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ब्रश करना

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ब्रश करना, सबसे महत्वपूर्ण इस्लामी परंपराओं में से एक है जिसकी कई हदीसों में सिफ़ारिश की गई है। शिया न्यायशास्त्र में, इस प्रथा को अनुशंसित माना जाता है, लेकिन बाथरूम और शौचालय में इसका इस्तेमाल करना नापसंद किया जाता है। इसके अलावा, रोज़ेदार के लिए टूथब्रश को नमी में मुँह में अंदर घोंट लेने से रोज़ा टूट जाता है।

टूथपिक से ब्रश करने की सिफ़ारिश नमाज़ से पहले, सोने से पहले, वुज़ू से पहले और भोर में ज़्यादा की गई है। इसी तरह से इस काम के लिये कुछ शिष्टाचार भी बयान हुए हैं, जैसे कोई विशेष नमाज़ पढ़ना, गरारे करना (मुँह धोना), और अराक ​​या ज़ैतून की लकड़ी का इस्तेमाल करना। बेशक, कुछ हदीसों में खु़द दाँत के साफ़ करने के बारे में सिफ़ारिश की गई है।

स्थिति और महत्व

दांतों को ब्रश करना, एक बहुत मुसतहब कार्य के रूप में,[] नमाज़ और वुज़ू के अनुष्ठानों में से एक माना जाता है।[] यह पैग़म्बरों की परंपराओं में से एक भी था[] और इमाम अली (अ) को पैग़म्बर (स) के निर्देशों का हिस्सा था।[]

चौहद मासूमीन (अ.स.) की रिवायतों में दांतों को ब्रश करने पर ज़ोर दिया गया है। वसाइल अल-शिया नामक पुस्तक में इसके महत्व और शिष्टाचार पर अस्सी से ज़्यादा रिवायतें वर्णित हैं।[] इस विषय पर न्यायशास्त्र के विभिन्न अध्यायों जैसे पवित्रता,[] नमाज़,[] रोज़ा[] और हज[] में चर्चा की गई है। अल्लामा मजलिसी की हिलया अल-मुत्तक़ीन,[१०] मलिकी तबरेज़ी की असरार अल-सलात[११] और जवादी आमोली की मफ़ातिह अल-हयात जैसी नैतिकता और शिष्टाचार पर आधारित पुस्तकों में भी इसकी चर्चा की गई है।[१२]

दाँतों को ब्रश करना पैग़म्बर (स) की विशेष विशेषताओं में से एक माना गया है।[१३] रिवायतों के अनुसार, हालाँकि कठिनाई से बचने की आवश्यकता के कारण इसे मुसलमानों पर अनिवार्य नहीं बनाया गया था,[१४] लेकिन इस पर इतना ज़ोर दिया गया था कि पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को लगा कि यह जल्द ही अनिवार्य हो जाएगा।[१५] इसके अलावा, ब्रश करके पढ़ी गई नमाज़ का पुण्य बिना ब्रश के पढ़ी गई नमाज़ से सत्तर गुना अधिक बताया गया है।[१६]

ब्रश करने के प्रभाव और तरीक़े

हदीसों में दाँतों को ब्रश करने के बहुत से प्रभाव बताए गए हैं, और एक हदीस में इसके बारह लाभ बताए गए हैं;[१७] जिनमें मुँह की सफाई, उसे सफ़ेद करना, दाँतों की सड़न को रोकना और मसूड़ों को मज़बूत बनाना शामिल है।[१८]

दाँतों को ब्रश करना मुसतहब है, लेकिन भोर में, वुज़ू और नमाज़ से पहले,[१९] सोने से पहले,[२०] जागने के बाद और सुबह की सामूहिक नमाज़ से पहले,[२१] और इसी तरह से क़ुरआन पढ़ते समय भी मुसतहब मुवक्कद है।[२२]

दाँतों को ब्रश करने के कुछ शिष्टाचार हैं, जिनमें एक विशेष दुआ का पढ़ना,[२३] गरारे करना (मुँह में पानी डालना),[२४] और ब्रश को सीधा चलाना शामिल है।[२५] इसी तरह से अराक की लकड़ी या ज़ैतून की लकड़ी का उपयोग करना भी बेहतर होता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि व सल्लम) और अन्य पैग़म्बरों[२६] का टूथब्रश था।[२७] हालाँकि, कुछ रिवायतों में, उंगली या पेड़ की टहनी से दाँत साफ़ करने की भी सिफ़ारिश की गई है।[२८]

