आयाते तहद्दी

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आयाते तहदादी
आयत का नामआयाते तहद्दी
सूरह में उपस्थितसूर ए तूर (34), सूर ए क़ेसस (49), सूर ए इस्रा (88), सूर ए हूद (13), सूर ए युनूस (38), सूर ए बक़रा (23)
पारा27, 20, 15, 12, 11, 1
शाने नुज़ूलइफ़्क की घटना
विषयएज़ाज़े क़ुरआन
अन्यतहद्दी

यह लेख आयाते तहद्दी के बारे में है। तहद्दी की अवधारणा के बारे में जानने के लिए तहद्दी वाले लेख का अध्यन करें।

आयाते तहद्दी अर्थात चुनौती देने वाली आयते (अरबीःآيات التحدي) क़ुरआन की छह आयतें हैं जिन मे पैगंबर (स) के इनकार करने वालों को तहद्दी (क़ुरआन के जैसा या उसके एक सूरा जैसा लाने को कहा हो) के लिए आमंत्रित करती हैं। कुछ आयात पूरे क़ुरआन तक सीमित हैं, कुछ दस सूरो तक और कुछ अन्य एक सूरे तक तहद्दी करती हैं।

कुछ टिप्पणीकारों के अनुसार, क़ुरआन की तहद्दी चरण दर चरण और कठिन से आसान की ओर किया गया है; यानी इसकी शुरुआत पूरे क़ुरआन की तह्ददी देने से हुई और इसका अंत एक सूरे की तहद्दी से हुआ; लेकिन कुछ का मानना है कि क़ुरआन की आयतों के नाज़िल होने का क्रम इस चरण के विपरीत है।

क़ुरआन मे तहद्दी की परिभाषा

मुख्य लेख: तहद्दी

तहद्दी अपनी असमर्थता को प्रकट करने के लिए एक प्रतिद्वंद्वी का आवेदन और चुनौती है।[१] उलूमे क़ुरआन[२] और कलामे इस्लामी[३] की इस्तेलाह मे तहद्दी मोजज़े की शर्रतो मे से है।[४] जिसके अनुसार अंबिया अपनी नबूवत से इनकार करने वालों को उनके चमत्कारों की बराबरी करने के लिए लड़ने की चुनौती देते हैं।[५]

क़ुरआन में, क़ुरआन के मोज्ज़ा होने और पैगंबर (स) की नबूवत को साबित करने के लिए, इनकार करने वालों को लड़ने के लिए आमंत्रित किया गया है और उन्हें कि कुरान ईश्वर की ओर से विश्वास न करने पर इसके लिए क़ुरआन जैसा लाने के लिए कहा गया है।[६] जिसे क़ुरआन की चुनौती कहा जाता है।[७]


कुरआन में तहद्दी के प्रकार

छह आयतो में, क़ुरआन चुनौती का आह्वान करता है, जिन्हें आयाते तहद्दी (चुनौती वाली आयतें) कहा जाता है।[८] ये आयते तीन श्रेणियों में हैं: तीन आयतो में पूरे क़ुरआन की चुनौती दी जाती है, एक आयत में दस सुरों को चुनौती दी जाती है, और दो आयतो में केवल एक सूरे को चुनौती दी गई है:

पूरे कुरान के लिए तहद्दी

क़ुरआन करीम की तीन आयतों में पूरे कुरान को चुनौती दी गई है:

अनुवादः इसलिए यदि वे (पैगंबर और नास्तिको के विरोधी) सच बोलते हैं, तो उन्हें इसके जैसा लाना चाहिए।[९]

अनुवादः "कह दो फिर यदि तुम (काफिर और अविश्वासी) सच बोलते हो, तो ईश्वर की ओर से एक किताब लाओ जो तुम्हें इन दोनों से अच्छा मार्गदर्शन देने वाली हो ताकि उसका अनुसरण किया जाए।[१०]

