मग़रिबे शरई

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सूर्यास्त के क्षण का दृश्य

शरई मग़रिब (अरबी: الغروب) मग़रिब की नमाज़ के शुरु होने का समय है, जिसकी चर्चा फ़िक़्ह (न्याय शास्त्र) के कुछ अध्यायों में की गई है। शरई मग़रिब का उपयोग अस्र की नमाज़ के समय के अंत, मग़रिब की नमाज़ के समय की शुरुआत, उपवास (रोज़ा) के अंत (इफ़तार का समय) और इसी तरह से अराफ़ात में स्वैच्छिक रुकने जैसे मुद्दों (अहकाम) में किया जाता है। इसलिए, नमाज़, उपवास और हज जैसे न्यायशास्त्र के विभिन्न भागों में इसकी चर्चा की जाती है।[१]

मग़रिब के समय को लेकर न्यायविदों में मतभेद है। कुछ न्यायविद सूर्यास्त को मग़रिब मानते हैं,[२] लेकिन साहिबे जवाहिर के अनुसार, बहुत से न्यायविद आकाश के पूर्वी ओर से लाल रंग का ख़त्म हो जाना (आसमान के पूर्वी हिस्से से लाली का ग़ायब हो जाना) को मग़रिबे शरई मानते हैं।[३] इस दृष्टि से, सूर्यास्त और मग़रिब शरई दो अलग-अलग समय हैं। सूर्यास्त अस्र की प्रार्थना (नमाज़) के समय का अंत है, लेकिन हुमर ए मशरेक़िया का विनाश उपवास तोड़ने का समय है और मग़रिब की प्रार्थना के अनिवार्य (वाजिब) हो जाने का समय है। [४]

फ़ुटनोट

  1. हाशेमी शाहरूदी, फ़ारसी न्यायशास्त्र, 2005, खंड 1, पृष्ठ 413।
  2. बहजत, इस्तिफ़ताआत, 1428 हिजरी, खंड 2, पृष्ठ 348।
  3. नजफी, जवाहिर अल कलाम, 1362 हिजरी, खंड 7, पेज 108-109.
  4. तबातबाई यज़दी, अल-उरवा अल-वुसक़ा, 1431 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 345, फुटनोट 3 देखें।

स्रोत

  • बहजत फुमनी, मोहम्मद तक़ी, इस्तिफ्ताआत, क़ुम, आयतुल्लाह बहजत का कार्यालय, 1428 हिजरी।
  • तबतबाई यज़दी, सैय्यद मोहम्मद काज़िम, अल-उरवा अल-वुसक़ा, सय्यद अब्दुल करीम मूसवी अर्देबिली की टिप्पणी, क़ुम, अल-नशर फाउंडेशन फॉर अल-मफ़ीद यूनिवर्सिटी, 1431 हिजरी।
  • मोअस्सेसा दायरतुल मआरिफ़े फ़िक़हे इस्लामी, फ़ंरहंगे फ़िक़हे फ़ारसी, क़ुम, मोअस्सेसा दायरतुल मआरिफ़े फ़िक़हे इस्लामी, 1385।
  • नजफी, मोहम्मद हसन, जवाहिर अल-कलाम, इब्राहिम सुल्तानी द्वारा शोध, बेरूत, दार एहया अल-तुरास अल-अरबी, 1362 हिजरी।