दाँत साफ़ करने के फ़िक़्ह के नियम

  • पवित्रता का अध्याय: फ़क़ीह के अनुसार, बाथरूम और शौचालय में दाँत साफ़ करना नापसंद है।[२९] हालाँकि, कुछ फ़क़ीह इस नापसंदगी को शौच की अवस्था से जुड़ा मानते हैं,[३०] और शेख़ मुफ़ीद ने शौच के दौरान इसे हराम माना है।[३१] इसके अलावा, दाँत साफ़ करना नमाज़ और वुज़ू के अनुशंसित शिष्टाचारों में से एक माना गया है।[३२]
  • रोज़े का अध्याय: फ़क़ीह के फ़तवों के अनुसार, अगर रोज़ेदार अपने मुँह से गीला टूथब्रश निकालकर वापस अंदर डाल दे और उसकी नमी निगल ले, तो उसका रोज़ा टूट जाता है, मगर यह कि उसकी लार में वह नमी ख़त्म हो जाए।[३३] इसी तरह से रोज़ेदार के लिए गीली लकड़ी से दाँत साफ़ करना भी नापसंद है।[३४]
  • हज पर अध्याय: एहराम पहनने से पहले अपने दांतों को ब्रश करना अनुशंसित है;[३५] लेकिन अगर एहराम में कोई व्यक्ति जानता है कि उसके दांतों को ब्रश करने से उसके मसूड़ों से खून निकलेगा, तो यह उसके लिए निषिद्ध है।[३६] बेशक, आयतुल्लाह सीस्तानी एहराम में रहते हुए अपने दांतों को ब्रश करने को जायज़ मानते हैं, भले ही वह जानता हो कि उसके दाँतों से खून आएगा।[३७]

