आय ए जिज़्या
आय ए जिज़्या | |
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आयत का नाम | आय ए जिज़्या |
सूरह में उपस्थित | सूर ए तौबा |
आयत की संख़्या | 29 |
पारा | 10 |
नुज़ूल का स्थान | मदीना |
विषय | एतेक़ादी, फ़िक़्ही, सियासी |
अन्य | अहले किताब के साथ जिहाद, जिज़्या |
आय ए जिज़्या (अरबीः آية الجزية) (सूर ए तौबा आयत न 29) आय ए जिज़्या (अरबीः) (सूर ए तौबा आयत न 29) मुसलमानों के लिए आदेश है कि जब तक अहले किताब मुसलमान न हो जाएं या जिज़्या न दें, तब तक उनसे युद्ध किया जाए। इस आयत के नाज़िल होने के साथ ही पैगंबर (स) ने रोमनों के साथ युद्ध का आदेश दिया, जिसके परिणाम स्वरूप तबूक की लड़ाई हुई।
इस आयत के अनुसार मुस्लिम न्यायविद अहले किताब के साथ प्राथमिक जिहाद को तब तक वाजिब मानते हैं जब तक कि उन्होंने ज़िज्या न चुकाया हो। बेशक, अधिकांश शिया न्यायविदों के फ़तवे के अनुसार, प्राथमिक जिहाद की शर्त यह है कि मासूम इमाम मौजूद हो।
अल्लामा तबातबाई और मकारिम शिराज़ी जैसे टिप्पणीकारों ने कहा है कि जिज़्या का लाभ अहले किताब तक भी पहुंचता है। क्योंकि इस्लामी सरकार जिज़्या के भुगतान के बदले अहले किताब के जीवन और संपत्ति की रक्षा करने का कर्तव्य निभाती है।
पाठ और अनुवाद
आय ए जिज़्या सूर ए तौबा की आयत 29 है, जो मुसलमानों को अहले किताब से तब तक लड़ने का निर्देश देती है जब तक वे इस्लाम में परिवर्तित नहीं हो जाते या जिज़्या नहीं देते। इस आयत को आय ए सैफ़ (तलवार वाली आयत) अथवा आय ए क़ेताल (युद्ध वाली आयत) के नाम से भी जाना जाता है।[१] आयत का पाठ इस प्रकार है:
“ | ” | |
— क़ुर्आन: सूर ए तौबा आयत न 29 |
अनुवादः अहले किताब में से उन लोगों के साथ अभियान चलाओ जो अल्लाह और आख़ेरत पर विश्वास नहीं करते हैं, और अल्लाह और उसके रसूल ने जो मना किया है उसे मना नहीं करते हैं, और सच्चे धर्म में आस्थावान नहीं बनते हैं, ताकि वे विनम्रतापूर्वक जिज़्या अदा कर सकें।
नुज़ूल का समय
फ़ज़्ल बिन हसन तबरसी ने पहली हिजरी शताब्दी के मुफ़स्सिर मुजाहिद बिन जबर मखज़ूमी के हवाले से आय ए जिज़्या के नाज़िल होने के साथ रोमनों के खिलाफ लड़ने के लिए पैगंबर (स) के आदेश के रूप में माना है।[२] उनके अनुसार तबूक की लड़ाई इसी आयत के आधार पर हुई।[३]
अहले किताब से जिहाद जिज़्या लेना
मुस्लिम टिप्पणीकारों और न्यायविदों के अनुसार, अहले किताब के खिलाफ जिहाद वाजिब है, जब तक कि वे जिज़्या नहीं देते।[४] न्यायविदों के अनुसार, यह फैसला अहले किताब के बारे में है जो इस्लामी भूमि में रहते हैं।[५]
जिज़्या लेने का कारण
