शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व (फ़ारसी: همزیستی مسالمت‌آمیز) जिसका अर्थ है विभिन्न मान्यताओं और धर्मों वाले लोगों का एक-दूसरे के साथ अनुकूलता के साथ जीवन बिताना, जिसे इस्लाम में एक मूल्य और लक्ष्य माना जाता है, और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों को स्वीकार करना और ग़ैर-मुसलमानों के साथ बातचीत करना इस्लाम में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों में से एक है।

इस्लामी न्यायशास्त्र में, अहले ज़िम्मा के अहकाम को धार्मिक अल्पसंख्यकों और मुसलमानों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का आधार माना जाता है, और अन्य जनजातियों के साथ पैग़म्बर (स) के समझौते और उनके प्रति प्रतिबद्धता शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की दिशा में पैग़म्बर (स) की सीरत का एक उदाहरण है।

अहले बैत (अ) के जीवनी (सीरत) में पवित्र चीज़ों का सम्मान (मुक़द्देसात का एहतेराम) करना और दूसरों की मान्यताओं को सहन करना, आम जनता के प्रति सहनशीलता, दूसरे धर्मों और संप्रदायों के अनुयायियों का अपमान न करना और सामाजिक मामलों में गैर-शियों का साथ देना समाज में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के लिए अहले बैत (अ) के प्रयासों को व्यक्त करता है। हालाँकि, यह कहा गया है कि अहले बैत (अ) की नज़र में सह-अस्तित्व धार्मिक सिद्धांतों से बंधा हुआ है।

परिभाषा एवं स्थिति

शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का अर्थ है कि एक समाज के लोग अलग-अलग मान्यताओं और धर्मों के बावजूद एक-दूसरे के साथ शांति और सहयोग से रहें और अपने मतभेदों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाएं।[१] लोगों के बीच इस प्रकार का सह-अस्तित्व एक ऐसा तरीक़ा है जो संप्रदायों और दृष्टिकोणों की शुद्धता (हक़ होने), या व्यक्तियों की समृद्धि (सआदत) और दुर्भाग्य (शक़ावत) की परवाह किए बिना, लोगों के शांतिपूर्ण जीवन और उनके सामाजिक अधिकारों की मान्यता से संबंधित है।[२]

जाफ़र सुब्हानी के अनुसार, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व धार्मिक बहुलवाद परियोजना की प्रेरणाओं में से एक है, जो तीव्र सांप्रदायिक और धार्मिक युद्धों के बाद बनाई गई थी।[३] कुछ लोग नागरिक समाज को शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर आधारित भी मानते हैं।[४]

इस्लाम के दृष्टिकोण से समाज में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व

विभिन्न मान्यताओं और धर्मों वाले लोगों की शांति और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को इस्लाम में एक मूल्य और लक्ष्य माना गया है[५] और यह कहा गया है कि इस्लाम में सह-अस्तित्व के सिद्धांत का एकमात्र अपवाद वे लोग हैं जो मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं।[६] इस्लामी अवधारणा में सहनशीलता (तसाहुल) शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के दस्तावेजों में व्यक्त की गई है।[७]

शोधकर्ताओं के एक समूह के अनुसार, इस्लाम में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के उदाहरण इस प्रकार हैं: लोगों में समानता,[८] पैग़म्बरों को पहचानना, धार्मिक सर्वोच्चता के भ्रम से लड़ना,[९] विरोधियों से बात करना, समानता का आह्वान करना, धर्म और विश्वास की स्वतंत्रता, लोगों (मनुष्यों) के प्रति सम्मान, शांति (सुल्ह) पर ज़ोर, विरोधियों के साथ न्याय (अदालत) और उपकार (एहसान)।[१०]

धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों को स्वीकार करना,[११] और ग़ैर-मुसलमानों के साथ बातचीत करना,[१२] इस्लाम में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों में से हैं।[१३]

इस्लामी न्यायशास्त्र में, धार्मिक अल्पसंख्यकों से संबंधित चर्चा अहले ज़िम्मा के अहकाम के अध्याय में होती है।[१४] और कहा गया है कि इसके क़ानून बनाने का कारण धार्मिक अल्पसंख्यकों और मुसलमानों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व बनाना है।[१५] न्यायशास्त्र में दायित्व का नियम (क़ाएदा ए इल्ज़ाम) धर्मों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के दस्तावेज़ों में से एक है।[१६]

