सूरह
सूरह (अरबी: السورة) एक कुरानिक शब्द है और इसका मतलब कुरआन की आयतों का एक संग्रह है जिसकी एक निश्चित शुरुआत और अंत है, और ज़्यादातर मामलों में यह बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम से शुरू होता है। कुछ टिप्पणीकारों का मानना है कि सूरह की सभी आयतें एक दूसरे से संबंधित हैं और एक केंद्रीय (मेहवरी) विषय का पालन करती हैं। क़ुरआन की कुछ सूरों को उनकी समानता के कारण विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है। रहस्योद्घाटन (नुज़ूल) के समय के आधार पर सूरह का विभाजन (मक्की या मदनी) और आयतों की संख्या के आधार पर सूरह का विभाजन (सब्ए तेवाल, मेऊन, मसानी और मुफ़स्सल) इन श्रेणियों में से हैं।
प्रसिद्ध क़ुरानिक विद्वानों के अनुसार, क़ुरआन में 114 सूरह हैं। लेकिन कुछ लेखकों ने कुरआन की आयतों को कम न करते हुए कुरआन के सूरों की संख्या 112 या 113 मानी है। क्योंकि उनमें से कुछ का मानना है कि सूर ए तौबा सूर ए अंफ़ाल की अगली कड़ी है और एक स्वतंत्र सूरह नहीं है। कुछ अन्य लोगों ने सूर ए फ़ील और सूर ए क़ुरैश के साथ-साथ सूर ए ज़ोहा और इंशेराह को एक स्वतंत्र सूरह नहीं माना है। क़ुरआन के प्रत्येक सूरह को एक विशेष नाम दिया गया है और इसे अक्सर प्रत्येक सूरह के शुरुआती शब्दों या उनकी सामग्री से लिया गया है। कुछ कुरानिक शोधकर्ताओं का मानना है कि सूरह के नाम पैग़म्बर (स) द्वारा चुने गए हैं और सूरह को किसी अन्य नाम से नहीं पढ़ा (पुकारा) जा सकता है। लेकिन अन्य शोधकर्ता इस दृष्टिकोण को गलत मानते हैं और मानते हैं कि लोगों की भाषा में इसके व्यापक उपयोग के परिणामस्वरूप सूरह के नाम समय के साथ बनाए गए थे।
पैग़म्बर (स) पर नाज़िल हुए पहले और आखिरी सूरह क़ुरआन विज्ञान (उलूमे क़ुरआन) में उठाए गए मुद्दों में से एक है। कुछ के अनुसार, सूर ए फ़ातिहा अल किताब पहला है और सूर ए नस्र आखिरी सूरह है जो पैग़म्बर (स) पर एक बार में नाज़िल हुआ था। शिया और सुन्नी हदीस स्रोतों में, सूरों के फ़ज़ाइल में कई हदीसों का वर्णन किया गया है। हालाँकि, विद्वानों ने दस्तावेज़ीकरण और पाठ दोनों के संदर्भ में इनमें से अधिकांश हदीसों पर विवाद किया है।
सूरह का अर्थ और इस्लामी चर्चाओं में इसका महत्व

सूरह एक कुरानिक शब्द है और इसका मतलब कुरआन की आयतों का एक संग्रह है जिसकी एक निश्चित शुरुआत और अंत है और ज्यादातर मामलों में यह बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम से शुरू होता है (सूर ए तौबा को छोड़कर जिसमें बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम नहीं है)।[१] कुछ लेखों में, क़ुरआन के सूरों की तुलना किताब के अध्यायों से की गई है,[२] लेकिन कुछ शोधकर्ताओं ने इस तुलना को गलत माना है; क्योंकि कुरआन के सूरह में किताब के अध्यायों की विशेषताएं नहीं हैं।[३] क़ुरआन के विभिन्न विभाजनों (जैसे कि जुज़ और हिज़्ब में इसका विभाजन) में, आयतों और सूरों में इसका विभाजन क़ुरआन का एकमात्र वास्तविक वर्गीकरण माना गया है जिसका मूल कुरआन है।[४]
छोटे सूरह और कुछ मामलों में क़ुरआन (सूर ए अन्आम) के लंबे सूरह एक ही बार में पैग़म्बर (स) पर नाज़िल हुए थे[५] कुछ सूरह पैग़म्बर (स) पर तदरीजी (धीरे-धीरे) नाज़िल हुए थे और पैग़म्बर (स) के आदेश से उनकी आयतों के क्रम के अनुसार व्यवस्थित किया गया है।[६] यह कहा गया है कि क़ुरआन को सूरह में विभाजित करने से लाभ होता है, जिनमें से हम निम्नलिखित का उल्लेख कर सकते हैं: क़ुरआन को हिफ़्ज़ करना (याद करना) और सीखना आसान बनाना, कुरआन पढ़ने वाले के लिए विविधता और उत्साह पैदा करना, एक साथ उपयुक्त आयतों और सूरह को अन्य सूरों से अलग करना जिनका एक अलग विषय है।[७]
सूरह की आयतें एक-दूसरे से कैसे संबंधित हैं, इसके बारे में विभिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत किए गए हैं।[८] सय्यद मुहम्मद हुसैन तबातबाई, सय्यद क़ुतुब और मुहम्मद इज़्ज़त दर्वज़ेह जैसे टिप्पणीकारों का मानना है कि प्रत्येक सूरह में एक प्रकार की एकता है जो अन्य सूरों से भिन्न है।[९] किताब अल मीज़ान के लेखक, तबातबाई के अनुसार, सूरह के अलग-अलग उद्देश्य होते हैं और प्रत्येक सूरह एक विशिष्ट अर्थ और उद्देश्य का पालन करता है जिसे संपूर्ण सूरह, अपने सभी आयतों के साथ व्यक्त करता है।[१०] ऐसा कहा गया है कि 20वीं शताब्दी ईस्वी में, यह दृष्टिकोण लोकप्रिय हो गया।[११] इसके विपरीत कुछ अन्य टिप्पणीकार, जैसे कि तफ़सीर नमूना के लेखक, नासिर मकारिम शिराज़ी, वे सूरह के सभी आयतों को एकीकृत करना आवश्यक नहीं मानते हैं और मानते हैं कि सूरह विभिन्न विषयों को व्यक्त कर सकता है।[१२]
