नमाज़े ईद

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तेहरान मे ईद की नमाज़

ईद की नमाज़ या ईदैन की नमाज़ (अरबी صلاۃ العیدین), वह नमाज़ है जो मुसलमान ईद अल-फित्र और ईद अल-अज़्हा के दिन अदा करते हैं। शिया फ़ुक्हा के फतवो के अनुसार, यह नमाज़ इमाम की उपस्थिति के दौरान अनिवार्य (वाजिब) है और इसे जमात में पढ़ा जाना चाहिए। इसी तरह इमाम महदी की ग़ैबत मे ईद की नमाज़ पढ़ना मुस्तहब है हालांकि इसे जमात के साथ पढ़ना या अकेले पढ़ने के बारे में अलग-अलग राय है।

ईद की नमाज़ दो रकअत होती हैं; पहली रकअत में पांच कुनूत पढ़े जाते है और दूसरी रक्अत में चार कुनूत पढ़े जाते है। इसके अलावा, ईद की नमाज़ में दो धर्मउपदेश (ख़ुत्बे) होते हैं जो नमाज़ के बाद दिए जाते हैं। ईद की नमाज़ का समय सूर्योदय से शरई ज़वाल तक होता है। ईद की नमाज़ के कुछ रीति-रिवाज और नियम हैं छत के नीचे नमाज़ न पढ़ना बेहतर है और इस नमाज़ के क़ुनूत में एक विशेष दुआ पढ़ना बेहतर है।

मामून ने इमाम रज़ा (अ) को वली अहद चयनित करने के बाद आपको (अ) ईद अल-फित्र की नमाज़ की इमामत करने का आग्रह किया, लेकिन जब मामून ने जनता द्वारा इमाम रज़ा (अ) का स्वागत देखा, तो उसे डर लगा और उसने इमाम रज़ा (अ) को नमाज़ की इमामत करने से रोक दिया।

महत्व और स्थिति

ईद की नमाज़ उस नमाज़ को कहा जाता है जो मुसलमान ईद अल-फित्र और ईद अल-अज़्हा के अवसर पर अदा करते हैं। फ़िक़्ही और हदीसी स्रोतों में, इस नमाज़ को सलात अल-ईद के रूप में संदर्भित किया जाता है।[१] ईद की नमाज़ इमाम (अ) की उपस्थिति मे वाजिब है[२] और जमात के साथ पढ़ा जाना चाहिए।[३] हालांकि ग़ैबत के जमाने मे ईद की नमाज़ मुस्तहब है।[४] हालांकि ग़ैबत की अवधि के दौरान इसे जमात में पढ़ना न्यायशास्त्रियों (फ़ुक़्हा) के बीच असहमति का एक बिंदु है।[५] इमाम खुमैनी के फ़तवे के अनुसार, अगर वली फ़क़ीह या किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा जिसके पास वली फ़क़ीह की अनुमति हो जो इसकी इमामत करे या रजा के इरादे से पढ़े तो कोई हरज नही है। अन्यथा एहतियाते वाजिब यह है कि जमात के साथ ना पढ़े।[६] ईरान और अन्य इस्लामी देशों के विभिन्न क्षेत्रों में, बड़ी संख्या में नमाज़ियो की उपस्थिति के साथ जमात मे ईद की नमाज़ अदा की जाती है। ईरान के बड़े शहरों में वली फ़कीह के प्रतिनिधि इस नमाज़ की इमामत करते हैं। [स्रोत आवश्यक है]

रिवायतो के अनुसार, "क़द अफ़्लहा मन तज़क्का"[७] और "वा ज़कारस्मा रब्बेही फ़सल्ला"[८] आयतो में "तज़क्का" और "फसल्ला" का अर्थ ज़कात फितरा का देना और ईद की नमाज़ पढ़ना है।[९]