अनुवादः कहो, "मानव और जिन्न जाति इस क़ुरआन जैसी किताब लाने के लिए एकत्रित हो जाए वे ऐसा कुछ नहीं ला सकते भले ही उनमें से कुछ एक दूसरे का का समर्थन करे।[११]

दस सूरो के लिए तहद्दी

सूर ए हूद की आयत न 13 में, अविश्वासियों को यदि वे कर सकते हैं तो कुरान के सूरो के समान दस सूरे लाने के लिए आमंत्रित किया गया है,

अनुवादः या वे कहते हैं कि उसने इस [क़ुरआन] को झूठ बनाया है। कहो: यदि तुम सच कह रहे हो, तो इसके जैसी लिखी हुई दस सूरे ले आओ और अल्लाह के अलावा जिस किसी को भी बुला सकते हो, उसे बुलाओ।[१२]

एक सूरे के लिए तहद्दी

क़ुरआन की दो आयतों में एक सूरे को चुनौती दी गई है:

अनुवादः या वे कहते हैं: "उसने इसे झूठ बना दिया।" कहो: "यदि आप सही हैं, इसके जैसा एक सूरह लाओ, और अल्लाह के अलावा हर किसी को बुलाओ)।[१३]

अनुवादः और यदि तुम्हें संदेह है कि हमने अपने बंदे पर क्या अवतरित किया है, यदि तुम सच कह रहे हो तो उससे मिलता-जुलता एक सूरा लाओ और अल्लाह के अलावा अपने गवाहो को बुलाओ)।[१४]

क़ुरआन के व्याख्याकार अब्दुल्लाह जवादी आमोली के अनुसार, क़ुरआन का एक आयत तक सीमित न होने का कारण यह है कि क़ुरआन की कुछ आयतें हुरूफ़ ए मुक़त्तेआत हैं जिनमें एक, दो या अधिक अक्षर शामिल हैं,जैसे मुदहाम्मतान और "साद"। इस मामले में, क़ुरआन द्वारा दी गई चुनौती, जो क़ुरआन के मोज्ज़ा और हक़ होने को साबित करे इस से साबित नहीं होगा।[१५]

नाज़िल होने का क्रम

कुछ मुफ़स्सेरीन का मानना है कि आयाते तहद्दी का नुज़ूल एक व्यवस्थित प्रक्रिया पर आधारित था और क़ुरआन का पाठ कठिन से आसान में आया है;[१६] इस प्रकार, सबसे पहले, अल्लाह ने क़ुरआन के इनकार करने वालों को पूरे क़ुरआन जैसा लाने के लिए आमंत्रित किया;लेकिन वे नहीं कर सके। फिर उसने उनसे कहा कि यदि उनके लिए संभव हो तो क़ुरआन के सूरो के समान दस सूरे लाएँ। लेकिन वे फिर भी नहीं कर सके; फिर, तीसरे चरण में उन्हें क़ुरआन के समान एक सूरा लाने के लिए आमंत्रित किया।[१७]

इस दृष्टिकोण के विपरीत, कुछ शोधकर्ताओं का कहना है: क़ुरआन के नाज़िल होने का क्रम और वर्णित रिवायतो से पता चलता है कि आयाते तहद्दी का क्रमबद्ध अवतरण (मुनज़्ज़म नुजूल) नहीं था और वे छुटपुट रूप से और विभिन्न अवसरों पर नाज़िल हुई है।[१८]

