आय ए लैलातुल मबीत

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आय ए लैलातुल मबीत
आयत का नामआय ए लैलातुल मबीत और शिरा
सूरह में उपस्थितसूर ए बक़रा
आयत की संख़्या207
पारा2
शाने नुज़ूललैलातुल मबीत में इमाम अली (अ) का पैग़म्बर (स) के बिस्तर पर सोना
नुज़ूल का स्थानमदीना
विषयएतेक़ादी
अन्यइमाम अली (अ) की फ़ज़ीलतों में से एक

"आय ए लैलातुल मबीत" या "आय ए शिरा" (अरबीः آیۃ لیلۃ المبیت) (सूरा ए बक़रा आयत न. 207) लैलातुल मबीत में हज़रत अली (अ) की फ़िदाकारी के बारे में नाज़िल हुई है, जो पैगंबर (स) के जीवन को बचाने के लिए उनके बिस्तर पर सोए थे । इस आयत में उन लोगों की प्रशंसा की गई है जो अल्लाह की खुशनूदी प्राप्त करने के बदले अपने प्राणों की आहुति देने को तैयार हैं।

आयत का पाठ और अनुवाद

सूरा ए बक़रा की आयत न 207 जोकि आय ए शिरा अथवा इश्तिरा के नाम से प्रसिद्ध है।

अनुवादः और लोगों में कोई ऐसा है, जो अल्लाह की ख़ुशनूदी के लिए अपने नफ़स को बेच देता है, और अल्लाह (इस कारण) उन बंदो पर कृपा करता है।

शाने नुज़ूल

मुख़्य लेखः लैलातुल मबीत

अल्लामा तबातबाई अल-मीज़ान मे लिखते है कि आय ए शिरा लैलातुल मबीत मे नाज़िल हुई है।[१] सुन्नी मोतज़ली विद्वान इब्ने अबिल हदीद ने नहजुल बलाग़ा मे लिखा है कि सभी मुफस्सेरीन इस बात पर विश्वास करते है कि यह आयत हज़रत अली (अ) की शान मे लैलातुल मबीत मे नाज़िल हुई।[२] लैलातुल मबीत मे मुशरेकीन (बहुदेववादियो) का एकत्रित होकर मक्का मे पैंगबर (स) के घर पर हमला करने और उनकी हत्या करने का इरादा था। इसी रात हज़रत अली (अ) पैगंबर (स) के जीवन को बचाने के लिए उनके बिस्तर पर सो गए, इस तरह पैगंबर (स) बहुदेववादियो (मुशरेकीन) की योजना से बच गए।[३]

कुछ सुन्नी विद्वानों ने रिवायतो का हवाला देते हुए इस आयत को अबू-ज़र, सोहैब बिन सिनान,[४] अम्मार यासिर और उनके माता-पिता, ख़ब्बाब बिन अरत और बिलाल हब्शी[५] जैसे लोगों के बारे में माना है। हालाँकि, इन रिवायतो की वैधता पर संदेह किया गया है और कुछ शोधकर्ताओं के अनुसार, तअस्सुब के कारण और इमाम अली (अ) के फ़ज़ाइल को छुपाने के उद्देश्य से इन रिवायतो को बनाया गया है।[६]

व्याख्यात्मक बिंदु

आयत में "यश्री" शब्द "शिरा" से लिया गया है।[७] जोकि बेचने का अर्थ देता है।[८] आय ए शिरा को उन लोगों के वर्णन में माना गया है जो अल्लाह की खुशी चाहते हैं और इसके लिए अपनी जान देने को तैयार हैं।[९] ये लोग दूसरे समूह के सामने हैं जिनका वर्णन आयत न 204-206 मे किया गया है; इसका मतलब स्वार्थी, जिद्दी, शत्रुतापूर्ण और पाखंडी लोग हैं जो परोपकारी होने का दिखावा करते हैं, लेकिन उनका लक्ष्य भ्रष्टाचार है।[१०] अल्लामा तबातबाई के अनुसार, इन आयतो के संदर्भ से पता चलता है कि पैगंबर के समय में इन दो समूहों के उदाहरण मौजूद थे।[११] हालांकि कुछ अनुवादकों ने आयत के अंतिम वाक्य का अनुवाद किया है (وَالله رَءُوفٌ بِالْعِبَادِ वल्लाहो रऊफ़ुम बिल एबाद) को बंदो की निसबत अल्लाह की राफ़त के रूप में (जो अल्लाह की ख़ुशनूदी चाहते हैं), का अनुवाद किया है। लेकिन अल्लामा सय्यद मुहम्मद हुसैन तबातबाई के अनुसार, जो लोग अल्लाह की राफ़त मे क़रार पाते है वो दूसरे लोग है जो बलिदान के कारण, जिन्होने परमेश्वर की करुणा प्राप्त की है, और वास्तव में, परमेश्वर की प्रसन्नता के लिए अपने प्राणों को अर्पित करने वाले सेवकों का अस्तित्व ही परमेश्वर की दया[नोट १][१२]

