तशह्हुद
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फ़ुरू ए दीन |
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तशह्हुद (अरबी: التشهد) नमाज़ के दायित्वों में से एक है, जिसे दूसरी और आख़री रकअत में दो सज्दे के बाद पढ़ा जाता है, और इसमें ईश्वर की एकता, पैग़म्बर मुहम्मद (स) की नबूवत, और पैग़म्बर और उनके अहले बैत (अ) पर सलवात भेजना शामिल है। «اَشْهَدُ اَنْ لا اِلهَ اِلاَّ اللّهُ وَحْدَهُ لا شَریکَ لَهُ وَ اَشْهَدُ اَنَّ مُحَمَّداً عَبْدُهُ وَ رَسُولُهُ، اَللّهُمَّ صَلِّ عَلی مُحَمَّدٍ وَ الِ مُحَمَّدٍ» (अशहदो अन ला एलाहा इल्लल्लाह वहदहू ला शरीका लहू व अशहदो अन्ना मोहम्मदन अब्दुहू व रसूलुहू, अल्लाहुम्मा सल्ले अला मोहम्मद व आले मोहम्मद)
तशह्हुद नमाज़ के ग़ैर रुक्नी हिस्सों में से एक है, और इसीलिए, हालांकि इसे पढ़ना अनिवार्य (वाजिब) है, लेकिन इसे भूल जाने से नमाज़ अमान्य (बातिल) नहीं होती है।
पाठ
तशह्हुद नमाज़ के अनिवार्य भागों में से एक है,[१] जिसका अर्थ है शहादतैन कहना (ईश्वर की एकता और मुहम्मद की पैग़म्बरी की गवाही देना) और पैग़म्बर (स) पर सलवात भेजना, और यह कार्य दूसरी रकअत और आख़री रकअत में दो सजदों के बाद और नमाज़ से सलाम से पहले किया जाना चाहिए।[२]
जैसा कि शिया न्यायविदों में से एक, अली मिश्किनी ने कहा है कि शिया न्यायविदों की प्रसिद्ध राय के अनुसार तशह्हुद का पाठ इस प्रकार है: «اَشْهَدُ اَنْ لا اِلهَ اِلاَّ اللّهُ وَحْدَهُ لا شَریکَ لَهُ وَ اَشْهَدُ اَنَّ مُحَمَّداً عَبْدُهُ وَ رَسُولُهُ، اَللّهُمَّ صَلِّ عَلی مُحَمَّدٍ وَ الِ مُحَمَّدٍ» (अशहदो अन ला एलाहा इल्लल्लाह वहदहू ला शरीका लहू व अशहदो अन्ना मोहम्मदन अब्दुहू व रसूलुहू, अल्लाहुम्मा सल्ले अला मोहम्मद व आले मोहम्मद) "मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के अलावा कोई ईश्वर नहीं है, और उसका कोई साथी नहीं है, और मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद उसके बन्दे और दूत हैं, ईश्वर मोहम्मद और उनके परिवार पर रहमत नाज़िल कर।[३] हालाँकि, अल्लामा हिल्ली और मोहक़्क़िक कर्की जैसे महान न्यायविदों के न्यायिक कार्यों में उल्लिखित अनिवार्य तशहुद की मात्रा कम है और इसमें उल्लेख हुआ है: أشهد أن لا إله إلّا الله و أشهد أن محمدا رسول الله اللهم صل على محمد و آل محمد (अशहदो अन ला एलाहा इल्लल्लाह व अशहदो अन्ना मोहम्मदन रसूलुल्लाह अल्लाहुम्मा सल्ले अला मोहम्मद व आले मोहम्मद)[४] इसी आधार पर, अल्लामाह हिल्ली ने अपनी पुस्तक अल नेहाया में तशहुद में वाक्यांश "वहदहू ला शरीका लहू" के अनिवार्य (वाजिब) होने पर संदेह किया है।[५]
अहकाम
तशह्हुद के कुछ अहकाम इस प्रकार हैं:
- तशह्हुद का पाठ करते समय मवालात का पालन करना अर्थात लगातार पढ़ना, तरतीब, तुमानीना और शब्दों को सही ढंग से पढ़ना शर्त है।[६]
- नमाज़ पढ़ने वाले के लिए तशहुद के दौरान अपने हाथों को अपनी जांघों पर रखना, उंगलियों को एक साथ चिपकाना और अपने दामन की तरफ़ देखना मुस्तहब है।[७]
- तशह्हुद के दौरान, तवर्रुक मुस्तहब है,[८] अर्थात बायां पैर दाहिने पैर के नीचे होना चाहिए और नमाज़ पढ़ने वाले को बायीं जांघ पर बैठना चाहिए।[९]
- तशह्हुद के दौरान पाठ करना मुस्तहब है; उनमें से, वाक्यांश اَلْحَمدُلله (अल्हमदोलिल्लाह), بِسْمِ اللهِ و بِاللهِ وَ الْحَمدُ لِلهِ وَ خَیرُ الأسماءِ لِله (बिस्मिल्लाह व बिल्लाह वलहम्दो लिल्लाह व ख़ैरुल अस्मा ए लिल्लाह)[१०] तशहुद के पाठ से पहले, और वाक्यांश وَ تَقَبَّلْ شَفاعَتَهُ وَارْفَعْ دَرَجَتَه (व तक़ब्बल शफ़ाअतहू वा रफ़अ दरजतह) तशहुद के पाठ के बाद।[११]