ग़ैर-मुसलमानों के साथ व्यवहार में मासूमों की जीवनी

पृथ्वी पर लोग तब तक भगवान की दया (रहमत) प्राप्त करेंगे जब तक वे एक-दूसरे के साथ मित्रता का व्यवहार करते हैं और अमानत को उसके मालिक को लौटाते हैं और सही काम करते हैं।[१७]

मनुष्यों के बीच शांति और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को पैगंबरों, विशेषकर पैग़म्बर (स) के महत्वपूर्ण लक्ष्यों में से एक के रूप में जाना जाता है।[१८] विरोधियों के सामने सहनशीलता और शांतिपूर्ण व्यवहार,[१९] एकता के लिए एकेश्वरवादी धर्मों के अनुयायियों को पैग़म्बर (स) का निमंत्रण,[२०] हुकूमतों के प्रमुखों और क़बीलों के प्रमुखों को पैग़म्बर (स) के पत्र[२१] और अन्य क़बीलों के साथ पैग़म्बर (स) के अनुबंध और पैग़म्बर (स) की जीवनी में इसके प्रति प्रतिबद्धता,[२२] धार्मिक स्थिति को साबित करने के लिए शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का आह्वान किया है।[२३]

पैग़म्बर (स) की सुन्नत को अहले किताब के संबंध में एक शांतिपूर्ण दृष्टिकोण के रूप में समझाया गया है; जिसमें बाहरी आक्रमण और आंतरिक उत्पीड़न के विरुद्ध उनका समर्थन करना, मुस्लिम पुरुषों को अहले किताब की पवित्र महिलाओं से शादी करने की अनुमति देना, उन्हें निवास एवं व्यवसायिक अधिकार देना, गवाही को स्वीकार करना और उस पर भरोसा करना, उनका सम्मान करना, उनके मरीज़ों से मिलना, ग़ैर-मुस्लिम पड़ोसियों के प्रति दयालु होना और उन्हें दान (सदक़ा) देना, अहले ज़िम्मा के साथ उचित व्यवहार और अहले किताब को धार्मिक स्वतंत्रता देना, शामिल है।[२४]

अहले बैत (अ) की जीवनी में भी कुछ मुद्दे जिनमें: पवित्र चीज़ों का सम्मान (मुक़द्देसात का एहतेराम) करना और दूसरों की मान्यताओं को सहन करना,[२५] आम जनता के प्रति सहनशीलता, दूसरे धर्मों और संप्रदायों के अनुयायियों का अपमान न करना, धार्मिक मामलों में सहयोग करना,[२६] विरोधियों के साथ अच्छी संगति, दूसरों के दोषों की अनदेखी, परोपकार और मुसलमानों के मामलों पर ध्यान देना, शांति (सुल्ह) पर ज़ोर देना, अपने विरोधियों से मिलना और जातीय पूर्वाग्रहों (तअस्सुब) को रोकना,[२७] शामिल है। और इसे मुसलमानों की एकता और उनके बीच सह-अस्तित्व के लिए अहले बैत (अ) के प्रयासों का संकेत माना गया है।[२८]

ऐसा कहा गया है कि अहले बैत (अ) की दृष्टि में, सह-अस्तित्व धार्मिक सिद्धांतों से बंधा हुआ है ताकि सह-अस्तित्व के दौरान मनुष्य की सही मान्यताओं को बनाए रखने से कोई नुकसान न हो।[२९] दूसरों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व में इमामों की जीवनी के संकेतों में नास्तिकों और बहुदेववादियों का सामना करने में हिल्म और सब्र के साथ इमाम सादिक़ (अ) का व्यवहार संवाद और बहस (मुनाज़ेरा) पर आधारित था।[३०]

विदेशी संबंधों में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और इस पर इस्लाम का ज़ोर

 
किताब (इस्लाम व हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़) लेखक अली अकबर अली खानी

शिया न्यायविद् अब्बास अली अमीद ज़ंजानी ने विदेशी संबंधों में राष्ट्रों के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को इस्लाम के सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक माना है।[३१] विदेश नीति में शांति और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को इस्लाम द्वारा अपनाए गए सबसे प्रगतिशील कार्यक्रमों में से एक माना जाता है,[३२] और इसे विदेशियों के साथ दया और दोस्ती का एक कारण माना जाता है।[३३]

