नमाज़ मे हाथ बांधना
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कुछ अमली व फ़िक़ही अहकाम |
फ़ुरू ए दीन |
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तकत्तुफ़ (अरबीः التكتف في الصلاة) में हाथ बांध कर इस तरह नमाज़ अदा करना कि दाहिने हाथ की हथेली बाएँ हाथ की पुश्त पर और हाथ नाभि के ऊपर या छाती पर हों।
शिया न्यायविद तकत्तुफ़ को हराम मानते हैं और इस बात पर आस्था रखते हैं कि यह प्रथा नमाज़ को अमान्य (बातिल) कर देती है। वे उन रिवायतो का हवाला देते हैं जो पैग़म्बर (स) को बिना तकत्तुफ़ के नमाज़ अदा करने की रिपोर्ट करती हैं। अहले-बैत (अ) की रिवायतें भी हैं जिनमें तकत्तुफ़ की मनाही की गई है। शिया न्यायविद तक़य्या की शर्तों के तहत तकत्तुफ़ को जायज़ मानते हैं।
अधिकांश सुन्नी विद्वानों के अनुसार तकत्तुफ़ को मुस्तहब मानते है। उनमें से कुछ इसे अनिवार्य (वाजिब) मानते हैं और अन्य इसे मकरूह मानते हैं। नमाज़ में तकत्तुफ़ कैसे किया जाए, हाथ रखने की जगह और तकत्तुफ़ के समय को लेकर सुन्नी न्यायविदों में मतभेद पाया जाता है।
सुन्नी न्यायविदों ने उन रिवायतो का हवाला दिया है जो तकत्तुफ़ के पक्ष में तकत्तुफ़ की अनुमति का संकेत देती हैं। लेकिन शिया इनमें से कुछ रिवायतो की प्रामाणिकता और कुछ की सामग्री को त्रुटिपूर्ण मानते हैं।
तकत्तुफ़ की परिभाषा और महत्व
तक़त्तुफ़ का अर्थ है नमाज़ पढ़ते समय एक हाथ को दूसरे पर छाती या पेट पर रखना।[१] इस क्रिया को तकतीफ़,[२] तकफ़ीर,[३] क़ब्ज़[४] और वज़्अ भी कहा जाता है[५] तकत्तुफ़ के विपरीत इरसाल और इस्दाल या शदल शब्द हैं, जिसका अर्थ हाथों को मुक्त करना (खोलना) है।[६]
तकत्तुफ़ शिया संप्रदाय और अन्य संप्रदायो के बीच विवादास्पद मुद्दों में से एक है।[७] अधिकांश सुन्नी तकत्तुफ़ को नमाज़ के मुस्तहब अनुष्ठानो मे से मानते हैं।[८]
तकत्तुफ़ कैसे करें
सुन्नी न्यायशास्त्री ऐनी के अनुसार दाहिनी हथेली को बायीं कलाई के ऊपर इस प्रकार रखा जाए कि कलाई हथैली के बीच मे आज, तकत्तुफ़ कहलाता है; लेकिन कुछ अन्य सुन्नी विद्वानों ने दाएं हाथ की हथेली को बायीं हाथ के ऊपर या भुजा पर रखने को तकत्तुफ़ कहते है।[९] इसी तरहर कुछ का कहना है कि दाऐं हाथ से बाए हाथ को इस तरह पकड़ ले कि बायं हाथ का अंगूठा और झूठी उंगली दाए हाथ हाथ मे आ जाए।[१०]
तकत्तुफ़ में हाथ कहाँ रखे जाते हैं?