पढ़ने का तरीक़ा

ईद की नमाज़ मे पढ़ा जाने वाला क़ुनूत

अल्लाहुम्मा अहलल किब्रिया ए वल अज़मते वा अहलल जूदे वल जबारूते वा अहलल अफ़वे वर रहमते वा अहलत तक़वा वल मग़फ़ेरते अस्अलोका बेहक़्के हाज़ल यौमे अल्लज़ी जाअलतहू लिल मुस्लेमीना ईदा वले मुहम्मदिन सल लल्लाहो अलैहे वा आलेही ज़ुखरन वा शराफ़न वा करामतन वा मज़ीदन अन तोसल्ले अला मुहम्मदिन वा आले मुहम्मद वा अनतुदख़ेलनी फ़ी कुल्ले ख़ैरिन अदख़ल्ता फ़ीहे मुहम्मदव वा आला मुहम्मद वा अन तुख़रजनी मिन कुल्ले सूइन अखरज्तो मिन्हो मुहम्मदव वा आला मुहम्मद सलवातोका अलैहे वा अलैहिम अल्लाहुम्मा इन्नी असअलोका ख़ैयरा मा सआलका बेहि एबादोकस सालेहून वा आऊज़ोबेका मिम मस्तआज़ा मिन्हो एबादोकल मुख़लासून;

सुदूक़, ओयून ए अखबार अल-रज़ा (अ), 1378 हिजरी, भाग 1, पेज 296

ईद की नमाज़ दो रकअत है; हर रकअत में सूर ए हम्द के बाद एक और सूरा पढ़ा जाता है। पहली रकअत में सूर ए शम्स और दूसरी रकअत में सूर ए ग़ाशिया या पहली रकअत में सूर ए आला और दूसरी रकअत में सूर ए शम्स पढ़ना बेहतर है। साथ ही, पहली रकअत में सूरे के बाद पाँच तकबीर और पाँच क़ुनूत पढ़े जाते हैं (प्रत्येक तकबीर के बाद, एक क़ुनूत) और दूसरी रकअत में चार तकबीर और चार क़ुनूत। क़नूत में, किसी भी ज़िक्र और दुआ को दूसरी नमाज़ो की तरह पढ़ना पर्याप्त है, लेकिन "अल्लाहुम्मा अहलल किब्रिया ए वल अज़मते ..." से शुरू होने वाली दुआ का पढ़ना बेहतर है।[१०]

ख़ुत्बा

ईद की नमाज़ में जुमे की नमाज़ की तरह दो ख़ुत्बे होते हैं, इस अंतर के साथ कि ईद की नमाज़ में ख़ुत्बे नमाज़ के बाद दिए जाते हैं।[११] यह अंतर इसलिए है क्योंकि जुमे की नमाज़ हर सप्ताह आयोजित की जाती है, और अगर ख़ुत्बे नमाज के बाद में दिए जाएं तो नमाजी थक जाएंगे और वे मस्जिद छोड़ कर चले जाऐंगे, लेकिन चूंकि ईद की नमाज़ साल में केवल दो बार आयोजित की जाती है, इसलिए लोग ख़ुत्बो के अंत तक रुके रहते हैं।[१२] इसके अलावा, फ़ुक़्हा के बीच ख़ुत्बो के वाजिब या मुस्तहब होने के बारे मे मतभेद है।[१३]

नमाज़ का समय

जवाहिर नामक किताब के लेखक के अनुसार, प्रसिद्ध शिया फ़ुक्हा की राय के अनुसार, ईद की नमाज़ का समय सूर्योदय से शरई ज़वाल (दोपहर) तक है।[१४] और यदि ख़त्म हो जाए तो कज़ा नहीं है।[१५] हालांकि, इमाम खुमैनी के फ़तवे के अनुसार, सूर्योदय के बाद नमाज़ पढ़ना मुस्तहब है।[१६] इसी प्रकार जवाहिर नामक पुस्तक के लेखक ने मदारिक अल-अहकाम किताब से नकल किया है कि विद्वान (उलेमा) इस बात पर सहमत हैं कि ईद अल-फित्र की नमाज़ ईद अल-अज़्हा की नमाज़ से थोड़ी देरी के साथ पढ़ना मुस्तहब है, क्योंकि ईद अल-फ़ित्र मे नमाज़ पढ़ने वाले के लिए पहले इफ्तार करना मुस्तहब है और ज़कात अल-फ़ितरा को अलग कर दिया जाए, लेकिन ईद अल-अज़्हा पर क़ुर्बानी करना मुस्तहब है और नमाज़ के बाद उसका मांस खाया जाए।[१७]

