आयतुल कुर्सी
आयतुल कुर्सी | |
---|---|
आयत का नाम | आयतुल कुर्सी |
सूरह में उपस्थित | सूर ए बक़रा |
आयत की संख़्या | 255 |
पारा | 3 |
नुज़ूल का स्थान | मदीना |
विषय | एतेक़ादी, तौहीद, अस्मा और सिफ़ात |
अन्य | क़ुरआन की सर्वश्रेष्ठ आयत |
सम्बंधित आयात | सूर ए बक़रा आयत 256,257 |
आयतुल कुर्सी (अरबी: آية الكرسي) (सूर ए बक़रा: 255) ईश्वर की महिमा (जलाल) और सुंदरता (जमाल) के गुणों का एक संग्रह है, जिसमें ईश्वर के ज़ात के गुणों जैसे एकता (वहदानियत) जीवन (हयात) संरक्षकता (क़य्यूमियत), ज्ञान (इल्म) और शक्ति (क़ुदरत) को शामिल है, और उसके कार्यों के गुणों (सिफ़ाते फ़ेल) जैसे ब्रह्मांड का स्वामित्व (संसार पर मालेकीयत) और शिफ़ाअत को भी शामिल है। यह आयत "वासेआ कुर्सीयोहुस समावाते वल अर्ज़" वाक्य के कारण "आयतुल कुर्सी" के नाम से प्रसिद्ध है। कुछ लोगों ने सूर ए बक़रा की आयत 256 और 257 को इसका हिस्सा माना है। लेकिन कुछ अन्य का मानना है कि आयतुल कुर्सी, हदीसों और साक्ष्यों के अनुसार, सूर ए बक़रा की केवल 255वीं आयत है।
हदीसी स्रोतों में इस आयत की कई विशेषताओं और गुणों का उल्लेख किया गया है, जिनमें कुछ हदीसों में इस आयत को क़ुरआन की सबसे सर्वश्रेष्ठ आयत माना गया है। इस आयत को हमेशा और सभी स्थितियों में पढ़ने की सलाह दी जाती है, खासकर नमाज़ के बाद, स्नान के बाद, सोने से पहले, घर से बाहर निकलते समय, ख़तरे और कठिनाई का सामना करते समय आदि। इस आयत का पाठ कुछ मुस्तहब नमाज़ों में जैसे कि क़ब्र की पहली रात की नमाज़ में पढ़ने की सलाह दी गई है।
आयत के शब्द और अनुवाद
सूर ए बक़रा की आयत 255 को इस आयत में "अल-कुर्सी" शब्द के कारण आयतुल कुर्सी कहा जाता है।[१] ऐसा कहा गया है कि इस आयत को इस्लाम की शुरुआत में और पवित्र पैग़म्बर (स) और आइम्मा (अ) के समय में भी आयतुल कुर्सी के नाम से जाना जाता था।[२] आयत के शब्द और अनुवाद इस प्रकार है:
“ | ” | |
— क़ुर्आन: सूर ए बक़रा आयत 255,256,257 |
आयतुल कुर्सी या आयाते कुर्सी
शिया टिप्पणीकारों के बीच यह प्रसिद्ध है कि आयतुल कुर्सी सूर ए बक़रा[३] की केवल आयत 255 है और निम्नलिखित दो आयतें इसका हिस्सा नहीं हैं।[४] सय्यद मोहम्मद हुसैन तेहरानी, अल्लामा तबातबाई तफ़सीरे अल-मीज़ान के लेखक का मानना है कि आयतुल कुर्सी सूर ए बक़रा की आयत 255 है और यह وَهوَ الْعليُّ الْعزيم (व होवल अलीयुल अज़ीम) वाक्यांश के साथ समाप्त होती है।[५] शिया टिप्पणीकारों में से एक, मकारिम शिराज़ी ने सूर ए बक़रा की आयत 255 पर आयतुल कुर्सी के शीर्षक की विशिष्टता के लिए छह गवाह पेश किए हैं; जिनमें शामिल हैं:
- सभी हदीसें जो इस आयत के गुण के लिए वर्णित हुई हैं, केवल इसी आयत को आयतुल कुर्सी के रूप में प्रस्तुत किया है;
- कुर्सी की व्याख्या केवल आयत 255 में पाई जाती है;
- कुछ हदीसों में, यह उल्लेख किया गया है कि आयतुल कुर्सी पचास शब्द है, और आयत 255 की शब्द संख्या पचास शब्द है।[६] उनकी राय में, उन हदीसों में जहां अगली दो आयतों को पढ़ने का आदेश दिया जाता है, उन दो आयतों पर आयतुल कुर्सी के शीर्षक का उल्लेख नहीं है।[७]
