आज़ा ए सज्दा

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आज़ा ए सज्दा या मसाजिद ए सब्आ ( अरबी: أعضاء السجدة) शरीर के उन अंगो को कहा जाता है जिन्हे सजदा करते समय ज़मीन पर रखा जाता है। शिया फ़ुक़्हा के अनुसार सज्दा करते समय माथा, दोनो हाथो की हथैली, दोनो घुटने, पैरो के दोनो अंगूठे ज़मीन पर रखना वाजिब है। नाक को ज़मीन पर रखना मुस्तहब है।

अधिकांश धर्मशास्त्रीयो के अनुसार सज्दा करते समय उपरोक्त अंगो का पूर्ण भाग ज़मीन पर रखना वाजिब नही बल्कि न्यूनतम संपर्क - यह कहा जाए कि इन अंगो को ज़मीन पर रखा गया है - पर्याप्त माना जाता है। लेकिन माथा इस नियम से अलग है और कुछ फ़ुक़्हा माथे का एक दिरहम के बराबर भाग ज़मीन पर रखना वाजिब समझते है।

सज्दा करते समय माथा जिस चीज़ पर रखा जाता है उसका ज़मीन या उससे उगने वाली चीज़ो मे से होना ज़रूरी है बशर्ते कि वह खाने और पहनने योग्य ना हो।

परिभाषा

आज़ा ए सज्दा या आज़ा ए सब्आ या मसाजिद ए सज्दा शरीर के उन सात अंगो (माथा, दोनो हथैलीयो, दोनो घुटनो, पैरो के दोनो अंगूठो)[१] को कहा जाता है जिन्हे सज्दा करते समय ज़मीन पर रखना वाजिब है।[२] धर्मशास्त्रो मे नमाज़ के अध्याय मे आज़ा ए सज्दा की चर्चा की जाती है।[३]

अहकाम

आज़ा ए सज्दा के कुछ अहकाम निम्मलिखित हैः

  • शिया धर्मशास्त्री युसुफ़ बहरानी (मृत्यु 1186 हिजरी) का कहना है कि शिया फ़ुक़्हा की प्रसिद्ध राय के अनुसार, सज्दा करते समय शरीर के सात अंगो का ज़मीन पर रखना वाजिब है।[४]
  • सज्दा करते समय माथे के अलावा दूसरे अंगों का पूर्ण भाग ज़मीन पर रखना वाजिब नही है न्यूनतम संपर्क - यह कहा जाए कि इन अंगो को ज़मीन पर रखा गया है - पर्याप्त माना जाता है।[५] कुछ फ़ुक़्हा जमीन के साथ माथे के न्यूनतम संपर्क को भी पर्याप्त मानते है।[६] किंतु दूसरे फ़ुक़्हा माथे का दिरहम के बराबर जमीन से संपर्क वाजिब मानते है।[७]
  • सज्दे का ज़िक्र पढ़ते समय आज़ा ए सज्दा मे से किसी एक को जान बूझ कर उठाने से नमाज़ बातिल हो जाती है।[८] आयतुल्लाह सिस्तानी के फ़तवे के अनुसार सज्दे मे ज़िक्र नही भी पढ़ रहा हो और आज़ा ए सज्दा मे से किसी एक को अगर उठा ले तो एहतियात की बिना पर नमाज़ बातिल है।[९]

मुस्तहब्बात

  • सज्दे के दौरान नाक को ज़मीन पर रखना फ़ुक़्हा ने मुस्तहब माना है।[१०] इसके मुस्तहब होने पर वह रिवायत दलील है जो कि इमाम सादिक़ (अ) से नक़्ल की गई है जिसमे सज्दे के दौरान नाक को ज़मीन पर रखना पैग़म्बरे अकरम (स) की सुन्नत[११] बताया है।[१२] अल्लामा हिल्ली के अनुसार नाक को ज़मीन पर रखना मुस्तहब ए मोअक्कद है।[१३]
  • तख़्वियाः बाजूओ को खोलना और कोहनियो को ज़मीन पर ना रखना, सज्दा करते समय पुरूषो के लिए मुस्तहब है,[१४] लेकिन महिलाओ के लिए सज्दा करते समय कोहनियो को ज़मीन पर रखना और शरीर के अंगो को एक दूसरे से मिला कर रखना मुस्तहब है।[१५]

सज्दा करने की जगह के अहकाम

  1. शिया धर्मशास्त्रीयो की प्रसिद्ध राय के अनुसार, आज़ा ए सज्दा मे से केवल माथा रखने वाले स्थान का पाक होना वाजिब है।[१६] लेकिन चौथी और पांचवी चंद्र शताब्दी के शिया फ़क़ीह अबू सलाह हलबी सभी आज़ा ए सज्दा के स्थान से अशुद्धता निजासत को दूर करना वाजिब मानते है।[१७]
  2. सज्दा करने की जगह - वह स्थान जिस पर नमाज़ी सज्दा करते समय माथा रखता है - का ज़मीन या उससे उगने वाली चीज़ मे से होना वाजिब है; बशर्ते वह खाने और पहनने योग्य न हो।[१८] इसकी दलील हदीसे और धर्मशास्त्रियो का इज्मा - सर्वसम्मति से प्रलेखित - है।[१९] इसलिए सज्दा करते समय माथे को ऐसी चीज़ - जैसे सोना, चांदी, अक़ीक़ और फ़िरोज़ा इत्यादि पर रखना जिसमे उपरोक्त शर्ते नही पाई जाती सही नही है।[२०]