फ़ुटनोट

  1. जमई अज नवीसंदेगान, शरह अल मुस्तलेहात अल कलामीया, 1415 हिजरी, पेज 64
  2. जवाहिरी, वाकावी मेलाक तहद्दी दर क़ुरआन वा नक़्द मंतिक़ तनज़्ज़ुली, पेज 112
  3. जमई अज नवीसंदेगान, शरह अल मुस्तलेहात अल कलामीया, 1415 हिजरी, पेज 64
  4. बाक़लानी, एजाज़ अल क़ुरआन, 1421 हिजरी, पेज 161
  5. मोअद्दब, एजाज़े क़ुरआन दर नज़रे अहले सुन्नत, 1379 शम्सी, पेज 17
  6. ख़ुर्रमशाही, दानिश नामेह क़ुरआन वा क़ुरआन पुज़ूही, 1377 शम्सी, भाग 1, पेज 481
  7. मुहक़्क़्कि सब्ज़ावारी, इसरार अल हिकम, 1383 शम्सी, पेज 472
  8. ख़ुर्रमशाही, दानिश नामेह क़ुरआन वा क़ुरआन पुज़ूही, 1377 शम्सी, भाग 1, पेज 481
  9. सूर ए तूर, आयत न 34
  10. सूर ए क़ेसस, आयन न 49
  11. सूर ए इस्रा, आयत न 88
  12. सूर ए हूद, आयत न 13
  13. सूर ए युनूस, आयत न 38
  14. सूर ए बक़रा, आयत न 23
  15. तफसीर सूर ए साद, जलसा 9 28-2-1393
  16. ज़मख़शरी, अल कश्शाफ़, 1407 हिजरी, भाग 2, पेज 383
  17. जस्सास, अहकाम अल क़ुरआन, 1405 हिजरी, भाग 1, पेज 34
  18. बहजत पूर, बर रसी सैर तनज़्जुली आयात ए तहद्दी, पेज 77; बहजत पूर, तफसीर तनज़्ज़ुली, 1392 शम्सी, 344

स्रोत

  • क़ुरआन करीम, तरजुमा, फ़ौलादवंद
  • बाकलानी, अबू बकर, एजाज़ अल कुरआन, तालीक़ अबू अब्दुर रहमान अवज़या, बैरूत, दार अल कुतुब अल इल्मीया, 1421 हिजरी
  • बहजतपूर, अब्दुल करीम वा ज़हरा बहजतपूर, बर रसी सैर तनज़्ज़ुली आयात ए तहद्दी, दर नशरे कसात, क्रमांक 77, पाईज़ 1394
  • बहजतपूर, अब्दुल करीम, तफसीरे तनज्ज़ुली ( बे तरतीत नुजूल), क़ुम, पुजूहिश गाह फ़रहंग वा अंदीशे इस्लामी, 1392 शम्सी
  • जस्सास, अहमद बिन अली, अहकाम अल कुरआन, तहक़ीक़ मुहम्मद सादिक कुमहावी, बैरूत, दार एहया अल तुरास अल अरबी, 1405 हिजरी
  • जमई अज नवीसंदेगान, शरह अल मुस्तलेहात अल कलामीया, मशहद, आस्ताने कुद्से रज़वी, 1415 हिजरी
  • जवाहेरी, सय्यद मुहम्मद हसन, वाकावी मेलाक तहद्दी दर क़ुरआन व नक़द मनतिक़ तनज़्ज़ुली, पुजूहिश हाए क़ुरआनी, क्रमांक 2, 1395 शम्सी
  • ख़ुर्रमशाही, बहाउद्दीन, दानिश नामा क़ुरआन वा क़ुरआन पुजूही, तेहरान, नशर नाहिद, दोस्तान, 1377 शम्सी
  • मुहक़्क़िक़ सब्ज़ावारी, मुहम्मद बाक़िर, इसरार अल हकम, शोधः करीम फ़ैज़ी, क़ुम, मतबूआत दीनी, 1383 शम्सी
  • मोअद्दब, सय्यद रज़ा, एज़ाज़ कुरआन दर नजर अहले बैत इस्मत व बीस्त नफ़र अज़ उलमा ए बुजर्ग इस्लाम, क़ुम, अहसन अल हदीस, 1379 शम्सी
  • ज़मख़शरी, महमूद, अल कश्शाफ़ अन हकाइक़ गवामिज अल तंजील, बैरूत, दार अल किताब अल अरबी, 1407 हिजरी