लोकप्रिय मत के विपरीत, कुछ लोगों ने कुछ हदीसों का हवाला देते हुए[८] सूर ए बक़रा की आयत 256 और 257 को आयतुल कुर्सी का हिस्सा माना है।[९] इन्हीं हदीसों को शियों के बीच आयतुल कुर्सी में अगली दो आयतों को जोड़ने की लोकप्रियता का कारण भी माना जाता है।[१०] आयतुल कुर्सी में आयत 256 और 257 को जोड़ने का एक अन्य कारण विषयों के बीच गहरा संबंध है।[११] अल उर्वातुल वुस्क़ा में सय्यद मुहम्मद काज़िम तबातबाई यज़्दी ने नमाज़े लैलातुल दफ़्न में आयत 257 के अंत तक «هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ» “हुम फ़ीहा ख़ालेदून” पढ़ने को एहतेयात के मुताबिक़ माना है।[१२]
अल कुर्सी शब्द
अल-कुर्सी शब्द के कई अर्थ बताए गए हैं: 1. तख़्त और बिस्तर; 2. आदेश और नियंत्रण का क्षेत्र; 3. कमांड एवं कंट्रोल सेंटर 4. ज्ञान।[१३] यह कहा गया है कि आयतुल कुर्सी में कुर्सी का अर्थ हुकूमत, संरक्षकता (क़य्यूमीयत), प्रभुत्व और ईश्वर की योजना (तदबीर) है।[१४]
शिया इमामों (अ) की विभिन्न हदीसों में, इस आयत की व्याख्या ईश्वर के ज्ञान के रूप में की गई है, और आयत का अर्थ इस प्रकार है: "ईश्वर जानता है कि उनके सामने क्या है और उनके पीछे क्या है, और उसके "ज्ञान" के बारे में कुछ भी पता नहीं सिवाय इसके कि जब स्वयं चाहता है। कुर्सी (= ज्ञान) ने आकाश और पृथ्वी को ढक लिया है।"[१५] इमाम सादिक़ (अ) की एक हदीस के अनुसार, "कुर्सी" ईश्वर का विशेष ज्ञान है जिसकी जानकारी उसके पैग़म्बरों, दूतों और [अन्य] हुज्जत में से किसी को भी नहीं दी है।[१६]
सामग्री
आयतुल कुर्सी को ईश्वर की महिमा (जलाल) और सुंदरता (जमाल) के गुणों का एक संग्रह माना गया है[१७] और इस आयत में ईश्वर के नाम और गुणों का 16 बार उल्लेख किया गया है; इसी कारण, आयतुल कुर्सी को एकेश्वरवाद (तौहीद) का नारा और संदेश कहा गया है।[१८] इस आयत में ईश्वर के ज़ात के गुणों, जैसे एकता (वहदानियत), जीवन (हयात), संरक्षकता (क़य्यूमियत), ज्ञान (इल्म) और शक्ति (क़ुदरत), और उसके कार्यों के गुणों (सिफ़ाते फ़ेल) जैसे ब्रह्मांड का स्वामित्व और शिफ़ाअत को शामिल माना गया है।[१९]
इस आयत के शब्दों के तहत टिप्पणीकारों ने, जैसे अल-हय, अल-क़य्यूम और अल-कुर्सी ने ईश्वर के जीवन, ईश्वर पर सभी अस्तित्व की निर्भरता और ईश्वर की कुर्सी और सिंहासन के अर्थ के बारे में विस्तृत चर्चा प्रस्तुत की है।[२०]
गुण और विशेषताएं
तफ़सीर अल-मीज़ान में सय्यद मोहम्मद हुसैन तबातबाई ने शुद्ध एकेश्वरवाद (ख़ालिस तौहीद) और ईश्वर की पूर्ण संरक्षकता (क़य्यूमीयते मुतलक़) के बारे में सटीक शिक्षाओं को शामिल करने के कारण आयतुल कुर्सी की महानता पर विचार किया है।[२१]
आयतुल कुर्सी के गुण में, पैग़म्बर (स) ने कहा कि आयतुल कुर्सी आयतों की सय्यद (सरदार) और सबसे सर्वश्रेष्ठ है, और इसमें इस दुनिया और आख़िरत की सभी अच्छी चीजें शामिल हैं।[२२] एक अन्य हदीस में, यह वर्णन किया गया है कि एक अन्य हदीस में, यह उल्लेख किया गया है कि शब्दों का भगवान क़ुरआन है, शब्दों का सरदार क़ुरआन और क़ुरआन का सरदार सूर ए बक़रा है, और सूर ए बक़रा का सरदार आयतुल कुर्सी है।[२३]
