दुआ या अलीयो या अज़ीम

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दुआ या अलीयो या अज़ीमो (अरबी: دعای یا علی یا عظیم), रमज़ान के पवित्र महीने की प्रसिद्ध प्रार्थनाओं में से एक है, जिसे रोज़ाना की नमाज़ों के बाद पढ़ने का आदेश दिया गया है। इसी कारण से, शिया दैनिक प्रार्थनाओ के बाद समूहों में इस दुआ को पढ़ते हैं। यह प्रार्थना इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) और इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) द्वारा इक़बाल अल-आमाल, मिस्बाह कफ़अमी और ज़ाद अल-मआद जैसी किताबों में वर्णित की गई है। इसमें ईश्वर को जानने, रमज़ान के महीने, क़ुरआन, शबे-क़द्र और प्रार्थना के तौर-तरीकों के बारे में शिक्षा दी गई है।

रुतबा

दुआ या अलियो या अज़ीम उन दुआओं में से एक है जो आयतुल्लाह मकारिम शीराज़ी के अनुसार बहुत उच्च विषय और सामग्री वाली है।[१] अल्लामा मजलिसी (निधन: 1110 हिजरी) ने इमाम सादिक़ (अ.स.) और इमाम काज़िम (अ.स.) से ज़ाद अल-मआद पुस्तक में जो वर्णन किया है, उसके अनुसार, रमज़ान के महीने में हर अनिवार्य नमाज़ (दैनिक प्रार्थना) के बाद इस प्रार्थना की सिफारिश की जाती है।[२] इस वजह से, शिया दैनिक प्रार्थना के बाद समूहों में इस प्रार्थना को पढ़ते हैं। यह प्रार्थना ईश्वर को जानने, रमज़ान के महीने को जानने, क़ुरआन को जानने, क़द्र की रात को जानने और प्रार्थना करने के तरीके के संदर्भ में लोगों पर प्रभाव डाल सकती है।[३]

प्रार्थना दस्तावेज

दुआ या अलीयो या अज़ीम को सबसे पहले इक़बाल अल-आमाल किताब में सय्यद इब्न तावुस (मृत्यु: 664 हिजरी) द्वारा उद्धृत किया गया है और इसका श्रेय इमाम सादिक़ (अ.स.) और इमाम काज़िम (अ.स.) को दिया गया है।[४] इसके अलावा, कफ़अमी (मृत्यु: 905 हिजरी) ने किताब मिस्बाह[५] में और अल्लामा मजलिसी (मृत्यु: 1110 हिजरी) ने इस प्रार्थना को ज़ाद अल-मआद किताब में उद्धृत किया है।[६] बेशक, किताब मिस्बाह में उल्लिखित प्रार्थना इक़बाल अल-आमाल और ज़ाद अल-मआद किताब से थोड़ी अलग है। उदाहरण के लिए, इक़बाल अल-आमाल वा ज़ाद अल-मआद पुस्तक में यह वाक्यांश इस तरह आया है "«وَ هَذَا شَهْرٌ عَظَّمْتَهُ وَ كَرَّمْتَهُ وَ شَرَّفْتَهُ وَ فَضَّلْتَهُ عَلَى الشُّهُورِ» "(व हाज़ा शहरुन अज़्ज़मतहु व कर्रमतहु व शर्रफ़तहु व फ़ज़्ज़लतहु अलश शुहूर),[७] जबकि किताब मिसबाह में यह इस प्रकार आया है "«وَ هَذَا شَهْرٌ شَرَّفْتَهُ وَ عَظَّمْتَهُ وَ كَرَّمْتَهُ وَ فَضَّلْتَهُ عَلَى الشُّهُورِ»" (व हाज़ा शहरुन शर्रफ़तहु व अज़्ज़मतहु व कर्रमतहु व फ़ज़्ज़लतहु अलश शुहूर)[८] इसी तरह से, इक़बाल अल-आमाल किताब के पुराने संस्करण में "या अलीयो या अज़ीमो या गफ़ूरो या रहीम..." («يا عَلِيُّ يا عَظِيمُ يا غَفُورُ يا رَحيم‏...»)[९] वाक्यांश इस तरह से या अलीयो या अज़ीमो या गफ़ूरो या शकूरो या रहीम «يَا عَلِيُّ يَا عَظِيمُ يَا غَفُورُ يَا شَكُورٌ يَا رَحِيم‏...»[१०] दिया गया है।

