सूर ए तलाक़

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सूर ए तलाक़
सूर ए तलाक़
सूरह की संख्या65
भाग28
मक्की / मदनीमदनी
नाज़िल होने का क्रम99
आयात की संख्या12
शब्दो की संख्या289
अक्षरों की संख्या1203


यह लेख सूर ए तलाक़ के बारे में है। इसी नाम की आयत के बारे में जानने के लिए आय ए तलाक़ की आयत देखें।

सूर ए तलाक़ (अरबी: سورة الطلاق) पैंसठवाँ सूरह है और क़ुरआन के मदनी सूरों में से एक है, जो अट्ठाईसवें भाग में है। इस सूरह का नाम तलाक़ इस सूरह की अधिकांश आयतों में तलाक़ के अहकाम के संदर्भ के कारण है। सूर ए तलाक़ के पहले भाग में चेतावनियों, धमकियों और अच्छी ख़बरों के साथ-साथ तलाक़ के अहकाम के बारे में सामान्य चर्चा है, और दूसरे भाग में ईश्वर की महानता, पैग़म्बर (स) की स्थिति, धर्मियों के इनाम और दुष्टों के दण्ड के बारे में उल्लेख किया गया है।

ईश्वर के पैग़म्बर (स) की सुन्नत पर बने रहना और नर्क की आग से सुरक्षित रहना इस सूरह को पढ़ने के फलों में से एक है।

सूरह का परिचय

  • नामकरण

इस सूरह को तलाक़ कहा जाता है क्योंकि पहली आयत से लेकर पूरे सूरह के लगभग दो-तिहाई हिस्से में तलाक़ के अहकाम, तलाक़ की इद्दत और तलाकशुदा महिलाओं के बारे में बात की गई है।[१] सूर ए तलाक़ को सूर ए "निसा अल सुग़रा" भी कहा जाता है क़ुरआन के चौथे सूरह के विपरीत उस सूरह को "निसा अल कुबरा" कहा जाता है।[२] क़ुरआन में इस शब्द का उल्लेख दो बार किया गया है और इसके अन्य व्युत्पत्तियों का 12 बार उल्लेख किया गया है।[३]

  • नाज़िल होने का स्थान और क्रम

सूर ए तलाक़ मदनी सूरों में से एक है और नाज़िल होने के क्रम में यह निन्यानवेवाँ सूरह है जो पैग़म्बर (स) पर नाज़िल हुआ था। यह सूरह क़ुरआन की वर्तमान रचना में 65वां सूरह है और क़ुरआन के अध्याय 28 में शामिल है।[४]

  • आयतों की संख्या एवं अन्य विशेषताएँ

सूर ए तलाक़ में 12 आयतें, 289 शब्द और 1203 अक्षर हैं, और मात्रा के संदर्भ में यह मुफ़स्सलात सूरों और कुरआन के अपेक्षाकृत छोटे सूरों में से एक है।[५] इस सूरह को मुख़ातेबात सूरों में भी शामिल किया गया है और यह सूरह یا أَیهَا النَّبِی‌ (या अय्योहन नबी) के संबोधन से शुरू होता है।[६] इसी तरह इस सूरह को मुमतहेनात सूरों में भी शामिल किया गया है;[७] ऐसा कहा गया है कि इन सूरों की सामग्री सूर ए मुमतहेना के साथ संगत है।[८]

सूरह की सामग्री

सूर ए तलाक़ को चेतावनी, धमकियों और अच्छी ख़बरों के साथ-साथ तलाक़ के सामान्य नियमों (अहकाम) से युक्त माना गया है।[९] यह सूरह तलाक़ के अहकाम, तलाक़ की इद्दत, तलाकशुदा महिलाओं, तलाक़शुदा गर्भवती महिलाओं के लिए गुज़ारा भत्ता (नफ़्क़ा) और रेज़ाअ के अहकाम,[१०] और अतीत के समाजों और राष्ट्रों के भाग्य के बारे में यह भविष्य की पीढ़ियों की दिशा की ओर इशारा करता है। इसके अलावा एकेश्वरवाद, पुनरुत्थान (क़यामत), नबूवत के बारे में बात करना और पवित्र लोगों का वर्णन करना, साथ ही ईश्वर में धर्मपरायणता (तक़्वा) और विश्वास (तवक्कुल) की सिफ़ारिश सूर ए तलाक़ के अन्य विषयों में से हैं।[११]