इस आयत को मुसलमानों के बीच हमेशा विशेष ध्यान और सम्मान मिला है, और इसका कारण यह है कि सभी इस्लामी ज्ञान और शिक्षाएँ "एकेश्वरवाद" (तौहीद) पर आधारित हैं और आयतुल कुर्सी में एकेश्वरवाद को व्यापक और संक्षिप्त तरीके से बताया गया है। इस आयत में, ईश्वर के ज़ात और कार्य (फ़ेल) गुणों और दोनों का वर्णन किया गया है।[२४]
आयतुल कुर्सी के पाठ के गुणों के संबंध में, कई हदीस शिया[२५] और सुन्नी[२६] के माध्यम से पहुंची हैं। इमाम सादिक़ (अ) से वर्णित है कि जो कोई इस आयत का एक बार पाठ करता है ईश्वर इस दुनिया की विपत्तियों के हज़ारों मामलों को दूर करता है, जिनमें से सबसे आसान ग़रीबी है, और उसके बाद की कठिनाइयों के हज़ारों मामलों को दूर करता है, जिनमें से सबसे आसान क़ब्र की पीड़ा है।[२७]
इमाम अली (अ) से वर्णित एक हदीस के अनुसार, अगर कोई आंख की समस्या होने पर आयतुल कुर्सी का पाठ करता है और उसके दिल और इरादे में हो कि वह बेहतर हो जाएगा, ईश्वर ने चाहा, तो वह ठीक हो जाएगा।[२८] आम धारणा में, कभी-कभी आयतुल कुर्सी का पाठ करते समय, लोग अपनी आँखों पर हाथ रख लेते हैं हांलाकि इसका प्रामाणिक दस्तावेज़ नहीं है; [स्रोत की आवश्यकता] लेकिन कफ़अमी ने सय्यद इब्ने ताऊस द्वारा लिखित जुन्नतुल अमान वाक़िया में इस कार्य की पुष्टि में एक कहानी सुनाई है।[२९]
पाठ करने के स्थान
हदीसों के अनुसार,[३०] हर समय, विशेष रूप से नमाज़ के बाद, सोने से पहले, घर से बाहर निकलते समय, ख़तरे और कठिनाई का सामना करते समय, घोड़े की सवारी करते समय, दुखती आँखों से बचने के लिए, स्वास्थ्य के लिए आदि में आयतुल कुर्सी के पाठ करने की सलाह दी गई है।[३१] इमाम अली (अ) की एक रिवायत में कहा गया है कि यदि आप जानते कि यह आयत क्या है या इसमें क्या है, तो आप इसे किसी भी परिस्थिति में नहीं छोड़ेंगे।[३२] न्यायविदों ने स्नान के बाद, मोहतज़र (प्राण त्याग करने वाले) के किनारे, वाजिब नमाज़ के बाद, सोते समय, यात्रा करते समय आदि जैसे मामलों में आयतुल कुर्सी का पाठ करना मुस्तहब है।[३३] इस आयत का पाठ कुछ मुस्तहब नमाज़ों, जैसे ग़दीर की नमाज़ और क़ब्र की पहली रात की नमाज़ में पढ़ने की सलाह दी गई है।[३४]
मोनोग्राफ़ी
इस आयत पर अनेक विद्वानों ने स्वतंत्र रूप से टिप्पणियाँ लिखी हैं; "तफ़सीरे आयतुल कुर्सी" शीर्षक के तहत, अब्दुर्रज़्ज़ाक़ काशानी, शम्सुद्दीन खफ़री और मुल्ला सद्रा ने इसके अलावा, मोहम्मद तक़ी फ़लसफ़ी ने "आयतुल कुर्सी, पयामे आसमानी तौहीद" नामक एक पुस्तक लिखी है इस पुस्तक को हुसैन सूज़ंची द्वारा संकलित और संपादित किया गया है और विभिन्न प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित किया गया है।[३५]
फ़ुटनोट
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1371 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 276।
- ↑ तबातबाई, अल-मीज़ान, 1390 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 337।
- ↑ मोअस्सास ए दाएरतुल मआरिफ़ फ़िक़हे इस्लामी, फ़र्हंगे फ़िक़हे फ़ारसी, 1382 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 174; कोशा, "आयतुल कुर्सी", पृष्ठ 119।
- ↑ तूसी, अल-अमाली, 1414 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 278।