ऐसा कहा गया है कि पैग़म्बर (स) की बेअसत की शुरुआत में, "सूरह" शब्द का उपयोग क़ुरआन की कुछ आयतों को संदर्भित करने के लिए किया गया था जिनका सुसंगत अर्थ है; इस अर्थ के अनुसार, सूर ए बक़रा में लगभग 30 सूरह हैं।[१३] लेकिन पैग़म्बर (स) के जीवन के अंतिम वर्षों में सूरह का उपयोग इसके आधुनिक शब्द (आज के अर्थ) में किया जाने लगा[१४] इस्लामी शोधकर्ता माजिद मआरिफ़ का मानना है कि यही शियों और सुन्नियों के बीच असहमति का कारण है; क्योंकि शिया न्यायशास्त्र में, नमाज़ में सूर ए हम्द के बाद, क़ुरआन के सूरों में से एक का पूरा पढ़ा जाना चाहिए (सज्देवाले सूरह को छोड़कर), लेकिन सुन्नी न्यायशास्त्र में, क़ुरआन का एक टुकड़ा पढ़ना पर्याप्त (काफ़ी) है।[१५]
सूरह का विभाजन
कुरआन के कुछ सूरों को उनकी समानताओं के कारण विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है।[१६]
क़ुरआन की सूची | सूरह के क्रम | सूरों के नाम | आयतों की संख्या | नुज़ूल का क्रम[१७] | मक्की/मदनी}} |
---|---|---|---|---|---|
1 | 63 | फ़ातेहा | 7 | 5 | मक्की |
2 | 16 | बक़रह | 286 | 87 | मदनी |
3 | 1 | आले इमरान | 200 | 89 | मदनी |
4 | 104 | निसा | 176 | 92 | मदनी |
5 | 84 | मायदा | 120 | 113 | मदनी |
6 | 12 | अनआम | 165 | 55 | मक्की |
7 | 7 | आराफ़ | 206 | 39 | मक्की |
8 | 13 | अंफ़ाल | 75 | 88 | मदनी |
9 | 23 | तौबा बराअत | 129 | 114 | मदनी |
10 | 114 | यूनुस | 109 | 51 | मक्की |
11 | 110 | हूद | 123 | 52 | मक्की |
12 | 113 | यूसुफ़ | 111 | 53 | मक्की |
13 | 37 | रअद | 43 | 96 | मदनी |
14 | 2 | इब्राहीम | 52 | 72 | मक्की |
15 | 30 | हिज्र | 99 | 54 | मक्की |
16 | 103 | नहल | 128 | 70 | मक्की |
17 | 6 | इसरा | 111 | 50 | मक्की |
18 | 80 | कहफ़ | 110 | 69 | मक्की |
19 | 90 | मरियम | 98 | 44 | मक्की |
20 | 54 | ताहा | 135 | 45 | मक्की |
21 | 9 | अम्बिया | 112 | 73 | मक्की |
22 | 29 | हज | 78 | 104 | मदनी |
23 | 98 | मोमिनून | 118 | 74 | मक्की |
24 | 108 | नूर | 64 | 103 | मदनी |
25 | 67 | फ़ुरक़ान | 77 | 42 | मक्की |
26 | 45 | शोअरा | 227 | 47 | मक्की |
27 | 106 | नमल | 93 | 48 | मक्की |
28 | 75 | क़सस | 88 | 49 | मक्की |
29 | 60 | अंकबूत | 69 | 85 | मक्की |
30 | 38 | रूम | 60 | 84 | मक्की |
31 | 82 | लुक़मान | 34 | 57 | मक्की |
32 | 43 | सजदा | 30 | 75 | मक्की |
33 | 3 | अहज़ाब | 73 | 90 | मदनी |
34 | 42 | सबा | 54 | 58 | मक्की |
35 | 64 | फ़ातिर | 45 | 43 | मक्की |
36 | 112 | यासीन | 83 | 41 | मक्की |
37 | 49 | साफ़्फ़ात | 182 | 56 | मक्की |
38 | 48 | साद | 88 | 38 | मक्की |
39 | 41 | ज़ोमर | 75 | 59 | मक्की |
40 | 62 | ग़ाफ़िर | 85 | 60 | मक्की |
41 | 68 | फ़ुस्सेलत | 54 | 61 | मक्की |
42 | 47 | शूरा | 53 | 62 | मक्की |
43 | 39 | ज़ुखरुफ़ | 89 | 63 | मक्की |
44 | 34 | दोख़ान | 59 | 64 | मक्की |
45 | 25 | जासिया | 37 | 65 | मक्की |
46 | 4 | अहक़ाफ़ | 35 | 66 | मक्की |
47 | 87 | मुहम्मद | 37 | 95 | मदनी |
48 | 65 | फ़त्ह | 29 | 112 | मदनी |
49 | 31 | होजरात | 18 | 107 | मदनी |
50 | 71 | क़ाफ़ | 45 | 34 | मक्की |
51 | 35 | ज़ारियात | 60 | 67 | मक्की |
52 | 55 | तूर | 49 | 76 | मक्की |
53 | 102 | नज्म | 62 | 23 | मक्की |
54 | 77 | क़मर | 55 | 37 | मक्की |
55 | 36 | रहमान | 78 | 97 | मदनी |
56 | 111 | वाक़ेआ | 96 | 46 | मक्की |
57 | 32 | हदीद | 29 | 94 | मदनी |
58 | 86 | मुजादेला | 22 | 106 | मदनी |
59 | 33 | हश्र | 24 | 101 | मदनी |
60 | 96 | मुमतहेना | 13 | 91 | मदनी |
61 | 50 | सफ़ | 14 | 111 | मदनी |
62 | 26 | जुमा | 11 | 109 | मदनी |
63 | 97 | मुनाफ़ेक़ून | 11 | 105 | मदनी |
64 | 20 | तग़ाबुन | 18 | 110 | मदनी |
65 | 53 | तलाक़ | 12 | 99 | मदनी |
66 | 19 | तहरीम | 12 | 108 | मदनी |
67 | 95 | मुल्क | 30 | 77 | मक्की |
67 | 76 | क़लम | 52 | 2 | मक्की |
69 | 28 | हाक़्क़ा | 52 | 78 | मक्की |
70 | 94 | मआरिज | 44 | 79 | मक्की |
71 | 107 | नूह | 28 | 71 | मक्की |
72 | 27 | जिन | 28 | 40 | मक्की |
73 | 91 | मुज़म्मिल | 20 | 3 | मक्की |