प्रथम आयत का शाने नुज़ूल

मुख्य लेख: आय ए इद्दा ए तलाक़
सूर ए तलाक़ की दूसरी और तीसरी आयत का एक भाग

सूर ए तलाक़ की पहली आयत के शाने नुज़ूल के संबंध में, (يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ إِذَا طَلَّقْتُمُ النِّسَاءَ فَطَلِّقُوهُنَّ لِعِدَّتِهِنَّ وَأَحْصُوا الْعِدَّةَ; या अय्योहन नबीयो एज़ा तल्लक़्तोमु अन निसाआ फ़तल्लेक़ूहुन्ना लेइद्दतेहिन्ना व अह्सू अल इद्दता) (अनुवाद; हे पैग़म्बर, जब आप महिलाओं को तलाक़ देते हैं, तो उनकी [समय] इद्दत के हिसाब से तलाक़ दो और उस इद्दत का हिसाब रखो।) यह कहा गया है यह आयत अब्दुल्लाह बिन उमर के बारे में नाज़िल हुई थी जिसने अपनी पत्नी को मासिक धर्म (हैज़) के दौरान तलाक़ दे दिया था। इस आयत के नाज़िल होने के साथ, पैग़म्बर (स) ने अब्दुल्लाह बिन उमर को अपनी पत्नी के पास लौटने और उसे मासिक धर्म से मुक्त (हैज़ की अवधि समाप्त) होने तक घर पर रखने का आदेश दिया, यदि वह अभी भी अपनी पत्नी को तलाक़ देना चाहता है, तो संभोग किए बिना उसे तलाक़ दे दे।[१२]

प्रसिद्ध आयत

وَ مَن يَتَّقِ اللَّـهَ يَجْعَل لَّهُ مَخْرَ‌جًا *وَ يَرْ‌زُقْهُ مِنْ حَيْثُ لَا يَحْتَسِبُ وَ مَن يَتَوَكَّلْ عَلَى اللَّـهِ فَهُوَ حَسْبُهُ ۚ إِنَّ اللَّـهَ بَالِغُ أَمْرِ‌هِ ۚ قَدْ جَعَلَ اللَّـهُ لِكُلِّ شَيْءٍ قَدْرً‌ا

(व मन यत्तक़िल्लाहा यजअल लहु मख़्रजन व यर्ज़ुक़्हो मिन हैसो ला यह्तसेबो व मन यतवक्कल अल्ललाहे फ़होवा हस्बोहु इन्नल्लाहा बालेग़ो अम्रेही क़द जअलल्लाहो ले कुल्ले शैइन क़दरन) (आयत 2 और 3)

अनुवाद: जो कोई ईश्वर से डरता है, (भगवान) उसके लिए कोई रास्ता निकाल देगा और उसे वहां से जीविका प्रदान करेगा जहां से उसने सोचा नहीं होगा, और जो कोई ईश्वर पर भरोसा (तवक्कुल) करेगा, वह उसके लिए काफ़ी है। ईश्वर उसका आदेश पूरा करता है। वास्तव में, ईश्वर ने हर चीज़ के लिए एक माप निर्धारित किया है।

टीकाकारों ने सूर ए तलाक़ की दूसरी आयत का अंतिभ भाग और तीसरी आयत की शुरूआत जिन्हें अक्सर एक साथ पढ़ा जाता है, के शाने नुज़ूल और तफ़सीर के बारे में कुछ हदीसों का हवाला देते हुए इबादत, तक़्वा, प्रयास और तवक्कुल जैसे मुद्दों की चर्चा की है।[१३] अल्लामा तबातबाई ने इन दोनों आयतों को क़ुरआन की सबसे महत्वपूर्ण आयतों (ग़ोररे आयात) में से एक माना है और तक़्वा और वरअ तथा ईश्वरीय आदेशों के पालन और उनकी पवित्रता का सम्मान करने को जीवन की समस्याओं से बाहर निकलने का एक तरीक़ा माना है। इसी तरह उन्होंने तक़्वा और तवक्कुल की हक़ीक़त को हक़ के नामों और गुणों का ज्ञान (मारेफ़त), और दायित्वों की पूर्ति (वाजेबात का अंजाम देना) और निषेधों का परित्याग (मोहर्रेमात को छोड़ना) भी माना है, जिसका परिणाम मनुष्य की इच्छा का दैवीय इच्छा से मर जाना तथा ईश्वर के नियंत्रण (विलायत) में रहना तथा भौतिक एवं आध्यात्मिक जीवन-निर्वाह से लाभ प्राप्त करना है।[१४] आयत के इन दोनों हिस्सों के शाने नुज़ूल के बारे में उल्लेख किया गया है कि औफ़ बिन मालिक अश्जई के पुत्र को बहुदेववादियों द्वारा पकड़ लिया गया था। औफ़ ने अपनी पत्नी की अपने बच्चे को छोड़ने की अधीरता के लिए पैग़म्बर (स) से समाधान मांगा। हज़रत (स) ने कहा सब्र करो और ज़िक्र لاحَولَ وَ لا قُوَّةَ إِلّا بِالله (लो हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह) ज़्यादा कहो। उन्होंने पैग़म्बर (स) के आदेश का पालन भी किया जब तक कि एक दिन उनका बेटा दुश्मन की लापरवाही का फायदा उठाकर उनकी भेड़ों के झुंड के साथ भाग नहीं गया। इस अवसर पर, ये दो आयतें नाज़िल हुईं।[१५] इस आयत के सम्बंध में, मजमा उल बयान ने पैग़म्बर (स) को यह कहते हुए उद्धृत किया कि जो कोई भी धर्मपरायणता (तक़्वा) का पालन करता है, भगवान उसे इस दुनिया के संदेह और मृत्यु की कठिनाइयों और क़यामत से बचाएगा और इमाम सादिक़ (अ) की एक रिवायत का हवाला देते हुए उन्होंने कहा है कि: जो कोई भी धर्मपरायणता (तक़्वा) का पालन करेगा, भगवान उसके धन को आशीर्वाद (बरकत) देगा।[१६]