शिष्टाचार

  • ईद की नमाज़ के बाद (अल्लाहो अकबर अल्लाहो अकबर, ला एलाहा इल लल्लाहो वल्लाहो अकबर, अल्लाहो अकबर वा लिल्लाहिल हम्दो, अल्लाहो अकबर अला मा हदाना اَللهُ اَکبرُ اَلله اَکبرُ، لا اِلهَ اِلّا اللهُ وَ اللهُ اَکبرُ، اَلله اَکبرُ وَ لِله الحَمدُ، اَلله اَکبَرُ عَلی ما هَدانا ) ज़िक्र पढ़ना मुस्तहब है।[१८]
  • ईद की नमाज़ मे आज़ान और अक़ामत नही है लेकिन मुस्तहब है कि नमाज़ से पहले मोअज़्जिन (बांगी) तीन बार अस्सलात कहे।[१९]
  • छत के नीचे ईद की नमाज़ पढ़ना मकरूह है।[२०] हदीस है कि अली (अ) ईद के दिन अपने घर से शहर (कूफ़ा) के बाहर नमाज़ की जगह तक लगातार तकबीर कहा करते थे।[२१] अब्दुल्लाह बिन उमर से यह भी रिवायत है कि अल्लाह के रसूल (स) ईद की नमाज़ के लिए पैदल निकलते थे और पैदल ही लौटते थे।[२२] अबू राफ़ेअ ने वर्णन किया है कि पैगंबर (स) एक रास्ते से जाते थे, और दूसरे रास्ते से लौटते थे।[२३]
  • जो व्यक्ति ईद-उल-फ़ितर की नमाज़ पढ़ता है उसे नमाज़ पढ़ने से पहले जकात फितरा अदा करना चाहिए या कुछ फ़ुक्हा के फ़तवे के अनुसार जकाते फ़ितरा को अपनी संपत्ति से अलग कर देना चाहिए।[२४]
  • ईद की नमाज़ अदा करने से पहले नमाज़ी को ग़ुस्ल करना मुस्तहब है और जिन दुआओ का किताबो मे उल्लेख किया गया है उनको नमाज़ से पहले और बाद मे पढ़े।[२५]
  • नमाज़ी को ईद की नमाज़[२६] के दौरान ज़मीन पर सज्दा करना और तकबीर कहते हुए हाथो का उठाना और नमाज़ के ज़िक्र को जोर से पढ़ना मुस्तहब है।[२७]
  • इमाम सादिक़ (अ) से वर्णित एक रिवायत मे ईद की नमाज़ में सबसे अच्छे कपड़े पहनने और सबसे अच्छे इत्र का उपयोग करने की सिफ़ारिश की गई है।[२८]

मामून का इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को ईद की नमाज़ अदा करने से रोकना

