जल्सा ए इस्तिराहत
जल्सा ए इस्तिराहत (अरबी: جلسة الاستراحة) या जिल्सतुल इस्तिराहा, नमाज़ के दूसरे सजदे के बाद और बिना तशह्हुद वाली रकअतों में खड़े होने से पहले शरीर को आराम देने के साथ बैठने को कहा जाता है।[१]
कुछ न्यायाविद्, जैसे कि अल्लामा हिल्ली और साहिबे जवाहिर, ने शिया विद्वानों के बीच नमाज़ में इस क्रिया के मुस्तहब होने को प्रसिद्ध बताया है;[२] लेकिन सय्यद मुर्तज़ा के अनुसार, इज्मा और एहतियात के सिद्धांत के आधार पर जल्सा ए इस्तिराहत वाजिब है।[३] सय्यद मुहम्मद काज़िम तबातबाई यज़्दी ने भी अपनी किताब "अल उर्वतुल वुस्क़ा" में जल्सा ए इस्तिराहत को एहतियात के मुताबिक़ करार दिया है और इसके वाजिब होने की संभावना को मजबूत माना है;[४] लेकिन अल्लामा हिल्ली, आठवीं शताब्दी हिजरी के न्यायाविद्, ने रिवायतों और बराअत के सिद्धांत के आधार पर इस क्रिया के वाजिब होने पर सवाल उठाया है।[५]
कुछ शिया मरजा ए तक़लीद (14वीं शताब्दी शम्सी में) के फ़तवे के अनुसार, जल्सा ए इस्तिराहत करना एहतियाते वाजिब है, और कुछ अन्य के फ़तवे के अनुसार, यह एहतियाते मुस्तहब है:[६] इमाम ख़ुमैनी, सय्यद मुहम्मद रज़ा गोलपायगानी, लुत्फुल्लाह साफ़ी गोलपायगानी, सय्यद अली सिस्तानी और हुसैन नूरी हमदानी के अनुसार जल्सा ए इस्तिराहत करना एहतियाते वाजिब है;[७] जबकि न्यायाविद् जैसे सय्यद अबुल क़ासिम ख़ूई, मिर्ज़ा जवाद तबरेज़ी, मुहम्मद फ़ाज़िल लंकरानी, मुहम्मद तक़ी बहजत, नासिर मक़ारिम शीराज़ी और सय्यद मूसा शुबैरी ज़ंजानी के अनुसार, जल्सा ए इस्तिराहत करना एहतियाते मुस्तहब है।[८]
न्यायशास्त्रीय (इस्लामिक जुरिस्प्रूडेंस) की किताबों में, जल्सा ए इस्तिराहत के दौरान, मर्दों के लिए "तवर्रुक" (बायां पैर दाएं पैर के नीचे रखकर बाईं जांघ पर बैठना)[९] और औरतों के लिए "तरब्बोअ"[१०] या फिर दोनों के लिए[११] मुस्तहब माना गया है। कुछ न्यायाविद् "तरब्बुअ" को चार ज़ानू (चौकड़ी मारकर बैठना) के रूप में समझते हैं, जबकि कुछ अन्य इसे दो ज़ानू (दोनों पैरों को एक तरफ़ करके बैठना) के रूप में परिभाषित करते हैं।[१२] इसके अलावा, जल्सा ए इस्तिराहत के दौरान "इक़आ" (घुटनों के बल बैठकर पैरों के तलवों को ज़मीन पर रखना और नितंबों को एड़ियों पर टिकाना) की हालत मकरूह (नापसंदीदा) मानी गई है।[१३] "इक़आ" वह हालत है जिसमें पैरों के तलवों को ज़मीन पर रखा जाता है और नितंबों को एड़ियों पर टिकाया जाता है।[१४]
फ़ुटनोट
- ↑ नजफ़ी, "जवाहिर अल कलाम", 1421 हिजरी, खंड 5, पेज 466।
