाग 3, पेज 168
  11. ज़हबी, तारीखे इस्लाम, 1409 हिजरी, भाग 3, पेज 442-443
  12. इब्ने ख़लदून, तारीखे इब्ने खलदून, 1408 हिजरी, भाग 2, पेज 599
  13. ज़हबी, तारीखे इस्लाम, 1409 हिजरी, भाग 3, पेज 442-443
  14. इब्ने ख़लदून, तारीखे इब्ने खलदून, 1408 हिजरी, भाग 2, पेज 599
  15. इब्ने असीर, अलकामिल, 1385 हिजरी, भाग 3, पेज 169
  16. इब्ने असीर, अलकामिल, 1385 हिजरी, भाग 3, पेज 172
  17. इब्ने असीर, असादुल ग़ाबा, 1409 हिजरी, भाग 3, पेज 490
  18. इब्ने असीर, अलकामिल, 1385 हिजरी, भाग 3, पेज 172
  19. इब्ने असीर, अलकामिल, 1385 हिजरी, भाग 3, पेज 170
  20. इब्ने अब्दुल बिर, अल-इस्तिआब, 1412 हिजरी, भाग 3, पेज 1046
  21. इब्ने असीर, अलकामिल, 1385 हिजरी, भाग 3, पेज 173
  22. तिबरी, तारीख उल उमम वल मुलूक, 1387 हिजरी, भाग 4, पेज 386
  23. तिबरी, तारीख उल उमम वल मुलूक, 1387 हिजरी, भाग 4, पेज 386
  24. इब्ने असीर, अलकामिल, 1385 हिजरी, भाग 3, पेज 174
  25. ग़रीब, ख़िलाफते उस्मान बिन अफ़्फ़ान, काहिरा, पेज 149
  26. इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 2, पेज 426
  27. इबने तक़्तक़ी, अल-फ़ख़्री, 1418 हिजरी, पेज 104
  28. इब्ने साद, अल-तबक़ात उल-कुबरा, 1410 हिजरी, भाग 3, पेज 23
  29. इब्नुल तक़्तक़ी, अल-फ़ख़्री, 1418 हिजरी, पेज 104
  30. तिबरी, तारीख उल उमम वल मुलूक, 1387 हिजरी, भाग 4, पेज 413
  31. ग़रीब, ख़िलाफते उस्मान बिन अफ़्फ़ान, काहिरा, पेज 103
  32. अल-शेख, अस्बाब उल फ़ित्नते फ़ी एहदे उस्मान, पेज 455
  33. जाफ़रयान, तारीखे ख़ुलफ़ा, 1380 शम्सी, पेज 144
  34. बख़्तियारी, साख़तारे सियासी हुकूमते उस्मान, पेज 65
  35. दैनूरी, अल-अखबारुत तुवाल, 1368 शम्सी, पेज 139
  36. दैनूरी, अल-अखबारुत तुवाल, 1368 शम्सी, पेज 139
  37. दैनूरी, अल-अखबारुत तुवाल, 1368 शम्सी, पेज 139
  38. ख़लीफ़ा, तारीख़े ख़लीफ़ा, 1415 हिजरी, पेज 106
  39. ख़लीफ़ा, तारीख़े ख़लीफ़ा, 1415 हिजरी, पेज 106
  40. इब्ने अब्दुल बिर, अल-इस्तिआब, 1412 हिजरी, भाग 2, पेज 632
  41. ग़रीब, ख़िलाफते उस्मान बिन अफ़्फ़ान, काहिरा, पेज 105
  42. ग़रीब, ख़िलाफते उस्मान बिन अफ़्फ़ान, काहिरा, पेज 106
  43. इब्ने अब्दुल बिर, अल-इस्तिआब, 1412 हिजरी, भाग 4, पेज 1553
  44. इब्ने अब्दुल बिर, अल-इस्तिआब, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 359
  45. अल-शेख, अस्बाब उल फ़ित्नते फ़ी एहदे उस्मान, पेज 455
  46. याक़ूबी, तारीख़े याक़ूबी, बैरूत, भाग 2, पेज 173
  47. इब्ने कसीर, अल-बिदाया वन-निहाया, 1407 हिजरी, भाग 7, पेज 171
  48. बलाज़ुरी, अंसाब उल अशराफ़, 1417 हिजरी, भाग 5, पेज 580
  49. ग़रीब, ख़िलाफते उस्मान बिन अफ़्फ़ान, काहिरा, पेज 156
  50. बलाज़ुरी, अंसाब उल अशराफ़, 1417 हिजरी, भाग 5, पेज 541
  51. मुक़द्देसी, अलबदआ वत तारीख, पूरसईद, भाग 5, पेज 200
  52. इब्नुल तक़्तक़ी, अल-फ़ख़्री, 1418 हिजरी, पेज 102-103
  53. इब्नुल तक़्तक़ी, अल-फ़ख़्री, 1418 हिजरी, पेज 102-103
  54. अल-शेख, अस्बाब उल फ़ित्नते फ़ी एहदे उस्मान, पेज 455
  55. इब्ने कसीर, अल-बिदाया वन-निहाया, 1407 हिजरी, भाग 7, पेज 167; इब्ने ख़लदून, तारीखे इब्ने खलदून, 1408 हिजरी, भाग 2, पेज 587