74 | 88 | मुदस्सिर | 56 | 4 | मक्की |
75 | 78 | क़यामत | 40 | 31 | मक्की |
76 | 10 | इंसान | 31 | 98 | मदनी |
77 | 89 | मुर्सलात | 50 | 33 | मक्की |
78 | 101 | नबा | 40 | 80 | मक्की |
79 | 99 | नाज़ेआत | 46 | 81 | मक्की |
80 | 57 | अबस | 42 | 24 | मक्की |
81 | 22 | तकवीर | 29 | 7 | मक्की |
82 | 14 | इंफ़ेतार | 19 | 82 | मक्की |
83 | 93 | मुतफ़्फ़ेफ़ीन | 36 | 86 | मक्की |
84 | 11 | इंशेक़ाक़ | 25 | 83 | मक्की |
85 | 15 | बुरूज | 22 | 27 | मक्की |
86 | 52 | तारिक़ | 17 | 36 | मक्की |
87 | 8 | आला | 19 | 8 | मक्की |
88 | 61 | ग़ाशिया | 26 | 68 | मक्की |
89 | 66 | फ़ज्र | 30 | 10 | मक्की |
90 | 17 | बलद | 20 | 35 | मक्की |
91 | 46 | शम्स | 15 | 26 | मक्की |
92 | 83 | लैल | 21 | 9 | मक्की |
93 | 51 | ज़ोहा | 11 | 11 | मक्की |
94 | 44 | शरह | 8 | 12 | मक्की |
95 | 24 | तीन | 8 | 28 | मक्की |
96 | 59 | अलक़ | 19 | 1 | मक्की |
97 | 73 | क़द्र | 5 | 25 | मक्की |
98 | 18 | बय्यना | 8 | 100 | मदनी |
99 | 40 | ज़िलज़ाल | 8 | 93 | मदनी |
100 | 56 | आदीयात | 11 | 14 | मक्की |
101 | 72 | क़ारेआ | 11 | 30 | मक्की |
102 | 21 | तकासुर | 8 | 16 | मक्की |
103 | 58 | अस्र | 3 | 13 | मक्की |
104 | 109 | हुमज़ा | 9 | 32 | मक्की |
105 | 70 | फ़ील | 5 | 19 | मक्की |
106 | 74 | क़ुरैश | 4 | 29 | मक्की |
107 | 85 | माऊन | 7 | 17 | मक्की |
108 | 81 | कौसर | 3 | 15 | मक्की |
109 | 79 | काफ़ेरून | 6 | 18 | मक्की |
110 | 105 | नस्र | 3 | 102 | मदनी |
111 | 92 | मसद | 5 | 6 | मक्की |
112 | 5 | इख़्लास | 4 | 22 | मक्की |
113 | 69 | फ़लक़ | 5 | 20 | मक्की |
114 | 100 | नास | 6 | 21 | मक्की |
नाज़िल होने के समय के आधार पर विभाजन
- मुख्य लेख: मक्की और मदनी सूरह
प्रसिद्ध क़ुरानिक विद्वानों के अनुसार, क़ुरआन के सूरों को उनके नाज़िल होने के समय के अनुसार दो सामान्य श्रेणियों "मक्की" और "मदनी" में विभाजित किया गया है;[१८] इसके आधार पर, जो सूरह पैग़म्बर (स) के मदीना प्रवास से पहले नाज़िल हुआ वह "मक्की" है और जो सूरह पैग़म्बर (स) के मदीना पहुंचने के बाद नाज़िल हुआ वह "मदनी" है। इसलिए, यदि हिजरत (प्रवास) के बाद कोई सूरह या आयत नाज़िल हुई है, तो उसे मदनी माना जाएगा; भले ही मक्का शहर में या पैग़म्बर (स) की किसी यात्रा के दौरान नाज़िल हुई हो; उन आयतों की तरह जो मक्का की विजय या हज्जतुल वेदाअ में नाज़िल हुई थीं।[१९]
कुछ कुरानिक विद्वानों ने, मक्की और मदनी सूरों को नाज़िल होने के समय के अनुसार नहीं, बल्कि सूरह के स्थान या श्रोता (मुख़ातब) के अनुसार विभाजित किया है। स्थानीय मानदंडों के अनुसार, जो सूरह मक्का और उसके आसपास जैसे मेना, अराफ़ात और हुदैबिया में नाज़िल हुए हैं वह मक्की हैं, भले ही वह सूरह हिजरत के बाद नाज़िल हुआ हो, और जो सूरह मदीना और उसके आसपास जैसे बद्र और ओहद में नाज़िल हुए हैं वह मदनी हैं।[२०] लेकिन, सूरों के श्रोता (मुख़ातब) की कसौटी के अनुसार, जो सूरह मक्का के लोगों को संबोधित है वह मक्की है और जो सूरह मदीना के लोगों को संबोधित है वह मदनी है।[२१] श्रोता (मुख़ातब) को अलग करने की कसौटी यह है कि जो सूरह शब्द "या अय्योहन नास" (हे लोगों) के साथ नाज़िल हुआ है वह मक्की है और जो सूरह शब्द "या अय्योहल लज़ीना आमनू" (हे वह लोग जो ईमान लाए) के साथ नाज़िल हुआ है वह मदनी है।[२२]
सूरह के छोटे और बड़े होने के आधार पर विभाजन
क़ुरआन के सूरों को उनके छोटे होने, बड़े होने और आयतों की संख्या के आधार पर, सात लंबे सूरों (सबए तेवाल), मेऊन, मसानी और अल मुफ़स्सल में विभाजित किया गया है।[२३]
सबए तेवाल; जिन सूरों को उनकी आयतों की अधिक संख्या के कारण इस नाम से नामित किया गया है, उनमें सात सूरह, सूर ए बक़रा, सूर ए आले इमरान, सूर ए निसा, सूर ए मायदा, सूर ए अन्आम, सूर ए आराफ़ और सूर ए अंफ़ाल (या सूर ए अंफ़ाल के बजाय सूर ए यूनुस) शामिल हैं।[२४]
मेऊन; वे सूरह जो सात लंबे सूरों (सबए तेवाल) से छोटे हैं और उन सूरों में सौ से अधिक आयतें हैं: सूर ए यूनुस (या सूर ए अंफ़ाल), सूर ए अल तौबा, सूर ए अल नहल, सूर ए हूद, सूर ए यूसुफ़, सूर ए अल कहफ़, सूर ए अल इस्रा, सूर ए अल अम्बिया, सूर ए ताहा, सूर ए अल मोमेनून, सूर ए अल शोअरा' और सूर ए अल साफ़्फ़ात।[२५]
मसानी; क़ुरआन में लगभग बीस सूरह हैं जिनकी आयतों की संख्या 100 आयतों से भी कम हैं।[२६] जैसे सूर ए क़सस, सूर ए नम्ल, सूर ए अन्कबूत, सूर ए यासीन और सूर ए साद।[२७]