- ↑ अल्लामा हिल्ली, "मुख्तलिफ़ अल शिया", 1413 हिजरी, खंड 2, पेज 171; नजफ़ी, "जवाहिर अल कलाम", 1421 हिजरी, खंड 5, पेज 466।
- ↑ सय्यद मुर्तज़ा, "अल इंतिसार", 1441 हिजरी, खंड 1, पेज 312।
- ↑ तबातबाई यज़्दी, "अल उर्वतुल वुस्क़ा", 1419 हिजरी, खंड 2, पेज 576।
- ↑ अल्लामा हिल्ली, "मुख्तलिफ अल शिया", 1413 हिजरी, खंड 2, पेज 172।
- ↑ बनी हाशमी ख़ुमैनी, "तौज़ीह अल मसाइल मराजेअ", 1392 हिजरी, खंड 1, पेज 584।
- ↑ बनी हाशमी ख़ुमैनी और उसूली, "तौज़ीह अल मसाइल मराजेअ", 1392 शम्सी, खंड 1, पेज 584।
- ↑ बनी हाशमी ख़ुमैनी और उसूली, "तौज़ीह अल मसाइल मराजेअ", 1392 हिजरी, खंड 1, पेज 584।
- ↑ नजफ़ी, "जवाहिर अल कलाम", 1421 हिजरी, खंड 5, पेज 463।
- ↑ नजफ़ी, "जवाहिर अल कलाम", 1421 हिजरी, खंड 5, पेज 465।
- ↑ ख़ूई, "अल मुस्तनद", 1421 हिजरी, खंड 14, पेज 261।
- ↑ मोअसस्सा ए दायरा अल मआरिफ़ फ़िक़्ह इस्लामी, "फ़र्हंग ए फ़िक़्ह फ़ारसी", 1421 हिजरी, खंड 2, पेज 436 437।
- ↑ तबातबाई यज़्दी, "अल उर्वतुल वुस्क़ा", 1419 हिजरी, खंड 2, पेज 575।
- ↑ मोअसस्सा ए दायरा अल मआरिफ़ फ़िक़्ह इस्लामी, "फ़र्हंग ए फ़िक़्ह फ़ारसी", खंड 1, पेज 656।
स्रोत
- बनी हाशमी ख़ुमैनी, मुहम्मद हसन और एहसान उसूली, "तौज़ीह अल मसाइल मराजेअ (13 मराजे ए तक़लीद के फ़तवे के अनुसार)", क़ुम, दफ़्तर ए इंतिशारात ए इस्लामी, 1392 हिजरी।
- ख़ूई, सय्यद अबुल क़ासिम, "अल मुस्तनद फ़ी शरहे अल उर्वतुल वुस्क़ा", तहक़ीक़: मुर्तज़ा बोरोजर्दी, क़ुम: मोअस्ससा ए इह्या आसार अल इमाम अल ख़ूई, 1421 हिजरी।
- सय्यद मुर्तज़ा, अली बिन हुसैन, "अल इंतिसार लेमा इनफ़रदत बेही अल इमामिया", तहक़ीक़: हुसैन मूसवी बोरोजर्दी, मशहद, मजमा अल बोहूथ अल इस्लामिया, 1441 हिजरी।
- तबातबाई यज़्दी, सय्यद मुहम्मद काज़िम, "अल उर्वतुल वुस्क़ा", क़ुम, मोअस्सास ए अल नशर अल इस्लामी, 1419 हिजरी।
- मोअस्ससा ए दायरा अल मआरिफ़ फ़िक़्ह इस्लामी, "फ़र्हंग ए फ़िक़्ह फ़ारसी", क़ुम, मोअस्ससा ए दायरा अल मआरिफ़ फ़िक़्ह इस्लामी, 1382 हिजरी।
- अल्लामा हिल्ली, हसन बिन यूसुफ़, "मुख्तलिफ अश शिया फी अहकाम अश शरिया", क़ुम, दफ़्तर ए इंतिशारात ए इस्लामी (जामिया मुदर्रेसीन हौज़ा ए इल्मिया क़ुम से संबद्ध), 1413 हिजरी।
- नजफ़ी, मुहम्मद हसन बिन बाक़िर, "जवाहिर अल कलाम फी शरहे शराए अल इस्लाम", तहक़ीक़: मोअस्ससा ए दायरा अल मआरिफ़ फ़िक़्ह इस्लामी बर मज़हब अहले बैत (अ), क़ुम, मोअस्ससा ए दायरा अल मआरिफ़ फ़िक़्ह इस्लामी बर मज़हब अहले बैत (अ), 1421 हिजरी।