फ़ुटनोट

  1. बहरानी, अल हदाइक़ उन नाज़ेरा, 1363 शम्सी, भाग 8, पेज 276.
  2. मोअस्सेसा ए दाएरत उल मआरिफ़ अल फ़िक़्ह उश शिया, मोसूआ तुल फ़िक्ह उल इस्लामी, 1423हिजरी, भाग 15, पेज 108.
  3. तबातबाई यज़्दी, अल उर्वत उल वुस्क़ा, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 176.
  4. बहरानी, अल हदाइक़ उन नाज़ेरा, 1363 शम्सी, भाग 8, पेज 276.
  5. बहरानी, अल हदाइक़ उन नाज़ेरा, 1363 शम्सी, भाग 8, पेज 277.
  6. शहीद ए सानी, मसालेक उल इफ़्हाम, 1413 हिजरी, भाग 1, पेज 18.
  7. नजफ़ी, जवाहिर उल कलाम, 1362 शम्सी, भाग 10, पेज 144.
  8. अल्लामा हिल्ली, तहरीर उल अहकाम, मोअस्सेसा ए आले अलबैत, भाग 1, पेज 40.
  9. सीस्तानी, तौज़ीह उल मसाइल, 1415 हिजरी, भाग 1, पेज 224.
  10. मोअस्सेसा ए दाएरत उल मआरिफ़ अल फ़िक़्ह उल इस्लामी, मोसूआ तुल फ़िक्ह उल इस्लामी, 1423 हिजरी, भाग 18, पेज 288-289.
  11. हुर्रे आमुलि, वसाइल उश शिया, 1416 हिजरी, भाग 6, पेज 343; कुलैनी, अल काफ़ी, 1387 शम्सी, भाग 6, पेज 144.
  12. बहरानी, अल हदाइक़ उन नाज़ेरा, 1363 शम्सी, भाग 8, पेज 276.
  13. अल्लामा हिल्ली, तज़्किरत उल फ़ुक़्हा, 1414 हिजरी, भाग 3, पेज 188.
  14. मुहक़्क़िक़े करकि, जामे उल मक़ासिद, 1414 हिजरी, भाग 2, पेज 306.
  15. मुहक़्क़िक़े करकि, जामे उल मक़ासिद, 1414 हिजरी, भाग 2, पेज 365.
  16. तबातबाई यज़्दी, अल उर्वत उल वुस्क़ा, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 177.
  17. अबू सल्लाह हल्बि, अल काफ़ी फ़िल फ़िक़्ह, 1403 हिजरी, भाग 1, पेज 140.
  18. तबातबाई यज़्दी, अल उर्वत उल वुस्क़ा, 1417 हिजरी, भाग 1, पेज 388.
  19. सब्ज़ावारी, मोहज़्ज़ब उल अहकाम, 1413 हिजरी, भाग 5, पेज 434.
  20. तबातबाई यज़्दी, अल उर्वत उल वुस्क़ा, 1417 हिजरी, भाग 2, पेज 389.

स्रोत

  • अबू सल्लाह हल्बि, तकीउद्दीन बिन नजमुद्दीन, अल काफ़ी फ़िल फ़िक़्ह, इस्फ़हान, मकतब ए इमामे अमीरुल मोमेनीन (अ.स.), 1403 हिजरी
  • बहरानी, युसुफ़ बिन अहमद, अल हदाइक़ उन नाज़ेरा, क़ुम, मोअस्सेसा ए अल नश्र उल इस्लामी, 1363 शम्सी
  • हुर्रे आमुलि, मुहम्मद बिन हसन, वसाइल उश शिया, क़ुम, मोअस्सेसा ए आलुल बैत, 1416 हिजरी
  • सब्ज़ावारी, सय्यद अब्दुल आला, मोहज़्ज़ब उल अहकाम, क़ुम, दार उत तफ़सीर, चौथा प्रकाशन, 1413 हिजरी
  • सीस्तानी, सय्यद अली, तौज़ीह उल मसाइल, क़ुम, इंतेशारात ए मेहेर, 1415 हिजरी
  • शहीद ए सानी, ज़ैनुद्दीन बिन नूरुद्दीन, मसालिक उल इफ़्हाम, क़ुम, मोअस्सेसा ए अल मआरिफ उल इस्लामिया, पहला प्रकाशन, 1413 हिजरी
  • तबातबाई यज़्दी, सय्यद मुहम्मद काज़िम, अल उर्वत उल वुस्क़ा, क़ुम, मोअस्सेसा ए अल नश्र उल इस्लामी, पहला प्रकाश, 1417 हिजरी
  • अल्लामा हिल्ली, हसन बिन युसुफ़, तहरीर उल अहकाम, मशहद, मोअस्सेसा आलुल बैत, पहला प्रकाशन
  • अल्लामा हिल्ली, हसन बिन युसुफ़, तज़्किरत उल फ़ुक़्हा, क़ुम, मोअस्सेसा आलुल बैत, 1414 हिजरी
  • कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल काफ़ी, क़ुम, दार उल हदीस, पहला प्रकाशन, 1387 शम्सी
  • मोअस्सेसा ए दाएरत मआरिफ़ अल फ़िक़्ह उल इस्लामी, मोसूआ तुल फ़िक्ह उल इस्लामी तिब्क़न ले मज़हब ए अहलुलबैत (अ.स.), क़ुम, मोअस्सेसा ए दाएरत मआरिफ़ अल फ़िक़्ह उल इस्लामी, पहला प्रकाशन, 1423 हिजरी
  • मुहक़्क़िक़े करकि, अली इब्ने हुसैन, जामे उल मक़ासिद, क़ुम, मोअस्सेसा ए आलुल बैत, दूसरा प्रकाशन, 1414 हिजरी
  • नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर उल कलाम, बैरूत, दार ए एहया इत तुरास उल अरबी, सातवां प्रकाशन, 1362 शम्सी