सलूनी क़बला अन तफ़क़ेदूनी

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सलूनी क़बला अन तफ़क़ेदूनी
मोहम्मद अल-मुशरफ़वी द्वारा सलोनी हदीस का सुलेख
किस से नक़्ल हुईइमाम अली (अ)
कथावाचकअबू तुफै़ल आमिर बिन वासेला, अब्दुल्लाह बिन अब्बास, सुलैम बिन क़ैस हेलाली, अस्बग़ बिन नोबाता
शिया स्रोतबसाएर अल दराजात,किताब सुलैम बिन क़ैस हेलाली, अमाली (शेख़ सदूक़), अल इरशाद मुफ़ीद, नहजुल बलाग़ा
सुन्नी स्रोतअल मुस्तदरक अला अल सहीहैन, मनाक़िबे ख़्वारज़मी, फ़राएद अल समतैन, तरीख़े मदीना दमिश्क़

सलूनी क़बला अन तफ़क़ेदूनी (अरबी: سلوني قبل أن تفقدوني) (मुझ से पूछ लो इससे पहले कि मैं तुम्हारे बीच न रहूं) यह इमाम अली अलैहिस सलाम का एक वाक्यांश है जो उनके ज्ञान की सीमा को दर्शाता है। शिया और सुन्नी सूत्रों के अनुसार, इमाम अली (अ) ने इस वाक्य को कई बार अपनी ज़बान पर जारी किया है। उनमें से एक उस उपदेश में था जो साद बिन अबी वक्कास की प्रतिक्रिया के साथ मिला था और उसने अली (अ) से पूछा कि उसके सिर और दाढ़ी पर बालों की संख्या क्या हैं। इमाम ने उसके उत्तर में कहा कि तुम्हारे सर में बाल नही है, सिवाय इसके कि शैतान उसकी जड़ों में रहता है। इसी तरह से इमाम उसके बेटे उमर इब्ने साद द्वारा इमाम हुसैन अलैहिस सलाम की शहादत की भी सूचना दी।

सलूनी को इमाम अली (अ) के विशिष्ट गुणों में गिना जाता है और इसे पैगंबर (स) के अन्य साथियों पर उनकी श्रेष्ठता के प्रमाण के रूप में जाना जाता है।

संक्षिप्त परिचय

«سَلُونِی قَبْلَ أَنْ تَفْقِدُونِی» (मुझ से पूछ लो इससे पहले कि मैं तुम्हारे बीच न रहूं) यह इमाम अली (अ) का कथन है।[१] यनाबी अल-मवद्दत में वर्णित एक हदीस के अनुसार, अली इब्ने अबी तालिब ने इस वाक्य को कई बार अपनी ज़बान पर जारी किया है।[२] एक बार उस समय जब लोगों ने आपके हाथों पर बैअत की और ख़लीफ़ा बनने के बाद जब आपने कूफा के लोगों को संबोधित करते हुए उपदेश दिया।[३] और एक बार सिफ़्फ़ीन और नहरवान की जंग के दरमियान के फ़ासले में अपने साथियों के एक समूह के सामने यह वाक्य कहा।[४]

इमाम (अ) का यह कथन कई तरह से उल्लेख हुआ है जैसे सलूनी क़बला अन तफ़क़ेदूनी,[५] सलूनी अम्मा शेअतुम (मुझ से पूछ लो जिस भी चीज़ के बारे में चाहो),[६] सलूनी क़बला अन ला तसअलूनी[७] (मुझ से पूछ लो इससे पहले कि न पूछ सको), सलूनी (मुझ से पूछ लो)[८]

हदीस इमाम अली (अ) के सबसे ज्ञानी होने का प्रमाण

नहजुल बलाग़ा की कुछ शरहों में, यह कहा गया है कि "सलूनी क़बला अन तफ़क़ेदूनी" वाक्यांश इस बात की दलील है कि इमाम अली (अ) हर चीज के विद्वान थे।[९] इसी तरह से, शिया विद्वान मुल्ला सालेह माज़िंदरानी (मृत्यु 1081 हिजरी) के अनुसार, कुछ सुन्नी विद्वानों ने इस वाक्यांश को इमाम अली (अ) के ज्ञान की अधिकता का प्रमाण माना है।[१०]

इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस सलाम से इस हदीस के अर्थ के बारे में ज़िक्र हुआ है कि किसी के पास ज्ञान नही है मगर यह कि उसने उसे इमाम अली के ज़रिये से प्राप्त किया है। लोग चाहे जहां चाहें जायें। "मैं भगवान की क़सम खाता हूँ कि सत्य व वास्तविक ज्ञान केवल यहाँ है।" इस हदीस में आगे, यह बताया गया है कि इमाम बाक़िर (अ) ने अपने हाथ से अपने घर की ओर इशारा किया।[११] अल्लामा मजलिसी के अनुसार, इमाम बाक़िर (अ) के उनके घर (वह घर जिसमें ईश्वर की ओर वही और पैग़बर आये) का मतलब वही और नबूवत का घर था।[१२]

इसी तरह से, "सलूनी क़बला अन तफ़केदूनी" के बाद में, अलग अलग कथनों में विभिन्न वाक्यांशों का उल्लेख किया गया है जो इमाम अली (अ) के ज्ञान की सीमा की तरफ़ इशारा करते हैं। जैसे:

  • वास्तव में, पहले ज़माने वाले और अंतिम ज़माने वालों का ज्ञान मेरे पास है। मैं तौरेत वालों के लिए तौरेत के अनुसार, बाइबिल वालों के लिए बाइबिल और कुरआन वालों के लिये उसके अनुसार फ़तवा जारी करता हूं।[१३]
  • "आप उससे क्यों नहीं पूछते जिसे चमत्कारों, आपदाओं और वंशावली का ज्ञान है?"[१४]
  • "मैं स्वर्ग के मार्ग (ईश्वरीय ज्ञान) को पृथ्वी के मार्गों से बेहतर जानता हूं।"[१५]
  • "मैं ईश्वर की क़सम खाता हूं, मैं आपकी हर बात का जवाब दूंगा। अल्लाह की किताब से पूछो, मैं ईश्वर की क़सम खाता हूँ, मैं कुरआन की सभी आयतों से अवगत हूं, चाहे वे रात में उतरी हों या दिन के दौरान प्रकट हुई हों; उसे समतल ज़मीन पर उतारा हो या पहाड़ पर।"[१६]
  • "मैं ईश्वर की क़सम खाता हूं, मैं अतीत, वर्तमान और भविष्य के बारे में आपके हर सवाल का जवाब दूंगा।"[१७]

इमाम अली (अ) की विशिष्ट फ़ज़ीलत

सुन्नियों के चौथी और पांचवीं शताब्दी के मुहद्दिस इब्ने मरदावेह इस्फ़हानी के अनुसार, सलूनी का दावा इस बात का प्रमाण है कि इमाम अली (अ) अन्य सहाबियों की तुलना में अधिक ज्ञानी थे।[१८] इसी तरह से, इब्राहिम बिन मुहम्मद जवीनी शाफ़ेई, सुन्नी विद्वान (मृत्यु 730 हिजरी) ने अपनी पुस्तक फ़रायद अल-समतैन में इस वाक्यांश को इमाम अली (अ) के विशेष गुणों में से एक माना है, जिसके लिये दुश्मनों और विरोधियों के पास है मानने के अलावा कोई चारा नहीं।[१९] सैय्यद इब्ने ताऊस के दृष्टिकोण से, चूंकि इमाम अली (अ) ने इसे अपने लोगों और दुश्मनों सबके सामने कहा है, इसलिये यह एक तरह से चुनौती माना जा सकता है।[२०]

हालांकि, शम्स अल-दीन ज़हबी[२१] और इब्ने तैमिया,[२२] सलफ़ी विद्वानों, ने इस गुण के खंडन में कहा है कि अली (अ) ने कूफा के ऐसे लोगों को संबोधित करते हुए कहा है, जो अज्ञानी लोग थे। कुछ हदीसों के अनुसार, इमाम बाक़िर (अ)[२३] और इमाम सादिक़ (अ)[२४] ने भी कुछ मौक़ों पर "सलूनी क़बला अन तफ़क़ेदूनी" के वाक्यांश कहे है। इसके अलावा, "सलूनी अम्मा शेयतुम" वाक्यांश को इस्लाम के पैगंबर (स) से भी ज़िक्र किया गया है।[२५] हालाँकि, कुछ सुन्नी विद्वानों ने उल्लेख किया है कि इमाम अली (अ) के अलावा किसी ने भी यह वाक्य नहीं कहा है।[२६] बेशक, कुछ सुन्नी स्रोतों में, यह कहा जाता है कि अली (अ) को छोड़कर किसी भी सहाबी ने ऐसा शब्द नहीं कहा है।[२७]