मासूमों (अ) के व्यावहारिक जीवनी के अनुसार, इस्लाम की विदेश नीति में शांति और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को सिद्धांत माना गया है।[३४] ऐसा कहा गया है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक इमाम खुमैनी के दृष्टिकोण से, देशों के बीच शांतिपूर्ण संबंध और शांति एक सिद्धांत है।[३५]

मोनोग्राफ़ी

शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और इस्लाम के साथ इसके संबंध के विषय पर कई किताबें लिखी गई हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

  • इस्लाम व हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़, अब्बास अली अमीद ज़ंजानी, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामिया, 1344 शम्सी।
  • हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ दर इस्लाम व हुक़ूक़े बैनल मेलल, मुहम्मद महदी करीमीनिया, मोअस्सास ए आमोज़िशी व पजोहिशी ए इमाम ख़ुमैनी, 1387 शम्सी।
  • इस्लाम व हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़, अली अकबर अलीख़ानी, बेह आफ़रीन, 1392 शम्सी।

फ़ुटनोट

  1. मुस्तरहमी और तक़द्दुसी, "राहकारहाए क़ुरआनी हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ अदयान", पृष्ठ 7; सीरत शेख़ ज़ादेह, "कारकर्दे दानिशे हुक़ूक़ दर सब्के हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़", पृष्ठ 45।
  2. मोवह्हेदी सावजी, "हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ इंसानहा अज़ दीदगाहे क़ुरआन व नेज़ामे बैनन मेलली हुक़ूक़े बशर", पृष्ठ 131।
  3. सुब्हानी, मसाएले जदीद कलामी, 1432 हिजरी, पृष्ठ 82।
  4. अफ़्ज़ली और सद्रआरा, "जामेअ मदनी", खंड 9, पृष्ठ 379।
  5. करीमीनिया, "अदयाने एलाही व हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़", पृष्ठ 93; मुस्तरहमी और तक़द्दुसी, "राहकारहाए क़ुरआनी हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ अदयान", पृष्ठ 8।
  6. अब्दुल मोहम्मदी, तसाहुल व तसामोह अज़ दीदगाहे क़ुरआन व अहले बैत, 1391 शम्सी, पृष्ठ 214; मोवह्हेदी सावजी, "हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ इंसानहा अज़ दीदगाहे क़ुरआन व नेज़ामे बैनन मेलली हुक़ूक़े बशर", पृष्ठ 131 और 154।
  7. कअबी, हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ मियाने अदयाने आसमानी, 1396 शम्सी, पृष्ठ 34 और 35।
  8. मुस्तरहमी और तक़द्दुसी, "राहकारहाए क़ुरआनी हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ अदयान", पृष्ठ 14।
  9. मुस्तरहमी और तक़द्दुसी, "राहकारहाए क़ुरआनी हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ अदयान", पृष्ठ 20 और 23।
  10. मोवह्हेदी सावजी, " हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ इंसानहा अज़ दीदगाहे क़ुरआन व नेज़ामे बैनन मेलली हुक़ूक़े बशर", पृष्ठ 133 से 143; मुस्तरहमी और तक़द्दुसी, "राहकारहाए क़ुरआनी हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ अदयान", पृष्ठ 7।
  11. मुस्तरहमी और तक़द्दुसी, "राहकारहाए क़ुरआनी हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ अदयान", पृष्ठ 18।