मुफ़स्सलात; जो सूरह क़ुरआन के अंत में हैं[२८] चूंकि ये सूरह छोटे हैं और एक बिस्मिल्लाह द्वारा एक दूसरे से अलग किए गए हैं, इसलिए उन्हें मुफ़स्सल कहा जाता है।[२९]
अन्य विभाजन
क़ुरआन के सूरों के लिए उल्लिखित अन्य विभाजन में अज़ाएम, मुसब्बेहात, हवामीम, मुमतहेनात, हामिदात, चारक़ुल, तवासीन, मुअव्वज़तैन और ज़हरावान शामिल हैं।[३०]
अज़ाएम या अज़ाएम अल सुजूद; वह सूरह जिन में सजदा है, सूर ए सजदा, सूर ए फ़ुस्सेलत, सूर ए नज्म और सूर ए अलक़, कि अगर कोई उन्हें पढ़े या सुने, तो उसे उसी क्षण सजदा करना चाहिए।[३१]
हवामीम; 40वें सूरह (सूर ए ग़ाफ़िर) से 46वें सूरह (सूर ए अहक़ाफ़) तक को कहा जाता है जो "हा मीम" हुरूफ़े मुक़त्तेआ से शूरू होता है।[३२] इन सभी सूरों में, हुरूफ़े मुक़त्तेआ के तुरंत बाद, क़ुरआन और उसके नाज़िल होने का उल्लेख किया गया है।[३३]
मुसब्बेहात; सूर ए हदीद, सूर ए हश्र, सूर ए सफ़, सूर ए जुमा और सूर ए तग़ाबुन को कहा जाता है जो ईश्वर की महिमा (तस्बीह) से शुरू होता है।[३४]
क़ुरआन के सूरों की संख्या
अधिकांश शोधकर्ताओं ने क़ुरआन के सूरों की संख्या 114 सूरह मानी है[३५] हालाँकि, कुछ लेखकों ने क़ुरआन की आयतों को कम किए बिना क़ुरआन के सूरों की संख्या 112 सूरह मानी है, इस दृष्टिकोण को एक प्रसिद्ध शिया सिद्धांत के रूप में पेश किया गया है।[३६] उनके अनुसार, सूर ए फ़ील और सूर ए क़ुरैश, साथ ही सूर ए ज़ोहा और सूर ए इंशेराह, दो स्वतंत्र सूरह नहीं हैं, बल्कि एक सूरह हैं।[३७] यह सिद्धांत दो अलग-अलग रिवायतों के संयोजन के बाद बनाया गया है।[३८] कई हदीसों के अनुसार, नमाज़ पढ़ने वाले व्यक्ति को सूर ए हम्द के बाद क़ुरआन का केवल एक सूरह पढ़ना चाहिए।[३९] और हदीसों के एक अन्य समूह के अनुसार, जब नमाज़ पढ़ने वाला व्यक्ति सूर ए हम्द का पाठ करने के बाद सूर ए फ़ील पढ़ता है, तो उसे सूर ए क़ुरैश भी पढ़ना चाहिए, और यदि वह सूर ए ज़ोहा पढ़ता है, तो उसे सूर ए इंशेराह भी इसके साथ पढ़ना चाहिए।[४०] इस सिद्धांत को अस्वीकार करते हुए, कुछ शोधकर्ताओं ने रिवायतों की इन दो श्रेणियों को संयोजित करते हुए एक और पहलू प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार, हालांकि सूर ए हम्द के बाद नमाज़ में केवल एक सूरह का पाठ किया जाना चाहिए, लेकिन सूर ए फ़ील और सूर ए क़ुरैश के साथ-साथ सूर ए ज़ोहा और सूर ए इंशेराह को इस हुक्म से बाहर रखा गया है।[४१] कुछ शिया और सुन्नी टिप्पणीकार सूर ए अंफ़ाल और सूर ए तौबा को भी एक सूरह मानते हैं और क़ुरआन की आयतों की संख्या कम किए बिना, उन्होंने क़ुरआन के सूरों की संख्या 113 सूरह मानी है।[४२]
कुछ सुन्नी रिवायतों के अनुसार, सूरों की संख्या में अंतर के कारण क़ुरआन में आयतों को घटाया या जोड़ा गया है।[४३] किताब अल इत्क़ान के लेखक सियूती के कथन के अनुसार, मुस्हफ़ अब्दुल्लाह बिन मसऊद में 112 सूरह थे; क्योंकि उन्होंने मुअव्वज़तैन को तावीज़ माना है और उन्हें क़ुरआन के सूरों में नहीं गिना है।[४४] इसके अलावा, सियूती का मानना है कि उबैय बिन कअब के मुस्हफ़ में 116 सूरह था; क्योंकि उबैय बिन कअब ने खलअ और हफ़द नाम के दो सूरह क़ुरआन में जोड़ दिये थे।[४५] कुछ प्राच्यवादियों ने सूर ए अलक़ और सूर ए मुदस्सिर के सूरों को दो भागों में विभाजित करके क़ुरआन के सूरों की संख्या में दो सूरह भी जोड़ दिए हैं, और क़ुरआन के सूरों की संख्या 116 सूरह मानी है।[४६]
सूरह का नामकरण
क़ुरआन के प्रत्येक सूरह को एक विशेष नाम दिया गया है और इसे अक्सर प्रत्येक सूरह के शुरुआती शब्दों या उनमें छिपी सामग्री और संदेशों से लिया गया है; जिस प्रकार सूर ए बक़रा का नाम इस सूरह में बनी इसराइल की गाय के उल्लेख के कारण रखा गया है या महिलाओं से संबंधित अहकाम के उल्लेख के कारण सूर ए निसा का नाम दिया गया है।[४७] क़ुरआन के कुछ सूरों के एक से अधिक नाम हैं, सियूती ने सूर ए हमद के लिए 25 नामों का उल्लेख किया है।[४८]
इस बात पर मतभेद है कि क्या ये नामकरण पैग़म्बर (स) द्वारा रहस्योद्घाटन (वही) के मार्गदर्शन में किए गए हैं, या सहाबा द्वारा किए गए थे[४९] ज़रकशी और सियूती जैसे कुछ कुरानिक विद्वानों का मानना है कि सूरह का नामकरण पैगंबर द्वारा (तौक़ीफ़ी) किया गया था।[५०] और सूरह को अन्य नामों के साथ नहीं पढ़ा (बुलाना) जाना चाहिए।[५१] इस तथ्य का हवाला देते हुए कि सूरों के नाम प्रतिबंधित हैं, कुछ लेखकों ने सूरों के नामकरण को क़ुरआन के साहित्यिक चमत्कार (एजाज़े अदबी क़ुरआन) के हिस्से के रूप में पेश किया है, और उनका मानना है कि सूरह के मुख्य उद्देश्य और सार को इनसे नाम से समझा जा सकता है।[५२]