सलूनी के झूठे दावेदार

मुस्लिम विद्वानों ने ज़िक्र किया है कि जिन लोगों ने सलूना क़बला अन तफ़क़ेदूनी का दावा किया जब उनसे सवाल किया गया तो वह उन सवालों के जवाब देने में असमर्थ रहे। उनमें से, क़तादा बिन देआमह, ताबेईन (जिन्होने सहाबा को देखा है) और बसरा के न्यायविदों[२८] (फ़ोक़हा) में से एक थे और इब्ने जौज़ी छठी शताब्दी के हनबली न्यायविद (फ़क़ीह) थे।[२९]

इसके अलावा, अल्लामा अमीनी ने अपनी किताब अल-ग़दीर में पांच अन्य मामलों का उल्लेख किया, जिन्होंने "सलूनी" होने का दावा किया था और ज़लील हुए।[३०] अल्लामा मजलिसी और मुल्ला सालेह माज़ांदरानी के अनुसार, इमाम अली (अ) के अलावा जिसने भी ऐसा दावा किया है, वह बदनाम हुआ है।[३१]

हदीस के रावी और इसकी वैधता

"सलूनी क़बला अन तफ़क़ेदूनी" कई रावियों द्वारा ज़िक्र हुई है; उनमें से, आमिर बिन वासेला,[३२] अब्दुल्ला बिन अब्बास,[३३] सुलैम बिन क़ैस हेलाली,[३४] असबग़ बिन नबाता,[३५] और अबाया बिन रिबई,[३६] हकीमे नैशापुरी, हदीस की वह सनद जो अबू तूफ़ैल आमिर बिन वासेला के द्वारा ज़िक्र हुई है उसे प्रामाणिक माना जाता है।[३७]

साद बिन अबी वक़ास की प्रतिक्रिया

कुछ स्रोत्रों के अनुसार, इमाम अली (अ) के एक उपदेश में इस वाक्य को कहने के बाद, साद बिन अबी वक़्कास ने उनसे पूछा कि मेरे सिर और दाढ़ी में कितने बाल हैं? जवाब में, इमाम अली (अ) ने क़सम खाई कि अल्लाह के रसूल (अ) ने उन्हें सूचित किया था कि आप मुझसे ऐसा सवाल पूछेंगे। तुम्हारे सिर और दाढ़ी में एक भी बाल नहीं है, मगर उसकी जड़ों में उसके शैतान रहता है। इसके अलावा, तुम्हारे घर में एक बकरा है (उमर बिन साद का जिक्र करते हुए) जो मेरे बेटे हुसैन (अ) का वध करेगा।[३८] कुछ लोगों ने यह बात इमाम हुसैन (अ) के हत्यारों में से एक सिनान बिन अनस के पिता अनस के बारे में ज़िक्र की है।[३९]