अल्लामा तबातबाई के अनुसार, अहले किताब से जिज़्या प्राप्त करना मुसलमानों के लिए धन इकठ्ठा करना नहीं है; बल्कि, जिज़या उन खर्चों पर खर्च किया जाता है जिनका लाभ अहले किताब तक खुद पहुंचता है, और इसके अनुसार, इस्लामी सरकार अहले किताब के जीवन और संपत्ति की रक्षा करने के लिए बाध्य है।[६] राग़िब इस्फ़हानी (मृत्यु 530 हिजरी) ने जिज़्या को "इज्तेज़ा" बताते हुए इस बिंदू की ओर इशारा किया कि जिज़्या का इनाम इन लोगो की वित्तीय और जीवन सुरक्षा हैं।[७] तफसीर नमूना में यह भी कहा गया है: अहले किताब जिज़्या देकर जीवन और वित्तीय सुरक्षा का आनंद लेते हैं; लेकिन दूसरी ओर, उन पर युद्धों में भाग लेने का कोई दायित्व नहीं है, और भले ही इस्लामी भूमि के बाहर के दुश्मन उन पर हमला करने का इरादा रखते हों, इस्लामी सरकार को अहले किताब की रक्षा करनी चाहिए।[८]
प्राथमिक जिहाद पर कुरानिक तर्क और युद्ध की मौलिकता
कुछ मुस्लिम न्यायविदों के अनुसार, आय ए जिज़्या प्राथमिक जिहाद कुरान के दस्तावेजों में से एक है।[९] इस आयत और कुरानी एवंम रिवाई साक्ष्यों के आधार पर, कुछ मुस्लिम विचारक इस्लामी देशों के कानूनी और राजनीतिक संबंधों पर चर्चा करते हैं। (इस्तेलाह मे दार अल इस्लाम) अन्य देशों के साथ। (इस्तेलाह मे दार अल कुफ्र) युद्ध की मौलिकता में विश्वास करते हैं, जब तक कि शांति संधियाँ संपन्न नहीं हो जातीं।[१०] अधिकांश शिया न्यायविद मासूम इमाम की उपस्थिति को प्राथमिक जिहाद के लिए एक शर्त मानते है और मासूम के गुप्त युग (असरे ग़ैबत) में प्राथमिक जिहाद को स्वीकार नही करते।[११]
साग़ेरून का अर्थ
अधिकांश मुस्लिम टिप्पणीकारों ने आय ए जिज़्या "साग़ेरून" शब्द की व्याख्या शर्म और अपमान के रूप में की है। इस व्याख्या के अनुसार, आयत के अंतिम भाग का अर्थ है कि अहले किताब को अपने हाथों से और विनम्रतापूर्वक जिज़्या देना चाहिए।[१२]
अल्लामा तबातबाई इस दृष्टिकोण को स्वीकार नहीं करते हैं, जो कहता है कि आयत में "साग़ेरुन" का अर्थ उन्हें अपमानित करना है। उनका मानना है कि इस शब्द का अर्थ यह नहीं है कि मुसलमान अहले किताब का अपमान करते हैं; क्योंकि ये काम इस्लामिक मर्यादा और शांति के खिलाफ है। उनके अनुसार, "साग़ेरून" का मतलब अहले किताब का इस्लामी परंपरा के प्रति समर्पण (जैसे जिज़्या देने वाले कानून की स्वीकृति) और न्यायपूर्ण इस्लामी सरकार के प्रति उनका समर्पण है।[१३]
फ़ुटनोट
- ↑ बरजनूई, इस्लाम असालत जंग या असालते सुलह? पेज 95 और 100
- ↑ मुजाहिद बिन जब्र, तफसीर मुजाहिद, इस्लामाबाद, भाग 1, पेज 276
- ↑ तबरसी, मजमा अल बयान, 1406 हिजरी, भाग 5, पेज 34
- ↑ देखेः तूसी, अल तिबयान, दार एहया अल तुसार अल अरबी, भाग 5,पेज 202; तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 5, पेज 34; फ़ख़्रे राज़ी, मफाती अल ग़ैब, 1420 हिजरी, भाग 16, पेज 24; नजफ़ी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 21, पेज 227
- ↑ देखेः नजफी, जवाहिर कलाम, 1362 शम्सी, भाग 21, पेज 224
- ↑ अल्लामा तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 9, पेज 240
- ↑ राग़िब इस्फहानी, अल मुफ़रेदात फ़ी ग़रीब अल कुरआन, 1412 हिजरी, भाग 1, पेज 195
- ↑ मकारिम शिराज़ी, तफसीर नमूना, 1374 शम्सी, भाग 7, पेज 357
