सुरमा लगाना

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सुरमा लगाना (अरबी:الاكتحال) मुस्तहब कार्यों में से एक और इस्लाम के पैग़म्बर (स) और शियों के इमामों की सुन्नत में से एक है और दूसरों को ऐसा करने का आदेश देते थे। हदीसों में भौतिक और आध्यात्मिक लाभ जैसे कुछ नेत्र रोगों की रोकथाम और उपचार और इबादत और रात्रि जागरण में सहायता का उल्लेख किया गया है।

न्यायशास्त्र में सुरमा लगाने के कुछ नियमों (अहकाम) का उल्लेख किया गया है। कुछ न्यायविदों ने इसे ग़ैर-महरमों के सामने महिलाओं के निषिद्ध आभूषणों में से एक नहीं माना है, और अगर इसकी गंध या स्वाद गले तक पहुंच जाए तो रोज़ेदार के लिए सुरमा लगाना मकरूह है। साथ ही, कुछ लोग इसे वुज़ू के पानी को शरीर तक पहुंचने में बाधा भी मानते हैं। न्यायशास्त्रियों ने सुरमा लगाने को एहराम के निषेधों (हराम कार्यों) में से एक माना है।

परिभाषा और स्थिति

आंखों में सुरमा लगाना जिसे न्यायशास्त्र में एक्तेहाल कहा जाता है।[१] यह श्रंगार के तरीक़ों में से एक है[२] और मुस्तहब कार्यों में से एक है जिसे पुरुषों और महिलाओं को करने की सलाह दी गई है।[३]

इस्लामी स्रोतों में, सुरमा लगाने को सीर ए नबवी की सुन्नतों में से एक सुन्नत के रूप में वर्णित किया गया है[४] और इमामों (अ) ने इस कार्य को करने की सलाह दी है[५] और इसे ईमान का संकेत माना है[६] और अपने साथियों को सुरमा लगाने के लिए प्रोत्साहित किया करते थे।[७] कुछ हदीसों पुस्तकों ने सुरमा लगाने से संबंधित हदीसों के लिए एक अध्याय समर्पित किया है।[८]

एक्तेहाल का शाब्दिक अर्थ आँख में कुछ डालना है[९] या कोई भी उपयोगी चीज़ जो इलाज के लिए आँख में डाली जाती है।[१०]

सुरमे के न्यायशास्त्रीय अहकाम

सुरमा लगाने का उल्लेख विभिन्न न्यायशास्त्रीय अध्यायों में किया गया है:

पहनावे के अहकाम में

कुछ न्यायविद ग़ैर-महरम के सामने महिलाओं के लिए सुरमा लगाने को निषिद्ध आभूषणों में से एक नहीं मानते हैं।[११] इसके अलावा, कुछ शोधकर्ता, आयत «وَ لا یبْدِینَ زِینَتَهُنَّ إِلّا ما ظَهَرَ مِنْها» (वला युबदीना ज़ीनतोहुन्ना इल्ला मा ज़हर मिन्हा)[१२] में उपस्थित वाक्यांश «إِلّا ما ظَهَرَ مِنْها» "इल्ला मा ज़हर मिन्हा" (ऐसे आभूषण जिन्हें महिलाओं को ग़ैर-महरम के सामने ढकने की आवश्यकता नहीं है) का उदाहरण (मिस्दाक़) सुरमा लगाने को मानते हैं।[१३] उल्लिखित आयत की व्याख्या में, इमाम सादिक़ (अ)[१४] और इमाम बाक़िर (अ) से हदीस वर्णित हुई है[१५] जिसमें महिलाओं का आँखों में सुरमा लगाना बाहरी श्रंगार और मुबाह (ऐसा कार्य जिसके करने में मनाही नहीं है) कार्य माना गया है।

एहराम में

काले सुरमे का उपयोग एहराम की अवस्था में हराम है या मकरूह है इस बारे में मतभेद पाया जाता है।[१६] कुछ न्यायविदों ने पुरुषों और महिलाओं[१७] के लिए एहराम की अवस्था में काला सुरमा लगाना हराम माना है,[१८] भले ही यह कार्य सजावट के उद्देश्य से नहीं हो।[१९] हालांकि, अगर किसी को एहराम की अवस्था में सुरमा लगाने के लिए मजबूर किया जाता है, तो इस अवस्था में यह कार्य हराम नहीं होगा।[२०]

