अस्मा उल-हुस्ना

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नामों (अस्मा) और गुणों (सिफ़ात) से भ्रमित न हों।

अस्मा-अल-हुस्ना (अरबीः الأسماء الحُسنى) एक क़ुरआनिक शब्द है, जिसका अर्थ है भगवान के अच्छे नाम। इस वाक्यांश का इस्तेमाल क़ुरआन के चार सूरो में किया गया है। उनमें से एक में भगवान को इन्हीं नामों से बुलाने का उल्लेख है। मुस्लिम विद्वानों के अनुसार, ईश्वर के अच्छे नामों का अर्थ उसके गुणों से है, जो सभी अच्छे हैं।

कि इस आयत के अनुसार अस्मा उल-हुस्ना ईश्वर के विशेष नाम हैं। कुछ हदीसों में, अहले-बैत (अ) को अस्मा उल-हुस्ना के मिसदाक़ के रूप में परिचित कराया गया है, जिसके माध्यम से ईश्वर से निकटता की तलाश करनी चाहिए।

अस्मा उल-हुस्ना, ईश्वर के अच्छे नाम

"अस्मा-अल-हुस्ना" क़ुरआन से लिया गया एक मुहावरा है, जिसका अर्थ है अल्लाह के अच्छे नाम।[१] इस वाक्यांश का उपयोग कुरान के चार सूरो: सूर ए ताहा आयत न 8, सूर ए हश्र आयत न 24, सूर ए आराफ़ आयत न 180 और सूर ए इस्रा आयत न 110 में किया गया है। इन आयतों में कहा गया है कि: "अल्लाह के अच्छे नाम हैं।"[२] सूर ए आराफ़ में इस वाक्य के बाद खुदा को इन नामों से बुलाने की बात कही गई है।[३]

अस्मा उल-हुस्ना का सारांश

मुस्लिम टीकाकारों ने अस्मा उल-हुस्ना की अलग-अलग व्याख्या की है। मजमा अल ब्यान के लेखक तबरसी के अनुसार अल्लाह के नाम अच्छे माने जाते हैं क्योंकि अल्लाह के ऐसे नाम हैं जिनका अर्थ अच्छा हैं। जवाद, रहीम, रज्जाक और करीम इत्यादि।[४] अल-तिबयान में शेख़ तूसी ने अल्लाह के नामों के अर्थ को उसनी विशेषताओं के रूप में माना है (अर्थात नामो को सिफ़ात जाना है), जो सभी अच्छे हैं।[५] तफ़सीरे नमूना के लेखकों ने भी इसी व्याख्या (तफसीर) का चयन किया है।[६]

अल्लामा तबताबाई के दृष्टिकोण से, अस्मा उल-हुस्ना का अर्थ ईश्वर के उन नामों से है जिनका वर्णनात्मक अर्थ है; अर्थात् वे उसकी विशेषता का संकेत देते हैं; जैसे जवाद, आदिल और रहीम; वे नाम नहीं जो केवल उसकी ज़ात को इंगित करते हैं (यह मानते हुए कि उसके ऐसे नाम हैं); ज़ैद और अम्र के नामों की तरह, जो किसी व्यक्ति की कोई विशेषता नहीं दर्शाते हैं केवल उसके अस्तित्व का उल्लेख करते हैं। और वर्णनात्मक अर्थ, एक ऐसी सिफ़त है जिसमें अच्छाई पाई जाती हो और ईश्वर में बेहतर तरीक़े से हो, अर्थात् यह एक ऐसी सिफ़त है जो दैवीय प्रकृति के योग्य हो। इसलिए, भले ही शुजाअ और अफ़ीफ़ अच्छे नाम हैं, वे दैवीय प्रकृति के योग्य नहीं हैं, क्योकि यह शारीरिक गुण हैं, और दैवीय नाम (अस्मा अल हुस्ना) सभी प्रकार के दोष और कमियों से मुक्त होने चाहिए।[७]

ईश्वर के अच्छे नाम

कुछ शिया और सुन्नी टिप्पणीकारों का मानना है कि आयत " لِلَّهِ الْأَسْماءُ الْحُسْنی लिल्लाहे अल-अस्मा अल-हुस्ना" अनुवाद: अच्छे नाम ईश्वर के लिए आरक्षित हैं,[८] इंगित करता है कि अच्छे नाम भगवान के लिए आरक्षित हैं।[९] अल्लामा तबताबाई के अनुसार, आयत का अर्थ यह है कि हर अच्छा नाम ( दुनिया में सबसे अच्छा और सबसे गुणी नाम) अगर मौजूद है, तो यह अल्लाह का नाम है और इसमे कोई भी अल्लाह का भागीदार नहीं है। निस्संदेह, यह कथन इस तथ्य का खंडन नहीं करता है कि परमेश्वर ने अपने कुछ गुणों, जैसे कि ज्ञान और दया, को दूसरों के लिए निसबत दी है; क्योंकि तात्पर्य यह है कि इन नामों की सत्यता विशिष्ट रूप से ईश्वर के लिए है।[१०]