सुन्नी न्यायविद इस बात पर असहमत हैं कि तकत्तुफ़ में हाथ शरीर पर कहाँ रखे जाने चाहिए। उनमें से कुछ का मानना है कि हाथ रखने का स्थान नाभि के नीचे है[११] और कुछ का मानना है कि छाती के ऊपर या नीचे[१२] हन्फ़ी और हंबली हाथो को नाफि के नीचे और शाफ़ई छाती के नीचे मानते है[१३] वहाबी विद्वान बिनबाज़ का मानना है कि तकत्तुफ़ में हाथों को छाती पर रखना चाहिए।[१४]
कुछ लोगों ने यह भी कहा है कि पुरुषों को अपने हाथ नाभि के नीचे और महिलाओं को छाती पर रखना चाहिए।[१५]
नमाज़ में तकत्तुफ़ का स्थान
सुन्नी विद्वान ऐनी के अनुसार अबू हनीफ़ा और अबू यूसुफ़ क़याम की स्थिति मे तकत्तुफ़ को सुन्नत मानते हैं, जबकि अन्य क़िराअत करते समय इसे सुन्नत मानते हैं। ऐनी के दृष्टिकोण से, क़याम की स्थिति मे मासूर ज़िक्र (वह जिक़्र जिसका उल्लेख रिवायतो मे हुआ है) करते हुए तकत्तुफ़ मुस्तहब है।[१६] इस आधार पर रुकूअ के बाद, क़ुनूत के दौरान, नमाज़े मय्यत और नमाज़े ईद की तकबीरो के दौरान तकत्तुफ़ मे मतभेद है।[१७]
हनफ़ी और शाफ़ई रुकूअ के बाद तकत्तुफ़ मे छाती पर हाथ रखने को बिदअत मानते हैं। हनबली पंथ के नेता इब्न हनबल ने भी इस संबंध में अलग-अलग राय के साथ उद्धृत किया गया है, जिनमें से एक का मानना है कि हम ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं या नहीं।[१८]
शिया दृष्टिकोण से फ़िक़्ही हुक्म
शिया न्यायविदों के बीच लोकप्रिय राय के अनुसार तकत्तुफ़ हराम है और तकत्तुफ़ नमाज़ को बातिल कर देता है।[१९] सय्यद मुर्तज़ा[२०] और शेख़ तूसी ने इस फैसले पर सर्वसम्मति (इज्माअ) का दावा किया है[२१] कुछ शिया न्यायविदों ने इसे केवल हराम माना है, नमाज़ को बातिल करने वाला नही माना।[२२] मुहम्मद हसन नजफ़ी ने अपनी पुस्तक जवाहिर अल-कलाम में कहा है कि अबुस सल्लाह हल्बी ने तकत्तुफ़ को मकरूह और इस्काफ़ी ने इसे छोड़ना मुस्तहब माना हैं।[२३]
शिया न्यायविदों के इस फैसले की दलील उन हदीसो को जाना हैं जिनमें पैग़म्बर (स) ने बिना तकत्तुफ़ के नमाज़ पढ़ने की ओर संकेत करती है।[२४] उनमें से अबू हामिद साएदी द्वारा सुनाई गई हदीस है जिसमें उन्होंने पैग़म्बर (स) की नमाज़ की व्याख्या की है, लेकिन उन्होंने तकत्तुफ़ की कोई रिपोर्ट पेश नही की।[२५] शिया इमामों की हदीसें भी हैं जिन्होंने नमाज में तकत्तुफ़ और तकफ़ीर को मना किया है।[२६] इमाम अली (अ)[२७] और इमाम बाक़िर (अ) ने कहा है कि तकत्तुफ़ मजूस के रीति-रिवाजों में से है।[२८] साहिब-जवाहिर का मानना है कि यह परंपरा उमर बिन खत्ताब द्वारा और ईरानी बंदियों का अनुसरण करते हुए प्रसार मे आई।[२९]
तक़य्या की दृष्ठि से तकत्तुफ़ का हुक्म
