कर्रामल्लाहो वजहहू
कर्रामल्लाहो वजहहू (अरबी: كَرَّمَ اللهُ وَجْهَه) एक सम्मानजनक वाक्य है इस वाक्य का सुन्नी इमाम अली (अ) के नाम के बाद उपयोग करते हैं और दूसरे सहाबा के लिए इसका उपयोग नहीं करते हैं। शिया इमाम अली (अ) के लिए कर्रामल्लाहो वजहहू वाक्यांश के स्थान पर "अलैहिस सलाम" का उपयोग करते हैं।
सुन्नी विद्वानों "कर्रामल्लाहो वजहहू" का अर्थ "ईश्वर आपका आदर और सम्मान करे" वाक्यांश को इसलिए इमाम अली (अ) से मख़सूस करते है क्योंकि उन्होंने कभी किसी मूर्ति को सज्दा नहीं किया। इसके विपरीत वहाबी मुफ़्ती अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ कर्रामल्लाहो वजहहू को इमाम अली (अ) के लिए मख़सूस करना शिया की बिदअत मानता है।
हाफ़िज़ रजब बुरसी ने "कर्रामल्लाहो वजहहू" वाक्यांश को सुन्नियों द्वारा इमाम अली (अ) से विशिष्ट करना तीनो ख़लीफ़ाओं पर श्रेष्ठता के प्रमाण के रूप में माना है। कुछ शिया शोधकर्ताओ ने "कर्रामल्लाहो वजहहू" को لَا یَنَالُ عَهْدِی الظَّالِمِینَ ला यनालो आहदिज़ जालेमीन, मेरा ओहदा ज़ालेमीन तक नही पहुंचेगा فَمِنْهُمْ ظَالِمٌ لِنَفْسِهِ फ़ामिनहुम ज़ालेमुन लेनफ़्सेह, उनमे से कुछ स्वंय अपने ऊपर ज़ुल्म करते है आयतो का हवाला देते हुए इमाम अली (अ) से मख़सूस जाना है और उन्होंने तीनो खलीफाओं को इमामत के योग्य नहीं माना है; क्योंकि इन आयतो के अनुसार पाप करने वाले व्यक्ति ने अपने आप पर अत्याचार किया है और अत्याचारी तक अल्लाह का ओहदा (इमामत) नहीं पहुँचता है।
शब्दार्थ
"कर्रामल्लाहो वजहहू" को अगर दुआ का वाक्य ले[१] तो अर्थ है "ईश्वर उन्हे सम्माननीय और प्रतिष्ठित बनाए"[२] और अगर हम इसको खबर[३] माने तो अर्थ होगा "ईश्वर आपका आदर और सम्मान करे" सम्मानीय वाक्य है जिस अधिकांस सुन्नी इमाम अली (अ) के नाम के बाद उपयोग करते हैं।[४] सुन्नी विद्वानों में इब्ने हजर हैतमी और मोमिन शिब्लन्जी ने इसका अर्थ "ईश्वर ने उन्हें ईश्वर के अलावा किसी दूसरे की इबादत करने से सुरक्षित रखा" माना है।[५] अहले-सुन्नत की किताबों में, कभी-कभी इमाम अली (अ) के लिए "कर्रामल्लाहो वजहहू फ़िल जन्ना" वाक्यांश का उपयोग किया जाता है।[६]
सुन्नी चार फ़ुक़्हा मे से अहमद इब्ने हन्बल के कथन के आधार पर, जब पैग़म्बर (स) ने ख़ैबर की जंग में इमाम अली (अ) को अलम दिया, तो उन्होंने " وَالَّذِی کَرَّمَ وَجْهَ مُحَمَّد वल्लज़ी कर्रामा वजहा मुहम्मद" [नोट १] वाक्यांश का इस्तेमाल किया।[७] [नोट २]
इमाम अली (अ) से मख़सूस
सुन्नी विद्वानों इब्ने कसीर और इब्ने हजर हैतमी के अनुसार बहुत से सुन्नि अली (अ) के लिए "कर्रामल्लाहो वजहहू" वाक्यांश का इस्तेमाल करते है। वो इमाम अली (अ) और दूसरे सहाबीयो सहित खलीफाओं के लिए रज़ी अल्लाहो अन्हो (अल्लाह उनसे राज़ी हो जाए) वाक्यांश का इस्तेमाल करते हैं; हालांकि "कर्रामल्लाहो वजहहू" वाक्यांश का उपयोग केवल इमाम अली (अ) के लिए करते है, तीन खलीफाओं और दूसरे सहाबीयो के लिए नही करते।[८] हनफ़ी विद्वानो अहमद बिन मुहम्मद ख़फ़ाजी और मुहम्मद बिन अहमद सफ़ारीनी ने भी सुन्नियों के बीच इस वाक्यांश के प्रचलन को निर्दिष्ट किया है।[९] 15 वीं चंद्र शताब्दी में लिखी गई किताबों में भी, "कर्रामल्लाहो वजहहू" केवल इमाम अली (अ) के लिए ही आवंटित है।[१०]
मख़सूस करने के तर्क
सुन्नी विद्वानों ने "कर्रामल्लाहो वजहहू" को इमाम अली (अ) के लिए आवंटित करने के निम्नलिखित तर्क (दलीले) बयान किए हैः