- ↑ हिंदी, अहकाम अल हरब वल इस्लाम, 1413 ई, पेज 123-124; बरज़नूई, इस्लाम असालत जंग या असालते सुलह? पेज 100; देखेः ख़ूई, मिनहाज अल सादेक़ीन, 1410 हिजरी, पेज 361; तबातबाई हाएरी, रियाज़ अल मसाइल, 1418 हिजरी, भाग 8, पेज 35
- ↑ ज़हीली, आसार अल हरब फ़िल फ़िक़्ह अल इस्लामी, 1412 हिजरी, पेज 130; हिंदी, अहकाम अल हरब वल इस्लाम, 1413 ई, पेज 122-124
- ↑ नजफी, जवाहिर अल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 21, पेज 227
- ↑ देखेः तूसी, अल तिबयान, दार एहया अल तुरास अल अरबी, भाग 5, पेज 202; तबरसी, मजमा अल बयान, 1372 शम्सी, भाग 5, पेज 43; साइस, तफसीर आयात अल अहकाम, 1423 हिजरी, पेज 451; शहाता, तफसीर क़ुरआन करीम, 1422 हिजरी, भाग 5, पेज 1845; तय्यब, अतयब अल बयान, 1369 शम्सी, भाग 6, पेज 206; करमी, तफसीर लेकिताब अल्लाह अल मुनीर, 1402 हिजरी, भाग 4, पेज 77
- ↑ अल्लामा तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 9, पेज 242
स्रोत
- बरज़नूई, मुहम्मद अली, इस्लाम असालते जंग या असालते सुल्ह? हुक़ूकी बैनल मिलल, क्रमांक 33, 1384 श्सी
- राग़िब इस्फहानी, हुसैन बिन मुहम्मद, अल मुफ़रेदात फ़ी ग़रीब अल क़ुरआन, बैरूत, नशरे दार उल कलम, 1412 हिजरी
- ज़हीली, वहबा मुस्तफा, आसार अल हरब फ़िल फ़िक़्ह अल इस्लामी, दमिश्क, दार अल फ़िक्र, चौथा संस्करण, 1412 हिजरी
- साइस, मुहम्मद अली, तफसीर आयात अल अहकाम, शोधः नाजी इब्राहीम सूडान, बैरूत, अल मकतबा अल अस्रीया, पहला संस्करण, 1423 हिजरी
- शहाता, अब्दुल्लाह, तफसीर क़ुरआन करीम, क़ाहेरा, दार गरीब लिल तबाअते वन नश्रे वल तोजडीअ, 1422 हिजरी
- तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमा अल बयान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, दार अल मारफ़ा, 1406 हिजरी
- तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल तिबयान फ़ी तफसीर अल क़ुरआन, शोध व संशोधनः अहमद हबीब कसीर, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी
- तय्यब, अब्दुल हुसैन, अतयब अल बयान, तेहरान, इस्लाम, दूसरा संस्करण, 1369 शम्सी
- अल्लामा तबातबाई, मुहम्मद हुसैन, अल मीज़ान फ़ी तफसीर अल कुरआन, क़ुम, दफ्तर इंतेशारात इस्लामी, पांचवा संस्करण, 1417 हिजरी
- करमी, मुहम्मद, तफसीर लेकिताब अल्लाह अल मुनीर, क़ुम, इल्मीया, पहला संस्करण, 1402 हिजरी
- मुजाहिद बिन जब्र, तफसीर मुजाहिद, अज़ मजमूआ मसादिर अल तफसीर इंदल सुन्ना, शोधः अब्दुर रहमान अल ताहिर बिन मुहम्मद अल सूरती, इस्लामाबाद, मजमा अल बुहूस अल इस्लामीया
- मकारिम शीराज़ी, नासिर, तफसीर नमूना, तेहरान, दार अल किताब अल इस्लामीया, 1380 शम्सी
- नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल कलाम फ़ी शरह शराए अल इस्लाम, शोधः अब्बास कूचानी, बैरूत, दार एहयाए अल तुरास अल अरबी, सातंवा संस्करण, 1362 शम्सी
- हिदी, अहसान, अहकाम अल हरब वल सलाम फ़ी दौलत अल इस्लाम, दमिश्क, दार अल मुनीर लिल तबाअते वन नश्र वल तौज़ीअ, पहला संस्करण 1993 ई