नमाज़े ज़ियारत
नमाज़े ज़ियारत (अरबी: صلاة الزيارة) मुस्तहब नमाज़ है जोकि मासूमीन (अ) की ज़ियारत के बाद पढ़ी जाती है। पहली रकअत में हम्द के बाद सूर ए यासीन पढ़ना और दूसरी रकअत में सूर ए रहमान पढ़ना मुस्तहब है।
शेख़ अब्बास क़ुमी ने मफ़ातिहुल जिनान किताब में पैगंबर (स) की नमाज़े ज़ियारत के लिए पैंगबर (स) का हरम, और अन्य मासूमीन (अ) के लिए (बाला ए सर) मासूमीन के सरहाने की जगह सबसे अच्छी जगह माना है। मराज ए तक़लीद के फतवे के अनुसार मासूमीन (अ) की क़ब्र की ओर पीठ करके नमाज़े ज़ियारत पढ़ना मना है, अगर ऐसा (क़ब्र की ओर पुश्त करके नमाज पढ़ना) करना लोगों के रीति-रिवाज में मासूम (अ) का अपमान हो तो हराम है।
हदीसों में मासूमीन (अ) के अलावा नमाज़े ज़ियारत का कोई उल्लेख नही है; इस आधार पर नमाज़े ज़ियारत पढ़ना सही नही है; हालांकि, ज़ियारत के बाद, एक मुस्तहब नमाज़ पढ़ी जा सकती है और साहिबे कब्र को इसका सवाब हदिया किया जा सकता है।
नमाज़े ज़ियारत का तरीक़ा
नमाज़े ज़ियारत दो रकअत है जोकि मासूमीन (अ) की ज़ियारत के बाद पढ़ी जाती है।[१] नमाज़े ज़ियारत मे पढ़े जाने वाले किसी विशेष सूरे का वर्णन नही हुआ है। सूर ए हम्द के बाद पहली रकअत मे सूर ए यासीन और दूसरी रकअत मे सूर ए रहमान पढ़ना बेहतर है।[२]
दूर से पैगंबर (स) की ज़ियारत के लिए चार रकअत (दो दो रकअत नमाज़) का उल्लेख हुआ है।[३] दूसरे मासूमीन (अ) के लिए दूर से ज़ियारत के लिए दो रकअती कई नमाज़ पढ़ी जा सकती है।[४]
कुछ न्यायविदों (फ़ुक़्हा) का मानना है कि यदि ज़ियारत मासूमीन (अ) के हरम मे अंजाम दी जा रही है तो उसके बाद ज़ियारत की नमाज़ पढ़ी जाए, अगर ज़ियारत दूर से अंजाम दी जा रही है, तो नमाज़ को ज़ियारत पर प्राथमिकता दी जाए।[५]
नमाज़ के लिए सबसे अच्छा स्थान
शेख़ अब्बास क़ुमी ने मफ़ातिहुल जिनान किताब में पैगंबर (स) की नमाज़े ज़ियारत के लिए पैंगबर (स) का हरम, और अन्य मासूमीन (अ) के लिए (बाला ए सर) मासूमीन के सरहाने की जगह सबसे अच्छी जगह माना है।[६] मराज ए तक़लीद के फतवे के अनुसार मासूमीन (अ) की कब्र की ओर पीठ करके नमाज़े ज़ियारत पढ़ना मना है, अगर ऐसा (क़ब्र की ओर पुश्त करके नमाज पढ़ना) करना लोगों के रीति-रिवाज में मासूम (अ) का अपमान हो तो हराम है।[७]
बालासरी और पुश्तेसरी का विवाद
13वीं शताब्दी में सर के आगे पीछे (बाला ए सर और पुश्तेसर) नामक विवाद ने जन्म लिया। शेखिया संप्रदाय मासूमीन (अ) के हरम मे नमाज़ पढ़ते हुए इमाम के सर के पीछे (पुश्ते सरे इमाम) इस प्रकार खड़े होते है कि इमाम की क़ब्र नमाज़ पढ़ने वाले और क़िबला के बीच मे होती है। ऐसा करने से शेखिया संप्रदाय "पुश्ते सरी" के नाम से जाना जाने लगा और उन पर आरोप लगाया गया कि शेखिया संप्रदाय कब्र को क़िबला मानता है। शेखिया संप्रदाय के विपरीत शिया समाज जोकि इसे अतिशयोक्ति (ग़ुलू) मानते थे, जानबूझकर नमाज़ पढ़ने के लिए इमाम के सरहाने (क़ब्र के दाईं ओर) खड़े होते थे। इसलिए उन्हें "बालासरी" कहा जाता था।[८]