इसके विपरीत, 14वीं शताब्दी में शिया टिप्पणीकारों में से एक, सय्यद मुहम्मद हुसैन तबातबाई और अब्दुल्लाह जवादी आमोली का मानना है कि सूरह का नामकरण तौक़ीफ़ी नहीं है और पैग़म्बर (स) नहीं रखा गया है।[५३] उनके अनुसार, पैग़म्बर (स) के युग के दौरान, कई सहाबा के उपयोग के कारण कई सूरह के नाम रखे गए थे।[५४] जवादी आमोली की राय के अनुसार, यह संभावना नहीं है कि एक सूरह जिसमें महान ज्ञान, गहन ज्ञान और कई अहकाम हैं, उसका नाम किसी जानवर के नाम पर रखा जाए, या सूर ए अन्आम, जिसमें चालीस एकेश्वरवादी एहतेजाज शामिल हैं, जिसे चाहरपायन कहा जाता है, या सूर ए नम्ल, जिसमें गहरा ज्ञान शामिल है और कई भविष्यवक्ताओं की कहानियाँ शामिल हैं, इसका नाम चींटी के नाम पर रखा जाना चाहिए।[५५]
सूरह का क्रम
अधिकांश शोधकर्ताओं का मानना है कि मुस्हफ़ में क़ुरआन के सूरों का क्रम ईश्वर के पैग़म्बर (स) के आदेश से नहीं किया गया था और सहाबा ने इसे इस तरह से व्यवस्थित किया था[५६] इस दृष्टिकोण के समर्थन में दिए गए तर्कों में से एक है सूरों के क्रम में और सहाबा के मुस्हफ़ के बीच अंतर है;[५७] जिस तरह इमाम अली (अ) का मुस्हफ़ वर्तमान मुस्हफ़ पर आधारित नहीं था, बल्कि सूरह के रहस्योद्घाटन (नुज़ूल) के क्रम पर आधारित था।[५८] क़ुरआन का वर्तमान संस्करण जो मुसलमानों के बीच मौजूद है। यह एक संस्करण है जिसे तीसरे खलीफा उस्मान बिन अफ्फ़ान के आदेश द्वारा संकलित किया गया था[५९] और इमाम अली (अ) और अन्य इमामों (अ) द्वारा अनुमोदित किया गया था।[६०]
हालाँकि, कुछ क़ुरआन विद्वानों का मानना है कि क़ुरआन के सूरों का वर्तमान क्रम ईश्वर के पैग़म्बर (स) के आदेश द्वारा व्यवस्थित किया गया था।[६१] इनमें से कुछ लोगों का मानना है कि सूरह ने एक-दूसरे के साथ सद्भाव और संबंध बनाया है।[६२] एक अन्य समूह की राय है कि क़ुरआन के सूरह का क्रम (तरतीब) तौक़ीफ़ (पैग़म्बर के आदेश) और इज्तिहाद का मिश्रण है; इसका मतलब यह है कि कुछ सूरह का क्रम ईश्वर के पैग़म्बर (स) के आदेश के अनुसार है और कुछ अन्य का आदेश इज्तिहाद पर आधारित है और कुछ का उन सहाबा की राय से किया गया था जो उस्मान से क़ुरआन इकट्ठा करने लिए ज़िम्मेदार थे।[६३]
पहला और आख़िरी नाज़िल होने वाला सूरह
पैग़म्बर (स) पर नाज़िल होने वाले पहले सूरह के बारे में तीन मत हैं; कुछ लोगों ने सूर ए अलक़ की शुरुआती आयतों को, कुछ ने सूर ए मुदस्सिर की शुरुआती आयतों को, और कुछ ने सूर ए हम्द को पैग़म्बर मुहम्मद (स) पर नाज़िल होने वाला पहला सूरह माना है।[६४] किताब अल तम्हीद के लेखक मुहम्मद हादी मारेफ़त का मानना है कि यद्यपि सूर ए अलक़ की शुरुआती आयतें पैग़म्बर (स) पर नाज़िल होने वाली पहली आयतें थीं और सूर ए मुदस्सिर की शुरुआती आयतें फ़तरत की अवधि के बाद पैग़म्बर (स) पर नाज़िल होने वाली पहली आयतें थीं, लेकिन पहला सूरह है जो पूरी तरह से पैग़म्बर (स) पर नाज़िल हुआ था यह सूर ए हम्द है।[६५]
पैग़म्बर (स) पर नाज़िल होने वाले आखिरी सूरह के संबंध में, कुछ लोग सूर ए बराअत, कुछ सूर ए नस्र और कुछ सूर ए मायदा को आखिरी सूरह मानते हैं।[६६] इमाम सादिक़ (अ) से वर्णित एक हदीस के अनुसार आखिरी सूरह जो पैग़म्बर (स) पर नाज़िल हुआ था, सूर ए नस्र था।[६७] चूँकि सूर ए नस्र मक्का की विजय से पहले और सूर ए तौबा मक्का की विजय के बाद नाज़िल हुआ था, मुहम्मद हादी मारेफ़त का मानना है कि यद्यपि सूर ए बारात की पहली आयतें सूर ए नस्र के बाद नाज़िल हुईं थी, लेकिन आखिरी सूरह जो एक साथ (पूरा सूरह) पैग़म्बर (स) पर नाज़िल हुआ था वह सूर ए नस्र था।[६८]
सूरों की फ़ज़ीलत
- मुख्य लेख: सूरों के फ़ज़ाइल
शुरूआती शिया हदीस स्रोतों में, सूरों के गुणों के बारे में कई हदीसें वर्णित हुई हैं, और किताब अल काफ़ी[६९] और सवाब उल आमाल[७०] जैसी किताबों में इसी शीर्षक वाले अध्याय इस विषय के लिए समर्पित हैं। बाद के समय में, कुछ विद्वानों ने इन कथनों का अपनी पुस्तकों में उल्लेख किया है।[७१] सुन्नी हदीस स्रोतों में कुछ सूरह और क़ुरआन की आयतों के गुणों के बारे में कई हदीसें वर्णित हुई हैं।[७२] इन सभी बातों के बावजूद, उपर्युक्त हदीसें प्रामाणिकता (सनद) और पाठ (मतन) के संदर्भ में विभिन्न समस्याओं से ग्रस्त हैं, यही कारण है कि उनमें से अधिकांश को नकली (जअली) माना जाता है।[७३]