इमाम रज़ा को वलीअहद चुने जाने के बाद मामून ने आप (अ) से ईद अल-फितर की नमाज़ की इमामत करने का आग्रह किया। मामून के आग्रह के बाद, इमाम रज़ा (अ) इस शर्त पर सहमत हुए कि वह पैगंबर (स) की विधि और परंपरा के अनुसार नमाज़ अदा करेंगे।[२९] कुलैनी की रिवायत के आधार पर जैसे ही मामून अब्बासी के मंत्री फ़ज़्ल बिन सुहैल ने जनता द्वारा इमाम रज़ा (अ) का भव्य स्वागत देखा तो तुरंत मामून से कहा: यदि अली इब्न मूसा इस हालत में ईद की नमाज़ के स्थान पर आते हैं, तो लोग उनकी ओर आकर्षित हो जाऐंगे उनसे वापस लौटने के लिए कहें, मामून ने इमाम रज़ा (अ) के पास एक एल्ची भेजा और इमाम भी वापस आ गए[३०] मुर्तज़ा मुताहरी के अनुसार, मामून का इमाम रज़ा (अ) को नमाज़ अदा करने से रोकने का मुख्य कारण स्वागत करने वाले लोगों से खतरा था। क्योंकि इमाम रज़ा (अ) अब्बासी खलीफाओं की पद्धति के विपरीत, विलासिता से दूर मस्जिद में गए और लोगों द्वारा उनका स्वागत किया गया।[३१] कुछ शोधकर्ताओं ने इस घटना को ईद अल-अज़्हा से संबंधित माना है।[३२] कुलैनी की रिवायत के अनुसार इमाम रज़ा (अ) रास्ते मे जो तकबीर पढ़ रहे थे [नोट १] वो तकबीरे ईद अल-अज़्हा से संबंधित है। [स्रोत की आवश्यकता है]

फ़ोटो गैलरी

संबंधित लेख

नोट

  1. وَ طَلَعَ الرِّضَا(ع) وَقَفَ عَلَى الْبَابِ وَقْفَةً ثُمَّ قَالَ اللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُ اللَّهُ أَكْبَرُ عَلَى مَا هَدَانَا اللَّهُ أَكْبَرُ عَلَى مَا رَزَقَنَا مِنْ بَهِيمَةِ الْأَنْعَامِ وَ الْحَمْدُ لِلَّهِ عَلَى‌ مَا أَبْلَانَا वा तलाआ अल-रज़ा (अ) वकफ़ा अलल बाबे वक़्फ़तन सुम्मा क़ाला अल्लाहो अकबरो अल्लाहो अकबरो अल्लाहो अकबरो अकबरो अला मा हदाना अल्लाहो अकबरो अला मा रज़क़ना मिन बहीमतिल अनआमे वल हम्दो लिल्लाहे अला मा अब्लाना, अनुवादः और इमाम रज़ा (अ) आए और दरवाजे के पास खड़े हो गए और कहा: " अल्लाहो अकबरो अल्लाहो अकबरो अल्लाहो अकबरो अकबरो अला मा हदाना अल्लाहो अकबरो अला मा रज़क़ना मिन बहीमतिल अनआमे वल हम्दो लिल्लाहे अला मा अब्लाना ।" (कुलैनी, अल-कफी, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 490)