नफ़्स की ख़रीदारी के तीन प्रकार

कुछ मुफ़स्सेरीन ने आयत की व्याख्या में नफ़्स की ख़रीदारी को तीन स्तरों में विभाजित किया है: नर्क की आग के डर से नफ़्स की ख़रीद ओर फ़रोख्त, स्वर्ग की इच्छा के कारण नफ़्स की ख़रीद औ फ़रोख्त और अल्लाह की खुशनूदी के लिए नफ़्स की ख़रीद और फ़रोख्त। नफ़स की ख़रीद और फ़रोख्त का उच्चतम स्तर तीसरे प्रकार को माना है, जिसमें कोई व्यक्ति इसके खिलाफ़ कुछ भी नहीं चाहता है, और इमाम अली (अ) का लैलातुल मबीत मे पैगंबर (स) के बिस्तर पर सोने को इसी प्रकार की ख़रीद और फ़रोख्त मानते है।[१३]अल्लामा तबातबाई के अनुसार अल्लाह की खुशनूदी प्राप्त करने के लिए नफ्स की खरीद और फ़रोख्त यह है कि इंसान अल्लाह की खुशनूदी हासिल करने के अलावा कुछ और नही मांगता, और वे वही चाहते हैं जो अल्लाह चाहता है, अपनी इच्छाएँ के अनुसार नहीं चाहते।[१४]

नोट

  1. فانّ وجودانسان هذه صفته من رأفة الله سبحانه بعباده...اذ لولا رجال هذه صفتهم ...لانهدمت ارکان الدین ولم تستقر من بناء الصلاح والرشاد لِبنة علی لبنة फ़ा इन्नल वजूदल इन्साना हाज़ेहि सिफ़ातुन मिन राफ़तिल लाहे सुब्हानहू बेएबादेह... इज़ लौला रिजाल हाज़ेहि सिफ़ातोहुम ... लेइनहदामत अरकानद्दीना वलम तस्तक़ेर मिन बिना इस सिलाहे वर रेशादे लिबनतुन अला लिब्नता

फ़ुटनोट

  1. देखेः तबातबाई, अल-मीज़ान, 1390 हिजरी, भाग 2, पेज 100
  2. इब्ने अबिल हदीद, शरह नहजुल बलाग़ा, 1404 हिजरी, भाग 13, पेज 262
  3. तूसी, अमाली, 1414 हिजरी, पेज 466
  4. तबरी, जामेउल बयान, 1422 हिजरी, भाग 3, पेज 591
  5. फख्रे राज़ी, अल-तफ़सीर अल-कबीर, 1420 हिजरी, भाग 5, पेज 350
  6. हाशेमी, बररसी ए सबाबे नुज़ूल आय ए इश्तिरा ए नफ़्स, पेज 153
  7. सादेक़ी तेहरानी, अल-फ़ुरक़ान, 1406 हिजरी, भाग 3, पेज 225
  8. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1371 हिजरी, भाग 2, पेज 78
  9. तालेक़ानी, परतू ए अज़ क़ुरआन, 1362, भाग 2, पेज 100
  10. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1371 हिजरी, भाग 2, पेज 79
  11. देखेः तबातबाई, अल-मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 2, पेज 98
  12. तबातबाई, अल-मीज़ान, भाग 2, पेज 987 नश्रे आलामी, बैरूत, 1393 हिजरी
  13. देखेः सादेक़ी तेहरानी, अल-फ़ुरक़ान, 1406 हिजरी, भाग 3, पेज 225-226
  14. तबातबाई, अल-मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 2, पेज 98

स्रोत

  • इब्ने अबिल हदीद, अब्दुल हमीद बिन हैबातुल्लाह, शरह नहजुल बलाग़ा, संशोधनः इब्राहीम मुहम्मद अबुल फ़ज़्ल, क़ुम, मकतबतुल आयतुल्लाह मरअशी अलनजफी, 1404 हिजरी
  • सादेक़ी तेहरानी, मुहम्मद, अल-फुरक़ान फ़ी तफ़सीरिल क़ुरआन, क़ुम, फ़रहंगे इस्लामी, 1406 हिजरी
  • तालेक़ानी, सय्यद महमूद, परतू अज़ क़ुरआन, तेहरान, शिरकते सहामी ए इंतेशार, 1362 शम्सी
  • तबातबाई, मुहम्मद हुसैन, अल-मीज़ान फ़ी तफ़सीरिल क़ुरआन, बैरूत, मोअस्सेसा आलामी लिल मतबूआत, 1390 हिजरी
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफ़सीरे नमूना, तेहरान, दार उल कुतुब इल्मीया, 1371 शम्सी
  • हाशेमी, सय्यदा मरज़ीया, बर रसीए सबाबे नुज़ूल आय ए इश्तिरा ए नफ़स, दर फसलनामा सफ़ीना, क्रमांक 13, 1385 शम्सी