फ़ुटनोट
- ↑ मआरिफ़, मबाहेसी दर तारीख़ व उलूमे क़ुरआनी, 1383 शम्सी, पृष्ठ 52।
- ↑ रुक्नी, आशनाई बा उलूमे क़ुरआन, 1379 शम्सी, पृष्ठ 104।
- ↑ मआरिफ़, मबाहेसी दर तारीख़ व उलूमे क़ुरआनी, 1383 शम्सी, पृष्ठ 52।
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, खंड 13, पृष्ठ 231-230।
- ↑ मआरिफ़, दरआमदी बर तारीख़े क़ुरआन, 1383 शम्सी, पृष्ठ 137।
- ↑ मआरिफ़, दरआमदी बर तारीख़े क़ुरआन, 1383 शम्सी, पृष्ठ 137।
- ↑ ज़र्क़ानी, मनाहिल अल इरफ़ान, दार एह्या अल तोरास अल अरबी, खंड 1, पृष्ठ 344।
- ↑ ख़ामेगर, साखतारे हिन्दिसी सूरेहाए क़ुरआनी, 1386 शम्सी, पृष्ठ 19-14।
- ↑ मीर, "पैवस्तगी सूरह, तहव्वली दर तफ़सीरे क़ुरआन दर क़ुरआन बीसतुम", मुहम्मद हसन द्वारा अनुवादित, मुहम्मदी मुज़फ़्फ़र, पृष्ठ 443।
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 16।
- ↑ मीर, "पैवस्तगी सूरह, तहव्वली दर तफ़सीरे क़ुरआन दर क़ुरआन बीसतुम", मुहम्मद हसन द्वारा अनुवादित, मुहम्मदी मुज़फ़्फ़र, पृष्ठ 438।
- ↑ मकारिम शिराज़ी, क़ुरआन व आख़रीन पयाम्बर, 1385 शम्सी, पृष्ठ 307।
- ↑ मआरिफ़, दरआमदी बर तारीख़े क़ुरआन, 1383 शम्सी, पृष्ठ 137।
- ↑ मआरिफ़, दरआमदी बर तारीख़े क़ुरआन, 1383 शम्सी, पृष्ठ 138।
- ↑ मआरिफ़, दरआमदी बर तारीख़े क़ुरआन, 1383 शम्सी, पृष्ठ 138।
- ↑ रामयार, तारीख़े कुरआन, 1369 शम्सी, पृष्ठ 596।
- ↑ मारेफ़त, अल तम्हीद, 1386 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 135 से 137।
- ↑ मारेफ़त, अल तम्हीद, 1386 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 131।
- ↑ मारेफ़त, अल तम्हीद, 1386 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 130।
- ↑ सियूति, अल इत्क़ान, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 55।
- ↑ सियूति, अल इत्क़ान, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 56।
- ↑ सियूति, अल इत्क़ान, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 81।
- ↑ अहमदियान, क़ुरआन शनासी, 1382 शम्सी, पृष्ठ 56-57।
- ↑ रादमनिश, आशनाई बा उलूमे क़ुरआनी, 1374 शम्सी, पृष्ठ 150।
- ↑ रादमनिश, आशनाई बा उलूमे क़ुरआनी, 1374 शम्सी, पृष्ठ 150।
- ↑ मारेफ़त, अल तम्हीद, 1386 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 282।
- ↑ जवान आरास्तेह, दर्सनामे उलूमे क़ुरआनी, 1380 शम्सी, पृष्ठ 192-193।
- ↑ रामयार, तारीख़े क़ुरआन, 1369 शम्सी, पृष्ठ 595।
- ↑ रामयार, तारीख़े क़ुरआन, 1369 शम्सी, पृष्ठ 595।
- ↑ रामयार, तारीख़े क़ुरआन, 1369 शम्सी, पृष्ठ 596-597।
- ↑ बनी हाशमी, तौज़ीह उल मसाएल मराजेअ, 1381 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 592-593।
- ↑ रामयार, तारीख़े क़ुरआन, 1369 शम्सी, पृष्ठ 596।
- ↑ सियूती, तनासुक़ अल दोरर फ़ी तनासुब अल सोवर, 1406 हिजरी, पृष्ठ 115।
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, खंड 19, पृष्ठ 144।
- ↑ मुहम्मदी, सरोश आसमानी, 1381 शम्सी, पृष्ठ 99।
- ↑ लेखकों का एक समूह, उलूम अल क़ुरआन इन्दल मुफ़स्सेरीन, 1375 शम्सी, पृष्ठ 273।
- ↑ लेखकों का एक समूह, उलूम अल क़ुरआन इन्दल मुफ़स्सेरीन, 1375 शम्सी, पृष्ठ 273।
- ↑ दश्ती, "बर्रसी वहदत ज़ोहा व इंशेराह, व फ़ील व क़ुरैश", पृष्ठ 77-78।
- ↑ कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 314।
- ↑ उदाहरण के लिए: शेख़ तूसी, तहज़ीब उल अहकाम, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 72; तबरसी, मजमा उल बयान, 1372 शम्सी, खंड 10, पृष्ठ 827।
- ↑ तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, खंड 20, पृष्ठ 365; दश्ती, "बर्रसी वहदते ज़ोहा व इंशेराह व फ़ील व क़ुरैश", पृष्ठ 87।
- ↑ देखें: तबातबाई, अल मीज़ान, 1417 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 146; सियूती, अल इत्क़ान, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 228।
- ↑ सियूती, अल इत्क़ान, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 229।
- ↑ सियूति, अल इत्क़ान, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 229।
- ↑ सियूति, अल इत्क़ान, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 229।
- ↑ बैदवी, और सय्यदी, देफ़ाअ अज़ क़ुरआन दर बराबरे आराए ख़ावरशनासान, 1383 शम्सी, पृष्ठ 175।