सामग्री

आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी के अनुसार, प्रार्थना "या अलीयो या अज़ीम" की प्रत्येक वाक्यांश में एक संदेश है।[११] उनके अनुसार, प्रार्थना का पहला भाग ईश्वर के ज्ञान और ईश्वर के गुणों की अभिव्यक्ति से संबंधित है, और अगला भाग रमज़ान के महीने की विशेषताओं को संदर्भित करता है। क़ुरआन में तीन प्रकार के मार्गदर्शन (हिदायत) का ज़िक्र होने, शबे क़द्र के एक हज़ार महीनों पर श्रेष्ठता की ओर इसमें इशारा हुआ है, और प्रार्थना शिष्टाचार की शिक्षा इस प्रार्थना की अन्य शिक्षाएँ हैं जिन्हें आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी ने इसके संबंध में बयान किया है।[१२]

दुआ के शब्द

يا عَلِيُّ يا عَظِيمُ يا غَفُورُ يا رَحيمُ، انْتَ الرَّبُّ الْعَظِيمُ، الَّذي لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَيْ‏ءٌ وَ هُوَ السَّميعُ الْبَصِيرُ، وَ هَذا شَهْرٌ عَظَّمْتَهُ وَ كَرَّمْتَهُ وَ شَرَّفْتَهُ وَ فَضَّلْتَهُ عَلَى الشُّهُورِ، وَ هُوَ الشَّهْرُ الَّذي فَرَضْتَ صِيامَهُ عَلَيَّ، وَ هُوَ شَهْرُ رَمَضانَ، الَّذي انْزَلْتَ فيهِ الْقُرْآنَ، هُدىً لِلنّاسِ وَ بَيِّناتٍ مِنَ الْهُدى‏ وَ الْفُرْقانِ، وَ جَعَلْتَ فيهِ لَيْلَةَ الْقَدْرِ وَ جَعَلْتَها خَيْراً مِنْ الْفِ شَهْرٍ. فَيا ذَا الْمَنِّ و لا يُمَنُّ عَلَيْكَ، مُنَّ عَلَيَّ بِفَكاكِ رَقَبَتي مِنَ النّارِ، فيمَنْ تَمُنُّ عَلَيْهِ، وَ ادْخِلْني الْجَنَّةَ بِرَحْمَتِكَ يا ارْحَمَ الرَّاحِمِينَ. [१३]

अनुवाद

हे बुलंद मर्तबा, हे बुज़ुर्ग, हे क्षमा करने वाले, हे दयालु, तू महान रब हैं, तेरे जैसा कोई नहीं है, और वह सुनने वाला, देखने वाला है, और यह वह महीना है जिसे तूने महानता, महत्व, उत्कृष्टता और लाभ प्रदान किया है और इसे अन्य महीनों पर श्रेष्ठता प्रदान की है, और यह वह महीना है जिसके उपवास को तूने हम पर अनिवार्य कर दिया है, और यह रमज़ान का महीना है जिसमें तूने लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए क़ुरआन को अवतरित किया है लोगों के मार्गदर्शन के लिए, स्पष्ट कारण बताने के लिये और सत्य और झूठ अंतर करने के लिये, और तूने इसमें शबे क़द्र को रखा जो एक हज़ार महीनों से बेहतर है, हे प्रेम और दया के मालिक, तुझ पर कोई एहसान नही कर सकता, मुझे आग से मुक्ति दे, मुझे उन लोगों में से नहीं रख जिन पर तू दया नहीं करता और मुझे स्वर्ग में प्रवेश की आज्ञा दे, हे सबसे बड़े दयालु।[१४]