फ़ुटनोट

  1. मलेकी तबरेज़ी, असरार अल-सलात, 1420 हिजरी, पी। 46.
  2. मजलिसी, लवा'ए साहिब-ए-क़रानी, ​​​​1414 एएच, खंड 1, पृ. 449; शीराज़ी, अल-फ़िक़्ह - अल-निज़ाफ़ा, पी। 88.
  3. सदूक़, मन ला यहज़ोरोहु अल-फ़कीह, 1413 एएच, खंड 1, पृ. 55.
  4. सदूक़, मन ला यहज़ोरोहु अल-फ़कीह, 1413 एएच, खंड 1, पृ. 53.
  5. हुर्र आमिली, वसायल अल-शिया, 1409 एएच, खंड 2, पृ. 5-27.
  6. नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, 1404 एएच, खंड। 2, पृ. 70.
  7. मजलिसी, लवा'ए साहिब-ए-क़रानी, ​​​​1414 एएच, खंड 1, पृ. 449.
  8. तबातबाई यज़्दी, अल-उरवा अल-वुसक़ा, 1419 एएच, खंड 3, पृ. 588; मजलिसी, लवा'ए साहिब-ए-क़रानी, ​​​​1414 एएच, खंड 6, पृ. 371.
  9. महमूदी, मनासिके उमरह (महश्शी), 1429 एएच, पृष्ठ। 75.
  10. मजलिसी, हिलयतुल-मुत्तक़ीन, 1388 शम्सी, पीपी 155-157।
  11. मलेकी तबरेज़ी, असरार अल-सलात, 1420 एएच, पी। 46.
  12. जवादी आमोली, मफ़ातिह अल-हयात, 1391 शम्सी, पीपी 43-45।
  13. कर्की, जामेअ अल-मक़ासिद, 1414 एएच, खंड 12, पृ. 52; सुयूति, अल-ख़सायस अल-कुबरा, दार अल-कुतुब अल-इल्मिया, खंड 2, पृ. 396.
  14. कुलैनी, अल-काफी, 1407 एएच, खंड 3, पृ. 22.
  15. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 एएच, खंड 73, पृ. 126.
  16. कुलैनी, अल-काफी, 1407 एएच, खंड 3, पृ. 22.
  17. मलेकी तबरेज़ी, असरार अल-सलात, 1420 एएच, पी। 45.
  18. हुर्र आमोली, वसायल अल-शिया, 1409 एएच, खंड 2, पृ. 8.
  19. कुलैनी, अल-काफी, 1407 एएच, खंड 3, पृ. 23.
  20. तबातबाई, सोनन अल-नबी (स), 1416 एएच, पी। 265; मलेकी तबरेज़ी, असरार अल-सलात, 1420 एएच, पी। 46.
  21. तबातबाई, सोनन अल-नबी (स), 1416 एएच, पी। 265; मलेकी तबरेज़ी, असरार अल-सलात, 1420 एएच, पी। 46.
  22. हुर्र आमिली, वसायल अल-शिया, 1409 एएच, खंड 2, पृ. 22-23.
  23. मलेकी तबरेज़ी, असरार अल-सलात, 1420 एएच, पी। 46.
  24. शिराज़ी, फ़िक़्ह - अल-निज़ाफ़त, पी। 88.
  25. तबरसी, मकारिम अल-अखलाक़, 1412 एएच, पृ. 50.
  26. तबरसी, मकारिम अल-अखलाक़, 1412 एएच, पृ. 48.
  27. मलेकी तबरेज़ी, असरार अल-सलात, 1420 एएच, पी। 46.
  28. हुर्र आमिली, वसायल अल-शिया, 1409 एएच, खंड 2, पृ. 23-24.
  29. इब्न हमज़ा, अल-वसीला, 1408 एएच, पृ. 48; मोहक़्क़िक़ हिल्ली, अल-मोतबर फ़ी शरह अल-मुख्तसर, 1407 एएच, खंड 1, पृ. 137.
  30. नजफ़ी, जवाहिर अल-कलाम, 1404 एएच, खंड 2, पृ. 70.
  31. शेख़ मुफ़़ीद, अल-मुक़नेआ, 1410 एएच, पृ. 41.
  32. मजलिसी, लुमआ साहिब क़रानी, ​​1414 एएच, खंड। 1, पृ. 449.
  33. बनी हाशिमी खुमैनी, रिसाला तौज़ीहुल-मसायले मराजेअ, दफ्तरे इंतेशाराते इस्लामी, खंड 1, पृ. 892.
  34. तबातबाई यज़्दी, अल-उर्वा अल-वुसक़ा, 1419 एएच, खंड 3, पृ. 588; बनी हाशिमी खुमैनी, रिसाला तौज़ीहुल अल-मसायल मराजेअ, दफ्तरे इंतेशाराते इस्लामी, खंड 1, पृ. 925.
  35. मोहम्मदी रय शहरी, कुरआन और हदीस में हज और उमरा, 1428 हिजरी, पृ. 183.
  36. पजोहिश कदा हज व ज़ियारत , मनासिके हज, महश्शी के अनुष्ठान, 1396 शम्सी, पृष्ठ। 197.
  37. पजोहिश कदा हज व ज़ियारत , मनासिके हज, महश्शी के अनुष्ठान, 1396 शम्सी, पृष्ठ। 197.

स्रोत

  • इब्न हमज़ा, मुहम्मद इब्न अली, अल-वसीला, कुम, आयतुल्लाह मरअशी नजफ़ी लाइब्रेरी प्रकाशन, 1408 हिजरी।
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  • पजोहिश कदए हज व ज़ियारत, मनासिके हज महश्शी, तेहरान, मशअर, 1396 शम्सी।
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  • हज और उमरा, कुरआन और हदीस में, मुहम्मद, मोहम्मदी रय शहरी, क़ुम, मशअर प्रकाशन, 1428 एएच।
  • महमूदी, मुहम्मद रज़ा, मनासिके उमरह मुफ़रदह (महश्शी), क़ुम, मशअर, 1429 एएच।
  • मालेकी तबरेज़ी, मिर्ज़ा जवाद, असरार अल-सलात, रेज़ा रजब ज़ादेह द्वारा अनुवादित, तेहरान, पयामे आज़ादी, 1420 एएच।
  • नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल-कलाम, बेरूत, दार इह्या अल-तुरास अल-अरबी, 1404 एएच।