  56. देखेः अस्करी, अब्दुल्लाह बिन सबा वा असातीर अख़री, 1375 हिजरी
  57. ताहा हुसैन, अल-फ़ित्नातुल कुबरा, 2012 ई, भाग 2, पेज 102
  58. जाफ़रयान, तारीखे खुलफ़ा, 1380 शम्सी, पेज 156
  59. हुसैन, अली वा फ़ित्ना बुजुर्ग उस्मान, पेज 45
  60. अल-ग़बान, फ़ितनतो मक़्तले उस्मान बिन अफ़्फ़ान, 1419 हिजरी, भाग 1, पेज 237
  61. अल-ग़बान, फ़ितनतो मक़्तले उस्मान बिन अफ़्फ़ान, 1419 हिजरी, भाग 1, पेज 116
  62. तिबरी, तारीख उल उमम वल मुलूक, 1387 हिजरी, भाग 5, पेज 63
  63. इब्ने जौज़ी, अल-मुंतज़म, 1412 हिजरी, भाग 5, पेज 61
  64. सक़फ़ी, अल-ग़ारात, 1395 हिजरी, भाग 1, पेज 26
  65. नस्र बिन मुज़ाहिम, वक़अतो सिफ़्फ़ीन, 1404 हिजरी, पेज 302
  66. नहजुल बलाग़ा, सुबही सालेही, नामा 6
  67. देखेः इब्ने असीर, अलकामिल, 1385 हिजरी, भाग 3, पेज 173
  68. मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 31, पेज 487; बलाज़ुरी, अंसाब उल अशराफ़, 1417 हिजरी, भाग 5, पेज 568
  69. हुसैन, अली वा फ़ित्ना बुजुर्ग उस्मान, पेज 45
  70. इब्ने क़तीबा, अल-इमामा वस सियासा, 1410 हिजरी, भाग 1, पेज 57
  71. याक़ूबी, तारीखे याकूबी, बैरूत, भाग 2, पेज 175
  72. याक़ूबी, तारीखे याकूबी, बैरूत, भाग 2, पेज 175
  73. नहजुल बलाग़ा, सुबही सालेही, नामा 28
  74. देखेः जाफ़रयान, तारीखे ख़ुलफ़ा, 1380 शम्सी, पेज 174-175
  75. तिबरी, तारीख उल उमम वल मुलूक, 1387 हिजरी, भाग 4, पेज 459
  76. याक़ूबी, तारीखे याकूबी, बैरूत, भाग 2, पेज 175
  77. इब्ने ख़लदून, दीवान उल मुब्तदा वल खबर, 1408 हिजरी, भाग 2, पेज 607
  78. अब्दुल मक़्सूद, अल-इमाम अली इब्ने अबी तालिब, मकतब तुल इरफ़ान, भाग 2, पेज 236
  79. अब्दुल मक़्सूद, अल-इमाम अली इब्ने अबी तालिब, मकतब तुल इरफ़ान, भाग 2, पेज 267
  80. इब्ने आसम, अल-फ़ुतूह, 1411 हिजरी, भाग 2, पेज 237
  81. तिबरी, तारीख उल उमम वल मुलूक, 1387 हिजरी, भाग 4, पेज 459
  82. देखेः इब्ने असीर, अलकामिल, 1385 हिजरी, भाग 3, पेज 205-208
  83. नहजुल बलाग़ा, सुबही सालेही, नामा 54
  84. नहजुल बलाग़ा, सुबही सालेही, नामा 22
  85. ग़रीब, ख़िलाफते उस्मान बिन अफ़्फ़ान, काहिरा, पेज 165
  86. ग़रीब, ख़िलाफते उस्मान बिन अफ़्फ़ान, काहिरा, पेज 152
  87. जाफ़रयान, तारीखे खुलफ़ा, 1380 शम्सी, पेज 187
  88. नस्र बिन मुज़ाहिम, वक़अतो सिफ़्फ़ीन, 1404 हिजरी, पेज 81
  89. इब्नुल तक़्तक़ी, अल-फ़ख़्री, 1418 हिजरी, पेज 104
  90. कौसरी, बररसी रीशेहाए तारीखे नासेबिगिरी, पेज 99
  1. नहजुल बलाग़ा, सुबही सालेही, खुत्बा 3
  2. नहजुल बलाग़ा, सुबही सालेही, नामा 28

स्रोत

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  • ग़रीब, मामून, ख़िलाफ़ते उस्मान बिन अफ़्फ़ान, क़ाहिरा, मरकज उल किताब लिन नश्र
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  • मुकद्देसी, मुताहर बिन ताहिर, अलबदा वत तारीख, बूर सईद, मकतब तुस सकाफा अल दीनीया
  • नस्र बिन मुज़ाहिम, वकअतो सिफ़्फ़ीन, संशोधनः अब्दुस सलाम मुहम्मद हारू, क़ुम, मकतबा आयतुल्लाह मरअशी अल नजफी, दूसरा प्रकाशन, 1404 हिजरी
  • नहजुल बलाग़ा, शोधः सुबही सालेह, क़ुम, हिजरत, पहला प्रकाशन, 1414 हिजरी
  • याक़ूबी, अहमद बिन अबी याक़ूब, तारीखे अल याक़ूबी, बैरूत, दारे सादिर, पहला प्रकाशन