फ़ुटनोट

  1. देखें: सफ़र, बसायर अल-दराजात, 1404 हिजरी, पीपी. 266-268, 296-296; इब्ने क़ुलुवैह, कामेल अल-ज़ियारात, 1356, पृष्ठ 74; सदूक़, अल-अमाली, 1376, पीपी. 133 और 341-344; नहज अल-बलाग़ा, तसहीह सुबही सालेह, धर्मोपदेश 189, पृष्ठ 280; हकीम नैशापुरी, अल-मुस्तद्रक, 1411 हिजरी, खंड 2, पृ.383; ख्वारज़मी, अल-मनाकिब, इस्लामिक पब्लिशिंग हाउस, पृष्ठ 91; जवीनी, फ़रायद अल-समतैन, 1400 हिजरी, खंड 1, पीपी 340 और 341; इब्ने अबी अल-हदीद, शरहे नहज अल-बलाग़ा, 1404 हिजरी, खंड 2, पृ.286, खंड 6, पृ.136, खंड 7, पृष्ठ 57, खंड 10, पृष्ठ 14, खंड। 13, पृ.101.
  2. कुंदोज़ी, यनाबी अल-मवद्दत, दार अल-सोवे, खंड 1, पृष्ठ 222।
  3. मुफ़ीद, अल-अरशाद, 1413 हिजरी, खंड 1, पीपी. 34, 35 और 330।
  4. देखें: हिलाली, किताब सुलैम बिन क़ैस अल-हिलाली, 1405 हिजरी, खंड 2, पीपी. 802 और 941।
  5. नहज अल-बलाग़ा, सुबही सालेह द्वारा संपादित, प्रवचन 93, पृष्ठ 137।
  6. कुलैनी, अल-काफी, 1407 हिजरी, खंड 1, पृ.399, एच 2; सफ़र, बसायर अल-दरजात, 1404 हिजरी, पृष्ठ 12.
  7. हाकीम नैशापुरी, अल-मुस्तद्रक, 1411 हिजरी, खंड 2, पृ.506।
  8. इब्ने अब्द अल-बर्र, अल-इस्तियाब, 1412 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 1107 देखें; तबरी, ज़खायरुल उक़बा, 1428 हिजरी, खंड 1, पीपी। 399 और 400; इब्ने असकर, तारीख़े दमिश्क़, 1415 हिजरी, खंड 27, पीपी.100 और खंड 42, पीपी.398 और खंड 44, पीपी.335 और 397; ख्वारज़मी, अल-मनाक़िब, इस्लामिक पब्लिशिंग हाउस, पृष्ठ 94; हस्कानी, शवाहिद अल-तंज़िल, 1411 हिजरी, खंड 1, पीपी. 40-42 और 45।
  9. माजांदरानी, ​​​​शरह अल-काफी, 1382 हिजरी, खंड 5, पृ.192; हाशमी खोई, मिन्हाज अल-बराआ', 1400 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 402 और खंड 11, पृष्ठ 172।
  10. माजांदरानी, ​​शरह अल-काफी, 1382 हिजरी, खंड 5, पृ.192।
  11. कुलैनी, अल-काफी, 1407 हिजरी, खंड 1, पृ.399, हदीस 2; सफ़र, बसायर अल-दरजात, 1404 हिजरी, पृष्ठ 12, एच1।
  12. मजलिसी, मरातुल-उक़ूल, 1404 हिजरी, खंड 4, पृ.308।
  13. सदूक़, अल-अमाली, 1376, पृष्ठ 341।
  14. सफ़र, बसायर अल-दरजात, 1404 हिजरी, पीपी 266-268।
  15. नहज अल-बलाग़ा, तसहीह सुबही सालेह, धर्मोपदेश 189, पृष्ठ 280।
  16. इब्ने अब्द अल-बर्र, अल-इस्तियाब, 1412 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 1107; हस्कानी, शवाहिद अल-तंज़िल, 1411 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 42; तबरी, ज़खायर अल उक़बा, 1428 हिजरी, खंड 1, पीपी। 399 और 400; इब्ने असाकर, तारीख़े दमिश्क़, 1415 हिजरी, खंड 27, पृष्ठ 100 और खंड 42, पृष्ठ 398।
  17. इब्ने क़ुलुवैह, कामेल अल-ज़ियारात, 1356, पृष्ठ 74; सदूक़, अल-अमाली, 1376, पीपी. 133 और 134; मुफ़ीद, अल-अरशाद, 1413 हिजरी, खंड 1, पीपी 330 और 331।
  18. इब्न मर्दुयेह इस्फ़हानी, मनक़िब अली इब्न अबी तालिब, 1424 हिजरी, पीपी. 86 और 87।
  19. जवीनी, फ़रायद अल-समतैन, 1400 हिजरी,खंड.1, पृष्ठ 340।
  20. सैय्यद इब्ने ताऊस, अल-तराईफ़, 1400 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 510।
  21. ज़हबी, अल-मुंतकी मिन मिन्हाज अल-एतेदाल, पी. 342.
  22. इब्ने तैमिया, मिन्हाज सुन्नाह अल-नबाविया, 1406 हिजरी, खंड 8, पीपी 56 और 57।