शहीद सानी और शेख मुर्तज़ा अंसारी जैसे शिया न्यायविदों ने तक़य्या की स्थिति में तकत्तुफ़ को जायज़ बल्कि वाजिब माना है।[३०] हालांकि, 15वीं चंद्र शताब्दी के मरज ए तक़लीद आयतुल्लाह ख़ामेनई ने कहा कि वर्तमान समय में तकत्तुफ़ तक़य्या के मामलों में से नहीं है और यह केवल आपातकाल (इज़्तेरार) के मामले में ही जायज़ है।[३१]
सुन्नी दृष्टिकोण से फ़िक़्ही हुक्म
सुन्नी विद्वान तकत्तुफ़ को खुज़ूअ, ख़ुशूअ और ताअज़ीम का प्रतीक मानते हैं।[३२] हालांकि, वे इसके फ़िक्ही हुक्म के बारे में असहमत हैं:
- इस्तेहबाब: सुन्नी न्यायविद ऐनी (762-855 हिजरी) के अनुसार, हनफ़ी, शाफ़ई, इब्न हनबल और सुन्नी विद्वान तकत्तुफ़ को मुस्तहब मानते हैं।[३३]
- इस्तेहबाब तख़ीरी: औज़ाई (707-774 ई.)[३४] और इब्न अब्दुल बिर्र (368-463 हिजरी) तकत्तुफ़ के इस्तेहबाब तखीरी और इरसाल मानते है।[३५]
- वुजूब: आल्बानी (1330-1420 ई.) और शौकानी (1173-1250 हिजरी) तकत्तुफ़ के वुजूब होने मे विश्वास करते है।[३६]
- कराहत: मालेकी संप्रदाय के टीकाकार क़ुर्तुबी के अनुसार, मालिक बिन अनस वाजिब नमाज़ो में तकत्तुफ़ को मकरूह और मुस्तहब्बी नमाज़ो में मुस्तहब मानते है।[३७] ऐसा कहा गया है कि अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर और हसन बसरी की राय भी यही है।[३८]
- कुछ सुन्नी न्यायविद तकत्तुफ़ को तब विशेष मानते हैं जब नमाज़ पढ़ने वाला व्यक्ति लंबे समय तक क़याम करने के कारण थक जाता है।[३९]
सुन्नियों मे तकत्तुफ के दस्तावेज़
अहले-सुन्नत तकत्तुफ़ के हुक्म के लिए जिन रिवायतो का हवाला देते है उनमें से कुछ हदीसे निम्नलिखित हैं:[४०]
- सहल बिन सअद की हदीस: इस हदीस में बताया गया है कि लोगों को नमाज़ के दौरान अपना दाहिना हाथ अपने बाएं हाथ के अग्रभाग पर रखने का आदेश दिया गया था।[४१]
- वाब्ल बिन हुज्र की हदीस: वाब्ल ने कहा है कि पैग़म्बर (स) ने तकबीर तुल-अहराम के बाद अपने हाथों को आस्तीन से निकाला और उन्हें अपने कपड़ों के नीचे अपने दाहिने हाथ को अपने बाएं हाथ पर रख लिया।[४२]
- अब्दुल्लाह बिन मसूद की हदीस: इब्न मसूद ने नमाज़ पढ़ते समय अपना बायां हाथ अपने दाहिने हाथ पर रखा, और पैग़म्बर (स) ने उनके दाहिना हाथ को उनके बाएं हाथ पर रखा।[४३]
- इब्न अब्बास की हदीस: इब्न अब्बास ने पैगम्बर (स) को उद्धृत करते हुए कहा कि पैगम्बरो ने नमाज़ में अपने दाहिने हाथ को अपने बाएं हाथ के ऊपर रखने का आदेश दिया गया है।[४४]
- इमाम अली (अ) द्वारा वर्णित हदीस: इस कथन के अनुसार, नमाज़ की सुन्नतो मे से एक नाभि के नीचे हाथो को रखना है।[४५]
शियो की आपत्तिया
शियो का मानना है कि इनमें से कुछ हदीसो की सनद मे खामियाँ हैं; क्योंकि उनके प्रसारण की श्रृंखला में ऐसे कथावाचक हैं जो सुन्नी विद्वानों के दृष्टिकोण से विश्वसनीय नहीं हैं।[४६] कुछ अन्य लोग भी अपनी सामग्री से यह निष्कर्ष नहीं निकालते हैं कि तकत्तुफ़ वाजिब या मुस्तहब है।[४७]
मोनोग्राफ़ी