कुछ लोगों ने एहराम की अवस्था में सुरमा लगाने की हुरमत के लिए प्रसिद्धि (शोहरत) और सर्वसम्मति (इजमा) का दावा किया है,[२१] हालांकि शेख़ तूसी ने इसे एहराम के मकरूह कार्यों में से एक माना है।[२२] कुछ हदीसी पुस्तकों जैसे वसाएल अल-शिया[२३] और मुस्तद्रक अल-वसाएल में,[२४] एक अध्याय उन हदीसों को समर्पित हैं जिनमें एहराम की अवस्था में सुरमा लगाने को हराम माना गया है।

कुछ न्यायविदों का मानना है कि एहराम की अवस्था में सुरमा लगाने से कफ़्फ़ारा अनिवार्य नहीं होता है, लेकिन विद्वानों के अनुसार अगर इसमें सुखद गंध है, तो इसका कफ़्फ़ारा होगा।[२५]

नमाज़ और रोज़े में

कुछ लोगों ने रोज़े के दौरान सुरमा लगाने को जायज़ माना है, जबकि अन्य ने इसे रोज़े की अमान्यताओं (मुब्तेलाते रोज़ा) में से एक माना है;[२६] लेकिन कई न्यायविदों का मानना है कि रोज़े के दौरान सुरमा लगाने से यदि इसका स्वाद या गंध गले तक पहुंच जाए तो सुरमा लगाना मकरूह है।[२७]

सुरमा को वुज़ू के पानी को शरीर तक पहुंचने में बाधाओं में से एक माना गया है।[२८]

लाभ

इस्लामी रवायात में, आंखों में सुरमा लगाने के लाभों का उल्लेख किया गया है[२९] और कुछ हदीसों में कुछ आंखों की बीमारियों को रोकने[३०] और इलाज के लिए इसकी सलाह दी गई है।[३१] इमाम सादिक़ (अ) की हदीस के अनुसार रात में सुरमा लगाना शरीर के लिए लाभदायक है और दिन में सुरमा लगाना आभूषण है।[३२] पलकों का बढ़ना, आंखों की रौशनी बढना,[३३] आंखों से धूल और गंदगी को हटाना,[३४] रात में जागने में सहायता,[३५] लंबे सजदे,[३६] और मानव चेहरे की चमक,[३७] सुरमा लगाने के अन्य लाभ हैं।

कुछ हदीसों में सुरमा के प्रकार,[३८] खपत की मात्रा[३९] और सुरमा लगाने के समय[४०] पर ध्यान दिया गया है और सुरमा लगाते समय एक विशेष दुआ का उल्लेख किया है। [४१]