- मूर्तियो को सज्दा न करनाःइब्ने हजर हैतमी और मोमिन शिब्लन्जी ने अली (अ) को "कर्रामल्लाहो वजहहू" वाक्यांश को निर्दिष्ट करने का कारण मूर्तियो को सज्दा न करना माना है।[११] मूर्तियो को सज्दा न करने के संबंध मे इब्ने हजर, अबू बक्र बिन अबी क़ोहाफ़ा को अली (अ) का साथी माना है; इस अंतर के साथ कि अली (अ) का मूर्तियों को सज्दा न करना हर किसी द्वारा स्वीकार किया जाता है।[१२] अब्दुल्लाह बिन अब्बास और अब्दुल्लाह बिन उमर द्वारा मूर्तियो को सज्दा न करने के संबंध मे हैतमी ने कहा कि इन लोगो का जन्म शिर्क (बहुदेवाद) के विनाश के बाद हुआ; इसलिए वे उन लोगों की तरह नहीं हैं जो मूर्तिपूजा के समय पैदा हुए थे, लेकिन मूर्तियों की पूजा नहीं करते थे।[१३]
- जन्म से पहले पैग़म्बर (स) का सम्मान: मुस्लिम मुतकल्लिम और फ़लसफ़ी जलालुद्दीन दव्वानी के अनुसार, जब इमाम अली (अ) फ़ातिमा बिन्त असद के गर्भ मे थे, तो जब भी वह पैगंबर (स) को देखतीं, तो वह अनैच्छिक रूप से खड़ी हो जातीं; गर्भ में पल रहा बच्चा ऐसी हरकत करता जिससे आप समझ जाती कि उन्हे खड़ा होना चाहिए। दवानी के अनुसार, अधिकांश सुन्नी विद्वानों ने इस घटना को इमाम अली (अ) को "कर्रामल्लाहो वजहहू" का कारण माना है।[१४]
वहाबियों द्वारा इमाम अली (अ) से मख़सूस करने का विरोध
इस्लामिक धर्मों के शोधकर्ता महदी फ़रमानियान के अनुसार, वहाबी ने इमाम अली (अ) के नाम का उल्लेख करते समय "कर्रामल्लाहो वजहहू" कहने से मना किया है,[१५] वहाबवादी विद्वान कासिम उफ़ की रिपोर्ट के अनुसार, इब्ने तैमीया ने बहुत सी किताबो मे इमाम अली (अ) के लिए "कर्रामल्लाहो वजहहू" वाक्यांश का इस्तेमाल नहीं किया है।[१६]
वहाबी मुफ़्ती अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ के अनुसार अली (अ) के लिए "कर्रामल्लाहो वजहहू" वाक्यांश का उपयोग करना एक साज़िश[१७] और शियो की बिदअत है।[१८] अब्दुल अज़ीज़ बिन बाज़ के शिष्य मुहम्मद सालेह अल-मुनज्जिद भी इस बात को मानता है कि अली (अ) के लिए "कर्रामल्लाहो वजहहू" वाक्यांश पहले शियो ने इस्तेमाल किया है। और अज्ञानी लेखकों ने उनका अनुसरण किया।[१९] बेशक, उन्होंने अपने दावे के लिए किसी दस्तावेज़ का उल्लेख नहीं किया।[२०]
13वीं चंद्र शताब्दी के एक शिया विद्वान अदीब दर्रे सूफी के अनुसार, शिया इमाम अली (अ) के लिए "अलैहिस सलाम" "सलामुल्लाहे अलैह" या "सलवातुल्लाहे अलैह" वाक्यांश का इस्तेमाल करत है।[२१] अफ़ग़ानिस्तान के सुन्नी विद्वान मुहम्मद आसिफ़ मोहसिनी ने "कर्रामल्लाहो वजहहू" वाक्यांश को इमाम अली (अ) के लिए इस्तेमाल करना अहले सुन्नत से मंसूब किया है।[२२]
इमाम अली (अ) की श्रेष्ठता पर तर्क
8वीं चंद्र शताब्दी के एक इतिहासकार और शिया विद्वान हाफिज रजब बुरसी ने सुन्नियों द्वारा इमाम अली (अ) को "कर्रामल्लाहो वजहहू" वाक्यांश के आवंटन को इमाम अली (अ) की दूसरे सहाबा पर श्रेष्ठता का कारण माना है।[२३] मुहम्मद सक़फ़ी तेहरानी इस तख़सीस को इस बात की दलील माना है कि ख़लीफ़ाओं में से केवल इमाम अली (अ) ही एक ऐसे व्यक्ति थे जो मूर्तियों की पूजा नहीं करते थे। उन्होंने इस से निष्कर्ष निकाला है कि खलीफ़ाओं में से केवल इमाम अली (अ) ही इमामत के योग्य हैं; क्योंकि जो व्यक्ति मूर्तियों की पूजा करता है वह इमामत के योग्य नहीं है।[२४]