- ↑ सियूति, अल इत्क़ान, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 203।
- ↑ सियूति, अल इत्क़ान, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 193-196।
- ↑ अबू शहबा, अल मदख़ल ले दरासत अल क़ुरआन अल करीम, 1423 हिजरी, पृष्ठ 321।
- ↑ उदाहरण के लिए, देखें: ज़रकशी, अल बुरहान, 1410 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 367; सियूति, अल इत्क़ान, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 192।
- ↑ अबू शहबा, अल मदख़ल ले दरासत अल क़ुरआन अल करीम, 1423 हिजरी, पृष्ठ 321।
- ↑ ख़ामेगर, साख़तारे हिन्दिसी सूरेहाए क़ुरआन, 1386 शम्सी, पृष्ठ 132।
- ↑ तबातबाई, क़ुरआन दर इस्लाम, 1353 शम्सी, पृष्ठ 219; जवादी आमोली, तफ़सीरे तस्नीम, 1389 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 27।
- ↑ तबातबाई, क़ुरआन दर इस्लाम, 1353 शम्सी, पृष्ठ 219; जवादी आमोली, तफ़सीर तस्नीम, 1389 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 27।
- ↑ जवादी आमोली, तफ़सीरे तस्नीम, 1389 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 27।
- ↑ फ़िक़हीज़ादेह, पजोहिशी दर नज़्मे क़ुरआन, 1374 शम्सी, पृष्ठ 72।
- ↑ रामयार, तारीख़े क़ुरआन, 1369 शम्सी, पृष्ठ 598।
- ↑ शेख मुफ़ीद, अल मसाएल अल सरविय्या, 1413 हिजरी, पृष्ठ 79।
- ↑ फ़िक़हीज़ादेह, पजोहिशी दर नज़्मे क़ुरआन, 1374 शम्सी, पृष्ठ 73।
- ↑ मारेफ़त, अल तम्हीद, 1386 शम्सी, खंड 1, पृ. 341-342।
- ↑ सियूति, अल इत्क़ान, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 223; सुब्ही सालेह, मबाहिस फ़ी उलूमे क़ुरआन, 1372 शम्सी, पृष्ठ 71।
- ↑ सियूती, तरतीब सोवर अल क़ुरआन, 2000 ईस्वी, पृष्ठ 32।
- ↑ इब्ने अतिय्या, अल मुहर्र अल वजीज़, 1422 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 50।
- ↑ सियूति, अल इत्क़ान, 1421 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 106-108; मारेफ़त, अल तम्हीद, 1386 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 124-126।
- ↑ मारेफ़त, अल तम्हीद, 1386 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 127।
- ↑ मारेफ़त, अल तम्हीद, 1386 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 127।
- ↑ शेख़ सदूक़, उयून अख़बार अल रज़ा (अ), 1378 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 6।
- ↑ मारेफ़त, अल तम्हीद, 1386 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 128।
- ↑ कुलैनी, अल काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 596।
- ↑ शेख़ सदूक़, सवाब उल आमाल, 1406 हिजरी, पृष्ठ 103।
- ↑ उदाहरण के लिए: हुर्रे आमोली, वसाएल उल शिया, 1409 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 37; मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, खंड 89, पृष्ठ 223, खंड 110, पृष्ठ 263; बोरोजर्दी, जामेअ अहादीस अल शिया, 1386 शम्सी, खंड 23, पृष्ठ 790।
- ↑ मालिक बिन अनस, अल मोअत्ता, 1425 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 202; बोखारी, सहीह बोखारी, 1422 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 187-189; तिर्मिज़ी, सोनन अल तिर्मिज़ी, 1419 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 231।
- ↑ नसीरी, "चेगूनगी तअम्मुल बा रवायात फ़ज़ाइल व ख़वास आयात व सोवर", पृष्ठ 67।
स्रोत
- इब्ने अत्तिया, अब्दुल हक़ बिन ग़ालिब, अल मोहर्रर अल वजीज़ फ़ी तफ़सीर अल किताब अल अज़ीज़, बेरूत, दार उल कुतुब अल इल्मिया, 1422 हिजरी।
- अहमदयान, अब्दुल्लाह, क़ुरआन शनासी, तेहरान, एहसान पब्लिशिंग हाउस, 1382 शम्सी।
- अबू शहबा, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अल मदख़ल ले दरासतिल क़ुरआन अल करीम, क़ाहिरा, मकतबा अल सुन्नत, 1423 हिजरी।
- बोख़ारी, मुहम्मद बिन इस्माईल, सहीह बोखारी, बेरूत, दार तौक़ अल नेजात, 1422 हिजरी।
- बदवी, अब्दुर्रहमान; और सय्यदी, सय्यद हुसैन, देफ़ाअ अज़ क़ुरआन दर बराबर आराए ख़ावरशनासान, मशहद, बेह नशर, 1383 शम्सी।
- बोरोजर्दी, हुसैन, जामेअ अहादीस अल शिया, तेहरान, फ़र्हंगे सब्ज़, 1386 शम्सी।
- बनी हाशमी, मुहम्मद हसन, तौज़ीह उल मसाएल मराजेअ, क़ुम, दफ़्तरे इंतेशाराते इस्लामी, 1381 शम्सी।
- तिर्मिज़ी, मुहम्मद इब्ने ईसा, सुनन अल तिर्मिज़ी, क़ाहिरा, दार उल हदीस, 1419 हिजरी।
