दो नमाज़ एक साथ पढ़ना
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कुछ अमली व फ़िक़ही अहकाम |
फ़ुरू ए दीन |
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दो नमाज़ एक साथ पढ़ना (अरबी: الجمع بين الصلاتين) अर्थात ज़ोहर और अस्र की नमाज़ और मग़रिब और ईशा की नमाज़ को एक साथ पढ़ना। दो नमाज़ों के संयोजन की अनुमति के लिए पैग़म्बर (स) की सुन्नत और इमामों (अ) की परंपरा का हवाला दिया जाता है। सुन्नी विद्वान दो नमाज़ों के सामान्य समय पर पढ़ने में विश्वास नहीं करते हैं, इसलिए वे केवल यात्रा और बीमारी जैसी विशेष परिस्थितियों में ही दो नमाज़ों को एक साथ पढ़ना जायज़ मानते हैं।
दो नमाज़ों को एक साथ पढ़ने के बारे में रचनाएँ लिखी गई हैं, जिसमें जाफ़र सुब्हानी की पुस्तक अल-जम बैना अल सलातैन अला ज़ौअ अल किताब वा अल सुन्नत भी शामिल है।
परिभाषा
जम बैना अल सलातैन (दो नमाज़ो का संयोजन) एक न्यायशास्त्रीय शब्द है जो शिया धर्म के अनुसार सामान्य समय के किसी भी समय ज़ोहर और अस्र या मग़रिब और ईशा की नमाज़ों को एक साथ पढ़ने को संदर्भित करता है।[१] और सुन्नी धर्म के अनुसार किसी अन्य विशेष समय[२] को संदर्भित करता है। शिया आमतौर पर ज़ोहर और अस्र के साथ-साथ मग़रिब और ईशा की नमाज़ एक साथ पढ़ते हैं, और सुन्नी अलग-अलग पढ़ते हैं।[३] न्यायशास्त्र की पुस्तकों में, नमाज़ के समय के अध्याय में जम बैना अल सलातैन[४] पर चर्चा होती है। इसका उल्लेख तहारत[५] और हज के अध्यायों में भी किया गया है।
वैधता का कारण
शहीद अव्वल के अनुसार, शिया न्यायविद, दो नमाज़ों को संयोजित कर के पढ़ना जायज़ मानते हैं।[६] क्योंकि हदीसों के अनुसार, पैग़म्बर (स)[७] और आइम्मा (अ)[८] ने सामान्य और असामान्य स्थितियों (युद्ध, भय, यात्रा, बारिश आदि) में प्रतिदिन की अनिवार्य नमाज़ों को अलग-अलग करके और संयोजित कर के भी पढ़ा है। सामान्य परिस्थितियों में एक ही समय में दो नमाज़ें पढ़ने का कारण पैग़म्बर (स) ने अपनी उम्मत को कठिनाइयों में पड़ने से बचाना बताया है।[९] हालांकि, शिया न्यायविद, पैग़म्बर (स) द्वारा दो नमाज़ों को अलग-अलग करके पढ़ने का कारण उसका मुस्तबह होना[१०] और समय का सामान्य होना मानते हैं।[११]
अधिकांश सुन्नी न्यायविद सामान्य परिस्थितियों में दो नमाज़ों को एक साथ पढ़ना जायज़ नहीं मानते हैं।[१२] वे इसकी अनुमति केवल तभी देते हैं जब यात्रा, बीमारी या बारिश जैसा कोई कारण हो।[१३] इसके अलावा, सामान्य परिस्थितियों में दो नमाज़ों को एक साथ पढ़ने में पैग़म्बर (स) की सुन्नत वाली हदीसों की व्याख्या बहाना (उज़्र) होने के मामलों के रूप में की जाती है।[१४]
हालांकि, सभी इस्लामी धर्म के न्यायविद हज के दौरान अराफ़ात में (ज़ोहर और अस्र की नमाज़) और मुज़दलेफ़ा में (मग़रिब और ईशा की नमाज़) दो नमाज़ों को एक साथ पढ़ना जायज़ मानते हैं।[१५] हालाँकि मुहम्मद इब्ने इदरीस शाफ़ेई, अन्य चार सुन्नी न्यायशास्त्रियों के विपरीत, जो हज और उमरा को दो नमाज़ों के संयोजन की अनुमति का कारण मानते हैं, इस मामले में, वह यात्रा को दो नमाज़ों के संयोजन की अनुमति का कारण मानते हैं।[१६]
शिया और सुन्नी विचारों में अंतर का कारण