- ↑ हुसैनी तेहरानी, मेहर ताबान, 1426 हिजरी, पृष्ठ 177।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1371 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 276 और 277।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1371 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 277।
- ↑ उदाहरण के लिए, देखें: कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 621।
- ↑ मोईनी, "आयतुल कुर्सी", पृष्ठ 100।
- ↑ दश्ती, "आयतुल कुर्सी", पृष्ठ 469।
- ↑ कोशा, "आयतुल कुर्सी", पृष्ठ 120।
- ↑ तबातबाई यज़्दी, अल उर्वातुल वुस्क़ा, 1419 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 126।
- ↑ तबरसी, मजमा उल बयान, 1372 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 628-629; कोशा, "आयतुल कुर्सी", पृष्ठ 119; मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1371 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 272।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1371 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 272-274; क़र्शी बनाई, क़ामूसे क़ुरआन, खंड 6, पृष्ठ 100।
- ↑ अस्करी, 1426 हिजरी, अक़ाएद अल इस्लाम मिनल क़ुरआन अल करीम, खंड 1, पृष्ठ 387-388।
- ↑ सदूक़, मानी उल-अख़बार, दार अल-मारेफ़ा, पृष्ठ 29।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1371 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 262।
- ↑ कोशा, "आयतुल कुर्सी", पृष्ठ 120।
- ↑ तबातबाई, अल-मीज़ान, 1390 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 328-336।
- ↑ तबातबाई, अल-मीज़ान, 1390 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 328-336; मकारिम शिराज़ी, तफ़सीरे नमूना, 1371 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 262, 277; मुग़निया, अल-काशिफ़, 1424 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 391-395।
- ↑ तबातबाई, अल-मीज़ान, 1390 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 337।
- ↑ क़ुर्तुबी, अल-जामेअ लिल अहकाम अल-क़ुरआन, 1364 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 268; अय्याशी, अल-तफ़सीर, 1380 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 137; सियूति, जामेअ अल-सगीर, 1373 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 47।
- ↑ सियूति, जामेअ अल-सगीर, 1373 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 35।
- ↑ ग़ज़ाली, जवाहिरुल क़ुरआन, 1411 हिजरी, पृष्ठ 73-75।
- ↑ देखें: अय्याशी, अल-तफ़सीर, 1380 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 136 और 137।
- ↑ देखें: सियूति, अल दुर्रुल मंसूर, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 323-327।
- ↑ अय्याशी, अल-तफ़सीर, 1380 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 136 और 137।
- ↑ शेख़ सदूक़, अल-खेसाल, 1362 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 616।
- ↑ कफ़अमी, जुन्नतुल अमान, 1405 हिजरी, पृष्ठ 176।
- ↑ उदाहरण के लिए, देखें: कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 528, 536, 539, 543, 549, 557, 572, 573।
- ↑ मोईनी, "आयतुल कुर्सी", पृष्ठ 101।