फ़ुटनोट

  1. विजदानी फ़ख्र, अल-जवाहिर अल-फख़रिया, 1426 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 255।
  2. आमोली, मआलिम अल-दीन, 1418 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 906; लेखकों का एक समूह, फ़िक़हे अहले बैत पत्रिका, क़ुम, खंड 22, पृष्ठ 69।
  3. नूरी, मुस्तद्रक अल-वसाएल, 1408 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 396।
  4. नूरी, मुस्तद्रक अल-वसाएल, 1408 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 396।
  5. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 493।
  6. हुर्रे आमोली, हिदायत अल उम्मा, 1412 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 150; तबरसी, मकारिम अल-अख़लाक़, 1412 हिजरी, पृष्ठ 46।
  7. हुर्रे आमोली, हिदायत अल उम्मा, 1412 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 149।
  8. उदाहरण के लिए देखें: कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 493।
  9. इब्ने मंज़ूर, लेसान अल-अरब, 1414 हिजरी, खंड 11, पृष्ठ 584; महमूद, मोजम अल मुस्तलेहात, खंड 1, पृष्ठ 270।
  10. अज़्दी, किताब अल-माअ, 1387 शम्सी, खंड 3, पृष्ठ 1102; ज़ुबैदी, ताज अल-उरुस, 1414 हिजरी, खंड 15, पृष्ठ 649।
  11. उदाहरण के लिए देखें: इमाम खुमैनी, तौज़ीह अल-मसाएल (मोहशा), 1424 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 928-929।
  12. सूर ए नूर, आयत 31।
  13. लेखकों का एक समूह, फ़िक़हे अहले बैत पत्रिका, क़ुम, खंड 54, पृष्ठ 155।
  14. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 521; फ़ैज़ काशानी, तफ़सीर अल-साफ़ी, 1415 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 430; क़ुरैशी, क़ामूसे कुरआन, 1412 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 197।
  15. क़ुमी, तफ़सीरे क़ुमी, 1404 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 101; मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 101, पृष्ठ 33।
  16. शोधकर्ताओं का एक समूह, मौसूआ अल फ़िक़ह अल इस्लामी, 1423 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 613।
  17. शोधकर्ताओं का एक समूह, मौसूआ अल फ़िक़्ह अल-इस्लामी, 1423 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 613; इमाम ख़ुमैनी, मनासिके हज, बी ता, पृष्ठ 101; ख़ामेनेई, मनासिके हज, बी ता, पृष्ठ 26।
  18. विदजानी-फख़्र, अल-जवाहिर अल-फख़रिया, 1426 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 255; शेख़ अंसारी, मनासिके हज मुहशा, 1425 हिजरी, पृष्ठ 36; इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल-वसीला, क़ुम, खंड 1, पृष्ठ 422; ख़ामेनेई, मनासिके हज, बी ता, पृष्ठ 26; वहीद खोरासानी, मनासिके हज, 1428 हिजरी, पृष्ठ 124; महमूदी, मनासिके उमर ए मुफ़रेदा मुहशा, 1429 हिजरी, पृष्ठ 65-66।
  19. शोधकर्ताओं का एक समूह, मौसूआ फ़िक़्ह अल-इस्लामी, 1423 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 613; इमाम ख़ुमैनी, मनासिके हज, बी ता, पृष्ठ 101; ख़ामेनेई, मनासिके हज, बी ता, पृष्ठ 26।
  20. इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल-वसीला, क़ुम, खंड 1, पृष्ठ 422; महमूदी, मनासिके उमर ए मुफ़रेदा मुहशा, 1429 हिजरी, पृष्ठ 65-66।
  21. शोधकर्ताओं का एक समूह, मौसूआ फ़िक़्ह अल-इस्लामी, 1423 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 613।
  22. तूसी, अल-जमल व अल-उक़ूद, 1387 हिजरी, पृष्ठ 136।
  23. हुर्रे आमोली, वसाएल अल-शिया, 1409 हिजरी, खंड 12, पृष्ठ 468।
  24. नूरी, मुस्तद्रक अल-वसाएल, 1408 हिजरी, खंड 9, पृष्ठ 217।
  25. विजदानी-फख़्र, अल-जवाहिर अल-फ़खरिया, 1426 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 255; इमाम ख़ुमैनी, तहरीर अल-वसीला, क़ुम, खंड 1, पृष्ठ 422; महमूदी, मनासिके उमर ए मुफ़रेदा मुहशा, 1429 हिजरी, पृष्ठ 65-66।
  26. लारी, मजमूआ ए मक़ालात, 1418 हिजरी, पृष्ठ 591।
  27. शोधकर्ताओं का एक समूह, फ़र्हंग फ़िक़्ह, 1426 हिजरी, खंड 3, पृष्ठ 178; इमाम खुमैनी, तौज़ीह उल मसाएल, 1426 हिजरी, पृष्ठ 345।
  28. फ़य्याज़, रेसाला तौज़ीह अल-मसाए, 1426 हिजरी, पृष्ठ 40।
  29. उदाहरण के लिए, देखें: कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 492; शेख़ सदूक़, सवाब अल-आमाल, 1406 हिजरी, पृष्ठ 22।
  30. शेख़ सदूक़, सवाब अल-आमाल, 1406 हिजरी, पृष्ठ 22।
  31. अब्ना बस्ताम, तिब अल आइम्मा, 1411 हिजरी, पृष्ठ 83; तबरसी, मकारिम अल-अख़लाक़, 1412 हिजरी, पृष्ठ 46।
  32. आमोली, मआलिम अल-दीन, 1418 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 906; मजलिसी, लवामेअ साहिब क़रानी, 1414 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 461।
  33. तबरसी, मकारिम अल-अखलाक़, 1412 हिजरी, पृष्ठ 45।
  34. इब्ने हय्युन, दाएम अल-इस्लाम, 1385 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 146।
  35. तबरसी, मकारिम अल-अखलाक़, 1412 हिजरी, पृष्ठ 45।
  36. मजलिसी, लवामेअ साहिब क़रानी, 1414 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 461।
  37. शेख़ सदूक़, अल-खेसाल, 1362 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 237।
  38. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 6, पृष्ठ 493।
  39. मजलिसी, बिहार अल-अनवार, 1403 हिजरी, खंड 59, पृष्ठ 287।
  40. उदाहरण के लिए, देखें: तबरसी, मकारिम अल-अखलाक़, 1412 हिजरी, पृष्ठ 46।
  41. तबरसी, मकारिम अल-अखलाक़, 1412 हिजरी, पृष्ठ 47।

स्रोत

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