तफ़सीर नमूना में कहा गया है कि ईश्वर इन आयतों में धर्मपरायणता (तक़्वा) की सिफ़ारिश करके उम्मीद दिलाना चाहता है क्योंकि इस से पहले वाली आयत में तलाक़ के कारण सामने आने वाले आर्थिक मुद्दों के कारण संभव है कि पति और पत्नी या गवाह न्याय (अदालत) का पालन न कर सके, इस कारण से, धर्मपरायणता (तक़्वा) का पालन करने का आदेश दिया है।[१७]

अल्लामा तबातबाई ने इन दो आयतों के सम्बंध में तफ़सीर अल मीज़ान में भी कहा है कि: जो कोई निषिद्ध कार्यों से बचता है, भगवान उसे जीवन की कठिनाइयों से बचने का रास्ता प्रदान करेगा। क्योंकि ईश्वर का धर्म मानव स्वभाव (फ़ितरत) पर आधारित है और मनुष्य को कुछ ऐसी चीज़ों की ओर मार्गदर्शन करता है जो इस दुनिया और आख़िरत में सआदत की गारंटी देती है; इसलिए, एक मोमिन को यह डर नहीं होना चाहिए कि यदि वह धर्मपरायणता (तक़्वा) का अभ्यास करेगा, तो वह इस दुनिया में एक अच्छे जीवन से वंचित हो जाएगा।[१८]

आयात उल अहकाम

सूर ए तलाक़ की पहली सात आयतें, जो तलाक़ के अहकाम, तलाक़ की इद्दत, तलाक़शुदा गर्भवती महिलाओं के भरण-पोषण (नफ़्क़ा) और रेज़ाअ के अहकाम के बारे में हैं, को आयात उल अहकाम की आयतों में माना गया है।[१९]

गुण और विशेषताएं

मुख्य लेख: सूरों के फ़ज़ाइल

सूर ए तलाक़ पढ़ने के गुण के बारे में, पैग़म्बर (स) ने कहा है कि जो कोई भी सूर ए तलाक़ पढ़ेगा, वह ईश्वर के पैग़म्बर (स) की सुन्नत के अनुसार मरेगा।[२०] शेख़ सदूक़ ने इमाम सादिक़ (अ) से भी उद्धृत किया है कि जो कोई भी वाजिब नमाज़ों में सूर ए तलाक़ पढ़ता है, क़यामत के दिन भगवान उसे भय, दुःख और नर्क की आग से बचाएगा और इन दो सूरों को पढ़ने और उनकी सुरक्षा (हमेशा पढ़ने) के कारण उसे स्वर्ग में ले जाएगा। क्योंकि ये दोनों सूरह पैग़म्बर (स) से सम्बंधित हैं।[२१]