- ↑ तूसी, अल-अमाली, 1414 हिजरी, पृष्ठ 509; सियूति, अल दुर्रुल मंसूर, 1404 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 325।
- ↑ मोअस्सास ए दाएरतुल मआरिफ़, फ़र्हंगे फ़िक़हे फ़ारसी, 1382 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 174।
- ↑ मोअस्सास ए दाएरतुल मआरिफ़, फ़र्हंगे फ़िक़हे फ़ारसी, 1382 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 174।
- ↑ मोईनी, "आयतुल कुर्सी", पृष्ठ 101।
स्रोत
- हुसैनी तेहरानी, सय्यद मोहम्मद हुसैन, मेहर ताबान, मशहद, नूर मलकूत कुरआन, 1426 हिजरी।
- दश्ती, सय्यद महमूद, "अयातुल कुर्सी" दाएरतुल मआरिफ़ क़ुरआन करीम में, खंड 1, क़ुम, बोस्ताने किताब, 1382 शम्सी।
- सियूती, अब्दुर्रहमान बिन अबी बक्र, अल जामेअ अल सग़ीर फ़ी अहादीस अल-बशीर अल-नज़ीर, क़ाहिरा, 1373 हिजरी।
- सियूती, अब्दुर्रहमान बिन अबी बक्र, अल-दुर अल-मंसूर फ़ी अल-तफ़सीर अल-मासूर, क़ुम, आयतुल्लाह मर्शी पब्लिक लाइब्रेरी, पहला संस्करण, 1404 हिजरी।
- सदूक़, मुहम्मद बिन अली, मानी अल-अख़बार, अली अकबर गफ़्फ़ारी सुधार, तेहरान, दार अल-मारेफ़ा, बी ता।
- तबातबाई, सय्यद मोहम्मद हुसैन, अल-मीज़ान फ़ी तफ़सीर अल-कुरआन, बैरूत, मोअस्सास ए आलमी, दूसरा संस्करण, 1390 हिजरी।
- तबातबाई यज़दी, सय्यद मोहम्मद काज़िम, अल-उर्वातुल वुस्क़ा, क़ुम, मोअस्सास ए अल नशर अल इस्लामी, पहला संस्करण, 1419 हिजरी।
- तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल-अमाली, क़ुम, दार अल-सक़ाफ़ा, पहला संस्करण, 1414 हिजरी।
- अस्करी, सय्यद मुर्तज़ा, अक़ाएद अल इस्लाम मिनल क़ुरआन अल करीम, क़ुम, कुल्लिया उसूल अल-दीन, 1426 हिजरी।
- अय्याशी, मुहम्मद बिन मसऊद, अल-तफ़सीर (तफ़सीरे अय्याशी), हाशिम रसूली द्वारा शोध, तेहरान, मकतबा अल इल्मिया अल इस्लामिया, प्रथम संस्करण, 1380 हिजरी।
- ग़ज़ाली, मुहम्मद बिन मुहम्मद, जवाहिरुल कुरआन, मुहम्मद राशिद रज़ा अल-क़बानी द्वारा संशोधित, बैरूत, दारुल एह्या अल-उलूम, 1411 हिजरी/1990 ईस्वी।
- क़ुर्तुबी, मुहम्मद बिन अहमद, अल-जामे लिल अहकाम अल-कुरआन, तेहरान, नासिर खोस्रो, 1364 शम्सी।
- कफ़अमी, इब्राहीम बिन अली, अल-मिस्बाह-जुन्नतुल अमान अल-वाक़िया व जुन्नतुल ईमान अल-बाक़िया, क़ुम, दार अल-रज़ी, दूसरा संस्करण, 1405 हिजरी।
- कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल-काफ़ी, अली अकबर ग़फ़्फ़ारी और मुहम्मद आखुंदी द्वारा शोध और सुधार, तेहरान, दार अल-किताब अल-इस्लामिया, चौथा संस्करण, 1407 हिजरी।
- कोशा, मोहम्मद अली, "आयतुल कुर्सी", दानिशनामे मआसिर क़ुरआन करीम में, क़ुम, इंतेशाराते सलमान अज़ादेह, 1397 शम्सी।
- मोअस्सास ए दाएरतुल मआरिफ़, फ़र्हंगे फ़िक़हे फ़ारसी, सय्यद महमूद हाशमी शाहरूदी की देखरेख में, क़ुम, दाएरतुल मआरिफ़ फ़िक़हे इस्लामी, 1382 शम्सी।
- मोईनी, मोहसिन, "आयतुल कुर्सी", दानिशनामे क़ुरआन व क़ुरआन पज़ोही में, खंड 1, बहाउद्दीन खुर्रमशाही द्वारा संपादित, तेहरान, दोस्तन-नाहीद, 1377 शम्सी।
- मुग़निया, मोहम्मद जवाद, अल-तफ़सीर अल-काशिफ़, क़ुम, दार अल-किताब अल-इस्लामी, 1424 हिजरी।
- मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफ़सीरे नमूना, तेहरान, दारुल कुतुब अल-इस्लामिया, 10वां संस्करण, 1371 शम्सी।