  23. इब्ने हयून, शरह अल-अख़बार, 1409 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 292।
  24. इब्ने अबी-ज़ैनब, अल-ग़ैबा अल-नोमानी, 1397 हिजरी, पृष्ठ 87; ज़हबी, तारिख़ अल-इस्लाम, 2003, खंड 3, पृ.828; कुंदोज़ी, यनाबी अल-मवद्दत, दारल-उसवा, खंड 1, पृष्ठ 222।
  25. उदाहरण के लिए, नैशापुरी, सही मुस्लिम, दार इहया अल-तुरास अल-अरबी, खंड 4, पृष्ठ 1834 को देखें।
  26. इब्ने असीर, उसदुल-ग़ाबा, 1409 हिजरी, खंड 3, पृ.597; इब्ने अब्द अल-बर्र, अल-इस्तियाब, 1412 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 1103; इब्न असाकर, तारीख़े दमिश्क़, 1415 हिजरी, खंड 42, पृष्ठ 399; हस्कानी, शवाहिद अल-तंज़िल, 1411 हिजरी, खंड 1, पृ.50; इब्ने अबी अल-हदीद, शरहे नहज अल-बलाग़ा, 1404 हिजरी, खंड 7, पृष्ठ 46।
  27. इब्ने हनबल, फ़ज़ाएल अल-सहाबा, 1403 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 646; ज़हबी, तारिख़ अल-इस्लाम, 2003, खंड 2, पृ.361; इब्ने असाकर, तारीख़े दमिश्क़, 1415 हिजरी, खंड 42, पृष्ठ 399; ख़्वारज़मी, अल-मनाक़िब, इस्लामिक पब्लिशिंग हाउस, पीपी. 90 और 91.
  28. ज़मख़शरी, अल-कश्शाफ़, 1407 हिजरी, खंड 3, पीपी. 355 और 356; माजांदरानी, ​​शरह अल-काफी, 1382 हिजरी, खंड 5, पृ.192।
  29. नबाती आमेली, अल-सरत अल-मुस्ताकिम, 2004, खंड 1, पृ.218।
  30. देखें: अमीनी, अल-ग़दीर, 1416 हिजरी, खंड 6, पीपी 275 और 276।
  31. मजलिसी, मरतुल-उकूल, 1404 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ308; माजांदरानी, ​​​​शरह अल-काफी, 1382 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 192 और खंड 6, पृष्ठ 400।
  32. हाकीम निशापुरी, अल-मुस्तद्रक, 1411 हिजरी, खंड 2, पृ.383; इब्ने असाकर, तारीख़े दमिश्क़, 1415 हिजरी, खंड 17, पृष्ठ 335; इब्ने अब्द अल-बर्र, अल-इस्तियाब, 1412 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 1107; तबरी, ज़ख़ायर अल उक़बा, 1428 हिजरी, खंड 1, पीपी। 399 और 400।
  33. कुंदोज़ी, यनाबी अल-मवद्दत, दारल-उसवा, खंड 1, पृष्ठ 224।
  34. हिलाली, सलीम बिन क़ैस अल-हिलाली की किताब, 1405 हिजरी, खंड 2, पीपी. 802 और 941।
  35. सदूक़, अल-अमाली, 1376, पीपी. 133 और 341।
  36. सफ़र, बसायर अल-दरजात, 1404 हिजरी, पृष्ठ 266; कुंदोज़ी, यनाबी अल-मवद्दत, दारल-उसवा, खंड 1, पृष्ठ 222।
  37. हाकीम नीशापुरी, अल-मुस्तद्रक, 1411 हिजरी, खंड 2, पीपी. 383 और 506।
  38. इब्ने क़ुलुवैह, कामेल अल-ज़ियारात, 1356, पृष्ठ 74; सदूक़, अल-अमाली, 1376, पीपी. 133 और 134; मुफ़ीद, अल-अरशाद, 1413 हिजरी, खंड 1, पीपी 330 और 331।
  39. इब्ने अबी अल-हदीद, शरहे नहज अल-बलाग़ा, 1404 हिजरी, खंड 2, पृ.286; माजांदरानी, ​​​​शरह अल-काफी, 1382 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 400।

स्रोत

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  • इब्ने अबी-ज़ैनब, मुहम्मद इब्न इब्राहिम, अल-ग़ैबह अल-नोमानी, अली अकबर गफ़्फ़ारी, तेहरान, सदूक़ पब्लिशिंग हाउस द्वारा अनुसंधान और सुधार, पहला संस्करण, 1397 हिजरी।
  • इब्ने असीर, मुहम्मद बिन मुहम्मद, उसदुल-ग़ाबा, बेरूत, दार अल-फ़िक्र, 1409 हिजरी-1989 ई.
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