फ़ुटनोट

  1. मकारिम शिराज़ी, मफ़ातिह नवीन, 1395, पृ.716
  2. अल्लामा मजलिसी, ज़ाद अल-मआद, 1423 हिजरी, पृष्ठ 84।
  3. ग्रैंड आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी के कार्यालय की समाचार एजेंसी, "ग्रैंड आयतुल्लाह मकारेिम के दृष्टिकोण से प्रार्थना "या अली या अज़ीम" का विवरण"।
  4. सैय्यद इब्न तावुस, अल-इक़बाल अल आमाल, 1376, खंड 1, पृष्ठ 80।
  5. कफ़अमी, मिस्बाह, 1405 हिजरी, पृष्ठ 630।
  6. अल्लामा मजलेसी, ज़ाद अल-मआद, 1423 हिजरी, पृष्ठ 84।
  7. सैय्यद इब्न तावुस, अल-इक़बाल अल आमाल, 1376, खंड 1, पृष्ठ 80, अल्लामा मजलिसी, ज़द अल-मआद, 1423 हिजरी, पृष्ठ 84।
  8. कफ़अमी, मिस्बाह, 1405 हिजरी, पृष्ठ 630।
  9. सैय्यद इब्न तावुस, अल-इक़बाल अल आमाल, 1376, खंड 1, पृष्ठ 80।
  10. सैय्यद इब्न तावुस, इक़बाल अल-आमाल, 1409 हिजरी, खंड 1, पृष्ठ 24।
  11. ग्रैंड आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी के कार्यालय की समाचार एजेंसी, "ग्रैंड आयतुल्लाह मकारिम के दृष्टिकोण से प्रार्थना "या अली या अज़ीम" का विवरण"।
  12. ग्रैंड आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी के कार्यालय की समाचार एजेंसी, "ग्रैंड आयतुल्लाह मकारिम के दृष्टिकोण से प्रार्थना "या अली या अज़ीम" का विवरण"।
  13. सैय्यद इब्न तावुस, अल-इक़बाल अल आमाल, 1376, खंड 1, पृष्ठ 80, अल्लामा मजलिसी, ज़द अल-मआद, 1423 हिजरी, पृष्ठ 84।
  14. "रमज़ान के महीने में हर अनिवार्य प्रार्थना के बाद "या अली या अजीम..." की प्रार्थना", हज़रत उस्ताद हुसैन अंसारियान के कार्यालय का सूचना आधार।

स्रोत

  • "रमज़ान के महीने में हर अनिवार्य प्रार्थना के बाद "या अली या अज़ीम ... https://erfan.ir/mafatih829" की प्रार्थना", हज़रत उस्ताद हुसैन अंसारियान के कार्यालय का सूचना आधार, देखने की तारीख़: 2 उर्दीबहिश्त, 1403 शम्सी।
  • सैय्यद बिन तावुस, अली बिन मूसा, इक़बाल अल-आमाल, तेहरान, दारुल कुतुब अल-इस्लामिया, दूसरा संस्करण, 1409 हिजरी।
  • सैय्यद बिन तावुस, अली बिन मूसा, अल-इक़बाल बिल आमाल अल-हसनह, जवाद क़य्यूमी इस्फ़हानी द्वारा शोध, क़ुम, इस्लामिक प्रचार कार्यालय, पहला संस्करण, 1376 शम्सी।
  • "ग्रैंड आयतुल्लाह मकारिम के दृष्टिकोण से प्रार्थना "या अली या अज़ीम" का विवरण https://makarem.ir/news/fa/News/Details/419558", ग्रैंड आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी के कार्यालय की समाचार एजेंसी, प्रवेश की तारीख: 17 उर्दीबहिश्त 1399, पहुंच की तारीख: 2 उर्दीबहिश्त 1403 शम्सी।
  • अल्लामा मजलिसी, मुहम्मद बाकिर, ज़ाद अल-मआद, अलाउद्दीन अल-आलमी द्वारा शोध किया गया, बेरूत, अल-आलमी फाउंडेशन फॉर प्रेस, प्रथम संस्करण, 1423 हिजरी।
  • कफ़अमी, इब्राहिम बिन अली, मिस्बाह अल-कफ़अमी, क़ुम, दार अल-रज़ी, दूसरा संस्करण, 1405 हिजरी।
  • मकारिम शिराज़ी, नासिर, मफ़ातिह नवीन, मोहम्मद रज़ा हमीदी और मसूद मकारिम द्वारा अनुवादित, अहमद कुदसी और सईद दाऊदी द्वारा शोध किया गया, क़ुम, इमाम अली इब्न अबी तालिब (एएस) प्रकाशन, चौथा संस्करण, 1395 शम्सी।