इमामज़ादो की नमाज़े ज़ियारत
मासूमीन (अ) के अलावा किसी के लिए नमाज़े ज़ियारत का कोई उल्लेख नही है; हालांकि, ज़ियारत के बाद मुस्तहब नमाज़ पढ़ी जा सकती है और साहिबे कब्र को इसका सवाब हदिया किया जा सकता है।[९]
नियाबती नमाज़े ज़ियारत
जीवित और मृतक की ओर से मुस्तहब नमाज़ और ज़ियारत की जा सकती है।[१०] इसी प्रकार सभी की ओर से या प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग ज़ियारत और नमाज़ पढ़ी जा सकती है।[११] कुछ हदीसों के अनुसार मुस्तहब कार्य जोकि दूसरों की ओर से किया जाता है, यह उस व्यक्ति के लिए और जिस व्यक्ति की ओर से इसे किया गया है, पाठक के सवाब को कम किए बिना दोनों के लिए इसका सवाब दर्ज किया जाता है।[१२]
फ़ुटनोट
- ↑ शेख अब्बास क़ुमी, मफ़ातिहुल जिनान, 1378 शम्सी, आदाबे ज़ियारत के अंतर्गत, पेज 429
- ↑ शेख अब्बास क़ुमी, मफ़ातिहुल जिनान, 1378 शम्सी, आदाबे ज़ियारत के अंतर्गत, पेज 430
- ↑ शेख अब्बास क़ुमी, मफ़ातिहुल जिनान, 1378 शम्सी, हज़रत रूसल की ज़ियारत के अंतर्गत, पेज 447
- ↑ शेख अब्बास क़ुमी, मफ़ातिहुल जिनान, 1378 शम्सी, ज़ियारते हुजाजे ताहेरा दर रोज़े जुमा के अंतर्गत, पेज 447
- ↑ अलवी आमोली, तक़दीम नमाज़े ज़ियारत दर ज़ियारत अज़ बईद, पेज 339 से 345 तक
- ↑ मफ़ातिहुल जिनान, आदाबे ज़ियारत, अदबे हीफ़दहुम, चापे मशअर, पेज 447
- ↑ इमाम ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल मराजे, 1392 शम्सी, भाग 1, पेज 629-633
- ↑ हाएरी निया, फ़िरक़ ए शेख़ीया, वेबगाह शिया न्यूज़, 18 फरवरदीन 1391 शम्सी, दीदे शुदे दर 9 उरदीबहिश्त 1397 शम्सी
- ↑ सुआलाती दर मोरिदे नमाज़े ज़ियारत, वेब गाह गुफ्तुगूइ दीनी
- ↑ इमाम ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल मराजे, 1392 शम्सी, भाग 1, पेज 1049-1051
- ↑ शेख अब्बास क़ुमी, मफ़ातिहुल जिनान, 1387 शम्सी, आदाबे ज़ियारत बे नियाबत के अंतर्गत, पेज 803
- ↑ शेख अब्बास क़ुमी, मफ़ातिहुल जिनान, 1387 शम्सी, आदाबे ज़ियारत बे नियाबत के अंतर्गत, पेज 804
स्रोत
- इमाम ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल मराजे मुताबिक़ बा फ़त्वा ए शांज़दे नफ़र अज़ मराज ए मोअज़्ज़म तक़लीद, तंज़ीम सय्यद मुहम्मद हसन बनी हाश्मी ख़ुमैनी, क़ुम, दफ्तर इंतेशारात इस्लामी, पहला संस्करण 1392 शम्सी
- हाएरी निया, फ़िरक़ ए शेख़ीया, वेबगाह शिया न्यूज़, 18 फरवरदीन 1391 शम्सी, दीदे शुदे दर 9 उरदीबहिश्त 1397 शम्सी
- सुआलाती दर मोरिदे नमाज़े ज़ियारत, वेब गाह गुफ्तुगूइ दीनी
- शेख अब्बास क़ुमी, मफ़ातिहुल जिनान, तेहरान, मशअर, पहला संस्करण 1387 शम्सी
- अलवी आमोली, तक़दीम नमाज़े ज़ियारत दर ज़ियारत अज़ बईद, शोध व संशोधन मुहम्मद जवाद नूर मुहम्मदी, मीरास हौज़ा इस्फ़हान, दफ्तरे पंजुम, इस्फ़हान, मरकज़े तहक़ीक़ात रायानेई हौज़ा ए इल्मिया इस्फ़हान, पहला संस्करण 1429 हिजरी