फ़ुटनोट

  1. ख़ुर्रमशाही, "सूर ए तलाक़", पृष्ठ 1256।
  2. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1371 शम्सी, खंड 24, पृष्ठ 217।
  3. अब्दुल बाक़ी, मुहम्मद फ़ोआद, अल मोअजम अल मुफ़्हरिस ले अल्फ़ाज़ अल कुरआन अल-करीम, 1414 हिजरी, पृष्ठ 543।
  4. ख़ुर्रमशाही, "सूर ए तलाक़", पृष्ठ 1256 और 1257।
  5. सफ़वी, "सूर ए तलाक़", पृष्ठ 757।
  6. ख़ुर्रमशाही, "सूर ए तलाक़", पृष्ठ 1257।
  7. रामयार, तारीख़े कुरआन, 1362 शम्सी, पृष्ठ 360 और 596।
  8. फ़र्हंगनामे उलूमे क़ुरआन, खंड 1, पृष्ठ 2612।
  9. तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, खंड 19, पृष्ठ 312।
  10. सफ़वी, "सूर ए तलाक़", पृष्ठ 757।
  11. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1371 शम्सी, खंड 24, पृष्ठ 217।
  12. वाहेदी, असबाबे नुज़ूले क़ुरआन, 1411 हिजरी, पृष्ठ 456।
  13. तबरसी, मजमा उल बयान, 1372 शम्सी, खंड 10, पृ. 460 और 461; मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1371 शम्सी, खंड 24, पृष्ठ 240-236।
  14. तबातबाई, अल मीज़ान, 1394 हिजरी, खंड 19, पृष्ठ 314-316।
  15. वाहेदी, असबाबे नुज़ूले क़ुरआन, 1411 हिजरी, 457।
  16. तबरसी, मजमा उल बयान, 1372 शम्सी, खंड 10, पृष्ठ 460।
  17. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1374 शम्सी, खंड 24, पृष्ठ 234।
  18. अल्लामा तबातबाई, अल मीज़ान, 1390 हिजरी, खंड 19, पृष्ठ 313 और 314।
  19. अर्दबेली, ज़ुब्दा अल बयान फ़ी अहकाम अल कुरआन, तेहरान, पृष्ठ 579-580, 539, 594।
  20. तबरसी, मजमा उल बयान, 1372 शम्सी, खंड 10, पृष्ठ 454।
  21. सदूक़, सवाब उल आमाल, 1406 हिजरी, पृष्ठ 119।

स्रोत

  • पवित्र कुरआन, मुहम्मद महदी फ़ौलादवंद द्वारा अनुवादित, तेहरान, दार उल कुरआन अल करीम, 1418 हिजरी, 1376 शम्सी।
  • अर्दबेली, अहमद बिन मुहम्मद, ज़ुब्दा अल बयान, मोहक़्क़िक़ मुहम्मद बाक़िर बेहबूदी, तेहरान, मकतबा अल मुर्तज़विया।
  • खुर्रमशाही, क़ेवामुद्दीन, "सूर ए तलाक", दानिशनामे क़ुरआन व क़ुरआन पजोही में, तेहरान, दोस्तने नाहिद, 1377 शम्सी।
  • रामयार, महमूद, तारीख़े क़ुरआन, तेहरान, इंतेशाराते इल्मी व फ़र्हंगी, 1362 शम्सी।
  • सदूक़, मुहम्मद बिन अली, सवाब उल आमाल व एक़ाब उल आमाल, क़ुम, दार अल शरीफ़ रज़ी, 1406 हिजरी।
  • सफ़वी, सलमान, "सूर ए तलाक़", दानिशनामे मआसिर क़ुरआन करीम में, क़ुम, सलमान अज़ादेह प्रकाशन, 1396 शम्सी।
  • तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अल मीज़ान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, बेरूत, मोअस्सास ए अल आलमी लिल मतबूआत, 1390 हिजरी।
  • अब्दुल बाक़ी, मुहम्मद फ़ोआद, अल मोअजम अल मुफ़हरिस ले अल्फ़ाज़ अल कुरआन अल करीम, बेरूत, दार उल मारेफ़त, चौथा संस्करण, 1414 हिजरी।
  • तबरसी, फ़ज़्ल बिन हसन, मजमा उल बयान फ़ी तफ़सीर अल कुरआन, तेहरान, नासिर खोस्रो, 1372 शम्सी।
  • फ़र्हंगनामे उलूमे क़ुरआन, क़ुम, दफ़्तरे तब्लीग़ाते इस्लामी हौज़ ए इल्मिया क़ुम।
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफ़सीर नमूना, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामिया, 1371 शम्सी।
  • वाहेदी, अली इब्ने अहमद, असबाबे नुज़ूले क़ुरआन, बेरूत, दार अल कुतुब अल इल्मिया, 1411 हिजरी।