शिया शोधकर्ता सय्यद मोहम्मद जवाद हुसैनी जलाली ने भी لَا یَنَالُ عَهْدِی الظَّالِمِینَ ला यनालो आहदिज़ जालेमीन, मेरा ओहदा ज़ालेमीन तक नही पहुंचेगा[२५] فَمِنْهُمْ ظَالِمٌ لِنَفْسِهِ फ़ामिनहुम ज़ालेमुन लेनफ़्सेह, उनमे से कुछ स्वंय अपने ऊपर ज़ुल्म करते है[२६] आयतो का हवाला देते हुए "कर्रामल्लाहो वजहहू" को इमाम अली (अ) से मख़सूस जाना है। क्योंकि इन आयतों के अनुसार, एक व्यक्ति जो पाप करता है उसने अपने ऊपर ज़ुल्म किया है और ओहदा ए इमामत अत्याचारी तक नहीं पहुँचता।[२७]
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नोट
- ↑ अल्लाह की क़सम जिसने मुहम्मद को आदर और सम्मान दिया।
- ↑ यह वाक्य पैगंबर से ग़ज़्वए खैबर में उनके परिचय में है, और इस व्याख्या का उपयोग करने के इतिहास को इंगित कर सकता है, और शायद बाद में यह व्याख्या - इस इतिहास और इस तथ्य के कारण कि ग़ज़्वए खैबर में हज़रत (अली अ) ने पैगंबर के दिल को संतुष्ट किया और उनकी इच्छा पूरी की -; उन्होंने इसे अमीर अल-मोमिनिन के लिए भी इस्तेमाल किया है।
फ़ुटनोट
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- ↑ आले शेख, कौलुन कर्रामल्लाहो वजहहू लेअली इब्ने अबी तालिब
- ↑ ज़वावी, शमाइले रसूल, दार उल क़मा, भाग 1, पेज 429
- ↑ देखेः मालिक बिन अनस, मौता मालिक, अल-मकतबातुल इल्मीया, पेज 283; शैबानी, अल-हुज्जतो अला अहलिल मदीना, 1403 हिजरी, भाग 1, पेज 28; अस्करी, तस्हीफ़ात अल-मोहद्देसीन, 1402 हिजरी, भाग 2, पेज 126 और 518; इब्ने हजर हैतमी, अलृफ़तावा अल-हदीसीया, दार उल फिक्र, पेज 18; इब्ने रजब हंबली, शरह हदीसे लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक, 1417 हिजरी, पेज 142; आलूसी, अल-अजवबतो अल-इराकीया अला अल-अस्हलातिल अहवरीया, 1301 हिजरी, भाग 1, पेज 62; हल्बी, अल-सीरतुल हल्बीया, 1427 हिजरी, भाग 2, पेज 427; ख़ल्फ़, मदखले एलत तफ़सीर वा उलूम अल-क़ुरआन, दार उल बयान अल-अरबी, पेज 93
- ↑ इब्ने हजर हैतमी, अल-फ़तावा अल-हदीसीया, दार उल फिक्र, भाग 1, पेज 41; शब्लंजी, नूर अल-अबसार, 1415 हिजरी, पेज 156
- ↑ देखेः तिबरानी, अल-मोजम अल-सगीर, 1405 हिजरी, भाग 1, पेज 228 और 260; इब्ने क़य्यिम, आलाम उल मौक़ेईन, 1423 हिजरी, भाग 3, पेज 256 और भाग 4, पेज 475; इब्ने नूरुद्दीन, तैसीर अल-बयान, 1433 हिजरी, भाग 3, पेज 133
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- ↑ इब्ने कसीर, तफसीर, 1412 हिजरी, भाग 3, पेज 524; देखेः इब्ने हजर हैतमी, अल-फ़तावा अल-हदीसीया, दार उल फिक्र, भाग 1, पेज 41
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- ↑ शब्लंजी, नूर अल-अबसार, 1415 हिजरी, पेज 156
- ↑ इब्ने हजर हैतमी, अल-फतावा अल-हदीसीया, दार उल फिक्र, भाग 1, पेज 41
- ↑ इब्ने हजर हैतमी, अल-फतावा अल-हदीसीया, दार उल फिक्र, भाग 1, पेज 41
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- ↑ सूर ए बक़रा, आयत न 124
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स्रोत
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- निज़ाम आरज नेशाबूरी, शरह अल-निज़ाम अला अल-शाफ़ीया, शोधः मुहम्मद ज़की जाफ़री, क़ुम, दार उल हुज्जा लिस सक़ाफ़ते, पहला संस्करण
- वरदानी, सालेह, फ़रेब, क़ुम, बुनयाद मआरिफ़ इस्लामी, 1389 शम्सी
- अल-हिर्री, मुहम्मद अल-अमीन बिन अब्दुल्लाह, तफ़सीर हदाएक़ अल-रूह वर-रेहान फ़ी रवाबी उलूम अल-क़ुरआन, बैरूत, दार तौक़ अल-निजात, 1421 हिजरी