अहले-बैत (अ) अस्मा उल-हुस्ना के मिसदाक़

कुछ हदीसों में अहले-बैत (अ) को अस्मा उल-हुस्ना के मिसदाक़ के रूप मे परिचित कराया गया है। उदाहरण के स्वरूप "अल्लाह के अच्छे नाम हैं, तो उसे उन नामों से बुलाओ " आयत के बारे में कुलैनी ने इमाम सादिक़ (अ) से एक वर्णित रिवायत है: "मैं अल्लाह की कसम खाता हूं, हम अस्मा उल-हुस्ना हैं, अल्लाह हमारी पहचान के बिना अपने सेवकों के किसी भी कार्य को स्वीकार नहीं करता है।"[११] [नोट 1] शिया मुफस्सिर अयाशी (मृत्यु 320 हिजरी) ने इसी आयत के अंतर्गत इमाम रज़ा (अ) से नक़ल किया है: "मुसीबत के समय हमसे मदद मांगें, और यही अल्लाह के शब्द है: وَ لِلَّهِ الْأَسْماءُ الْحُسْنى‏ فَادْعُوهُ بِها वा लिल्लाहे अल-अस्मा उल-हुस्ना फ़द्ऊहु बेहा।"[१२]

इन आख्यानों के अनुसार, कुछ लोगों ने सूर ए आराफ़ की आयत 180 में "अल्लाह को बुलाने" के अर्थ की व्याख्या अहले-बैत[१३] से तवस्सुल के रूप मे की है।

संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. मकारिम शिराज़ी, पयाम ए क़ुरआन, 1369 शम्सी, भाग 4, पेज 40
  2. फ़ख़्रे राज़ी, अल-तफसीर अल-कबीर, 1420 हिजरी, भाग 15, पेज 412
  3. सूर ए आराफ़, आयत न 180
  4. तबरसी, मजमा अल-बयान, 1372 शम्सी, भाग 4, पेज 773
  5. शेख़ तूसी, अल-तिबयान, दार ए एहयाए अल-तुरास अल-अरबी, भाग 5, पेज 39-40
  6. मकारिम शिराज़ी, तफसीर ए नमूना, 1374 शम्सी, भाग 7, पेज 23
  7. तबातबाई, अल-मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 8, पेज 342-343
  8. सूर ए आराफ़, आयत न 180
  9. देखेः फ़ख़्रे राज़ी, अल-तफसीर अल-कबीर, 1420 हिजरी, भाग 15, पेज 414; तबातबाई, अल-मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 8, पेज 343; ज़हीली, अल-तफसीर अल-मीज़ान, 1418 हिजरी, भाग 9, पेज 175
  10. तबातबाई, अल-मीज़ान, 1417 हिजरी, भाग 8, पेज 449
  11. कुलैनी, काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 143-144
  12. अय्याशी, किताब अल-तफ़सीर, 1380 हिजरी, भाग 2, पेज 42
  13. देखेः दहकरदी इस्फ़हानी, लुमआत दर शरह दुआ ए समात, 1385 शम्सी, पेज 28-35

स्रोत

  • दहकरदी इस्फ़हानी, सय्यद अबुल क़ासिम, व मजीद जलाली दहकरदी, लुम्आत दर शरह दुआ ए समात, क़ुम, बूस्ताने किताब, 1385 शम्सी
  • ज़हीली, वहबे, अल-तफ़सीर अल-मीज़ान फ़ी अल-अक़ीदा वल शरीया वल मनहज, बैरूत, दार अल-फ़िक्र अल-मुआसिर, 1418 हिजरी
  • शेख तूसी, मुहम्मद बिन हसन, अल-तिबयान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, शोधः अहमद क़सीर आमोली, बैरूत, दार एहया अल-तुरास अल-अरबी
  • अय्याशी, मुहम्मद बिन मसऊद, किताब अल-तफ़सीर, शोधः सय्यद हाशिम रसूली महल्लाती, तेहरान, चापख़ाना इल्मीया, 1380 हिजरी
  • तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अल-मीज़ान फ़ी तफसीर अल-क़ुरआन, क़ुम, दफ्तर इंतेशारात इस्लामी, पांचवा संस्करण, 1417 हिजरी
  • तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमा अल-बयान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, तेहरान, नासिर ख़ुसरू, तीसरा संस्करण, 1372 शम्सी
  • फ़ख़्रे राज़ी, मुहम्मद बिन उमर, अल-तफ़सीर अल-कबीर, बैरूत, दार एहया अल-तुरास अल-अरबी, 1420 हिजरी
  • कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल-काफ़ी, संशोधनः अली अकबर गफ़्फ़ारी व मुहम्मद आख़ूंदी, तेहरान, दार अल-कुतुब अल-इस्लामीया, 1407 हिजरी
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, पयाम ए क़ुरआन, क़ुम, मदरसा अमीर अल-मोमिनीन, 1369 शम्सी
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफ़सीर ए नमूना, तेहरान, दार अल-कुतुब अल-इस्लामीया, 1374 शम्सी