फ़ुटनोट

  1. देखेः नजफी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 11, पेज 333
  2. देखेः नजफी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 11, पेज 333
  3. बनी हाश्मी ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल (मराजे), दफ्तरे इंतेशारात इस्लामी, भाग 1, पेज 824
  4. नजफी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 11, पेज 333
  5. बनी हाश्मी ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल (मराजे), दफ्तरे इंतेशारात इस्लामी, पेज 234
  6. बनी हाश्मी ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल (मराजे), दफ्तरे इंतेशारात इस्लामी, भाग 1, पेज 824
  7. सूर ए आला, आयत न 14
  8. सूर ए आला, आयत न 15
  9. तबातबाई, अल-मीज़ान, इंतेशारात जामे मुदर्रेसीन, भाग 20, पेज 269
  10. ख़ुमैनी, तहरीर अल-वसीला, मोअस्सेसा तंज़ीम वा नशर आसारे इमाम ख़ुमैनी, भाग 1, पेज 227
  11. नजफी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 11, पेज 337-338
  12. देखेः नजफी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 11, पेज 338
  13. नजफी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 11, पेज 337-337
  14. नजफी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 11, पेज 351
  15. नजफी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 11, पेज 355
  16. बनी हाश्मी ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल (मराजे), दफ्तरे इंतेशारात इस्लामी, भाग 1, पेज 824
  17. नजफी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 11, पेज 354-355
  18. बनी हाश्मी ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल (मराजे), दफ्तरे इंतेशारात इस्लामी, भाग 1, पेज 827
  19. नजफी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 11, पेज 374
  20. खुमैनी, मोअस्सेसा तंज़ीम वा नशर आसारे इमाम ख़ुमैनी, भाग 2, पेज 228
  21. मजलिसी, बिहार उल अनवार, 1403 हिजरी, भाग 88, पेज 118; मुत्तक़ी अल-हिंदी, कंज़ुल उम्माल, 1413 हिजरी, भाग 7, पेज 88
  22. मुत्तक़ी अल-हिंदी, कंज़ुल उम्माल, 1413 हिजरी, भाग 7, पेज 88
  23. मुत्तक़ी अल-हिंदी, कंज़ुल उम्माल, 1413 हिजरी, भाग 7, पेज 88
  24. बनी हाश्मी ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल (मराजे), दफ्तरे इंतेशारात इस्लामी, भाग 2, पेज 182
  25. बनी हाश्मी ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल (मराजे), दफ्तरे इंतेशारात इस्लामी, भाग 1, पेज 826
  26. नजफी, जवाहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 11, पेज 374
  27. बनी हाश्मी ख़ुमैनी, तौज़ीहुल मसाइल (मराजे), दफ्तरे इंतेशारात इस्लामी, भाग 1, पेज 826
  28. क़ाज़ी नौमान, दाएम अल-इस्लाम, 1385 हिजरी, भाग 1, पेज 185
  29. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 489
  30. कुलैनी, अल-काफ़ी, 1407 हिजरी, भाग 1, पेज 490
  31. मुताहरी, मजमूआ ए आसार, 1390 शम्सी, भाग 17, पजे 174-176
  32. नजफ़ी, जावहिर अल-कलाम, 1362 शम्सी, भाग 11, पेज 381 उसूले काफ़ी, तरजुमा वा शरह सय्यद जवाद मुस्तफवी, भाग 2, पेज 407

स्रोत

  • बनी हाशमी ख़ुमैनी, मुहम्मद हसन, तौज़ीहुल मसाइल (मराजे), क़ुम, दफ्तरे इंतेशारात इस्लामी
  • ख़ुमैनी, सय्यद रूहुल्लाह, तहरीर अल-वसीला, तेहरान, मोअस्सेसा तंज़ीम वा नशर आसारे इमाम ख़ुमैनी
  • तबातबाई, सय्यद मुहम्मद हुसैन, अल-मीज़ान फ़ी तफ़सीर अल-क़ुरआन, क़ुम, इंतेशारात जामे मुदर्रेसीन
  • क़ाज़ी नौमान मगरिबी, दआएम अल-इस्लाम, शोधकर्ताः आसिफ़ फ़ैज़ी, क़ुम, मोअस्सेसा आले अल-बैत (अ), 1385 हिजरी
  • कुलैनी, मुहम्मद बिन याक़ूब, अल-काफ़ी, संशोधनः अली अकबर ग़फ़्फ़ारी वा मुहम्मद आख़ूंदी, तेहरान, दार उल कुतुब अल-इस्लामीया, चौथा संस्करण, 1407 हिजरी
  • मुत्तक़ी अल-हिंदी, अली बिन हेसाम, कंज़ुल उम्माल फ़ी सुनन अल-अक़वाल वल अफ़आल, बैरूत, मोअस्सेसा अल-रिसालत, 1413 हिजरी
  • मजलिसी, मुहम्मद बाकिर, बिहार उल अनवार, बैरूत, दार एहया अल-तुरास अल-अरबी, 1403 हिजरी
  • मुताहरी, मुर्तज़ा, मजमूआ ए आसार, सदरा, 1390 शम्सी
  • नजफ़ी, मुहम्मद हसन बिन मुहम्मद बाक़िर, जवाहिर अल-कलाम फ़ी शरह शराए अल-इस्लाम, शोधः अब्बास क़ूचानी, बैरूत, दार एहया अल-तुरास अल-अरबी, सांतवा संस्करण, 1362 शम्सी