शिया और सुन्नियों के विचारों के बीच अंतर दैनिक नमाज़ों के समय में अंतर के कारण है।[१७] शिया विद्वान आयत أَقِمِ الصَّلَاةَ لِدُلُوكِ الشَّمْسِ إِلَىٰ غَسَقِ اللَّيْلِ وَقُرْآنَ الْفَجْرِ ۖ إِنَّ قُرْآنَ الْفَجْرِ كَانَ مَشْهُودًا؛ (सूर्यास्त से लेकर रात्रि के अँधेरे तक नमाज़ पढ़ो। और सुबह की नमाज़ भी, क्योंकि सुबह की नमाज़ उपस्थिति का समय है (उस समय दिन और रात के फ़रिश्ते उपस्थित होते हैं)[१८] के आधार पर वे ज़ोहर और अस्र की नमाज़ के साथ-साथ मग़रिब और ईशा के लिए सामान्य समय, पुण्य समय और विशेष समय में विश्वास करते हैं।[१९] लेकिन सुन्नी विद्वान प्रत्येक नमाज़ के लिए एक विशेष समय मानते हैं[२०] और दैनिक नमाज़ों के सामान्य समय को स्वीकार नहीं करते हैं।[२१]
इसलिए, उनका मानना है कि एक साथ पढ़ने की स्थिति में, दोनों नमाज़ों में से एक अपने समय से बाहर और अलग-अलग समय पर पढ़ी जाएगी, जबकि शिया न्यायविदों के अनुसार, केवल विशेष समय पर दूसरी नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं है और यह सामान्य समय या किसी अन्य नमाज़ के गुण के दौरान जाएज़ है।[२२] कुछ सुन्नी टिप्पणीकार अनिवार्य दैनिक नमाज़ों के लिए तीन निश्चित समय (सुबह, ज़ोहर और ईशा) को साबित मानते हैं।[२३]
मोनोग्राफ़ी
अरबी और फ़ारसी में दो नमाज़ों के संयोजन के बारे में किताबें लिखी गई हैं, उनमें से शिया मरज ए तक़लीद जाफ़र सुब्हानी द्वारा लिखित पुस्तक "अल-जम बैना अल सलातैन अला ज़ौअ अल किताब वा अल सुन्नत" है, जो वर्ष 1388 शम्सी में इमाम सादिक़ (अ) संस्थान द्वारा प्रकाशित हुई थी।[२४] इस पुस्तक में ऐसी आयतें और हदीसें हैं जो दो नमाज़ों के संयोजन की अनुमति का उल्लेख करती हैं।
अब्दुल लतीफ़ बग़दादी द्वारा लिखित अल जम बैना अल सलातैन, मुक़बल वादेई द्वारा लिखित जम बैना अल सलातैन फ़ी अल सफ़र, सय्यद मोहम्मद रज़ा मुदर्रसी द्वारा लिखित जम बैना अल सलातैन व हुदूद आन और नजमुद्दीन अस्करी द्वारा लिखित अल जम बैना अल सलातैन, इस क्षेत्र में लिखित अन्य रचनाएँ हैं।
फ़ुटनोट
- ↑ सुब्हानी, "जम मियाने दो नमाज़ अज़ दीदगाहे किताब व सुन्नत", पृष्ठ 66।
- ↑ जज़ीरी, अल फ़िक़्ह अला अल मज़ाहिब अल अरबा, 1424 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 438।
- ↑ सुब्हानी, "जम मियाने दो नमाज़ अज़ दीदगाहे किताब व सुन्नत", पृष्ठ 45।
- ↑ इब्ने इदरीस हिल्ली, अल-सराएर, 1410 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 198।
- ↑ शेख अंसारी, किताब अल-तहारत, 1415 हिजरी, खंड 4, पृष्ठ 70।
- ↑ शहीद अव्वल, ज़िकरा अल-शिया, 1419 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 331।
- ↑ सदूक़, एलल अल शराया, 1385 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 322; बोखारी, सहीह बोखारी, 1401 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 138; मुस्लिम, सहीह मुस्लिम, 1374 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 489, हदीस 705।
- ↑ कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, खंड 3, पृ. 286-287।
- ↑ शेख़ सदूक़, एलल अल शराया, 1385 शम्सी, खंड 2, पृष्ठ 322; मुस्लिम, सहीह मुस्लिम, 1374 हिजरी, खंड 1, बाब अल जम बैना सलातैन फ़ी अल हज़र, पृष्ठ 490, हिजरी 705।
- ↑ शहीद अव्वल, ज़िकर अल-शिया, 1419 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 335।
- ↑ इब्ने इदरीस हिल्ली, अल-सराएर, 1410 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 198।
- ↑ सरख़सी, अल-मबसूत, 1414 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 149।