- जवादी आमोली, अब्दुल्लाह, तफ़सीरे तस्नीम, क़ुम, इस्रा, 1389 शम्सी।
- जवादी आमोली, अब्दुल्लाह, तफ़सीरे तस्नीम, क़ुम, इस्रा पब्लिशिंग हाउस, छठा संस्करण, 1389 शम्सी।
- जवान आरास्तेह, हुसैन, दर्सनामे उलूमे क़ुरआनी, क़ुम, बूस्तान, 1380 शम्सी।
- हुर्रे आमोली, मुहम्मद बिन हसन, तफ़्सील वसाएल अल शिया एला तहसील मसाएल अल शरिया, क़ुम, मोअस्सास ए आल अल बैत (अ), 1409 हिजरी।
- ख़ामेगर, मुहम्मद, साख़तारे हिन्दिसी सूरेहाए क़ुरआनी, तेहरान, साज़माने तब्लीग़ाते इस्लामी, 1386 शम्सी।
- दश्ती, सय्यद महमूद, "बर्रसी ए बेहदत ज़ोहा व इंशेराह, व फ़ील व क़ुरैश", पजोहिशनामे क़ुरआन व हदीस मजल्ले में, नंबर 2,1382 शम्सी।
- राद मनिश, सय्यद मुहम्मद, आशनाई बा उलूमे क़ुरआनी, तेहरान, जामी, 1374 शम्सी।
- रामयार, महमूद, तारीख़े कुरआन, तेहरान, अमीर कबीर, तीसरा संस्करण, 1369 शम्सी।
- रामयार, महमूद, तारीख़े कुरआन, तेहरान, अमीर कबीर, 1369 शम्सी।
- रुकनी, मुहम्मद महदी, आशनाई बा उलूमे क़ुरआनी, तेहरान, सेमत, 1379 शम्सी।
- ज़र्क़ानी, मुहम्मद अब्दुल अज़ीम, मनाहिल अल इरफ़ान फ़ी उलूम अल कुरआन, बेरूत, दार इह्या अल तोरास अल अरबी, बिना तारीख़।
- ज़र्कशी, मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह, अल बुरहान फ़ी उलूम अल कुरआन, बेरूत, दार उल मारेफ़त, 1410 हिजरी।
- सियूती, अब्दुर्रहमान, अल इत्क़ान फ़ी उलूम अल कुरआन, बेरूत, दार उल किताब अल अरबी, 1421 हिजरी।
- सियूती, अब्दुर्रहमान, तरतीबे सोवर अल क़ुरआन, बेरूत, मकतबा अल हिलाल, 2000 ईस्वी।
- सियूती, अब्दुर्रहमान, तनासुक़ अल दोरर फ़ी तनासुब अल सोवर, अब्दुल क़ादिर अहमद अत्ता द्वारा शोध किया गया, बेरूत, दार अल कुतुब अल इल्मिया, 1406 हिजरी।
- शेख़ सदूक़, मुहम्मद बिन अली, सवाब उल आमाल व एक़ाब उल आमाल, क़ुम, दार शरीफ़ रज़ी, 1406 हिजरी।
- शेख़ सदूक़, मुहम्मद बिन अली, उयून अख़्बार अल रज़ा (अ), तेहरान, नशरे जहां, 1378 हिजरी।
- शेख़ तूसी, मुहम्मद बिन हसन, तहज़ीब उल अहकाम, तेहरान, दार उल किताब अल इस्लामिया, 1407 हिजरी।
- शेख़ मुफ़ीद, मुहम्मद बिन मुहम्मद, अल मसाएल अल सरविय्या, क़ुम, शेख़ मुफ़ीद की विश्व हजारा कांग्रेस, 1413 हिजरी।
- सुब्ही सालेह, मबाहिस फ़ी उलूम अल क़ुरआन, क़ुम, मंशूराते रज़ी, 1372 शम्सी।
- तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अल मीज़ान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, मोअस्सास ए अल आलमी लिल मतबूआत, बेरुत (लेबनान), पहला संस्करण, 1417 हिजरी।
- तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, क़ुरआन दर इस्लाम, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामिया, 1353 शम्सी।
- तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमा उल बयान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, तेहरान, नासिर खोस्रो, 1372 शम्सी।
- फ़िक़ही ज़ादेह, अब्दुल हादी, पजोहिशी दर नज़्मे क़ुरआन, तेहरान, जिहाद विश्वविद्यालय, 1374 शम्सी।
- कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल काफ़ी, तेहरान, दार अल किताब अल इस्लामिया, 1407 हिजरी।
- लेखकों का एक समूह, उलूम अल क़ुरआन इन्दल मुफ़स्सेरीन, क़ुम, मकतब अल आलाम अल इस्लामी, 1375 शम्सी।
- मालिक बिन अनस, अल मोवत्ताअ, अबू ज़बी, मोअस्सास ए ज़ायद बिन सुल्तान अल नहयान, 1425 हिजरी।
- मजलिसी, मुहम्मद बाक़िर, बिहार उल अनवार अल जामेअ ले दोरर अख़्बार अल आइम्मा अल अतहार, बेरूत, दार इह्या अल तोरास अल अरबी, दूसरा संस्करण, 1403 हिजरी।
- मुहम्मदी, काज़िम, सरोश आसमानी सैरी दर मफ़ाहीमे क़ुरआनी, तेहरान, वेज़ारते इरशाद, 1381 शम्सी।
- मआरिफ़, मजीद, दर आमदी बर तारीख़े क़ुरआन, तेहरान, नबा, 1383 शम्सी।
- मआरिफ़, मजीद, मबाहेसी दर तारीख़ व उलूमे क़ुरआनी, तेहरान, नबा, 1383 शम्सी।
- मारेफ़त, मुहम्मद हादी, अल तम्हीद फ़ी उलूम अल कुरआन, क़ुम, मोअस्सास ए इंतेशाराते इस्लामी, 1386 शम्सी।
- मकारिम शिराज़ी, नासिर, क़ुरआन व आख़रीन पयाम्बर, तेहरान, दार उल कुतुब अल इस्लामिया, 1385 शम्सी।
- मीर, मुस्तन्सिर, "पैवस्तगी ए सूरह, तहव्वोली दर तफ़सीरे क़ुरआन दर क़रने बीसतुम", मुहम्मद हसन, मुहम्मदी मुज़फ्फ़र द्वारा अनुवादित, आइन ए पजोहिश मैगज़ीन में, नंबर 107 और 108, आज़र और इस्फंद 1386 शम्सी।
- नसीरी, "चेगूनगी ए तआमुल बा रवायाते फ़ज़ाइल व ख़वास आयात व सोवर", उलूमे हदीस मैगज़ीन में, संख्या 79, वसंत 1395 शम्सी।