तशह्हुद को भुलने का हुक्म
मराजे ए तक़लीद के फ़तवे के अनुसार, अगर नमाज़ पढ़ने वाला व्यक्ति तशह्हुद को भूल जाता है और अगली रकअत के रुकूअ से पहले उसे इसका एहसास होता है, तो उसे तुरंत बैठ जाना चाहिए और तशहुद पढ़ना चाहिए और फिर नमाज़ जारी रखनी चाहिए।[१२] ऐसी स्थिति में, सय्यद मुहम्मद रज़ा गुलपायगानी, सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई, मिर्ज़ा जवाद तबरेज़ी और लुतफ़ुल्लाह साफ़ी गुलपाएगानी, के फ़तवे के अनुसार, नमाज़ समाप्त होने के बाद नमाज़ पढ़ने वाले को दो सज्दा ए सहव करना चाहिए।[१३] अगर नमाज़ पढ़ने वाले को रुकूअ के दौरान या उसके बाद पता चलता है कि उसने पिछली रकअत में तशहुद नहीं पढ़ा है, तो उसे नमाज़ ख़त्म करने के बाद तशहुद की क़ज़ा करना चाहिए और एहतियाते वाजिब के अनुसार भूले हुए तशहुद के लिए दो सज्दा ए सहव करने होंगे।[१४]
फ़ुटनोट
- ↑ अल्लामा हिल्ली, नेहाया अल-अहकाम, 1419 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 499।
- ↑ मश्किनी, मुस्तलेहाते फ़िक़्ह, 1419 हिजरी, पृष्ठ 145-146।
- ↑ मश्किनी, मुस्तलेहाते फ़िक़्ह, 1419 हिजरी, पृष्ठ 146।
- ↑ अल्लामा हिल्ली, नेहाया अल-अहकाम, 1419 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 499; मोहक़्क़िक़ कर्की, जामेअ अल-मकासिद, 1414 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 318।
- ↑ अल्लामा हिल्ली, नेहाया अल-अहकाम, 1419 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 499।
- ↑ मश्किनी, मुस्तलेहाते फ़िक़्ह, 1419 हिजरी, पृष्ठ 146।
- ↑ शहीदे अव्वल, अल दुरूस, 1417 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 182।
- ↑ शहीदे अव्वल, अल दुरूस, 1417 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 182; मोहक़्क़िक़ कर्की, जामेअ अल-मकासिद, 1414 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 112।
- ↑ मोहक़्क़िक़ कर्की, जामेअ अल-मकासिद, 1414 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 112।
- ↑ शहीदे अव्वल, अल दुरूस, 1417 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 182।
- ↑ इमाम ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाएल, 1424 हिजरी, पृष्ठ 239, अंक 1061।
- ↑ इमाम खुमैनी, तौज़ीहुल मसाएल (मोहश्शा), 1424 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 597, अंक 1102।
- ↑ इमाम खुमैनी, तौज़ीहुल मसाएल (मोहश्शा), 1424 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 597, अंक 1102।
- ↑ इमाम खुमैनी, तौज़ीहुल मसाएल (मोहश्शा), 1424 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 597, अंक 1102।
स्रोत
- इमाम खुमैनी, सय्यद रुहुल्लाह, तौज़ीहुल मसाएल (मोहश्शा), सय्यद मोहम्मद हुसैन बनी हाशमी खुमैनी द्वारा सुधार, क़ुम, दफ़्तरे इंतेशाराते इस्लामी जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ ए इल्मिया क़ुम से सम्बंधित, 1424 हिजरी।
- शहीदे अव्वल, मुहम्मद बिन मक्की, अल दुरूस अल-शरिया फ़ी फ़िक़्ह अल-इमामिया, क़ुम, दफ़्तरे इंतेशाराते इस्लामी जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ ए इल्मिया क़ुम से सम्बंधित, 1424 हिजरी।
- अल्लामा हिल्ली, हसन बिन यूसुफ, नेहया अल-अहकाम फ़ी मारेफ़त अल-अहकाम, क़ुम, आले-अल-बैत फाउंडेशन, 1419 हिजरी।
- मोहक़्क़िक़ कर्की, अली बिन हुसैन, जामेअ अल मकासिद फ़ी शरहे अल-क़वाएद, क़ुम, आल-अल-बेत इंस्टीट्यूट, 1414 हिजरी।
- मिश्किनी, मिर्ज़ा अली, मुस्तलेहाते अल फ़िक़ह व मोअज़्ज़म अनावीन अल मोज़ूईया, क़ुम, अल हादी, 1419 हिजरी, 1377 शम्सी।