  12. कअबी, हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ मियाने अदयाने आसमानी, 1396 शम्सी, पृष्ठ 61।
  13. मकारिम शिराज़ी, एतेक़ादे मा, 1376 शम्सी, पृष्ठ 31; मुंतज़ेरी, इस्लाम दीने फ़ितरत, 1385 शम्सी, पृष्ठ 667।
  14. मकारिम शिराज़ी, तफ़सीर नमूना, 1374 शम्सी, खंड 21, पृष्ठ 410।
  15. सलीमी, "अक़ल्लीयतहा व हुक़ूक़े आनहा दर इस्लाम", पृष्ठ 36 और 38।
  16. रहमानी, "क़ाएदा ए इल्ज़ाम व हमज़ीस्ती ए मज़ाहिब", पृष्ठ 197।
  17. मुहद्दिस नूरी, मुस्तदरक वसाएल, 1408 हिजरी, खंड 14, पृष्ठ 7; रुस्तमियान, "आइम्मा (अ) मुनाही हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़", पृष्ठ 107।
  18. जाफ़री और पायनदेह, "नक़्शे सुल्ह व हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़...", पृष्ठ 151।
  19. अमीनी, "अस्ले हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ बा ग़ैर मुसलमानान दर इस्लाम", पृष्ठ 49; करीमीनिया, "अदयाने एलाही हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़", पृष्ठ 96।
  20. मुंतज़ेरी, इस्लाम दीने फ़ितरत, 1385 शम्सी, पृष्ठ 667।
  21. मकारिम शिराज़ी, पयामे कुरआन, 1386 शम्सी, खंड 10, पृष्ठ 356।
  22. जाफ़री, और पायंदेह, "अस्ले हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ दर बाज़ आफ़रीनी हरकत अहया गराने इस्लामी बा तकिये बर नज़ारत इमाम ख़ुमैनी", पृष्ठ 151।
  23. करीमी निया, "अदयाने एलाही व हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़", पृष्ठ 97।
  24. कअबी, हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ मियाने अदयाने आसमानी, 1396 शम्सी, पृष्ठ 65-84।
  25. फ़ल्लाहियान, "सीर ए अहले बैत दर इजादे वहदत मियाने मुसलमानान", मजमा ए जहानी तक़रीब मज़ाहिबे इस्लामी।
  26. रुस्तमियान, "आइम्मा (अ) मुनादी हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़", पृष्ठ 117 से पृष्ठ 124।
  27. आग़ा नूरी, इमामाने शिया व वहदते इस्लामी, 1387 शम्सी, पृष्ठ 202।
  28. रुस्तमियान, "आइम्मा (अ) मुनादी हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़", पृष्ठ 105।
  29. दाराबी, और अन्य, "पारादाएम रज़वी दर हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ मियाने बावरमंदान बे अदयाने एलाही", प्रोफेसरों के लेखों और पुस्तकों में खोज साइट।
  30. करीमीनिया, "अदयाने एलाही व हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़", पृष्ठ 100।
  31. अमीद ज़ंजानी, फ़िक़्हे सेयासी, 1377 शम्सी, खंड 9, पृष्ठ 170; मोमिन और बहरामी, नेज़ामे सियासी इज्तेमाई ए इस्लाम, 1380 शम्सी, पृष्ठ 125।
  32. मुस्तरहमी और तक़द्दुसी, "राहकारहाए क़ुरआनी हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ अदयान", पृष्ठ 23।
  33. करीमीनिया, "अदयाने एलाही व हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़", पृष्ठ 95।
  34. मुस्तरहमी और तक़द्दुसी, "राहकारहाए क़ुरआनी हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ अदयान", पृष्ठ 28।
  35. मुस्तरहमी और तक़द्दुसी, "राहकारहाए क़ुरआनी हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ अदयान", पृष्ठ 12।

