ज़िल-क़ादा महीने के रविवार की नमाज़

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ज़िल-क़ादा महीने के रविवार की नमाज़, विशेष अनुष्ठानों के साथ एक मुस्तहब नमाज़ है जो ज़िल-क़ादा महीने के रविवारों में से एक में पढ़ी जाती है। हदीसों में इसके पढ़ने से गुनाहों (पापों) की माफी जैसे प्रभावों का ज़िक्र किया गया है। इस नमाज़ का प्रमाण एक हदीस है जिसे सय्यद इब्न तावूस ने मलिक बिन अनस के हवाले से पैगंबर (स) से उल्लेख किया है।

नमाज़ कैसे पढ़ें

यह नमाज़ दो दौर की दो नमाज़ है जो ज़िल-क़ादा के महीने में रविवार की नमाज़ की नीयत से पढ़ी जाती है। इसमें प्रत्येक रकअत में सूरह हम्द एक बार, सूरह तौहीद तीन बार, सूरह नास एक बार और सूरह फलक़ एक बार पढ़ा जाता है। चार रकअतों की समाप्ति के बाद, सत्तर बार इस्तिग़फ़ार (اَستَغفِرُ اللهَ و اَتوبُ إلیه असतग़फ़िरुल्लाह व अतूबो इलैह जैसे ज़िक्र को पढ़े) और एक बार (لا حَول و لا قوةَ الا بالله) ला हौला वला क़ुव्वता इला बिल्लाह कहे, और अंत में इस दुआ को पढ़े, «یا عَزِیزُ یا غَفَّارُ اغْفِرْ لِی ذُنُوبِی وَ ذُنُوبَ جَمِیعِ الْمُؤْمِنِینَ وَ الْمُؤْمِنَاتِ فَإِنَّهُ لَا یغْفِرُ الذُّنُوبَ إِلَّا أَنْتَ» "हे अज़ीज़, हे क्षमा करने वाले, मेरे पापों को और सभी ईमानवालों के पापों को क्षमा कर दे।" बेशक "तेरे सिवा कोई पापों का क्षमा करने वाला नही है"। इसी तरह से वह नमाज़ से पहले ग़ुस्ल करेगा। [१]

सय्यद इब्न तावूस ने, अपनी पुस्तक इक़बाल अल-आमाल में, एक हदीस का वर्णन किया हैं जो पैगंबर (स) से अनस इब्न मलिक के हवाले से उल्लेख की गई है और वह इस नमाज़ के लिये दस्तावेज़ (सनद) है। [२]

सदाचार और समय

पवित्र पैगंबर (स) से वर्णित है कि जो कोई ज़िल-क़ादा के इतवार को इस नमाज़ को पढ़ेगा, उसकी तौबा स्वीकार कर ली जाएगी और उसके पाप माफ़ कर दिए जाएंगे, क़यामत के दिन उसके दुश्मन उससे प्रसन्न हो जायेंगे, वह ईमान के साथ मरेगा और उसका दीन और ईमान उससे छीना नही जाएगा। उसकी क़ब्र चौड़ी और रौशन होगी और उसके माता-पिता उससे संतुष्ट होंगे; इस क्षमा में उसके माता-पिता और उसकी संतान शामिल होगी; उसके रिज़्क़ में इज़ाफ़ा होगा, मौत का फ़रिश्ता उसकी मृत्यु के समय धैर्य रखेगा; ताकि वह आसानी से जान दे सके और ... [३]

शिया विद्वानों में से एक, मिर्ज़ा जवाद मलेकी तबरीज़ी ने इस नमाज़ को पढ़ने की सलाह दी है। [४]

इस नमाज़ को पढ़ने का समय ज़िल-क़ादा के महीने में रविवार है और इसे दिन के किसी भी समय पढ़ा जा सकता है। इक़बाल अल-आमाल में वर्णित एक हदीस के अनुसार, [५] यदि इसे अन्य महीनों के रविवार को भी पढ़ा जाये, तो इसका वही इनाम मिलेगा। [६]

संबंधित लेख

फ़ुटनोट

  1. क़ोमी, मफ़ातिह अल-जेनान, 2007, ज़िल कादा के महीने के कर्म, रविवार की नमाज़, पृष्ठ 344।
  2. इब्न तावूस, इक़बाल अल-आमाल, 1409 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 308।
  3. क़ोमी, मफ़ातिह अल-जेनान, 2007, ज़िल कादा के महीने के कर्म, रविवार की नमाज़, पृष्ठ 344।
  4. मलिकी तबरेज़ी, अल-मुराक़ेबात, 1422 हिजरी, पृष्ठ 236।
  5. इब्न तावुस, इक़बाल अल-आमाल, 1409 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 308।
  6. क़ोमी, मफ़ातिह अल-जेनान, 2007, ज़िल कादा के महीने के कर्म, रविवार की नमाज़, पृष्ठ 344।

स्रोत

  • इब्न तावूस, अली इब्न मूसा, इक़बाल अल-आमाल, तेहरान, दार अल-किताब अल-इस्लामिया, 1409 हिजरी।
  • क़ोमी, अब्बास, मफ़ातिह अल-जेनान, क़ुम, मशअर, 2007।
  • मलेकी तबरीज़ी, मिर्जा जवाद, अल-मुराक़ेबात, क़ुम, ज़विल-क़ुर्बा, 1422 हिजरी।