कुछ पुस्तकें जिनमें तकत्तुफ़ के मुद्दे की जांच और आलोचना की गई है, वे इस प्रकार हैं:
- अल-इरसालो वत तकफ़ीर बैनस सुन्नते वल बिदआ: नजमुद्दीन तबसी की किताब जो सुन्नत और बिदअत के बीच संग्रह का एक हिस्सा है, जिसमें शिया और सुन्नी परस्पर विरोधी मुद्दे हैं, जैसे अस्थायी विवाह (मुत्आ) इत्यादि पर शोध किया किया गया है।[४८] यह संग्रह, एक पुस्तक के रूप में, परस्पर विरोधी मुद्दों में देरासातुन फ़िक़्हीया फ़ी मसाइला खेलाफ़िया के नाम से प्रकाशित किया गया है।[४९]
- तौज़ीह उल-मक़ाल फ़िज़ जम्मे वल इस्तिदलाल: मुहम्मद याह्या सालिम अज़्ज़ान की रचना है जिसे दार उत-तोरासिल युमना ने सनआ से प्रकाशित किया है।[५०]
- अल-क़ौलुल फ़स्ल फ़ी ताईदिस सुन्नतिस सद्लः मुहम्मद आबिद की रचना है जो तकत्तुफ़ की जांच और मालिक बिन अनस के अनुसार नमाज़ मे हाथ खोलकर पढ़ने का सिद्ध करने के लिए लिखी गई है।[५१]
- रेसालतुन मुख़्तसरतिन फ़िस सद्लः अब्दुल हमीद मुबारक आले शेख की रचना है।[५२]
- रेसालतुन फ़ि हुक्मे सद्लिल यदैन फ़िस सलाते अला मजहबिल इमाम मालिकः मुहम्मद बिन मुहम्मद अल-ग़र्बी मारूफ़ बे शंक़ीती की रचना है जिसे मरकज़े नशर दार उल-फ़ज़ीला ने प्रकाशित किया है।[५३]
- अल-क़ब्ज़ो फ़िस सलात: यह पुस्तक अहले-बैत की विश्व सभा द्वारा तैयार और प्रकाशित की गई है।[५४]
संबंधित लेख
फ़ुटनोट
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स्रोत
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- अतया, इब्न मुहम्मद सालिम, शरह बुलूग उल-मराम
- अवाशिया, हैसन बुन ऊदा, अल-मौसूआ अल-फ़िक्हीया अल-मयस्सेरा फ़ी फ़िक्हिल किताब वस सुन्नतिल मुताहेरा, दार इब्न हज़्म, बैरूत, पहला संस्करण 1423 हिजरी
- ऐनी, महमूद बिन अहमद, अल-बिनाया शरह उल-हिदाया, बैरूत, दार अल कुतुब अल इल्मा, पहला संस्करण 1420 हिजरी
- क़ुरतुबि, मुहम्मद बिन अहमद, बिदायतुल मुजतहिद व निहायातुल मुकतसिद, क़ाहिरा, दार अल हदीस, 1425 हिजरी
- फ़ी रेहाब अहले अल-बैत अलैहेमुस सलाम-21-अल क़ब्ज़ फ़ीस् सलातिल तकत्तुफ़, वेबगाह मजअ जहानी अहले-बैत, वीजिट की तारीख 3 तीर 1402 शम्सी
- अल-क़ौल उल-फ़स्ल फ़ी ताईद सुन्नतिल सदल अला मज़हब मालिक बिन अनस, वेबगाह किताबखाना ऐनुल जामेअ, विजिट की तारीख 5 तीर 1402 शम्सी
- मुबारकपुरी, मुहम्मद बिन अब्दुर रहीम, तोहफ़तुल अहवज़ी, बैरूत, दार उल-कुतुब अल-इल्मिया, पहला संस्करण 1410 हिजरी
- मुग़निया, मुहम्मद जवाद, अल-फ़िक़्ह अलल मज़ाहिब अल-ख़म्सा, बैरूत, दार अल तय्यार अल-जदीद, 1421 हिजरी
- नजफ़ी, मुहम्मद हसन, जवाहिर अल-कलाम, बैरूत, दार एहया अल-तुरास अल-अरबी, सातवां संस्करण, 1362 शम्सी
- नूवी, याह्या बिन शरफ़, अल-मजमुअ शरह उल-मोहज़्ज़ब, बैरूत, दार उल-फ़िक्र
- नेशापुरी, मुस्लिम, सहीह उल-मुस्लिम, क़ाहिरा, मतबअ ईसा अल-बाबी अल-हल्बी व शरकाह, 1374 हिजरी