स्रोत

  • आग़ा नूरी, अली, इमामाने शिया व वहदते इस्लामी, क़ुम, दानिशनामे अदयान व मज़ाहिब, 1387 शम्सी।
  • अफ़्ज़ली, रसूल, और रौज़बेह सद्राआरा, "जामेआ मदनी", दानिशनामे जहाने इस्लाम, खंड 9, बुनियादे दाएर अल मआरिफ़ इस्लामी, 1384 शम्सी।
  • अमीनी, मुहम्मद अमीन, "अस्ल हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ बा ग़ैर मुसलमानान दर इस्लाम", मारेफ़त पत्रिका में, संख्या 165, सितम्बर 1390 शम्सी।
  • जाफ़री, अली अकबर और अज़ीमा पायंदेह, "नक़्शे सुल्ह व हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ दर बाज़ आफ़रीनी हरकत अहया गराने इस्लामी बा तकिये बर नज़राते इमाम ख़ुमैनी", ज़रफ़ा पज़ोह पत्रिका में, संख्या 8 और 9, ग्रीष्म और शरद ऋतु 1395 शम्सी।
  • दाराबी, कौकब और अन्य, "पारादाएम रज़वी दर हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ मियाने बावरमंदान हे अदयाने एलाही", प्रोफेसरों के लेखों और पुस्तकों के लिए खोज साइट, अंतर्राष्ट्रीय अदालत और अख़्लाक़ सम्मेलन के लेखों का सार, देखे जाने की तारीख़: 22 मुर्दाद 1403 शम्सी।
  • रहमानी, मुहम्मद, "क़ाएदा ए इल्ज़ाम व हमज़ीस्ती मज़ाहिब", पजोहिशनामे हिक्मत और फ़लसफ़ा ए इस्लामी मैग़ज़ीन में, नंबर 3 और 4, फ़ॉल एंड विंटर 1381 शम्सी में।
  • रुस्तमियान, मुहम्मद अली, "आइम्मा (अ) मुनादी हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़", हफ़्त आसमान पत्रिका में, संख्या 47, शरद ऋतु 1389 शम्सी।
  • सुब्हानी, जाफ़र, मसाएल जदीद कलामी, क़ुम, मोअस्सास ए इमाम सादिक़ (अलैहिस सलाम), 1432 हिजरी।
  • सीरत शेख़ ज़ादेह, मरियम, "कारकर्द दानिशे हुक़ूक़ दर सब्के हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़", मुतालेआते हुक़ूक़े इस्लामी मैग़ज़ीन में, नंबर 16, वसंत और 1401 शम्सी।
  • सलीमी, अब्दुल हकीम, "अक़ल्लीयतहा व हक़ूक़े आनहा दर इस्लाम", मारेफ़त पत्रिका में, संख्या 93, शहरिवर, 1384 शम्सी।
  • अब्दुल मुहम्मदी, हुसैन, तसाहुल व मसामोह अज़ दीदगाहे क़ुरआन व अहले बैत, क़ुम, मोअस्सास ए आमोज़िशी व पजोहिशी इमाम ख़ुमैनी, 1391 शम्सी।
  • अमीद ज़ंजानी, अब्बास अली, फ़िक़्हे सियासी, तेहरान, अमीर कबीर, 1377 शम्सी।
  • फ़ल्लाहियान, सय्यद हसन, "सीर ए अहले बैत दर इजादे वहदत मियाने मुसलमानान", मजमा ए जहानी तक़रीबे मज़ाहिबे इस्लामी, प्रकाशन तिथि: 5 महर, 1402 शम्सी, देखे जाने की तिथि: 22 मुर्दाद, 1403 शम्सी।
  • करीमीनिया, मुहम्मद महदी, "अदयाने एलाही व हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़", रवाक अंदिशेह पत्रिका में, संख्या 26, बेहमन 1382 शम्सी।
  • कअबी, अली अतिया, हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ मियाने अदयाने आसमानी, हमीद रज़ा शेखी, मशहद, आस्ताने क़ुद्स रज़वी द्वारा अनुवादित, बुनियादे पजोहिशहाए इस्लामी, 1396 शम्सी।
  • मोहद्दिस नूरी, हुसैन बिन मुहम्मद तक़ी, मुस्तदरक वसाएल, बेरूत, मोअस्सास ए आल अल बैत, 1408 हिजरी।
  • मुस्तरहामी, सय्यद ईसा और मुहम्मद यूसुफ़ तक़द्दुसी, "राहकारहा ए क़ुरआनी हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ अदयान", पत्रिका में, मुतालेआते क़ुरआन व उलूम, नंबर 1, वसंत और ग्रीष्म 1396 शम्सी।
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, तफ़सीर नमूना, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामिया, 1374 शम्सी।
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, पयामे कुरआन, तेहरान, दार अल कुतुब अल इस्लामिया, 1386 शम्सी।
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, एतेक़ादे मा, क़ुम, नस्ले जवान, 1376 शम्सी।
  • मुंतज़ेरी, हुसैन अली, इस्लाम दीन फ़ितरत, तेहरान, सायेह नशर, 1385 शम्सी।
  • मोवह्हेदी सावजी, मुहम्मद हसन, "हमज़ीस्ती मुसालेमत आमेज़ इंसानहा अज़ दीदगाहे क़ुरआन व नेज़ामे बैनन मेलली हुक़ूक़े बशर", हुक़ूक़े बशर मैग़ज़ीन में, संख्या 1 और 2 (लगातार 17 और 18), वसंत से शीतकालीन 1393 शम्सी।
  • मोमिन, मुहम्मद रज़ा और क़ुदरतुल्लाह बहरामी, नेज़ामे सियासी इज्तेमाई इस्लाम, क़ुम, नुमायंदगी ए वली ए फ़क़ीह दर सिपाह, 1380 शम्सी।