- ↑ नवी, शरहे सहीह मुस्लिम, 1392 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 218, पृष्ठ 212।
- ↑ देखें: नवी, शरहे सहीह मुस्लिम, 1392 हिजरी, खंड 5, पृष्ठ 218।
- ↑ मूसवी, जम बैने दो नमाज़, 1393 शम्सी, पृष्ठ 34; सुब्हानी, अल अक़ीदा अल इस्लामिया अला ज़ौअ मदरसा अहले अल बैत, 1419 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 340।
- ↑ जज़ीरी, फ़िक़्ह अला अल-मज़हब अल-अरबा, 1424 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 419।
- ↑ शहीद अव्वल, ज़िकरा अल-शिया, 1419 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 336।
- ↑ सूर ए इसरा, आयत 78।
- ↑ सुब्हानी, अल-अंसाफ, 1381 शम्सी, खंड 1, पृष्ठ 291।
- ↑ सरखसी, अल-मबसूत, 1414 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 149।
- ↑ शहीद अव्वल, ज़िकरा अल-शिया, 1419 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 323।
- ↑ सुब्हानी, "जम मियाने दो नमाज़ अज़ दीदगाहे किताब व सुन्नत", पृष्ठ 67।
- ↑ आलूसी, रूह अल-मानी, 1415 हिजरी, खंड 8, पृष्ठ 127।
- ↑ अल जम बैना अल सलातैन अला ज़ौव अल किताब अल सुन्नत, मदरसा फ़क़ाहत लाइब्रेरी।
स्रोत
- आलूसी, सय्यद महमूद, रूह अल-मानी फ़ी तफ़सीर अल-कुरआन अल-अज़ीम, अली अब्दुलबारी अत्तिया द्वारा अनुसंधान, बेरूत, दार अल-किताब अल-इल्मिया, 1415 हिजरी।
- इब्ने इदरीस हिल्ली, मुहम्मद बिन मंसूर, अल सराएर अल हावी ले तहरीर अल-फ़तावा, क़ुम, दफ़्तरे इन्तेशाराते इस्लामी जामेअ मुदर्रेसीन हौज़ ए इल्मिया क़ुम से सम्बंधित, 1410 हिजरी।
- बोखारी, मुहम्मद बिन इस्माइल, सहीह अल-बोखारी, बेरूत, दार अल-फिक्र लिल-तबाआ व अल-नश्र व अल-तौज़अ, 1401 हिजरी।
- जज़ीरी, अब्दुर्रहमान बिन मुहम्मद, अल फ़िक़ह अला अल मज़ाहिब अल-अरबा, बेरूत, दार अल-किताब अल-इल्मिया, 1424 हिजरी/2003 ईस्वी।
- सुब्हानी, जाफ़र, अल-अंसाफ़ फ़ी मसाएला दाम फ़ीहा अल-खिलाफ़, क़ुम, इमाम सादिक़ (अ) इंस्टीट्यूट, 1381 शम्सी।
- सुब्हानी, जाफ़र, "जम मियाने दो नमाज़ अज़ दीदगाहे किताव व सुन्नत", अहले बैत न्यायशास्त्र त्रैमासिक, संख्या 45, वसंत 1385 शम्सी।
- सुब्हानी, जाफ़र, अल-अक़ीदा अल-इस्लामिया अला ज़ौव मदरसा अहले अल-बैत, क़ुम, इमाम अल-सादिक़ (अ) इंस्टीट्यूट, 1419 हिजरी।
- सरखसी, मुहम्मद बिन अहमद, अल-मबसूत, बेरूत, दार अल-मारेफ़ा, 1414 हिजरी/1993 ई।
- शहीद अव्वल, मुहम्मद बिन मक्की, ज़िकरा अल-शिया फ़ी अहकाम अल-शरिया, क़ुम, आल-अल-बैत फाउंडेशन, क़ुम, 1419 हिजरी।
- शेख़ अंसारी, मुर्तज़ा बिन मोहम्मद अमीन, किताब अल-तहारत, क़ुम, शेख आज़म अंसारी की स्मृति में विश्व कांग्रेस, पहला संस्करण, 1415 हिजरी।
- शेख़ सदूक़, मुहम्मद बिन अली, एलल अल शराया, क़ुम, दावरी बुक स्टोर, 1385 शम्सी/1966 ईस्वी।
- कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल-काफ़ी, क़ुम, दार अल-किताब अल-इस्लामिया, अली अकबर ग़फ़्फ़ारी और मुहम्मद आखुंदी द्वारा सुधार, 1407 हिजरी।
- मुस्लिम, मुस्लिम बिन हज्जाज, सहीह मुस्लिम, बेरूत, दार एहिया अल-तोरास अल-अरबी, 1374 हिजरी।
- मूसवी, अब्दुर्रहीम, जम बैने दो नमाज़, हुसैन अली अरबी द्वारा अनुवादित, क़ुम, मजमा ए जहानी ए अहले बैत (अ), 1393 शम्सी।
- नवी, मोहियुद्दीन, अल-मिन्हाज सहीह मुस्लिम इब्ने अल-हज्जाज की शरह, बेरूत, दार एहिया अल-तोरास अल-अरबी, 1392 हिजरी।